Understanding Jainism: Its Origins, Teachings, and Impact on Indian Society
Overview
This video delves into the significant historical period of the 6th and 5th centuries BC, which saw the rise of Jainism and Buddhism as major religious sects in India. It discusses how these religions emerged in response to the rigid Vedic social structure and the growing discontent with ritualistic practices. For a deeper understanding of the context, you can explore the Early Vedic Age: An Overview of Aryan Migration and Civilization.
Key Points
- Historical Context: The video begins by setting the stage in ancient India, where the Vedic culture was at its peak. The societal structure was rigid, leading to unrest among various classes, particularly the Kshatriyas and Vaishyas. This unrest is further explored in Understanding the Later Vedic Age: Society, Politics, and Economy.
- Emergence of Jainism: Jainism arose as a response to the social tensions and the need for a more egalitarian religious framework. Mahavira, the 24th Tirthankara, played a crucial role in shaping Jain philosophy, emphasizing non-violence (Ahimsa) and truthfulness.
- Core Teachings: Jainism is built on five fundamental principles: non-violence, truthfulness, non-stealing, non-possessiveness, and celibacy. These teachings were designed to promote a simple and ascetic lifestyle.
- Spread of Jainism: The video explains how Jainism spread across India, particularly in regions like Karnataka and Gujarat, and how it adapted to local cultures while maintaining its core principles. The influence of earlier civilizations, such as the Indus Valley Civilization: History and Geography Overview, can be seen in this adaptation.
- Decline of Jainism: Despite its initial growth, Jainism faced challenges, including strict principles that made it less appealing to the general populace and a lack of political patronage compared to other religions.
Conclusion
Jainism remains a vital part of Indian history, influencing various aspects of society, including language, art, and architecture. Its teachings continue to resonate, promoting values of peace and non-violence in contemporary society.
FAQs
-
What is Jainism?
Jainism is an ancient Indian religion that emphasizes non-violence, truthfulness, and asceticism, founded by Mahavira in the 6th century BC. -
Who was Mahavira?
Mahavira, also known as Vardhamana, is considered the 24th Tirthankara of Jainism and is regarded as its most important figure. -
What are the core principles of Jainism?
The core principles include non-violence, truthfulness, non-stealing, non-possessiveness, and celibacy. -
How did Jainism spread in India?
Jainism spread through the efforts of its followers and the establishment of communities, particularly in regions like Karnataka and Gujarat. -
What led to the decline of Jainism?
The decline was due to its strict principles, lack of political support, and competition with other religions like Buddhism and Hinduism. -
How does Jainism differ from Buddhism?
While both religions emerged around the same time and share some philosophical ideas, Jainism places a stronger emphasis on non-violence and ascetic practices. -
Is Jainism still practiced today?
Yes, Jainism is still practiced today, with a significant population in India and contributions to various fields, including commerce and culture.
जैनिज्म आज मैं आपको इंडियन एसिएंट हिस्ट्री के ऐसे दौर से परिचय कराने वाला हूं जिसने इंडियन सोसाइटी को बदल कर रख
दिया ना सिर्फ रिलीजस सिनेरियो पर गहन प्रभाव छोड़ा बल्कि पॉलिटिकल सेटअप और इवन इकॉनमी को भी इंपैक्ट किया इसका प्रभाव आज
भी देखने को मिलता है गांधी जी की बेसिक आइडियल जीी ऑफ नॉन वायलेंस को यहीं से प्रेरणा मिली दोस्तों यह कहानी है सिक्सथ
और फिफ्थ सेंचुरी बीसी की जब हिस्ट्री का वैदिक कल्चर अपनी चरम सीमा पर पहुंच चुका था लोग प्रीस्टली क्लास यानी पुरोहित वर्ग
कल्ट्स और रिचुअल्स के खिलाफ आवाज उठाने लगे थे स्पेशली पांचाल और विदेह में जहां 600 बीसी के आसपास उपनिषद को कंपाइल किया
जा रहा था इन फिलोसॉफिकल टेक्स्ट में रिचुअल्स को क्रिटिसाइज किया गया और नॉलेज पर स्ट्रेस दिया गया वैदिक फेज के एंड में
कई इंपॉर्टेंट चेंजेज देखने को मिले जैसे टेरिटोरियल किंगडम की शुरुआत हुई जिन्हें जनपदास बोला जाता था यह जनपदास क्षत्रिय
रूलर के अंडर में थे युद्ध का मकसद अब केवल कैटल को कैप्चर करने तक सीमित नहीं था बल्कि टेरिट्री कैप्चर करना भी वॉर का
एक इंपॉर्टेंट एस्पेक्ट था महाभारत वॉर भी इसी पीरियड की बताई जाती है पेस्टोरल सोसाइटी यानी चरवाहे अब एग्रीकल्चरल
सोसाइटी में कन्वर्ट हो रहे थे ऐसे दौर में मिड गजेट प्लेंस में कई रिलीजस सेक्ट्स अर्थात संप्रदायों का उदय हुआ कुछ
एस्टिमेट्स के हिसाब से करीब 62 सेक्ट्स राइज हुए इनमें से सबसे इंपॉर्टेंट सेक्ट जैनिज्म और बुद्धिज्म सामने उभर कर आए आज
इस कहानी में हम जैनिज्म पर फोकस करेंगे कॉसेस ऑफ ओरिजिन पहले समझते हैं कि इन रिलीजस ऑर्डर्स के स्टार्ट होने के कारण
क्या रहे लेटर वैदिक सोसाइटी फोर वर्णस में डिवाइड हो गई और यह डिवीजन धीरे-धीरे रिजट होता चला गया नेचुरली इस वर्ण
व्यवस्था से सोसाइटी में टेंशन फैली हुई थी इसके चलते वैश्यास और शुद्रास के क्या रिएक्शंस रहे यह पता लगा पाना मुश्किल है
लेकिन क्षत्रिय वर्ण ने जरूर ब्राह्मण डोमिनेशन के खिलाफ आवाज उठाना शुरू किया इन्होंने वर्ण व्यवस्था में बर्थ के
इंपॉर्टेंस को लेकर एक प्रकार के प्रोटेस्ट मूवमेंट को चालू किया क्षत्रियस का यही स्ट्रांग रिएक्शन नए रिलीजस के
ऑरिजिन का एक कारण रहा लेकिन न्यू रिलीजस के राइज का रियल कॉज था नॉर्थ ईस्टर्न इंडिया में एक नई तरह की एग्रीकल्चरल
इकॉनमी का स्प्रेड होना सिक्स्थ सेंचुरी बीसी के एंड होने तक ईस्टर्न यूपी नॉर्थ और साउथ बिहार में आयरन का इस्तेमाल शुरू
हुआ जिसके चलते डेंस फॉरेस्ट को क्लियर करना आसान हो गया और लार्ज स्केल में लोग यहां रहने लगे और यहां से वाइड स्प्रेड
एग्रीकल्चर की शुरुआत हुई 500 बीसी के आसपास नॉर्थ ईस्टर्न इंडिया में बड़ी मात्रा में सिटीज बसना चालू हुई जैसे
कौशांबी कुशीनगर वाराणसी वैशाली चिरांद तारा दी पाटलीपुत्र राजगीर और चंपा वर्धमान महावीर इनमें से
कई सिटी से एसोसिएटेड रहे सबसे पहले इसी दौर में ट्रेड और कॉमर्स में कॉइंस का यूज किया जाने लगा जो कि पंच मार्क्ड वैरायटी
के कॉइंस थे कॉइंस के यूज से ट्रेड में अच्छी ग्रोथ हो रही थी जिसके चलते वैश्यास की इंपॉर्टेंस सोसाइटी में बढ़ने लगी
नेचुरली वैश्य वर्ण ने ऐसे रिलीजन को खोजना चालू किया जो उनकी सोशल पोजीशन को इंप्रूव कर सके इसीलिए उन्होंने महावीर का
सपोर्ट किया उनके सपोर्ट के कई कारण रहे पहला जैनिज्म ने शुरुआत में वर्ण व्यवस्था को इंपॉर्टेंस नहीं दी दूसरा जैनिज्म में
नॉन वायलेंस की बात की गई जिससे वर्स एंड हो जाते और ट्रेड और कॉमर्स में इजाफा होता तीसरा ब्रह्मनिकल लॉ बुक्स जैसे
धर्मसूत्रास में मनी लैंडिंग की निंदा की गई इसके कारण ट्रेडर्स को नीची नजर से दे देखा जाने लगा और इसी कारण ट्रेडिंग क्लास
अपना सोशल स्टेटस इंप्रूव करने के लिए नए रिलीजन की खोज करने लगी वहीं दूसरी ओर सोसाइटी के ओल्ड फैशंड लोग पुरानी लाइफ की
डिमांड करने लगे जैसे मॉडर्न टाइम्स में इंडस्ट्रियल रेवोल्यूशन के दौरान पुराने लोग चेंजेज को एक्सेप्ट नहीं कर पा रहे थे
नया क्लोथिंग पैटर्न प्राइवेट प्रॉपर्टी और नए तरह के घर उन्हें रास नहीं आ रहे थे और वह प्रिमिटिव लाइफस्टाइल चाहते थे
जैनिज्म में सिंपल प्योर और एटिक लाइफ स्टाइल को इंपॉर्टेंस दी गई जिससे लोग अट्रैक्ट होने लगे यही सब कारण रहे कि
जैनिज्म जैसे न्यू रिलीजस प्रॉमिसिफाई रिलीजस टीचर महावीर के 23 प्री सेसस यानी
पूर्वज थे जिन्हें तीर्थंकर बोला जाता है जैनास का मानना है कि जैनिज्म के पहले तीर्थंकर ऋषभ देव थे और उन्होंने ही
जैनिज्म को एस्टेब्लिश किया ऋषभ देव अयोध्या के माने जाते हैं अगर महावीर को 24 तीर्थंकरा माना जाए तो जैनिज्म का
ओरिजिन करीब नाइंथ सेंचुरी बीसी तक चला जाएगा जबकि अयोध्या का सेटलमेंट 500 बीसी में स्टार्ट हुआ इसीलिए ऋषभदेव के
एसिस्टेंसिया एस्टेब्लिश कर पाना मुश्किल है बाकी सभी तीर्थंकरों की हिस्टॉरिसिटी भी
एक्सट्रीमली डाउटफुल है जैनिज्म की इंपोर्टेंट टीचिंग्स पार्श्वनाथ से स्टार्ट हुई जो कि 23 तीर्थंकर थे वह
बनारस के थे रॉयल लाइफ को एंडन किया और एक एटिक यानी तपस्वी बन गए लेकिन इतिहासकारों की माने तो पार्श्व के स्पिरिचुअल सक्सेसर
वर्धमान महावीर ही जैनिज्म के रियल फाउंडर हैं महावीर की बर्थ और डेथ की एग्जैक्ट डेट्स का पता लगाना संभव नहीं है लेकिन एक
ट्रेडिशनल तो उनकी बर्थ 540 बीसी में वैशाली में हुई जो कि आज के हिसाब से बिहार के वैशाली डिस्ट्रिक्ट में है उनके
फादर सिद्धार्थ क्षत्रिय क्लन के हेड थे और उनकी मदर त्रिशाला लिच्छवी चीफ चेतक की सिस्टर थी चेतक की डॉटर की मैरिज बिंबिसार
से हुई इससे यह तो साफ है कि महावीर की फैमिली मगध की रॉयल फैमिली से जुड़ी हुई थी जिसकी मदद से उनको प्रिंसेस और नोबल्स
तक अपनी अप्रोच पहुंचाने में आसानी हुई शुरुआत में महावीर एक गृहस्थ जीवन जीते रहे पर ट्रुथ को ढूंढने और समझने की राह
पर उन्होंने 30 साल की ऐज में दुनिया का त्याग कर दिया और एक तपस्वी बन गए जीवन के 12 साल उन्होंने केवल भ्रमण करते हुए
निकाले विलेजेस और टाउंस में कुछ दिन के अलावा नहीं रुकते थे इन 12 सालों की लंबी जर्नी में ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने
कभी भी कपड़े नहीं बदले और 42 साल की उम्र में जब उन्होंने कैवल्य यानी ओमनी सियंस को पा लिया तब उन्होंने पूरी तरह से
कपड़ों का त्याग कर दिया कैवल्य की मदद से उन्होंने मिजी और हैप्पीनेस को कंकर किया इसी कॉक्वेस्ट के कारण उन्हें महावीर यानी
ग्रेट हीरो या जीना यानी कांकर ऑफ वनसेल्फ बोला गया और उनके फॉलोअर्स को जैनास 30 साल तक महावीर ने अपने रिलीजन को
प्रोपागेट किया एक्सपेंड किया और यह मिशन उनको कौशा मगध मिथिला और चंपा जैसी सिटीज में ले गया 468 बीसी में 72 साल की एज में
पावापुरी में उनकी डेथ हो गई यानी वह निर्वाण को प्राप्त हो गए बिहार के राजगीर नालंदा डिस्ट्रिक्ट में यह जगह है दोस्तों
आगे बढ़ते हैं और जैनिज्म की डॉक्ट्रिन यानी सिद्धांतों पर एक नजर डालते हैं डॉक्ट्रिन ऑफ जैनिज्म
जैनिज्म में पांच सिद्धांतों की बात कही गई है डू नॉट कमिट वायलेंस यानी हिंसा मत करो डू नॉट टेल अ लाय यानी झूठ मत बोलो डू
नॉट स्टील यानी चोरी मत करो डू नॉट होड यानी संचय मत करो ऑब्जर्व कंटिनेंस यानी ब्रह्मचर्य को अपनाओ ऐसा कहा जाता है कि
सिर्फ पांचवा सिद्धांत यानी ब्रह्मचर्य ही महावीर ने ऐड किया बाकी चार उन्होंने पिछले तीर्थंकरों से लिए जैनिज्म का सबसे
इंपोर्टेंट डॉक्ट्रिन था अहिंसा यानी नॉन इंजरी टू लिविंग बीइंग्स महावीर के प्रेडिसेसर यानी पार्श्व ने अपने फॉलोअर्स
से बॉडी के अपर और लोअर पोर्शंस को कवर करने को कहा जबकि महावीर ने अपने फॉलोअर्स को कपड़े कंपलीटली अबन करने के
इंस्ट्रक्शन दिए इससे पता चलता है कि महावीर ने अपने फॉलोअर्स को ज्यादा स्ट्रिक्ट और सीधा-साधा जीवन जीने को कहा
कई रीजंस में से एक यह भी कारण रहा कि आगे चलकर जैनिज्म दो सेक्ट में डिवाइड हो गया श्वेतांबर जो वाइट कपड़े पहनने लगे और
दिगंबरस जिन्होंने कपड़ों का त्याग किया जैनिज्म ने गॉड के एक्जिस्टेंस को रिकॉग्नाइज किया लेकिन उन्हें जिना की
श्रेणी से नीचे ही रखा वर्ण सिस्टम को जैनिज्म ने एकदम कंडेम नहीं किया जिस तरह बुद्धिज्म ने किया महावीर के अनुसार एक
पर्सन का अपर और लोअर वर्ण में बर्थ होना उसके पिछले जन्म में किए गए सिंस और वर्चूज पर डिपेंडेंट था इसका मतलब महावीर
थ्योरी ऑफ कर्मा में बिलीव करते थे महावीर के ओपिनियन में लोअर कास्ट के लोग प्योर और मेरिटोरियस लाइफ जीते हुए लिबरेशन यानी
मुक्ति पा सकते थे फ्रीडम फ्रॉम वर्ल्डली बंड्स यानी दुनियादारी से मुक्ति जैनिज्म का मेन मोटिव था स्पष्ट है कि महावीर
लिबरेशन ऑफ सोल की बात कर रहे थे ऐसा करने के लिए किसी भी तरह के रिचुअल्स की जरूरत नहीं थी राइट नॉलेज राइट फेथ और राइट एक्
के थ्रू इसको पाया जा सकता था इनको जैनिज्म का त्रिरत्न कहा जाता है जैनिज्म में वॉर और एग्रीकल्चर दोनों को ही
प्रोहिबिट किया गया क्योंकि दोनों में ही लिविंग बीइंग्स की किलिंग इवॉल्व थी इसी के चलते जैनिज्म मेनली ट्रेड और
मर्केंटाइल एक्टिविटीज तक ही सीमित रह गया दोस्तों अब बात करते हैं कि किस तरह जैनिज्म स्प्रेड हुआ स्प्रेड ऑफ जैनिज्म
जैनिज्म को स्प्रेड करने के लिए महावीर ने एक फॉलोअर के ऑर्डर या ग्रुप को तैयार किया जिसमें मेन और वमन दोनों को एडमिट
किया जा सकता था प्राकृत लैंग्वेज का यूज करके महावीर ने अपनी टीचिंग्स को कॉमन लोगों तक पहुंचाया ऐसा कहा जाता है कि
उनके करीब 14000 फॉलोअर्स थे जो कि एक बहुत बड़ी संख्या नहीं है जैनिज्म अपने आप को ब्रह्मनिकल रिलीजन से किसी खास तौर पर
डिफरेंशिएबल और वेस्ट इंडिया में ग्रेजुएट बशन की माने तो कर्नाटका में जैनिज्म के स्प्रेड का कारण चंद्रगुप्त
मौर्य रहे जो मौर्य एंपायर के फर्स्ट रूलर थे पर इसका कोई हिस्टोरिकल एविडेंस नहीं है दूसरा कारण मगध में हुए ग्रेट फैमिन को
बताया जाता है जो महावीर की डेथ के दो साल बाद हुआ यह फैमिन 12 साल तक चला इससे बचने के लिए जैनास का एक ग्रुप साउथ इंडिया में
ग्रेट कर गया भद्र बाहू की लीडरशिप में इन्हीं के द्वारा साउथ इंडिया में जैनिज्म का स्प्रेड हुआ बचे हुए लोग मगद में ही
रहे स्थल बाहू की लीडरशिप में फैमिन खत्म होने के बाद दोनों ग्रुप्स में डिफरेंसेस क्रिएट हो गए जैनिज्म के बेसिक कांसेप्ट
को लेकर इन डिफरेंसेस को रिजॉल्व करने के लिए और जैनिज्म की मेन टीचिंग्स को कंपाइल करने के लिए एक काउंसिल को कन्वीन किया
गया पाटली पुत्र में लेकिन साउथ से वापस आने वाले जनाज ने इस काउंसिल का बॉयकॉट किया इसके बाद से सदन ग्रुप को दिगंबरा और
मगध ग्रुप को श्वेतांबरा बोला जाने लगा इस तरह से जैनिज्म दो सेक्ट्स में डिवाइड हो गया ये फैमिन थ्योरी की ऑथेंटिसिटी
डाउटफुल है पर इतना साफ है कि जैनिज्म दो सेक्ट्स में डिवाइड जरूर हो गया था दोस्तों यहां यह बताना जरूरी है कि
जैनिज्म की एक काउंसिल आगे चलकर 512 एडी में भी हुई क्षमा शरमाना ने इसको प्रिसा इड किया था इस काउंसिल में 12 अंगज और 12
उप अंगज को कंपाइल किया गया जो जैनिज्म के इंपॉर्टेंट रिलीजस स्क्रिप्चर हैं एपीग्राफिक एविडेंस यानी पुरालेख के
अनुसार कर्नाटका में जैनिज्म का स्प्रेड थर्ड सेंचुरी एडी के बाद ही हुआ फिफ्थ सेंचुरी एडी के बाद कई जैना मॉनेस्ट्रीज
कर्नाटका में भी बनी जिन्हें बसदेवा करें तो यहां पर जैनिज्म का स्प्रेड फोथ सेंचुरी बीसी में हुआ फर्स्ट
सेंचुरी बी स में कलिंग किंग खर्वेला का पेट्रोनेट जैनिज्म को मिला तमिलनाडु के सदर्न डिस्ट्रिक्ट में इसका स्प्रेड सेकंड
और फर्स्ट सेंचुरी बीसी में देखने को मिला आने वाली सेंचुरी में मालवा गुजरात और राजस्थान में जैनिज्म स्प्रेड हुआ जहां आज
भी इनकी एक सब्सटेंशियल पॉपुलेशन है इनका मेन ऑक्यूपेशन आज भी ट्रेड और कॉमर्स ही है यहां एक इंटरेस्टिंग बात सामने आती है
भले ही जैनिज्म बुद्धिज्म के कंपैरिजन में रैपिड स्प्रेड नहीं हुआ पर आज भी जैन पॉपुलेशन यहां बरकरार है जबकि बुद्धिज्म
वर्चुअली डिसअपीयर्ड म के सोसाइटी में कंट्रीब्यूशंस पर भी डालते
हैं कंट्रीब्यूशन ऑफ जैनिज्म जैनिज्म ऐसा फर्स्ट सीरियस अटेंप्ट था जो वर्ण सिस्टम और रिचुअलिस्टिक वैदिक रिलीजन के खिलाफ
लड़ाई लड़ रहा था शुरुआती जनाज ने संस्कृत को डिस्कार्ड किया जो कि ब्राह्मण पेटनेट में थी उन्होंने कॉमन पीपल की लैंग्वेज
यानी प्राकृत को अडॉप्ट किया अपने डॉक्ट्रिन को प्रीच करने के लिए उनका रिलीजियस लिटरेचर अर्ध मगधी में लिखा गया
जो कि सिक्सथ सेंचुरी एडी में गुजरात की एक जगह वल्लभी में कंपाइल हुआ इसके कारण प्राकृत लैंग्वेज की ग्रोथ होने लगी
प्राकृत लैंग्वेज से निकलकर कई रीजनल लैंग्वेजेस डिवेलप होने लगी जैसे शौरसेनी जिससे मराठी लैंग्वेज डिवेलप हुई शुरुआती
जनाज ने कुछ इंपॉर्टेंट वर्क्स अपभ्रंश लैंग्वेज में लिखे और इसकी फर्स्ट ग्रामर को भी कंपाइल किया अर्ली मिडिवल एरा में
जनाज ने संस्कृत में भी कई टेक्स्ट लिखे और आखिर में देखें तो कन्नाडा लैंग्वेज की ग्रोथ में भी इनका कंट्रीब्यूशन रहा आर्ट
एंड आर्किटेक्चर में भी जैनिज्म का योगदान रहा जैन आर्किटेक्चर शुरुआती दौर में बुद्धिस्ट और हिंदू आर्किटेक्चर के साथ ही
डिवेलप हुआ बाद की सेंचुरी में यह अपनी अलग पहचान बना पाया कई टेंपल्स को बिल्ड किया स्पेशली इन वेस्टर्न इंडिया उदयगिरी
और खांडा गिरी केव्स उड़ीसा जैना आर्किटेक्चर का अच्छा एग्जांपल है जिन्हें 193 से 170 बीसी में किंग खारवेल ने जैन
मंक्त शवर स्टैचू को तो आप अच्छे से जानते ही हैं जो कि वर्ल्ड की टॉलेस्ट मोनोलिथ स्टैचू है 11 से 13th सेंचुरी के बीच बने
दिलवाड़ा टेंपल्स राजस्थान में हमें तीर्थंकरस पर डेडिकेटेड कावड मार्बल्स देखने को मिलते हैं जैन आर्किटेक्चर का
डिटेल डिस्कशन हम अलग वीडियो में करेंगे दोस्तों एक नजर इस पर भी डालते हैं कि जैनिज्म डिक्लाइन कैसे हुआ यानी मासस को
अट्रैक्ट क्यों नहीं कर पाया इसके कई कारण रहे आइए जानते हैं डिक्लाइन ऑफ जैनिज्म पहला यह कि
जैनिज्म ने ब्राह्मण रिलीजन का फियर्स अपोजिशन किया जिसके चलते ब्राह्मण ने इसका बहिष्कार किया दूसरा कारण था रिगर
प्रिंसिपल्स जो कि बहुत ही स्ट्रिक्ट थे नॉन वायलेंस के एक्सट्रीम प्रिंसिपल के चलते एग्रीकल्चर भी प्रोहिबिटेड था इसलिए
एग्रेरियन लोग यानी मासस इसको एंब्रेस नहीं कर पाए फास्टिंग रिनंसीएशन यानी त्याग तपस्वी जीवन जैसे हार्ड प्रिंसिपल्स
जनरल हाउस होल्डर फॉलो नहीं कर सकता था तीसरा जो कि सबसे मेन कारण हो सकता है वह यह था कि जैनिज्म को कभी पॉलिटिकल पेटन ज
नहीं मिला जिस तरह से कई रूलरसोंग्स हुए जैनिज्म ऐसे कोई रूलर को अट्रैक्ट नहीं कर पाया फाइनली जैनिज्म के संघ संगठन
का ऑर्गेनाइजेशनल अरेंजमेंट मोनार्किक था इसके साथ ही जेनिम का दो सेक्ट्स में डिवाइड होना भी इसके डिक्लाइन का कारण बना
कंक्लूजन तो दोस्तों हमने देखा कि किस तरह जैनिज्म कई तरह की पॉलिटिकल सोशल और इकोनॉमिक कंडीशंस के कारण एक सेक्ट के रूप
में उभर कर आया और अल्टीमेटली एक रिलीजन में कन्वर्ट हो गया महावीर जैसे महान तीर्थंकरों के स्ट्रांग आइडियल पर बेस्ड
होने के कारण माइनर पॉपुलेशन होने के बावजूद जैनिज्म इंडियन हिस्ट्री के हर एरा को सरवाइव करता हुआ आज भी इंडिया का
इंपॉर्टेंट रिलीजन है
Heads up!
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