Understanding the Caste Census Debate: Key Insights from Yogendra Yadav
Overview
In this video, Yogendra Yadav discusses the ongoing debate surrounding the caste census in India, highlighting ten half-truths associated with the topic. He examines statements from the RSS and the political implications of caste enumeration, providing clarity on misconceptions and the importance of accurate data for social justice.
Key Points Discussed
- Caste Census Background: The video opens with a discussion on the political implications of caste census, referencing a recent statement from the RSS indicating their support for caste enumeration, provided it is not politicized.
- Ten Half-Truths: Yadav outlines ten half-truths regarding the caste census, explaining why they are misleading and the truths behind them. For a deeper understanding of the implications of such census data, you may refer to the summary on Why India Struggles to Compete with China's Economic Growth.
- Political Dynamics: The conversation touches on how political parties, including the BJP and Congress, have historically approached the issue of caste census and how their positions have evolved. This discussion is relevant in the context of broader political strategies, similar to those explored in Understanding the University Education Commission of India (1958).
- Importance of Accurate Data: Yadav emphasizes the necessity of accurate caste data for formulating effective social policies and addressing inequalities in education, employment, and social status. For insights on educational policies, see UPSC Preparation: The Importance of NCRT Books in Competitive Exams.
- Public Sentiment: The video also discusses public opinion on the caste census, indicating a growing consensus among citizens for its implementation. This reflects a broader trend in public policy discussions, akin to the analysis found in Understanding Agriculture: An In-depth Guide to Agricultural Practices in India.
Conclusion
Yogendra Yadav's insights provide a comprehensive understanding of the caste census debate, challenging misconceptions and advocating for informed discussions on caste-related issues in India.
FAQs
-
What is the caste census?
The caste census is a demographic survey that aims to collect data on the various castes in India to understand their population distribution and socio-economic status. -
Why is the caste census important?
It is crucial for formulating policies that address social inequalities and ensure equitable distribution of resources and opportunities among different caste groups. -
What are the main arguments against the caste census?
Critics argue that it may exacerbate social tensions and lead to increased caste-based politics. -
How has the RSS positioned itself on the caste census?
The RSS has expressed support for the caste census, provided it is not used for political gain. -
What are the ten half-truths discussed by Yogendra Yadav?
Yadav outlines misconceptions about the caste census, including claims about its feasibility, necessity, and implications for social justice. -
How does public opinion reflect on the caste census?
Recent surveys indicate a growing majority of the public supports the implementation of a caste census. -
What role do political parties play in the caste census debate?
Political parties have varied stances on the caste census, often influenced by electoral considerations and historical contexts.
नमस्कार द रेड माइक के दर्शकों कैसे हैं आप? अब आप जानते हैं कि कास्ट सेंस को लेकर के जबरदस्त गणित छिड़ी हुई है।
राजनीतिक बहस भी छिड़ी हुई है और यह समझने का प्रयास भी किया जा रहा है कि अब क्या ये डिलेइंग द इनविटेबल है कि मतलब तो ये
आने ही वाला है और अब इसको बहुत ज्यादा इसका विरोध करते हुए दिखना कोई ठीक बात नहीं होगी। अब यह हम क्यों कह रहे हैं? आप
जानते हैं कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की तरफ से भी अब आज ही एक बयान आया जिसमें वो कह रहे हैं हमें कास्ट सेंसस से कोई
दिक्कत नहीं है। बशर्ते उस पर राजनीति ना हो या राजनीतिक लाभ के लिए ना हो। अब स्टेटमेंट का मतलब क्या है? इसको
बीजेपी किस तरीके से देखेगी? क्योंकि वहां पर अभी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का एक बार फिर से उदय हुआ है। इसी सबके बीच में
योगेंद्र यादव जी ने आज एक लेख लिखा और उसमें उन्होंने कास्ट सेंसस से जुड़े हुए 10 अर्ध सत्य उनको उजागर किया है। हम उनसे
बात करेंगे और जानने की कोशिश करेंगे कि उनको क्या लगता है कि कास्ट सेंसस पर यह 10 अर्ध सत्य हाफ ट्रुथ्स क्या है? यह
अर्ध सत्य है या यह झूठ है? सरासर झूठ है। उनको आधा सच क्यों माना जा रहा है? पूरा झूठ क्यों नहीं माना जा रहा है या पूरा सच
क्यों नहीं माना जा रहा? सबसे पहले मैं स्वागत करना चाहता हूं योगेंद्र यादव जी का आपका बहुत-बहुत स्वागत।
जी एक-ए करके जानने की कोशिश करेंगे कि वो क्या 10 अर्ध सत्य है जिसके बारे में आपने बात की है। आपके लेख से ही आज हमने कुछ
ग्राफिक्स पॉइंट्स भी बनाए हैं। लेकिन इससे पहले कि हम वो दिखाएं। मैं चाहूंगा कि दर्शकों को जरा आरएसएस
की प्रचार प्रमुख के जो हेड हैं सुनील अंबेडकर उनकी आपको एक बाइट सुना देते हैं कि उन्होंने आरएसएस ने एक्चुअली कहा क्या
है। तो योगेंद्र जी एक बार वो सुन लेते हैं फिर आपके पास आएंगे। आइए सुनते हैं। एज आवर सोसाइटी हिंदू सोसाइटी वी हैव द
सेंसिटिव इशू ऑफ आवर कास्ट एंड कास्ट रिलेशंस दैट इज अ वेरी सेंसिटिव इशू सो एंड ऑफकोर्स इट इज़ अ इंपॉर्टेंट इशू ऑफ
आवर नेशनल यूनिटी एंड इंटीग्रिटी सो इट शुड बी डील वेरी सीरियसली नॉट जस्ट ऑन द बेसिस ऑफ इलेक्शनिंग और इलेक्शन प्रैक्टिस
और पॉलिटिक्स सो आई थिंक एस आरएसएस थिंक यस डेफिनेटली फॉर ऑल वेलफेयर एक्टिविटीज पर्टिकुलरली
एड्रेस एड्रेसिंग टू द पर्टिकुलर कम्युनिटी और कास्ट व्हिच इज़ लैगिंग बिहाइंड एंड सो व्हिच इज़ द स्पेशल अटेंशन
इज़ नीडेड टू सम कम्युनिटीज़ एंड कास्ट। सो फॉर दैट इफ समटाइम गवर्नमेंट नीड्स द नंबर्स इट इज़ अ वेरी वेल प्रैक्टिस्ड। सो
गवर्नमेंट नीड्स द नंबर्स इट टेक्स अरर्लियर आल्सो इट हैस टेकन सो इट कैन टेक इट नो
प्रॉब्लम तो ये आपने सुना ये राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की तरफ से उनका बयान है योगेंद्र यादव जी अब मैं जानता हूं आपके
जो 10 अर्धसत्य की सूची है उसमें इसके इसका राजनीतिक लाभ उठाने का प्रयास भी है। सबसे पहले उसको जरा स्क्रीन पर डालते हैं
और आपको दिखाते हैं कि वह 10 पॉइंट्स क्या हैं जिसके बारे में योगेंद्र यादव जी बोल रहे हैं और एक-एक करके उन पॉइंट्स पर हम
बात करेंगे। इनको स्क्रीन पर दिखाते हैं। तो सबसे पहला एक बात जो बोली जाती है वो है कि 1931 के बाद भारत में कभी जाति
जनगणना नहीं हुई है। तो ये आपको अर्धसत्य क्यों लगता है योगेंद्र जी? शुरुआत क्योंकि आरएसएस के स्पोक्स पर्सन
से हुई है तो मैं समझता हूं कि उसके बारे में एक टिप्पणी कर देना सही होगा। वो ये कि आरएसएस का यह बयान एक बहुत महत्वपूर्ण
राजनैतिक बयान है। देखिए राजनीतिक बयान है और इस दुनिया में सबसे बारीक राजनीति वही होती है जिसमें
कहा जाता है इस पे राजनीति नहीं करेंगे। यह अपने आप में एक राजनीतिक बयान होता है। यह बयान आज का दिखाता है कि अंततः आरएसएस
घूम फिर के उस बात पे आ रही है और आने पर मजबूर हुई है। जिस पे हम लोग पिछले 10 20 साल से कहते रहे हैं जाति जनगणना। हालांकि
उन्होंने अपने मुंह से यह नहीं कहा है कि हम जाति जनगणना का समर्थन करते हैं और उन्होंने अपने लिए गुंजाइश छोड़ी है कि
घूम फिर के कहेंगे कि देखिए हमने तो कहा था कि अगर प्रदेशों में इसके बारे में कोई गिनती होती है, सर्वे होती है तो इसमें
क्या बुराई है इत्यादि। लेकिन झुकाव बिल्कुल स्पष्ट है कि वो अपने लिए जो कहते हैं ना क्रिकेट में कि आप स्ट्रोक खेलने
के लिए जगह बना रहे होते हैं तो वो स्ट्रोक खेलने के लिए जगह बना रहे हैं और घूम फिर के भारतीय जनता आरएसएस पहले और
भारतीय जनता पार्टी अंततः इसके लिए एक गुंजाइश बना रही है कि हां वो भी अब इसको मानेंगे लेकिन करते वक्त जाहिर है ये तो
नहीं कहेंगे कि कांग्रेस ने उठाया है और हम उसके पीछे चल निकले हैं या कांग्रेस के डर के मारे हम चल निकले हैं या कि चुनाव
के डर के मारे चल निकले हैं तो ये सब बातें कही जाएंगी लेकिन इसका दुरुपयोग ना हो जो अच्छी बातें होना ही नहीं चाहिए। यह
एक बहुत महत्वपूर्ण बदलाव है और मैं समझता हूं कि अब इससे एक तरह से 2025 का जो सेंसस होगा उसमें जाति जनगणना का रास्ता
खुलने लगा है। अभी तक खुल गया है। ये मैं नहीं कहूंगा क्योंकि इसमें अभी भी कई पेंच आएंगे। कई तड़म होंगे जिसका जिक्र मैं बाद
में करूंगा। अब पहला सवाल पहला अर्ध सत्य अर्धसत्य शब्द का मैं इस्तेमाल क्यों करता हूं?
क्योंकि दुनिया में हमेशा राजनीति में और सार्वजनिक जीवन में झूठ कभी भी कोरा झूठ नहीं होता। हमेशा एक तिल को तिल का ताड़
बनाया जाता है। राई का पहाड़ बनाया जाता है। हमेशा उसमें राई बराबर सच होता है। तिल बराबर सच होता है। फिर उसके ऊपर ताड़
खड़ा किया जाता है। पहाड़ खड़ा किया जाता है। ये बिल्कुल वैसी ही बात है। उदाहरण के तौर पर पहली बात लीजिए। 1931 के बाद भारत
में कभी भी जाति जनगणना नहीं हुई। इसको सुनके आपको क्या लगता है? अरे बाप रे बाप अंग्रेज कुछ काम किया करते थे। उसके बाद
से देश आजाद होने के बाद देश ने ऐसा गंदा काम कभी नहीं किया है और अब यह काम होने वाला है। प्रलय आने वाली है। यह इसकी
ध्वनि है। इसके पीछे इसका सच क्या है? ये बिल्कुल सच है। देखिए इसमें राय बराबर सच क्या है कि बिल्कुल ठीक बात है। देश की
समस्त जातियों की जनगणना का काम 1931 के बाद कभी नहीं हुआ। 41 का जो सेंसस था वो बहुत छोटा सा सेंसस था और उसके बाद आजाद
भारत के सेंसस में समस्त जातियों का कॉलम कभी नहीं रखा गया। ये तो हुआ सच। अब इसमें झूठ क्या है? झूठ ये है कि दरअसल हर 1951
के बाद के हर सेंसस में 10 साल बाद जो जनगणना होती है। हमेशा जाति का सवाल पूछा गया है। बाद में हमें इसकी तस्वीर भी
दिखाएंगे 2021 2011 वाले सेंसस की। हमेशा ये सवाल पूछा गया है। बस उस सवाल में उत्तर ये था। मान लीजिए आपके घर में कोई
आता तो पूछता टीचर आते हैं सेंसस करने के लिए। वो आएंगे वो आपसे कहेंगे अच्छा आपकी आपकी जाति क्या? अच्छा उपाध्याय हैं।
अच्छा आप एससी एसटी नहीं है। तो आपकी जाति पूछी जा रही है। आप बता रहे हैं कि आपकी जाति उपाध्याय है। मैं आता हूं मेरे घर
मैं कहता हूं मेरी जाति यादव है। तो वो कहते हैं अच्छा आप एससी एसटी नहीं है। तो आपको नंबर तीन कॉलम में डाल दिया जाता है।
तो ये आप जो दिखा रहे हैं ये है 2011 का फॉर्म जिस पे लाल रंग से जो चेंजेस किए हैं वो मैंने किए दिखाने के लिए कि केवल
इतने चेंजेस करने की आवश्यकता है। जो मूल फॉर्म है 2011 का वो केवल ये दिखाता है कि देखिए एससी एसटी का सवाल हमेशा पूछा जा
रहा है। नंबर दो पहली बात जिस चीज को इग्नोर किया जा रहा है वो ये कि भारत में जाति का प्रश्न 1951 के बाद हमेशा पूछा
जाता था। रिकॉर्ड तब किया जाता था यदि आप एससी एसटी हो। मान लीजिए मैं एसटी हूं। मेरे घर आते हैं। मैं कहता हूं कि हां मैं
एसटी हूं। फिर उसके बाद मुझसे दूसरा सवाल पूछा जाएगा कि अच्छा आप एसटी है तो कौन जाति मान लीजिए मैं कहता हूं मीना तो फिर
उसमें मीना लिखा जाएगा रिकॉर्ड किया जाएगा रजिस्टर किया जाएगा क्लासिफाई किया जाएगा इसकी टेबल रिलीज की जाएगी हमेशा ये काम
पिछले 70 साल से हो रहा है यदि आप कहते हैं मैं एससी हूं तो आपसे पूछा जाएगा कौन से वाले एससी मान लीजिए आप कहते हैं मैं
जाटव हूं तो आपकी जाति जाटव लिखी जाएगी उसकी टेबल की जाएगी तो ये जो कहना है कि भाई जाति नामक चीज को हमने कभी कभी पूछा
नहीं है। ये सरासर झूठ है। और वो इसलिए क्योंकि आप एससी और एसटी का फर्क या वर्णन या डिस्क्रिप्शन तो
उसमें कर ही रहे हैं। तोति तो है तो देश के 25% लोगों से हमेशा उनकी एग्जैक्ट जाति पूछी जाती है। रिकॉर्ड की जाती है।
बाकियों से पूछी जाती है। रिकॉर्ड नहीं की जाती। उनको केवल निल में नंबर तीन कॉलम में डाल दिया जाता है। ये किया जाता है।
और वैसे भी देश के जितने भी सर्वेक्षण है उन सब में पूछा जाता है आप एससी, एसटी, ओबीसी अदर है कि नहीं है और इसके अलावा
तमाम दूसरे सरकारी डॉक्यूमेंट है जिसमें पूछा जा रहा है। तो ये कहना कि 31 के बाद से कोई अनहोनी होने वाली है। ये बात कतई
सच नहीं है। जी बिल्कुल मैं आपको ये भी बता दूं ये 2011 के सेंसस का वो फॉर्म है जो योगद ओरिजिनल फॉर्म है। ओरिजिनल फॉर्म
जो हमारे साथ साझा किया। हां तो ये देखिए आठ नंबर जो हम कॉलम देख सकते हैं। आठ नंबर कॉलम में बिल्कुल स्पष्ट पूछा गया
है कि एससी एसटी आप है कि नहीं है और अगर आप एससी या एसटी है तो पूछा जाता है कि आपकी एग्जैक्ट जाति रिकॉर्ड की जाए। ये
हमेशा पूछा गया है। तो जिसे कहते हैं हाथ कंगन को आरसी क्या? ये आपके सामने पड़ा है। कि भारत की जनगणना में जाति पूछी जाती
रही है। बस उसी प्रोसेस को और आगे ले जाना है। ठीक है? ये तो हो गया अर्ध सत्य नंबर एक। अब
उस ग्राफिक्स पर वापस जाते हैं जिसमें अर्ध सत्य नंबर दो का हम उल्लेख करेंगे और वो है यह जाति जनगणना राहुल गांधी का नया
विचार या विपक्ष इसमें आप राहुल गांधी स्पेसिफिक कर दिया हमने लेकिन विपक्ष क्योंकि इसकी बात कर रहा है तो यह विपक्ष
नए सिरे से इसको उठा रहा है यह आपके हिसाब से अर्धसत्य क्यों है तो पीछे बात जो कही जाती है वो कि देखो
भाई क्या राहुल गांधी नया फितूर ले आया है। कोई नया फितूर आया है और यह देखो पता नहीं क्या चीज है और उसके दिमाग की उपज है
इत्यादि इत्यादि। अब इसमें सच का छोटा सा एलिमेंट क्या है? दिल बराबर सच। वो सच यह है कि राहुल गांधी के आग्रह की वजह से
कांग्रेस इसको नंबर वन प्रायोरिटी पे आज ट्रीट कर रही है। आज देश इस पर चर्चा कर रहा है। आप और मैं इस पर बात कर रहे हैं।
इसकी वजह राहुल गांधी का इस पे दबाव देना है। यह बात सही है। लेकिन इस मांग में कुछ भी नया नहीं
है। शुरुआत पुराने जमाने की बात छोड़ दीजिए। अटल बिहारी वाजपेई जब प्रधानमंत्री थे उस समय उनके ही अटल बिहारी वाजपेई की
सोशल जस्टिस मिनिस्ट्री ने सिफारिश की थी कि जाती जनगणना होनी चाहिए। क्यों की थी? क्योंकि उससे पहले मंडल आयोग आ चुका था।
1992 में सुप्रीम कोर्ट का जजमेंट आ चुका था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि आपको नियमित रूप से ओबीसी जातियों को मॉनिटर
करना है। यह भी देखना है कि किस जाति को कब बाहर निकालने की जरूरत होगी। ये सब सोचते हुए वहां के जो सोशल जस्टिस
मिनिस्ट्री है उसने कहा कि इस बार का जो जनगणना आने वाली है यानी कि 2001 की उसमें जाति की जनगणना होनी चाहिए। उस वक्त
जनगणना के रजिस्ट्रार रजिस्ट्रार जनरल हुआ करते थे उन्नी जो बहुत प्रसिद्ध रजिस्ट्रार हुए। बहुत काम किया उन्होंने
जनगणना को सुधारने में। उन्होंने स्पष्ट रूप से लिख के सिफारिश की कि इस बार होना चाहिए। वाजपेयी जी की सरकार ने उस सिफारिश
को ठुकरा दिया। अब आइए 2011 अगला सेंसस जो था उससे पहले संसद में बहस हुई मेरे ख्याल में 9 और 10 मई 2010 को बहस हुई थी वो दो
दिन तक शरद यादव जी ने उस चर्चा को शुरू किया था शरद यादव जी इसके बहुत हिमायती थे उन्होंने इस चर्चा को शुरू किया था दो दिन
तक लोकसभा में बहस चली पूरे दो दिन तक बीजेपी के सांसदों ने बढ़च के कहा कि ये होनी चाहिए आप उसमें सुषमा स्वराज जी का
भाषण पढ़िए आप उसमें स्वर्गीय गोपीनाथ मुंडे जी का दोनों ही नहीं रहे अब तो गोपीनाथ मुंडे जी का भाषण पढ़िए बीजेपी ने
कहा कि जाती जनगणना होनी चाहिए और अंतत सदन में सभी दलों की राय बनी कि हां यह होनी चाहिए। अंत में प्रधानमंत्री ने
वक्तव्य दिया। प्रधानमंत्री ने कहा कि मैं पूरे सदन की राय से सहमत हूं और मेरे को सभी पार्टियों की चिट्ठी भी आई है जिसमें
बीजेपी की भी चिट्ठी शामिल थी। वो चिट्ठी की कॉपी मेरे हाथ में नहीं है। लेकिन प्रधानमंत्री सदन में बयान दे रहे हैं कि
मेरे पास सभी पार्टियों की चिट्ठी आ गई है इसके पक्ष में और इसलिए अब आपकी भावना का सम्मान करते हुए इसको किया जाएगा। मतलब अब
आगे क्या हुआ वो अलग कहानी है। लेकिन 2010 में बीजेपी ने संसद में खुल के कहा था कि जाति जनगणना होनी चाहिए और केवल ओबीसी की
नहीं समस्त जाति जनगणना देश की होनी चाहिए। अब आइए 2021 से पहले क्या-क्या हुआ? 2018 में राजनाथ सिंह जी देश के गृह
मंत्री थे। उन्होंने सदन के पटल पे आश्वासन दिया कि हां 2021 की जो जनगणना होने वाली है उसमें हम ओबीसी की भी गिनती
करेंगे। केवल एससी एसटी की नहीं करेंगे। उन्होंने संपूर्ण जातीति जनगणना शब्द का इस्तेमाल नहीं किया। लेकिन उन्होंने इसका
जिक्र किया। उसके बाद से जो नेशनल कमीशन फॉर बैकवर्ड का क्लासेस है जो कि बीजेपी के द्वारा अपॉइंटेड है आजकल। हम उसने
सिफारिश की पार्लियामेंट्री कमेटी जो एससी एसटी वेलफेयर की है सोशल जस्टिस की पार्लियामेंट्री कमेटी जो है वो कमेटी
जिसमें बीजेपी के सांसद बहुमत में है उसने इसकी सिफारिश की छह राज्य सरकारों ने इसकी सिफारिश की जिसमें बिहार सरकार जो कि
नीतीश कुमार जी के नेतृत्व में थी जो कि उस वक्त एनडीए सरकार थी उसने इसका समर्थन किया और अगर आपको कोई भी इसमें शक की
गुंजाइश हो तो बिहार सरकार ने यह सर्वेक्षण करवाया कास्ट सेंसस और बिहार की बीजेपी ने यह श्रेय लिया कि हमारे करने से
हुआ है ये हमारा इसमें हाथ है लिखित श्रेय लेते हैं और आज पलट के कहते हैं कि बाप रे बाप देश तोड़ने की साजिश की पता नहीं
कांग्रेसी क्या कर रहे हैं। पता नहीं राहुल गांधी क्या कर रहे हैं। म अजीब चीजें इस देश में होती है। मतलब मैं आपको
कोई 200 साल पुराना इतिहास नहीं बता रहा। 500 साल पुराना इतिहास नहीं। वैसे तो बीजेपी वाले 500 और 800 साल में बड़े
एक्सपर्ट हुआ करते हैं। तो 500 700 छोड़ दो मेरे भाई। पिछले पांच साल का देख लो, आठ साल का देख लो, 10 साल का देख लो। आपने
ही संसद में जो बोले हैं लिखित बयान वो देख लीजिए। तो यह तो एकदम कतई झूठ है कि यह कोई नई मांग है। कोई एक पार्टी द्वारा
उठाई गई है। एक नेता द्वारा उठाई गई है। सच्चाई ये है कि इसके बारे में एक राष्ट्रीय कंसेंसस है। और चलतेचलते मैं ये
भी कह दूं कि अभी इंडिया टुडे ने इस पर सर्वेक्षण करवाया था। लोगों से पूछा था क्या जनगणना होनी चाहिए। चुनाव से छ महीना
पहले तक कोई 50 55% लोग कह रहे थे कि होनी चाहिए। अब बढ़ के लगभग 70% हो गया है। तो इस पर राष्ट्र की सहमति भी है। नेशनल
कंसेंस भी है। बिल्कुल। अगला सवाल आप जिसको अर्धसत्य मानते हैं वो जरा स्क्रीन पर दिखा दिया जाए। पॉइंट नंबर थ्री जल्दी
से। हां इसको रोक दें। जाति जनगणना एक विशाल विकराल काम इससे जनगणना के काम में देरी होने का डर है। दिस अ ह्यूमंगस
एक्सरसाइज व्हिच माइट डिले द सेंसस। अब मैंने आपको इसमें दिखा दिया। अब मैं चाहता हूं कि आप वो कहा क्या जाता है कि
बाप रे बाप क्या मधुमक्खी के छत्ते में हाथ दे रहे हो। एक बार किया 10 साल तक तो पता ही नहीं लगेगा और बताया जाता है कि
देखो 2011 के अंदर करवा दिया था ना पिछली बार से सर्वे और उस सर्वे की रिपोर्ट आज तक नहीं आई है। तो इसलिए ये ऐसा काम है
शुरू कर दिया तो भैया बाकी ये तो होगा ही नहीं साथ में आपका सेंसस और डूब जाएगा और यहां तक कि द हिंदू जो कि बहुत संजीदा
लिखा करता है एडिटोरियल उसने तीन चार दिन पहले एडिटोरियल लिख दिया कि ना ना इसको मत छेड़ो नहीं तो पूरा सेंस ही डिले हो जाएगा
सेंसस की बहुत सख्त जरूरत है मैं इस बात से बिल्कुल सहमत हूं कि सेंस की बेहद जरूरत है बिल्कुल डिले नहीं करना चाहिए
लेकिन क्यों डिले होगा भाई अब आप ऐसा कीजिए जो दोनों तस्वीरें हमने पिछली बार दिखाई थी वो दोनों तस्वीरें दिखाइए पहले
वो दिखाइए जिसमें मैंने लाल रंग से कुछ नहीं किया है पहले वो तस्वीर दिखा दे हम अब इसका इसका कॉलम नंबर आठ यहां से दिख
नहीं रहा है। बहुत छोटा-छोटा है। एक बार फुल फ्रेम कर देते हैं। अगर इसको फुल फ्रेम हम कर दे। आप मैं पढ़ पा रहा हूं।
कॉलम नंबर आठ जो बिल्कुल बीच में है जो कहता है शेड्यूल कास्ट शेड्यूल ट्राइब। तो पूछा जाता है लोगों से किसी के भी घर गए
उससे पूछा जाता है कि क्या आप एससी एसटी है या नहीं है? अगर आप एससी एसटी है एससी है तो नंबर एक पे नंबर एक नहीं एसटी है तो
नंबर दो नहीं है तो नंबर तीन। और अगला सवाल आठ बी पूछा जाता है कि यदि आप एससी एसटी है तो अपनी जाति बताइए। ठीक है? ये
एकिस्टिंग फॉर्म है। आप देख रहे हैं। सन 2011 में जनगणना के लिए एग्जजेक्टली जो प्रोफमा इस्तेमाल किया गया था उसकी तस्वीर
हम दिखा रहे हैं। अब आप दूसरी तस्वीर दिखाइए जिसमें मैंने कलाकारी की है। मैंने दिखाया है कि अगर इसको बदलना हो सन 204 के
लिए तो इसमें क्या परिवर्तन करना पड़ेगा। अब ये देखिए बिल्कुल हूबहू वही फॉर्म है। 2011 को काट के मैंने 2025 लिख दिया है
अपनी तरफ से और कॉलम का नाम कास्ट हो जाएगा। पहले क्या था? शेड्यूल कास्ट शेड्यूल एससी
क्वेश्चन नंबर आठ ए में क्या परिवर्तन हुआ? इस दिस पर्सन एससी एसटी आगे मैंने लिख दिया एक स्ट्रोक ओबीसी और जनरल एक
सेकंड इसको भी फुल फ्रेम कर देते हैं और फिर आप वॉइस ओवर में समझा दीजिएगा। इसको जरा पीसीआर से कहूंगा इसको भी फुल फ्रेम
दर्शक दिखा रहे हैं कि अगर आपको सारी कास्ट के लिए करना है तो उसमें क्या चेंजेस होंगे और कितना मैसिव एक्सरसाइज
नहीं होगी ये योगदान चेंज संकेत भैया ये चेंज कल दोपहर तक किए जा सकते हैं। मैं ये दिखाने की कोशिश कर रहा हूं। ये बना बनाया
प्रोफमा है सन 2011 वाला इसको 2025 बन ही गया होगा। क्वेश्चन नंबर आठ जो है जिसमें पहले लिखा जाता था शेड्यूल कास्ट शेड्यूल
ट्राइब उसकी बजाय आप कास्ट लिख देंगे जैसे बाई तरफ आप देखेंगे रिलीजन लिखा हुआ है कास्ट लिख देंगे ठीक है क्वेश्चन नंबर एट
ए आठ ए में पूछा जाता है इज दिस पर्सन एससी एसटी उसके आगे स्लैश लगा के कर दिया जाएगा एससी एसटी ओबीसी और जनरल ठीक है और
इफ यस गिव कोड एससी का कोड एक एसटी का दो साथ में जोड़ दीजिए ओबीसी है तो तीन और जनरल है तो चार फिर आठ भी सवाल में लिखा
जाता था पहले कि अगर एससी एसटी है तो राइट नेम ऑफ द एससी और एसटी फ्रॉम द लिस्ट सप्लाई एक लिस्ट होती है शेड्यूल कास्ट और
शेड्यूल ट्राइब की वो लिस्ट उस टीचर को दी जाती है और कहा जाता है कि उस लिस्ट में से लिख के आप नाम बता दीजिए तो मैंने
इसमें चेंज क्या किया है इफ एससी एसटी और ओबीसी राइट नेम ऑफ एससी एसटी और ओबीसी फ्रॉम द लिस्ट सप्लाई क्योंकि ओबीसीबी की
भी लिस्ट है लेकिन अगर जनरल है इफ जनरल राइट नेम ऑफ द कास्ट इन फुल आप जरा बाई तरफ देखिए रिलजन में भी एक्सजेक्टली यही
कहा जाता है राइट नेम ऑफ द रिलजन इन फुल बिल्कुल वही चीज यहां कर दी जाएगी कुछ भी बदलने की जरूरत नहीं है वही का वही
प्रोफमा वैसे तो नया प्रोफमा बनाना की क्या बात है ये का यही प्रोफमा आप अगले मतलब आपके पास अच्छा कंप्यूटर ऑपरेटर हो
और मैं समझता हूं कि रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया के पास कंप्यूटर ऑपरेटर तो होते ही होंगे
ये काम अगले आधे घंटे में हमारा शो खत्म होने के बाद आधे घंटे में काम किया जा सकता है। अब मैं नहीं कह रहा हूं कि आधे
घंटे में केवल काम हो जाएगा। इसमें कहा गया है लिस्ट लिस्ट आपको देनी पड़ेगी। एससी एसटी की लिस्ट है। ओबीसी की लिस्ट
देनी पड़ेगी। फिर मामला जनरल का आएगा वो हम अगली चीज अगली बार जब करेंगे तो वो तो मतलब जो प्रोफमा में चेंज करना है वो केवल
इतना करना है। कुछ भी काम नहीं है। ये करने से सेंसस कैसे डिले होगा? अब आप बताइए ये प्रश्न पूछने में कितना समय
लगेगा? पहले अगर ये प्रश्न पूछने में 45 सेकंड लगते थे। अब हो सकता है 60 सेकंड लग जाए आपको ये प्रश्न पूछने में। हो सकता है
डेढ़ मिनट लग जाए। और क्या होगा? क्या ये बातें बनाई जा रही है? मैं तो हैरान हूं सुन सुन के लोगों की बात। कैसे हम तिल का
ताड़ बना देते हैं। उसका ये उदाहरण है। इसलिए मैं चाहता था। मैंने कहा था कि ये तस्वीर आप दिखाइए अपने दर्शकों को। नहीं
आपके सामने देखिए। इतना करना है और कुछ काम नहीं है। कमाल अच्छा इससे इससे जुड़ा हुआ एक और सवाल मेरे मन में आया लेकिन फिर
वो मुझे समझ में आ गया कि उसका जवाब भी सरल है कि आप ये जो कास्ट बफरकेशन करेंगे उसके आधार पर उनकी आर्थिक स्थिति वगैरह
कैसे पता चलेगी तो बाकी जो सेंसेस का फॉर्म होता है उसमें वो सारे प्रोविजंस होते हैं। तो आप उसका वर्गीकरण कर सकते
हैं। एक्सक्टली जैसे यहां आप देखिए हम तीन नंबर कॉलम देख रहे हैं सेक्स मेल फीमेल अदर्स। ठीक है ना? अब अगर आप जानना चाहते
हैं तो बाकी सारी चीजों को आप मेल फीमेल के हिसाब से देख सकते हैं। करंट मेरिटल स्टेटस मेल और फीमेल का अलग-अलग देख सकते
हैं। एज एट मैरिज मेल और फीमेल का अलग से एक बार आपने पूछ लिया मेल फीमेल अदर्स तो आप सारे सवालों का जिसको हम टेक्निकली
क्रॉस टैबुलेशन कहते हैं। आप क्रॉस टैबुलेशन ले सकते हैं। किसी एज एट मैरिज आदमियों की कितनी थी? औरतों की कितनी थी?
अदर्स की कितनी थी? सब आपको पता लग जाएगा। तो एक बार आपने प्रश्न पूछ लिया तो बाकी जितने भी 50 और सवाल है सब सवालों का आप
इससे क्रॉस टेबुलेशन कर सकते हैं। यही सेंस की खूबसूरती है और इसीलिए सेंस की आवश्यकता होती है। बहुत बहुत इंपॉर्टेंट।
ये जो अगला सवाल है उसका जवाब अर्ध सत्य का जवाब तो योगेंद्र यादव जी ने दे ही दिया। पॉइंट नंबर पर दिखा दें। पॉइंट नंबर
फोर है कि हमारे पास सारी जातियों की लिस्ट नहीं है। इस वजह से यह एक असंभव कार्य होगा। होगा। वी डोंट हैव अ रेडी
लिस्ट ऑफ ऑल द कास्ट टू काउंट। इट्स एन इंपॉसिबल टास्क। इसमें आधे का जवाब तो मैंने दे दिया कि देखिए एससी की लिस्ट
हमारे पास बनी हुई है। एसटी की लिस्ट है और पिछले 70 साल से इस्तेमाल हो रही है। ओबीसी की लिस्ट हमारे पास है। दो तरह की
लिस्ट है। राज्यों की लिस्ट अलग है और केंद्र की लिस्ट अलग है। आप किसी का आप चाहिए तो केंद्र सरकार वाली लिस्ट का
इस्तेमाल कर लीजिए। मैं कहता हूं भैया जिस लिस्ट के आधार पे लोगों को आप परमानेंट नौकरी दे सकते हो। आईएएस अफसरों की
नियुक्ति कर सकते हो। उसको आप सेंस में क्यों नहीं इस्तेमाल कर सकते? कमाल की बात कर रहे हैं। तो देश के 75% तो सीधे कवर हो
गए इससे इन तीन से। बच गए जनरल। अब सवाल पूछा जाता है कि भाई जनरल की तो कोई लिस्ट हमारे पास नहीं है। मैं दो तीन चीज याद
दिलाता हूं। पहला ये कि 1931 में एक लिस्ट हुआ करती थी और 1931 के बाद से इस देश में नई जातियां पैदा हो गई होंगी। हो सकता है
एक दो बन गई हो। लेकिन ऐसा तो कोई बदलाव नहीं हुआ होगा कि देश में अचानक लाखों नई जातियां आ गई हो हजारों नई जातियां आ गई
बनी बनाई लिस्ट मान लीजिए उससे भी हम संतुष्ट नहीं है तो एक डॉक्यूमेंट है इस देश में इतना कम जानकारी है हमें इस चीजों
पे एंथ्रोपोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया ने इस देश की समस्त जातियों का सर्वे करके एक एनसाइक्लोपीडिया बनाया छोटा-मोटा
एनसाइक्लोपीडिया नहीं है 90 वॉल्यूम का है वो एनसाइक्लोपीडिया जिसमें इस देश की हर जाति के बारे में आप
मेरी जाति के बारे में जानना चाहते हैं। हरियाणा के यादव कौन है? क्या करते हैं? क्या इनका इतिहास है? क्या किस तरह का
पेशा है? क्या इनकी स्थिति है? उसके बारे में चार पेज आपको वहां मिल जाएंगे हरियाणा वाले। तो इस देश की समस्त जातियों का
एनसाइक्लोपीडिया सरकारी ये कोई प्राइवेट नहीं है। कुमार सुरेश सिंह के नाम से छपा है। प्राइवेट नहीं है। भारत के
एंथ्रोपोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया का ये आंख उसमें से पता लग जाएगा। मान लीजिए इन दोनों से भी आपको ना पता लगे। तो इसमें
क्या संकट की बात है? आप तो उनसे लिखवा रहे हैं ना उपाध्याय लिख रहे हैं। अब उपाध्याय ब्राह्मण होते हैं, राजपूत होते
हैं। अगर मेरे को कंफ्यूजन हो ही जाए इसके बारे में तो कोई बात नहीं। इसका पोस्ट क्लासिफिकेशन होता है, पोस्ट कोडिंग होती
है। तुरंत वहीं पे मास्टर जी को कुछ करने की आवश्यकता नहीं है। और आप कहेंगे ये तो बड़ा मुश्किल प्रोसीजर आप बता रहे हैं। तो
मैं बता दूं ये मुश्किल प्रोसीजर रिलजन के बारे में इस्तेमाल किया जाता है। देश में हर हर बार यही मुश्किल प्रोसीजर लैंग्वेज
के बारे में इस्तेमाल किया जाता है। अब अगर आप लैंग्वेज वाला कॉलम देखें। वहां पे भी आप कहेंगे मेरी भाषा बागड़ी है। मैंने
बागड़ी बता दिया। बागड़ी हिंदी की उपभाषा है। ये जाके तय होगा सेंसस के ऑफिस में। सब क्लासिफिकेशन बाद में होता है। ये
हमेशा होता है। सेंस की टेबल दो तीन साल बाद आती है। बड़ा रूटीन प्रोसीजर है। कौन सी आफत है? कौन सा तूफान है। तो फिर ये
इसलिए मैं तिलका बड़ी इंटरेस्टिंग पॉइंट क्योंकि योगेंद्र जी अब जैसे एक सरनेम है बड़ा कॉमन हरियाणा में राठी। अब यह
हरियाणा में तो जाट समुदाय का एक सरनेम है। लेकिन राजस्थान में इस इस सरनेम के राजस्थानी राजपूत भी हैं। तो सरनेम तो एक
ही हुआ लेकिन आपकी कास्ट अलग-अलग हो गई। आपको लगता है हां ये सारा ये सब फिर आप कह रहे हैं कि वो पोस्ट
अगर मंशा अगर इसे करने की मंशा हो तो बिल्कुल हो सकता है क्योंकि सरनेम तो पूछना ही चाहिए हिंदुस्तान में चौधरी
सरनेम चौधरी सरनेम का कुछ भी हो सकता है मंडल सरनेम से व्यक्ति कुछ भी हो सकता है ना ऐसे तमाम वर्मा सरनेम है कितने सरनेम
हिंदुस्तान में है जिनमें आप किसी भी जाति के हो सकते हो सिंह लिखते हैं लोग सिंह तो कुछ भी हो सकते हैं तो इसलिए जाति पूछी
जाती है जब आप पहले पूछ लेते हैं क्या आप एससी, एसटी, ओबीसी हैं? अगर आप कहते हैं हां और आप कहते हैं आपका नाम वर्मा है।
फिर आपसे आगे पूछा जाएगा आप कौन सी जाति से? तो आप कहेंगे कि मैं बई हूं, मैं विश्वकर्मा हूं, मैं ये हूं, मैं वो हूं
तो बताना होगा नाम उसके साथसाथ या आप कुर्मी है। कुछ भी अपना बताएंगे। ये अगर आप किसी व्यक्ति से जाति पूछे तो
हिंदुस्तान में व्यक्ति केवल अपना सरनेम नहीं बताता। वो सिर्फ शहरी और मुंबई और दिल्ली में बताते हैं लोग अपना सरनेम। लोग
अपनी जाति बताते हैं। जाति पूछनी होती है। ये कतई मुश्किल काम नहीं है। अगर आप करना चाहे अगर आप जलेबी बनाना चाहे तो बिल्कुल
आप केवल सरनेम नोट करके आ जाइए और फिर उसके बाद अपने बाल नोचते रहिए। तो अगर करने की नियत हो दिक्कत यह हुई थी कि सन
2011 में जब एससीसी करवाया गया था तो कई कारणों से जिस अभी जाने की जरूरत नहीं है इसकी नियत नहीं थी कि इसको करवाया जाए और
उसके कारण उसकी जलेबी बन गई थी और 400 कास्ट की लिस्ट आ गई थी ये सब चीजें आ गई थी जिसकी कोई जरूरत नहीं जब बिहार सरकार
की नियत थी उसने किया तो बिहार में उन्हें केवल कितनी 209 कास्ट मिली 209 कास्ट थी उसका उन्होंने सर्वेक्षण करवा लिया और
किसी ने बिहार में नहीं कहा कि कोई बड़ी जाती थी जो छूट गई। हम करने की नियत हो बड़ा आसान काम। अब अब पॉइंट नंबर फाइव और
सिक्स को मैं एक साथ पूछ देता हूं। उसके बाद आप उस पे क्योंकि इस सवाल का जवाब देते आपने थोड़ा सा पॉइंट नंबर फाइव की
तरफ भी इशारा किया। जाति जनगणना केवल जातियों की जनसंख्या गणना के बारे में है। कास्ट सेंसस इज ऑल अबाउट अ कास्ट वाइज हेड
काउंट ऑफ द पपुलेशन साइज ऑफ ईच कास्ट। पॉइंट नंबर सिक्स कहता है कास्ट सेंसेस एक्सक्लूड्स नॉन हिंदूज एंड वुड फोर्स
एवरीवन टू अडॉप अ कास्ट। यानी कि जाति जनगणना गैर हिंदुओं को बाहर रखेगी और सभी को जाति अपनाने के लिए मजबूर करेगी। फर्ज
कीजिए कोई जाति व्यवस्था में विश्वास नहीं रखता। तो फिर यह मजबूरी हो जाएगी कि आप आप जबरदस्ती जाकर के यह ढूंढे कि मेरी जाति
क्या है। तो इन दोनों पॉइंट पर एक एक कैसी-कसी बातें हमारे देश में चलती है और कितनी नादानी और मतलब अनपढ़ता की बातें
हमारे देश में होती है। इसका ये उदाहरण है। मैं आखिरी छह नंबर को पहले उठा लेता हूं। मान लीजिए आप कहते हैं मैं धर्म में
विश्वास नहीं करता। कोई आपके पास आया आप कहे ना मैं हिंदू ना मैं मुसलमान। आप कबीर है, आप मार्क्सवादी है, आप नास्तिक हैं।
तो क्या करेंगे? आप कहेंगे नो रिलजन। सेंस का में क्या लिखा जाएगा? नो रिलजन। ये प्रोविजिशन हमेशा रहा है। कोई नई बात नहीं
है। पिछले 70 साल से आप चाहे अपना रिलजन आप एथिस्ट कह सकते हैं। आप चाहे अपना रिलजन कम्युनिज्म लिखवा सकते हैं। आप चाहे
अपना रिलीजन नास्तिक लिखवा सकते हैं। जो चाहे लिखवा सकते हैं। जाहिर है ये आजादी जाति में भी रहेगी। अब मेरे ही
बच्चों को ले लीजिए। हमने अंतरजातीय विवाह किया है और अपने बच्चों को किसी जाति का नाम नहीं दिया तो मेरे बच्चे क्या
बताएंगे? वो कहेंगे हमारी जाति मुझे नहीं पता मेरी जाति क्या है। ठीक है रिकॉर्ड कर लिया जाएगा। कोई दिक्कत नहीं है। फिर उनको
जनरल में डाल दिया जाएगा। मेरे बच्चे उसके आधार पर कोई बेनिफिट क्लेम नहीं कर सकते। भाई जब तक आपको बेनिफिट क्लेम नहीं करना
हो एससी, एसटी, ओबीसी होने का तब तक आप अपना नाम कुछ भी लिखवाइए। क्या दिक्कत है सेंस में? ये प्रोविजन हमेशा रहा है और
जाति के बारे में भी रहेगा। यह कहना कि जाती जनगणना केवल हिंदुओं में हो रही है। और मतलब बीजेपी का चलाया हुआ शोष है और
सोशल मीडिया पर बड़ा चलता है। देखो तो ये हिंदुओं को बांटने की साजिश है। इन लोगों की हिम्मत नहीं होती कि मुसलमानों की जाति
के बारे में पूछे। ये चलाया जा रहा है। अब हकीकत ये है भाई कि ना सिर्फ हिम्मत की बात छोड़ दीजिए। ये रूटीनली हुआ है। देश
में न जाने कितने पचासियों सर्वे अब तक हो चुके हैं। जिनमें हमेशा मुसलमान और ईसाइयों की अगर केरला में होता है तो
ईसाइयों की जाति से एक्ट पूछा ही जाता है। अभी बिहार में हुआ सर्वेक्षण जाति सेंसस हुआ। तो क्या वो केवल हिंदुओं के बारे में
हुआ? नहीं। बिहार के मुसलमानों की अलग-अलग बिरादरिया है। उनमें से कुछ ओबीसी में है। कुछ जनरल में है। हर बिरादरी का हुआ। और
आप चाहिए तो कल तक आपको मैं सबके आंकड़े भी बता दूंगा। शेख का क्या है? सैयद का क्या है? पठान का क्या है? अंसारी का क्या
है? फला का क्या है? बिलाल बेगी का क्या है? सबका है। तो ये कतई इसमें तो मतलब बाकी चीजों को मैं अर्ध सत्य बता रहा हूं।
इसमें तो तिल बराबर भी सच नहीं है। ये एकदम मतलब कोरा झूठ है ये कि मुसलमान और ईसाइयों का नहीं होगा। सिखों का नहीं
होगा। अरे भाई सबका होगा। रूटीनली होता है। इसमें क्या नई बात बता रहे हैं आप? और पढ़े लिखे लोग इस देश में इस किस्म के झूठ
बोलते हैं। ये देख के मेरे को लगता है कि नहीं दाल में कुछ काला है। इतने तो नादान नहीं है। इतने तो बेवकूफ नहीं है कि इतना
भी ना बताएं। और जो इससे पिछला सवाल पूछा वो महत्वपूर्ण है वो ये है कि नंबर पांच पांच जो था हम आमतौर पे मानते हैं कि
जनगणना शब्द से एक ध्वनि आती है गिनती की। कि आपकी जाति जनगणना का मतलब कि यहां पे कितने उपाध्याय, कितने यादव, कितने ये बस
गिनती हो जाएगी। लीजिए गिनती करवा के क्या करेंगे आप? लेकिन यह महत्व नहीं है। यह बात जरूर है कि और जाती जनगणना के समर्थक
भी कई ये मानते हैं कि असली बात यही है। बस पता लग जाएगा कितने यादव हैं, कितने राजपूत हैं, कितने भूमिहार हैं ये सब पता
लग जाएगा। लेकिन वो जाती जनगणना का असली असली जो रिवॉर्ड है असली उसकी जो फाइंडिंग है वो उसका जो हासिल जो होगा जातिगत
जनगणना से वो असली बात ये नहीं असली बात ये है कि जातिगत जनगणना जातिवार जनगणना जो है वो आपको प्रत्येक जाति की शैक्षणिक
आर्थिक और सामाजिक स्थिति के बारे में बताएगी। अब हमने देखा सेंसस में क्या-क्या सवाल पूछे जाते हैं। करेक्ट। प्रत्येक
सवाल को आप जाति के हिसाब से देख सकते हैं। तीन चार मिसाल मैं देता हूं। आप सेक्स रेशो जानना चाहते हैं। कौन सी
जातियां है जहां महिलाओं की महिलाओं की संख्या घट रही है? क्योंकि उसके बारे में कुछ करना चाहिए। आपको ये पता लगेगा। आप एज
स्ट्रक्चर जानना चाहते हैं। कहां इनफेंट मोटिटी बहुत ज्यादा होती है। पहले साल में बच्चे मर जाते हैं। आपको इसकी जाति बार
संख्या मिलेगी। आप जानना चाहते हैं शिक्षा। सेंसस में पूछा जाता है तो प्रत्येक जाति की आपको यह सूचना मिलेगी।
किस जाति के कितने लोग मैटिकुलेट हुए, कितने लोग ग्रेजुएट हुए, कितने लोग ग्रेजुएट से ऊंची डिग्री हासिल कर सके और
ये सूचना आपको केवल देश के स्तर पर नहीं मिलेगी। अगर आप जानना चाहते हैं यादव क्योंकि मैं अपना ही मिसाल ले लेता हूं।
यादवों की देश भर में कितने ग्रेजुएट हैं? हरियाणा में कितने ग्रेजुएट हैं? रेवाड़ी जिले में कितने ग्रेजुएट हैं? और रेवाड़ी
जिले का जो रेवाड़ी ब्लॉक है या खोल ब्लॉक है या दूसरा कोई ब्लॉक है उस ब्लॉक में कितने हैं पंचायत में कितने हैं पूरी जन
आपको सूचना मिलेगी ये हुई शिक्षा की बात ऑक्यूपेशन क्या काम करते हैं कितने लोग हैं जो मैनुअल लेबर करते हैं किसी जाति
में उससे आपको उसकी सामाजिक स्थिति का पता लगता है आर्थिक स्थिति का पता लगता है ये बात मिलेगी आपको ये पता लगेगा कितने घर
हैं कितने लोग कच्चे घरों में रहते हैं आज भी पक्के घर में रहते आपको यह पता लगेगा कितने लोगों के पास
स्कूटर है। कितने लोगों के पास गाड़ी है, कितने के पास कंप्यूटर है, कितनों के घर में बिजली है, कितनों के घर में गैस
कनेक्शन है। ये सारी सूचना सेंसस में मिलती है। और जातिगत जनगणना का असली हासिल ये है कि आपको यह प्रत्येक सूचना प्रत्येक
जाति के बारे में प्रत्येक स्तर पर पता लग जाएगी। इसके आधार पे आप आगे से अपनी नीति बना सकते हैं। तो यह जो लठमारी होती है ना
सड़क पे कि हमें ओबीसी घोषित कर दो। है ना? इसकी कोई आवश्यकता नहीं बचेगी। आप आंकड़े दिखाएंगे आप कहेंगे देखिए आपकी
जाति जो है वो सामान्य से ऊंची है। इसलिए आपको ओबीसी का दर्जा नहीं मिल सकता। या ये कि फला जाति को बहुत ज्यादा फायदा हो गया।
अब इसको ओबीसी से बाहर निकालो। आप जनगण आप आंकड़े देख लेंगे। और सुप्रीम कोर्ट और जुडिशरी बार-बार कहती रही है कि इस देश
में एविडेंस बेस्ड सोशल पॉलिसी होनी चाहिए और सेंसस से बेहतर एविडेंस हो नहीं सकता। इसलिए जो राहुल गांधी बार-बार एक्सरे कहते
हैं ये है एक्सरे का मतलब। एक्सरे का मतलब सिर्फ वजन तोलने की मशीन नहीं है। एक्सरे आपको अंदर से वो सारी चीजें दिखा रहा है
जो आपको नहीं दिखाई देती। हम वेरी इंटरेस्टिंग वेरी इंटरेस्टिंग। और मैं जो ये समझ पा रहा हूं ये बिल्कुल उस तरीके से
होता है जैसे आप फिल्टर लगाते हैं। तो अगर आप चाहे तो आप सपोज आपके पास सारी जानकारी आ गई। अब उसमें अगर आपको कोई चीज
स्पेसिफिकली जाननी है तो आप वो वो टिक मार्क कर दीजिए कि मुझे इस जाति के इस एरिया के इन लोगों का यह ऑक्यूपेशन जानना
है या इनके बारे में यह जानकारी जाननी है तो आपको वो स्पेसिफिक जानकारी वो निकाल करके दे देगा और इतना डिटेल्ड यह
सर्वेक्षण होगा। तो यह सिर्फ जातियों का एक हेड काउंट नहीं है। बहुत जी मैं आपको इसकी एक मिसाल दे देता हूं क्योंकि जैसे
ही सुप्रीम कोर्ट का जजमेंट आया एससी सब क्लासिफिकेशन के बारे में तो मेरे मन में सवाल आया कि अच्छा भाई ये जरा देखें कि
वास्तव में क्या दलित जातियों के अंदर शैक्षणिक स्थिति अलग है। तो मैंने पंजाब के आंकड़े निकाले क्योंकि वो तो ऑलरेडी
है। कास्ट सेंसस ऑलरेडी एससी एसटी का तो हमेशा होता आया है। तो मैंने निकाल के देखा कि अच्छा रविदासी कम्युनिटी की कितनी
एजुकेशन है। उनमें 3.05% लोग ग्रेजुएट हैं। वाल्मीकि कम्युनिटी में 1.26 है। मजबी कम्युनिटी के अंदर 0.61 है।
इस तरह के आंकड़े आपको प्रत्येक जाति समुदाय के मिल जाएंगे जो आज केवल एससी एसटी का मिलता है। हम आइए पॉइंट नंबर सात
की ओर बढ़ते हैं। पॉइंट नंबर सात है जाति जनगणना का उद्देश्य केवल आरक्षण को बढ़ाना है कि और जातियां आरक्षण का लाभ लेने का
प्रयास करें। टू एक्सपेंड द एकिस्टिंग कोटा। इस कंसर्न के बारे में यह आपको अर्ध सत्य
क्यों लगता है? इसमें दो बातें हैं। एक तो ये कि नई जातियां अपने आप को आरक्षण के दायरे में ले आना चाहे। दूसरा ये भी है
ज्यादा महत्वपूर्ण इसका मतलब ये है कि वो कहेंगे कि सिर्फ 27% हमें क्यों मिलता है? 27% से ज्यादा मिलना चाहिए। और ये बात सच
है कि और और दलित जातियां कहेंग हमें केवल 16 15% क्यों मिलता जब हमारी आबादी 17% है तो हमें 17% क्यों नहीं मिलता इत्यादि? तो
हमें बार-बार बताया जाता है कि देखो इस सारे खेल का एक ही उद्देश्य है कि जो जितना आरक्षण का प्रतिशत आज है उसको
बढ़वाना। इसमें कोई संदेह नहीं है कि आरक्षण के तमाम समर्थकों के मन में जाती जनगणना को
ले यह प्रमुख विचार है। इसमें कोई शक की बात नहीं है। बिहार में इत्यादि इन सब जगहों पर जो हो रहा है इसके बारे में उसके
पीछे कहीं ना कहीं खासतौर पे ओबीसी समुदाय के नेताओं के मन में ये है कि भाई आबादी तो हमारी है कम से कम 40 45% वो तो 52%
बताएंगे आपको और आरक्षण हमें मिलता है खाली 27% तो जाती जनगणना करवाइए। इससे पता लगेगा हमारे कितने और
बढ़ेगी। इस पर मैं दो बात कहना चाहता हूं। पहला तो अपने आप में बहुत बुरी बात नहीं है। आप अभी जाती जनगणना की बात छोड़
दीजिए। अगर कोई यूनिवर्सिटी है महिलाएं खड़े होकर मांग करें कि एक जमाना था जबकि हम यूनिवर्सिटी में 20% होती थी और हमारे
लिए दो हॉस्टल बने। छात्रों के लिए लड़कों के लिए आठ हॉस्टल बन गए। अब हम अब हम यूनिवर्सिटी में 40% हो गई है। अब भी हमें
उन्हें दो हॉस्टल में रहना पड़ रहा है। जबकि लड़कों के आठ हॉस्टल है। अब आप ऐसा कीजिए या तो दो लड़कों के हॉस्टल खाली
करवा लीजिए या हमारे लिए दो हॉस्टल एक्स्ट्रा बनवा दीजिए। क्या ये अपने आप में बहुत नाजायज बात है?
बिल्कुल यही बात आरक्षण पे है। अगर आर अगर यह जातिगत जनगणना से यह पता लगता है कि कुछ जातियां हैं जिनका आबादी में अनुपात
बहुत ज्यादा है। लेकिन आरक्षण में अनुपात उससे बहुत कम है। अगर दोनों में मिसमैच है और अगर सामने वाले कहते हैं कि भ मिसमैच
है। आप इसको ठीक कीजिए तो इसमें अपने आप में क्या बुरी बात है? इसमें लोग कहते हैं हाय हाय देश डूब जाएगा। मैं बार-बार कहता
हूं भैया ये कौन सा देश है? किस दृष्टि से आप इस देश को देख रहे हैं जो 75% लोग हैं उनका भी तो देश होगा ना कोई तो पहली बात
तो ये है कि अपने आप में कोई बहुत बुरी बात नहीं है। ऐसा यदि आंकड़े निकलते हैं देखिए अगर आंकड़ों से यह साबित होता है कि
कुछ जातियों का जनसंख्या में अनुपात और सरकारी नौकरी और बाकी सब चीजों में जो शिक्षा में उनका अनुपात है दोनों में बहुत
असमानता है। केवल तभी वो मांग कर पाएंगे कि हमें ज्यादा दिया जाए। तो इसमें क्या बुरी बात है? पहली बात ये दूसरा कि अगर इस
बात को एकदम आप भूल भी जाए तो कई और दूसरी चीजें हैं जिसके लिए आपको जातीय जनगणना की आवश्यकता है। मान लीजिए मैं आरक्षण विरोधी
हूं। मैं मानता हूं कि देखिए अब इस देश के अंदर केवल अमीर गरीब का फर्क बचा है। जातियों की बात एक जमाने में हुआ करती अब
खत्म हो गई है तब भी मुझे जातिगत जनगणना चाहिए क्योंकि फिर मुझे आंकड़े मिलेंगे कि हर जाति में अमीर गरीब कितने हैं अमीर
गरीब गरीबों अगड़ी जातियों में कितने प्रतिशत गरीब है और बहुत गरीब है इसमें कोई संदेह हो ही नहीं सकता तो मैं वो
आंकड़े लूंगा और अगर उस आंकड़ों से ये पता लगता है कि ग्राम ब्राह्मण में भी शिक्षा उतनी ही है जितनी की मुसहर में है तो
अच्छी बात है फिर आप कहिए कि भैया क्यों जाति की बात करते हो देखिए अब तो शिक्षा में ब्राह्मण और मुसहर बिल्कुल बराबर हो
गए हैं। कायस्त और जो कुर्मी है वो भी बराबर हो गए हैं। अगर ये सारी बातें होती है तो फिर आपको आरक्षण को समाप्त करने की
भी ग्राउंड मिल जाएंगे। क्यों नहीं आप मांग करते? मुझे हैरानी इस बात की होती है कि जब भी आरक्षण पे बहस होती है। लोग एकदम
टन टन उंगली दिखा के मुक्के मार मार के कहते हैं कि खत्म हो गई है जाति। ये हो गया है। वो हो गया है। अब केवल अमीर गरीब
का फासला बचा है। अरे शिक्षा में आजकल तो हर कोई पढ़ रहा है। क्या दिक्कत है? लेकिन जैसे ही कोई कहता है कि चलिए इसके आंकड़े
इकट्ठे कर लेते हैं। तो वही मुक्के मारने वाले लोग अपना मुक्का ले आते हैं लेकिन गणना नहीं करवाएंगे।
मैं कहता हूं भैया ये क्या मामला है? एक तरफ मैं कह रहा था कि इस पेशेंट को बुखार नहीं है और जैसे ही मैं कहता हूं चलो
थर्मामीटर से चेक कर लेते हैं। आप मेरा हाथ पकड़ लेते हो। कहते थर्मामीटर नहीं लगाएंगे। ये तो थोड़ा गड़बड़ है ना। क्या
लगता है आपको? अब ये तो हमने तो इससे पहले भी कार्यक्रम किया हुआ है जिसमें इस बारे में आपसे बात
की हुई है कि ऐसा क्यों है कि रिजर्वेशन का कांसेप्ट समीक्षा उसकी नहीं होती है तो ये तो अपने आप में उस पूरे उस पूरी
प्रणाली की एक समीक्षा ही होगी कास्ट सेंसस अगर होती है तो ये उस लिहाज से बहुत इंटरेस्टिंग है और होना ही चाहिए। पॉइंट
नंबर आठ आइए अब उसके बारे में बात करते हैं। जाति जनगणना एससी, एसटी, ओबीसी के लिए जरूरी है लेकिन सामान्य जातियों के
लिए नहीं। पॉइंट नंबर आठ कहा जाता है इसलिए कहा जाता है कई लोग कहते हैं कि चलिए देखिए अच्छा
कर लीजिए। एससी एसटी की गिनती हो रही थी। आप ऐसा कीजिए आप ओबीसी की भी गिनती कर लीजिए। और लेकिन इसमें जनरल की क्यों कर
रहे हैं? ऐसा सवाल उठाया जाता है और पहली निगाह में सही सवाल भी लगेगा। सच बात यह है कि 2011 से पहले मेरी खुद की भी ये
मान्यता थी कि एससी एसटी का जैसे एनुमरेशन होता है उसी तरह से ओबीसी का भी एनुमरेशन हो जाए। जनरल का करना एक खामखा का पचड़ा
है। इसको फिलहाल छोड़ दीजिए। ऐसा मैं 2011 से पहले कहता था। हम लेकिन और वो इसलिए भी कि 2011 में केवल एक वर्ष बचा था और मुझे
लगता था कि ये करने के लिए उसकी आवश्यकता नहीं है। लेकिन प्रोफेसर सतीश देश पांडे के आर्टिकल्स को पढ़ के मेरा विचार बदला
और इसमें दो तीन चीजें सामने आती है। पहला ये कि आप देखना चाहते हैं एससी एसटी और ओबीसी पिछड़े हुए हैं कि नहीं है।
शैक्षणिक स्थिति उनकी अच्छी है कि बुरी है। तुलना किससे करेंगे भैया? एससी, एसटी, ओबीसी की एक दूसरे से तुलना करेंगे तो पता
लगेगा कि ओबीसी जो है वह एससी से काफी ऊपर है। मगर बाकियों से क्या आपको तुलना करने के लिए कोई पैमाना तो चाहिए ना कोई कसौटी
चाहिए वो कसौटी आपको तभी मिलेगी जब आप बाकी की भी गिनती करेंगे पहली बात दूसरा दुनिया में और ये बात प्रोफेसर सतीश देश
पांडे कहते हैं बहुत शिद्दत से कहते हैं और मैं उनकी बात से अब काफी एग्री करता हूं और वो कहते हैं कि दुनिया में सबसे
बड़ा काम है विशेषाधिकारों से पर्दा उठाना और दुनिया का जो जो भी विशेषाधिकार प्राप्त समूह है वो अपने आप को पर्दे के
पीछे रखना चाहता है। मैं सामान्य हूं। बाकी सब देखिए शब्द जनरल कितना विचित्र शब्द है कि वो सामान्य देश के 20% लोग
सामान्य है और बाकी 80% असामान्य है अमेरिका के वाइट सामान्य है बाकी कलर्ड है वाइट का कोई कलर नहीं है बाकी कलर्ड है ये
जो मान्यता है और इसलिए जो उसके विशेषाधिकार है तो इस देश में जो सवर्ण समाज के विशेषाधिकार हैं उस पे पर्दा
मुद्दा उठना चाहिए। आप इस बात का बुरा नहीं मानेंगे। इसलिए मैं आराम से कह सकता हूं कि इस देश के मीडिया में जितने लोग
बैठ के इंटरव्यू करते हैं चैनलों पे उनका पता तो लगना चाहिए ना क्योंकि वो आरक्षण पे बड़े अपने विचार बताते हैं। वो इस
कास्ट सेंसस पे अपने विचार बताते हैं। तो कास्ट सेंस पे विचार बताने वाले लोगों की अपनी कास्ट क्या है? पता लगना चाहिए मेरी
कास्ट दिख रही है। तो लोग जांच सकते हैं कि भ ये आदमी इस सवाल पे आज बोल रहा है। दूसरे सवाल पे क्या बोल रहा था? जब एससी
एसटी का सवाल आता है तब बोलता है या केवल यादव की बात करता है। ये आप जांच सकते हैं। क्या पूरे देश का ऐसा विश्लेषण नहीं
होना चाहिए देश के मीडिया में कि जो तमाम लोग मीडिया में आज है कहीं ऐसा तो नहीं कि जो देश की आबादी में 20% है वो मीडिया में
80% है और ये बात सच है। आप जानते हैं ऑक्सफ की एक रिपोर्ट इस पर आ चुकी है जो बताती है कि देश पे किस तरह से जो आबादी
के 15 20% लोग हैं हिंदू सवर्ण समाज इस देश की आबादी का लगभग 15 से 20% के बीच में है। लेकिन इस देश के जहांजहां पे
फॉर्मल रिजर्वेशन नहीं है वहां वहां के हर उच्च तबके में इस वर्ग की संख्या कम से कम 75 80 90% होती है। ना सिर्फ 75 80 90%
होती है बल्कि उसके बाद हाय हाय और करते हैं। हाय देखो कितने हम पर अत्याचार हो रहे हैं। तो ये सुनके मुझे लगता है कि एक
बार गिनती कर ली जाए तो कितना अच्छा रहेगा किसका अत्याचार किस पे है पता लग जाएगा। बिल्कुल पॉइंट नंबर नाइन सवाल नंबर नौ
जिसको योगेंद्र यादव अर्थ सत्य मानते हैं। जाति जनगणना से जाति राजनीति और सामाजिक तनाव बढ़ने का डर है। कॉन्फ्रंटेशन होगा,
लड़ाई होगी। इसमें सच का एक अंश है। इससे कोई इंकार नहीं करना चाहिए। क्योंकि यह बात सच
है कि आप जैसे ही सेंसस में किसी चीज को काउंट करते हैं उससे जो आइडेंटिटी है मैं और वो वाली बात थोड़ी सी गहरी हो जाती है।
इसमें कोई शक नहीं है। जब मंडल की बात आई समाज में तनाव पढ़ा यह बात सही है। और जाति जनगणना पे जितनी लंबी बहस इस देश में
होगी और जितना ज्यादा इसका विरोध किया जाएगा और बहुत घोर विरोध के बाद यदि जाती जनगणना होती है तो तो जाहिर है उससे देश
में कुछ तो तनाव बढ़ेगा और वैसे भी किसी भी आइडेंटिटी को जिस दिन आप फ्रीज कर देते हैं जिस दिन आप गिनती करना शुरू कर देते
हैं कि इस हाउसिंग सोसाइटी में कितने हिंदू कितने मुसलमान उस दिन आपको ये आइडेंटिटी शार्प हो जाती है लेकिन इसके
बारे में मैं दो तीन बात कहना चाहता हूं। पहला तो ये कि देखिए भारत के समाज में जाति कोई छुपी हुई चीज है नहीं। हर कोई
इसके बारे में जानता है। किसी गांव में आपको कुछ नहीं करना होता। किसी पटवारी के पास बैठ जाइए या
किसी गांव की चौपाल में बैठ जाइए। वो आपको बता देगा। ये फला लोगों का ये जाटों का मोहल्ला है। ये फला का ये धानुक का
मोहल्ला है। ये जाटव का मोहल्ला है। वहां यादव रहते हैं। ये आपको दो मिनट में बता दिया जाएगा। किससे छुपा रहे हैं भाई?
स्थानीय स्तर पे सबको पता होगा। तो मेरे गांव में जातीय जनगणना के बारे में ऐसी क्या नई चीज मेरे गांव वालों को पता लग
जाएगी जो कल तक नहीं पता थी। सबको पता है। हो सकता है मेरी हाउसिंग सोसाइटी में दिल्ली में पहली बार लोगों को पता लगे
लेकिन गांव में छुपी हुई चीज नहीं है। पहली बात दूसरा राजनीति में जाति का काम बढ़ जाएगा। अरे भैया राजनीति में तो रोज
वो गिनती आप अभी इलेक्शन होने वाले हैं हरियाणा में। हर नेता की जेब में कागज रहता है। जी मेरे यहां इतने जाट है जी।
इतने ब्राह्मण है जी इतने बनिया है जी इतने हजार यादव है फिर ना एक छोटे से 5000 वोट इनके भी है जी खत्री लोगों के भी है
जी हर एक की जेब में रहता है ये कौन सी नई बात आप कह रहे हो भारत सरकार को पहली बार पता लगेगा ये राजनीति में हर एक को पता है
और तीसरा ये कि भाई अगर जाति सिर्फ जाति की जनगणना आज पहली बार हो रही है ना मान लीजिए इसकी मांग की जा रही है धर्म की तो
हमेशा होती आई है अब इस देश में हिंदू मुसलमान के झगड़े हैं। लेकिन जनगणना में गिनती के कारण है। यह कोई नहीं कहता।
इस देश में भाषा की गिनती पिछले 70 साल से हो रही है। हर परिवार में पूछा जाता है आपकी क्या मातृभाषा है? भाषा के दंगे इस
देश में हुए हैं। लेकिन भाषा की जनगणना की वजह से हुए हैं। ये कोई नहीं कहता। हम तो मेरा सिर्फ ये कहना है कि हां इससे तनाव
बढ़ सकता है और इस तनाव को कम करना अगर थोड़ा सा भी गुंजाइश है तो उसको कम करने का तरीका यह है कि तुरंत फुरत बिना विरोध
के चुपचाप से जातीय जनगणना करवा लीजिए जैसे आरएसएस लाइन पे आ गई है बाकी सब लोग भी जल्दी से लाइन पर आ जाए विरोध ना करें
जितना विरोध करेंगे उतना तनाव बढ़ेगा विरोध ना करेंगे और अगर कांग्रेस भी इसके पक्ष में हो जाती है बीजेपी भी पक्ष में
हो जाती है तो आप मैं विश्वास बता सकता हूं कि देश में इस सवाल पर अगर इंडिया गठबंधन और एनडीए दोनों इसका सपोर्ट कर
देते हैं। जैसे 2010 में कर चुके हैं। अगर वही कर देते हैं कहीं तनाव नहीं होगा। तनाव की शुरुआत ऊपर के इशारे से होगी। अगर
ऊपर से इशारा नहीं होगा तो ऐसा कुछ नहीं होगा। बहुत खूब। बहुत इंपॉर्टेंट पॉइंट कि यह एक पॉलिटिकल क्राइसिस या पॉलिटिकल
प्रॉब्लम की तरह क्रिएट की जाती है। अब यह पॉइंट नंबर 10 है। आखरी पॉइंट जाति जनगणना केवल 10 वर्षीय जनगणना में जाति को शामिल
करने तक ही सीमित है। इसको आप अर्धसत्य क्यों मानते हैं? ये बात दरअसल ये प्रश्न मैंने बनाया
अर्धसत्य। ऐसा नहीं है कि ये सब लोगों के मन में बिल्कुल एक स्वाभाविक सी बात है। कास्ट सेंसस का मतलब क्या है? 10 साल के
बाद जो सेंसस होता है उसमें कास्ट का कॉलम डाल देना जो मैंने दिखाया। लेकिन दरअसल यह केवल एक चीज नहीं है। ये बहुत कम लोग अभी
इसके बारे में सोचते हैं। लेकिन आजकल पिछले कुछ दिनों से राहुल गांधी जब भी बोलते हैं तो वो कहते हैं कि ये सिर्फ मैं
जाति की जनगणना नहीं करवाना चाहता। मैं इंस्टीट्यूशनल ऑडिट भी चाहता हूं। मैं इस देश की तमाम रिसोर्सेज का ऑडिट भी चाहता
हूं। दरअसल यह जरूरी है क्योंकि जातिगत जनगणना से आपको यह नहीं पता लगेगा कि सरकारी कर्मचारी किस घर में कितने हैं।
कहां कितने आईएएस ऑफिसर है। आपको नहीं पता लगेगा। सिर्फ सेंसस से आपको यह नहीं पता लगेगा कि इनकम कितनी है। क्योंकि सेंस
इनकम का सवाल कभी नहीं पूछता। सेंसस से आपको ये नहीं पता लगेगा कि कौन सेंट्रल यूनिवर्सिटी में पढ़ते हैं। कौन आईआईटी
में बच्चे पढ़ते हैं। जो सबसे इंपॉर्टेंट सवाल है। इनका आपको सूचना नहीं मिलेगी। और सेंसस से आपको यह भी नहीं पता लगेगा कि
किसके पास जमीन कितनी है। जमीन का सवाल सेंसस में नहीं पूछा जाता। इसके लिए आपको सेंसस शब्द का विस्तार करके तमाम दूसरे
सेंसस इस देश में जो होते हैं हमें पता भी नहीं है। वैसे इस देश में हर पांच साल बाद इकोनमिक सेंसस होता है। हर इस देश की
दुकान, रेडी, शॉपिंग मॉल, इंडस्ट्री हर एक का सर्वेक्षण होता है। इस देश में एक एक का इस देश में एग्रीकल्चर सेंसस होता है
जिसमें हर जमीन के टुकड़े का की पैमाइश की जाती है। देखा जाता है। इन इनमें भी जाति का सवाल आज भी इनमें पूछा जा रहा है। आज
पूछा जाता है कि क्या आप एससी, एसटी, ओबीसी, जनरल है? उसकी बजाय आप बस वो एक स्टेप एक्स्ट्रा कर दीजिए जो मैंने बताया।
तो आप इकोनॉमिक सेंस में भी यही सवाल पूछिए। आप एग्रीकल्चर सेंसस में पूछिए। आप जो एनएसएसओ के सर्वे होते हैं उसमें पूछिए
और एआईएसए करके ऑल इंडिया स्टेटस ऑफ हायर एजुकेशन करके एक सर्वे होता है स्टेट ऑफ हायर एजुकेशन जिसमें हर बच्चे से
यूनिवर्सिटी के एडमिशन लेते वक्त फॉर्म भरवाया जाता है जिसके आधार पे आंकड़े आते हैं तो उसमें भी यही सवाल पूछिए और जितने
कंपनियों के डायरेक्टर्स हैं अब ये बात चुभ जाएगी लोगों को बड़ा तकलीफ देगी लेकिन सच बात ये है कि कंपनियों के डायरेक्ट से
आप पूछवाते हैं। आज भी पूछा जाता है कि महिला है कि पुरुष है? ये तो पूछते हैं ना। पूछने की कोई जरूरत नहीं। पूछा जाता
है। ये जरा एससी, एसटी, ओबीसी वाला कॉलम भी डाल दीजिए ना। उसमें जरा पता लग जाएगा। राहुल गांधी दावा कर रहे हैं कि 500 बड़ी
कंपनियों में एक भी एससी, एसटी, ओबीसी नहीं है। वो हर मीटिंग में हर अपनी स्पीच में दावा करते हैं कि देश के 80% लोग
कंपनियों से पूरी तरह नदारद है। उनका क्लेम सही है नहीं है। इसका पता उन्होंने कह रहे हैं मैंने अपनी रिसर्च की है। मगर
देश में क्यों नहीं इसके बारे में पता लग जाए। तो यह सब चीजें की जाए और साथ में सरकारी और पब्लिक सेक्टर की तमाम नौकरियों
का भी सर्वेक्षण हो कि वहां कितने लोग हैं। मैं जानना चाहता हूं कितने जज साहिबान इस देश में है। हाई कोर्ट के जज
हैं। सुप्रीम कोर्ट के जज हैं। ये सब जहां पर आरक्षण लागू नहीं होता। मैं उनकी बात कर रहा हूं। जहांजहां आरक्षण लागू नहीं
होता। वहां क्या स्थिति है? क्या समाज के जितने समाज के प्रमुख जितने भी वर्ग है उनको मोटे तौर पर अपनी आबादी के अनुरूप
मिला है या कि कोई 15% है और 75% कुर्सियों पर बैठा हुआ है। इसकी जांच तो होनी चाहिए ना।
इसलिए ये आखरी बात मैं ये कह रहा हूं कि जाति जनगणना का मतलब केवल ये नहीं है कि सेंसस में जाति का सवाल पूछ लिया जाए। 10
साल बाद जो सेंस ऑफ इंडिया होता है जो अब 2025 में होने की संभावना है। बल्कि सेंसस जैसी जितनी भी एक्सरसाइज इस देश में होती
है सब में ये सवाल डाला जाए तभी हमें पूरा एक्सरे मतलब एक्सरे को अगर आप आगे बढ़ा दे तभी हमें एमआरआई मिलेगा इस देश का पूरा और
अभी एमआरआई की आवश्यकता है। बिल्कुल योगेंद्र यादव जी यह 10 पॉइंट्स जो 10 अर्ध सत्य जिनको आप कह रहे हैं उनको बहुत
अच्छे से समझाने के लिए और स्पष्ट रूप से बताने के लिए अपनी आपने अंडरस्टैंडिंग दी। मुझे लगता है इससे काफी क्लेरिटी मिलेगी।
अब कौन उसके बावजूद भी सवाल पूछता रहता है वो मसला अलग। लेकिन एक क्लेरिटी जरूर मिली कि वो 10 बड़े कॉमन बात जिसको यह माना जा
रहा था कि यह दिक्कतें हैं वो कैसे उतनी बड़ी दिक्कतें नहीं है वो आपने हम लोगों को बताई इसके लिए बहुत-बहुत धन्यवाद आपका
आपने इतना समय दिया बहुत लंबा विस्तार से ये कार्यक्रम हुआ उसके लिए भी बहुत-बहुत धन्यवाद थैंक यू वेरी मच धन्यवाद थैंक यू
नमस्कार [संगीत]
The video centers around the ongoing debate regarding the caste census in India, highlighting the political implications, the statements from various political entities like the RSS, and the insights provided by Yogendra Yadav on the misconceptions surrounding the caste census.
Yogendra Yadav is a political analyst and activist who has written extensively on the caste census. In the video, he discusses ten 'half-truths' related to the caste census, aiming to clarify misconceptions and provide a deeper understanding of the issue.
The video outlines ten half-truths that Yogendra Yadav identifies regarding the caste census, including misconceptions about the historical context of caste enumeration, the political motivations behind the demand for a caste census, and the implications for social justice and policy-making.
The caste census is seen as a significant political tool that can influence electoral strategies and social policies. The video discusses how different political parties, including the BJP and Congress, have approached the issue, reflecting their electoral interests and the potential impact on caste-based politics.
The video suggests that a caste census could provide valuable data on the socio-economic status of various caste groups, helping to inform policies aimed at addressing inequalities and ensuring that resources are allocated effectively to support marginalized communities.
Concerns include the fear of increased social tension and conflict arising from caste identification, as well as the logistical challenges of conducting a comprehensive census that accurately reflects the diverse caste landscape in India.
The video counters the argument against the necessity of a caste census by emphasizing the importance of accurate data for social justice, policy-making, and understanding the demographic realities of caste in India, suggesting that ignoring this data could perpetuate existing inequalities.
Heads up!
This summary and transcript were automatically generated using AI with the Free YouTube Transcript Summary Tool by LunaNotes.
Generate a summary for free
