Understanding the Prehistoric Period of India: A Comprehensive Overview
Overview
The prehistoric period of India spans from approximately 200,000 BC to 1000 BC, marking significant developments in human life and culture. This era is categorized into various phases, including the Paleolithic, Mesolithic, Neolithic, and Chalcolithic periods, each characterized by distinct advancements in tool-making, settlement patterns, and social structures.
Key Phases of the Prehistoric Period
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Paleolithic Age (300,000 BC - 10,000 BC)
- Lower Paleolithic (300,000 - 100,000 BC): Characterized by rough stone tools used by hunter-gatherers. Key sites include the Bori site in Maharashtra and various locations in Kashmir and Rajasthan.
- Middle Paleolithic (100,000 - 40,000 BC): Introduction of smaller, more refined tools. Evidence found along the Narmada and Tungabhadra rivers.
- Upper Paleolithic (40,000 - 10,000 BC): Marked by the emergence of modern humans (Homo sapiens) and advanced tools like needles and fishing implements.
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Mesolithic Age (10,000 BC - 6,000 BC)
- This period saw the development of microliths, small stone tools used for hunting and gathering. Significant sites include Mirzapur in Uttar Pradesh and Baghor in Rajasthan.
- The climate change during this time led to the domestication of animals and the beginnings of agriculture.
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Neolithic Age (6,000 BC - 1,000 BC)
- Known as the New Stone Age, this era introduced polished stone tools and the practice of agriculture. Key archaeological sites include Koladi in Uttar Pradesh and Mehrgarh in Pakistan.
- The Neolithic period marked the transition from nomadic lifestyles to settled agricultural communities, which is further explored in our summary on Comprehensive Overview of Agriculture and Its Practices in India.
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Chalcolithic Age (2,000 BC - 2,500 BC)
- This phase saw the use of copper tools alongside stone tools, indicating a significant cultural evolution. The Chalcolithic culture laid the groundwork for the later Harappan civilization.
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Megalthic Period (1,000 BC - 500 BC)
- Characterized by the construction of large stone structures for burial and memorial purposes. This period also marks the transition from prehistory to history with the advent of iron tools and written records, which is a crucial aspect of understanding the broader context of Indian history as discussed in Understanding Agriculture: An In-depth Guide to Agricultural Practices in India.
Conclusion
The prehistoric period of India showcases the evolution of human society from simple hunter-gatherer groups to complex agricultural communities. The advancements in tool-making, settlement patterns, and social structures during this time laid the foundation for the subsequent historical developments in Indian civilization.
प्रीहिस्टोरिक पीरियड ऑफ इंडिया दोस्तों हिस्ट्री यानी कि इतिहास एक ग्रीक वर्ड हिस्टोरिया से बना है जिसका मीनिंग है
इंक्वायरी इन्वेस्टिगेशन या पास्ट नॉलेज हम सभी जानते हैं कि अतीत का अध्ययन पिछली घटनाओं के साथ-साथ इन घटनाओं से जुड़े खोज
संग्रह और व्याख्या से संबंधित होता है और इसी कारण हिस्ट्री के रिकंस्ट्रक्शन में हिस्टोरिकल सोर्सेस की एक अहम भूमिका होती
है इन सोर्सेस को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है पहला नॉन लिटरेरी सोर्सेस और दूसरा लिटरेरी सोर्सेस नॉन लिटरेरी
सोर्सेस में कॉइंस इंस्क्राइनॉक्स आर्कियोलॉजिकल एविडेंसेस पर आधारित है जैसे कि उस समय की पोट्री आर्टीफैक्ट्स
स्टोन टूल्स और मेटल इंप्लीमेंट्स जो कई प्रीहिस्टोरिक साइट से प्राप्त हुए हैं वहीं दूसरी तरफ आर्कियोलॉजिकल सोर्सेस के
साथ-साथ रिटन एविडेंस का युग हिस्ट्री का निर्माण करता है इसके अलावा प्रीहिस्ट्री और हिस्ट्री के बीच के दौर को प्रोटो
हिस्ट्री के रूप में जाना जाता है यह उस टाइम पीरियड को इंडिकेट करता है जिसके रिटन रिकॉर्ड्स तो अवेलेबल हैं लेकिन उनकी
स्क्रिप्ट डिसाइफर ना होने के कारण हिस्टोरियंस उस इंफॉर्मेशन को डिकोड नहीं कर पाए हैं आज हम इंडिया के प्रीहिस्टोरिक
पीरियड के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे इसमें लगभग 200000 बीसी से लेकर 3500 टू 2500 बीसी तक का टाइम पीरियड आता
है माना जाता है कि इस प्रारंभिक काल में भारतीय मानव नेगो रेस के थे और हंटिंग गैदरिंग जैसी एक्टिविटीज के जरिए अपना
जीवन यापन करते थे प्री हिस्टो टरिक एज में डिफरेंट फेजेस में धीरे-धीरे मानव सेटल्ड लाइफ की तरफ आगे बढ़ता है तो आइए
विस्तार से समझते हैं ह्यूमन हिस्ट्री की इस फाउंडेशन एज को प्रीहिस्टोरिक पीरियड इंडिया में प्रीहिस्टोरिक एज की शुरुआत
स्टोन एज से होती है मानव के इस प्रारंभिक काल के बारे में कुछ आर्कियोलॉजिकल एविडेंस मिले हैं जिनमें पत्थर के औजार
यानी कि स्टोन टूल्स सबसे ज्यादा मात्रा में पाए गए हैं यह संभावना है कि लोगों ने पत्थर लकड़ी और हड्डी के टूल्स और वेपंस
बनाए और उनका इस्तेमाल किया जिनमें से स्टोन टूल्स सबसे अच्छे रूप में आज तक संरक्षित हैं इसीलिए इस काल को लिथिक एज
या स्टोन एज कहा जाता है जियोलॉजिकल एज स्टोन टूल्स के टाइप्स और प्रीहिस्टोरिक लोगों के लाइफस्टाइल के आधार पर स्टोन एज
को मुख्य रूप से तीन प्रकार में वर्गीकृत किया गया है पहला पलियो थिक एज यानी ओल्ड स्टोन एज दूसरा लिथिक एज यानी मिडिल स्टोन
एज और तीसरा लिथिक एज यानी न्यू स्टोन एज आइए इस दौर को विस्तार से समझते हैं पलियो थिक एज जो कि 30000 बीसी से 10000 बीसी के
बीच मानी जाती है पलियो थिक शब्द दो ग्रीक वर्ड से बना है पलियो जिसका अर्थ है पुराना और लिथोस जिसका अर्थ है स्टोन और
इस तरह यह नाम स्टोन टूल्स के महत्व को दर्शाता है प लिथिक पीरियड की यह लंबी अवधि मानव इतिहास के 99 प्र हिस्से को कवर
करती है भारत में पलियो थिक पीरियड के सबसे पहले आर्कियोलॉजिकल एविडेंस की डिस्कवरी का श्रे ज्योग्राफिकल सर्वे ऑफ
इंडिया के जियोलॉजिस्ट रॉबर्ट ब्रूस फुट को दिया जाता है उन्होंने 18631 हैंक्स की खोज की थी इसी कारण
उन्हें फादर ऑफ प्रीहिस्टोरिक आर्कियोलॉजी भी कहा जाता है दोस्तों प्राचीन लोगों के द्वारा उपयोग किए जाने वाले स्टोन टूल्स
और क्लाइमेट के डिफरेंसेस के आधार पर इस युग को तीन फेजेस में बांटा गया है इसमें पहला फेज है लोअर पलियो थिक एज जो 300000
बीसी से 100000 बीसी तक के पीरियड को कवर करता है यह दौर आईज का था और इस दौर का मानव मुख्य रूप से हंटर और गैदरर था खोज
कर्ताओं के अनुसार उस समय ह्यूमंस बिना पॉलिश किए हुए रफ और हैवी स्टोन टूल्स जैसे कि हैंड एक्सेस चॉपर्स और क्लीवर्स
का इस्तेमाल किया करते थे औजार बनाने के लिए लाइम स्टोंस का भी प्रयोग किया जाता था महाराष्ट्र राज्य का एक छोटा सा शहर
बोरी ओल्डेस्ट लोअर पलियो फिक साइट्स में से एक है इसके अलावा कश्मीर वैली राजस्थान के दद वाना डेजर्ट एरिया और थार डेजर्ट
में भी अनेक स्थल मिले हैं क्योंकि इस युग में स्टोन के टूल्स महत्त्वपूर्ण थे इसीलिए लोगों ने ऐसी जगहों को खोजने की
कोशिश की जहां अच्छे क्वालिटी के स्टोन आसानी से उपलब्ध हो ऐसी साइट्स पर प्राचीन लोग स्टोन टूल्स
बनाते थे और उन्हीं स्थानों को फैक्ट्री साइट्स के रूप में जाना जाता था इनमें केव्स और शेल्टर्स भी शामिल हैं जहां लोग
लंबे समय तक आश्रय भी लिया करते थे इन्हें हैबिटेशन कम फैक्ट्री साइट्स कहा जाने लगा लोगों नेन नेचुरल केव्स को इसलिए चुना
क्योंकि यह बारिश गर्मी और तेज हवा से उन्हें बचाने की जगह प्रदान करती थी विंध्यास और डेकन प्लेटो में नेचुरल केव्स
और शेल्टर पाए जाते हैं यह रॉक शेल्टर्स नर्मदा घाटी के पास हैं मध्य प्रदेश में स्थित भीमबेटका केव्स और रॉक शेल्टर्स
इन्हीं साइट्स का एक महत्त्वपूर्ण उदाहरण है इस दौर के विभिन्न प्रकार के स्टोन टूल्स उत्तर प्रदेश की बलान घाटी में भी
पाए गए हैं जो विंध्यास फुटहिल्स में स्थित है इसके साथ ही आंध्र प्रदेश के नागार्जुन कोंडा में भी लोअर पलियो थिक एज
के साक्ष्य मिलते हैं इस दौर की अन्य मुख्य साइट्स में गुजरात का सौराष्ट्र रीजन डेकन प्लेटो और छोटा नागपुर प्लेटो
शामिल है अब बात करते हैं दूसरे फेज यानी मिडिल पलियो थिक एज की जो 100000 बीसी से 40000 बीसी के बीच का काल था दोस्तों
मिडिल पलियो थिक एज में ह्यूमंस ने शाप और पॉइंटेड टूल्स जैसे फ्लेक्स ब्लेडसो इंटर्स बनाना शुरू किया था वे छोटे
एनिमल्स को मारने के लिए और मीट कटिंग के लिए इन उपकरणों का इस्तेमाल करते थे लोअर पलियो थिक एज की तुलना में इस दौर के
टूल्स छोटे हल्के और पतले थे इस युग के अवशेष नर्मदा नदी के किनारे कई स्थानों पर और तुंग भद्रा नदी के दक्षिण में भी कई
स्थानों पर पाए जाते हैं इसके अलावा राजस्थान की लूनी वैली यूपी की बेलन वैली और एमपी की भीमबेटका केव्स भी इस दौर के
मुख्य स्थलों में शामिल है तीसरा फेज है अपर पलियो थिक एज जो 40000 बीसी से 10000 बीसी तक का पीरियड था दोस्तों अपर पेल
लिथिक एज आइस एज के लास्ट फेज के साथ को इंसाइड करता था जब क्लाइमेट तुलनात्मक रूप से वार्मर और ह्यूमिडिटी कम हो चुकी थी इस
दौर को आधुनिक लोगों की उपस्थिति का प्रतीक माना जाता है इस जज के साथ ही मॉडर्न ह्यूमन बीइंग स्पीशीज यानी कि होमो
सेपियंस का उद्भव हुआ था इस समय के स्टोन टूल्स में टेक्नोलॉजिकल एडवांसमेंट्स देखने को मिलते हैं नीडल्स ब्यूरिंस
फिशिंग टूल्स पैरेलल साइडेड ब्लेड और बोरिंग टूल्स जैसे उपकरण का आविष्कार इस दौर में हुआ इंडिया में ब्लेडसो के उपयोग
के साक्ष्य आंध्र प्रदेश कर्नाटका महाराष्ट्र एमपी सदर्न यूपी झारखंड और आसपास के क्षेत्रों में पाए गए हैं गुजरात
सैंड ड्यूस के अपर लेवल्स में भी ब्लेड स्क्रैपर्स और फ्लेक्स जैसे टूल्स पाए गए हैं इसके साथ ही बोन टूल्स जैसी विशेषता
केवल आंध्र प्रदेश की कुरनूल और मुछा तला चिंतामणि गावी केव साइट्स पर पाए गए हैं तो दोस्तों अभी तक हमने पलियो थिक एज को
को समझा लगभग 12000 बीसी से लेकर 10000 बीसी तक की अवधि में क्लाइमेट चेंज के साक्ष्य पाए जाते हैं इस समय के साथ ही
मेसोलिथिक एज की शुरुआत हुई थी तापमान में वृद्धि और जलवायु परिवर्तन के कारण आइस मेल्टिंग और फ्लोरा फना में कई बदलाव हुए
और इसी के साथ ह्यूमंस की जीवन शैली और उपयोग में किए जाने वाले टूल्स में भी एडवांसमेंट्स देखने को मिले आइए एक नजर
डालते हैं मेसोलिथिक एज की विशेषताओं पर मेसोलिथिक एज 10000 बीसी टू 6000 बीसी मेसोलिथिक शब्द दो ग्रीक वर्ड्स मेजो
और लिथोस से लिया गया है लिथोस का अर्थ स्टोन होता है यह तो हमने पहले ही समझ लिया है मेजो का अर्थ होता है मिडल इसीलिए
प्रीहिस्ट्री के इस मेसोलिथिक स्टेज को मिडल स्टोन एज के रूप में भी जाना जाता है मेसोलिथिक कल्चर पलियो थिक की तुलना में
अधिक मॉडर्न और डायवर्सिटी के लिए जाना जाता है गंगा प्लेंस में फर्स्ट ह्यूमन कॉलोनाइजेशन इसी अवधि के दौरान हुआ था इस
युग के टूल्स में माइक्रोलिथ सबसे प्रमुख उपकरण थे माइक्रोलिथ एक प्रकार के मिनिएचर स्टोन टूल्स थे जो आमतौर पर क्रिप्टो
क्रिस्टलाइन सिलिका या चट जैसे फाइनली ग्रेन रॉक से बने होते थे इन माइक्रो लिट्स का इस्तेमाल ह्यूमंस छोटे जानवरों
और पक्षियों का शिकार करने के लिए किया करते थे इसके अलावा इनका कंपोजिट टूल्स बनाने के लिए उपयोग होता था इन कंपोजिट
टूल्स का प्लांट गैदरिंग हार्वेस्टिंग ग्रेटिंग इत्यादि जैसे काम के लिए इस्तेमाल किया जाता था उत्तर प्रदेश के
मिर्जापुर डिस्ट्रिक्ट के रॉक शेल्टर्स में माइक्रोलिथ और अन्य मेसोलिथिक टूल्स की सबसे पहली खोज की गई थी इसके अलावा
राजस्थान का बागौर क्षेत्र सबसे बड़ी डॉक्युमेंटेड मेसोलिथिक साइट्स में से एक है बागौर कोठारी नदी पर स्थित है जहां
खुदाई में माइक्रो लिट्स के साथ एनिमल बोनस और शेल्स भी प्राप्त हुए इसके साथ ही यह माइक्रोलिथ ताप साबरमती नर्मदा और माही
नदी की कुछ घाटियों में भी पाए गए हैं जैसा कि हमने पहले देखा कि मेसोलिथिक युग का आरंभ क्लाइमेट चेंज के साथ हुआ था
तापमान की वृद्धि के कारण कई क्षेत्रों में ग्रास लैंड्स का विकास होने लगा जिसके परिणाम स्वरूप डियर एंटीलो गोट शीप और
कैटल यानी कि घास पर जीवित रहने वाले जानवरों की संख्या में वृद्धि हुई जहां अभी तक ह्यूमंस हंटर गैदरर के रूप में
जीवन बिता रहे थे अब वो एनिमल डोमेस्टिक ि केशन उनके फूड हैबिट्स और ब्रीडिंग सीजंस के बारे में सीखने लगे मध्य प्रदेश के आदम
गढ़ में एनिमल डोमेस्टिक केशन का सबसे पुराना साक्ष्य मिलता है डोमेस्टिक केड एनिमल्स में पहला वाइल्ड डॉग था इसके
अलावा शीप और गोट सबसे आम पालतू जानवर हुआ करते थे मेसोलिथिक ह्यूमंस ने जानवरों की खाल के बने कपड़े भी पहनना शुरू कर दिया
था इसके साथ-साथ मेसोलिथिक एज वो दौर था जब सबकॉन्टिनेंट के विभिन्न भागों में वीट बाली और राइस सहित कई और अनाज प्राकृतिक
रूप से उगने लगे थे इसके अलावा मेसोलिथिक लोग आर्ट लवर्स भी थे और उन्होंने रॉक पेंटिंग्स की शुरुआत की इन पेंटिंग्स की
थीम ज्यादातर वाइल्ड एनिमल्स हंटिंग डांसिंग जैसी एक्टिविटीज को डिपिक्ट करती है पूरे इंडिया में लगभग 150 मेसोलिथिक
रॉक आर्ट साइट्स हैं जिनमें एमपी की भीमबेटका केव्स कारवाड़ा उड़ीसा का संबलपुर और सुंदरगढ़
और केरला का एरत गुहा जैसे समृद्ध साइट्स शामिल हैं यह रॉक पेंटिंग्स धार्मिक प्रथाओं के विकास को भी दर्शाते हैं पलियो
थिक युग के विपरीत इस युग के लोग मृत्यु के बाद जीवन में विश्वास करते थे और इसीलिए उन्होंने ह्यूमन और एनिमल डेड
बॉडीज को फूड आइटम्स और दूसरे वस्तुओं के साथ दफनाने का रिचुअल शुरू किया था गुजरात में स्थित लंगना और वेस्ट बंगाल में स्थित
बरानपुर भी महत्त्वपूर्ण मेसोलिथिक साइट्स में शामिल हैं इन साइट्स से वाइल्ड एनिमल्स जैसे कि राइनोसोर उस और ब्लैक
बर्ग की बोनस और और ह्यूमन स्केलेटन के साथ बड़ी संख्या में माइक्रोलिथ बरामद किए गए हैं दोस्तों मेसोलिथिक काल के बाद 6000
बीसी से 1000 बीसी तक का दौर स्टोन एज के लास्ट फेज लिथिक एज के रूप में जाना जाता है आइए लिथिक पीरियड की विशेषताओं पर नजर
डालते हैं लिथिक एज 6000 बीसी टू 1000 बीसी लिथिक शब्द ग्रीक शब्द नियो से लिया गया है जिसका अर्थ है नया इस प्रकार लि
युग न्यू स्टोन एज को रिफर करता है प्रसिद्ध आर्कियोलॉजिस्ट गॉर्डन चाइल्ड ने अपनी किताब मैन मेक्स हिमसेल्फ में लिखा
है कि लिथिक युग ने मनुष्य के जीवन में क्रांति ला दी उनके द्वारा इस क्रांति को लिथिक रेवोल्यूशन का नाम दिया गया जिस
प्रकार हमने देखा कि पलियो थिक एज में ह्यूमंस पूरी तरह से नेचर पर डिपेंडेंट और हंटर गैदरर थे और मेसोलिथिक एज में
ह्यूमंस द्वारा एनिमल डोमेस्टिक शुरू हुआ परिवर्तन तन और आधुनिकता की श्रृंखला में लिथिक एज में मानव फूड गैदरर से फूड
प्रोड्यूसर बन गए लिथिक पीरियड अपनी एग्रीकल्चरल प्रैक्टिसेस की शुरुआत के लिए महत्त्वपूर्ण है यूपी के अलाहाबाद के पास
स्थित कोलडी वा और मगरा भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में राइस कल्ट का सबसे पुराना प्रमाण प्रदान करते हैं ओल्ड स्टोन
एज के विपरीत इस काल में लोग पॉलिश्ड स्टोन टूल्स और एक्सेस का उपयोग करने लगे जिन्हें अक्सर कल्ट्स कहा जाता है यह
टूल्स पहले के क्रूड फ्लेक्ड स्टोन की तुलना में अधिक रिफाइंड दिखाई देते हैं इसके साथ ही वे बोन से बने टूल्स भी
इस्तेमाल करते थे जैसे नीडल्स स्क्रपल्स बोरर्स एरोहेड्स एसेट नए पॉलिश्ड टूल्स के उपयोग से ह्यूमंस के लिए खेती शिकार और
अन्य कामों को बेहतर तरीके से करना आसान हो गया बिहार के चिरान साइड से बोन से बने वेपंस प्राप्त हुए हैं अगर हम एग्रीकल्चर
की बात करें तो लिथिक एज के लोग फलों के साथ रागी कॉटन राइस व्हीट बार्ली और हॉर्स ग्रैम ग्रो करते थे इसके साथ ही डोमेस्टिक
केटेड एनिमल्स में कैटल शीप और गोड शामिल थे कश्मीर के बुर्जा होम साइट की एक बेरियल साइट से ह्यूमन के साथ डॉग की डेड
बॉडी भी मिली जो कि डॉग डोमेस्टिक केशन का प्रमाण प्रदान करती है एग्रो पेस्टोरल सोसाइटी के अन्य प्रमाण कर्नाटका के
हल्लूर मास्की और ब्रह्मागिरी साइट से प्राप्त हुए हैं पौधों और जानवरों को पालतू बना ने की शुरुआत से बड़ी मात्रा
में फूड ग्रेंस और एनिमल फूड का प्रोडक्शन होने लगा था और प्रोड्यूस किए गए इन फूड ग्रेंस और कुक्ड फूड को स्टोर करने के लिए
मिट्टी के बर्तन यानी कि पोट्री मेकिंग की शुरुआत हुई और इस प्रकार मिट्टी के बर्तन पहली बार ओलिथु एज में दिखाई दिए इसी काल
की पोट्री को ग्रे वेयर ब्लैक बर्निश्ड वेयर और मैट इंप्रेस्ड वेयर के तहत क्लासिफाई किया गया था इनिशियल स्टेज में
हैंडमेड पोट्री बनाए गए थे लेकिन बाद में फुट व्हील्स का इन्वेंशन हुआ यह लोग कॉटन और वुल के कपड़े बनाना भी सीख चुके थे
कॉटन का ओल्डेस्ट एविडेंस मेहरगढ़ साइट से प्राप्त हुआ जो वर्तमान में पाकिस्तान में स्थित है लिथिक युग के लोग मिट्टी के बने
रेक्टेंगल और सर्कुलर हाउसेस में रहते थे और इस प्रकार फर्स्ट सेटल्ड सोसाइटी और अर्लीस्ट इंडियन विलेजेस की नीव ओलिथु एज
में रखी गई थी इसके साथ ही कश्मीर वैली में पिट ड्वेन के साक्ष्य भी मिले हैं जो यह बताते हैं कि यहां नियो लोग पिट्स में
रहते थे हालांकि इस काल में भी लोग पहाड़ी क्षेत्र और रिवर वैली से अधिक दूर नहीं रहते थे क्योंकि वे तब भी पूरी तरह स्टोन
टूल्स और वेपंस पर निर्भर थे इसके साथ ही एग्रीकल्चर पोट्री और एनिमल डोमेस्टिक के लिए नेचर से उन्हें नेचुरल रिसोर्सेस
मिलते थे लिथिक एज के अंत के साथ स्टोन एज का भी अंत हुआ और इसी दौरान कई संस्कृतियों ने
धातु यानी कि मेटल्स का उपयोग करना शुरू कर दिया ज्यादातर यह मेटल्स कॉपर और लो ग्रेड ब्रोंज थे मेटल्स के उपयोग पर
आधारित इस संस्कृति को चालको लिथिक यानी कि कॉपर स्टोन फेज के रूप में जाना जाने लगा आइए जानते हैं इसके बारे में चालको
लिथिक एज 2000 बीसी 2 500 बीसी यह कल्चर मुख्य रूप से प्री हड़प फेज में देखी गई थी जहां एनिमल रियरिंग और रूरल सेटलमेंट
होने लगे थे लेकिन कई स्थानों पर यह पोस्ट हड़प्पा फेज तक भी फैली हुई थी प्री हड़प्पा फेज लिथिक एज और हड़प्पा एज के
बीच ट्रांजीशन पीरियड को रिप्रेजेंट करता है चालको लिथिक एज वो आधार है जिस पर हड़प्पा सिविलाइजेशन के ग्रैजुअली
एवोल्यूशन को समझा जा सकता है इस युग में कॉपर का उपयोग कर एक्स फिशिंग हुक्स िजल पिंस नाइव्स और रॉड्स जैसे टूल्स बनाए
जाते थे इस दौर के घर स्टोंस और मड ब्रिक से बनाए गए थे और अभी तक लोग बर्ट ब्रिक्स से परिचित नहीं थे हालांकि राजस्थान में
स्थित गिलुंड साइट एकमात्र स्थान है है जहां से बेक्ड ब्रिक्स के कुछ अवशेष मिले हैं चालको लिथिक सोसाइटी की संस्कृति शहरी
नहीं थी और इन्हें एक विलेज सोसाइटी माना जाता है इस युग के साथ सोशल इनिक्वालिटीज की भी शुरुआत हुई जहां एक तरफ विलेज चीफ
रेक्टेंगल शेप्ड घरों में रहते थे वहीं आम जनता छोटे राउंड हट्स में रहती थी घरों के अलावा इस युग के बैरियर्स भी विभिन्न
प्रकार के होते थे जिसमें सिंगल बेरियल से लेकर स्मॉल बॉक्स शेप्ड बैरियर्स और रॉक कट टम्स भी थे लोग डेड बॉडीज को पॉट्स और
कॉपर ऑब्जेक्ट्स के साथ अपने घरों के फर्श पर नॉर्थ साउथ डायरेक्शन में दफनाया करते थे वेस्ट महाराष्ट्र में पाए गए बैरियर्स
में काफी बड़ी संख्या में छोटे बच्चों को दफनाने के एविडेंस मिले हैं जो यह स्पष्ट करते हैं कि
ओलिथु हुई जिसमें कॉपर स्मिथस और स्टोन वर्कर्स भी शामिल थे उन्हें स्पिनिंग वीविंग और क्लॉथ मैन्युफैक्चरिंग भी आती
थी हालांकि अब तक वह लिखने की कला नहीं जानते थे चालको लिथिक काल की मुख्य पहचान पॉलीक्रोम पेंटेड पॉटरी है ब्लैक और रेड
पॉटरी उस युग में काफी प्रचलित थी ओकर कलर्ड पॉटरी भी बहुत लोकप्रिय थी ओक कलर्ड पॉटरी के साक्ष्य राजस्थान पंजाब हरियाणा
और वेस्टर्न यूपी के क्षेत्रों में पाए गए हैं इसके साथ ही लोग ऑना मेंट्स के भी शौकीन थे इस युग की महिलाएं शेल और बोनस
के बने आभूषण पहनती थी वे सेमी प्रेशर स्टोंस जैसे कि स्टेटाइट और क्वस क्रिस्टल से मोतियों की माला का भी निर्माण करते थे
चालको लिथिक युग अनेक संस्कृतियों के लिए जाना जाता है इन संस्कृतियों का नामकरण उनकी ज्योग्राफिकल लोकेशन के आधार पर किया
गया है जैसे साउथ ईस्टर्न राजस्थान में स्थित आहार या बनास कल्चर जो बनास घाटी के नाम से लिया गया है जिसमें संस्कृति के
अधिकांश साइट्स लोकेटेड है यह भारत में सबसे पुरानी चालको लिथिक कल्चरस में से एक है इस कल्चर के मेजर एक्सक वेटेड साइट्स
उदयपुर भीलवाड़ा और राजसन डिस्ट्रिक्ट में स्थित हैं यहां से स्टोन ब्लेडसिस्टम
हैं मेजर कल्चर में अगला नाम एमपी के उज्जैन में स्थित कायथा कल्चर का है यह चंबल नदी की ट्रिब्यूटरी काली सिंध के तट
पर स्थित है इसके अलावा सेंट्रल इंडिया का सबसे प्रमुख चालको लिथिक कल्चर मालवा कल्चर है जो नर्मदा नदी के तट पर पूरे माल
रीजन में फैला हुआ है यहां से व्हीट बाली ऑयल सीड ज्वार राइस लेगू मस जैसे फूड ग्रेंस के साथ टेराकोटा से बनी बुल
फिगरिंग भी प्राप्त हुए वेस्टर्न महाराष्ट्र का जोरवे कल्चर प्रवरा नदी के तट पर स्थित है अहमदनगर का दायमा बाद
क्षेत्र जोरवे कल्चर का एक प्रमुख स्थल है यहां ब्रोंज के बने एलिफेंट्स राइनोसोर उस टू व्ल्ड
चैरिटहम एमपी का नेवादा गुजरात का रंगपुर और महाराष्ट्र का इमाम गांव और नासिक शामिल है इस प्रकार कुल मिलाकर भारत में
चालको लिथिक साइट्स रीजनल डाइवर्सिटी को दर्शाते हैं अभी तक हमने स्टोन एज के अलग-अलग फेसेस के बारे में जाना इन सभी
पीरियड्स में जो बात कॉमन थी वो है स्टोन और टूल्स यानी कि स्टोन का इस्तेमाल टूल्स या फिर वेपन बनाने के लिए किया जाता था
लेकिन 1000 बीसी के आसपास भारत में एक और पीरियड इमर्ज हुआ जहां स्टोन का इस्तेमाल टूल्स के अलावा बैरियर्स और मेमोरियल्स
यानी कि कब्र और स्मारक बनाने के लिए किया जाता था और इस फेज को कहते हैं मेगालिथिक पीरियड आइए देखते हैं इस फेज को थोड़े
विस्तार से मेगालिथिक पीरियड 1000 टू 500 बीसी मेगालिथ का शाब्दिक अर्थ बिग स्टोंस होता है और इस कल्चर में एक सिंगल लार्ज
स्टोन का उपयोग कर बैरियर्स या मेमोरियल्स का निर्माण किया जाता था इन मेगालिथिक स्ट्रक्चर्स को दो श्रेणियों में विभाजित
किया जा सकता है एक पॉलीथिन थिक टाइप पॉलीथिन को बनाने के लिए एक से अधिक स्टोंस का उपयोग किया जाता था
और मोनोलिथिक स्ट्रक्चर में सिर्फ एक ही स्टोन से इस्तेमाल होता था हालांकि ये स्ट्रक्चर्स भारत में कई जगहों पर पाए गए
हैं लेकिन मेगालिथिक कल्चर विशेष रूप से सदर्न इंडिया की विशेषता है साउथ इंडिया में बड़ी संख्या में विभिन्न प्रकार के
मेगालिथिक ग्रेव्स और मेमोरियल्स पाए गए हैं जिनमें कर्नाटका के मास्की और गुलबर्गा क्षेत्र में नहीर मेगालिथिक
बेरियल आंध्र प्रदेश और केरला के हुड स्टोन मेमोरियल्स केरला का अंब्रेला स्टोन ग्रेव शामिल है इसके अलावा कर्नाटका के
ब्रह्मगिरी और तमिलनाडु के चिंगल पट्टू में डोलमेन शेप्ड टूम और कोचिन के रॉक कट केव मेमोरियल्स पाए गए हैं नॉर्दर्न
इंडिया में ऐसे मेगालिस कश्मीर के वास्त और ब्रा और इसके साथ ही उत्तर प्रदेश के बांदा इलाहाबाद मिर्जापुर और वाराणसी
डिस्ट्रिक्ट में पाए गए हैं इसके अलावा महाराष्ट्र में अधिकांश स्मारक विदर्भ रीजन में पाए गए हैं खोज कर्ताओं को इन
सभी बैरियर्स में कुछ कॉमन फीचर्स मिले आमतौर पर डेड बॉडीज के साथ रेड और ब्लैक वेयर पॉट्स को दफनाया जाता था इसके अलावा
आयन के बने टूल्स वेपंस और स्टोन और गोल्ड के ऑना मेंट्स भी मिले इसके साथ ही कुछ बैरियर्स के स्केलेटन के साथ हॉर्स और
हॉर्स इक्विपमेंट मिले तो कभी डोमेस्टिक एनिमल्स जैसे कि बफलो शीप और गोट उदाहरण स्वरूप कर्नाटका के ब्रह्मागिरी साइट में
स्केलेटन के साथ 33 गोल्ड बीट्स टू स्टोन बीड्स और फोर कॉपर बैंगल्स मिले वहीं दूसरी ओर अनेकों साइड से सिर्फ कुछ पॉट्स
मिले स्केलेटन के साथ मिली यह वस्तुएं संभवतः उन्हीं डेड पर्सन से जुड़ी रही होंगी इन खोजों से पता चलता है कि दफनाने
वाले लोगों के बीच सोशल स्टेटस का अंतर था कुछ अमीर थे तो कुछ गरीब कुछ मुखिया थे तो कुछ कुछ आम लोग इस युग में हाई क्वालिटी
रेड और ब्लैक पॉटरी का उपयोग इसकी खास विशेषता है यह ध्यान देना काफी इंटरेस्टिंग है कि नॉर्थ और साउथ दोनों ही
रीजंस में मेगालिथिक बैरियर्स के साथ ब्लैक और रेड पॉटरीज मिले इन पॉटरीज में कुछ रीजनल वेरिएशंस भी जरूर दिखे लेकिन
इन्हें बनाने की तकनीक उसकी साज सज्जा में कोई बड़ा अंतर नहीं था इसके अलावा इन मेगालिथिक बैरियर्स में आयन ऑब्जेक्ट्स की
खोज से यह पता चलता है कि यह कल्चरल पीरियड आयन एज से जुड़ा हुआ होगा आर्कियोलॉजिकल एविडेंस के हिसाब से इंडिया
में आयरन का इस्तेमाल 1000 बीसी से 500 बीसी के बीच विस्तृत रूप से होने लगा था जहां एक र इस दौर में आयन टूल्स और वेपंस
आम हो गए थे वहीं इसके साथ-साथ डेटेड लिटरेचर भी लिखा जाने लगा था इस प्रकार मेगालिथिक पीरियड आयर्न एज की उस अवधि को
मार्क करता है जहां प्रीहिस्ट्री की समाप्ति और हिस्ट्री की शुरुआत का एक ट्रांजिशन फे फेज देखने को मिलता है
कंक्लूजन दोस्तों भारत के प्रीहिस्टोरिक एज में स्टोन एज कॉपर एज और आयरन एज तीनों शामिल
थे प्रीहिस्टोरिक इंडिया ने आइस एज के साथ-साथ होमो सेपियंस के उद्भव को भी देखा इस चर्चा को
कंक्लूजन एवोल्यूशन और डेवलपमेंट के ग्रेजुएट मेंटल फेज को रिफर करती है प्रीहिस्टोरिक पीरियड के चालको लिथिक फेज
के दौरान ही प्रोटोहिस्टोरिक पीरियड यानी हड़प्पा सिविलाइजेशन की नीव पड़ने लगी थी जिसे हम आगे आने वाले वीडियो लेक्चर में
देखेंगे
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