Understanding Globalization: A Summary of Chapter 3 from Class 10 History
Overview
In this video, we delve into Chapter 3 of Class 10 History, which discusses the concept of globalization and its evolution over time. The chapter emphasizes how countries have become interconnected through trade, cultural exchanges, and historical events.
Key Points
- Definition of Globalization: Globalization refers to the process of interaction and integration among people, companies, and governments worldwide, primarily driven by international trade and investment.
- Historical Context: The video traces the roots of globalization back thousands of years, highlighting ancient trade routes like the Silk Road that connected Asia, Europe, and Africa. For a deeper understanding of these trade routes, see our summary on The Columbian Exchange: Impact on Global History.
- Cultural Exchange: It discusses how trade facilitated not just the exchange of goods but also ideas, skills, and cultural practices, enriching societies. This cultural exchange is a key aspect of the AP World History Unit 4 Review: Trans-Oceanic Interconnections (1450-1750).
- Impact of Exploration: The role of explorers like Christopher Columbus in discovering new lands and introducing new crops to Europe is examined, along with the consequences of such exchanges.
- Colonialism and Trade: The chapter discusses the impact of European colonialism on global trade patterns and the exploitation of resources in colonized countries. Understanding these dynamics is crucial for grasping the broader implications of globalization, as discussed in Understanding the Connection Between Strategy and Business Environment: Insights on Internationalization and Globalization.
- Economic Transformations: The video outlines the economic changes during the 19th century, including the rise of industrialization and the shift in global economic power.
- World Wars and Economic Shifts: The effects of World War I and II on global economies are analyzed, showing how these conflicts reshaped international relations and economic structures. For insights into the economic impacts of these events, refer to Understanding the Global Economy: Insights from Leading Economists.
- Post-War Recovery: The establishment of institutions like the IMF and World Bank aimed at stabilizing economies and promoting international trade post-World War II.
- Modern Globalization: The video concludes with a discussion on contemporary globalization, emphasizing the interconnectedness of nations in today's world.
FAQs
-
What is globalization?
Globalization is the process of increased interconnectedness among countries through trade, investment, and cultural exchange. -
How did ancient trade routes contribute to globalization?
Ancient trade routes, such as the Silk Road, facilitated the exchange of goods, ideas, and cultures between different regions, laying the groundwork for globalization. -
What role did explorers play in globalization?
Explorers like Christopher Columbus introduced new crops and trade opportunities, significantly impacting global trade patterns and cultural exchanges. -
How did colonialism affect global trade?
Colonialism often led to the exploitation of resources in colonized countries, altering trade dynamics and benefiting colonial powers at the expense of local economies. -
What were the economic impacts of World War I and II?
Both wars caused significant economic disruptions, leading to changes in global power dynamics and the establishment of new economic institutions for recovery. -
What institutions were created after World War II to support globalization?
The International Monetary Fund (IMF) and the World Bank were established to promote economic stability and facilitate international trade. -
How is globalization relevant today?
Globalization continues to shape economies, cultures, and international relations, making countries more interconnected than ever.
[संगीत] हेलो एवरीवन आज हम पढ़ेंगे क्लास 10th हिस्ट्री का चैप्टर नंबर 3 जिसका नाम है
डी मेकिंग ऑफ अन ग्लोबल वर्ल्ड दोस्तों आज के दौर में जो कंट्रीज है वो एक दूसरे के साथ काफी ज्यादा कनेक्टेड है ट्रेट्स के
थ्रू इतिहास के थ्रू बिजनेस के थ्रू बेसिकली बहुत सारी चीज इंपोर्ट हो रही हैं एक्सपोर्ट हो रही हैं लोग एक देश से दूसरे
देश में ट्रेवल कर रहे हैं यानी की आज हम जिस दौर में जी रहे हैं वो हम ग्लोबलाइजेशन के दौर में जी रहे हैं
सिमिलरली आज से हजारों साल पहले भी लोग इसी तरीके से ट्रेवल करते द व्यापार के लिए या अलग-अलग कामों के लिए लेकिन फर्क
सिर्फ इतना था की तब का ग्लोबलाइजेशन इतना इमर्ज नहीं हुआ था मतलब इतना एडवांस नहीं था लेकिन आज का जो ग्लोबलाइजेशन है वह
एडवांस है यानी की काफी ज्यादा इमर्ज हो चुका है तो सबसे लेकर आज तक जितना भी ग्लोबल
[संगीत] वर्ल्ड में कैसे बदला [संगीत]
की शुरुआत होती है आज से हजारों साल पहले लेकिन उससे पहले मैं यह समझना होगा की यह ग्लोबलाइजेशन क्या होता है तो ग्लोबल
फ्रॉम वैन नेशन तू आदर नेशन इस कॉल्ड ग्लोबलाइजेशन मतलब एक कंट्री से दूसरी कंट्रीज में गुड्स का सर्विसेज का आइडिया
[संगीत] ट्रेवल करते द अलग-अलग कामों के लिए जैसे की नॉलेज के लिए ऑपच्यरुनिटीज के लिए और
कई लोग तो स्पिरिचुअल एंड के लिए ट्रेवल करते द मतलब आत्म शांति के लिए ट्रेवल करते द तो क्या यह केवल ट्रेवल करते द
नहीं यह अपने साथ अलग-अलग चीज ले जाते द जिंदगी गुड्स स्किल्स आइडिया मणि इन्वेंशन जहां तक यह जर्म्स एंड डिसीसिस को भी अपने
साथ ले जाते द दोस्तों आज के समय में हम ऐसे कई सारे एविडेंस देखने को मिलते हैं जिनसे हमें यह पता चलता है की आज से
हजारों साल पहले भी लोग ट्रेड किया करते द यानी की व्यापार किया करते द जैसे की आप इस पिक्चर को देख सकते हो उसमें इनको बोला
जाता है कोर्स पुराने समय में लोग इनको ऐसा करेंसी उसे करते द और ट्रेड किया करते द इनको अपना मीडियम मानकर जिनके एब्सेस
मेलडी चीन और ईस्ट अफ्रीका में देखने को मिलते हैं इसके अलावा हमें और भी एग्जांपल्स देखने को मिलते हैं जो की
सीधा-सीधा यह स्पष्ट करते हैं की पहले के टाइम पर ट्रेड होता था और वह भी इंटरनेशनल ट्रेड होता था सिल्क रूट्स लिंक डी वर्ल्ड
दोस्तों उसी दौर में कई सारे रूट्स हुआ करते द यानी की रास्ते हुआ करते द जिन्हें सिल्क रूट बोला जाता था ध्यान रखना सिल्क
रूट एक नहीं था बल्कि बहुत सारे रूट्स का एक नेटवर्क था जैसा की आप इस इमेज में भी आप देख सकते हो इसमें जो लाइंस आपको देख
रही है सारे सिल्क रूट्स दोस्तों पुराने समय में लोग इन्हीं रूट्स का इस्तेमाल करते द ट्रेड के लिए तो हम का सकते हैं
सिल्क रूट वैसे अन नेटवर्क असिएंट ट्रेड रूट्स विच कनेक्ट एशिया यूरोप एंड अफ्रीका मतलब सिल्क रूट एक नेटवर्क था पुराने
ट्रेड रूट्स का जो की एशिया यूरोप और अफ्रीका को कनेक्ट करता था सिल्क रूट्स का एक्जिस्ट एंड क्रिश्चियन इरा से भी पहले
से था और इनका एक्जिस्टेंस 15वीं शताब्दी तक रहता है इस रूट के जरिए कई सारी चीज ट्रेवल कर दी थी जैसे की चाइनीस शायरी
चाइनीस सिल्क इंडियन टेक्सटाइल्स साउथ ईस्ट एशियाई स्पाइसेज यह चीज ट्रेवल करती थी एशियाई मार्केट से यूरोपियन मार्केट
में यानी की इंस्टेंट कंट्री से वेस्टर्न कंट्रीज में सिमिलरली इसके बदले में एशियाई कंट्रीज को मिलता था खूब सारा
गोल्ड एंड सिल्वर जो की ट्रेवल होता था यूरोपियन मार्केट से एशियाई मार्केट में इस रूट के जरिए चाइनीस सिल्क का काफी
ज्यादा व्यापार होता इसलिए इस रूट का नाम सिल्क रूट पद गया था अब सवाल यह उठाता है की क्या सिल्क रूट का इस्तेमाल ट्रेड के
लिए होता था नहीं ऐसा नहीं है दोस्तों बल्कि बहुत सारे क्रिश्चियन मिशनरीज मुस्लिम प्रीचर्स बुद्धिस्ट मोंक यह लोग
भी ट्रेवल करते द इन्हीं सिल्क रूट्स का इस्तेमाल करके यह लोग एक जगह से दूसरी जगह जया करते द अब क्यों ट्रेवल करते द पहला
स्पिरिचुअल फुलफिलमेंट के लिए मतलब आत्मा शांति के लिए और दूसरा ये लोग ट्रेवल करते द अपने धर्म को बढ़ावा देने के लिए यानी
की अपने कल्चर को प्रमोट करने के लिए तो यहां से मैं क्या पता चला की सिल्क रूट की वजह से ना केवल ट्रेड होता था बल्कि
अलग-अलग लोगों के बीच में कल्चरल लिंक भी डिवेलप होता था तो हम का सकते हैं की डी सिल्क रूट सारा गुड एग्जांपल ऑफ वाइब्रेंट
प्री मॉडर्न ट्रेड एंड कल्चरल लिंक्स बिटवीन डिस्टेंस पार्ट ऑफ डी वर्ल्ड करते द अब आप जरा दोस्तों जो की क्या यह
लोग इतने लंबे लंबे रास्ते बिना खाने के ट्रेवल कर सकते द नहीं ना तो जब भी यह लोग ट्रेवल करते द तो यह अपने साथ खाना जरूर
ले जाते द तो इस तरीके से लोगों के साथ खाना भी ट्रेवल करता था दोस्तों ऐसा माना जाता है की जो आज हम नूडल्स खाते हैं वो
एक्चुअल में चीन से orginate हुए द मतलब चीन से आए द और तब ये वेस्टर्न कंट्रीज में गए मतलब ये वहां पर इंट्रोड्यूस हुए
तो इन्हें एक नए नाम से जाना गया स्पेगेट मतलब चीज वही थी बस नाम बदल गया था सिमिलरली आज हम जो पास्ता खाते हैं वो
एक्चुअल में अरब कंट्री से ओरिजिनल हुआ था और तब यह पास्ता इटली पहुंचा तो इसे एक नए नाम से जाना गया और इसे बोला गया सिसली और
एवं हम जो कॉमन फूड्स खाते हैं जैसे की पोटैटो सोया ग्राउंडनट मेज टोमेटो चिली एंड स्वीट पोटैटो इन सब के बारे में भी
हमें पहले नहीं पता था और ना ही वेस्टर्न कंट्रीज को पता था वो तो भला एक महान व्यक्ति का जिनका नाम था क्रिस्टोफर
कोलंबस जिनकी वजह से हमें इन सब के बारे में पता नहीं चल पाया देखो हुआ क्या था की 16 सेंचुरी में क्रिस्टोफर कोलंबस नाम की
एक एक्सप्लोरर द जिन्होंने एक्सीडेंटली अमेरिका को डिस्कवर कर लिया और उसे समय पर अमेरिका में से कई सारी क्रॉप्स होगी जाती
थी जिनके बारे में किसी को नहीं पता था तो जब क्रिस्टोफर कोलंबस ने अमेरिका को डिस्कवर किया तो उन्होंने इन क्रॉप्स के
बारे में यूरोप को भी बताया और एशिया को भी बताया तो जब यूरोप के देशों को आलू के बारे में पता चला की आलू जैसा भी कोई फूड
एडजस्ट करता है तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा आलू के आने की वजह से europians को एक बढ़िया फूड मिल गया था जिसे भी
आसानी से खा सकते द लेकिन दोस्तों जिस आलू को लेकर europians इतना खुश हो रहे द उन्हें क्या पता था की वही आलू लाखों
लोगों की मौत का कारण बनेगा बड़ी अजीब बात है ना की आलू की वजह से कई सारे लोगों की जान चली गई देखो हुआ क्या था की जो यूरोप
की जो लोग द वह आलू के ऊपर इतना सारा डिपेंडेंट हो गए की भी केवल आलू की फसल उगते द बाकी फसलों पर ध्यान नहीं देते द
ऐसे यूरोप में एक जगह आयरलैंड करके वहां पर क्या हुआ था मेड 1814 के टाइम पर लोग आलू के ऊपर इस कदर डिपेंडेंट हो जाते हैं
की वह अपने खेतों में केवल आलू की फसल उगते हैं बाकी कोई और फसल नहीं होगा आते हैं तो ऐसे में होता क्या है की एक बीमारी
फैलने लगती है जिसके चलते सारी आलू की फसल बर्बाद हो जाती है चूंकि इन्होंने केवल आलू की फसल उगाई थी और आलू की फैसले खराब
हो गई थी तो ऐसे में इन लोगों के पास कोई और ऑप्शन नहीं था खाने के लिए जिस वजह से कई सारे लोग भूखे मरने लगते हैं 1845 से
लेकर 1849 का जो पीरियड था इसमें लगभग 10 लाख लोग मार जाते हैं इसी भुखमरी के चलते इसी को बोला जाता है डी ग्रेट आइरिस फैमिन
या पोटैटो फैमिन डिजीज एंड ट्रेड तो दोस्तों जैसा की हमने देखा europians ने एशिया को डिस्कवर कर
लिया था सिमिलरली उन्होंने अमेरिका को भी डिस्कवर कर लिया था 16 सेंचुरी में उसे कर सकते द जिससे उन्हें काफी ज्यादा
मुनाफा हो रहा था ट्रेड में अब देखो कहानी में ट्विस्ट आता है होता क्या है की यूरोप को लगता है की क्यों ना कॉलोनी सेटअप की
जाए मतलब अलग-अलग कंट्रीज के ऊपर कब्जा किया जाए दोस्तों उसे समय पर जो अमेरिका था वो 16 सेंचुरी में काफी ज्यादा रिच था
रिसोर्सेस के मामले में वहां पर अच्छी-अच्छी फूड क्रॉप्स सी वहां पर काफी ज्यादा पीसीएस मेटल्स मिलते द जैसे की
सिल्वर जो की काफी मात्रा में पाया जाता था और तो और दोस्तों लोगों में एक चीज बहुत ज्यादा पॉप्युलर हो रही थी की
अमेरिका में सिटी है अल्टो राडो नाम की जहां पर खूब सारा सोना है वापस सोने के महल है वापस सोने का सब कुछ है तो यह सब
बातें जब पॉप्युलर हुई तो यूरोप को लाना चाह गया और वो डिसाइड करता है की अब वो अमेरिका करेगा यानी की उसके ऊपर कब्जा
करेगा तो मीत सिक्स सेंचुरी में बहुत सारे पुर्तगीज एंड स्पेनिश लोग निकल पड़ते हैं अमेरिका को कॉल नाइस करने के लिए तो यह
लोग क्या करते हैं यह लोग ना ही मिलिट्री का उसे करते हैं ना आर्म्स का इस्तेमाल करते हैं डिसीसिस का दोस्तों जैसा की हमने
पढ़ा था की जो अमेरिका था वो काफी लंबे समय से भारी दुनिया से डिस्कनेक्टेड था इसलिए वहां पर रह रहे लोगों का इम्यून
सिस्टम बहुत ज्यादा वीक था इसी बात का फायदा उठाते हैं पुर्तगाल ये लोग जब अमेरिका जाते हैं तो ये लोग अपने साथ ले
जाते हैं कई सारे जंप्स एंड डिसीसिस जैसे की स्मॉल पॉक्स चिकन पॉक्स तो जब ये डिसीसिस अमेरिका में फैलती है तो कमजोर
इम्यून सिस्टम होने के कारण अमेरिका के कई सारे लोग मार जाते हैं इन बीमारी के चलते तो इस तरीके से बिना हथियार और आर्मी का
इस्तेमाल किए यूरोप आसानी से कंकर कर लेता है अमेरिका को लेकिन दोस्तों इतना सब कुछ होने के बावजूद भी यूरोप पुरी तरीके से
खुश नहीं था क्यों क्योंकि उसे समय पर यूरोप की पापुलेशन काफी ज्यादा थी जिस वजह से 19 सेंचुरी तक यूरोपी कई सारी समस्याओं
से सफर कर रहा था जैसे की डिसीसिस पावर्टी रिलिजियस परिसर यह सभी देखने को मिल रहा था दोस्तों 18 सेंचुरी तक इंडिया और चीन
वर्ल्ड की रिचेस्ट कंट्रीज थी और यही कंट्रीज वर्ल्ड ट्रेड में सबसे ज्यादा डोमिनेंट करती थी लेकिन फिर क्या होता है
की जो चीन होता है वो अपने सारे ओवरसीज़ कॉन्टैक्ट तोड़ देता है और आइसोलेशन में चला जाता है मतलब चीन वर्ल्ड ट्रेड से दूर
हो जाता है जिस वजह से अमेरिका का इंपॉर्टेंस बढ़ाने लगता है और धीरे-धीरे यूरोप जो है वह वर्ल्ड ट्रेड का सेंटर बन
जाता है यानी की डी यूरोप बिकम डी सेंटर ऑफ वर्ल्ड ट्रेड सेकंड टॉपिक हमारा था 19 सेंचुरी 1852 1940 इस टॉपिक में हम
जानेंगे की 18 15 से लेकर 1914 का जो पीरियड था उसमें ग्लोबलाइजेशन किस तरीके से होता है दोस्तों 19 सेंचुरी में वर्ल्ड
बहुत ही तेजी से चेंज हो रहा था यानी की बहुत सारी चेंज देखने को मिल रहे द जैसे की इकोनॉमिकल पॉलिटिकल सोशल कल्चरल एंड
टेक्निकल जिस वजह से सोसाइटी ट्रांसफॉर्म हो रही थी और एक्सटर्नल रिलेशंस भी रिसेट हो रहे द दोस्तों
में हमें बहुत कुछ देखने को मिल रहा था लेकिन मैनली सबसे ज्यादा तीन टाइप के फ्लोज देखने को मिल रहे द जिसमें से पहला
था फ्लो ऑफ ट्रेड यानी की अलग-अलग गुड्स का फ्लो देखने को मिल रहा था एक कंट्री से दूसरी कंट्री में जैसे की कपड़ों का गेहूं
का इन सब का व्यापार हो रहा था दूसरा था फ्लो ऑफ लेबर दोस्तों ना केवल गुड्स का फ्लो हो रहा था बल्कि लोग भी ट्रेवल कर
रहे द एक जगह से दूसरी जगह कम की तलाश में यानी की लोगों को अभी माइग्रेशन हो रहा था फोर बटोर एंप्लॉयमेंट तीसरा था फ्लो ऑफ
कैपिटल यानी की जो लोग द वह अलग-अलग जगह पर इन्वेस्ट करने के लिए भी ट्रेवल कर रहे द एक जगह से दूसरी जगह यानी की 19 सेंचुरी
में तीन तरह के फ्लोर्स देखने को मिल रहे द पहला था गुड्स के लिए दूसरा था एंप्लॉयमेंट के लिए और तीसरा था
इन्वेस्टमेंट के लिए वर्ल्ड इकोनॉमी टेक सेप ट्रेडिशनल यानी की बहुत साल पहले जो कंट्री थी वह यह चाहती
थी की वह अपना खाना खुद प्रोड्यूस करें उन्हें किसी और कंट्रीज के ऊपर डिपेंडेंट ना होना पड़े यानी ये कंट्री सेल्फ
सफिशिएंट होना चाहती थी फूड के मामले में लेकिन दोस्तों ये जो धरना बनी हुई थी अलग-अलग कंट्रीज की हर कंट्री को सेल्फ
सफिशिएंट होना चाहिए फुट के मामले में वो चेंज हो जाती है 19 सेंचुरी में अब कैसे चेंज होती है और क्यों चेंज होती है चलिए
जानते हैं तो होता क्या है की जो यूरोप था उसमें कंट्री थी ब्रिटेन तो समय पर ब्रिटेन की सिचुएशन क्या थी की वहां पर
पापुलेशन बहुत ज्यादा थी और पापुलेशन बहुत तेजी से बढ़ रही है अब आप जरा खुद सोचो की अगर किसी कंट्री की पापुलेशन तेजी से
बढ़ेगी तो obbviously फूड की डिमांड भी बढ़ेगी क्योंकि जितनी ज्यादा लोग होंगे उतना ज्यादा फूड चाहिए तो ऐसे में ग्रुप
से ब्रिटेन के ग्रुप का मतलब ऐसे लोग जिनके पास बहुत ज्यादा जमीनी होते द तो यह लोग क्या करते हैं यह लोग ब्रिटिश
गवर्नमेंट के ऊपर प्रेशर कर सकते हैं की जो बाहर से खाने का समान आता है ब्रिटेन के अंदर उसे बंद किया जाए ताकि ब्रिटेन के
लांडेड ग्रुप को फायदा हो सके तो ब्रिटिश गवर्नमेंट इनकी बात मैन लेती है और कार्लो इंप्लीमेंट कर देती है कौन लॉ का मतलब एक
ऐसा कानून लाती है जिसके थ्रू गवर्नमेंट जो बाहर से कौर ना आता था और अगर खाने के आइटम्स आते द उन पर रोक लगा देती है
गवर्नमेंट ऐसा इसलिए करती है ताकि ब्रिटेन के लांडेड ग्रुप को फायदा हो सके और कंट्री सेल्फ सफिशिएंट हो सके फूड के
मामले में पर देखो होता कुछ और है होता क्या है की ब्रिटेन के अंदर फूड प्राइसेस बढ़ाने लगते क्यों क्योंकि पापुलेशन
ज्यादा थी इंपोर्ट रुक गया था जिस वजह से फूड की डिमांड बढ़ गई थी और स्वाभाविक सी बात है जब किसी चीज की डिमांड बढ़ जाती है
तो obbviously उसे चीज की प्राइस भी हाई हो जाते हैं तो ब्रिटेन के फूड प्राइसेस बढ़ाने लगते
[संगीत] हैं की कोरलो को हटा दिया जाए की बाहर से फूड इंपोर्ट हो सके और लोगों को सस्ता
खाना मिल सके तो ब्रिटिश गवर्नर इनकी बात मैन लेती है और कौन लोग को हटा देती है यानी की अबॉलिश करते द अब हम देखते हैं की
इस कॉर्न लॉ की हटने की वजह से क्या इफेक्ट पड़ता है इफेक्ट ऑफ अबोलिशन ऑफ कॉर्न लॉ पहला ब्रिटेन में फूड बहुत ही
सस्ती रेट में इंपोर्ट होने लगता है इतनी सस्ती रेट में इंपोर्ट होने लगता है जितना ब्रिटेन कभी प्रोड्यूस ही नहीं कर सकता था
इनफेक्टिव ब्रिटिश के फॉर्म द वो कभी कंपीट ही नहीं कर पाए इतनी सस्ते इंपोर्ट्स से जिस वजह से ब्रिटेन के
ज्यादातर फार्मर्स ने अपनी लैंड को उन कल्टीवेट रखना ही ठीक समझा लाज नंबर ऑफ पीपल बिकम अनइंप्लॉयड मतलब काफी तादाद में
लोग बेरोजगार हो गए द जिस वजह से काफी सारे लोग सिटीज की तरफ माइग्रेट करने लगते हैं ऐसे में क्या होता है मिडनाइट सेंचुरी
में ब्रिटेन के अंदर इंडस्ट्रियल ग्रोथ होने लगती है जिस वजह से लोगों की इनकम बढ़ाने लगती है और इसी कारण से और भी
ज्यादा फूड की डिमांड उठने लगती है तो ब्रिटेन की को पूरा करने के लिए ईस्ट यूरोप रूस अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया यह देश
भी अपनी अपनी जमीनों को साफ करने लगते हैं खेती करने के लिए ताकि ब्रिटेन में ज्यादा से ज्यादा फूड को इंपोर्ट किया जा सके और
ब्रिटेन की फूड डिमांड को फुलफिल किया जा सके अब आप जरा खुद सोचो की अगर इतना ज्यादा फूड इंपोर्ट होगा अलग-अलग जगह से
तो obbviously उसके लिए ट्रांसपोर्टेशन फैसेलिटीज भी चाहिए क्योंकि बिना साधन के थोड़ी ना फूड इंपोर्ट होगा तो इसके लिए कई
सारी रेलवे लाइंस बिछाई जाती है ताकि फूड को सी पोर्ट तक पहुंचा जा सके इसके अलावा नैनी सिटी डिवेलप हो रही थी लंदन जो है वो
एक फाइनेंशियल कैपिटल के रूप में वर्कर ए रहा था ब्रिटेन के अंदर तो काफी सारे लोग इन्वेस्ट वगैरा करने लगते हैं वहां पर इसी
बीच क्या होता है अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में लेबर की शॉर्टेस्ट हो जाती है मतलब वहां पर लेबर की बहुत ज्यादा कमी हो जाती
है अब क्योंकि यूरोप के लोगों के पास कम तो था नहीं जिस वजह से बड़ी स्केल में लोग माइग्रेट करने लगते हैं नरली 50 मिलियन
लोग यूरोप से अमेरिका चले जाते हैं कम के लिए और अगर हम वर्ल्डवाइड देखें तो बाय 1890 करीब 150 मिलियन लोग माइग्रेट कर
जाते हैं एक जगह से दूसरी जगह रोल ऑफ टेक्नोलॉजी दोस्तों 19 सेंचुरी में ऐसे कई सारे टेक्निकल इंवेंशंस और
इन्नोवेशंस हो रहे द जिनके बारे में इमेजिन नहीं किया जा सकता था ऐसे ही कुछ मेजर इंवेंशंस से जैसे की रेलवे का स्टीम
शिप का टेलीग्राफ का इनसे बहुत ज्यादा फायदा हो रहा था 19 सेंचुरी में अब दोस्तों 1877 से पहले जो अमेरिका था वो
यूरोप में मीत भेजता था और पता है यह मीत कैसे जाता था यह मीत जाता था शिप के थ्रू यह लोग क्या करते द यह लोग डायरेक्टली
जिंदा जानवरों को शिप के ऊपर चड्ढा देते द और यूरोप पहुंचकर इन जानवरों को काटा जाता था और वहीं पर इनकी मीत बनाई जाती थी तो
इसमें प्रॉब्लम क्या थी एक तो जिंदा जानवर बहुत ज्यादा स्पेस करते द दूसरा बहुत से जानवर रास्ते में ही मार जाते द कई कमजोर
हो जाते द और कई बीमार हो जाते द तो इसलिए इनका जो मीत था वह अनफिट रहता था खाने के लिए लेकिन फिर भी यह मीत europians को
बहुत ज्यादा महंगा पड़ता था क्योंकि मीत डिमांड ज्यादा थी और सप्लाई उतने अच्छे से हो नहीं का रही थी लेकिन दोस्तों फिर क्या
होता है रेफ्रिजरेटर का इन्वेंशन होता है जिससे पुराने शिप को रेफ्रिजरेटर वाले सब बदल दिया जाता है अब जो जानवर द उन्हें
अमेरिका में ही काटा जाने लगा और उन्हें रेफ्रिजरेटर में रखकर आसानी से यूरोप ले जया जाने लगा तो इससे फायदा क्या हुआ की
मीत को ले जाना इजी हो गया क्योंकि काटा हुआ मीत ज्यादा स्पेस ऑक्युपी नहीं करता था और रेफ्रिजरेटर की वजह से मीत फ्रेश
रहता था और काफी लंबे समय तक खराब नहीं होता था तो इस तरीके से जो मीत है वह आसानी से अवेलेबल होने लगता है यूरोप में
जिस वजह से प्राइस भी डिक्रीज हो जाते हैं और अब जो गरीब लोग द वो आसानी से मीत को अफोर्ड कर का रहे द और अच्छी डायट ले का
रहे द लेट 19 सेंचुरी कॉलोनियलिज्म दोस्तों लेट 19 सेंचुरी में जो ट्रेड था वह फ्लोरिश कर रहा था मार्केट एक्सपेंड कर
रहे द इसी से पुरी यूरोप को फायदा तो हो रहा था पर कई सारी कंट्रीज को नुकसान भी हो रहा था उनकी फ्रीडम छीनी जा रही थी और
के ऊपर अत्याचार किया जा रहा था यानी की पेनफुल चेंज किए जा रहे द ऐसा इसलिए हो रहा था क्योंकि यूरोप जो था वह कई सारी
कंट्रीज को कॉलोनाइज किए हुए था यानी की कब्जा किए हुए था अपने फायदे के लिए जैसे की अगर हम बात करें अफ्रीका की तो अफ्रीका
के ऊपर भी कई सारी यूरोपियन कंट्रीज का कब्जा था इनफैक्ट 185 में क्या होता है की जो यूरोप की बड़ी-बड़ी शक्तियां थी यानी
की बड़ी-बड़ी कंट्रीज थी वो वर्ण में मीटिंग करती हैं क्यों मीटिंग करती है तो यह मीटिंग करती है यह तय करने के लिए की
किस कंट्री को कितना हिस्सा मिलेगा अफ्रीका का बेसिकली अफ्रीका को डिवाइड करने के लिए मीटिंग करती तो कुछ इस तरीके
से जो यूरोपियन कंट्रीज थी वो अफ्रीका के ऊपर कब्जा किए हुए द दोस्तों अगर हम हिस्टोरिकल देखें तो होता
क्या है की जो अफ्रीका कॉन्टिनेंट था जिसमें बहुत कम लोग रहते द इसमें बहुत ज्यादा रिसोर्सेस और मिनरल्स
पाए जाते द इसमें एनिमल्स बहुत ज्यादा पाए जाते है और वह आज भी पाए जाते तो यह जो सारी खूबियां थी अफ्रीका की इन सारी
खूबियां को देखकर यूरोपियन कंट्रीज को लाना चाह गया और वे अफ्रीका के ऊपर कब्जा कर लेती है जैसा की हमने इससे पहले वाले
सब टॉपिक में पढ़ा था तो जब यह यूरोपियन अफ्रीका आते हैं मीनिंग और प्लांटेशन के लिए ये तो केवल बहाना था एक्चुअल में तो
यह आए द अफ्रीका की रिसोर्सेस को लूटने के लिए जैसे इंडिया में अंग्रेज आए द ना ठीक उसी तरीके से या अफ्रीका में भी आए द
लूटने के लिए और लूटकर यूरोप ले जाने के लिए तो जब यह आए तो ये लोग देखते हैं की अफ्रीका में तो बहुत कमियां लीवर की कोई
कम करना ही नहीं चाहता और आप खुद ही सोचो की अफ्रीकन लोग कम करना क्यों चाहेंगे जब उनके पास पर्याप्त मात्रा में रिसोर्सेस
है जब उनकी पूर्ति बिना कम करें हो सकती है तो वह कम क्यों करेंगे तो जो अफ्रीका के लोकल लोग द वह कम नहीं कर रहे द भले
उन्हें बिजनेस मिल रही थी लेकिन वह फिर भी कम करने जा रहे तो europians क्या करते हैं कम करने के लिए बल्कि ऐसे कई सारे
मैथर्ड का इस्तेमाल करते हैं जिन साउथ अफ्रीका लोग मजबूर हो जाते हैं कम करने [संगीत]
से टैक्स इंपोज कर देते हैं अफ्रीकन लोगों पर जो की अफ्रीकन लोग तभी पे कर सकते द जब वह प्लांटेशन और माइंड में ऐसा लीवर कम
करेंगे दूसरा इन्हेरिटेज लॉस को चेंज कर देते ओनली वैन मेंबर ऑफ फैमिली वाज अलाउड तू इन हार्टेड मतलब इनकी हिसाब से फैमिली
का केवल एक ही मेंबर इन्हेरीट लैंड का हकदार होगा तो इस तरीके से ये मजबूर कर रहे द लोगों को तीसरा जो यह मेथड अपनाते
हैं वह यह था की जो माइन वर्कर्स द उन्हें एक ही कैंपस में रखते द ताकि कोई वर्कर कम छोड़कर भाग ना जाए तो ये कुछ तरीके द
जिन्हें europians उसे करते द अफ्रीकन को फोर्स करने के लिए अब दोस्तों अफ्रीकन परिजन तो द इन लोगों से इसी बीच क्या होता
है 1880 के टाइम पर अफ्रीका में बीमारी फैले लगती है [संगीत]
इसलिए इसे कैटल प्लग भी बोला जाता अब दोस्तों सबसे पहले सवाल तो यही उठाता है की आखिर यह बीमारी अफ्रीका में आई कैसे
तो ब्रिटिश एशिया से कुछ इनफेक्टेड कैटल आए द अफ्रीका में सोल्जर्स की खाने के लिए और इन्हीं इनफेक्टेड कैटल्स की वजह से जो
बीमारी थी randapest नाम की वो पुरी अफ्रीका में फैल जाती है renderpies बीमारी अफ्रीका में इस कदर फैलती है जैसे
मानो जंगल में आग लगी हो इस बीमारी के चलते अफ्रीका की 90% कैटल पापुलेशन मार जाती है अब चूंकि अफ्रीकन लोग कैंडल
पापुलेशन पर काफी ज्यादा डिपेंडेंट द इसलिए उनका जो लाइवलीहुड होता है उनका जो जीवन था वो पुरी तरीके से बर्बाद हो जाता
है इन कैटल्स के मरने की वजह से अब अफ्रीकन लोगों के पास माइन और प्लांटेशन में मजदूरी करने के अलावा कोई और ऑप्शन
नहीं बचत है इंडिया की तो 19 सेंचुरी में इंडिया के लाखों लोगों को ऐसा intenture लेबर भेजा
गया था कम के लिए किसने भेजा था ब्रिटिश ने क्योंकि उसे समय पर ब्रिटिशर्स का ही रूल था इंडिया के ऊपर और ये मजदूर क्यों
गए द क्योंकि कॉटन इंडस्ट्री डिक्लाइन हो गई थी लंद्रन बढ़ गया था मिनर प्लांटेशन के लिए लैंड क्लियर हो रहे द ऐसे में जो
गरीब लोग द इंडिया के वो रेंट पे नहीं कर का रहे द और ना ही भी अपना कर्ज चुका का रहे द तो ऐसे में इनके पास कोई और ऑप्शन
नहीं था तो ये लोग मजबूर हो जाते हैं ऐसा इंडेंचर लेबर कम करने के लिए तो इंडिया की जो ज्यादातर इंटेलिजेंट लेबर थी वह कम
माइग्रेट हुई पहली कैरेबियन आइलैंड दूसरी मॉरीशस एंड तीसरी फ़िजी तो इन तीन जगह पर इंडिया के सबसे ज्यादा लोग माइग्रेट करते
हैं कम के लिए ऐसा intenture लेबर दोस्तों इंडिया के असम में भी प्लांटेशन फील्ड थी जिसमें कई सारे लोगों को ले जया जाता था
इंडेंचर लेबर के रूप में कम करने के लिए बहुत ही हॉरिबल कंडीशंस में कम करना करता था और ना ही इनके पास कोई लीगल राइट्स द
इन्हें यह भी नहीं पता था की इनसे कितना कम कराया जाएगा और उसकी उन्हें कितने पैसे मिलेंगे बस इन्हीं तो केवल एक आशा थी यानी
की एक होप थी की यहां से जाने के बाद इन्हें गरीबी में नहीं जीना पड़ेगा पर उन्हें क्या पता था की जो कोलोनियल
गवर्नमेंट थी वो इन्हें जॉब नहीं दे रही थी बल्कि इनका इस्तेमाल कर रही थी अपने फायदे के लिए पर दोस्तों खुशी की बात तो
ये थी की 1921 में जो यह इंडेंचर लेबर का जो सिस्टम था वो कर दिया जाता है जब इंडिया के बहुत सारे नेशनल लीडर्स इसके
खिलाफ आवाज़ उठाते इंडियन एंट्री praneevers एब्रॉड दोस्तों ऐसा नहीं है की हमने केवल लेबर के रूप में कम किया हो
बल्कि 19 सेंचुरी में इंडिया के कई सारे ग्रो हो रहे द दोस्तों उसे समय पर इंडिया में बैंकर्स और ट्रेडर्स के तो फेमस ग्रुप
हुआ करते द जिनका नाम था शिकारपुर शॉप फाइनेंस करते द एक्सपोर्ट एग्रीकल्चर को इन साउथ एंड सेंट्रल एशिया
मतलब यह लोग पैसे लगाते द देखो मैं आपको समझता हूं जैसे मैन लो कोई छोटा ट्रेड है ये छोटा किसान है तो वो क्या चाहता है की
उसकी जो फसल है वो विदेशों में एक्सपोर्ट हो ताकि उसको ज्यादा प्रॉफिट हो पर उसके पास इतने पैसे नहीं है की वो अपनी फसलों
को बेस में एक्सपोर्ट कर तो ऐसे में इंडिया की जो फेमस बैंकर्स और ट्रेडर्स के ग्रुप द शिकारपुर स्ट्रोक से नट्टू को टॉय
ये लोग क्या करते हैं यह लोग इन्हें फाइनेंशली मदद करते हैं यानी की इन्हें पैसे देते हैं ताकि ये लोग अपनी फसलों को
विदेशों में एक्सपोर्ट कर पाए और अपना ट्रिप विदेशों में भी फैला पाए बदले में यह कुछ शेयर ले लेते द यहां पर दिए हुए
पैसों का इंटरेस्ट ले लेते द अब इनके पास पैसा कहां से आता था तो यह लोग पैसा लेते द यूरोपियन बैंक से या फिर यह खुद के पैसे
दे देते द तो इस तरीके से यह लोग भारतीयों का विदेशों में व्यापार बढ़ाने में मदद करते द सिमिलरली एक और ग्रुप का नाम आता
है जिसका नाम आता है हैदराबादी सिंधी यह लोग भी इंडियन ट्रेडर्स और मणि लैंडर्स द यह लोग क्या करते द 1860 के टाइम यह लोग
फॉलो करते द europians को मतलब यूरोपियन जिस जिस कंट्री में जाते द ट्रेड के लिए वहां पर यह लोग भी जाते द इनफेक्ट
इन्होंने तो कई सारे एंपोरिया भी सेटअप कर रखे द मतलब गोदाम वगैरा भी बना रखे द अलग-अलग सी पोर्ट्स पर और उन्हें के थ्रू
ये अपना व्यापार करते द तो इस तरीके से इंडिया के antrpnos भी उसे समय पर इंडियन इकोनॉमी में काफी बड़ा रोल अदा कर रहे द
इंडियन ट्रेड कॉलोनियलिज्म एंड ग्लोबल सिस्टम दोस्तों शुरुआती दौर में यानी की करीब 1780 के टाइम पर क्या होता था की जो
इंडिया था और जो ब्रिटेन था इन दोनों के बीच में ट्रेड होता था किस तरह का ट्रेड होता था क्वार्टर के कपड़ों का व्यापार
होता था तो इंडिया से कई सारे कॉटन क्लॉथ जया करते द ब्रिटेन जैसे इंडियन कॉटन टेक्सटाइल को काफी ज्यादा प्रॉफिट हो रहा
था लेकिन फिर क्या होता है ब्रिटेन में कई सारी क्वार्टर इंडस्ट्रीज आने लगती है तो जो इंडस्ट्रीज के ओनर होते हैं वह
गवर्नमेंट के ऊपर डालने लगते हैं की जो इंडिया से कॉटन क्लॉथ आते हैं उन पर रोक लगाई जाए ताकि ब्रिटेन की लोकल इंडस्ट्रीज
को फायदा हो सके तो गवर्नमेंट क्या करती है लगा देती है मतलब सिंपली टैक्स बढ़ा देती है मतलब अगर हम एग्जांपल लें तो कोई
कपड़ा इंडिया से ₹30 का ए रहा है तो वो ट्रिप वारियर की वजह से 130 का हो जाएगा अब आप सोचो की इतना महंगा कपड़ा
ब्रिटिशर्स क्यों खरीदेंगे तो इस तरीके से इंडियन मार्केट को काफी ज्यादा लॉस हो रहा था इनफेक्ट आप इस डाटा को देखो इससे हमें
क्लीयरली पता चलेगा की कितना लॉस हो रहा था दोस्तों 1800 के टाइम पे 30% इंडियन क्लॉथ एक्सपोर्ट होते द ब्रिटेन में वही
18 15 के टाइम पर ये गिरकर हो गया 15% मतलब मात्रा 15% इंडियन क्लॉथ एक्सपोर्ट होते हैं ब्रिटेन में एंड 1870 में ये और
ज्यादा गिर जाता है मात्रा 3% ही इंडियन क्लॉथ एक्सपोर्ट होते हैं ब्रिटेन तो यहां पर इंडिया से जो मैन्युफैक्चर क्लोज जाते
द उनका एक्सपोर्ट कम हो जाता है पर रॉक और टर्न का एक्सपोर्ट बढ़ जाता है मतलब केवल कॉटन कॉटन का एक्सपोर्ट बढ़ जाता है
क्योंकि ब्रिटेन की जो इंडस्ट्रीज थी उन्हें रॉक की जरूरत थी क्योंकि तभी तो वो कपड़े बना सकते द तो जहां इंडिया से पहले
कपड़े जाते द वहां आप रॉक गार्डन जाने लगता है रॉक गार्डन का एक्सपोर्ट इंडिया से काफी ज्यादा होने लगता है इनफेक्ट अगर
हम डाटा देखे तो 1812 में जहां मात्रा 5% रॉक कॉटन का एक्सपोर्ट होता था वही 1871 में ये बढ़कर हो जाता है 35% मतलब 1871
में 35% रॉक ऑर्डर का एक्सपोर्ट होने लगता है और इसी ब्रिटेन की फैक्टरीज में जो सस्ते कपड़े बनते द उन्हें इंडिया में एक
अच्छी रेट में भेज दिया जाता था और काफी अच्छा प्रॉफिट कमाया जाता था पर इंडियन मार्केट को काफी ज्यादा नुकसान हो रहा था
एक तो इंडिया के खुद के क्लोज बिना कम हो जाते हैं क्योंकि इंडियन क्लॉथ हाथों से बंधे द इसलिए वह महंगे होते द वही जो
ब्रिटेन की फैक्ट्री से बनी हुई कपड़े द वह बहुत सस्ते पड़ते द तो लोग उन्हें खरीदना ज्यादा प्रेफर कर रहे द दूसरा
ब्रिटिश को जो कॉटन एक्सपोर्ट होता था उसे वह बहुत ही कम रेट में खरीदते द तो इन दोनों रीजंस की वजह
लॉस हो रहा था और वहीं गोल्डन को काफी ज्यादा प्रॉफिट हो रहा था जिसे हम ट्रेड सरप्लस भी कहते हैं मतलब इन्हें ट्रेड में
काफी ज्यादा मुनाफा हो रहा था तो ब्रिटिश जितना भी इंडियन मार्केट से कमाते द इसका वो उसे करते द इंडिया में जो ब्रिटिश
ऑफिसर कम करते द उनको पेंशन वगैरा देने में और अगर कंट्रीज का जो विल वगैरा होता तो उसको पे करने के लिए थर्ड टॉपिक है
हमारा इकोनॉमिक्स इस टॉपिक में हम ये जानेंगे की वर्ल्ड वॉर फर्स्ट के टाइम पर वर्ल्ड
इकोनॉमी कैसी थी और वर्ल्ड वॉर फर्स्ट की वजह से इकोनॉमी के ऊपर क्या-क्या इंपैक्ट पद रहा था व्हाट टाइम ट्रांसफॉर्मेशन
दोस्तों 1914 यह वह साल थी जब वर्ल्ड वॉर फर्स्ट स्टार्ट होता है और यह वॉर 1983 तक चलता है वर्ल्ड वॉर फर्स्ट दो पावर के बीच
में लड़ा गया था ए लाइट पावर्स और सेंट्रल पावर्स यह कई बार पढ़ चुके हैं ब्रिटेन फ्रांस रूस और उस जो की बाद में
ज्वाइन हो गया था जिसमें मशीन गंस टैंक्स एयरक्राफ्ट केमिकल वेपंस का उसे हुआ था अब हम देखते
हैं की वर्ल्ड वॉर फर्स्ट की वजह से क्या इंपैक्ट पड़ा तो वर्ल्ड वॉर फर्स्ट ने काफी बड़ी स्किल में तबाही मचाई थी वर्ल्ड
वॉर फर्स्ट की वजह से करीब 9 मिलियन लोग मार जाते हैं और करीब 20 मिलियन लोग इंजर्ड हो जाते हैं वॉर के कारण जबरदस्ती
लोगों को आर्मी में भारती किया जाने लगा जो लोग फैक्टरीज में कम कर रहे द उन्हें अब सीमा पर लड़ने के लिए भेज दिया जाता है
यानी की यूरोप की जो वर्किंग पापुलेशन होती है वो डिक्रीज हो जाती है अब आप खुद सोचो की अगर सारे लोग वॉर लड़ने चले
जाएंगे तो कमेगा कौन तो वर्किंग पापुलेशन डिक्रीज होने की वजह से यूरोप की इनकम भी डिक्रीज हो रही थी क्योंकि सारे कमाने
वाले लोग और लड़ने चले गए द तो ऐसी सिचुएशन में जितनी भी महिलाएं थी उन्हें आगे आना पड़ता है और भी अपना घर चलाने के
लिए फैक्टरीज में आकर कम करने लगती है तो देखा आपने जहां पहले फैक्टरीज में पुरुष कम करते द वहां वॉर की वजह कम करने लगती
दोस्तों अगर हम ब्रिटेन की बात करें तो ब्रिटेन के पास वर्ल्ड वॉर फर्स्ट से पहले बहुत पैसा था लेकिन जब वर्ल्ड वॉर फर्स्ट
हुआ तो ब्रिटेन का बहुत ज्यादा पैसा खर्च हुआ क्योंकि वांर पैसा तो लगता ही है क्योंकि बहुत सारी वेपंस से ये होते हैं
आर्मी के लिए खर्च करना पड़ता है समझ रहे हो इनफेक्ट ब्रिटेन का इतना पैसा खर्च हुआ की ब्रिटेन को कर्ज लेना पद गया वो भी
अमेरिका से यानी की उस है ऐसा नहीं है दोस्तों की केवल ब्रिटेन ने कर्ज लिया था बल्कि ऐसी कई सारी कंट्रीज थी जो की वॉर
लड़ रही थी और उन्होंने भी अमेरिका से कर्ज ले रखा था अमेरिका एक इंटरनेशनल डेबिटर से एक इंटरनेशनल क्रेडिटर बन गया
था मतलब जो देश पहले कर्ज लेता था अब वो कर्ज देने वाला देश बन गया था पोस्ट बार रिकवरी दोस्तों जो ब्रिटेन था वो वर्ल्ड
वॉर फर्स्ट से पहले काफी ज्यादा पावरफुल था पावरफुल इन डी सेंस उसकी इकोनॉमी काफी ज्यादा अच्छी थी ब्रिटेन पुरी तरीके से
इंडियन मार्केट को और जापान के मार्केट को कैप्चर करके रखे द लेकिन फिर जब ब्रिटेन पार्टिसिपेट करता है वॉर में तो ब्रिटेन
काफी ज्यादा बिजी हो जाता है वॉर में जिन कंट्रीज के ऊपर ब्रिटेन कब्जा किए हुए था उन पर वह ध्यान नहीं दे पता है और इसी
दौरान क्या होता है इंडिया और जापान में इंडस्ट्रीज डिवेलप होने लगती है तो जब ब्रिटेन बोर खत्म होने के बाद वापस आता है
इंडिया को कैप्चर करने के लिए तो वो मार्केट में अपनी पहले जैसी पोजीशन जेन नहीं कर पता है क्योंकि उसे समय तक हमारी
इंडस्ट्रीज भी काफी ज्यादा डिवेलप हो चुकी थी और अगर हम इंटरनेशनल लेवल पर देखें तो ब्रिटेन इतना कमजोर हो चुका था की वो
कंप्लीट ही नहीं कर पता है जापान के साथ क्योंकि जापान भी उसे समय तक काफी ज्यादा डिवेलप हो चुका था तो अगर हम ऐड देखे तो
ब्रिटेन के ऊपर कर्ज बहुत ज्यादा हो गया था और ब्रिटेन उसे कर्ज में डूबता ही चला जा रहा था सिमिलरली वॉर के टाइम पर एक और
सीन देखने को मिल रहा था देखो क्या था जब वॉर चल रहा था यानी की ड्यूरिंग वॉर तो गुड्स की डिमांड बढ़ गई थी आप खुद ही सोचो
की अगर वॉर होगा तो चीजों के डिमांड ज्यादा होगी क्योंकि आर्मी के लिए यूनिफॉर्म चाहिए हेल्दी इक्विपमेंट चाहिए
मशीन चाहिए आम चाहिए बेसिकली बहुत सारी चीज तो डिमांड बढ़ गई थी व्हाट टाइम पर डिमांड की पूर्ति के लिए प्रोडक्शन भी बढ़
गया प्रोडक्शन बढ़ गया था तो एंप्लॉयमेंट भी बढ़ गया था क्योंकि लोग तो चाहिए ना कम करने के लिए फैक्टरीज में तो हम
इनडायरेक्टली देखें तो वॉर की वजह से लोगों को एंप्लॉयमेंट मिल रहा था तो हम का सकते हैं की वॉर टाइम पर इकोनॉमिक्स बूम
देखने को मिला अब दोस्तों वॉर तक तो ठीक था लेकिन जैसे ही वॉर खत्म होता है तो इन सब चीजों की डिमांड कम हो जाती है और जब
उनकी डिमांड कम हो जाती है तो प्रोडक्शन भी कम हो जाता है और जब प्रोडक्शन कम हो जाता है तो एंप्लॉयमेंट भी कम हो जाता है
मतलब जो लोग फैक्ट्री में कम कर रहे द वह वॉर के बाद वापस अनइंप्लॉयड हो जाते हैं अब हम देखते हैं की एग्रीकल्चर इकोनॉमिक
एसिड तो सबसे पहले हम देखते हैं की वॉर से पहले क्या कंडीशन थी तो वॉर से पहले जो ईस्टर्न यूरोप था वो मेजर व्हीट
प्रोड्यूसर था मतलब सबसे ज्यादा वीट प्रोड्यूस करता था लेकिन जब यूरोप वॉर में बिजी हो जाता है तो वॉर की वजह से वहां पर
बीट का प्रोडक्शन कम हो जाता है यानी की ड्यूरिंग वॉर वीट सेक्शन वाज डिक्रीज इन यूरोप लेकिन उसी दौरान क्या आदर कंट्री
जैसे की कनाडा उस ऑस्ट्रेलिया यह कंट्री मात्रा वीट का प्रोडक्शन करने लगती अब क्योंकि यूरोप तो प्रोडक्शन कर नहीं रहा
था क्योंकि वह तो लड़ाई में बिजी था तो व्हाट टाइम पर वीट डिमांड ज्यादा हो गई थी जिस वजह कंट्री थी वो बहुत ज्यादा प्रॉफिट
कम ए रही थी इनफेक्ट यह जो कंट्रीज थी वो मेजर प्रोड्यूसर बन जाती है वीट की ड्यूरिंग लेकिन यह तब तक वॉर चल रहा था
जैसे ही वॉर खत्म हुआ तो कंडीशन कुछ और हो गई वॉर खत्म होने के बाद यूरोप फिर से वीट का प्रोडक्शन करने लगता है तो यहां पर यह
लोग तो प्रोडक्शन करिए द ऊपर से यूरोप भी स्टार्ट कर देता है प्रोडक्शन जिसमें इसे वीट काफी मात्रा में प्रोड्यूस होने लगता
है इन फैक्ट इतना वेट प्रोड्यूस हो जाता है जितनी डिमांड ही नहीं थी क्योंकि डिमांड भी कम हो गई थी वॉर की खत्म होने
के बाद तो जब किसी चीज की डिमांड कम हो जाती है और उसकी सप्लाई बहुत ज्यादा हो जाती है तो उसे चीज की प्राइस कम हो जाते
हैं और ऐसा हुआ भी मार्केट में वेद प्राइस इस बहुत ज्यादा गिर जाते हैं जिस वजह से कई सारे किसने को लॉस हो जाता है और कई
सारी किसान कर्ज में डूब जाते हैं तो देखा आपने जहां कंट्रीज वॉर के टाइम पर काफी ज्यादा प्रॉफिट कम ए रही थी वही इन
कंट्रीज को वॉर के बाद एक आर्थिक मंडी से गुजरना पद गए यानी की हम का सकते हैं एग्रीकल्चर क्राइसिस से गुजरना पड़ेगा
राइज ऑफ मास प्रोडक्शन एंड कांसेप्शन अभी दोस्तों कुछ ही टाइम पहले एक लाइन बोली थी की जो अमेरिका था वो एक इंटरनेशनल डेबिटर
से एक इंटरनेशनल क्रेडिटर बन जाता है मतलब अमेरिका जो की पहले खुद कर्ज लेता था अब वह कर्ज देने वाला देश बन जाता है तो यह
कैसे पॉसिबल हुआ इस सब टॉपिक में हम यही जानेंगे तो दोस्तों जो वर्ल्ड वॉर हुआ था उसे कई सारी कंट्रीज अफेक्ट हुई थी मतलब
कई सारी कंट्रीज को नुकसान हुआ था अब दोस्तों ऐसा नहीं है की जो अमेरिका था यानी की उस था वह
बल्कि अमेरिका को भी नुकसान हुआ था लेकिन फर्क सिर्फ इतना था की जो अमेरिका था उसकी कॉल में बहुत जल्दी रिकवर कर जाती अब कैसे
रिकवर करती है चलिए जानते हैं तो जो अमेरिका की इकोनॉमी थी उसमें एक इंपॉर्टेंट फीचर इंट्रोड्यूस होता है जो
की था मास प्रोडक्शन का मास प्रोडक्शन का मतलब होता है जब किसी चीज का प्रोडक्शन बड़ी स्केल पर होता है तो उसे हम मास
प्रोडक्शन कहते हैं तो मास प्रोडक्शन का जो कॉन्सेप्ट था वो लाया गया था हेनरी फोर्ड के द्वारा जो की फोर्ड मोटर्स के
फाउंडर द इन्होंने ही पहली बार अमेरिका में मांस प्रोडक्शन किया था इसलिए इन्हें पायनियर ऑफ मास प्रोडक्शन भी बोला जाता है
तो एंड क्या करते हैं मांस प्रोडक्शन के लिए एक मेथड लेट हैं जिसका नाम था असेंबली लाइन मेथड असेंबली लाइन मेथड एक ऐसा मेथड
होता है जिसमें वर्कर्स को एक लाइन में खड़ा कर दिया जाता है और हर एक वर्कर को एक छोटे-छोटे पार्ट को सिंबल करना होता है
जैसा की आप इस पिक्चर में भी देख सकते हो इससे फायदा क्या होता है की कम बहुत तेजी से होता है और इसे जो प्रोडक्शन कॉस्ट है
वह बहुत सस्ती पड़ती है जरूरत है मतलब इस कर का जो प्रोडक्शन था वह बहुत बड़ी स्केल पर हुआ था और वह इसी
असेंबली लाइन मेथड के थ्रू कंप्लीट किया गया था 1943 में जो है हेनरी फोर्ड द वो एक और बेहतरीन कम करते हैं ये वर्कर्स की
इनकम को $5 कर देते हैं इससे जो वर्कर्स द वो भी खुश हो जाते हैं ऐसा नहीं है दोस्तों की वर्कर्स की इनकम बढ़ाने के बाद
हेनरी फोर्ड को नुकसान हो रहा था बल्कि उनका मॉडल ही इतना बेहतरीन था की इनका बढ़ाने के बावजूद भी प्रोडक्शन कोड बहुत
ही सस्ती पद रही थी तो अगर हम केवल कर प्रोडक्शन की बात करें तो जहां उस में 1999 में कर प्रोडक्शन 2 मिलियन था वही
1929 में कर प्रोडक्शन 5 मिलियन हो जाता है अब दूसरे ऐसा नहीं है की उसमें केवल कर का ही मांस प्रोडक्शन हो रहा था बल्कि जो
व्हाइट गुड्स होते हैं जैसे की रेफ्रिजरेटर वाशिंग मशीन रेडियो इस तरह की चीजों को भी प्रोडक्शन बढ़ गया था और मांस
प्रोडक्शन की वजह से इनके प्राइस इंप्रूव करने के लिए इन सब चीजों को खरीदना स्टार्ट कर देते जिस वजह से जो उस
इकोनॉमी थी वह काफी रिकवर हो जाती है इन फैक्ट इतनी रिकवर हो जाती है की वह ब्रिटेन जैसे देशों को लोन भी देने लगती
है तब ग्रेट डिप्रेशन दोस्तों ग्रेट डिप्रेशन के बारे में हमने पिछली क्लासेस में पढ़ा था ग्रेट डिप्रेशन का मतलब होता
है जब इकोनॉमिक्स डिक्लाइन होने लगती है यानी की डिप्रेशन में चली जाती है तो 1929 से मिड 1930 का जो पीरियड था उसमें वर्ल्ड
इकोनॉमी काफी था ना डिक्लाइन हो जाती है प्रोडक्शन डिक्लाइन हो जाता है एंप्लॉयमेंट कम हो जाता है इनकम कम हो
जाती है ट्रेड डिक्लाइन हो जाता है यानी की 1929 से मिड 1930 का जो पीरियड था उसी को बोला जाता है तो ग्रेट डिप्रेशन अब आप
सोच रहे होंगे की हो इसे दिस पॉसिबल यह कैसे हुआ क्योंकि अभी अभी हमने देखा था की वर्ल्ड इकोनॉमी तो काफी अच्छी चल रही थी
फिर अचानक से ऐसा क्या हुआ की वर्ल्ड कौन है डिप्रेशन में चली जाती है चलिए जानते हैं
सैन ऑफ एग्रीकल्चर गुड्स यानी की एग्रीकल्चर गुड्स का जो प्रोडक्शन था वो बहुत ज्यादा बढ़ जाता है क्योंकि ज्यादातर
कंट्रीज ने वॉर के बाद प्रोडक्शन बढ़ा दिया था जिस वजह से प्रोडक्शन हद से ज्यादा होने लगता है और इसी कारण से
प्राइस भी कम हो जाते हैं क्योंकि saubhavik सी बात है जब किसी चीज की सप्लाई ज्यादा हो जाती है तो उसकी प्राइस
गिर जाते हैं तो एग्रीकल्चर है गुड्स के प्राइस गिर जाते हैं इस वजह से फार्मर्स की इनकम डिक्लाइन होने लगती है और पता है
ऐसी सिचुएशन में फेमस क्या सोचते हैं फेमस यह सोचते हैं की अगर वह प्रोडक्शन को और ज्यादा बढ़ा देंगे तो वो अपने लॉस को
मैनेज कर लेंगे लेकिन होता कुछ और है होता क्या है की जैसे ही फॉर्मल प्रोडक्शन को और बढ़ा देते हैं वैसे ही प्राइस और गिर
जाते हैं क्योंकि खरीदने वाले लोग ही नहीं बचते लक ऑफ वायरस हो जाता है जिस वजह से खाना रोते होने लगता है यानी की सड़ने
लगता है जिस वजह से एग्रीकल्चर को लोन अच्छा था यानी की वह इंटरनेशनल क्रेडिटर बना बैठा था लेकिन जैसे ही
इकोनॉमी डाउन होने लगती है यानी की एग्रीकल्चर लॉस होने लगता है तो वो अपना लोन विद्रोह करने लगता है यानी की वापस
लेने लगता है जिस वजह से उस पर डिपेंडेंट जितने भी अलग-अलग बैंक्स द यूरोप के अंदर वो फैल हो जाते हैं और जो वर्ल्ड की
डिफरेंट डिफरेंट करेंसी सी वो कॉलेप्स कर जाती है तीसरा रीजन था uswing इंपोर्ट ड्यूटी यानी की अमेरिका अपनी इंपोर्ट
ड्यूटी इसको डबल कर देता है इससे वर्ल्ड ट्रेड को बहुत बुरा इंपैक्ट पड़ता है तो यह तीन मेजर रीजंस द जिनकी वजह से ग्रेट
डिप्रेशन देखने को मिल रहा था वर्ल्ड वाइड अब हम देखते हैं की अमेरिका के ऊपर क्या इंपैक्ट पड़ता है ग्रेट डिप्रेशन का यानी
की इंपैक्ट ऑफ ग्रेट डिप्रेशन ऑन अमेरिका तो जो अमेरिका के बैंक से वो दर जाते हैं किस से दर जाते हैं ग्रेट डिप्रेशन से तो
वह क्या करते हैं लोगों को लॉन्च देना बंद कर देते और जिनको उन्होंने पहले से लोन दे रखा था उनसे वापस मांगने लगते हैं
[संगीत] लोगों के हाउस बढ़ जाते हैं लोग यह बिजनेस को लिप्स कर
जाते हैं इसके अलावा उन एंप्लॉयमेंट बढ़ जाता है और जो लोग बैंक्स का लोन वापस नहीं कर का रहे द उन्हें बैंक फोर्स करने
लगता है अपने घर कर जैसी चीजों को छोड़ने के लिए लेकिन इतना सब कुछ करने के बावजूद भी जो उस बैंकिंग सिस्टम था वो कॉलेप्स कर
जाता है क्योंकि उस बैंक अपना लोन वापस नहीं ले पाते हालांकि दोस्तों 1935 से जो उस था वो रिकवरी करने लगता है लेकिन तब तक
जो डिप्रेशन था वह सोसाइटी को पॉलिटिक्स को इंटरनेशनल रिलेशंस को और लोगों के माइंड को बहुत ही बुरी तरीके से अफेक्ट कर
चुका था इंडिया एंड ग्रेट डिप्रेशन अब हम देखते हैं की ग्रेट डिप्रेशन का इंडिया के ऊपर क्या इंपैक्ट पड़ता है
एग्रीकल्चर लेकिन जैसे ग्रेट डिप्रेशन आता है उसमें इंडिया की हालत खराब हो जाती है
1928 से 1934 तक इंडिया का इंपोर्ट और एक्सपोर्ट लगभग आधा हो जाता है और जो वीट प्राइस होते हैं इंडिया के वह लगभग 50% तक
गिर जाते हैं ऐसे में जो ब्रिटिश गवर्नमेंट थी जो की उसे समय पर इंडिया के ऊपर रूल कर रही थी वो लोगों के टैक्स कम
नहीं करती हैं और वो लोगों को फोर्स करती है टैक्स या रेवेन्यू को भरने के लिए तो ऐसे में इंडियन अपनी सेविंग्स की थ्रू या
अपनी जमीनों को ज्वैलरी को और प्रिंसेस मेटल्स को बीच-बीच कर ब्रिटिश गवर्नमेंट को रेवेन्यू पे करते हैं लास्ट टॉपिक है
हमारा वर्ल्ड इकोनॉमी हीरा यहां से हम पढ़ेंगे की वर्ल्ड वॉर सेकंड के बाद इकोनॉमी कैसी रहती है और क्या-क्या चेंज
होते हैं तो जो वर्ल्ड में सेकंड था वह वर्ल्ड वॉर फर्स्ट से लगभग दो विकेट्स शुरू हुआ था यानी की लगभग 20 साल बाद शुरू
हुआ था वर्ल्ड वह सेकंड 1939 से शुरू हुआ था और 1945 तक चला था यानी की लगभग 6 साल तक चला था वर्ल्ड वॉर सेकंड भी दो पावर के
बीच में लड़ा गया था एलाइड पावर्स और सेंट्रल पावर लाइट पावर्स में द मैनली ब्रिटेन फ्रांस सोवियत यूनियन एंड अमेरिका
और सेंट्रल पावर्स में थी मिली नाजी जर्मनी जापान एंड इटली इस वॉर की वजह से लगभग 60 मिलियन लोग मार गए द यानी की
वर्ल्ड की लगभग 3% पापुलेशन इस गवर्नमेंट मारी गई थी और लाखों लोग घायल हो गए द ये जो वॉर था वो वर्ल्ड वॉर फर्स्ट से अलग था
क्योंकि इसमें सिविलियन की डेथ ज्यादा हुई थी रडार दें आर्मी यानी की आम लोगों की ज्यादा ज्यादा नहीं गई थी अब दोस्तों
वर्ल्ड वॉर सेकंड जैसे ही खत्म हुआ तो दो कंट्री सबसे ज्यादा उभर कर आती है पहली थी अमेरिका जो की वॉर के बाद डोमिनेंट
इकोनॉमिक पॉलिटिकल एंड मिलिट्री पावर बन गई थी वेस्टर्न वर्ल्ड में और दूसरी थी सोवियत यूनियन जिसका डोमिनेंस ईस्टर्न
वर्ल्ड में बढ़ गया था और यह दोनों ही कंट्री वर्ल्ड के रिकंस्ट्रक्शन में काफी ज्यादा भूमिका निभाती है
तो बहुत सारी कंट्री आपस में मिलती है और डिस्कशन करती है
रिकवरी के लिए मतलब वॉर में जितना भी नुकसान हुआ है उसकी रिकवरी कैसे की जाए मतलब भरपाई कैसे की जाए इस मुद्दे के ऊपर
डिस्कशन होता है तो इसके लिए कंट्रीज दो निष्कर्ष निकलती है पहला प्रिजर्वेशन ऑफ इकोनॉमिक्स स्टेबिलिटी मतलब इकोनॉमिक
स्टेबिलिटी लानी होगी और इकोनॉमिक्स स्टेबिलिटी कब आएगी जब मास प्रोडक्शन होगा मतलब चीज ज्यादा प्रोड्यूस होगी और ज्यादा
चीज कब प्रोड्यूस होंगी जब लोग उन चीजों को ज्यादा खरीदेंगे यानी की मांस कंजप्शन होगा और लोग चीजों को कब खरीदेंगे जब उनकी
इनकम अच्छी होगी और उनकी इनकम का बच्ची होगी जब उनके पास एंप्लॉयमेंट होगा और एंप्लॉयमेंट कब होगा जब गवर्नमेंट
एंप्लॉयमेंट उन्हें देगी और गवर्नमेंट अगर एंप्लॉयमेंट देगी तो इनडायरेक्टली मांस प्रोडक्शन होगा और आप तो जानते ही हैं की
अगर किसी कंट्री में मांस प्रोडक्शन होता है तो वह कंट्री बहुत जल्दी रिकवर कर जाती है तो इस तरीके से कंट्रीज आसानी से रिकवर
कर सकती थी वॉर के नुकसान से दूसरा कंक्लुजन था इकोनॉमिक्स लिंक्स विथ आउटसाइड वर्ल्ड यानी की वर्ल्ड के साथ
इकोनॉमिक लिंक डेवलप करके रखना होगा यानी की फ्लो ऑफ ट्रेड फ्लो ऑफ कैपिटल फ्लॉप लेबर होता रहे एक कंट्री से दूसरी कंट्री
तो कंट्रीशन दो मेजर ऑब्जेक्टिव्स पर कम करती है वह ऐसे रिकवरी करने है इसकी पुरी प्रक्रिया क्या होती है चलिए
जानते हैं तो इन दो ऑब्जेक्टिव्स को पूरा करने के लिए जुलाई 1944 में ब्रिटेन वुड हैव फायर जो की एक जगह है उस में वहां पर
एक कॉन्फ्रेंस होती है जिसका नाम था यूनाइटेड नेशंस मॉनेटरी एंड फाइनेंशियल कॉन्फ्रेंस यानी की
unmfc इसमें कई सारे देशों ने पार्टिसिपेट किया था इसी को ब्रिटेन वुड्स कंप्रेस भी बोला जाता है तो इस कॉन्फ्रेंस में क्या
होता है ब्रिटेन वुड्स इंस्टीट्यूशन सेटअप किए गए और यह ब्रिटेन इंस्टीट्यूशन कौन-कौन से द तो पहला था इंटरनेशनल
मॉनेटरी फंड यानी की आईएमएफ और दूसरा था इंटरनेशनल बैंक फॉर रिकंस्ट्रक्शन एंड डेवलपमेंट यानी की इबर्ड जिसे हम आज के
टाइम पर वर्ल्ड बैंक के नाम से जानते हैं तो यह तो बॉडी बनाई जाती है वर्ल्ड को फिर से रिकवर करने के लिए अब हम देखते हैं की
इन दोनों इंस्टीट्यूशंस के कम क्या द तो आईएमएफ का कम था तो डील्स विद एक्सटर्नल सरप्लस एंड डेफिसिट ऑफ इट्स मेंबर्स नेशन
मतलब किसी कंट्री में ज्यादा प्रोडक्शन हुआ है और किसी कंट्री में कम प्रोडक्शन हुआ है तो आप उसमें सरप्लस और डेफिसिट को
मैनेज करना ताकि आप उसमें कंट्रीज में स्टेबिलिटी बनी रहे दूसरा था इबर्ड जिसका कम था कंट्रीज को फाइनेंशली सपोर्ट करना
ताकि जिन कंट्रीज को वॉर में लॉस हुआ है वह आसानी से रिकवर कर सके और दोस्तों इन दोनों ही इंस्टीट्यूशंस में जो उस था यानी
की अमेरिका था उसका डोमिनेशन ज्यादातर डिसीजन मेकिंग में क्योंकि उस वॉर के बाद एक पावरफुल और वेल्ड डिवेलप कंट्री के रूप
में हो रहा था इसलिए उसका बोलबाला ज्यादा था इन दोनों इंस्टीट्यूशंस में और दोस्तों यह जो ब्रिटेन वुड सिस्टम था वह फिक्स
एक्सचेंज रेट पर कम करता था मतलब वर्ल्ड की अलग-अलग करेंसी इसको डॉलर के साथ फिक्स कर दिया था और डॉलर को भी फिक्स कर दिया
था गोल्ड के साथ मतलब 35 डॉलर बराबर होगा गोल्ड के ज्यादा कंफ्यूज होने की जरूरत नहीं है सिंपली आप इतना याद रखो की जो
ब्रिटेन वुड सिस्टम था वो फिक्स एक्सचेंज रेट पर कम करता था ऐसा इसलिए था ताकि करेंसी का एक्सचेंज आसानी से हो सके डी
अर्ली पोस्ट ईयर तो 1950 से 1970 का जो पीरियड था वो बहुत ज्यादा स्टेबल हो गया था क्योंकि इस पीरियड में जो वर्ल्ड ट्रेड
था वो एनुअल 8% से ज्यादा ग्रो कर रहा था और यह जो ग्रोथ थी वो बहुत ज्यादा स्टेबल थी बिना किसी फ्लकचुएशन के औरतों और
दोस्तों जो डेवलपिंग कंट्री थी वो भी एडवांस इंडस्ट्रियल कंट्रीज की तरह बनने के लिए या उनसे कंप्लीट करने के लिए
फेसिनेट होने लगी थी दी कॉलोनी खत्म होने के बाद लगभग 20 सालों में कई सारी एशियाई और अफ्रीकन कंट्रीज को आजादी
मिल जाती है coloreal गवर्नमेंट यह सब समस्याएं देखने को मिल रही थी क्योंकि गवर्नमेंट चली गई थी पर उन्होंने
जो टोटल क्रिएट किया था यानी की अत्याचार और लूट मचाई थी उसका असर इन कंट्री पर कई सालों तक रहता है तो जो ब्रिटेन वुड
इंस्टीट्यूशंस द यानी की आई एम एफ और इबर्ड यानी की वर्ल्ड बैंक ये केवल जो इंडस्ट्रियल कंट्रीज थी यानी की उसे समय
की जो डिवेलप कंट्रीज इन टर्म्स ऑफ इंडस्ट्रीज उनकी ही मदद कर रहे द और केवल उन्हें ही फाइनेंशली सपोर्ट कर रहे द बाकी
इन डेवलपिंग कंट्रीज पर कोई भी इंस्टीट्यूशन ध्यान नहीं दे रहा था तो जो डेवलपिंग कंट्री थी यानी की जो पावर्टी से
जूझ रही थी उन्हें इंस्टीट्यूशंस का ज्यादा फायदा नहीं मिल रहा था इसलिए ये कंट्रीज क्या करती है अपने आप को
ऑर्गेनाइज करती है यानी की एक ग्रुप बनाती हैं जिसको बोला गया g77 तो यह जो ग्रुप था डेवलपिंग कंट्रीज 77 वह क्या करता है
डिमांड करता है न्यू की यानी की न्यू इंटरनेशनल इकोनॉमिक ऑर्डर की तो न्यू इंटरनेशनल इकोनॉमिक ऑर्डर के मुताबिक क्या
होना था की जितनी भी उनकी नेचुरल रिसोर्सेस है उन पर उन्हें की कंट्रीज का कब्जा होना चाहिए ऐसा नहीं होना चाहिए की
कोई और पावरफुल कंट्री जा रही है और उसकी रिसोर्सेस को लूट कर ले जा रही है तो ऐसा नहीं होना चाहिए दूसरा उनके रॉ मैटेरियल्स
का उन्हें फेर प्राइस मिलना चाहिए और जितने भी मैन्युफैक्चर्ड गुड्स हैं डिवेलप कंट्रीज में उन पर इनका भी एक्सेस होना
चाहिए तो ये था न्यू यानी की न्यू इंटरनेशनल इकोनॉमिक ऑर्डर बिगनिंग ऑफ ग्लोबलाइजेशन दोस्तों 1960 के
बाद उस की जो इकोनॉमी थी वो डाउन जाने लगती है इसके पीछे रीजन था क्योंकि उस डिफरेंट डिफरेंट कंट्रीज में इन्वेस्टमेंट
वगैरा किए हुए था जिसमें से जब कंट्री में प्राइसेस डिक्लाइन हुए तो उस की इकोनॉमी भी इस कारण से डाउन हो जाती है और
फाइनेंशियल ग्रोथ भी वीक हो जाती है जिस वजह से होता क्या है की जो उस डॉलर था जो की वर्ल्ड की प्रिंसिपल करेंसी बना हुआ था
वह प्रिंसिपल करेंसी नहीं रहता है और जो फिक्स एक्सचेंज रेट का जो सिस्टम था जो की अभी तक चला ए रहा था उससे बदलकर फ्लोटिंग
एक्सचेंज रेट पर कर दिया जाता है इंटरनेशनल इंस्टिट्यूट ऑप्शन से लेकिन उसके बाद क्या
जाता है वेस्टर्न कमर्शियल बैंक्स और प्राइवेट लैंडिंग इंस्टीट्यूशन से लोन लेने के लिए यह जो बैंक से उनका
इंटरेस्टेड बहुत ज्यादा होता था इसलिए जो डेवलपिंग कंट्री थी वो कर्ज में चली जाती है इनकम कम हो जाती है पावर्टी बढ़ जाती
है स्पेशली जो अफ्रीका था और जो लैटिन अमेरिका था इनकी इकोनॉमिकल कंडीशन बहुत ज्यादा बत्तर हो जाती है वहीं अगर हम बात
करें चीन की तो आपको तो पता ही है की चीन की पापुलेशन बहुत ज्यादा है इसलिए वहां पर लेबर सस्ती थी जिस वजह से कई सारी
मल्टीनेशनल कंपनी यानी की मंच वहां पर आने लगती है जिस वजह से जो चीन था वो बाद में जाकर वर्ल्ड मार्केट में एक सुपर पावर के
रूप में उभरता है सिमिलरली और भी कई सारी कंट्री थी जैसे की इंडिया इसके अंदर भी रैपिड इकोनॉमी ट्रांसफॉर्मेशन देखने को
मिलता है तो हमें इस चैप्टर से क्या पता चला की जो वर्ल्ड है और जो वर्ल्ड की डिफरेंट डिफरेंट कंट्रीज है वह एक दूसरे
के साथ काफी कनेक्टेड थी और आज भी कनेक्टेड आई होप आपको यह वीडियो पसंद आई होगी अगर आपको यह
वीडियो पसंद आई तो आप इस वीडियो को लाइक कर सकते हो और चाहो तो आप इस चैनल को सब्सक्राइब भी कर सकते हो ऐसी क्लास 10th
की वीडियो आगे देखने के लिए बाकी मिलते हैं नेक्स्ट वीडियो में तब तक के लिए टेक केयर बाय बाय
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