Introduction
- Overview of Vasco da Gama's discovery of the Cape Route in 1498.
- Introduction to the Malabar region, stretching from Kankon to Kanyakumari, now part of Kerala.
Historical Context
- Description of the small kingdoms in the Malabar region during Gama's arrival, particularly the Calicut kingdom ruled by Zamorin.
- The significance of the term "Zamorin" and its historical context.
Initial Interactions
- Gama's warm reception by Zamorin and permission to trade.
- The conflict with Arab traders who had a monopoly in the Arabian Sea.
Trade and Economic Impact
- Gama's successful trade trip and the profits made from selling goods in Europe.
- The influence of Gama's success on other Portuguese navigators, which can be further explored in the context of the broader Impact of the Transatlantic Slave Trade on Brazil's Contemporary Society.
Portuguese Government's Response
- Manuel I's declaration that all trade missions would be state enterprises.
- The appointment of Pedro Álvares Cabral and the establishment of the first factory in Calicut.
Conflicts and Tensions
- The rise of tensions between Portuguese and Arab traders, leading to violent clashes.
- Zamorin's attempts to mediate and the eventual conflict with Cabral.
Vasco da Gama's Return
- Gama's return in 1502 with a larger fleet and military forces.
- The strategic destruction of Arab ships and the resulting fear in Zamorin.
Establishment of Portuguese Settlements
- Gama's establishment of factories in Kannur, Cochin, and Calicut.
- The appointment of Francisco de Almeida as the first Portuguese Viceroy of India, a role that parallels the State-Building in Dar al-Islam: Understanding the Spread of Islam in terms of establishing governance in new territories.
Expansion of Portuguese Influence
- The policies of Almeida and subsequent Viceroys, including Afonso de Albuquerque and Nino de Cunha.
- The strategic importance of Goa and its capture in 1510, which can be contextualized within the Rise and Fall of Islamic Civilization in Spain: A Historical Journey through Al-Andalus, highlighting the shifts in power dynamics in colonial contexts.
Conclusion
- The establishment of Portuguese dominance in the Indian Ocean and the impact on local trade dynamics, which resonates with the themes discussed in The Columbian Exchange: Impact on Global History.
- The ongoing conflicts with local rulers and the eventual treaties formed with them.
हेलो फ्रेंड्स पिछली वीडियो में हम लोगों ने देखा कि 1498 में वास्कोडिगामा ने केप रूट की डिस्कवरी कर ली थी केप रूट को
डिस्कवर करके इंडिया के जिस रीजन में यह पहुंचे वह रीजन है मालाबार रीजन मालाबार रीजन बेसिकली इंडिया की वेस्टर्न
कोस्टलाइन को कहा जाता है जो कि कंकण से लेकर कन्याकुमारी तक स्ट्रेच्ड है देखा जाए तो यह एरिया रफल वह एरिया है जहां पर
आज की डेट में केरला स्टेट है और जिस समय वास्कोडिगामा यहां पर पहुंचे उस समय यहां पर छोटे-छोटे किंगडम हुआ करते थे यह
बेसिकली एंट चेरा एंपायर के 11 सक्सेशन स्टेट्स थे और इन 11 मेजर सक्सेशन स्टेट्स में से जिस किंगडम में वास्कोडिगामा
पहुंचे थे वह किंगडम था कलकट कलकट केरला में है और आज की डेट में हम इसे कोजी कोट के नाम से जानते हैं और उस समय यह एक
सॉवरेन हिंदू किंगडम हुआ करता था जिसको रूल कर रहे थे नेदू यरपपंद यरपपंद
कहा करते थे सामथी का मतलब होता है हेड ऑफ द हाउस और इसी वर्ड से बना जमोरिन तो बेसिकली वास्को डी गामा निदु रप्पू
स्वरूपम को सामुदी की बजाय जमोरिन कह के पुकार रहे थे और इसीलिए जनरली हर एक बुक में कैलिक के राजा का नाम जमोरिन ही लिखा
जाता है तो जब वास्कोडिगामा कैलिक पहुंचे तो जमोरिन ने उन्हें बहुत ही वार्मली रिसीव किया और अपने एरिया में ट्रेड करने
की परमिशन भी दे दी बट यहां पर सिर्फ एक ही प्रॉब्लम थी और प्रॉब्लम यह थी कि यह जो केप रूट है यह अरेबियन सी से पास होता
है और अरेबियन सी में उस समय अरब ट्रेडर्स की मोनोपोली हुआ करती थी तो पोर्तुगीज की इस एरिया में प्रेजेंस अरब ट्रेडर्स के
लिए एक थ्रेट बन गई थी और ओबवियस सी बात है कि वास्कोडिगामा भी अरब ट्रेडर्स को यहां पर पसंद नहीं कर रहे थे तो इसका मतलब
यह कि यह तो तय ही हो गया था कि वास्कोडिगामा और अरब ट्रेडर्स के बीच में कुछ ना कुछ कॉन्फ्लेट्स तो होंगे ही लेकिन
कहीं ना कहीं अरब ट्रेडर्स का यहां पर पलड़ा भारी था क्योंकि अरब ट्रेडर्स की पहले से यहां पर मोनोपोली थी और जमोरिन की
नजर में भी अरब ट्रेडर्स की काफी ज्यादा वैल्यू थी और उधर वास्को डी गामा एक पोर्तुगीज थे और पोर्तुगीज रिलीजस
फेनेटिक्स हुआ करते थे जो कि मुसलमानों को अपना कट्टर दुश्मन समझते थे तो इसका मतलब यह कि पोर्तुगीज और अरब ट्रेडर्स के बीच
में कमर्शियल इंटरेस्ट का तो क्लैश था ही था साथ ही साथ रिलीजियस इंटरेस्ट का भी क्लैश था बट इसके बावजूद वास्को डिगामा और
अरब ट्रेडर्स के बीच में कोई मेजर कॉन्फ्लेट नहीं हुआ इसका रीजन यह था कि वास्को डिगामा यहां पर सिर्फ 3 महीने रुके
उन्होंने ट्रेड के पर्सपेक्टिव से यहां से बहुत सारी चीजें खरीदी उन्हें अपने जहाज में भरा और वापस पोर्च चले गए पोर्ग
पहुंचकर जब उन्होंने इन चीजों को यूरोप की मार्केट में बेचा तो वह हैरान रह गए क्योंकि उनकी ट्रिप पर उनका जितना भी
खर्चा हुआ था उस पूरे खर्चे का 60 टाइम्स उनको यहां पर इन चीजों को बेचने से मिल गया यह एक बहुत बड़ी खबर थी और कहा जा
सकता है कि यह उस समय की सबसे बड़ी खबर थी वास्को डी गामा की सक्सेस को देखकर दूसरे पोर्तुगीज नेविगेटर्स का भी मन हुआ कि वह
भी इंडिया जाएं और वहां से सामान खरीदकर यहां पर लाएं और बहुत ही हाई मुनाफे पर उनको बेचे लेकिन पोर्तुगीज रूलर मैनुअल
फर्स्ट जिन्होंने 1495 से लेकर 1521 तक रूल किया उन्होंने इस बात को साफ तौर पर कह दिया कि पोर्तुगीज के जितने भी ट्रेड
मिशंस हैं वह एक स्टेट एंटरप्राइज है इसका मतलब यह हुआ कि पोर्तुगीज के जितने भी ट्रेड मिशंस हैं वह सिर्फ सरकार कंडक्ट
करेगी वह सरकारी काम है यह काम सरकार का था और सरकार ही डिसाइड करेगी कि नेक्स्ट नेबल मिशन को लेकर इंडिया कौन जाएगा और
फाइनली 1500 एडी में डिसाइड किया गया कि पेड्रो अल्वारेज कैब्राल पहले से भी बड़े फ्लीट को लेकर इंडिया जाएंगे बड़ा फ्लीट
मतलब ज्यादा से ज्यादा जहाज को लेकर तो पेड्रो अल्वारेज कैब्राल जब इंडिया पहुंचे तो वो भी वापस से जमोरिन की टेरिटरी में
पहुंचे और वहां पर उन्होंने जमोरिन की परमिशन से कलकट में एक पहली फैक्ट्री लगा ली फैक्ट्री का मतलब बेसिकली एक गोदाम है
जहां पर जिन चीजों में वो ट्रेड करते हैं उन सब चीजों को खरीद के अपने पास रख सकते थे और क्योंकि हम लोगों ने कहा कि पेड्रो
अल्वारेस कैब्राल यहां पर पहले से भी बड़े फ्लीट के साथ आए थे और उन्होंने ने यहां पर अपनी फैक्ट्री भी जमा ली इस चीज से अरब
ट्रेडर्स को अब प्रॉब्लम होनी शुरू हो गई थी उन्हें लगने लगा था कि पोर्तुगीज अपने पैर यहां पर जमाने लगे हैं और इसीलिए
पोर्तुगीज और अरब ट्रेडर्स के बीच में झड़पें होनी शुरू हो गई और यह जो वायलेंट क्लैशेस हैं यह दोनों तरफ से हो रहे थे
अरब ट्रेडर्स इनकी फैक्ट्री पर हमला कर रहे थे और पोर्तुगीज अरब ट्रेडर्स की शिप्स को बर्बाद कर रहे थे और यहां पर
काफी मारकाट मचने शुरू हो गई थी जमोरिन को यह बात बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं हुई कि पोर्तुगीज यहां पर आकर दंगे कर रहे हैं
उन्हो उन्होंने पोर्तुगीज को वान किया कि आप यहां पर किसी भी तरह की कोई दंगे नहीं करोगे और अगर करना है तो ट्रेड करो लेकिन
शांति से करो जमोरिन का एटीट्यूड देखकर पेड्रो अल्वारेज कैब्राल काफी ज्यादा हैरान था और उसे लगने लगा था कि जमोरिन
अरब ट्रेडर्स के साथ काफी ज्यादा पार्शल है और इसी इंसीडेंट ने पोर्तुगीज को जमोरिन के अगेंस्ट भी कर दिया कामरान ने
जमोरिन के खिलाफ भी हथियार उठा लिए लेकिन अरब ट्रेडर्स और जमोरिन ने मिलकर काबरा को हरा दिया और इसी के साथ पेड्रो एलवारेज
कैब्राल का इंडिया में कार्यकाल समाप्त हो गया और 1501 में वह वापस पोर्च चला गया इसके अगले साल 1501 में वास्को डी गामा
पहले से भी बड़े फ्लीट के साथ भारत आ पहुंचा लेकिन इस बार वह अपने साथ सिर्फ सेलर्स नहीं बल्कि बहुत सारे नेवल ट्रूप्स
भी लेकर आया था और इससे पहले कि वह कैलिक पहुंचता उसकी खबर जमोरिन तक पहुंच चुकी थी एक्चुअली बात यह है कि वास्कोडिगामा पूरी
प्लानिंग के साथ आया था अरेबियन सी में उसको जितने भी शिप्स दिखे थे उन सबको उसने डिस्ट्रॉय कर दिया था इनफैक्ट जो शिप हज
के लिए जा रहा था उस पर भी उसने अपना कहर बरपा दिया था और इन खबरों को सुनकर जमोरिन का तो दिल से बैठ गया था उसे यकीन ही नहीं
हो रहा था कि यह वही वास्कोडिगामा है जिसका उसने इतना वर्म वेलकम किया था लेकिन अब उसके पास करने के लिए बचा भी क्या था
कहीं ना कहीं उसके मन में डर तो था उसने वापस से वास्कोडिगामा को वेलकम किया और वास्कोडिगामा भी जानता था कि इस समय
जमोरिन डरा हुआ है वास्को डिगामा ने जमोरिन को कहा कि अपने एरिया से जितने भी मुस्लिम्स हैं उन सब को बाहर निकालो लेकिन
यह करना जमोरिन के लिए पॉसिबल नहीं था उसने साफ इंकार कर दिया इस चीज से वास्कोडिगामा और ज्यादा नाराज हो गया और
शुरुआत हो गई वास्को डिगामा और जमोरिन के बीच में एक तनाव की वास्को डिगामा ने कलकट में ही रहकर फोर्सफुली आसपास के एरियाज
में फैक्ट्रीज बनाना शुरू कर दिया उसने कन्नूर कोचीन और कलकट इन तीनों एरियाज में फैक्ट्रीज बनाई और ना सिर्फ फैक्ट्रीज
बनाई उनके चारों तरफ किलाबंदी भी की और इस तरह भारत में ये तीन प जगी सेटलमेंट बनकर तैयार हो गए और इसके बाद 1503 में वास्को
डी गामा वापस अपने देश पोर्तुगीज के राजा मैनुअल फर्स्ट को जब पता चला कि भारत के कन्नूर कलकट और कोचीन में पोर्तुगीज
सेटलमेंट बन चुके हैं तो उन्होंने इस चीज को रियलाइफ किया कि भारत की इन पोर्तुगीज सेटलमेंट के लिए एक रेजिडेंट
एडमिनिस्ट्रेटर को अपॉइंट्स गवर्नमेंट की अप्रोच यह थी कि हर साल भारत में एक नेवल मिशन भेजा जाए लेकिन
अब यह डिसाइड किया गया कि भारत में ही एक रेजिडेंट एडमिनिस्ट्रेटर को अपॉइंटमेंट होगा थ्री इयर्स का और इस काम
के लिए चुना गया फ्रांसिस्को डी अल मिडा को इन्हें रिस्पांसिबिलिटी दी गई कि आप भारत में रहकर पोर्तुगीज की पोजीशन को
कंसोलिडेट करोगे और साथ ही साथ मुस्लिम ट्रेड को वहां पर खत्म करोगे इस काम के लिए फ्रांसिस्को डी एल मिडा को वाइस रॉय
ऑफ इंडिया की पोजीशन दी गई तो बेसिकली रेजिडेंट एडमिनिस्ट्रेटर की जो पोजीशन थी उसको वाइस रॉय ऑफ इंडिया की पोजीशन भी कहा
जा सकता है इस तरह फ्रांसिस्को डी अल मडा पहले पोर्तुगीज वाइस रॉय ऑफ इंडिया बने हैं इनका हेड क्वार्टर था कोचीन में और यह
भारत में 1505 से लेकर 1509 तक रहे इनके बाद जो नेक्स्ट पोर्तुगीज वाइस रॉय ऑफ इंडिया थे वह थे अलफोंजो डी अल बकर की अल
बकर की इंडिया में 1509 से लेकर 1515 तक रहे इनके बाद जो नेक्स्ट इंपॉर्टेंट पोर्तुगीज वाइस रॉय ऑफ इंडिया थे वो थे
नीनो डी कुन्हा नीनो द कुन्हा इंडिया में 1529 से लेकर 15 38 तक रहे आज की इस वीडियो में हम लोग इन तीनों ही पोर्तुगीज
वाइस रॉय ऑफ इंडिया को डिटेल में कवर करेंगे चलिए शुरुआत करते हैं फ्रांसिस्को डी अलमंडा से फ्रांसिस्को डी अलमेडा एक
बहुत बड़े विजन के साथ भारत में आए थे इनका विजन था पोर्तुगीज को पूरे के पूरे इंडियन ओशियन का मास्टर बनाना और इस पूरे
रीजन में यह कार्टेज सिस्टम को लागू कर देना चाहते थे जिस सिस्टम को कहा जाता है ब्लू वाटर पॉलिसी अगर यह पॉलिसी
इंप्लीमेंट होती है तो इस पॉलिसी का मतलब यह होगा कि इंडियन ओशियन में अगर कोई भी शिप ट्रेड करने के लिए निकली है तो ऐसा
करने से पहले उन्हें पोर्तुगीज से लाइसेंस लेना होगा यानी इंडियन ओशन में ट्रेड करने से पहले उन्हें पोर्तुगीज की परमिशन और
उनसे लाइसेंस लेना होगा और ओबवियस सी बात है कि अगर आप इस तरह की पॉलिसी को यहां पर इंप्लीमेंट करना चाहते हो और सोच रहे हो
कि इस पूरे रीजन के आप मास्टर बन जाओगे तो यहां पर जो एजिस्टिफाई अलावा कैलिक के रूलर जमोरिन को
भी इससे प्रॉब्लम थी क्योंकि उन्हीं के एरिया में यह ट्रेड हो रहा था इसके अलावा मैप को अगर आप ध्यान से देखेंगे तो आप देख
सकते हैं कि रेड सी के थ्रू अरेबियन सी और इंडिया के साथ ट्रेड इजिप्ट भी कर रहे थे तो इजिप्ट के जो मामलू सुल्तान थे उनको भी
पोर्तुगीज के इन इरादों से प्रॉब्लम थी अब सोच के देखिए कि और किसको प्रॉब्लम हो सकती थी प्रॉब्लम गुजरात को भी हो सकती थी
और उस समय गुजरात में एक बहुत ही पावरफुल रूलर हुआ करते थे जिनका नाम था महमूद बेगड़ा आपको याद होगा कि हम लोगों ने
मेडिकल हिस्ट्री के कोर्स में इनके बारे में डिटेल में बात की थी तो अब यह जो चार प्लेयर्स हैं इनका मुकाबला पोर्तुगीज के
साथ होना तय था और इंटरेस्टिंग बात यह है कि इजिप्ट के मामलू सुल्तान और गुजरात के महमूद बेगड़ा यह दोनों मिलकर पोर्तुगीज का
सामना करने के लिए तैयार थे इसके अलावा पोर्तुगीज को अरब ट्रेडर्स और जमोरिन का भी सामना करना था पोर्तुगीज ने बहुत ही
आसानी के साथ अरब ट्रेडर्स और जमोरिन को हरा दिया अब बचे इजिप्ट के मामलू सुल्तान और गुजरात के महमूद बेगड़ा इन दोनों ने
मिला मिलकर पोर्तुगीज के ऊपर हमला कर दिया यह बैटल हुआ था दू के पास में 1507 के इस बैटल में पोर्तुगीज की हार हुई और अलमेडा
का बेटा जो कि एक नेवल कडिट था वह भी इस बैटल में मारा गया लेकिन अगले ही साल 1508 में अलमेडा ने इसका बदला ले लिया उसने
इजिप्ट और गुजरात की कंबाइंड आर्मी को एक साथ हरा दिया पोर्तुगीज के लिए एक बहुत बड़ी जीत थी लेकिन इसी के साथ अलमेडा का
कार्यकाल इंडिया में समाप्त हुआ और वह पोर्च गल के लिए रवाना हो गए इन की जगा ली अल बकर की ने जो 1509 में नेक्स्ट
पोर्तुगीज वाइस रॉय ऑफ इंडिया बने अल बकर की चाहते थे कि पूरे के पूरे ओरिएंटल कॉमर्स को पोर्तुगीज डोमिनेट करें कहने का
मतलब यह कि पूरे ईस्ट और फार ईस्ट यानी इंडिया चाइना मलक्का इंडोनेशिया यहां पर जो भी ट्रेड हो रहा है उसके ऊपर पोर्तुगीज
की डोमिनेंस हो अगर आप इस चीज को गहराई से समझने की कोशिश करो तो यह सिर्फ इतना ही कहना चाह रहे हैं कि पूरे के पूरे इंडियन
ओशियन के ऊपर जो ट्रेड हो रहा है उसके ऊपर पोर्तुगीज की डोमिनेंस होनी चाहिए तो अगर हम यह समझ पा रहे हैं तो आप यह भी समझ पा
रहे होंगे कि यह तो बिल्कुल एगजैक्टली वही पॉलिसी है जो कि अलमेडा की भी थी अलमेडा भी तो यही चाहते थे तो फिर डिफरेंस क्या
है सिर्फ वर्ड्स का डिफरेंस है क्या नहीं यह डिफरेंस सिर्फ वर्ड्स का डिफरेंस नहीं है अलबक की की राइटिंग से हमें काफी कुछ
डिटेल्स मिलती हैं जिससे हमें पता चलता है कि इनकी पॉलिसी अलमेडा की पॉलिसी से डिफरेंट थी इन्होंने अपनी राइटिंग्स में
लिखा है कि अगर हम लोग अपना डोमिनियन सिर्फ नेवी के दम पर बनाए ंगे तो वह ज्यादा लंबा नहीं चल पाएगा क्योंकि ऐसे
में ना तो नेटिव रूलरसोंग्स हैं ये बेसिकली कोई फैक्ट्री वाले फोर्ट्स
नहीं है यहां पर बात हो रही है एक पूरे के पूरे रीजन को अपने कंट्रोल में लेने की और उसको फोर्टिफाइंग और इस मुहीम में इनकी
पहली पसंद थी गोवा इस पॉलिसी को इंप्लीमेंट करने के लिए गोवा इनके लिए एक बहुत ही स्ट्रेटजिकली इंपॉर्टेंट लोकेशन
थी और वह इसलिए क्योंकि गोवा एक नेचुरल हार्बर और फोर्ट तो है ही इसके अलावा पोर्तुगीज यहां पर रहकर पूरे के पूरे
मालाबार ट्रेड को कमांड कर सकते थे और साथ ही साथ क्योंकि यह एरिया डेकन रीजन से भी जुड़ा हुआ है तो डेकन
रूलरसोंग्स गुजरात सीपोर्ट से होता था और यह रीजन गुजरात सीपोर्ट के काफी पास था तो यह भी एक बहुत बड़ी वजह है जिसकी वजह से
पोर्तुगीज को लगा कि गोवा को अपने कंट्रोल में लेना चाहिए लेकिन उस समय गोवा के ऊपर बीजापुर के रूलर आदिल शाह का कंट्रोल हुआ
करता था अब यह जो बीजापुर है यह बेसिकली बमनी किंगडम का पार्ट हुआ करता था और बमनी किंगडम जब डिसइंटीग्रेट हुआ था तो उससे
टोटल पांच किंगडम बने थे बीजापुर उनमें से ही एक किंगडम था भामिनी किंगडम विजयनगर एंपायर और उनके डि इंटीग्रेशन को हम लोग
ऑलरेडी डिटेल में कवर कर चुके हैं अपने मेडिकल हिस्ट्री कोर्स में इसीलिए अभी हम यहां पर सिर्फ इस चीज के ऊपर फोकस करेंगे
कि गोवा जो है वह बीजापुर के आदिल शाह के कंट्रोल में था और पोर्तुगीज गोवा की स्ट्रेटेजिक इंपॉर्टेंस को समझते थे और
इसीलिए उन्होंने गोवा को कैप्चर करने की कोशिश की उन्होंने गोवा को बहुत ही आसानी से 1510 में कैप्चर कर लिया और उसके बाद
पोर्तुगीज ने गोवा को अपना नेबल बेस बना लिया और इसीलिए हम कह सकते हैं कि अलेक्जेंडर के इनवेजन के बाद अब यह पहला
मौका था जब यूरोपिय ने इंडिया की कोई टेरिटरी ऑक्यूपाइड बनी गोवा गोवा को 1510 में पोर्तुगीज ने
कैप्चर कर लिया और इसके बाद यहां पर बहुत सारे चेंजेज किए गए अलबक की ने यहां पर दो बहुत बड़े हार्बर्स बनवाए एक पाना जीी में
और दूसरा मरमू गांव में और क्योंकि अब गोवा के ऊपर पोर्तुगीज एडमिनिस्ट्रेशन हो गया था तो वह यहां पर काफी और भी चेंजेज
कर रहे थे उन्होंने सती प्रथा को भी यहां पे अबॉलिश किया इसी के साथ-साथ उनके साथ आए पोर्तुगीज को उन्होंने ने इनकरेज किया
कि वह यहां के लोकल्स के साथ शादी करें इसके पीछे का लॉजिक यह था कि इस एरिया में पोर्तुगीज की जनसंख्या को बढ़ाना है वह
चाहते थे कि ऐसा लगना चाहिए कि यह पूरा का पूरा एरिया एक पोर्चस सेटलमेंट है और इसीलिए उन्होंने यहां की ऑफिशियल लैंग्वेज
भी पोर्तुगीज कर दी यानी सारे सरकारी कामकाज यहां पे पोर्तुगीज लैंग्वेज में होने वाले थे और इसीलिए उन्होंने यहां पर
काफी सारे स्कूल्स भी खोले ताकि लोकल्स को यह लैंग्वेज सिखाई जा सके इसके अलावा उन्होंने गोवा में बिल्डिंग्स रोड्स और
काफी सारे इरिगेशन वर्क्स भी किए इसके अलावा कई सारी न्यू क्रॉप्स जैसे कि टोबैको कैशु नट और कोकोनट की नई वैरायटी
को भी इन्होंने यहां पर इंट्रोड्यूस किया तो चलिए मैप के थ्रू समझते हैं कि अल बकर की ने अपनी पॉलिसी को आखिर किस तरह से
इंप्लीमेंट किया देखिए हम लोगों ने देखा कि सबसे पहले इन्होंने गोवा को अपने कंट्रोल में लिया इसके बाद इन्होंने अपना
नेक्स्ट फोर्ट बनाया कोलंबो में जो कि श्रीलंका में है उसके बाद यह पहुंचे अचिन यानी सुमात्रा जो कि इंडोनेशिया में है और
साथ ही साथ इन्होंने मलक्का पोर्ट को भी अपने कंट्रोल में ले लिया इसका मतलब यह है कि इंडोचाइना ट्रेड रूट का जो एंट्री
पॉइंट है वह भी इन्होंने अपने कंट्रोल में ले लिया और साथ ही साथ इंडो चाइना ट्रेड रूट का जो एग्जिट पॉइंट है वो भी इन्होंने
कंट्रोल में ले लिया यानी इंडिया और चाइना के बीच में अब जो भी ट्रेड होगा उसके ऊपर इनका कंट्रोल होगा इसके अलावा इन्होंने
पर्शियन गल्फ के माउथ पर ओमरू ज आइलैंड को अपने कंट्रोल में ले लिया कहने का मतलब यह कि पर्शियन गल्फ की जो एंट्री है अब उसके
ऊपर इनका कमांड हो गया यानी पर्शियन गल्फ में जो भी ट्रेड होगा उसके ऊपर इनका कंट्रोल होगा इसके अलावा आइलैंड ऑफ सकोरा
को भी इन्होंने अपने कंट्रोल में ले लिया यह वह जगह है जहां पर रेड सी से आने वाला ट्रैफिक अरेबियन सी में आकर मिलता है तो
अगर आपका आइलैंड ऑफ सकोरा के ऊपर कंट्रोल है तो इसका मतलब यह है कि रेड सी और आसपास के पूरे रीजन में जो भी ट्रेड हो रहा है
उसके ऊपर भी आपका कंट्रोल हो गया इसी के साथ-साथ अफ्रीका के ईस्ट कोस्ट पर भी इन्होंने काफी सारे रीजंस को अपने कंट्रोल
में ले लिया था और इस तरह हम कह सकते हैं कि पूरे के पूरे इंडियन ओशियन के ऊपर इन्होंने अपना डोमिनेंस एस्टेब्लिश कर
लिया था इसका मतलब यह कि इंडियन ट्रेड से अरब्स को इन्होंने लात मार के भगा दिया और जैसे कि हमने देखा कि ओमरू उस गोवा और
मलक्का के ऊपर इनका कंट्रोल था इसका मतलब यह कि पोर्तुगीज का पूरे के पूरे इंडियन ओशियन के ऊपर कंट्रोल था और इस पूरे के
पूरे इंडियन ओशियन में इन्होंने एक परमिट सिस्टम लागू कर दिया था यानी इंडियन ओशन में अगर किसी भी शिप को सेल करना है तो
ऐसा करने से पहले उन्हें पोर्तुगीज से परमिट लेना होगा तो आप देख सकते हैं कि अल बकर की जिस समय पोर्तुगीज वाइस रॉय ऑफ
इंडिया थे उस समय ऐसे कई सारे डेवलपमेंट्स हुए जिसकी वजह से पोर्तुगीज की पावर ईस्ट में बहुत तेजी से बढ़ी और इसीलिए अल बकर
की को रियल फाउंडर ऑफ पोर्तुगीज पावर इन ईस्ट कहा जाता है तो यह थी डिटेल्स अल बकर की की जो पोर्तुगीज वाइस रॉय ऑफ इंडिया
रहे 1509 से लेकर 1515 तक इसके बाद जो नेक्स्ट इंपॉर्टेंट पोर्तुगीज वाइस रॉय ऑफ इंडिया थे वो थे नीनो द कुहा जो यहां पर
पोर्तुगीज वाइस रॉय ऑफ इंडिया रहे 1529 से लेकर 1538 तक इन्होंने सबसे पहला काम यह किया कि पोर्तुगीज गवर्नमेंट का जो इंडियन
हेडक्वार्टर कोचीन में में था उसको इन्होंने शिफ्ट करके गोवा में कर दिया यह कार्य इन्होंने 1530 में कर दिया था और
क्योंकि इस समय तक इंडिया के वेस्टर्न कोस्ट के ऊपर पोर्तुगीज का अच्छा खासा इन्फ्लुएंस हो चुका था तो इन्होंने डिसाइड
किया कि इंडिया के ईस्ट कोस्ट पर भी अब हमें अपना इन्फ्लुएंस लाना होगा और इसके लिए इन्होंने इंडिया के ईस्ट कोस्ट पर भी
पोर्तुगीज सेटलमेंट बनाने शुरू कर दिए जिसका हेडक्वार्टर बनाया गया हुगली को जो कि बंगाल में है देखो पोर्तुगीज को अब
भारत में आए लगभग 30-35 साल हो चुके थे उन्होंने इंडियन ओशन को पूरी तरह से डोमिनेट कर लिया था इंडियन ओशियन के ऊपर
पोर्तुगीज की डोमिनेंस की वजह से गुजरात का ट्रेड बहुत ही बैडल इफेक्ट हो रहा था ऐसे में गुजरात को सिर्फ एक ही होप दिखी
उनको लगा कि अगर किसी भी तरह से ऑटोमन रूलरसोंग्स एंबेसीज भेजी और उनसे मदद मांगी ऑटोमन
रूलर ने भी इनकी मदद के लिए एक बहुत ही स्ट्रांग नेवी भेजी और साथ ही भेजे दो बहुत ही कैपेबल तुर्किश ऑफिसर्स इन्हीं दो
तुर्किश ऑफिसर्स में से एक ऑफिसर था रूमी खान जिसे बहादुर शाह ने दू का गवर्नर बनाया था यही रूमी खान आगे चलकर मास्टर
गनर के रूप में काफी ज्यादा फेमस हुआ था और 1531 में नीनो द कुना ने जब दू के ऊपर अटैक किया तो इसी रूमी खान ने पोर्तुगीज
के इस अटैक को रिपल्स कर दिया था तो हम लोग इस बात को समझ पा रहे हैं कि बहादुर शाह ऑटोमन तुर्क्स की मदद से पोर्तुगीज को
एटलीस्ट वन हैंड डिटेंस पर रखने में कामयाब हो गए थे बट इसके बाद फिर से सिचुएशन चेंज होती हुई नजर आई भारत के
नॉर्थ में मुगल एंपायर एस्टेब्लिश हो चुका था मुगल रूलर हुमायूं गुजरात के ऊपर अटैक की तैयारी कर रहे थे ऐसे में गुजरात के
रूलर बहादुर शाह ने सोचा कि अगर मुगल्स का मुकाबला करना है तो उन्हें पोर्तुगीज की मदद लेनी होगी और इसीलिए उन्होंने
पोर्तुगीज के साथ नेगोशिएशन शुरू किए और इस तरह इन दोनों के बीच में साइन हुई ट्रीटी ऑफ बसाय यह बेसिकली एक डिफेंसिव
ऑफेंसिव अलायंस थी थी इस ट्रीटी में यह फैसला हुआ कि दू जो अब तक गुजरात का पार्ट हुआ करता था वह अब पोर्तुगीज टेरिटरी का
पार्ट होगा और जैसा कि इस ट्रीटी के नाम से ही जाहिर है यह ट्रीटी थी ट्रीटी ऑफ बसाय बहादुर शाह ने इस ट्रीटी में आईलैंड
ऑफ बसान भी पोर्तुगीज को दे दिया वसाइन बेसिकली वसई वाला एरिया है अगर आप कभी भी मुंबई जाएंगे तो मुंबई के आउटस्कर्ट्स में
आपको वसई देखने को मिलेगा और यह सब चीजें पोर्तुगीज को सरेंडर करने के बाद बहादुर शाह को वही चीज मिल रही थी जो चाहिए थी
उन्हें चाहिए था मुगल्स के अगेंस्ट पोर्तुगीज का सपोर्ट और पोर्तुगीज इस चीज के लिए राजी थे पोर्तुगीज ने तुरंत दू में
अपना फोर्ट बनाना शुरू कर दिया अब यहां पर हमें बहादुर शाह और हुमायूं के बीच में जो टसल था उसको थोड़ा डिटेल में समझने की
जरूरत है और यह चीज हम लोगों ने ऑलरेडी डिस्कस की है मेडियल हिस्ट्री कोर्स में उसका एक एक्सेप्ट हम लोग यहां पर देखेंगे
ताकि आप इस टसल को समझ पाएं हुमायूं ने शेरखान के ऊपर विश्वास किया और चुनार फोर्ट का गिराव उठा लिया हिस्टोरियंस कहते
कते हैं कि हुमायूं को यह डिसीजन बहुत ही जल्दबाजी में लेना पड़ा था क्योंकि इंडिया के वेस्ट में पॉलिटिकल डायनेमिक्स बहुत ही
तेजी से चेंज हो रही थी बात यह है कि बहादुर शाह जो कि मुगल एंपायर के लिए एक बहुत बड़ा थ्रेट था उसने मेवाड़ के ऊपर
अटैक कर दिया था और आप सोच के देखिए कि अगर बहादुर शाह मेवाड़ को जीत लेता है तो दिल्ली और आगरा से उसकी प्रॉक्सिमिटी काफी
ज्यादा बढ़ जाएगी तो बहादुर शाह यहां पर मेवाड़ का घेराव करके बैठा हुआ था और उस समय मेवाड़ के रूलर थे राणा विक्रमादित्य
जिनकी आयु उस समय काफी कम थी और बहादुर शाह का मुकाबला करने के लिए सक्षम नहीं थे ऐसे में कहा जाता है कि रानी कर्णावती जो
कि राणा विक्रमादित्य की मदर और राणा सांगा की विडो थी उन्होंने हुमायूं को राखी भेजी और उनसे मदद मांगी बट यह बात
कितनी सच है इसके बारे में पूरे विश्वास के साथ नहीं कहा जा सकता क्योंकि उस समय के राइटर्स और हिस्टोरियंस ने ऐसा कहीं पर
भी नहीं लिखा है कि रानी कर्णावती ने हुमायूं से मदद मांगी हो और उनको किसी भी तरह की कोई राखी भेजी हो बट यह बात
बिल्कुल सच है कि जिस समय बहादुर शाह ने मेवाड़ का घेराव किया हुआ था उस समय हुमायूं अपनी फौज लेकर आगरा से ग्वालियर
आए थे और बहादुर शाह को यह डर रहा होगा कि मुगल्स यहां पर इंटरवू करेंगे इसीलिए तुरंत उसने मेवाड़ के साथ एक ट्रीटी साइन
की और मेवाड़ से घेराव उठा लिया तो अब तक हम लोगों ने देखा कि बादशाह बनने के बाद से हुमायूं लगातार वॉर एक्टिविटीज में ही
बिजी था और हुमायूं की पर्सनैलिटी कुछ इस तरह की थी कि वो इस चीज पर बहुत ज्यादा बिलीव करता था कि वर्क हार्ड एंड पार्टी
इवन हार्डर तो नेक्स्ट वन एंड हाफ ईयर हुमायूं ने प्रॉपर ब्रेक लिया और अपने आप को रिलैक्स किया और ऐश और अयाशी में अपने
आप को डुबो दिया इस दौरान उसने दिल्ली में एक नई सिटी बनवाई जिसका नाम था दीन पन्हा आप ऐसा भी कह सकते हैं कि बहादुर शाह का
खतरा आगरा पर मंडरा रहा था इसीलिए एज अ सेकंड कैपिटल दीन पनाह को बनवाया गया था बट जिस समय हुमायूं मुगल एंपायर के कामकाज
और टेंशन से दूर अपने आप अयाशियां में डुबा रहा था उस समय को उसके दुश्मन यूटिलाइज कर रहे थे अपने आप को और ज्यादा
मजबूत करने के लिए शेर खान पहले से और ज्यादा पावरफुल हो चुका था और बहादुर शाह ने कई सारे ईस्टर्न राजस्थान के रीजंस
इंक्लूडिंग अजमेर को भी कैप्चर कर लिया था इनफैक्ट बहादुर शाह तो मुगल एंपायर के दुश्मनों को ढूंढ ढूंढ कर उनको अपना
सपोर्ट दे रहा था उसने शेर खान की भी मदद की और साथ ही साथ तात खान जो कि इब्राहिम लोदी का कजिन था उसको भी आर्म्स और
सोल्जर्स प्रोवाइड कराए और अब तात खान 4000 की फौज के साथ आगरा के ऊपर अटैक करने के लिए तैयार था इस चीज की खबर मिलते ही
हुमायूं नींद से जागा और उसने ता खान के ऊपर अटैक किया ता खान को उसने बहुत ही आसानी से हरा दिया और इस जंग में ता खान
मारा गया इसके बाद हुमायूं ने डिसाइड किया कि वह इस बहादुर शाह नाम के थ्रेट को जड़ से खत्म कर देंगे और इसके लिए हुमायूं ने
सबसे पहले मालवा को इवेट किया जो कि बहादुर शाह की टेरिट्री थी इसके बाद बारी आई गुजरात की हुमायूं ने गुजरात को भी
कैप्चर कर लिया ऐसे में बहादुर शाह पहले भागकर कैंबे पहुंचा और उसके बाद दू यानी वह भागकर पोर्तुगीज की शरण में पहुंच
पहुंच गया था और इस न्यूली एक्वायर्ड टेरिटरी को गवर्न करने की जिम्मेदारी हुमायूं ने अपने भाई आस्करी को दे दी और
इसके बाद हुमायूं ने रुक किया शेरखान की तरफ क्योंकि शेर खान जिस तरह की एक्टिविटीज कर रहा था उससे मुगल एंपायर को
आगे चलकर खतरा हो सकता था एक्चुअली बिहार में जितने भी अफगान सरदार थे उन सबको शेर खान ने अपने अंडर में ले लिया था और एक
बहुत बड़ी फौज तैयार कर ली थी इसके अलावा हुमायूं ने जब चुनार फोर्ट का गिराव उठाया उसके तुरंत बाद शेर खान ने बंगाल के राजा
को हरा दिया था और उससे एक बहुत बड़ी मात्रा में वॉर इंडम निटी भी वसूल करी थी तो अब आप सोच रहे होंगे कि शेर खान का जो
बेटा था कुतुब खान वह तो अभी भी हुमायूं के कब्जे में होगा तो शेर खान हुमायूं के अगेंस्ट इतना सब कुछ प्लान कैसे कर पा रहा
था तो बात यह है कि कुतुब खान पहले ही हुमायूं के चंगुल से छूटकर भाग गया था और इसीलिए शेर खान को अब हुमायूं का किसी भी
तरह का कोई डर नहीं था बट हुमायूं ने अब यह तय कर लिया था कि जिस तरह उसने बहादुर शाह को यहां से हटाया है ठीक उसी तरह शेर
खान को भी वह अपने रास्ते से हटा देगा 1537 में शेरखान को खत्म करने के लिए हुमायूं जब उसकी तरफ बढ़ ही रहा था तभी
उसे खबर मिली कि उसका भाई अकरी जो कि इतना ज्यादा एक्सपीरियंस नहीं था उसके हाथ से गुजरात और मालवा निकल चुका है यह एक बहुत
बड़ा डिस्ट्रक्शन था लेकिन हुमायूं अब अपने लक्ष्य से भटक नहीं सकता था उसे खबर मिली कि शेर खान अभी भी चुनार के किले में
मौजूद है और इसीलिए हुमायूं ने वापस से चुनार फोर्ट का गिराव कर लिया हुमा तो आपने देखा कि मुगल्स और बहादुर शाह के बीच
में किस तरह का टसल था और इस असल में पोर्तुगीज ने बहादुर शाह को किस तरह से मदद किया लेकिन अब 1537 तक सिचुएशन यह है
कि मुगल्स को गुजरात से बाहर निकाला जा चुका है और क्योंकि गुजरात के रूलर के ऊपर जो संकट था वह टल गया तो अब उनको यह लग
रहा है कि पोर्तुगीज के साथ जो ट्रीटी ऑफ बसाई उन्होंने साइन की थी यह गलत हो गई यह नहीं करना चाहिए था पोर्तुगीज को दू नहीं
देना चाहिए था तो गुजरात के रूलर बहादुर शाह ने क्या किया कि इन्होंने पोर्तुगीज वाइस रॉय ऑफ इंडिया नीनो डी कुन्हा से
दोबारा से बात की इन्होंने कहा कि यार ये जो ट्रीटी ऑफ बसाय है ये मुझे जम नहीं रही है क्या हम इस ट्रीटी को वापस से
रिनेगन डी कुना ने कहा कि यार क्या बात कर रहे हो छोटी-मोटी बातें हैं दोनों भाई मिलेंगे और री नेगोशिएट कर लेंगे कोई
दिक्कत की बात नहीं है तो इस तरह 1537 में ही बहादुर शाह के पास एक पोर्तुगीज शिप भेजी गई वो उसमें बैठ गए बहादुर शाह को
लगने लगा कि शायद कोई षड्यंत्र हो रहा है जिसमें शायद उसको मारा जा सकता है धक्का मुक्की हुई और इसी बीच बहादुर शाह को
उठाकर समुद्र में फेंक दिया गया और इस तरह बहादुर शाह की डेथ हो गई यह थी डिटेल्स पोर्तुगीज सेटलमेंट इन इंडिया की इंडिया
की हिस्ट्री इंडियन पॉलिटी और इंडियन इकोनॉमी को डिटेल में समझने के लिए बुवा की प्लेलिस्ट को देखते रहिए थैंक यू सो मच
फॉर वाचिंग एंड सपोर्टिंग बुवा
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