Overview of European Trading Companies in India
Introduction
- The video discusses the arrival of European trading companies in India, focusing on the Portuguese, Dutch, English, Danish, and French.
- It examines the historical context and conditions that prompted these companies to seek trade opportunities in India.
Why European Companies Came to India
- India had established trade relations with Europe, known for its cotton, silk, textiles, and spices.
- The fall of Constantinople in 1453 led to the search for new trade routes, as the Ottoman Empire controlled traditional routes. This search for new routes is also reflected in the broader context of Exploring Vasco da Gama's Impact on Indian Trade and Portuguese Colonialism.
- European nations sought to break the monopoly of Arab and Venetian merchants.
The Portuguese Arrival
- Vasco da Gama reached India in 1498, establishing trade links and setting up a trading factory in Calicut.
- The Portuguese implemented a 'Blue Water Policy' to control trade routes and established military dominance.
- Key figures included Francisco de Almeida and Afonso de Albuquerque, who expanded Portuguese influence in India.
The Dutch East India Company
- Established in 1602, the Dutch East India Company aimed to break the Portuguese monopoly.
- They set up factories in various locations, including Masulipatnam and Surat.
- The decline of Dutch power began after conflicts with the English in the 18th century, which parallels the themes discussed in Exploring America's Colonial History: The British Atlantic World (1660-1750).
The English East India Company
- Founded in 1599, the English East India Company gained a royal charter in 1600, granting them trading monopolies.
- They established factories in Surat, Madras, and Bengal, gradually increasing their power. This expansion is crucial to understanding the Development of British Colonies in North America as well.
- The company played a crucial role in the establishment of British colonial rule in India.
Other European Companies
- The Danish East India Company was established in 1616 but struggled to maintain a strong presence.
- The French East India Company, founded in 1664, established factories in Surat and Pondicherry but faced competition from the English.
Conclusion
- The video concludes by summarizing the competitive dynamics among European trading companies in India and their impact on trade practices and colonialism.
- It sets the stage for future discussions on the rise of the English East India Company and its transformation into a colonial power, which can be further explored in the context of State-Building in Dar al-Islam: Understanding the Spread of Islam.
[संगीत] स्टडी आईक्यू आईएस अब तैयारी हुई अफोर्डेबल
एडेंट ऑफ यूरोपियन इन इंडिया वेलकम टू स्टडी आईक्यू मेरा नाम है आदेश
सिंह दोस्तों यह तो हम सभी जानते हैं कि ब्रिटिशर्स एक ट्रेडिंग कंपनी की तरह इंडिया आते हैं और अल्टीमेटली एक पॉलिटिकल
पावर बनकर अपना एंपायर बबलिश करते हैं लेकिन ब्रिटिशर्स के अलावा और भी कुछ यूरोपियन कंपनीज ट्रेड करने के लिए इंडिया
आती हैं पर उनके बारे में बात करने से पहले हम यह जानेंगे कि ऐसी क्या कंडीशंस थी कि यूरोपियन कंपनीज ने इंडिया का रुख
किया व्हाई डिड यूरोपियन कंपनीज कम टू इंडिया दोस्तों एंट टाइम से ही इंडिया और यूरोप के अच्छे ट्रेड रिलेशंस थे इंडिया
के कॉटन सिल्क टेक्सटाइल्स और स्पाइसेसफर रहती थी मिडिल एजेस में इस ट्रेड के एशियन पार्ट को अरब मर्चेंट्स और
मेडिटरेनियन और यूरोपियन पार्ट को इटालियंस डील करते थे क्योंकि अभी तक केप ऑफ गुड होप वाला
रूट डिस्कवर नहीं हुआ था तो ट्रेड कांस्टेंटिनॉपल यानी प्रेजेंट डे इस्तांबुल होकर किया जाता था लेकिन जब
ऑटोमन टर्क एशिया माइनर पर कंट्रोल एस्टेब्लिश करते हैं और 1453 में कांस्टेंटिनॉपल को कैप्चर कर लिया जाता है
तब ईस्ट और वेस्ट के बीच के ओल्ड ट्रेड रूट भी इनके कंट्रोल में आ जाते हैं उसके अलावा वेनिस और जेनोवा के मर्चेंट्स
कांस्टेंटिनॉपल के पास लोकेटेड होने का फायदा उठाकर यूरोप और एशिया के बीच ट्रेड पर अपनी मोनोपोली एस्टेब्लिश कर लेते हैं
और वह किसी नए यूरोपियन नेशन स्टेट को इसमें शेयर नहीं देना चाहते थे नतीजतन वेस्ट यूरोपियन स्टेट्स और मर्चेंट्स नए
और सेफ ट्रेड रूट्स को सर्च करते हैं वह अरब और विनिस की मोनोपोली को तोड़ना टर्किश हॉस्टलित
और ईस्ट के साथ डायरेक्ट ट्रेड रिलेशंस एस्टेब्लिश करना चाहते थे इसमें सबसे पहले स्टेप्स लेने वाले थे
पोर्च अगल और स्पेन यहां की गवर्नमेंट्स मर्चेंट्स की सी वॉयस को स्पंस करती हैं साथ ही साइंटिफिक डिस्कवरीज जैसे कि मैरिन
कंपस और लॉन्ग डिस्टेंस शिप्स का इन्वेंशन भी इसमें हेल्प करता है इन्हीं एफर्ट्स की वजह से 1492 में स्पेन के क्रिस्टोफर
कोलंबस वॉयज पर निकलते हैं पर वह इंडिया पहुंचने की जगह अमेरिका पहुंच जाते हैं फाइनली 1498 में पोर्च के वास्को ड गामा
यूरोप से इंडिया पहुंचने के लिए एक नए सी रूट बाय केप ऑफ गुड होप की डिस्कवरी करते हैं तो चलिए डिटेल में जानते हैं इनके
बारे में पोर्तुगीज पोर्तुगीज सेलर वास्को ड गामा 20 मई 1498
को साउथ वेस्ट इंडिया के एक इंपॉर्टेंट सीपोर्ट कैलिक पहुंचते हैं किंग जमोरिन जो कैलिक के लोकल रू रूलर थे उनका स्वागत
करते हैं और ट्रेड को प्रमोट करने के लिए उन्हें कुछ प्रिविलेजेस भी ग्रांट करते हैं ऐसा इसलिए क्योंकि ट्रेड लेवी लोकल
रूलर के लिए इनकम का एक इंपॉर्टेंट सोर्स था इंडिया में ती महीने रहने के बाद वास्को ड गामा एक रिच कार्गो के साथ यूरोप
वापस लौट जाते हैं इस कार्गो को वह यूरोप की मार्केट में बहुत हाई रेट पर सेल करते हैं कहा जाता है कि उनकी पूरी यात्रा की
कॉस्ट का 60 टाइम्स रिटर्न उन्हें मिलता है इस सेल से वास्को डा गामा 1501 एडी में फिर से इंडिया आते हैं वह कननोर में एक
ट्रेडिंग फैक्ट्री सेटअप करते हैं यहां से इंडिया और पोर्तुगीज ट्रेड लिंक्स की शुरुआत होती है और कलकट कननोर और कोचन
इंपॉर्टेंट पोर्तुगीज ट्रेडिंग सेंटर्स बनकर उभरते हैं पोर्तुगीज की बढ़ती हुई पावर्स और उनकी अनफेयर ट्रेड डिमांड्स
जैसे कि अरेबियन सी में मोनोपोली की कोशिश उनके और लोकल रूलर जमोरिन के बीच होस्टिलिटीज बढ़ा देती हैं पोर्तुगीज
ट्रेडर्स डिमांड रखते हैं कि जमोरिन अपने एरिया में से मुस्लिम ट्रेडर्स को बाहर कर दे जमोरिन उनकी डिमांड को नहीं मानते और
दोनों के बीच इसी बात को लेकर एक मिलिट्री फेस ऑफ होता है जिसमें जमोरिन हार जाते हैं और पोर्तुगीज की मिलिट्री सुपीरियोर
एस्टेब्लिश हो जाती है इसके बाद से पोर्तुगीज पावर का राइज होना शुरू होता है आइए जानते हैं कैसे राइज ऑफ पोर्तुगीज
पावर इन इंडिया 1505 एडी में पहले पोर्तुगीज गवर्नर फ्रांसिस्को ड अलमीरा अपॉइंट्स करना इसलिए इनकी पॉलिसी को ब्लू
वाटर पॉलिसी भी बोला जाता है कार्टेज सिस्टम इनकी पॉलिसी का सबसे इंपॉर्टेंट फीचर था कार्टेज एक तरह का नेवल ट्रेड
लाइसेंस या पास होता था जो पोर्तुगीज कंपनी से बाकी सभी इंडियन और एशियन ट्रेडर्स को इंडियन ओशन में ट्रेड करने के
लिए लेना होता था साथ ही लंबे रूट्स के शिप्स जो पोर्तुगीज के कंट्रोल किए हुए पोर्ट्स पर रुकते हुए
स्ट्रेट ऑफ मलका की तरफ जाते थे उन्हें भी यह कार्टेज लेना होता था जिनके पास यह पास नहीं होता था उनकी शिप्स और कार्गो को
पोर्तुगीज अपने कब्जे में ले लेते थे इसे इंप्लीमेंट करने के लिए पोर्तुगीज अपने मिलिट्री शिप्स और कैनंस को ट्रेडिंग
शिप्स के साथ रखते थे 15509 एडी में अलमेडा को रिप्लेस करके अलफोंजो अल बकर की गवर्नर बनते हैं यह 1510 एडी में बीजापुर
के सुल्तान से गोवा को कैप्चर करते हैं इनको ही इंडिया में पोर्तुगीज पावर का रियल फाउंडर बोला जाता है अलबक की मलक्का
और सिलोन को भी कैप्चर कर लेते हैं और कैलिक में एक फोर्ट बनवाते हैं इनके बाद गवर्नर बनते हैं नीनो डकनिया
जो 1530 एडी में पोर्तुगीज की इंडियन कैपिटल को कोचीन से गोवा शिफ्ट करते हैं यह 1534 एडी में गुजरात के बहादुर शाह से
दू और बैसन एक्वायर कर लेते हैं और 1559 एडी में दमन को भी पोर्तुगीज का कोस्टल एरियाज पे कंट्रोल और उनकी सुपीरियर नेवल
पावर उनको बहुत हेल्प करती है और 16th सेंचुरी का एंड होते-होते पोर्तुगीज ना केवल गोवा दमन देव और सेल सेट पर कैप्चर
कर लेते हैं बल्कि इंडियन कोस्ट के अलोंग एक बड़े एरिया पर उनका कंट्रोल होता है लेकिन फिर 16th सेंचुरी के बाद से इनकी
पावर का डिक्लाइन शुरू होता है 1631 में पोर्तुगीज मुगल एंपरर शाहजहां के नोबल कासिम खान के हाथों हुगली खो देते हैं फिर
1661 में पोर्च के किंग बॉम्बे डाउी के रूप में इंग्लैंड के चार्ल्स द सेकंड को दे देते हैं 1739 में पोर्तुगीज से सेल
सेट और बसेन मराठा जीत लेते हैं इस तरह पोर्तुगीज की पावर काफी कम रह जाती है लेकिन इसके बाद भी गोवा दिय और दमन पर
1961 तक इनका कंट्रोल बना रहता है आइए पोर्तुगीज के कुछ इंपॉर्टेंट कंट्रीब्यूशंस को जानते हैं पोर्तुगीज
गिफ्ट्स टू इंडिया फेमस जेसूट सेंट फ्रांसिस्को जेवियर पोर्तुगीज गवर्नर अलफोंजो ड सोजा
के साथ 1542 में इंडिया आते हैं इन्हें आज भी इंडिया के कैथोलिक क्रिश्चियंस बहुत मानते हैं टोबैको टोमेटो पोटेटो और चिलीज
का कल्ट वेशन भी पोर्तुगीज ने ही इंडिया में इंट्रोड्यूस किया था 1556 एडी में इन्होंने इंडिया का फर्स्ट प्रिंटिंग
प्रेस एस्टेब्लिश किया था गोवा में दोस्तों ये तो बात हुई इंडिया में ट्रेड करने के लिए आने वाली फर्स्ट यूरोपियन
पावर की आइए अब जानते हैं इनको फॉलो करने वाली नेक्स्ट ट्रेडिंग कंपनी यानी कि डच के बारे
में डच दोस्तों यूरोप के नेदर ंस देश में रहने वाले लोगों को डच कहा जाता है 20 मार्च
1602 को डच पार्लियामेंट ने एक चार्टर के द्वारा डच ईस्ट इंडिया कंपनी को एस्टेब्लिश किया था इस कंपनी को 21 सालों
तक इंडिया और ईस्ट के देशों के साथ ट्रेड इनवेजन और कॉंक्ड करने का राइट भी पार्लियामेंट ने दिया था यह इंडिया में
आकर पोर्तुगीज की मोनोपोली को खत्म करते हैं डच अपनी पहली फैक्ट्री 1605 में आंध्र प्रदेश के मसूली पटनम में बनाते हैं उसके
बाद और भी जगह अपनी फैक्ट्रीज को इस्टैब्लिशमेंट जैसे कि 1610 में पुलिकट 1616 में सूरत
1653 में चिनसुरा 1659 में पटना बालासौर नागापटनम कराईकाल कासिम बाजार और 1663 में कोचिन में इनका
हेड क्वार्टर तमिलनाडु के पुलिकट में था 177th सेंचुरी में इंडिया से होने वाले स्पाइस यानी मसालों के व्यापार पर डच अपनी
मोनोपोली टैब्लिक्स टाइल इल्स इंडिगो सिल्क ओपियम एटस का भी एक्सपोर्ट डच इंडिया से करते थे
इंग्लिश कंपनी के आने के बाद डच पावर का डिक्लाइन शुरू हो जाता है 1759 में सेन इयर्स वॉर के दौरान इंडिया के ईस्ट कोस्ट
पर इंग्लिश और डच कंपनीज के बीच बैटल ऑफ बेदरा होती है जिसमें डच को हार का सामना करना पड़ता है इस बैटल को बैटल ऑफ चिनसुरा
या बैटल ऑफ हुगली भी कहा जाता है फाइनली डच ईस्ट इंडिया कंपनी को से 1998 में लिक्विडेट कर दिया जाता है दोस्तों अब बात
करते हैं सबसे ज्यादा सफल ट्रेडिंग कंपनी की यानी कि इंग्लिश ईस्ट इंडिया कंपनी की अराइवल ऑफ इंग्लिश ईस्ट इंडिया
कंपनी पोर्तुगीज और डच ट्रेडर्स की सक्सेस से इंप्रेस होकर इंग्लैंड के मर्चेंट्स के मर्चेंट एडवेंचरर्स नाम के ग्रुप ने 1599
में इंग्लिश ईस्ट इंडिया कंपनी को एस्टेब्लिश किया था कंपनी का पूरा नाम द गवर्नर एंड कंपनी ऑफ मर्चेंट्स ऑफ
ट्रेडिंग इनटू द ईस्ट इंडीज था 31 दिसंबर 1600 को इंग्लैंड की क्वीन एलिजाबेथ द फ 15 सालों के लिए ईस्ट इंडिया कंपनी को
ईस्टर्न ट्रेड का चार्टर ग्रांट करती हैं जिसका मतलब यह था कि इस कंपनी को ईस्ट के साथ ट्रेड करने की मोनोपोली होगी इंग्लैंड
से और कोई भी कंपनी यहां ट्रेड नहीं कर सकेगी 1608 में कंपनी कैप्टन विलियम हॉकिंस को
मुगल एंपरर जहांगीर के दर बार में भेजती है उनका मकसद जहांगीर से रॉयल फरमान हासिल करना था जिससे वह सूरत में अपनी ट्रेडिंग
फैक्ट्री स्टैब्लेकॉइन प्रग्स के चलते हॉकिंस को कोई भी कंसेशन नहीं मिल पाता और उन्हें
1611 में जहांगीर के कोर्ट से वापस जाना पड़ता है अंग्रेज समझ जाते हैं कि पोर्तुगीज के रहते उनका ट्रेड करना
मुश्किल है इसलिए 1611 में सूरत के पास स्वाली होल में एक नेवल बैटल में पोर्तुगीज को अंग्रेज हरा देते हैं इससे
जहांगीर को भी अंग्रेजों की पावर का यकीन हो जाता है और फिर 1613 में जहांगीर उन्हें इंडिया के वेस्ट कोस्ट पर फैक्ट्री
इस्टैब्लिशमेंट सर थॉमस रो को जहांगीर के कोर्ट में भेजते हैं कंपनी के लिए और कंसेशन की डिमांड
लेकर रो अपनी बातों से जहांगीर को मना लेते हैं और वह कंपनी को रॉयल चार्टर ग्रांट करते हैं जिससे कंपनी को मुगल
टेरिटरी में कहीं भी व्यापार करने और फैक्ट्री स्टैब्स करने की आजादी मिल जाती है इसके बाद कंपनी इंडिया में अलग-अलग जगह
फैक्ट्रीज एस्टेब्लिश करती है जैसे कि मसूली पटनम आगरा अहमदाबाद उड़ीसा के बालासोर और हरिहरपुर एट्स में 1639 में
कंपनी को मद्रास की लीस मिलती और यहां फोर्ट सेंट जॉर्ज बनाया जाता है और 1668 में कंपनी को चार्ल्स द सेकंड
से बम्बे लीज पर मिल जाता है जो चार्ल्स द सेकंड को पोर्तुगीज से डाउी में मिला था जैसा कि हम पहले देख चुके हैं 1698 99 में
बंगाल के सूबेदार आजिम उ शन की परमिशन से सिर्फ 00 देने पर कंपनी को सतना गोविंदपुर और काली कता की जमींदारी मिल जाती है यहां
पर ही 1900 में फोर्ट विलियम की स्थापना होती है इसके बाद 1771 में मुगल एंपरर फारूक सियार फरमान जारी करके कंपनी को और
भी ज्यादा राइट्स दे देते हैं जैसे कि उन्हें सिर्फ 000 वार्षिक कर के बदले में बंगाल में ड्यूटी फ्री व्यापार करने का
अधिकार मिलता है कलका के आसपास की जमीन खरीदने की परमिशन भी दी जाती है इसके अलावा कंपनी द्वारा बम्बे में इशू किए गए
कॉइंस को पूरे मुगल राज्य में चलाने की अनुमति भी मिलती है इसलिए इस फरमान को कंपनी का मैग्ना काटा भी कहते हैं इसके
बाद कंपनी की पावर बढ़ती ही जाती है और फाइनली पहली बार बंगाल में कंपनी अपने एंपायर की शुरुआत करती है जिसके बारे में
हम अपनी नेक्स्ट वीडियो में डिटेल से डिस्कस करेंगे अब चलते हैं अगली यूरोपियन कंपनी की
तरफ डेंस डेनमार्क की ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना 1616 में हुई थी इस कंपनी ने 1620
में तमिलनाडु के ट्रैकवे बार और 1676 में बंगाल के सेरामपुर में अपनी फैक्ट्री इस्टैब्लिशमेंट
सेंटर और हेड क्वार्टर था लेकिन यह खुद को इंडिया में ज्यादा स्ट्रांग नहीं बना पाए और 1845 में अपनी सभी सेटलमेंट ब्रिटिश
कंपनी को बेचकर यहां से चले गए दोस्तों अब बात करते हैं इंडिया में सबसे लास्ट में आने वाली यूरोपियन कंपनी
की फ्रेंच फ्रेंच ईस्ट इंडिया कंपनी ला कैंपेनिया दास सेंस ताले को 1664 में कोलब
के द्वारा फॉर्म किया गया था जो फ्रांस के राजा लुई द 14th के मंत्री थे फ्रेंच कंपनी 1668 में सूरत में अपनी पहली
फैक्ट्री एस्टेब्लिश करती है उसके बाद 1669 में गोलकोंडा के सुल्तान से परमिशन लेकर यह अपनी दूसरी फैक्ट्री मसूली पटनम
में बनाते हैं 1673 में कंपनी के डायरेक्टर फ्रांसिस मार्टिन ने बाली कोंडापुर के सूबेदार शेर खान लोदी से पुटू
चरी नाम का एक गांव प्राप्त किया जो बाद में पॉन्डिचेरी के नाम से फेमस हुआ 1692 में बंगाल के मुगल सूबेदार
शाहिस्ता खान की अनुमति से फ्रेंच कंपनी ने चंद्रनगर में फैक्ट्री की स्थापना की उसके बाद फ्रेंच 1724 में मालाबार में
माहे को कैप्चर कर लेते हैं और 1739 में तमिलनाडु में करकल को 1724 में ही फ्रेंच ग गनर डुप्लेक्स इंडिया आते हैं और उनके
साथ ही शुरुआत होती है कहानी एंग्लो फ्रेंच वॉर्स की जिन्हें कर्नाटिक वॉर्स भी कहते हैं कर्नाटिक वॉज इंग्लिश और
फ्रेंच कंपनी के बीच हुए थे जिनके बारे में हम अलग वीडियो में डिटेल से चर्चा करेंगे कंक्लूजन
तो दोस्तों हमने देखा कि कैसे इंडिया और यूरोप के बीच होने वाले ट्रेड का फायदा उठाने के लिए अलग-अलग यूरोपियन कंपनीज
इंडिया आती हैं यह कंपनी जदा से ज्यादा फायदा लेने के लिए अनफेयर ट्रेड प्रैक्टिसेस जैसे कि मोनोपोली फोर्स का
इस्तेमाल नेवी का यूज करने में भी पीछे नहीं रहती इन सभी कंपनीज के बीच आपस में पावर के लिए स्ट्रगल चलता है जिसमें
फाइनली इंग्लिश कंपनी को सक्सेस मिलती है इंग्लिश ईस्ट इंडिया कंपनी कैसे एक ट्रेडिंग कंपनी से शुरू होकर इंडिया में
अपना एंपायर खड़ा करती है यह हम अपनी आने वाली वीडियोस में देखेंगे स्टडी आईक्यू आईएस अब तैयारी हुई
Heads up!
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