परिचय
यह वीडियो क्लास 12th के मनी एंड बैंकिंग के दो चैप्टर का संपूर्ण और डिटेल वन शॉट है। एनसीईआरटी और अन्य ऑथर्स की किताबों के अनुसार मनी और बैंकिंग को समझाने के लिए यह वीडियो एकदम क्रिस्टल क्लियर कंटेंट प्रदान करता है।
बार्टर सिस्टम (Barter System)
- मनी के पहले का तरीका था बार्टर सिस्टम, जिसमें सामान के बदले सामान का लेनदेन होता था।
- इस सिस्टम में लेनदेन तभी संभव था जब दोनों पक्षों के पास एक-दूसरे की जरूरत का सामान होता। इसे डबल कॉइंसिडेंस ऑफ वांट्स कहते हैं।
- बार्टर सिस्टम की सीमाएं:
- डिविजिबिलिटी की कमी: सामान को छोटे हिस्सों में बांटना मुश्किल था।
- स्टोर ऑफ वैल्यू की कमी: सामान खराब हो सकता था, इसलिए भविष्य के लिए स्टोर करना कठिन था।
- यूनिट ऑफ अकाउंट की कमी: अलग-अलग सामानों को जोड़ना और हिसाब रखना मुश्किल था।
मनी का विकास (Evolution of Money)
- बार्टर सिस्टम के बाद गोल्ड, सिल्वर, मेटल कॉइन, करेंसी नोट्स, डेबिट/क्रेडिट कार्ड और डिजिटल मनी जैसे यूपीआई, Paytm आदि आए।
- मनी ने बार्टर सिस्टम की सीमाओं को दूर किया और लेनदेन को आसान बनाया।
मनी के फंक्शंस (Functions of Money)
प्राइमरी फंक्शंस:
- मीडियम ऑफ एक्सचेंज (Medium of Exchange): मनी लेनदेन को आसान बनाती है और डबल कॉइंसिडेंस की जरूरत खत्म करती है।
- मेजर ऑफ वैल्यू (Measure of Value) या यूनिट ऑफ अकाउंट: मनी किसी भी वस्तु या सेवा की कीमत को मापने का मानक होती है।
सेकेंडरी फंक्शंस:
- स्टोर ऑफ वैल्यू (Store of Value): मनी की वैल्यू को भविष्य में उपयोग के लिए सुरक्षित रखती है।
- स्टैंडर्ड ऑफ डेफर्ड पेमेंट (Standard of Deferred Payment): मनी के माध्यम से भविष्य में किश्तों में भुगतान संभव होता है।
मनी के प्रकार (Types of Money)
- फियाट मनी (Fiat Money): सरकार द्वारा जारी और समर्थित मनी, जिसमें कोई आंतरिक मूल्य नहीं होता।
- लीगल टेंडर मनी (Legal Tender Money): कानूनी रूप से स्वीकार्य भुगतान का माध्यम।
- फिडशियरी मनी (Fiduciary Money): विश्वास पर आधारित मनी, जैसे चेक और ड्राफ्ट।
- कमोडिटी मनी (Commodity Money): जिसमें आंतरिक मूल्य होता है, जैसे गोल्ड और सिल्वर।
- फुल बॉर्डेड मनी (Full Bodied Money): आंतरिक और बाहरी मूल्य समान।
- प्लास्टिक मनी (Plastic Money): डेबिट और क्रेडिट कार्ड।
- डिजिटल मनी (Digital Money): ऑनलाइन पेमेंट जैसे यूपीआई, Paytm आदि।
बैंकिंग सिस्टम
सेंट्रल बैंक (Central Bank)
- देश का सबसे बड़ा बैंक, जैसे भारत में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI)।
- करेंसी जारी करने का अधिकार, बैंकर्स बैंक, सरकार का बैंक, लेंडर ऑफ द लास्ट रिसोर्ट, मनी सप्लाई कंट्रोलर, कस्टोडियन ऑफ गोल्ड और फॉरेन एक्सचेंज, क्लियरिंग हाउस फंक्शन आदि।
कमर्शियल बैंक (Commercial Banks)
- पब्लिक का पैसा जमा करते हैं और लोन देते हैं।
- सेविंग अकाउंट, करंट अकाउंट, रिकरिंग डिपॉजिट, फिक्स्ड डिपॉजिट जैसे अकाउंट टाइप्स।
- चेक फैसिलिटी केवल कमर्शियल बैंक प्रदान करते हैं।
- ओवरड्राफ्ट फैसिलिटी करंट अकाउंट होल्डर्स के लिए।
मनी सप्लाई (Money Supply)
- किसी देश में एक निश्चित समय पर उपलब्ध कुल मनी की मात्रा।
- मनी सप्लाई के मेजर्स: M1, M2, M3, M4।
- M1 में करेंसी इन सर्कुलेशन, डिमांड डिपॉजिट, और आरबीआई के पास अन्य डिपॉजिट शामिल हैं।
मॉनिटरी पॉलिसी (Monetary Policy)
- सेंट्रल बैंक द्वारा मनी सप्लाई को नियंत्रित करने की नीति।
- क्वांटिटेटिव इंस्ट्रूमेंट्स: CRR, SLR, Repo Rate, Reverse Repo Rate, Open Market Operations आदि।
- क्वालिटेटिव इंस्ट्रूमेंट्स: मार्जिन रिक्वायरमेंट, मोरल सुएशन, सेलेक्टिव क्रेडिट कंट्रोल।
- मनी सप्लाई बढ़ाने या घटाने के लिए विभिन्न इंस्ट्रूमेंट्स का उपयोग।
क्रेडिट क्रिएशन (Credit Creation)
- कमर्शियल बैंक द्वारा जमा राशि का एक हिस्सा आरबीआई और खुद के पास रखने के बाद बाकी राशि लोन के रूप में देना।
- लोन लेने वाला व्यक्ति खर्च करता है और वह पैसा फिर से बैंक में जमा होता है, जिससे लोन की श्रृंखला बनती है।
- मनी मल्टीप्लायर = 1 / LR (LR = लॉन्ग रेशियो = CRR + SLR)
- उदाहरण: यदि LR = 20%, तो मनी मल्टीप्लायर 5 होगा।
- इससे एक प्रारंभिक जमा से कई गुना मनी क्रिएट होती है।
कमर्शियल बैंक और सेंट्रल बैंक में अंतर
| विषय | कमर्शियल बैंक | सेंट्रल बैंक | |-------|----------------|--------------| | उद्देश्य | प्रॉफिट कमाना | इकॉनमी की स्थिरता बनाए रखना | | संख्या | कई | एक (एपेक्स बैंक) | | जनता से संबंध | डायरेक्ट | अप्रत्यक्ष | | चेक फैसिलिटी | उपलब्ध | नहीं | | मनी क्रिएशन | करता है | नहीं करता |
निष्कर्ष
यह वीडियो मनी एंड बैंकिंग के सभी महत्वपूर्ण टॉपिक्स को सरल भाषा में समझाता है, जिससे छात्र परीक्षा में बेहतर प्रदर्शन कर सकते हैं। मनी के विकास से लेकर बैंकिंग सिस्टम, मनी सप्लाई, मॉनिटरी पॉलिसी और क्रेडिट क्रिएशन तक का विस्तृत ज्ञान प्रदान करता है।
अतिरिक्त संसाधन
- C++ प्रोग्रामिंग बेसिक्स: कंपाइलर, वेरिएबल्स और डेटा टाइप्स समझें
- ऑडिट का पावर प्ले: CA परीक्षा के लिए सम्पूर्ण गाइड
- दिल्ली यूनिवर्सिटी के B.Com छात्रों के लिए कंपनी अधिनियम का वन-शॉट रिवीजन गाइड
- मार्च और अप्रैल 2025 के प्लेसेस इन न्यूज़: यूपीएससी प्रीलिम्स के लिए महत्वपूर्ण जानकारी
- ईमेल मार्केटिंग: डिजिटल मार्केटिंग में ROI बढ़ाने की रणनीतियाँ
हेलो गाइस, मैं आपका भाई, दोस्त एजुटर ऑफ इकोनॉमिक्स लव कौशिक स्वागत करता हूं आपका पीडब्ल्यू कॉमर्स वाला क्लास 12th के
प्यारे-प्यारे चैनल पे। और इस वीडियो के अंदर हम कवर अप करेंगे मनी एंड बैंकिंग के दो चैप्टर का वन शॉट। वैसे तो एनसीईआरटी
के हिसाब से ये सिंगल चैप्टर है। लेकिन अगर आप किसी दूसरे ऑथर की बुक पढ़ रहे हो फॉर एग्जांपल संदीप गर्ग, टीआर जैन या कोई
दूसरा ऑथर तो हो सकता है कि आपको यहां पर दो चैप्टर देखने को मिले। तो इस वीडियो के अंदर मैं आपको डिटेल के अंदर पूरे के पूरे
दोनों चैप्टर कराऊंगा। ये वीडियो देखने के बाद ट्रस्ट मी आपको कहीं भागने की जरूरत नहीं पड़ेगी। आपको पूरा चैप्टर क्रिस्टल
क्लियर करने का ठेका मैंने उठा लिया है। तो दोस्तों मैं आपको बताऊं ये जो मनी एंड बैंकिंग के दो चैप्टर्स हैं। इसके लिए हम
सबसे पहले स्टार्ट करेंगे मनी वाला चैप्टर। और मनी वाले चैप्टर को खत्म करके फिर बैंकिंग वाले चैप्टर पे आएंगे। लेकिन
मनी वाले चैप्टर को समझने का बहुत ही इंटरेस्टिंग तरीका दिया हुआ है। आप पहले एक ऐसी सिचुएशन अस्यूम करो। अपने दिमाग
में बिठाओ जब मनी नहीं होती थी। जब करेंसी, कॉइन, डेबिट कार्ड, क्रेडिट कार्ड, यूपीआई, Paytm, PhonePe, Google
Pay जब ये सब नहीं होता था तो हम सामान खरीदते, बेचते कैसे थे? तो उस टाइम को अस्यूम करो। उस टाइम को बोलते हैं बार
सिस्टम। बार्टर सिस्टम एक पुराना तरीका है सामान को खरीदने और बेचने का। जिसमें हम ट्रांजैक्शन यानी लेनदेन को तब पॉसिबल
करते थे जब हमें जो चाहिए वो सामने वाले के पास मिल जाए और सामने वाले को जो चाहिए वो हमारे पास मिल जाए। जब दो बंदे एक
दूसरे की जरूरत को पूरा कर रहे हो तो दोनों सामान का ट्रांसफर कर सकते हैं। दिस इज कॉल्ड द बार सिस्टम। तो बार सिस्टम से
चैप्टर शुरू कर दिया है। आप यहां देख रहे हो मस्त ट्रांजैक्शन हो रहा है। इसको जो चाहिए वो इसके पास है। इसको जो चाहिए वो
इसके पास है। लड़की को जो चाहिए वो लड़के के पास है। लड़के को जो चाहिए वो लड़की के पास है। तो आपस में ये अपना ट्रांजैक्शन
कर लेंगे तो सामान खरीदने और बेचने का बहुत आम तरीका आज भी काफी सारे गांव देहात में ये चलता है। इवन मैं बताऊं जब मैं
छोटा था अपने गांव के अंदर एक कटोरी गेहूं लेकर गया था दुकान पे और दुकान ने मेरे को बिस्किट का पैकेट दे दिया था। तो वाटर
सिस्टम मैंने खुद किया हुआ है दोस्तों। आप समझोगे यार ये वाटरर का मतलब क्या होता है? दोस्त वाटर का मतलब होता है एक्सचेंज।
एक्सचेंज को अकाउंट्स में आप ट्रांजैक्शन बोलते हो और हिंदी में इसको प्यार से आप बोल सकते हो लेनदेन। लेना और देना। ये
बहुत पुराने जमाने में ज्यादा पॉपुलर था। लेकिन आज के टाइम में करेंसी आ गई, कॉइन आ गई। ये सिस्टम खत्म हो गया। लेकिन आपके
कोर्स के अंदर है। तो आपको बेसिक-बेसिक चीजें पढ़नी ही है। जैसे कि आपको यहां भी दिखाई दे रहा है। ये मोची साहब है। मोची
साहब इसको जूता बनाकर दे रहे हैं बढ़िया सा और ये एक बोरी गेहूं इसको दे रहा है। तो यहां पर ट्रांजैक्शन हो रहा है। जो
खाने के लिए मोची को गेहूं चाहिए वो इस बंदे के पास है। जो इस बंदे को पहनने के लिए जूता चाहिए वो मोची के पास है। हम
आपके है कौन? सलमान खान वाली मूवी देखी थी। जूते दो पैसे लो। पैसे दो जूते लो। लेकिन अभी पैसे इंट्रोड्यूस नहीं हुए हैं।
हम जो कांसेप्ट पढ़ रहे हैं इसमें पैसा नहीं है। सामान के बदले सामान एक्सचेंज कर रहे हैं। तो जो ये डायरेक्टली सामान का
आदानप्रदान है। जैसे कि आपको दिख रहा है ये जो एप्पल है इसको चाहिए। ये जो भेड़ है वो इसको चाहिए। तो आपस में सामान की
खरीदफरोख्त कर रहे हैं। पैसा कहीं बीच में नहीं आ रहा। पैसा आया नए जमाने में। नया जमाना डिस्को का। तो इस डिस्को के जमाने
के अंदर पैसा आ गया। पैसे को धीरे-धीरे पढ़ेंगे। लेकिन आप जानो डेफिनेशन। मैंने क्या पढ़ा दिया आपको? मैंने बार सिस्टम का
मीनिंग पढ़ा दिया आपको। बार्टर सिस्टम का मतलब होता है गुड्स और सर्विस का एक दूसरे के लिए लेना देना करना। तो इट इज द
डायरेक्ट एक्सचेंज ऑफ गुड्स एंड सर्विसेस फॉर गुड्स एंड सर्विसेस। सामने वाले से कोई गुड्स एंड सर्विस ले रहे हैं हम तो
हमें भी कुछ देना पड़ेगा। राइट? हां। तो बार्टर सिस्टम रेफर्स टू द डायरेक्ट एक्सचेंज ऑफ गुड्स एंड सर्विसेस फॉर गुड्स
एंड सर्विसेस। और जब ये ऐसा होता था तब इस टाइप ऑफ इकॉनमी को बोलते थे बार्टर इकॉनमी या कमोडिटी फॉर कमोडिटी इकॉनमी। राइट? तो
दिस टाइप ऑफ इकॉनमी यानी दिस टाइप ऑफ सिस्टम इन द इकॉनमी इज कॉल्ड बार्टर इकॉनमी या फिर इसका नाम है सीसी इकॉनमी।
सी का मतलब कमोडिटी है। वो गाना मत समझना। सीसी करके मर गई। सीसी करके मर गई। सीसी का मतलब यहां पर कमोडिटी है। तो कमोडिटी
कमोडिटी इकॉनमी बोलते थे। लेकिन दोस्तों यहां पर पंगे पड़ते थे। यहां पर बहुत सारी पनौतियां होती थी। बार्टर सिस्टम के अंदर
बहुत गड़बड़ होती थी। फॉर एग्जांपल शालू को जो चाहिए वो भालू के पास है। लेकिन भालू को जो चाहिए वो शालू के पास नहीं है।
तो आपस में ये दोनों ट्रांजैक्शन नहीं कर पाएंगे। तो बार सिस्टम में एक बड़ी पनौती थी। दो पार्टी तभी ट्रांजैक्शन कर पाती थी
जब दोनों के पास एक वो सामान हो जो एक दूसरे को चाहिए। तो ऐसी किस्मत किस्मत को बोलते हैं। देखो मैं वर्ड यूज़ करूंगा।
ऐसी किस्मत होगी जब दो एक दूसरे के पास सामान होगा जो एक दूसरे को चाहिए। तो इसको उर्दू में बोल देते हैं इत्तेफाक।
और इंग्लिश में इसको बोलते हैं कोइंसिडेंस। हां भाई साहब। जब डबल साइड यानी बोथ साइड
ऐसा इत्तेफाक ऐसी किस्मत बनेगी कि एक दूसरे को वो कमोडिटी अवेलेबल है जो एक दूसरे की जरूरत पूरी करती है। तभी बार्टर
सिस्टम के अंदर सामान की खरीदफरोख्त होती थी। तभी ट्रांजैक्शन पॉसिबल होता था। अदरवाइज नहीं होता था। आज के टाइम में तुम
अपनी महिला मित्र को दिल्ली से मुंबई एकदम से ऑनलाइन पैसा ट्रांसफर कर सकते हो। आज आप चाहो तो इंडिया से अमेरिका 1 मिनट में
विद इन सेकंड्स आप ऑनलाइन पैसा ट्रांसफर कर सकते हो। लेकिन पहले के जमाने में जब वाटर सिस्टम चलता था तो यहां पर सामान को
एक जगह से दूसरी जगह ट्रांसफर करना बड़ा मुश्किल काम था। भाई एक कितना दूर ट्रैवल करना पड़ेगा और बहुत ही मुश्किल काम था।
आज के टाइम में मैं अगर ऑटो से ट्रैवल कर रहा हूं और मैं भैया को बोलूं भैया कितने रुपए लोगे? ऑटो वाले बोलते हैं भैया ₹90
लेंगे। तो मैं उसको ₹100 का नोट दूंगा तो वो मुझे ₹10 वापस कर देगा। आज के टाइम में मैं एक करेंसी नोट को डिवाइड कर सकता हूं
अलग-अलग पार्ट्स में। यानी खुले पैसे करवा सकता हूं। उस टाइम पे कमोडिटी को खुला करवाना बड़ा मुश्किल काम था। भाई साहब यह
इसको एप्पल दे रही है बहुत सारे। लेकिन ये भेड़ को आधा नहीं दे सकता। अगर जरूरत पड़े तो मान लो इसको चाहिए आधे सेब तो आधी भेड़
कैसे देगा? गड़बड़ी हो जाएगी। अब भाई ये आधी बोरी गेहूं लेकर खड़ा है। तो ये आधा जूता कैसे देगा? राइट? तो डिविजिबिलिटी
पहले पॉसिबल नहीं थी। तो वाटर सिस्टम में थी कुछ प्रॉब्लम्स। एक बार आपको जस्ट ओवरव्यू लेना है बार सिस्टम की कौन-कौन सी
इनकन्वीनियंस थी। इनकन्वीनियंस का मतलब असुविधा, प्रॉब्लम, लिमिटेशन, डिसएडवांटेज। आप कुछ भी बोल सकते हो अपने
सिलेबस के हिसाब से इसको। मैं लिख कर लाया हूं दोस्तों। लिमिटेशंस ऑफ वाटर सिस्टम। यहां पर डबल कोइंसिडेंस ऑफ़ वांट्स की लैक
हो सकती थी। हो सकता था शालू को जो चाहिए वो भालू के पास हो। भालू को जो चाहिए वो शालू के पास ना हो। तो शालू भालू आपस में
ट्रांजैक्शन नहीं कर पाएंगे। आज के टाइम में मैं ₹500 का नोट अभी जेब के अंदर सेव करके रख सकता हूं और कल उसको खर्च करूंगा
जब मेरा मन करेगा। पहले के टाइम में पैसा तो होता नहीं था। सामान होता था। तो सामान को सेव करके रखना बड़ा मुश्किल काम था।
स्टोर करके रखना बड़ा मुश्किल काम था। बहुत सारे अलग-अलग सामान होते हैं। फॉर एग्जांपल मैं टमाटर को सेव करके रख रहा
हूं। किसी फ्रूट या वेजिटेबल को सेव करके रख रहा हूं ताकि भविष्य में टमाटर या फ्रूट वेजिटेबल देकर मैं कुछ खरीद सकूं।
लेकिन ऐसा हो सकता था भविष्य में वो फ्रूट वेजिटेबल टमाटर सड़ सकते थे, गल सकते थे। तो पहले गुड्स को स्टोर करना डिफिकल्ट
टास्क था। तो एक बड़ी चीज। तो यहां पर थी लैक ऑफ स्टोर ऑफ वैल्यू। किसी भी चीज की वैल्यू को स्टोर करना मुश्किल काम था। कमी
थी इस चीज की। आप सोचो भाई एक बिजनेस कर रहे हैं हम। बिजनेस करेंगे तो अकाउंट्स भी बनाएंगे। अकाउंट्स बनाएंगे तो उसमें
लिखेंगे कितने रुपए का हमने सामान बेचा। कितने रुपए के हमने रॉ मटेरियल खरीदे। तो आप एक एग्जांपल से समझना। बहुत इंपॉर्टेंट
चीज समझा रहा हूं आपको। मान लो एक लड़की है प्रिया समोसे वाली है। इसका समोसा बेचने का बिजनेस है। लेकिन करेंसी
एग्जिस्ट नहीं करती। ये बा सिस्टम में अपनी जिंदगी बिता रही है। तो ये अपने अकाउंट्स बनाएगी। एक तरफ लिखेगी जो भी
पैसा इसको मिला रिसीप्ट और एक तरफ लिखेगी जो भी यह खर्चा कर रही है लेबर को सैलरी वगैरह दे रही है वो यहां पर बीच में
अमाउंट आ जाएगा प्रिया ने 10 क्वांटिटी ऑफ समोसे बेचे और बदले में 1 किलो एप्पल ले लिए। फिर किसी को पांच समोसे बेचे और 1
1/2 लीटर दूध ले लिया। फिर प्रिया ने किसी को मान लो 30 समोसे बेचे और बदले में एक बोरी गेहूं ले ली। तो अकाउंट्स में इसका
टोटल करते हैं ना। टोटल करके बताओ इज इट पॉसिबल टू डू द टोटल? गेहूं, सेब, संतरा कोई भी आइटम है इन सबको मैं
टोटल कैसे करूं? तो पहले के जमाने में अकाउंट्स बनाना इंपॉसिबल था। क्योंकि अकाउंट बनाने की कोई यूनिट ही नहीं थी। आज
के टाइम में तुम अकाउंट्स बना लेते हो। इंडिया में बनते हैं रुपीज में अकाउंट। इतने रुपए का सामान बेचा, इतने रुपए का
सामान खरीदा। फॉर एग्जांपल रुपए होते ₹100, ₹50, ₹300 इन सबको टोटल कर देते तो 450 टोटल आ जाता। तो अकाउंट्स पहले नहीं
बनते थे। अब बनने स्टार्ट हुए हैं। तो भाई बिजनेस के अंदर मनी का बहुत बड़ा रोल है। मनी आई तो बिजनेस बना। बिजनेस बना तो
अकाउंट्स का सब्जेक्ट एग्जिस्ट होता है। अकाउंट्स उसी वजह से एक्सिस्ट होता है। तो लैक ऑफ यूनिट ऑफ अकाउंट थी पहले। अकाउंट
नहीं बन पाते थे। लैक ऑफ डिविजिबिलिटी थी। जैसे हम करेंसी नोट को खुले करवा सकते हैं। डिवाइड करवा सकते हैं। ऐसे पहले कुछ
गुड्स को डिवाइड करना बड़ा मुश्किल काम था। और आज है ना iPhone लेने जाओ। iPhone लेने जाओगे भाई। ₹1 लाख का iPhone है। तो
बोलोगे दुकानदार को मैं तेरे को हर महीने ₹2000 दे दूंगा। इंस्टॉलमेंट पे iPhone ले सकते हो। पहले के टाइम पर इंस्टॉलमेंट पे
सामान खरीदना मुश्किल काम था जब वाटर सिस्टम चलता था। आप उसको बोलोगे भाई मेरे को तू अपनी बैलगाड़ी दे दे। मैं तेरे को
हर महीने 10 किलो टमाटर दूंगा। अरे बैलगाड़ी तुम ले लोगे। हर महीने 10 किलो टमाटर कैसे दोगे? जो तुम्हारे पास टमाटर
रखे हैं वो सड़ जाएंगे, गल जाएंगे। तो फ्यूचर की पेमेंट के प्रॉमिससेस पहले करना मुश्किल काम था। सामने वाला ट्रस्ट भी
नहीं करेगा। अरे यार तू मेरे को सामान कैसे देगा? तेरा सामान सड़ गया, गल गया, खराब हो गया तो जैसा आज है वैसा भविष्य
में थोड़ी रहेगा। तो पहले के टाइम पर इंस्टॉलमेंट वाली पेमेंट जिसको हम बोलते हैं डेफर्ड पेमेंट। डेफर्ड पेमेंट का मतलब
होता है ऐसी पेमेंट जो धीरे-धीरे धीरे-धीरे की जाए फ्यूचर में। डेफर्ड पेमेंट आर द फ्यूचर पेमेंट्स व्हिच आर डन
इन अ पार्ट्स। बेसिकली किश्तों को बोल सकते हो। किस्त को बोलते हैं इंस्टॉलमेंट। राइट? आज के टाइम में पैसा है तो पॉसिबल
है000 करके दे देंगे iPhone ले लेंगे लेकिन पहले सामान का प्रॉमिस करना और सामने वाले का विश्वास करना दोनों मुश्किल
काम थे ये सब मुश्किल काम है इंपॉसिबल तो नहीं थे मुश्किल है और लैक ऑफ ट्रांसफर ऑफ वैल्यू आज के टाइम में करेंसी को एक जगह
से दूसरी जगह आप आसानी से ट्रांसफर कर सकते हो पहले करना बड़ा मुश्किल काम था ये बहुत लप्पू सा टॉपिक है इससे ना के बराबर
पेपर में क्वेश्चन पूछा जाता है क्वेश्चन पूछा जाता है आज के जमाने से मनी क्या होती है मनी के फंक्शनंस क्या होते हैं
अगर दोस्तों आपको मेरा ये लेक्चर पसंद आ रहा अभी के अभी लाइक करो। अपने दोस्तों को बताओ। वीडियो को शेयर करो। धमाका मचा दो।
मैं आ गया हूं मैकोनॉमिक्स में तबाही मचाने। और ट्रस्ट मी एंड तक बने रहोगे ना तो आपके सारे डाउट्स पूरे भारत के बच्चों
का जबरदस्त लेवल का प्यार मिला है मुझे आज तक। बहुत बढ़िया कैड लेवल का बॉन्ड आप लोगों के साथ बना हुआ है। इस बॉन्ड को आगे
लेकर जाएंगे। ठीक है? तो आते हैं दोस्तों। आज तो पैसा आ गया है। लेकिन पैसे की आपसे बात करूं। पैसा किस लेवल पे आया है? तो
पैसे पैदा कैसे हुए हैं? वो देख लो। सबसे पहले पैसों का पैदा होना देखते हैं। पैसों का विकास। विकास को बोलते हैं एववोल्यूशन।
मनी कैसे पैदा हुई, कैसे आगे बढ़ी? आप जानते हो कि पहले के जमाने में चलता था वाटर सिस्टम। सामान के बदले सामान या गाय,
भैंस वगैरह, बकरी कुछ भी दे देते थे सामान के बदले। इसके बाद गोल्ड और सिल्वर के थ्रू लेनदेन होने लगा। जमाना अपडेट हुआ।
टेक्नोलॉजी अपडेट होती है। सिस्टम अपडेट होता है। आप भी अपडेट होते हो। राइट? तो फिर गोल्ड के थ्रू सामान का लेनदेन हुआ।
फिर आए दोस्त मेटल कॉइन। राजा महाराजा होते थे वहां पर मोहरे अशरफियां सोने के सिक्के वो बनाते थे उसके थ्रू सामान बेचा
खरीदा जाता था फिर आ गई करेंसी नोट आ गए जो तुम्हारी जेब में पड़े होंगे हैं पांच का नोट दो का नोट एक का नोट 10 का नोट 20
का नोट 50 का 100 का 200 का 500 का ये सब नोट्स और फिर उसके बाद है प्लास्टिक कार्ड प्लास्टिक कार्ड मतलब डेबिट कार्ड और
क्रेडिट कार्ड इसकी एक्सप्लेनेशन दूंगा जब सही समय आएगा इसी वीडियो में राइट और फिर आज के टाइम में तो इलेक्ट्रॉनिक मनी आ गई
है इलेक्ट्रॉनिक का मतलब मतलब ऑनलाइन पेमेंट हो जाती है। भाई Paytm यूज़ कर ले, PhonePe यूज़ कर ले, क्रेडिट यूज़ कर ले,
Google Pay यूज़ कर ले। यूपीआई से पैसा ट्रांसफर हो जाता है। तो कितनी अपडेट हो गई है मनी। हम पढ़ेंगे मनी काम क्या करती
है? भाई मनी वो काम करती है जो बार सिस्टम नहीं कर पाया था। बार्टर सिस्टम की लिमिटेशंस को दूर करने का काम मनी करती
है। यानी पहले कोई एक ऐसी चीज नहीं थी जिसको सामान खरीदने और बेचने के लिए यूज किया जा सके। जैसे आज के टाइम में तुम आलू
लो, भिंडी लो, बैंगन लो, जूता लो, टीशर्ट लो, घड़ी लो, चश्मा लो, कुछ भी लो। आप उसके बदले में पैसा पे कर सकते हो, करेंसी
पे कर सकते हो। पहले ऐसा नहीं था। कोई बंदा बोलता था भाई अगर तेरे को गेहूं चाहिए तो मेरे से ले ले। लेकिन तेरे को
बदले में चावल देने पड़ेंगे। अगर तेरे पास चावल नहीं है तो ट्रांजैक्शन नहीं होगा। पहले ऐसा सिस्टम था। कोई भी एक्सचेंज को
पॉसिबल कराने के लिए एक बीच में मीडियम नहीं था। मीडियम का मतलब अरे मीडियम का मतलब माध्यम। जैसे एक ब्रोकर आता है ना दो
बंदों के बीच में लेनदेन को पॉसिबल कराता है। ट्रांजैक्शन को पॉसिबल कराता है। दलाल बोलते हैं ब्रोकर को। ऐसे आज के टाइम में
मनी वो बीच में ब्रोकर यानी मीडियम बनी हुई है जो किसी भी सेल परचेस को पॉसिबल करा देती है। और मनी है तो वो प्रिया
समोसे वाली अपने अकाउंट्स बना पा रही है। टोटल कर लेती है। क्योंकि प्रिया को पता है कि हां यार मनी एकिस्ट करती है। तो
इसलिए अब मैं हर एक चीज की वैल्यू को मनी में एक्सप्रेस कर सकती हूं। एक्सप्रेस करने का मतलब डिनोमिनेट कर सकती हूं। अगर
प्रिया आलू खरीद रही है तो बता देगी ₹20 किलो आलू है। प्रिया ने मसाला खरीदा, पानी खरीदा, तेल खरीदा। चाहे वो लीटर में हो,
चाहे कपड़ा मीटर में हो, चाहे किलो में हो, ग्राम में हो, कुछ भी चीज। हर चीज को पैसों की यानी रुपीस की टर्म्स में
एक्सप्रेस किया जा सकता है, डिनोमिनेट किया जा सकता है। तो मनी के फंक्शनंस देखेंगे और मनी होती क्या है? ये देखेंगे।
तो आपसे कोई पूछे पैसा क्या होता है? यार पैसा पैसा तो यह भी है। यह भी है मनी। यह भी है मनी। यह भी है मनी। यह भी है मनी।
इन सबके थ्रू हम सामान खरीद सकते हैं भाई। यह भी है मनी। अच्छा इन सबके थ्रू सामान खरीद सकते हैं। जी हां, खरीद सकते हैं। तो
ऐसी कोई भी चीज जिसके थ्रू हम सामान खरीद सकते हैं। यानी वो चीज मीडियम ऑफ एक्सचेंज है। और वो अकाउंट्स बनाने में भी यूज़फुल
है। यानी जब अकाउंट बनाते हैं तो टोटल करते हैं ना रुपीज़ में। तो अकाउंट बनाने में कोई चीज यूज़फुल है। यूनिट ऑफ अकाउंट
बन गई है और मीडियम ऑफ एक्सचेंज है। उस चीज को बोलेंगे मनी। यह सब मनी है। आपको बताऊं? तो भाई आज के टाइम में इस
इलेक्ट्रॉनिक मनी को बोल देते हैं। अखबार और न्यूज़पेपर देखोगे तो डिजिटल मनी। देखो भाई, सिर्फ किताब पढ़ने से कुछ नहीं होता।
आज का जो ट्रेंड है एग्जाम का वो आपको लेटेस्ट अपडेट रहना होगा और मैं करूंगा आपको। इसको डिजिटल मनी बोलते हैं।
प्लास्टिक कार्ड को डेबिट कार्ड, क्रेडिट कार्ड को प्लास्टिक मनी बोलते हैं। पेपर मनी को जैसे कि करेंसी नोट्स
करेंसी नोट्स जो होते हैं वह पेपर मनी होते हैं और जो मेटल कॉइन है इसको मैटेलिक मनी बोलते हैं। मैटेलिक
मनी आज भी गोल्ड और सिल्वर देकर सामान खरीद सकते हैं। लेकिन थोड़ा मुश्किल काम है। इसको बोलते हैं कमोडिटी मनी। कमोडिटी
का मतलब सामान ही होता है और गोल्ड और सिल्वर भी एक तरीके से सामान ही है। तो, यह ट्रेंड चल रहा है। आपसे कोई पूछ ले कि
व्हाट इज द डेफिनेशन ऑफ मनी? आप प्यार से बोल देना। लव सर ने बोला है मनी मे बी डिफाइंड एज एनीथिंग। पैसा कुछ भी हो सकता
है। चाहे वो यूपीआई पेमेंट हो, चाहे वो करेंसी का नोट हो, चाहे वो कॉइन हो, चाहे डेबिट कार्ड, क्रेडिट कार्ड हो। पैसा कुछ
भी हो सकता है। बस उसको दो बातें सेटिस्फाई करनी चाहिए। यानी व्हिच इज़ जनरली एक्सेप्टेड एज मीडियम ऑफ़ एक्सचेंज।
यानी ऐसी चीज जिससे हमारा लेनदेन यानी ट्रांजैक्शन हो जाए उस चीज को तुम पैसा बोल दोगे या फिर वो अकाउंट्स बनाने में
हेल्प करे। यानी कोई भी चीज अकाउंट बनाने में हेल्प तब करती है जब आप चीजों की वैल्यू को पैसे में तोल सकते हो। क्या
बोला मैं? जब आप मेजर कर सकते हो चीजों की वैल्यू को। चाहे दूध है तो आप बता सकते हो ₹70 लीटर है। चाहे टीशर्ट है
तो आप बता सकते हो ₹300 की एक है। चाहे वह तेल है तो आप बता सकते हो ₹180 लीटर है। है ना? कपड़ा है मीटर में कुछ भी बता सकते
हो। आप मनी के टर्म्स में वैल्यू को मेजर कर सकते हो और इसी वजह से अकाउंट्स बन पाते हैं। ये दो सबसे मेन फंक्शनंस हैं
मनी के। लेकिन आपसे बहुत ही ज्यादा इंपॉर्टेंट क्वेश्चन पूछा जाता है पेपर में। बहुत ट्रेंडिंग है। व्हाट आर द
फंक्शनंस ऑफ़ मनी? मनी के फंक्शनंस को हमने दो पार्ट में डिवाइड किया हुआ है। एक होते हैं प्राइमरी फंक्शन और दूसरे होते हैं
सेकेंडरी फंक्शनंस। प्राइमरी फंक्शन मेन फंक्शन होते हैं। अच्छा जी। हां जी। सेकेंडरी फंक्शन को सब्सिडियरी फंक्शन भी
बोलते हैं। अब ये होते क्या है? देखो। देखो जी। मेन फंक्शन ऑफ़ मनी। इन फंक्शनंस में से कुछ और फंक्शन निकले हैं तो वो
सेकेंडरी फंक्शन कहलाते हैं। तो सेकेंडरी फंक्शन वो फंक्शन ऑफ़ मनी है जो प्राइमरी फंक्शन के अंदर से ही निकले हैं। तो जरा
चेक करते हैं भाई नंबर वन पे। पहला फंक्शन है मनी का। वही डेफिनेशन में जो वर्ड आ रहा था मीडियम ऑफ एक्सचेंज। मनी की हेल्प
से आप कोई भी एक्सचेंज लेनदेन आसान बना सकते हो। ट्रांजैक्शन पूरा कर सकते हो। पैसा लेने से कोई मना नहीं कर सकता। राइट?
और दूसरा है मेजर ऑफ वैल्यू। इसको यूनिट ऑफ अकाउंट भी बोलते हैं। मनी किसी भी चीज की वैल्यू को एक्सप्रेस कर
सकती है, डिनोमिनेट कर सकती है। राइट? इन दोनों में से दो फंक्शन निकल कर आए जो मैं तीसरे नंबर पे लिखूंगा। तीसरा फंक्शन
कहलाएगा दोस्तों आज के टाइम पे मैं इंस्टॉलमेंट पे सामान खरीद सकता हूं। इंस्टॉलमेंट पे सामान खरीदने का मतलब कोई
वाशिंग मशीन खरीद के ले आओ। ₹00 की है। दुकानदार को बोलो हर महीने तेरे को ₹20,000 दे देंगे। यानी आप कुछ भी सामान
खरीद के फ्यूचर में होले-होले धीरे-धीरे उसकी पेमेंट कर सकते हो। कातिया हां तो इसको बोलते हैं स्टैंडर्ड। स्टैंडर्ड का
मतलब ये हाईफाई नहीं होता। स्टैंडर्ड का मतलब होता है बेस। ठीक है? तो मनी बन गया है स्टैंडर्ड ऑफ डेफर्ड पेमेंट। ये क्या
है भाई? डेफर्ड पेमेंट का मतलब दोबारा समझाता हूं। डेफर्ड पेमेंट वो रुकी हुई पेमेंट होती है जो हम फ्यूचर में स्लो
स्लो इंस्टॉलमेंट में पे करते हैं। जैसे कि लोन ले लो बैंक से। तो आपको एक बार में लोन पे नहीं करना पड़ता। आप हर महीने
थोड़ी-थोड़ी इंस्टॉलमेंट में ही लोन पे करते हो। कोई भी सामान खरीद लो। तो वो मनी की हेल्प से ही पॉसिबल हो पाया है। चौथा
फंक्शन है भाई स्टोर ऑफ वैल्यू। स्टोर ऑफ वैल्यू का मतलब होता है पेव नाउ यूज़ लेटर। आप मनी की वैल्यू को आज सेव करो। कल
यूज़ करना। दोनों डिफरेंट है भाई। इसके अंदर धीरे-धीरे पेमेंट कर रहे हैं। लगातार इसके अंदर आज सेव कर रहे हैं। जब मन करेगा
तब खर्च देंगे। राइट? तो ये बहुत आसान फंक्शन है। अगर आप इनको याद करना चाहते हो तो मेरे पास एक ट्रिक है। जो प्राइमरी
फंक्शन है वो दोनों एम से स्टार्ट हो रहे हैं। एम एम और जो सेकेंडरी फंक्शन है वो दोनों एस से
स्टार्ट हो रहे हैं। एस एस। 10वीं क्लास में आपने दो सब्जेक्ट पढ़े होंगे। एक था मैथमेटिक्स और एक था सोशल स्टडीज।
मैथमेटिक्स और सोशल स्टडीज। प्राइमरी फंक्शन मैथमेटिक्स यानी मीडियम मेजर। सेकेंडरी फंक्शन सोशल स्टडीज यानी
स्टैंडर्ड और स्टोर। ऐसे भी नहीं हो रहा। तो एक गाना गा के इसको याद कर लेते हैं। कैसे गाना गाएंगे? मनी इज अ फंक्शन मनी इज
द मैटर ऑफ़ फंक्शन ऑफ़ फोर मीडियम मेजर स्टैंडर्ड स्टोर। मनी इज द मैटर ऑफ़ फंक्शन ऑफ़ फोर मीडियम मेजर स्टैंडर्ड स्टोर। अरे
मनी इज द मैटर ऑफ़ फंक्शन ऑफ़ फोर, मीडियम, मेजर, स्टैंडर्ड स्टोर। तो चार तरीके के फंक्शन है। लेकिन तुम्हारे पेपर में घातक
लेवल की बात ये आती है कि कोई भी एक फंक्शन तीन नंबर में एक्सप्लेन करना आ सकता है और
यह डिटेल्ड वन शॉट है। आपको यहां प्रॉपर एक्सप्लेनेशन के साथ बताऊंगा कि आंसर भी कैसे लिखना है। कोई भी एक फंक्शन आ गया
तीन नंबर में एक्सप्लेन करना। तो यू मस्ट हैव थ्री पॉइंट्स। किसी भी फंक्शन के तीन-तीन पॉइंट आपके पास होने चाहिए ताकि
कोई माइका लाल कोई टीचर ऐसा ना हो जो तुम्हारे नंबर काट ले। तो मैं आपको कंटेंट प्रोवाइड करूंगा। मीडियम ऑफ एक्सचेंज को
एक्सप्लेन करते हैं। मेरे दोस्त, मेरे राज्य, मेरे प्यारे, मेरे मित्र। तो पहलाप प्यारा-प्यारा फंक्शन
मीडियम ऑफ एक्सचेंज। इसमें हम यही बोलेंगे कि भाई जो जो बार सिस्टम के अंदर प्रॉब्लम थी मनी सॉल्व कर देती है। मनी की हेल्प से
हम कोई भी ट्रांजैक्शन आसानी से खरीद सकते हैं। गुड्स लेंगे तो पैसा देंगे और गुड्स बेचेंगे तो पैसा लेंगे। तो इंडिविजुअल
बंदे आसानी से ट्रांजैक्शन कर सकते हैं। तो तीन पॉइंट हैं। मनी एज अ मीडियम ऑफ़ एक्सचेंज मींस इट कैन बी यूज्ड टू मेक
पेमेंट फॉर ऑल ट्रांजैक्शन ऑफ़ गुड्स एंड सर्विसेस। इसको यूज़ कर सकते हैं सभी ट्रांजैक्शन के लिए। तो इट रिमूव द नीड ऑफ
डबल कोइंसिडेंस ऑफ वांट्स दैट इज रिक्वायर्ड इन द वाटर सिस्टम। वाटर सिस्टम में वो दोनों साइड किस्मत चाहिए थी। शालू
को जो चाहिए भालू के पास। भालू को जो चाहिए वो शालू के पास। लेकिन मनी में ऐसा नहीं है। मेरे को आलू चाहिए। तो आलू वाले
को क्या चाहिए मुझे मतलब नहीं है। मैं आलू वाले से आलू खरीद लूंगा। पैसा दे दूंगा। पैसा यूज़ हो रहा है। विद मनी इंडिविजुअल
या कंपनी कैन ईजीली ट्रेड देयर गुड्स एंड सर्विज। कोई इंडिविजुअल हो, कोई कंपनी हो, कोई बिजनेस हो। वो आसानी से ट्रेड कर सकते
हैं। ट्रेड का मतलब भी एक्सचेंज होता है। गुड्स एंड सर्विस को खरीद बेच सकते हैं। फॉर यूनिवर्सली एक्सेप्टेड मीडियम ऑफ
एक्सचेंज। क्योंकि मनी यूनिवर्सली ऑल ओवर द वर्ल्ड एक्सेप्ट होती है। मीडियम ऑफ एक्सचेंज। अब मनी के अलग-अलग कंट्री में
अलग-अलग करेंसी है। वो सब मनी ही होती है। अमेरिका में डॉलर, इंडिया में रुपया, रशिया में रूबल, जापान में यन, चाइना में
युवान। ये अलग-अलग करेंसीज के नाम है। लेकिन सारी की सारी मनी है। है दूसरे फंक्शन पे आते हैं दोस्त। दूसरा है मेजर
ऑफ वैल्यू। आपसे यूनिट ऑफ अकाउंट इसका दूसरा नाम पूछ सकता है। राइट? इसके बारे में तीन पॉइंट लिखेंगे। मनी की इतनी बड़ी
औकात हो गई है कि मनी किसी भी चीज की वैल्यू को डिनोमिनेट कर सकती है। मतलब एक कॉमन एक्सप्रेशन मनी की टर्म्स में आ सकता
है। किसी भी चीज को जैसे कि ₹70 लीटर दूध या फिर ₹500 मीटर कपड़ा। हम तो मनी एज अ मेजर ऑफ़ वैल्यू मींस मनी वर्क्स एज अ कॉमन
डिनोमिनेशन। डिनोमिनेशन का मतलब एक्सप्रेस करना। इन व्हिच द वैल्यू ऑफ़ ऑल गुड्स एंड सर्विसेस आर एक्सप्रेस्ड। यानी इसकी फॉर्म
में हम गुड्स एंड सर्विज की वैल्यू को एक्सप्रेस कर सकते हैं। इसी की वजह से दिस इज द फंक्शन जिसकी वजह से बिजनेस के
अकाउंट बनने पॉसिबल हो पाए हैं। पेपर में एमसीक्यू पूछ सकता है। ऐसा कौन सा मनी का फंक्शन है जिसकी वजह से बिनेस अकाउंट्स
बनना पॉसिबल है। तो वैल्यू मेजर कर रहे हैं तभी तो टोटल कर पाएंगे। तो दिस फंक्शन मेक्स द बिनेस अकाउंटिंग पॉसिबल। दूसरा
पॉइंट इट प्रोवाइड अ स्टैंडर्ड ऑफ़ कंपैरिजन। इसकी वजह से हम कंपेयर कर पाते हैं। भाई देखो फुल क्रीम दूध और टोंड दूध
दोनों का रेट अलग-अलग है। जब रेट डिसाइड हुआ तभी तो कंपेयर कर पा रहे हैं। अरे ₹60 लीटर हमारा टोंड दूध है। ₹65 लीटर फुल
क्रीम दूध है। तो कंपेयर कर रहे हैं ना चीजों को। कैसे कंपेयर कर रहे हैं? क्योंकि हम उस चीज की वैल्यू को पैसे में
तोल पाए। इसलिए कंपेयर कर रहे हैं। तो स्टैंडर्ड ऑफ कंपैरिजन है मतलब बेस ऑफ कंपैरिजन है। अलाउंग इंडिविजुअल्स टू
एक्सप्रेस द वैल्यू ऑफ़ डिफरेंट आइटम्स इन कंसिस्टेंट एंड ईजीली अंडरस्टैंडेबल वे। बहुत कंसिस्टेंट मतलब लगातार और आसानी से
समझेने समझे जाने वाले तरीके से आप मनी के टर्म्स में किसी भी वैल्यू को एक्सप्रेस कर रहे हो तो कंपैरिजन इज़ पॉसिबल। दिस
फंक्शन हेल्प इन प्राइसिंग, बजटिंग, मेकिंग इनफॉर्म्ड इकोनॉमिक डिसीज़ंस। कंपनी के लिए फायदेमंद है पैसों में तोल सकते
हैं। इसी चीज के लिए आप गुड्स का प्राइस डिसाइड कर रहे हो। प्राइस डिसाइड करने को प्राइसिंग बोलते हैं। कंपनीज़ डिसाइड करती
हैं भाई कि मैं जो सामान बेच रही हूं उसकी वैल्यू क्या होगी? क्या प्राइसिंग होगी? मेरा बजट यानी मैं कितना पैसा खर्च करूं,
कितना पैसा कमाऊं और मेरे दूसरे इकोनॉमिक डिसीजंस हैं। जैसे कि इन्वेस्टमेंट कहां करनी है, कहां नहीं करनी? ये सब पैसों में
कैलकुलेट होता है। इसीलिए पॉसिबल है आसानी से एक्सप्रेस करना। तो चार पॉइंट है। कोई भी तीन पॉइंट तुम याद कर लो। तीसरे फंक्शन
पे आते हैं भाई। ध्यान रखना। अब प्राइमरी फंक्शन खत्म हो चुके हैं। सेकेंडरी फंक्शन करेंगे। हो सकता है पेपर में आपसे बोले कि
कोई भी दो प्राइमरी फंक्शन एक्सप्लेन करो चार नंबर में। तो दो पॉइंट इसके, दो पॉइंट इसके। राइट? कोई भी एक फंक्शन पूछे तीन
नंबर में तो उसके तीन पॉइंट लिखने हैं। आ जाते हैं तीसरे फंक्शन पे जिसको बोलता हूं मैं
स्टैंडर्ड ऑफ डेफर्ट पेमेंट। स्टोर ऑफ वैल्यू करते हैं पहले। हां, तीसरे पे यही लिख दिया। तो स्टोर ऑफ वैल्यू क्या बोलता
है? कि मनी की वैल्यू को आज मैं स्टोर कर लूंगा। भविष्य में यूज़ कर लूंगा। सेव नाउ यूज़ लेटर। तो मनी एज अ स्टोर ऑफ़ वैल्यू
मींस सेव नाउ। यूज़ लेटर इस लाइन को एक्सप्लेन किया हुआ है दूसरे पॉइंट में। इंडिविजुअल्स यानी पीपल कैन होल्ड मनी आज
होल्ड कर लेंगे एंड यूज़ इट फॉर फ्यूचर ट्रांजैक्शन। भविष्य में कभी ट्रांजैक्शन करना होगा तो यूज़ कर लेंगे। तो सेविंग
फंक्शन है भाई ये। सेविंग कर रहे हो एक तरीके से। इट्स लिक्विडिटी। लिक्विडिटी का मतलब होता है कन्वर्टेबिलिटी। पैसों को
आसानी से तुम कन्वर्ट कर सकते हो गुड्स में। क्योंकि पैसा कन्वर्ट कर लोगे, दुकान पे जाओगे, ₹100 देके सामान खरीद लोगे। तो
मनी की लिक्विडिटी यानी मनी का कन्वर्शन आपको बहुत फायदा दिलाता है। आप अपनी परचेसिंग पावर को आज से कल में ट्रांसफर
कर सकते हो। परचेसिंग पावर का मतलब होता है सामान खरीदने की शक्ति। मेरे पास ₹100 है। तो ₹100 का सामान मैं खरीद सकता हूं।
इस शक्ति को मैं कल के लिए ट्रांसफर भी कर सकता हूं। ₹100 सेव कर लूंगा। तो मेरी परचेसिंग पावर कल ट्रांसफर हो गई। कल खरीद
लूंगा सामान। तो इट्स लिक्विडिटी और ईज़। ईज़ का मतलब आसान होता है, ईजी होता है। ईज़ ऑफ़ कन्वर्ज़ इंटू अदर गुड्स एंड सर्विसेस
मेक्स मनी अ कन्वीनिएंट वे टू स्टोर वैल्यू। हां, मतलब इसकी लिक्विडिटी की वजह से मनी को स्टोर करना आसान है। आज भी
सामान खरीद सकते हैं तो कल भी खरीद सकते हैं। एंड ट्रांसफर द परचेसिंग पावर फ्रॉम द प्रेजेंट टू द फ्यूचर। आज की खरीदने की
शक्ति को कल ट्रांसफर कर देंगे। पेपर के अंदर चारों फंक्शन से एक क्वेश्चन भी बन सकता है। मैं कराऊंगा अभी एमसीक्यू। चौथे
नंबर का कर लेते हैं। स्टैंडर्ड ऑफ़ डेफर्ड पेमेंट। यहां पर पहला पॉइंट है डेफर्ड पेमेंट क्या होती है? तो दीज़ आर द
पेमेंट्स दैट हैज़ टू बी डन एट अ लेटर डेट। लेटर मतलब भविष्य। जिस पेमेंट को मुझे बाद में करना है उस पेमेंट को डेफर्ड पेमेंट
बोल सकते हैं। हां, मनी इज अ बेस। बेस और स्टैंडर्ड दोनों का मतलब एक ही है। काफी सारी किताबें हैं जो ढंग से एक्सप्लेन
नहीं कर पा रही हैं। तो आपके लिए आसान शब्द मैं लेकर आता रहता हूं। मेन इज़ अ मनी इज़ अ बेस और स्टैंडर्ड फॉर डेफर्ट
पेमेंट्स। मेकिंग किस वजह से स्टैंडर्ड फॉर डेफर्ट पेमेंट है? बिकॉज़ मनी मेक इट इज़ियर फॉर इंडिविजुअल्स एंड बिज़नेस फर्म
टू इंगेज इन अ क्रेडिट ट्रांजैक्शन। यानी क्रेडिट का मतलब होता है लोन। इस फंक्शन की वजह से जितनी भी फाइनेंस कंपनियां हैं
वो एग्जिस्ट करती है। कोई भी बैंक इस वजह से ही एग्जिस्ट कर रहा है क्योंकि मनी का ये फंक्शन है। बैंक का मेन काम क्या होता
है? लोगों को लोन देना। लोगों को लोन देंगे तो लोग इंस्टॉलमेंट में उसको चुकाएंगे। राइट? तो इंस्टॉलमेंट में
चुकाएंगे मतलब धीरे-धीरे करके चुकाएंगे। तो धीरे-धीरे चुकाने का फंक्शन है। इस वजह से बैंक भी एक्सिस्ट करते हैं। आपसे पूछ
सकता है कि कोई भी फाइनेंसियल इंस्टीट्यूशन, कोई भी लोन देने वाली क्रेडिट ट्रांजैक्शन एक्सिस्ट कौन से
फंक्शन ऑफ मनी की वजह से करती है? तो ये आंसर है। राइट? एग्जांपल है लोन, इंस्टॉलमेंट, पेमेंट एंड अदर डेफर्ड
एक्सचेंज बिकम मोर स्ट्रेट फॉरवर्ड विद द यूज़ ऑफ़ मनी। पैसों का यूज़ करेंगे, तो ये बहुत स्ट्रेट फॉरवर्ड मतलब सीधे-सीधे
फंक्शन बन जाते हैं। तो, आपके पास यहां पर भी तीन पॉइंट हो गए। पहला पॉइंट, दूसरा पॉइंट, तीसरा पॉइंट। अब आ गया वक्त
दोस्तों मैं आपको एमसीक्यू करा दूं। आप देखोगे एक एमसीक्यू कर लेते हैं चारों फंक्शन के ऊपर। आपको मजा आ जाएगा। क्या
लिखा है? द वैल्यू ऑफ़ ऑल गुड्स एंड सर्विज कैन बी एक्सप्रेस्ड। एक्सप्रेस मतलब डिनोमिनेटेड
इन मॉनिटरी यूनिट्स। हम हर चीज की वैल्यू को पैसा यानी मॉनिटरी मनी की यूनिट्स में मेजर कर सकते हैं। कैलकुलेट कर सकते हैं।
तो इस स्टेटमेंट से पता लगाओ कि कौन सा फंक्शन ऑफ मनी परफॉर्म हो रहा है। तो सीधा-सीधा यूनिट ऑफ़ अकाउंट है। राइट? इस
यूनिट ऑफ अकाउंट के फंक्शन को हम मेजर ऑफ वैल्यू भी करते हैं। कहते हैं मैंने आपके लिए रिपीट भी कर दिया। यहां पर काम हो गया
आपके मनी के फंक्शंस का। बहुत ज़्यादा इंपॉर्टेंट है। मैंने आपको कंटेंट भी प्रोवाइड कर दिया। ओके? रिपोर्ट तरीके से।
अब आ जाते हैं दोस्तों मनी के टाइप्स पे। बहुत सारे टाइप्स ऑफ मनी है। आपके कोर्स में जो जो है मैं वो वो करा दूंगा। ठीक
है? तो देखते हैं। आपको पता है आज तक हमारे देश की सरकार ने ₹1 का नोट छापा है। ₹2 का नोट छापा है।
पांच का छापा है, 10 का छापा है। 20 का छापा है, 50 का छापा है। ₹100 का नोट छापा है। 200 का भी छापा है, 500 का भी छापा
है। 1000 का भी छापा है भाई। हां। और 2000 का नोट भी छपा था। आजादी के बाद तो 5000 का नोट भी छपता था। और मेरे दोस्त
10,000 का नोट भी छपता था। तो इतनी सारी करेंसीज हमारे देश की सरकार के द्वारा आज तक अलग-अलग टाइम पर इशू की गई है। तो जो
भी करेंसी हमारे देश की सरकार के द्वारा इशू की गई है। उस सब करेंसी को बोलते हैं हम। अरे वाह क्या है? हां। उन सब करेंसी
को बोलते हैं हम फियट मनी। हां भाई। पियाट का मतलब होता है ऑर्डर। ऐसी मनी जो सरकार ने आर्डर दिया है। भाई यह छाप दी है। इससे
तुम सामान खरीद सकते हो। इसकी खास बात होती है। मैं आपको दिखाता हूं। मान लो भाई मैं एक बात कर रहा हूं आपसे 500 के नोट
की। यह सरकार ने छापा है। तो यह मनी गवर्नमेंट ने इशू की है। जो भी पैसा सरकार ने आज तक इशू किया है वो सारा फियाट मनी
है। इस ₹500 के नोट में क्या? कितने रुपए का सामान लगाया भाई? ₹500 का सामान लगाया क्या? अभी इसकी
वैल्यू अगर सरकार बोल दे ना प्राइम मिनिस्टर आकर बोल दे कि आज से ये नोट बंद तो जीरो वैल्यू है इसकी। समझ रहे हो? तो
किसी भी करेंसी जो भी सरकार के द्वारा इशू की गई है उसकी जीरो वैल्यू होती है अंदर से। लेकिन हम विश्वास करते हैं सरकार ने
बोला है। इसलिए इस पैसे से हम सामान खरीद पा रहे हैं। तो Fiat मनी के बारे में बोलते हैं भाई इसके लिए इसको बनाने में
कुछ भी लगाओ। लेकिन अगर सरकार मना कर दे तो इसकी जीरो वैल्यू है। तो फियाट मनी वो मनी जो सरकार ने इशू की है। इशू मतलब इट
इज बैक्ड बाय द गवर्नमेंट। बैक का मतलब समझते हो? सपोर्टेड। लड़के बोलते हैं ना भाई मेरे से पंगा मत लो। मेरी बैक बहुत
है। है ना? उसको बहुत लोग सपोर्ट करते हैं। तो इट इज द मनी व्हिच इज सपोर्टेड बाय द गवर्नमेंट। इट हैज़ नो इंट्रिंसिक
वैल्यू। इंट्रिंसिक वैल्यू मतलब इंटरनल वैल्यू। इसकी कोई औकात नहीं रहती अगर सरकार मना कर दे तो। लेकिन मेरे दोस्त ये
तो फियट मनी है। ठीक है? ये सारे करेंसी नोट सरकार ने इशू कर रखे हैं। कॉइन भी मैं इसमें मान लेता हूं। अभी कॉइन लिखे नहीं
है। राइट? हम लेकिन मेरे दोस्त आज तुम्हें पता है ये नोट नहीं चल रहा। ये नोट नहीं चल रहा। ये नोट भी नहीं चल रहा। ये नोट भी
नहीं चल रहा। यह सब बंद हो गए हैं। आज के टाइम में हमारे पास यह सब नोट्स हैं और कॉइंस भी हैं।
अगर आप कोई भी ट्रांजैक्शन करने जाओगे, आप उसको पुराना 2000 का या 1000 का नोट दोगे तो वो बंदा आपसे ट्रांजैक्शन करने के लिए
मना कर देगा। आप अपना उधार चुकाने जाओगे तो कोई बंदा तुमसे पुराने नोट नहीं लेगा। सब लोग वही करेंसी एक्सेप्ट करते हैं जो
सरकार ने बोल रखा है। अब लीगली अलाउड है पेमेंट करना। ओवरऑल जितनी भी करेंसी आज तक इशू करी वो सब वियाट मनी लेकिन जितनी आज
चलन में है जो चल रही हैं इन सभी करेंसी को बोलते हैं दोस्तों लीगल टेंडर लीगल टेंडर मनी आपको पता होना चाहिए तो
लीगल टेंडर मनी वो मनी होती है आप उस मनी से कोई भी उधार चुका देते हो मैंने आलू वाले भैया से 1 किलो आलू ले लिए तो 1 किलो
आलू का उधार चढ़ गया मेरे ऊपर अब मैं उसको इनमें से कोई भी नोट पे कर सकता हूं वो भैया मना नहीं कर सकते तो मनी के टाइप्स
बताऊंगा पहले दो बताए हैं। दो को समझ लो। फिर आगे पढ़ेंगे। क्या लिखा है भाई? टाइप्स ऑफ़ मनी बहुत सारे होते हैं। उसमें
से एक फियाट मनी। इट रेफर्स टू द मनी इशूड और बैक्ड बाय द गवर्नमेंट। हां, जिसको सरकार ने इशू किया है। और इट हैज़ नो
इंट्रिंसिक वैल्यू। ये दोनों लाइन लिखने पर आपको पूरे नंबर मिलेंगे डेफिनेशन में। लीगल टेंडर मनी मनी व्हिच कैन बी लीगली
यूज्ड टू मेक पेमेंट फॉर ऑल काइंड ऑफ़ दैट। आप सारा उधार चुकाने के लिए लोन लो, सामान खरीदो। उसके बदले में जो भी पैसा आप पे कर
रहे हो वो लीगल टेंडर मनी ही एक्सेप्ट किया जाएगा और अदर ऑब्लिगेशंस तुम्हारी कोई दूसरी जिम्मेदारी है स्कूल की फीस
वगैरह पे करनी है तो उसके लिए आप इसको यूज़ कर सकते हो इसको लीगल टेंडर मनी बोलते हैं कोई मना नहीं कर सकता इस पैसे को लेने के
लिए राइट अब इसके अलावा बताऊंगा भाई दोस्तों एक होता है चेक चेक बैंक का एक खास बात है बैंक में जब
तुम अकाउंट खुलवाओगे पैसा जमा कराओगे तो बैंक आपको एक चेक बुक इशू करता तो चेक बुक एक कागज होता है जिस पर आप साइन करके किसी
को दे सकते हो अमाउंट फिल करके। फॉर एग्जांपल आपने एक चेक साइन किया और मुझे दे दिया ₹500 लिखकर। तो इसका मतलब यह है
भाई मैं आपसे ₹500 ले लूंगा। जब भी मेरा मन करेगा मैं इस चेक को बैंक में लेके जाऊंगा। बैंक मुझे ₹500 दे देगा। लेकिन
धोखा भी हो सकता है। हो सकता है आपके बैंक में ₹500 हो ही ना। ₹400 हो। है ना? तो कई बार चेक से जब पेमेंट करते हैं तो सामने
वाला बंदा धोखा भी कर सकता है। धोखा करेगा तो फिर उसकी कंप्लेंट होगी। कोर्ट में केस जाएगा, सजा मिलेगी, फाइन लगेगा, कुछ भी
होगा। वो बात दूसरी है। लेकिन चेक से लोग ट्रांजैक्शन करते हैं। यह बात सच्ची है। तो चेक से लोग ट्रांजैक्शन क्यों करते हैं
भाई? विश्वास विश्वास की वजह से जो तुम्हारा विश्वास बैच है ना यह नाम विश्वास ट्रस्ट की वजह से लोग चेक से
पेमेंट करते हैं। तो ऐसी मनी जो विश्वास पे जिंदा हो उस मनी को बोलते हैं फिडशियरी मनी। फिडशरी का मतलब होता है म्यूचुअल
ट्रस्ट। दो पार्टी चेक को ले देकर आपस में ट्रांजैक्शन कर सकती है। लेकिन चेक एक 100% पेमेंट नहीं है। एक विश्वास वाली
पेमेंट है। आगे जो होगा नहीं मिला पैसा तो देखा जाएगा। अब दोस्तों ऐसे ही जब आप कॉलेज में एडमिशन लोगे तो कॉलेज वाले
बोलते हैं एक ड्राफ्ट बनवा के लाओ बैंक से। ड्राफ्ट क्या होता है? ड्राफ्ट भी चेक की तरह ही होता है। आपका बैंक में अकाउंट
हो या ना हो। कॉलेज की आपकी फीस है ₹10,000। आप जाओगे किसी भी बैंक में जाओगे भाई मेरे कॉलेज के नाम का ₹10,000 का
ड्राफ्ट बना दे। तो कॉलेज के नाम पर बैंक आपको एक कागज दे देगा। आप उस कागज को कॉलेज में जमा करा दोगे। सोच लो कॉलेज के
पास वो ₹10,000 चले गए। तो बैंक ड्राफ्ट भी चेक की तरह होता है। अगर आपसे ये ड्राफ्ट खो गया तो कोई दिक्कत नहीं है।
फिर किसी को पैसा नहीं मिलेगा। आप जाके कंप्लेंट करो। बैंक को बोलो मेरा ड्राफ्ट खो गया। मेरा पैसा वापस दे दे। मिल जाएगा।
तो एक सेफ इंस्ट्रूमेंट है। लेकिन ये भी विश्वास वाली ही पेमेंट है। राइट? तो मैं आपको और भी टाइप्स ऑफ मनी पढ़ा रहा हूं
दोस्त। तो यहां पर चलते हैं। फिडशियरी मनी सबसे पहले देखते हैं। हम फिडशरी मनी ऐसी मनी है जहां पर पेमेंट ऑन द बेसिस ऑफ
ट्रस्ट की जाती है। नॉट ऑन द बेसिस ऑफ़ एनी ऑर्डर ऑफ द गवर्नमेंट। सरकार ने ऑर्डर नहीं कर रखा। दो पार्टी को आपस में
विश्वास है। सरकार थोड़ी बोलती है सारी पेमेंट चेक से करो। दो पार्टियां आपस में विश्वास रखती है। तो दिस काइंड ऑफ़ मनी इज़
कॉल्ड एज फिडशरी मनी। फिडशरी का मतलब ट्रस्ट होता है। द एक्सेप्टेंस ऑफ़ फिड्यूशरी मनी रिलाई ऑन म्यूचुअल ट्रस्ट।
लोग म्यूचुअल ट्रस्ट एक दूसरे पर विश्वास करते हैं। इसलिए इसको एक्सेप्ट कर रहे हैं। और यह ट्रस्ट बिटवीन द पार्टी
इनवॉल्वड इन अ ट्रांजैक्शन होता है। जब दो पार्टियां ट्रांजैक्शन में इन्वॉल्व होती है। दोनों पार्टी यानी बयर और सेलर तब ये
ट्रस्ट होता है। एग्जांपल है इसका चेक और ड्राफ्ट। अब आते हैं दोस्तों। आपको पता है हमारे देश की गवर्नमेंट और आरबीआई पैसा
छापते हैं। गवर्नमेंट मतलब सेंट्रल गवर्नमेंट के अंदर एक फाइनेंसियल मिनिस्ट्री है जो ₹1 का नोट छापती है।
सारे कॉइंस वो छापती है। एक का कॉइन, दो का कॉइन, पांच का कॉइन, 10 का कॉइन, 20 का कॉइन। यह सब मिनिस्ट्री ऑफ़ फाइनेंस
सेंट्रल गवर्नमेंट छापती है। इसके अलावा हमारे देश का आरबीआई सेंट्रल बैंक भी पैसा छापता है। ₹2 का नोट, ₹5 का नोट, ₹10 का
नोट, ₹20 का नोट, 50 का, 100 का, 200 का, 500 का ये सारे नोट छापता है। तो हमारे देश की सरकार और आरबीआई के द्वारा जो भी
पैसा इकॉनमी के अंदर इंजेक्ट किया जाता है, मतलब इकॉनमी के अंदर डाला जाता है, छाप कर भेजा जाता है देश में, उस सारे
पैसे को बोलते हैं हाई पावर्ड मनी। तो जो भी पैसा यह क्रिएट करते हैं उसकी बात हो रही है। तो हाई पावर्ड मनी रेफर्स टू द
मनी वि इज क्रिएटेड बाय द सेंट्रल बैंक। मनी क्रिएटेड बाय द सेंट्रल बैंक। जैसे कि रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया एंड गवर्नमेंट भी
इसमें इन्वॉल्व होती है। छोटे-मोटे सिक्के वगैरह छापती है। कितना पैसा छाप सकते हैं? थोड़ा आगे जाकर देखेंगे। टॉपिक आएगा। इट
इज आल्सो नोन एज द मॉनिटरी बेस। इसको मॉनिटरी बेस या मॉनिटरी रिजर्व भी बोल सकते हैं। अगर तुम यूपीएससी की तैयारी
करोगे तो वहां पर इसको शॉर्ट में बोलते हैं एम जीरो। हां इसका नाम है भाई। इसके अलावा और बहुत
सारा पैसा होता है। बहुत सारे टाइप ऑफ मनी होती है। कोई बंदा बोलेगा सर मैंने तो देखा है मेरे स्कूल की टीचर ने कांसेप्ट
करा दिया फुल बॉर्डेड मनी। यह फुल बॉडी मनी क्या होती है? भाई साहब फुल बॉर्डेड मनी पूरी बॉडी वाली
मनी होती है। मतलब अगर मैं बोलूं ₹1 का कॉइन तो ₹1 के कॉइन के अंदर मेटल जो लगा है उसकी वैल्यू भी ₹1 की है। तो ऐसी मनी
जिसकी इंटरनल वैल्यू इंटरनल वैल्यू मतलब जो भी उसको बनाने में मेटल लगा है उसकी वैल्यू और जितने रुपए का वो यूज़ हो रहा है
एक्सटर्नल वैल्यू वो ₹1 का ही यूज़ हो रहा है। वो फुल बॉर्डेड मनी है। राइट? पियट मनी क्या है? पियाट मनी वो है जिसकी कोई
इंटरनल वैल्यू नहीं होती। पियाट मनी जनरली हमारे करेंसी नोट्स होते हैं। आप ₹10 का सिक्का देख रहे हो। राइट? ₹10 का सिक्का
की जो इंटरनल वैल्यू है और जो उसकी एक्सटर्नल वैल्यू है वो एक दूसरे के बराबर नहीं है। ₹10 का सिक्का भी आपका फियट मनी
है। मैं ₹1 के सिक्के को बोल सकता हूं वैसे कि ₹1 के सिक्के को बनाने में जितना मेटल लगा है उसकी वैल्यू भी ₹1 है और ₹1
का सिक्का ₹1 के बराबर ही एक्सेप्ट होता है मार्केट में। तो अगर आप ₹1 का सामान खरीदो तो ठीक और ₹1 का जाके कबाड़ी को बेच
दो तो मेटल के तौर पर वो भी ₹1 का ही बिकेगा। तो इंटरनल एक्सटर्नल वैल्यू जिसके बराबर होती है उसको बोलते हैं फुल बॉडेड
मनी। ऐसे ही मैंने बता दिया। ओके रिपोर्ट है। चलो जी। अब बताता हूं आपको आगे के टॉपिक्स पे। लेकिन मनी के फंक्शन से मैं
फिर से याद दिलाना चाहता हूं। एक क्वेश्चन और तुम्हारे सामने पेश किया गया है। व्हिच फंक्शन अलाउ द पेमेंट टू बी डिलेड टिल
फ्यूचर डेट? मनी का ऐसा कौन सा फंक्शन है जो अलाउ करता है कि पेमेंट को हम फ्यूचर डेट के लिए डिले कर सकते हैं। वाशिंग मशीन
को खरीद लो। धीरे-धीरे करके फ्यूचर में पे कर दो। iPhone खरीद लो। धीरे-धीरे करके किडनी दे दो। सॉरी किडनी तो वाटर सिस्टम
हो जाएगा। धीरे-धीरे करके पैसा पे कर दो। तो ये स्टैंडर्ड ऑफ डेफर्ड पेमेंट की कहानी है मेरे दोस्त। किसकी कहानी है?
स्टैंडर्ड ऑफ डेफर्ड पेमेंट की कहानी है। मनी का पूरा कांसेप्ट खत्म हो गया। अब आपको और आगे चीजें पढ़नी है। मनी सप्लाई
क्या होती है? सेंट्रल बैंक क्या होता है? सेंट्रल बैंक के फंक्शनंस क्या होते हैं? कमर्शियल बैंक क्या होता है? कमर्शियल
बैंक क्रेडिट क्रिएशन कैसे करता है? ये सबसे इंपॉर्टेंट क्वेश्चन है। तो धीरे-धीरे हम अब आगे स्विच कर रहे हैं।
बैंकिंग सिस्टम पे पहुंचते हैं। आपने अपनी जिंदगी में देखा होगा यार बहुत सारे तरीके के बैंक्स होते हैं। एक होता है सेंट्रल
बैंक। हर देश में एक सेंट्रल बैंक होता है। जैसे कि इंडिया में सेंट्रल बैंक का नाम है रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया। अमेरिका के
सेंट्रल बैंक का नाम है फेडरल रिजर्व सिस्टम। इंग्लैंड के सेंट्रल बैंक का नाम है
बैंक ऑफ इंग्लैंड। हर कंट्री में एक सेंट्रल बैंक होता है। वो सेंट्रल बैंक सभी बैंकों का पापा होता है। यानी जितने
भी देश में बैंक होते हैं, सबका हेड सेंट्रल बैंक होता है। पैसा छापने का राइट सेंट्रल बैंक के पास होता है। इससे पब्लिक
डील नहीं करती। पब्लिक सीधा जाकर सेंट्रल बैंक वगैरह के अंदर पैसा नहीं जमा करा सकती। हम लोग जिससे डील करते हैं वो ये
नीचे टाइप्स ऑफ बैंक लिखे हुए हैं। धीरे-धीरे करके समझाता हूं आपको। एक होते हैं ऑनलाइन पेमेंट बैंक्स। जैसे कि आजकल
Airtel पेमेंट बैंक खुला हुआ है। ऑनलाइन अगर तुम ऐप डाउनलोड करोगे तो पता लग जाएगा। Paytm पेमेंट बैंक खुला हुआ है।
Paytm की एक ऐप भी है और एक Paytm पेमेंट बैंक भी है। तो ऐसे ऑनलाइन बहुत सारे बैंक्स खुले हुए हैं। तो ऑनलाइन बैंकिंग
सिस्टम मतलब ऑनलाइन बैंक को ही बोलते हैं। इसकी कोई ब्रांच नहीं होती। आप Airtel पेमेंट की कोई ब्रांच नहीं मिलेगी आपको।
है ना? Paytm पेमेंट बैंक की कोई एक ब्रांच नहीं मिलेगी आपको। मतलब एक सिंगल हेड क्वार्टर होता है। उसके अलावा बहुत
सारी ब्रांच नहीं होती। जैसे आप आसपास बहुत सारे बैंक्स को देखते हो। ये नहीं मिलते। राइट? ऑनलाइन ही होते हैं। स्मॉल
फाइनेंस बैंक कुछ छोटे-छोटे फाइनेंस बैंक होते हैं। जैसे कि एयू स्मॉल फाइनेंस बैंक, श्रीराम स्मॉल फाइनेंस बैंक,
Equitas स्मॉल Finance बैंक ये छोटे-छोटे फाइनेंस बैंक होते हैं। इसके अंदर प्रॉपर जिस तरीके का एक बड़ा बैंक काम करता है उस
तरीके का बड़ा काम नहीं किया जाता। अच्छा जी। रीजनल रूरल बैंक इसको शॉर्ट में आरआरबी बोलते हैं। यह वो बैंक होते हैं जो
गांव देहात में जिलों में खुले होते हैं। जहां पर बड़े-बड़े बैंक नहीं पहुंच पाए। तो यह छोटे-छोटे बैंक सिर्फ गांव देहात के
लिए हैं। इनके लास्ट में लिखा होता है विकास बैंक। तो ग्रामीण विकास बैंक इसका बड़ा एग्जांपल है। ठीक है? फिर होते हैं
कोऑपरेटिव बैंक। कोऑपरेटिव का मतलब होता है मिलकर। कुछ लोगों ने मिलकर बैंक खोल दिया और फिर वो बैंक चला रहे हैं। ये बंदे
हैं। ऐसे बैंक को कोऑपरेटिव बैंक बोलते हैं। इनमें से कोई भी हमारे कोर्स में नहीं है। इसलिए मैं आपको डिटेल में नहीं
पढ़ा रहा। राइट? हमारे कोर्स में है कमर्शियल बैंक्स। यही फेमस होते हैं। आपने आपने आसपास यही बैंक देखे होंगे। कमर्शियल
बैंक जैसे कि आप इधर देख पा रहे हो भाई स्टेट बैंक ऑफ इंडिया पंजाब नेशनल बैंक HDFC ICICI Kotak बैंक Axis Bank Bank of
Boda Canरा Bank Indस Bank देना बैंक बैंक ऑफ बीकानेर एंड जयपुर बैंक ऑफ जम्मू एंड कश्मीर बहुत सारे बैंक होते हैं। ये
कमर्शियल बैंक्स हैं। यही सबसे ज्यादा फेमस होते हैं। इन बैंकों के दो बड़े-बड़े काम होते हैं। पहला काम यह लोगों का पैसा
अपने पास जमा रखते हैं। इसको बोलते हैं एक्सेप्टिंग पब्लिक डिपॉज़िट और यह लोगों को पैसा लोन पे भी देते हैं। गिविंग लोन
भी इनका फंक्शन है। तो बड़े-बड़े काम बैंक्स के होते हैं। फंक्शनंस ऑफ कमर्शियल बैंक आपके सामने टॉपिक है। क्या बड़े-बड़े
काम होते हैं भाई? एक तो एक्सेप्टिंग पब्लिक डिपॉजिट। दूसरा प्रोवाइडिंग लोन। प्रोवाइडिंग का मतलब होता है गिविंग।
किसीकिसी किताब में बहुत मुश्किल वर्ड यूज़ किया हुआ है। इसके लिए एडवांसिंग। एडवांसिंग का मतलब भी कातिया देना ही होता
है। आई होप मैं आपका कम टाइम के अंदर ज्यादा कंटेंट करा पा रहा हूं। अगर आपको बात पसंद आ रही है तो कमेंट सेक्शन खाली
है। आप वहां पर लिख सकते हो हां सर बढ़िया समझ में आ रहा है। इससे थोड़ा मेरे को भी पता लगेगा कि हां भाई बच्चे कनेक्ट कर रहे
हैं और आपसे मेरी दोस्ती बढ़ती जा रही है। सही है ना? हां। ठीक है दोस्तों। भाई बैंक के दो ही मेन काम होते हैं। ये प्राइमरी
फंक्शन है। आगे भी बैंक के काम बढ़ेंगे। जैसे-जैसे हम कांसेप्ट सीखते जाएंगे तो इसके अंदर और एडिशन करते जाएंगे। आपसे कोई
पूछे कि भाई कमर्शियल बैंक होता क्या है? तो कमर्शियल बैंक एक ऐसा फाइनेंसियल इंस्टीट्यूशन है। फाइनेंसियल इंस्टट्यूट
मतलब पैसों का इंस्टट्यूट है जो पब्लिक का पैसा डिपॉजिट करता है और पब्लिक को लोन भी प्रोवाइड करता है विद चेक फैसिलिटी। चेक
फैसिलिटी सिर्फ कमर्शियल बैंक पे होती है। किसी इंश्योरेंस कंपनी पे नहीं होती। क्योंकि इंश्योरेंस कंपनी में भी पैसों का
काम होता है। स्टॉक मार्केट में भी पैसों का काम होता है। स्टॉक मार्केट का मतलब शेयर मार्केट। लेकिन वहां चेक नहीं होता।
मतलब किसी LIC LIC है ना LIC इंश्योरेंस कंपनी वो अपने नाम का चेक बुक इशू नहीं कर सकती तुम्हें बैंक इशू कर देगा स्टेट बैंक
ऑफ इंडिया HDFC ICICI ये सब तुम्हें इशू कर देंगे और थोड़ी सी नॉलेज लूं दोस्तों HDFC प्राइवेट बैंक है। ICICI प्राइवेट
है। Axis प्राइवेट है। Yes Bank प्राइवेट है। बाकी सारे सरकारी बैंक हैं। हमारे देश में फॉरेन बैंक्स भी हैं। जैसे कि
सीआईटीआई सिटी बैंक एक है हांगकांग एंड शघाई बैंक कॉरपोरेशन। एक और है रॉयल बैंक ऑफ लंदन, स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक, बैंक
ऑफ अमेरिका। कुछ फॉरेन बैंक भी होते हैं जो हमारे देश में काम करते हैं। सरकारी भी है, प्राइवेट भी है, देसी इंडियन और फॉरेन
बैंक भी हैं जो हमारे देश में काम करते हैं। अपना काम क्या होता है? बैंक के अंदर जाते हैं। अपने पास जो लाखों करोड़ों रुपए
हैं वो जमा करा देते हैं। अब मान लो तुम्हारे पास ₹1 लाख हैं। आप गए बैंक में जमा कराने के लिए। तो बैंक बोलेगा हां जी
बताओ किस लिए आए हो? तुम बोलोगे मेरे पास ₹1 लाख हैं। जमा कराने हैं। बैंक बोलेगा अकाउंट खुलवाओ पहले। हां तुम बोलोगे हां
यार बैंक में आया हूं तो अकाउंट तो खुलवाना पड़ेगा। तो बैंक से आप पूछना मेरा अकाउंट कैसे खुलेगा? तो बैंक आपसे पूछेगा
उल्टा। भाई कौन सा अकाउंट खुलवाना है? तो बैंक वाला आपको एक्सप्लेन करेगा कि किसी भी बैंक के अंदर जनरली चार अकाउंट होते
हैं। एक होता है दोस्त अ सेविंग अकाउंट। ओ हो हो हो। हां जी। सेविंग अकाउंट इसको सेविंग बैंक अकाउंट
बोलते हैं। ज्यादातर लोगों का बैंकों में यही अकाउंट होता है। एक होता है करंट अकाउंट, एक होता है रिकरिंग डिपॉजिट
अकाउंट, एक होता है फिक्स्ड डिपॉजिट अकाउंट। जरा समझते हैं। जब तुम समझ लोगे तो तुम डिसाइड कर पाओगे कि बैंक के अंदर
आपको कौन सा अकाउंट खुलवाना है। एक्चुअली देखो जी, बैंक का एक मेन काम होता है। बैंक तुम्हारा पैसा अपने पास रखेगा। इस
पैसे को ही बैंक आगे लोन पे देगा और पैसा कमाएगा। तो बैंक तुम्हारे पैसे से ही पैसा कमाता है। इंटरेस्ट अर्न करता है ना बैंक?
हां। मान लो भाई तुम्हें बैंक 3% इंटरेस्ट दे रहा है और तुम्हारे पैसे को आगे लोन पर देगा तो उससे 10% इंटरेस्ट वसूलेगा। तो
देखो 10 वसूल रहा है, तीन दे रहा है। मस्त प्रॉफिट कमा रहा है बैंक। हां। तो यहां नॉलेज देखो। सेविंग बैंक अकाउंट क्या होता
है? सबसे पहले आपको यह बताऊंगा। धीरे-धीरे करके सभी बैंक्स के बारे में बताऊंगा। सेविंग बैंक अकाउंट ये होता है। आप जाओ
भाई अपने नाम पे इसको खुलवाओ। इसके अंदर कभी भी पैसा जमा कराओ। कभी भी पैसे को निकाल लो। पैसा निकालने को बोलते हैं
विथड्रॉ। कभी भी जाओ कभी भी निकाल लो जाओ जब बैंक खुला है जाओ और निकाल लो कोई मना नहीं कर रहा बैंक के अंदर आप पैसा जमा
करोगे आपको इंटरेस्ट भी मिलेगा नॉर्मल अकाउंट है यहां पर बैंक आपको एक कार्ड भी इशू करता है अगर आप मांगोगे तो इस कार्ड
को बोलते हैं डेबिट कार्ड डेबिट कार्ड को आजकल एटीएम बोलते हैं फुल फॉर्म है ऑटोमेटेड टेलर मशीन यह क्या होता है भाई
आपके अकाउंट के अंदर जो पैसे हैं आप उसको बैंक में ना जाकर किसी एटीएम मशीन से भी निकाल सकते हो राइट राइट। हां। फिर होता
है भाई करंट अकाउंट। करंट अकाउंट एक ऐसा अकाउंट होता है जो इंसानों के नाम पे नहीं खुलता। किसी फर्म या बिजनेस या शॉप के नाम
पे खुलता है। अच्छा जी। ये बड़ा स्पेशल अकाउंट है भाई। अब देखो मान लो मेरे घर के पास एक दूध की डेरी है जिसके पास डेली
लाखों का कैश आता है। तो वो बंदा डरा रहता है। कहता है यार मेरे जब रात को दुकान बंद करता हूं तो लाखों रुपए मेरे पास होते
हैं। मैं लेकर जाऊंगा तो कोई मुझसे छीन लेगा। डकैती पड़ जाएगी, चोरी हो जाएगी। तो बैंक उसको एक सुविधा देता है। कहता है तू
मेरे पास अकाउंट खुलवा और तेरा सारा कैश हम अपने पास रख लेंगे। बैंक सर्विस भी देते हैं। भाई तुमने देखा है वो कैशवन एक
वैन घूमती है जिसमें सिक्योरिटी गार्ड होते हैं। कैश होता है। अलग-अलग बड़े-बड़े स्टोर जैसे कि Reliance फ्रेश बिग बा सारे
बड़े-बड़े मॉल बनिए की दुकान पे जाके वो कैश इकट्ठा करते रहते हैं। बोलते हैं तेरे को डरने की जरूरत नहीं है। तेरे पैसों को
सेफ रखा हुआ है। जब तुझे चाहिए तब ले लियो। राइट? तो बैंक ऐसे लोगों को बोलते हैं करंट अकाउंट खुलवा ले। ऐसे कोई भी बोल
देते हैं और जिसका मन करे वो दुकान वाला भी करंट अकाउंट खुलवा सकता है। ऐसी कोई बात नहीं है। करंट अकाउंट खुलवाने पर बैंक
आपको सर्विस प्रोवाइड करता है कि आपके पैसों की सेफ्टी हो रही है। तो इन लोगों को बैंक इंटरेस्ट पे नहीं करता। कहते हैं
हम तुम्हारा पैसा बचा रहे हैं। बल्कि इसके ऊपर चार्ज लगाता है। तो हर बैंक अलग-अलग चार्ज लगाता है। तुम्हारा पैसा सेफ रखने
के लिए। तो भाई समझ लेना इस चीज को। हां। करंट अकाउंट के अंदर जो पैसा रखा हुआ है उसको आप कभी भी निकाल सकते हो। कोई दिक्कत
नहीं है। जब चाहो तब निकाल लो। यहां पर भी आपको एक डेबिट कार्ड यानी एटीएम कार्ड इशू हो जाता है। लेकिन आपको इंटरेस्ट नहीं
मिलता। इस बात को आपको समझना है। और एक बड़ी चीज मान लो आपके करंट अकाउंट के अंदर ₹50 लाख रखे हैं। आपको एकदम से इमरजेंसी
पड़ी। आपको चाहिए ₹51 लाख, 52 लाख, 53 लाख जो भी पैसा चाहिए। तो बैंक हैंड टू हैंड, सिर्फ और सिर्फ करंट अकाउंट होल्डर को। और
वह भी करंट अकाउंट होल्डर वो वाले जो बैंक के विश्वास में हो। पुराने बंदे हो। ठीक है? ठीक है? बैंक मैनेजर सभी करंट अकाउंट
होल्डर को जानता है। ध्यान रखना। तो उसको एक फैसिलिटी प्रोवाइड करेगा। भाई जितने तेरे अकाउंट के अंदर पैसे हैं तू उससे
ज्यादा निकाल ले। उससे ज्यादा की पेमेंट कर दे। वो तेरे ऊपर उधार चढ़ जाएगा। बस इसको छ सात दिन के अंदर वापस कर दियो। हां
हां। तो इस फैसिलिटी को बोलते हैं ओवरड्राफ्ट फैसिलिटी। ढंग से समझाता हूं। ओवरड्राफ्ट फैसिलिटी
एक ऐसी फैसिलिटी होती है जिसमें सिर्फ करंट अकाउंट होल्डर अपने अकाउंट में उतने पैसे से ज्यादा निकाल सकता है जितने पैसे
उसके अकाउंट में डिपॉजिटेड है। हां कितने निकाल सकता है? सभी के लिए अलग-अलग लिमिट होती है। विश्वास के हिसाब से अलग-अलग
बंदों को अलग-अलग लिमिट प्रोवाइड करता है बैंक। फॉर एग्जांपल मेरे बैंक में 50 लाख है। बैंक बोल सकता है भाई तू 51 लाख के
ट्रांजैक्शन कर ले। आपके बैंक में 50 लाख हो तो बैंक बोल सकता है आप 55 लाख तक निकाल सकते हो। हां आपको उधार दे देंगे
शॉर्ट टर्म के लिए। लेकिन इसके ऊपर तुम इंटरेस्ट दोगे बैंक को। ब्याज पे करोगे तुम बैंक को क्योंकि एक्स्ट्रा निकाल रहे
हो ना? हां। तो बैंक कितनी मस्तमस्त फैसिलिटी देता है करंट अकाउंट और सेविंग बैंक अकाउंट होल्डर को। लेकिन मेरे दोस्त
अब टर्निंग आती है दूसरे अकाउंट के टाइप पे। टर्निंग पॉइंट क्या आता है? हमारा है ना पर्पस होता है कि हम बैंक में अकाउंट
क्यों खुलवा रहे हैं? अपने पास कैश पड़ा हुआ है। उसको बैंक में जाके जमा कर दो। सेविंग बैंक अकाउंट में। दुनिया ऐसे ही
करती है। जब चाहे तब निकाल लेना। अब किसी को रिस्क लग रहा है, दुकान खुल रखी है, बहुत ज्यादा कैश का फ्लो है, वह करंट
अकाउंट खुलवा के वहां जाकर सेव कर लेता है। लेकिन मम्मी पापा होते हैं। जब बच्चा पैदा होता है तो उसके बारे में प्लान कर
रहे होते हैं। तुम्हारे मम्मी पापा ने भी किया होगा। तुम्हें बताते नहीं है। क्या बोलते हैं? मतलब जिनके पास पैसा नहीं है,
जो रहीस नहीं है, बेसिकली वो लोग ज्यादा करते हैं। कहते हैं बच्चा पैदा हो गया। भविष्य में जाएंगे इसकी कॉलेज की फीस
होगी। हो सकता है हजारों में हो, लाखों में हो। इसकी शादी करनी है। बहुत मोटा-मोटा खर्चा आगे जिंदगी के अंदर आने
वाला है। राइट? तो हमारे पास पेरेंट्स सोचते हैं कि हो सकता है पैसा ना हो फ्यूचर में। तो इसलिए हम हर महीने ₹10000
डालना शुरू कर देते हैं बैंक के अंदर। मान लो 1 साल में000 डाले तो ₹1,000 हो गए। ठीक है? यह 20 साल तक डालेंगे
तो सोचो ₹400 तुम्हारा पैसा प्लस ब्याज। 20 साल में तो चार गुना हो जाएगा पैसा। लगभग 10 लाख के आसपास जुड़ जाएगा। हर
महीने 20000 डालोगे तो 20 साल में 10 लाख तक पैसा तुम्हारे पेरेंट्स तुम्हारे लिए जोड़ सकते हैं। सिर्फ ₹10000 जमा करा के।
लेकिन ये सुविधा कहां मिलेगी? भाई ये तुम्हारा मन करे सेविंग बैंक अकाउंट खुलवा लो। लेकिन इसके लिए बैंक वाले स्पेशली
बोलते हैं। देखो पेरेंट्स या कोई भी बंदा तुम मुझे प्रॉमिस कर रहे हो कि तुम हर महीने पैसा जमा कराओगे या एक टाइम इंटरवल
के बाद पैसा जमा कराओगे। बस तुम निकालना मत। बैंक बोलता है तुम निकालना मत। तुम सिर्फ जमा कराना तो मैं आपको ज्यादा
इंटरेस्ट दूंगा। बैंक बोलता है ऐसे कैसे भाई? तू दूसरों को तो सेविंग अकाउंट पे 3% इंटरेस्ट दे रहा है। मुझे तू 6% कैसे
देगा? ज्यादा कैसे देगा? तो बैंक बोलता है इसके लिए हमने एक स्पेशल अकाउंट बनाया है। इस अकाउंट को बोलते हैं रिकरिंग डिपॉजिट
अकाउंट। रिकरिंग का मतलब बार-बार होना। रिऑकर बार-बार होना। ये एक ऐसा अकाउंट है जिसके अंदर हम बार-बार एक टाइम इंटरवल के
बाद पैसा जमा कराते हैं। हर महीने, हर 3 महीने में या साल में दो बार सिर्फ जमा ही कराते हैं। विड्रॉ नहीं करते। हां, अगर
कोई इमरजेंसी पड़ गई तो हम बैंक से विड्रॉ कर सकते हैं। हमारा पैसा है भाई बैंक वापस क्यों नहीं देगा? बस बैंक इस पैसे पे
विश्वास कर लेता है। अगर हम इमरजेंसी में विड्रॉ करेंगे तो बैंक हमें हमारा पैसा तो पूरा दे देगा। लेकिन इंटरेस्ट उतना नहीं
देगा जितना बैंक ने प्रॉमिस किया था। क्योंकि बैंक बोल रहा है आप प्रॉमिस तोड़ रहे हो तो हम भी प्रॉमिस तोड़ेंगे। कम
इंटरेस्ट देगा बैंक। हर बैंक का अलग-अलग सिस्टम होता है। कितना कम देगा वह बात देखी जाती है। तो रिकरिंग डिपॉजिट अकाउंट
को राज्य आरडी अकाउंट भी बोलते हैं। यह पोस्ट ऑफिस में भी खोले जाते हैं। वैसे तो बैंकों में भी खोले जाते हैं। आप जाओ पैसा
जमा कराओ और बाद में ले लेना। लेकिन बैंक में ना बैंक वालों को विश्वास हो जाता है कि यह बंदे पैसा निकालेंगे नहीं। जैसे मान
लो यह अकाउंट है। तुमने खुलवा लिया। अब तुम कभी भी निकाल सकते हो। तो बैंक तुम्हारे पैसे को लेके रिस्क में रहता है।
अरे यार इसने निकाल लिया तो इसके पैसे को लोन पे दूं या ना दूं? बैंक फंसा होता है। लेकिन इस सारे पैसे को बैंक लोन पे दे
देता है। बैंक को पक्का पता है कि यह पैसा आ गया भाई इसको लोन पे दे और अर्निंग कर ले। तो बैंक को सेफ्टी नजर आती है। इसलिए
इस पैसे पे बैंक ज्यादा इंटरेस्ट पे करता है। राइट? हम फिर आते हैं एक फिक्स्ड डिपॉजिट अकाउंट। यह होता है जी वन शॉट
डिपॉजिट। वन शॉट डिपॉजिट मतलब जैसे यह वन शॉट है। एक ही वीडियो के अंदर आपका पूरा यूनिट कवर अप हो रहा है। ऐसे ही फिक्स
डिपॉजिट में आप एक बार पैसा जमा कराते हो और जब आपको चाहिए हो आप बैंक को बता देते हो 1 महीने बाद निकालूंगा 1 साल बाद, 10
साल बाद, 20 साल बाद। जो भी आप बोलोगे उतने टाइम के बाद। तो बैंक एक बार में मोटा पैसा ले लेता है। यहां पर अगर मान लो
आपके पास 5 लाख पड़े हैं। आप बोलोगे यार जमा करा देते हैं। मेरे जब बच्चे होंगे उनके कॉलेज की फीस या उनकी शादी करा
देंगे। तो आप पैसा यहां पर डिपॉजिट रखते हो। तो ये अकाउंट होता है फिक्स्ड डिपॉजिट अकाउंट। आप प्रॉमिस कर देते हो भाई बाद
में निकालूंगा। इमरजेंसी हो गई तो आप पहले भी निकाल सकते हो। फिर बैंक आपको आपका पैसा तो पूरा दे देगा लेकिन इंटरेस्ट उतना
नहीं देगा जितना मिलना चाहिए। तो मुद्दे की बात ये आती है बताओ सबसे ज्यादा इंटरेस्ट कौन से अकाउंट पे मिलता है? तो
भाई सबसे ज्यादा इंटरेस्ट इस अकाउंट में मिलता है पहले पे। दूसरे पे रिकरिंग डिपॉजिट पे। क्योंकि इन
दोनों अकाउंट को लेकर बैंक श्योर होता है कि ये निकालने तो नहीं आएंगे। बहुत ही कम केस होते हैं निकालने वालों के। ज्यादा
पैसा इसमें जमा होता है। राइट? पूरी सेफ्टी होती है। एक बार में सारा पैसा जमा हो गया। बेसिकली अमीर लोग करवा लेते हैं
फिक्स्ड डिपॉजिट। फिर यह दूसरे नंबर पर श्योरिटी और तीसरे नंबर पर इंटरेस्ट इस पे मिलता है।
और भाई करंट अकाउंट पे कोई इंटरेस्ट नहीं मिलता बल्कि चार जोर लगाए जाते हैं। समझ गए? इतनी बात आपको क्लेरिटी से पता होनी
चाहिए। चाहे तुम्हारी किताब में लिखी हो या ना लिखी हो जिंदगी में काम आएगी। आगे तुम पेपर दोगे। पेपर के अंदर खतरनाक
क्वेश्चन बनते हैं। वहां काम आएगी। राइट? तो भाई अब देखो ये मैंने आपको चार टाइप ऑफ अकाउंट कराए हैं। लास्ट के दो अकाउंट आपने
ऐसे देखे हैं जिसमें आपका पैसा एक टाइम के लिए एक फिक्स्ड टाइम के लिए जमा हो गया। आप जब चाहे तब नहीं निकाल सकते। तो इन
दोनों अकाउंट के अंदर जो पैसा होता है उस पैसे को बोलते हैं टाइम डिपॉजिट। और इन दोनों अकाउंट को बोलते हैं टाइम
डिपॉजिट अकाउंट। आप बोलोगे टाइम डिपॉजिट अकाउंट क्या होता है? टाइम डिपॉजिट अकाउंट वह अकाउंट होता है जिसके अंदर हम डिपॉजिट
कराते हैं। एक लिमिटेड टाइम के लिए विड्रॉ अलाउड नहीं होता। सिर्फ इमरजेंसी में अलाउड होता है। टाइम डिपॉजिट दो तरीके के
होते हैं। रिकरिंग डिपॉजिट और फिक्स्ड डिपॉजिट। राइट? हां। लेकिन इसके अलावा जो पैसा हमारा सेविंग बैंक और करंट बैंक में
है। इसको हम कभी भी निकाल सकते हैं। सेविंग बैंक और करंट अकाउंट का पैसा हम कभी भी निकाल सकते हैं। जब बैंक खुले हो।
एटीएम सर्विस है, बहुत कुछ है। राइट? तो इन दोनों के देखो करंट अकाउंट को सीए बोलो।
ओ करंट अकाउंट यह रहा। सीए बोलो और सेविंग अकाउंट को एसए बोलो। तो पहले लिखते हैं पीए फिर लिखते हैं एस ए। इसको कासा बोलते
हैं। आजकल न्यूज़पेपर और टीवी चैनल में यह वर्ड यूज़ होता है। तो कासा डिपॉजिट। कासा डिपॉजिट मतलब करंट और सेविंग का पैसा। यह
वो पैसा है जब आप बैंक से डिमांड करोगे। बैंक को पे करना पड़ेगा। तो इस कासा डिपॉजिट को आपकी किताब के अंदर लिखा है
डिमांड डिपॉजिट। कोई आपसे बोले डिमांड डिपॉजिट क्या होता है? भाई ऐसा डिपॉजिट जिसको हम जब चाहे तब
निकाल सकते हैं। डिमांड डिपॉजिट को चेकेबल डिपॉजिट भी बोलते हैं। यानी चेक के थ्रू भी आप बैंक से अपना डिपॉजिट
विथड्रॉ कर सकते हो। इसकी डेफिनेशन क्या होगी? इसकी डेफिनेशन बनेगी राज्य इट
रेफर्स टू द डिपॉजिट दैट आर पेएबल
ऑन डिमांड। जैसे ही आप डिमांड करोगे बैंक वगैरह को यह आपको पे करने ही पड़ेंगे।
इतनी सी डेफिनेशन है। बस आप याद कर लो। आपके काम आएगी। आपसे पेपर में पूछ सकता है टाइम डिपॉजिट का पैसा कौन सा होता है? आप
बोलोगे इन दोनों अकाउंट का। डिमांड डिपॉजिट का पैसा कौन सा होता है? इन दोनों अकाउंट का। राइट? हां। जी हां। तो भाई एक
एमसीक्यू कर लेते हैं। डिमांड डिपॉजिट इंक्लूड व्हाट? एक बार ये चारों ऑप्शन पढ़ो। मैं स्क्रीन के सामने से हट रहा हूं।
कम ऑन। चारों ऑप्शन पढ़ लिए तो आपके दिल में भी आया होगा। हां यार। डिमांड डिपॉजिट तो करंट और सेविंग का होता है। तो
जहांजहां लिखा है फिक्स्ड कैंसिल कर दो। जहां लिखा है फिक्स्ड कैंसिल कर दो। यहां पर आएगा सिर्फ सेविंग अकाउंट और करंट
अकाउंट का पैसा। इस तरीके से आपसे पेपर में क्वेश्चन पूछे जाते हैं। बहुत आसान है। ये तो टाइप ऑफ डिपॉजिट हो गए भाई। हां
जी। हां। टाइप ऑफ डिपॉजिट हो गए। अब बताऊंगा बैंक के अंदर जो पैसा जमा होता है, बैंक उस पैसे का करता क्या है? है ना?
मजा आ रहा है ना? मजा आना चाहिए दोस्त, बढ़िया तरीके से। देखो, चीजें तुम्हें धीरे-धीरे बता रहा हूं और धीरे-धीरे यकीन
भी दिला रहा हूं। जो तुम यह मैकोनॉमिक्स पढ़ रहे हो ना मुझसे यह तुम्हारी 12th में भी काम आती है और ये नॉलेज काम आएगी आपके
सीयूटी एग्जामिनेशन में। चाहे आप उसके बाद सीए सीएस भी करने की सोच रहे हो 12th के बाद तो ये तब भी तुम्हारे काम आएगी। आप
कोई भी ग्रेजुएशन का कोर्स कर लेना। बीकॉम, बीकॉम ऑनर्स, ईको ऑनर्स चाहे आप कर लेना बीबीए। यह नॉलेज तुम्हारा पीछा नहीं
छोड़ेगी। मैं आपको उस लेवल का इंसान बना दूंगा दोस्तों पढ़ा पढ़ा कर कि आप करंट सिस्टम में लोगों से डिबेट भी कर सकते हो
चीजों को लेकर। किताब से ज्यादा असली नॉलेज इन वीडियोस के अंदर मैं देता हूं। क्योंकि जिस हिसाब से तुम्हारा एग्जाम में
क्वेश्चन पूछने का स्टाइल अपडेट हो रहा है ना बुक्स वगैरह उस हिसाब से अपडेट नहीं हो रही है। तो आपको एक सही मेंटोर सही गाइड
की जरूरत है। तो भाई मेरे को लगता है कि मैं तुम्हारा वो भाई हूं दोस्त हूं। एजुटर ऑफ इकोनॉमिक्स हूं जो तुम्हारी लाइफ के
अंदर इकोनॉमिक्स में बहुत अच्छे लेवल का कंट्रीब्यूट कर सकता हूं। और जो ये वीडियो बना रहा हूं भाई तुम्हारे ऊपर डिपेंड करता
है कि तुम उसकी स्पीड बहुत तेज भी कर सकते हो, स्लो भी कर सकते हो। तो तुम स्पीड भी सेट कर सकते हो। आपकी अपनी मर्जी है।
राइट? हां। अब समझा रहा हूं भाई। प्रैक्टिकल लाइफ के अंदर होता क्या है? मान लो कोई बैंक है। इस बैंक का नाम है
HDFC। इसके पास पब्लिक ने पैसा जमा करा रखा है। और मान लेते हैं
इसके पास पब्लिक का टोटल डिपॉजिट पड़ा हुआ है 100 करोड़। यह करता क्या है? 100 करोड़ का करेगा क्या? तो यह बैंक का फंक्शन जान
लोगे ना एक अच्छे लेवल की नॉलेज मिलेगी अपने घर के अंदर। मम्मी, पापा, भाई-बहन कोई भी है और साइंस साइड गया है तो बहुत
अच्छे से बताना उसको। उसको भी लगेगा यार कॉमर्स वाले क्या चीज पढ़ते हैं। हैं? हां। ठीक है? ये फंक्शनिंग समझना। हर बैंक
अपने टोटल डिपॉजिट का एक छोटा सा हिस्सा मान लो 5 करोड़। आरबीआई के पास जमा कराता है। आरबीआई मतलब
सभी बैंकों का पापा है। आरबीआई सभी बैंकों को गाइड करता है। इंस्ट्रक्शन देता है। जैसे तुम्हारे पिताजी, तुम्हारी मम्मी
तुम्हें टाइम पर तुम्हारा ख्याल रखती है। तो ऐसे सभी बैंक का ख्याल रखता है आरबीआई। आरबीआई सारे बैंकों को बोलता है जितना भी
पैसा तुम्हारे पास है, उसका एक पार्ट, उसका एक पोर्शन मेरे पास रखवा। यह कितना पोर्शन होता है? आरबीआई ही डिसाइड करता
है। हर 3 महीने में इस पोर्शन को बदल देता है। इसलिए हम एग्जांपल के थ्रू मान रहे हैं इसको। राइट? हां। तो क्यों रखवाता है?
आरबीआई बोलता है यार देखो बैंक भी एक कंपनी की तरह है। बैंक बने क्यों है प्रॉफिट कमाने के लिए? भाई तुम्हारे पैसे
को आगे लोन पर देंगे प्रॉफिट कमाएंगे। लेकिन रिस्क तो बैंक के पास भी है। मान लो बैंक ने किसी को लोन दिया विजय माल्या,
नीरव मोदी या कोई भी बंदा वो बंदा अगर बैंक का पैसा वापस ना करे तो बैंक तो डूब सकता है या बहुत दिनों में वापस करे तो
बैंक तो परेशान हो सकता है। तो बैंक की परेशानी के टाइम पर आरबीआई यही पैसा बैंक को देगा क्योंकि आरबीआई के पास तो बहुत
सारा पैसा इकट्ठा हो गया ना अलग-अलग बैंक से। तो किसी भी बैंक की हेल्प कर देगा। ट्रस्ट मी आरबीआई ने बैंक ऑफ राजस्थान की,
Yes बैंक की और बहुत हेल्प बैंकों की हेल्प करी है। राइट? तो करता है। सभी बैंक अग्री करते हैं। इसलिए ये रूल है कि सभी
बैंकों को अपने टोटल डिपॉजिट का एक पोर्शन आरबीआई के पास रखना पड़ेगा। और इस पोर्शन को बोलते हैं मेरे राज्य, मेरे कातिया,
मेरे प्यारे कैश रिजर्व रेशो। आपसे कोई पूछ ले कैश रिजर्व रेशो
क्या होता है? पीआरआर तो आप झटाक से डेफिनेशन बताना भाई। कैश रिजर्व रेशियो रेफर्स टू द पार्ट ऑफ टोटल डिपॉजिट ऑफ
कमर्शियल बैंक। कमर्शियल बैंक के टोटल डिपॉजिट का वो हिस्सा है दैट दे हैव टू कीप विद द सेंट्रल बैंक ऑफ द कंट्री जो
उसको अपने देश के सेंट्रल बैंक के पास रखना पड़ता है। हां अच्छा जी आगे आते हैं। 100 करोड़ में से 5 करोड़ रख दिया सेंट्रल
बैंक के पास। इसके पास 95 तो अभी भी बचा हुआ है। सेंट्रल बैंक हर एक कमर्शियल बैंक को गाइड करता है, बताता है। कहता है भाई
जो तेरे पास 95 बचा है ना इसका थोड़ा सा पोर्शन तू अपने पास रख। लिक्विड एसेट्स की फॉर्म में लिक्विड एसेट्स मतलब कैश या
गोल्ड। अपने पास रख तू। क्यों रख? क्योंकि हो सकता है जिस कस्टमर ने तेरे पास डिपॉजिट कराया है वो कभी भी विथड्रॉ करने
आ जाए। तो तेरे पास कुछ तो कैश रहना चाहिए। बाकी पैसा तू लोन पे दे दे। तो कमर्शियल बैंक मान लो 15 करोड़ 100 करोड़
में से अपने पास रख रहे हैं लिक्विड एसेट्स की फॉर्म में अपने पास मतलब देमसेल्व्स या इटसेल्फ तो इस पैसे को मैं
बोलूंगा स्टैटरी लिक्विडिटी रेशो स्टैट्यूटरी का मतलब वैसे हिंदी में होता है संवैधानिक स्टैट्यूटरी बोलना जरा दो
बार स्टैट्यूटरी स्टैट्यूटरी स्टैट्यूटरी स्टैट्यूटरी लिक्विडिटी रेशोज़
ठीक है ना? और शॉर्ट फॉर्म में आप इसको बोल सकते हो एसएल आर। बाकी जो पैसा बच गया पांच और 15 हटा दो। 80 जो बच गया बैंक इस
पैसे को आगे लोन पे देगा और इंटरेस्ट अर्न करेगा। प्रॉफिट कमाएगा। बैंक का यही काम होता है। कुल मिला के टोटल 100 में से
बैंक ने पांच और 15 यानी 20 अलग रख दिए। 80 लोन पे दे दिए। तो जो ये 20 है ना टोटल मिला के 20 इसको बोलते हैं लीगल रिजर्व
रेशो। यानी आप टोटल कर दो सीआरआर और एसएलआर का। सीआरआर प्लस एसएलआर तो टोटल एक वैल्यू
आएगी जिसे बोलेंगे लीगल रिजर्व रेशो या एनसीईआरटी में इसका नाम लिखा है सिर्फ रिजर्व रेशो और एक नाम और लिखा है इसको
रिजर्व डिपॉजिट रेशो भी बोलते हैं। और अमेरिका में इसको बोलते हैं ट्रिपल आर रिक्वायर्ड
रिजर्व रेशो। कितने सारे नाम है भाई? सारे पढ़ा दिए मैंने। कहीं से पीछे नहीं हटने दूंगा। कोई भी किताब पढ़ रहे हो टेंशन मत
लो। राइट? हां। तो अ टोटल डिपॉजिट का एलआरआर वो पोर्शन है जो इन दोनों को जोड़ के आता है। मतलब अगर आपको कोई बोले बैंक
के अंदर ₹500 जमा है और एलआरआर है 100 तो बताओ बैंक कितना लोन पे देगा? हम बोलेंगे 500 जमा है। तो उसमें से भाई तो माइनस कर
दो क्योंकि यह 100 या तो आरबीआई को दिया होगा सीआरआर के तौर पे या एसएलआर होगा खुद अपने पास रख लिया होगा। बाकी 400 बच गया।
यह बैंक लोन पे दे सकता है। तो ऐसी मैथमेटिक्स चलती है बैंकिंग सिस्टम के अंदर। अच्छा जी। तो डेफिनेशन देख लो भाई।
एसएलआर की क्या दी हुई है? एसएलआर रेफर्स टू द पार्ट ऑफ टोटल डिपॉजिट ऑफ कमर्शियल बैंक। सेम लाइन आ रही है। कमर्शियल बैंक
के टोटल डिपॉजिट का वो पार्ट दैट दे हैव टू कीप विद देमसेल्व्स। जो बैंक अपने पास रखते हैं इन द फॉर्म ऑफ लिक्विड एसेट्स।
लिक्विड एसेट्स मतलब ऐसे एसेट्स, ऐसी प्रॉपर्टीज जिसको कैश में कन्वर्ट करना यानी जिनसे ट्रांजैक्शन करना आसान हो तो
वो खुद कैश होता है या गोल्ड होता है। राइट? और भी होते हैं लेकिन इतना काफी है। एलआरआर रेफर्स टू द सम टोटल ऑफ़ सीआरआर एंड
एसएलआर। इन दोनों का टोटल है। तो इट हैज़ टू कॉम्पोनेंट्स। एक बार एग्जाम में क्वेश्चन आया हुआ था एलआरआर के
कॉम्पोनेंट्स कौन-कौन से हैं? तो इसके दो कॉम्पोनेंट हो गए। एक सीआरआर और दूसरा एसएलआर। हो सकता है आपको सीआरआर एसएलआर
दोनों की वैल्यू दे और पूछे एलआरआर कितना है? तो दोनों को प्लस कर देना। इतना आपको आना चाहिए।
हां जी। आओ जी आओ। अब इस बीच में आप बैंकिंग सिस्टम पढ़ रहे हो तो एक अच्छा बैंकिंग सिस्टम पढ़ते हैं। बढ़िया लेवल की
नॉलेज आपको देता हूं। जैसे हम लोग बैंकों में अपना अकाउंट खुलवाते हैं। पैसा जमा कराएंगे तो बैंक हमें इंटरेस्ट देगा। अगर
हम बैंक से लोन ले लेंगे तो बैंक हमसे इंटरेस्ट लेगा। इंटरेस्ट का मतलब समझ गए ना आप? जो प्रिंसिपल अमाउंट के ऊपर ब्याज
दिया जाता है उसको इंटरेस्ट बोलते हैं। लेकिन क्या कभी ऐसा नहीं हो सकता कि कमर्शियल बैंक को पैसों की जरूरत हो तो
इसको लोन कौन देगा? इसके पास एक बड़ा सोर्स होता है आरबीआई। कमर्शियल बैंक आरबीआई से लोन मांग सकता है। तो आरबीआई
कमर्शियल बैंक को इंटरेस्ट मांगेगा। बोलेगा हां भाई मैं तेरे को लोन दे रहा हूं। तू मेरे को इंटरेस्ट दे। लेकिन
आरबीआई पूछेगा। बता भाई तू मेरा लोन का पैसा कितने दिनों में वापस कर देगा? तो कमर्शियल बैंक बताता है कि मेरे को लोन
तेरे से शॉर्ट टर्म के लिए चाहिए या लॉन्ग टर्म के लिए चाहिए। तो आरबीआई उसी हिसाब से इससे इंटरेस्ट चार्ज करता है। आरबीआई
कहता है अगर मैं तेरे को लोन दे दूंगा शॉर्ट टर्म के लिए शॉर्ट टर्म लोन तो तू मेरे को इंटरेस्ट पे
करियो और बच्चे जब कोर्स में पढ़ेंगे तो देखेंगे इस इंटरेस्ट का नाम होता है रेपो रेट।
Google करोगे तो इसका एक नाम और मिलेगा। इसको रिपर्चेस रेट भी बोलते हैं। ऐसे ही दूसरा नाम है तुम्हारे काम आएगा। अच्छा
रेपो रेट क्या होती है? रेपो रेट वो इंटरेस्ट रेट होता है जो कमर्शियल बैंक पे करता है आरबीआई को क्योंकि कमर्शियल बैंक
ने आरबीआई से शॉर्ट टर्म लोन लिया है। वैसे तो शॉर्ट टर्म की डेफिनेशन होती है एक साल से कम का टाइम लेकिन इस केस में
बहुत स्पेशल केस में लगभग 7 दिन के लिए ये लोन लिया जाता है। 7 दिन में ये आरबीआई बोल देता है वापस दे दे बेटा। वापस दे दे
वापस दे दे। कातिया दरिंदे वापस दे मेरा लोन। ऐसा बोलता है आरबीआई कमर्शियल बैंक को। समझे मेरी बात को? हां। तो भाई बंदे
के मन में क्वेश्चन आएगा अच्छा अगर आरबीआई लॉन्ग टर्म के लिए लोन देता तो क्या अलग इंटरेस्ट चार्ज करता? यह क्वेश्चन मैं
तुमसे पूछता हूं। तुम अपने दोस्त को 1 दिन के लिए उधार दो या 1 साल के लिए? सेम इंटरेस्ट चार्ज करोगे क्या? वैसे तो दोस्त
से कोई इंटरेस्ट चार्ज नहीं करता। लेकिन तुम फिर भी सोच के देखो। किसी को पैसा दे रहे हो। 1 दिन के लिए दूंगा तो कुछ और
इंटरेस्ट चार्ज करूंगा भाई। कल ही मिल जाएगा पैसा। एक साल के लिए उसको उधार दिया है तो कुछ और रेट ऑफ इंटरेस्ट चार्ज
करूंगा। तो दोनों इंटरेस्ट रेट अलग होते हैं। अगर आरबीआई ने लॉन्ग टर्म लोन दिया है
कमर्शियल बैंक को तो कमर्शियल बैंक जो इंटरेस्ट पे करेगा इस रेट को बोलते हैं बैंक रेट। अखबारों में बहुत आता है भाई
बैंक रेट। बैंक रेट को आज के टाइम में डिस्काउंट रेट भी बोल देते हैं। यह दूसरे नाम से कुछ नहीं मिलता। बस आप इतना जानो।
तो एक तरीके से चाहे रेपो रेट हो, चाहे बैंक रेट हो। दोनों के दोनों इंटरेस्ट रेट हो गए हैं। ऐसे इंटरेस्ट रेट जो कमर्शियल
बैंक आरबीआई को पे करता है। शॉर्ट टर्म लोन पे रेपो रेट देगा। लॉन्ग टर्म लोन पे बैंक रेट देगा। आज के टाइम में आरबीआई ने
बैंकों को लॉन्ग टर्म लोन देना छोड़ दिया है। तो बैंक रेट का कांसेप्ट रियल लाइफ से खत्म हो चुका है। आरबीआई बैंक्स को सिर्फ
शॉर्ट टर्म लोन देता है आज के टाइम में। चलो तुम तो डेफिनेशन पढ़ो भाई। डेफिनेशन पढ़ो। सेंट्रल बैंक से रिलेटेड फंक्शनंस
पढ़ रहे हैं। काम पढ़ रहे हैं भाई। तो रेपो रेट आया है। रेपो रेट रेफर्स टू द रेट एट वि सेंट्रल बैंक प्रोवाइड शॉर्ट
टर्म लोनस टू कमर्शियल बैंक। यह वो रेट है जिस पर शॉर्ट टर्म लोन देता है आरबीआई कमर्शियल बैंक को और इसका नाम है दूसरा
रिपर्चेस रेट। सेम यही डेफिनेशन बैंक रेट की होगी। बस शॉर्ट टर्म की जगह लॉन्ग टर्म लग जाएगा। और बैंक रेट का दूसरा नाम है
डिस्काउंट रेट। मुझे पता है तुम्हारे दिल के अंदर एक क्वेश्चन आ रहा है कि सर ऐसा नहीं हो सकता कि कोई कमर्शियल बैंक के पास
फालतू का पैसा पड़ा है। इससे कोई लोन नहीं ले रहा। एक्स्ट्रा पैसे बचे हुए हैं। तो यह अपने पैसों को आरबीआई के पास डिपॉजिट
नहीं कर सकता। भाई कर सकता है। अगर कमर्शियल बैंक के पास पैसा बहुत है। नहीं दिया इसने लोन तो आरबीआई के पास डिपॉजिट
कर दे। यहां पर आरबीआई इसको इंटरेस्ट पे करेगा। और मेरे दोस्त इस वाले इंटरेस्ट को हम
बोलेंगे रिवर्स रेपो रेट उल्टी हो गई। रिवर्स सिस्टम हो गया। इस बार इंटरेस्ट पे कर रहा
है आरबीआई क्योंकि पैसा दिया है कमर्शियल बैंक ने। तो रिवर्स रेपो रेट रेफर्स टू द रेट यानी इंटरेस्ट रेट एट व्हिच सेंट्रल
बैंक एक्सेप्ट द डिपॉजिट ऑफ कमर्शियल बैंक। ऐसा इंटरेस्ट रेट जिस पे सेंट्रल बैंक एक्सेप्ट करता है कमर्शियल बैंक के
डिपॉजिट। राइट? तो मैंने बहुत आसान भाषा में आसान लैंग्वेज में आपको डेफिनेशन करवाई है। आप इसी लैंग्वेज को पकड़ के
चलना आपका भला होगा, बढ़िया काम होगा। एक बार दोस्तों मैं आपको ढंग से रिवाइज कराता हूं। देखो जरा ध्यान से कांसेप्ट क्या है?
देखो भाई मैंने बताया सबसे पहले आपको यह वाला कांसेप्ट कि एक कमर्शियल बैंक के पास टोटल
डिपॉजिट वाला कांसेप्ट। राइट? अब आप ऊपर ऊपर से देखो। एक बैंक के पास
₹100 करोड़ है। वो उसका एक पोर्शन आरबीआई को देता है। अगर मान लो आरबीआई बोले कि भाई मेरे को पांच नहीं 10 चाहिए।
तो अब बैंक लोन पर कम पैसा दे पाएगा और जितना पैसा लोन पर कम देगा उतना पब्लिक के पास पैसों का फ्लो यानी मनी की सप्लाई कम
हो जाती है। मनी सप्लाई होता क्या है? थोड़ी देर में बताऊंगा। बस आप इतना जानो कि सीआरआर अगर आरबीआई बढ़ा देता है 5 से
10 कर देगा तो पब्लिक के पास लोन पे पैसा कम जाएगा और मनी सप्लाई कम हो जाएगी। ऐसा ही एसएलआर के साथ आरबीआई बोले भाई अपने
पास तू 15 मत रख। आरबीआई डिसाइड करता है कितने रखना है। तू 20 रख। तो कमर्शियल बैंक बोलेगा ज्यादा पैसा लाऊंगा कहां से?
लोन से ही निकालूंगा। यह पैसा लोन पर कम जाएगा। तो एसएलआर के बढ़ने से भी मनी सप्लाई कम हो जाती है। तो पेपर में
क्वेश्चन आता है भाई सीआरआर के बढ़ने से मनी सप्लाई पे क्या फर्क पड़ेगा? आप बोलोगे कम हो जाएगी। एसएलआर के बढ़ने से
मनी सप्लाई पे क्या फर्क पड़ेगा? आप बोलोगे कम हो जाएगी। और एलआरआर तो इन सबका टोटल है। एलआरआर के बढ़ने से मनी सप्लाई
पे क्या फर्क पड़ोगे? आप बोलोगे कम हो जाएगी। कुछ भी इंक्रीस हो सीआरआर, एसएलआर या एलआरआर मनी सप्लाई कम हो जाएगी। और
उसका उल्टा भी पॉसिबल है। मनी सप्लाई का मतलब लोगों के पास जो पैसा है और मनी सप्लाई बोलते हैं तब बढ़ जाएगी जब भाई
बैंक ज्यादा लोन देगा। बैंक ज्यादा लोन कब देगा? जब यह कम कर दे आरबीआई तो पैसा यहां चला जाएगा। जब आरबीआई सीआरआर कम कर दे तो
बचा हुआ पैसा यहां चला जाएगा। बैंक लोन ऑफर करेगा तो लोग लोन लेते हैं। आप नहीं लोगे तो छोड़ दो। कोई बात नहीं।
बहुत बंदे बैठे हैं लोन लेने के लिए। बिज़नेस स्टार्ट करना चाहते हैं, घर बनाना चाहते हैं, कार खरीदना चाहते हैं, iPhone
खरीदना चाहते हैं विदाउट सेलिंग किडनी लोन लेकर खरीद लेते हैं। राइट? हम तो ठीक है जी। ये बातें और ये रेपो रेट, रिवर्स रेपो
रेट ये भी मनी सप्लाई को अफेक्ट करती हैं। लेकिन मैं इसको बाद में पढ़ाऊंगा आपको। लेकिन पहले मैं आपको पढ़ाना चाहता हूं
एग्जैक्टली मनी सप्लाई होती क्या है? तो पहले मुझे तुम बताओ। अभी कमेंट सेक्शन खाली है। मुझे पता है तुम रिकॉर्डेड
वीडियो देख रहे हो। लेकिन दोस्तों बात तो मैं बिल्कुल रियल टच वाली करूंगा। आपकी जेब में पैसा कितना है? अभी बताओ कमेंट
करके किसी के पास जीरो होगा पहले ही बता देता हूं। किसी के पास 500 100 300 200 15 18
16 हां जितना पैसा अभी तुम्हारी पॉकेट में है ना वो पैसा तुम्हारी मनी सप्लाई है। मनी सप्लाई का मतलब वो क्वांटिटी वो स्टॉक
ऑफ मनी जो हमारे पास होती है किसी भी एक पॉइंट ऑफ टाइम पे। यानी अभी हो सकता है कि तुम्हारे पास ₹100 हो। तो अभी इस पॉइंट ऑफ
टाइम की आपकी मनी सप्लाई ₹100 है। हो सकता है कल आपके पास ₹100 करोड़ हो। तो कल की आपकी मनी सप्लाई 100 करोड़ हो सकती है। तो
हर टाइम पर मनी सप्लाई बदलती रहती है। लेकिन हमारे तुम्हारे पर्सनल रिलेशन नहीं पढ़ रहे हैं यहां पर। हम पढ़ रहे हैं पूरी
कंट्री के बारे में। तो एक पॉइंट ऑफ टाइम पर एक देश के पास जितनी भी स्टॉक ऑफ मनी होती है, जितनी भी क्वांटिटी ऑफ मनी होती
है, जितनी भी वॉल्यूम ऑफ मनी होती है, उसको बोलते हैं वो देश की मनी सप्लाई है। तो मनी सप्लाई का मतलब एक देश के पास टोटल
स्टॉक ऑफ मनी एट अ पर्टिकुलर पॉइंट ऑफ़ टाइम या फिर ऑन अ स्पेसिफिक डे। राइट? उसको बोलते हैं राज्य मनी सप्लाई। बहुत ही
आसान कांसेप्ट मैंने आपको बताया। मनी सप्लाई की डेफिनेशन। तो क्या पढ़ोगे? मनी सप्लाई रेफर्स टू द स्टॉक ऑफ मनी। ध्यान
रखना मनी सप्लाई राज्य मेरे एक स्टॉक कांसेप्ट है। स्टॉक है। टॉक ऑफ मनी हेल्ड विद अ कंट्री एट अ पर्टिकुलर पॉइंट ऑफ़
टाइम या ऑन अ स्पेसिफिक डे। मनी सप्लाई को हमारे देश में कैलकुलेट किया जाता है आरबीआई के द्वारा। चार तरीके हैं मनी
सप्लाई को कैलकुलेट करने के। मेजर्स ऑफ़ मनी सप्लाई। M1, M2, M3, M4 इन चारों के नाम है M1, M2, M3, M4 हां चार तरीके हैं
मनी सप्लाई को कैलकुलेट करने के। तो सबसे पहले M1 पढ़ते हैं। M1 मतलब पहला तरीका मनी सप्लाई को कैलकुलेट करने का। ये कैसा है
भाई? तो जरा ढंग से देखो मेरे दोस्त। बात कर रहे हैं देश के पास टोटल पैसा कितना है? तो आरबीआई कैलकुलेट करता है
सबसे पहले कि पब्लिक के पास कैश कितना पड़ा है? कैसे कैलकुलेट करेगा? वो उसकी अपनी सरदर्दी है। समझ रहे हो? आगे की
क्लासेस में आएगा। बड़ी-बड़ी क्लासेस में। सबसे पहले आरबीआई देखता है करेंसी कितनी है पब्लिक के पास?
करेंसी हेल्ड बाय पब्लिक या करेंसी इन सर्कुलेशन विद
पब्लिक इसको आप बोल सकते हो नोट या कॉइन सभी की बात हो रही है आरबीआई चेक करता है पब्लिक के पास कितना पैसा है फिर
आरबीआई चेक करता है बैंक के पास वो पैसा कितना है जो पब्लिक निकाल सकती है डिमांड डिपॉजिट राइट तो फिर नेट डिमांड डिप
डिपॉजिट विद कमर्शियल बैंक्स। आखिर यही तो है। पब्लिक
का पैसा ही तो है। पब्लिक ने कैश कितना रखा? पब्लिक ने बैंक में कितना जमा कराया? राइट? प्लस
भाई आरबीआई है ना इसके पास फॉरेन बैंक का पैसा भी पड़ा होता है। तो आरबीआई उस पैसे को हमारे देश के लिए यूज़ कर देता है। तो
वो भी हमारे देश की मनी सप्लाई का पार्ट हो जाता है। राइट? बैंक्स वगैरह को दे देता है। तो देखते हैं अदर डिपॉजिट विद
आरबीआई कितना है? अदर डिपॉजिट विद आरबीआई। तो शॉर्ट में हम इन तीनों को
देखते हैं। करेंसी इन सर्कुलेशन शॉर्ट में इसको सीसी बोलते हैं। डिमांड डिपॉजिट विद कमर्शियल बैंक इसको डीडी बोलते हैं। और
अदर डिपॉजिट विद आरबीआई इसको ओडी बोलते हैं। इन तीनों को टोटल कर दो। आपको पता लग जाएगा देश के अंदर पैसा कितना है। तो देश
की आप मनी सप्लाई निकाल सकते हो। तो आपको पता होना चाहिए पेपर में क्वेश्चन आएगा मनी सप्लाई के कितने कॉमोनेंट्स हैं? आप
बोलोगे जी तीन कॉमोनेंट हैं। करेंसी एंड सर्कुलेशन विद पब्लिक पूरा नाम, डिमांड डिपॉजिट विद कमर्शियल बैंक पूरा नाम, अदर
डिपॉजिट विद आरबीआई। यह अदर डिपॉजिट विद आरबीआई क्या होते हैं? यह भाई फॉरेन बैंक का पैसा
फॉरेन बैंक का पैसा आरबीआई के पास होता है। कुछ फॉरेन गवर्नमेंट है भूटान, नेपाल, श्रीलंका। यह भी आरबीआई के पास कुछ पैसा
रखवा देती हैं। तो वो सारा पैसा होता है। आरबीआई कहता है तुम्हारा पैसा हमारे पास सेफ है। टेंशन मत लो। हम अच्छा बच्चों के
दिल में क्वेश्चन आ रहा होगा बीच में मेरे को पता है जो बैंक सीआरआर देता है आरबीआई को तो आरबीआई उस सीआरआर के ऊपर इंटरेस्ट
प्रोवाइड नहीं करता। वो मैंडेटरी रूल है। राइट? हां। चलो जी। ठीक है। ऐसे-से पैसे आते हैं। अब देखो अंदर की बात बताता हूं।
यह तो नया जमाना है डिस्को का। पहला मेथड है मनी सप्लाई को कैलकुलेट करने का। पहले के टाइम में हमारे देश में मनी सप्लाई
कैलकुलेट होती थी। ऐसे करेंसी इन सर्कुलेशन प्लस डिमांड डिपॉजिट। बस ऐसे ही क्योंकि पहले के टाइम पर अदर डिपॉजिट नहीं
होता था। हमारे देश में विदेशी गवर्नमेंट या विदेशी बैंक पैसा जमा नहीं कराते थे। आज के टाइम में कराते हैं तो आज के टाइम
में हम इसमें अदर डिपॉजिट भी ऐड कर देते हैं। इसलिए काफी सारी किताबों में तुम देखोगे इतना लिखा होता है।
इतना लिखा होता है। लेकिन ये अपडेटेड नहीं है। आप इतना लिखना इतना लिखना। यह मनी सप्लाई को कैलकुलेट करने का सही तरीका है।
अलग-अलग किताब में अलग-अलग है। लेकिन यही राइट तरीका है। पहला तरीका यही आपके लिए इंपॉर्टेंट है। यही एग्जाम का मेन
इंपॉर्टेंट कांसेप्ट है। ठीक है? और दोस्तों ये देश की मनी सप्लाई है। जी हां, दोबारा रिपीट कर देता हूं। M1 तरीका है।
इसमें करेंसी नोट या कॉइन जिसे बोलते हैं करेंसी इन सर्कुलेशन विथ पीपल ऑफ़ द पब्लिक आते हैं। दूसरे पे डिमांड डिपॉज़िट विथ
बैंकिंग सिस्टम या कमर्शियल बैंक आते हैं जो कि करंट अकाउंट और सेविंग अकाउंट का पैसा होता है। कासा फिर अदर डिपॉजिट विद
आरबीआई आता है। ये तीनों को जोड़कर M1 आ जाता है। यही है मनी सप्लाई का सही पोर्शन। लेकिन हम और भी तरीके से मनी
सप्लाई कैलकुलेट करते हैं। कहते हैं भाई अरे इसके अलावा तो और भी पैसा होता है ना। फिक्स्ड डिपॉजिट अकाउंट कहां गया? रिकरिंग
डिपॉजिट अकाउंट कहां गया? लोग पोस्ट ऑफिस में भी अकाउंट खुलवाते हैं। आपको पता है पोस्ट ऑफिस में सेविंग अकाउंट भी खुलता है
और फिक्स्ड डिपॉजिट अकाउंट भी खुलता है। तो पोस्ट ऑफिस में डिमांड डिपॉजिट भी पड़ा होता है और टाइम डिपॉजिट भी पड़ा होता है।
तो हम एक-एक करके अलग-अलग तरीकों से अलग-अलग लेवल पे मनी सप्लाई कैलकुलेट करते हैं। दूसरा तरीका मनी सप्लाई को कैलकुलेट
करने का बाद में आया। उसने बोला जो भी M1 में इंक्लूड है उसमें पोस्ट ऑफिस के अंदर जो भी सेविंग डिपॉजिट है सेविंग बैंक का
पैसा है सेविंग बैंक अकाउंट का वो भी ऐड कर दो। बहुत सारे पुराने लोग हैं तुम्हारी दादी नानी या तुमने देखा होगा बड़े
बुजुर्ग पहले पोस्ट ऑफिस में भी अकाउंट खुलवाते थे। आज के टाइम में ना के बराबर हो गया है। इसलिए एक बार इसको हटा के मनी
सप्लाई कैलकुलेट करते हैं। एक बार इसको जोड़ के मनी सप्लाई कैलकुलेट करते हैं। अलग-अलग तरीके से अलग-अलग पॉलिसी बनाई
जाती है। बस वो इंपैक्ट देख रहे होते हैं। एक और तरीका आया M3 M3 में बोलते हैं भाई इसको ले लो। अभी इसको हटाओ। पोस्ट ऑफिस को
हटाओ। आप देखो बैंकिंग सिस्टम के पास टाइम डिपॉजिट कितना पड़ा है? टाइम डिपॉजिट मतलब राफा।
राफा मतलब रिकरिंग अकाउंट प्लस फिक्स्ड डिपॉजिट अकाउंट। राफा का डिपॉजिट कितना पड़ा है? मतलब से पोस्ट ऑफिस गायब ही कर
दिया। हां गायब कर दिया। फिर आया लेटेस्ट तरीका M4 ये होता है M3 प्लस टोटल डिपॉजिट विद पोस्ट ऑफिस। पोस्ट ऑफिस के ये भी आ गए
सारे के सारे। राफा हटा दिया। ठीक है? हटा दिया। तुम सोच रहे हो हटा दिया। हटा नहीं दिया। वो इसमें एडेड है। क्यों? M3 लिखा
है ना? M3 में M1 भी आ गया। ये भी आ गया और ये भी आ गया। कुल मिला के सब कुछ ऐड कर दिया तो M4 आ गया और एक्सक्लूड कर दिए
नेशनल सेविंग सर्टिफिकेट। नेशनल सेविंग सर्टिफिकेट एक ऐसे कागज हुआ करते थे बहुत पहले अगर तुम आरबीआई से उसको खरीद लो।
गवर्नमेंट बेचती थी बीच में आरबीआई ब्रोकर बनता था। अगर उसको खरीद लेंगे तो बस हमने मान लो ₹10,000 का एक नेशनल सेविंग
सर्टिफिकेट खरीद लिया तो खरीद के रख लिया। जब इसकी मैच्योरिटी का टाइम आएगा मतलब जब इसका खत्म करने का टाइम आएगा तो हमें
हमारे पैसे ब्याज के साथ वापस मिल जाएंगे। तो यह पैसा लोग खर्च नहीं करते। स्टॉक हो के रह जाता है। इसलिए इसकी काउंटिंग नहीं
होती। ठीक है? तो एक-एक अलग-अलग लेवल पे हमने सोचा ये तो भाई वो पैसा है जो अभी के अभी दुनिया खर्च कर सकती है। इसको बोलते
हैं मोस्ट लिक्विड। मोस्ट लिक्विड मनी सप्लाई या फिर सबसे छोटा
तरीका है। इसको नैरो मनी सप्लाई भी बोलते हैं। और यह जो M4 है यह लीस्ट लिक्विड है। यानी इसके अंदर जो जो पैसा आ रहा है वह
तुम सारा अभी के अभी नहीं खर्च कर सकते। देखो जी पोस्ट ऑफिस का पैसा भी आ गया। M3 आ रहा है तो ड्राफा भी आ गया रिकरिंग
अकाउंट वाला और फिक्स्ड अकाउंट वाला। तो सारा पैसा तुम अभी के अभी नहीं खरीद सकते। तो ये लीस्ट लिक्विड मेथड है। आपसे कोई
पूछ लेगा भाई लीस्ट लिक्विड मेजर ऑफ़ मनी सप्लाई कौन सा है? मेजर हैं ये चार मेजर। तो M4 मोस्ट लिक्विड कौन सा है? M1 लेकिन
सीबीएसई बोर्ड वाले बच्चों के कोर्स में M2, M3, M4 नहीं होता। तो नहीं समझ आ रहा तो कोई बात नहीं। लेकिन मेरे दोस्त ये
सारे के सारे आपके सीयूईटी के कोर्स में होते हैं। मैं वीडियो ही इस पर्पस से बना रहा हूं कि आपका ऑल टाइम सॉल्यूशन मिल जाए
आपको। राइट? तो ये आपको करने ही करने हैं किसी भी हालत में। हां सीयूटी का सिलेबस थोड़ा सा ज्यादा है। इसलिए थोड़ा सा
ज्यादा भी करा दिया। कोई दिक्कत नहीं है। राइट? हां जी। हां जी। चलो जी दोस्तों सेंट्रल बैंक पे आते हैं। सेंट्रल बैंक के
आपको काम धंधे सिखाता हूं। सबसे ज्यादाेंट क्वेश्चन इस चैप्टर के अंदर ये बनता है। सेंट्रल बैंक के फंक्शन कौन-कौन से हैं?
तो सेंट्रल बैंक के आपको कुल मिला के सात फंक्शन देखने होते हैं और छह उसमें से ठीक-ठाक इंपॉर्टेंट होते हैं। किसी किसी
बुक में चार फंक्शन लिखे हैं। किसी बुक में तीन फंक्शन लिखे हैं। अबे रहने दे जो करा रहा हूं वो सारे करने हैं और बोर्ड
में भी है वो। राइट? तो पहले तो जान लो भाई ये सेंट्रल बैंक होता क्या है? सेंट्रल बैंक सारे बैंकों का पापा है। देश
में जितने भी मनी एंड बैंकिंग सिस्टम के इंस्टट्यूट हैं यानी जितने भी बैंक हैं सभी बैंकों को कंट्रोल करने की सबसे बड़ी
मॉनिटरी अथॉरिटी बनी हुई है। सबसे बड़ा मॉनिटरी इंस्टीट्यूट बना हुआ है आरबीआई। सबसे बड़े को बोलते हैं एपेक्स। डेफिनेशन
पढ़ते हैं। सेंट्रल बैंक क्या होता है? तो द सेंट्रल बैंक इज द एपेक्स। एपेक्स मतलब सबसे बड़ा 41 और 41 पापा। ठीक है? एपेक्स
मॉनिटरी इंस्टीट्यूशन सबसे बड़ा पैसों का इंस्टट्यूट है व्हिच कंट्रोल द एंटायर मनी एंड बैंकिंग सिस्टम ऑफ द कंट्री जो पूरे
देश के फाइनेंसियल सिस्टम को कंट्रोल कर रहा होता है। भाई साहब इसके छह फंक्शन आपको पढ़ने हैं। आप देखोगे पहला फंक्शन है
करेंसी अथॉरिटी। इसके पास पैसा छापने का अधिकार है। डिटेल में पढ़ाता हूं। यह है बैंकर्स बैंक। क्या लिखा यहां? बैंकर्स।
यहां लिखना था मुझे बैंक। यह बैंकों का भी बैंक है। यानी जो हमारे बैंक है ये उनका बैंक है। उनका सुपरवाइजर भी है। डिटेल में
बताऊंगा अभी। यह गवर्नमेंट का बैंक है। यानी गवर्नमेंट के अकाउंट आरबीआई के पास होते हैं। गवर्नमेंट का एजेंट भी बना हुआ
है। जैसे रॉ के एजेंट होते हैं ना। एजेंट विनोद होते हैं। गवर्नमेंट का एजेंट है। बताऊंगा कैसे? गवर्नमेंट को एडवाइस भी
करता है। लेंडर ऑफ द लास्ट रिसोर्ट है। लास्ट रिसोर्ट का आपको मतलब ही नहीं पता होगा। अभी बताऊंगा। इसकी कस्टडी में देश
का सारा गोल्ड रखा होता है, डॉलर रखे होते हैं। यह मनी सप्लाई को हमारे देश में कंट्रोल करता है। और एक क्लियरिंग हाउस
फंक्शन। सात फंक्शन आपको देखने हैं। चलो जी देखते हैं। आओ जी कातिया। पहला फंक्शन कंटेंट के साथ आया हूं दोस्तों।
करेंसी अथॉरिटी है। इस फंक्शन को बैंक ऑफ इशू भी बोलते हैं। या इस फंक्शन को मोनोपोली ऑफ़ प्रिंटिंग करेंसी नोट भी
बोलते हैं। आरबीआई के पास मोनोपोली है। मतलब सिंगल राइट है कि वो देश के अंदर करेंसी नोट को प्रिंट कर सकता है। कौन सा
करेंसी नोट? 2 5 10 20 50 100 200 500 ₹1 का नोट और जितने भी कॉइन होते हैं चाहे वो 10 का 20 का पांच का दो का एक का कॉइन हो
आरबीआई प्रिंट नहीं करता अच्छा हां और भाई आरबीआई कितना पैसा छाप सकता है आखिर ये क्वेश्चन भी तो है तो आरबीआई उतना पैसा
छाप सकता है जितना देश के पास गोल्ड का रिजर्व पड़ा हो प्लस फॉरेन करेंसी पड़ी हो मान लो हमारे पास ₹1 लाख का गोल्ड है और
₹1 लाख की फॉरेन करेंसी है तो हम ₹2 लाख की मनी प्रिंट कर सकते हैं ठीक है ना तो पहला फंक्शन एक्सप्लेन कर रहा हूं भाई
करेंसी अथॉरिटी किसी किसी किताब में कोई नाम लिखा है, किसी किताब में कोई नाम लिखा है। पेपर में तुमसे किसी भी नाम से पूछा
जा सकता है। एक फंक्शन तीन नंबर में क्या लिखा है? द सेंट्रल बैंक हैज़ लीगल राइट। इसके पास लीगल राइट है टू इशू करेंसी
नोट्स इन द कंट्री। इट इज़ गिवन सोल अथॉरिटी या सोल मोनोपोली ऑफ़ इशूइंग करेंसी इन द कंट्री। द सेंट्रल बैंक इशू द वैल्यू
ऑफ़ करेंसी व्हिच इज़ इक्वल टू इट्स रिजर्व ऑफ़ गोल्ड एंड फॉरेन सिक्योरिटीज़। इसके पास फॉरेन सिक्योरिटीज़, फॉरेन करेंसी जो भी
रखी है और जितना गोल्ड रखा है उसके बराबर यह पैसा छाप सकता है। और इस पैसा छापने के सिस्टम को बोलते हैं एमआरएस मिनिमम रिजर्व
सिस्टम। यह वर्ड तुम्हारे कोर्स में नहीं है। मैंने जनरल नॉलेज के लिए बता दिया। इन इंडिया आरबीआई यानी सेंट्रल बैंक इशू ऑल
करेंसी नोट्स फ्रॉम टू एंड अबव। ₹2 और उससे सारे पैसे आरबीआई छापता है। जो भी पैसा आरबीआई छापता है, उस करेंसी नोट के
ऊपर गवर्नर के साइन होते हैं। गवर्नर आरबीआई के हेड को बोलते हैं। राइट? जो पैसा आरबीआई नहीं छापता उस पर गवर्नर के
साइन नहीं होते। तो दिस फंक्शन ऑफ द सेंट्रल बैंक इज आल्सो नोन एज करेंसी अथॉरिटी या बैंक ऑफ इशू। अच्छा भाई तो
तुम्हारे दिल का क्वेश्चन बताओ जी। ऑल कॉइंस एंड रुपी वन नोट।
यह कौन छापता है? यह छापती है भाई मिनिस्ट्री ऑफ फाइनेंस। ऐसे हमारे देश में बहुत सारे मंत्रालय
होते हैं। जैसे कि होम मिनिस्ट्री, फॉरेन अफेयर मिनिस्ट्री, रेलवे मिनिस्ट्री, डिफेंस मिनिस्ट्री ऐसे एक फाइनेंस की
मिनिस्ट्री होती है पैसों की। सेंट्रल गवर्नमेंट देश की केंद्रीय सरकार के अंदर सेंट्रल गवर्नमेंट को यूनियन गवर्नमेंट भी
बोलते हैं। तो, यह छापती है भाई। ₹1 के नोट पे गवर्नर के साइन नहीं होते। फाइनेंशियल सेक्रेटरी ऑफ़ इंडिया के साइन
होते हैं। जो सेक्रेटरी होता है, उसके साइन होते हैं। अच्छा जी। हां, जी। पहला फंक्शन हो गया। दूसरा फंक्शन है मेरे
दोस्त बैंकर्स बैंक। पहले तो तुम बैंक का मतलब समझो। आपसे पूछे कि बैंक होता क्या है? तो आप बताना बैंक एक ऐसा पैसों का
फाइनेंसियल इंस्टट्यूट होता है जिसके अंदर हम पैसा जमा भी कराते हैं और हम पैसा लोन पे भी देते हैं। अच्छा जी। और सुपरवाइजर
का मतलब क्या होता है? सुपरवाइजर वो बंदा होता है जो टाइम टू टाइम गाइड करता रहे। मम्मी पापा सुपरवाइजर हैं। मैं भी
सुपरवाइजर हूं। गाइड करने के साथ-साथ चेक भी करते रहें कि सही हो रहा है, गलत हो रहा है। तो आरबीआई यहां कमर्शियल बैंक का
बैंक है क्योंकि यहां पर आरबीआई कमर्शियल बैंक के एक्सेप्ट करता है डिपॉजिट और कमर्शियल बैंक को प्रोवाइड करता है लोन।
बैंक इसको जस्टिफाई कर दिया पॉइंट वन में। दूसरे पॉइंट में जस्टिफाई करो। सुपरवाइजर कैसे है? बैंक सुपरवाइजर है। आरबीआई सभी
बैंक्स का क्योंकि आरबीआई गाइड करता है उनको कि फ्यूचर में क्या-क्या थ्रेट आ सकते हैं? क्या-क्या प्रॉब्लम आ सकती है?
अवेयरनेस देता है। राइट? तो गाइड कर रहा है। तो भाई दो पॉइंट है तो दोनों को अलग-अलग एक्सप्लेन करो तब आपको पेपर में
नंबर मिलेंगे। अच्छा जी तीसरा फंक्शन सरकारी है। जब पेपर में आएगा ना आरबीआई गवर्नमेंट का बैंक है तो पहले पॉइंट में
समझाना बैंक कैसे है? बैंक ऐसे है भाई। गवर्नमेंट अपना पैसा भी जमा कराती है इसके अंदर और गवर्नमेंट को आरबीआई लोन भी देता
है। फिर एजेंट कैसे है भाई? एजेंट कौन होता है? जो तुम्हारे इशारों पर चले। पति होता है एजेंट। पत्नी के इशारों पर चलता
है। पत्नी बोलती है जा समोसे लिया। पति को लाने पड़ते हैं। जहां भंडारा लिया, आलू पूरी लिया, पति को लाने पड़ते हैं। है ना?
और फिर भी गाली सुन लेता है। मतलब बेचारा है कोई नहीं। हां। तो अगर गवर्नमेंट बोलेगी आरबीआई को जा मैंने किसी
को पैसे देने हैं तू पैसे देके आ। तो आरबीआई विल मेक पेमेंट ऑन द बिहाफ ऑफ गवर्नमेंट। आरबीआई गवर्नमेंट की कंपनी के
अकाउंट्स को मैनेज भी करेगा। जैसे किसी कंपनी के अकाउंट को मैनेज करता है सीए। तो आरबीआई मैनेज करता है सरकारी कंपनी के
अकाउंट को। सरकारी कंपनी जैसे कि स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड जैसे कि भारत पेट्रोलियम, हिंदुस्तान पेट्रोलियम,
इंडियन ऑयल, ओएनgसी, एनटीपीसी, एनएपीसी, गैस अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड बहुत सारी कंपनीज़ हैं। राइट? हम तो मैनेज करेगा।
दूसरा फंक्शन और तीसरा एडवाइस करेगा आरबीआई गवर्नमेंट को बताता रहता है कि देश में क्या चल रहा है। पैसों को लेकर,
मार्केट की कंडीशन क्या है? ताकि सरकार जो देश के लिए पॉलिसी बनाए वो थोड़ा सोच समझ कर बनाए। तो तीन पॉइंट है। तीनों को
अलग-अलग एक्सप्लेन करना होगा। तीन नंबर का ये क्वेश्चन आएगा। तो तीन पॉइंट बनाने हैं। अब मेरे को एक बच्चे ने पूछा पिछले
साल सर बताओ मेरे पेपर में क्वेश्चन आया गवर्नमेंट बैंक एक्सप्लेन करना है। आरबीआई इज द गवर्नमेंट्स बैंक। तो क्या मैं उसमें
तीनों पॉइंट लिखूं? हां भाई तीनों पॉइंट लिखो। ठीक है? तो तीन पॉइंट कैसे बनते हैं भाई? एक-एक करके बताता हूं। पहले बैंक की
बात करते हैं। आरबीआई गवर्नमेंट का बैंकर है क्योंकि गवर्नमेंट के डिपॉजिट भी एक्सेप्ट करता है और गवर्नमेंट को लोन भी
प्रोवाइड करता है। राइट? आरबीआई गवर्नमेंट का एजेंट है क्योंकि उसको कुछ एजेंट्री एजेंसी सर्विस प्रोवाइड करता है। ऑन द
बिहाफ ऑफ गवर्नमेंट आरबीआई आगे पेमेंट करता है और आरबीआई मैनेज करता है पब्लिक कंपनी के अकाउंट यानी गवर्नमेंट कंपनी के
अकाउंट गवर्नमेंट के डेप्ट। पब्लिक डे का मतलब होता है गवर्नमेंट डेप्ट। सरकार ने जो भी उधार लिया है उसको पब्लिक डे या
गवर्नमेंट डे बोलते हैं। नेशनल डेप्ट भी बोलते हैं। उस उधार को मैनेज करने का काम आरबीआई का है। राइट? हां। आरबीआई एडवाइजर
है। बिकॉज़ आरबीआई गिव टाइमली एडवाइस। इस टाइम के हिसाब से एडवाइस देता रहता है कि स्टेट ऑफ मार्केट सिचुएशन ऑफ मार्केट चल
क्या चल रही है? स्टेट ऑफ द इकॉनमी क्या चल रही है? इसके बारे में बताता रहता है। अब बताऊंगा चौथा फंक्शन
जिसका नाम है लेंडर ऑफ द लास्ट रिसोर्ट। लास्ट रिसोर्ट का मतलब होता है एंड वक्त पे काम आने वाली चीज। हमेशा बोलता है एक
बच्चा कि आखिरी टाइम पर तो मेरे पापा ही काम आएंगे। आखिरी टाइम पर तो मेरी मम्मी ही काम आएगी। आखिरी टाइम पर तो इकोनॉमिक्स
के मामले में तुम्हारा भाई, दोस्त, एजुकेटर ऑफ इकोनॉमिक्स ही काम आएगा। पेपर के टाइम पे काम आ जाएंगे। राइट? तो जो
आखिरी टाइम पर काम आता है उसको बोलते हैं वो लास्ट रिसोर्ट है। शाहरुख खान ने एक बार बोला था कि उसकी वाइफ यानी गौरी उसकी
लास्ट रिसोर्ट है। मतलब जब उसके काम पर कोई नहीं आएगा तो गौरी उसके काम पर आएगी। राइट? तो लास्ट रिसोर्ट का मतलब यह होता
है तो आरबीआई सभी कमर्शियल बैंक्स का लास्ट रिसोर्ट है। कमर्शियल बैंक के पास जब पैसा नहीं होगा कमर्शियल बैंक जब
प्रॉब्लम में होगा कैश के क्राइसिस में होगा उसके पास पैसा नहीं होगा मतलब प्रॉब्लम में होगा तो आरबीआई उसको उधार
देगा उधार ही देगा फिर फंड में पैसा नहीं बांटेगा आरबीआई ने ऐसा भी किया है तो उधार देगा तो कैसे कुछ गिरवी नहीं रखवाएगा
गिरवी भी रखवाएगा रुक जाओ क्या लिखा है आरबीआई एस द लेंडर ऑफ द लास्ट रिसोर्ट गिव्स लोन टू द कमर्शियल बैंक इन द टाइम्स
ऑफ लिक्विडिटी क्राइसिस लिक्विडिटी क्राइसिस को कैश क्राइसिस बोलते बोलते हैं बैंक के पास कैश की प्रॉब्लम है।
दिवालीविवाली के टाइम पे बहुत प्रॉब्लम होती है बैंक को। क्योंकि जब त्यौहार चल रहे होते हैं ना तो लोग है ना सामान खरीद
रहे होते हैं। त्यौहारों पे ही खरीदते हैं। बाइक, स्कूटी, टीवी तो बैंकों से पैसा निकाल देते हैं। बैंक के पास पैसा
होता नहीं तो आरबीआई हेल्प करता है। राइट? तो सेंट्रल बैंक गिव्स गिव्स को बोलते हैं एडवांस इस चैप्टर में। राइट? गिव्स लोोंस
टू बैंक्स अगेंस्ट अप्रूव्ड सिक्योरिटीज़। अप्रूव्ड सिक्योरिटीज का मतलब कुछ सिक्योरिटीज होती हैं। कुछ गिरवी रखने
वाले आइटम होते हैं। सरकारी कागजात होते हैं जो आरबीआई अपने पास रखेगा और बैंक को लोन दे देगा। अगर बैंक उस लोन को वापस
नहीं चुका पाया तो आरबीआई उसकी सिक्योरिटीज को ज्त कर लेगा। उस सिक्योरिटी की वैल्यू भी तो होती है।
राइट? हम ये फंक्शन है भाई। बड़ा इंपॉर्टेंट। अगला है आरबीआई इज द कस्टोडियन ऑफ नेशंस गोल्ड एंड फॉरेन
एक्सचेंज रिजर्व। जो भी देश का गोल्ड है, तुम्हारे घर के गहनों की बात नहीं हो रही। देश के गोल्ड की बात हो रही है जो सरकारी
गोल्ड है सारा सरकार का गोल्ड आरबीआई की कस्टडी में होता है। जो भी सरकार के फॉरेन डॉल फॉरेन करेंसी होती है उसको फॉरेन
एक्सचेंज बोलते हैं। डॉलर, रूबल, सीएन, युवान का स्टॉक होता है। वो आरबीआई के पास रखा होता है। तो बड़ी सिंपल सी बात है। द
फॉरेन करेंसी रिजर्व एंड गोल्ड ऑफ अ कंट्री आर केप्ट इन द कस्टडी ऑफ़ इट्स सेंट्रल बैंक। सेंट्रल बैंक की कस्टडी में
रखा होता है। अगर आपको कहीं पर डॉलर पे करने हैं तो आप अपने बैंक को बोलना। बैंक आरबीआई को बोलेगा और पेमेंट हो जाएगी। तो
इफ एनीबडी वांट्स टू मेक पेमेंट इन फॉरेन करेंसी तो ही हैज़ टू अप्लाई टू द सेंट्रल बैंक। सेंट्रल बैंक को कैसे अप्लाई करेगा?
आप अपने बैंक को बोल देना बैंक ही अप्लाई कर देगा। ठीक है? ओके रिपोर्ट। कितने फंक्शन हो गए भाई? पांच हो गए। छठे नंबर
का फंक्शन है कंट्रोलर ऑफ मनी सप्लाई। इस फंक्शन को हम कंट्रोलर ऑफ क्रेडिट भी बोलते हैं। क्रेडिट का मतलब वैसे लोन होता
है। आरबीआई हमारे देश में लोन को कंट्रोल कर रहा होता है। मैंने आपको पीछे पढ़ाया है। आप सीआरआर, एसएलआर, एलआरआर इनमें से
किसी को भी बढ़ा दो तो बैंक के पास लोन देने के लिए पैसा कम बचता है। जब पब्लिक के पास पैसा कम होगा, लोन कम लेगी तो
पब्लिक के पास मनी सप्लाई कम हो जाएगी। तो आरबीआई मनी सप्लाई को कम ज्यादा करता रहता है। और भी तरीके होते हैं वो मैं बाद में
पढ़ाऊंगा। अभी बचा हुआ है ना क्लास थोड़ी देर में पढ़ाऊंगा लेकिन आरबीआई पैसों को मनी सप्लाई को इंक्रीज डिक्रीज कर सकता है
सीआरआर एसएलआर एलआरआर रेपो रेट रिवर्स रेपो रेट के थ्रू एक ओपन मार्केट ऑपरेशन भी होता है इसके जस्ट बाद पढ़ाने वाला हूं
तो लिखा है द सेंट्रल बैंक हैज़ द पावर टू कंट्रोल द क्रेडिट क्रिएशन क्रेडिट क्रिएशन का मतलब लोन की क्रिएशन लोन
क्रिएशन लोन क्रिएशन बाय द कमर्शियल बैंक एज इट डिसाइड द सीआरआर एंड कंट्रोल द मनी सप्लाई क्योंकि सेंट्रल बैंक ही डिसाइड
करता है सीआरआर कितनी होती है तो उस हिसाब आरबीआई बार-बार चेंज कर देता है। सीआरआर, एसएलआर, बैंक रेट एंड अदर इंस्ट्रूमेंट ऑफ़
मनी सप्लाई। बार-बार इन सबको चेंज करता है और मनी सप्लाई को आरबीआई हर तीन महीने में अपडेट करता है। तो द मेन ऑब्जेक्टिव ऑफ
मनी सप्लाई इज़ टू ब्रिंग द प्राइस स्टेबिलिटी इन द इकॉनमी। आरबीआई का मेन ऑब्जेक्टिव यही रहता है कि वो इकॉनमी के
अंदर प्राइस को स्टेबल रखें। अगर प्राइस बहुत ज्यादा बढ़ रहे हैं तो मनी सप्लाई की हेल्प से प्राइस को नीचे लाया जा सकता है।
और प्राइस अगर बहुत कम है तो मनी सप्लाई की हेल्प से उसको ऊपर लाया जा सकता है। कैसे होता है? यह बहुत बड़ा खेला है। यही
खेला आगे खेलना है। इसलिए मैं बचा के रख रहा हूं टॉपिक क्योंकि आपको अभी शॉर्ट ये पढ़ा दिया। अब मैं डिटेल में पढ़ाऊंगा कि
कौन सी चीज कैसे मनी सप्लाई को इंक्रीस करती है, डिक्रीज करती है और कब प्राइस वहां से अफेक्ट हो जाता है। लेकिन एक और
फंक्शन बचा हुआ है दोस्त। वो फंक्शन और कर लेते हैं। उसे बोलते हैं क्लियरिंग हाउस फंक्शन। जरा ढंग से सुनो। अब अगर आप समझो
इस बात को। बहुत सारे बैंक्स हैं। हम लोग बैंक से लेनदेन करते हैं। बात ठीक है। लेकिन यह सब बैंक आपस में अपने पैसों को
सेटल करने के लिए कहां जाएंगे? यह सब बैंक चक्कर नहीं काटते। आरबीआई ने एक ऑफिस बना रखा है। उस ऑफिस को बोलते हैं
क्लियरिंग हाउस। हां, ऑफिस का नाम है। तो आरबीआई का ऑफिस है। वो उसके अंदर सभी बैंक एक दूसरे के ट्रांजैक्शंस को सेटल करते
हैं। एक दूसरे के पेमेंट को चाहे वो चेक का पैसा हो, चाहे किसी और चीज का पैसा हो। तो क्लियरिंग हाउस फंक्शन लिखा है यहां
पर। द रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया फंक्शनंस एज अ क्लियरिंग हाउस। यह क्लियरिंग हाउस की तरह फंक्शन करता है। बाय फैसिलिटेटिंग
मतलब बाय प्रोवाइडिंग द फैसिलिटी द सेटलमेंट ऑफ इंटर बैंक ट्रांजैक्शंस। जो बैंक के अपने ट्रांजैक्शन होते हैं आपस
में उन ट्रांजैक्शन को सेटल करने के लिए आरबीआई एक्ट करता है एक क्लियरिंग हब की तरह। हब यानी हाउस की तरह। ठीक है? वहां
पर बैंकों के आपस में चेक की पेमेंट को सेटल करवाता है या बिल्स सेटल करवाता है या अदर बिल ऑफ एक्सचेंज वगैरह अगर तुमने
पढ़े होंगे अकाउंट्स के अंदर तो तुम्हें ध्यान होंगे। बस इतना ही समझ लो। आपस की पेमेंट को सेटल कराने के लिए एक जगह बना
रखी है। दिस इज कॉल्ड क्लियरिंग हाउस फंक्शन। काफी सारे स्कूल में इसको कराते भी नहीं है। लेकिन सीयूईटी के पर्पस से
करना है आपको और जिन स्कूल में कराया है उनके लिए तो अच्छी बात है कि मैंने भी आपको टॉपिक करा दिया। तो बहुत बड़ा टॉपिक
दोस्तों बहुत बड़ा टॉपिक आपका यहां पर कवर अप हो गया है। जिसे बोलते हैं क्लियरिंग हाउस फंक्शन। अब मुझे धीरे-धीरे करके आपको
बहुत सारी चीजें पढ़ानी है। जैसे कि रियल लाइफ में लेके जाऊंगा आपको मैं। रियल लाइफ में आओ। जब हम बैंक से लोन लेने जाते हैं
तो क्या सिचुएशन फेस करनी पड़ती है वह समझाऊंगा। समझो जरा। बैंक से लोन लेने गए हो भाई। क्या होगा भाई? ऐसा होता है। अगर
मान लो राजू राजू को घर बनाना है और राजू बैंक के पास गया। कोई भी बैंक हो सकता है। चाहे वो स्टेट बैंक ऑफ इंडिया हो चाहे कोई
और हो। राजू ने बैंक को बोला मेरे को तू लोन दे दे। बैंक बोलेगा क्या गारंटी है? तू मेरा पैसा
वापस करेगा? तो राजू कुछ ना कुछ इसके पास गिरवी रखवाता है। चाहे अपने प्रॉपर्टी के कागजात रखवाए, चाहे गोल्ड रखवाए। गिरवी
रखवाने को बोलते हैं कोलटरल। कोलटरल को मोर्ट गेज भी बोल सकते हो तुम एक टाइम के लिए। ठीक है? तो बैंक क्या
करता है? बैंक कहता है भाई राजू को अगर तू मेरे पास 2 करोड़ का घर गिरवी रखवाएगा। तो मैं तेरे
को लोन दूंगा 90 करोड़ का। क्यों? बैंक कहता है मैं तेरी प्रॉपर्टी खरीद थोड़ी रहा हूं। भाई तेरे से जितने की प्रॉपर्टी
मैं गिरवी रखाऊंगा उससे कम का ही लोन दूंगा ताकि तू मेरा लोन वापस करे। तेरे को डर लगा रहे मेरी प्रॉपर्टी ज्यादा की जमा
है। ठीक है? तो जो ये डिफरेंस है 100 और 90 का 10 ये होता है मार्जिन रिक्वायरमेंट। बैंक
जितनी ज्यादा मार्जिन रिक्वायरमेंट रखेगा मतलब 100 करोड़ की प्रॉपर्टी लेके 60 करोड़ का लोन दे दे तो 40 करोड़ का
मार्जिन रख लिया तो बंदा उतना ज्यादा डरेगा ओ हो हो हो यार बैंक का पैसा वापस करना है राइट हां तो मार्जिन रिक्वायरमेंट
इन दोनों का डिफरेंस होता है यानी कोलटरल की वैल्यू और लोन का अमाउंट मार्जिन रिक्वायरमेंट रेफर्स टू द डिफरेंस बिटवीन
द वैल्यू ऑफ कोलटरल एंड अमाउंट ऑफ लोन इनका डिफरेंस होता है होता क्या है एक्चुअली अगर देश में मार्जिन
रिक्वायरमेंट आप बढ़ा दो इसको शॉर्ट में एमआर बोल दो। मार्जिन रिक्वायरमेंट आप बढ़ा दो। मतलब 100 करोड़ की प्रॉपर्टी
गिरवी रखो और लोगों को बोलो तेरे को 30 करोड़ का लोन देंगे। 70 का डिफरेंस रख दो बीच में। वो डिफरेंस ही मार्जिन
रिक्वायरमेंट होता है। तो लोग डरेंगे कहेंगे ऐ मैं नहीं ले रहा लोन। तो मार्जिन रिक्वायरमेंट बढ़ने से लोग डिसरेज होते
हैं लोन लेने के लिए और लोन कम लेते हैं। इससे लोन कम लेंगे तो देश में मनी सप्लाई कम हो जाएगी। लोन का सीधा-सीधा कनेक्शन
मनी सप्लाई से होता है। राइट? लेकिन अगर आप बोलोगे भाई भाई 100 करोड़ की प्रॉपर्टी तेरे से गिरवी
रखवाएंगे। तेरे को 99 करोड़ का लोन दे देंगे। मतलब 1% का डिफरेंस है। तो जब मार्जिन रिक्वायरमेंट कम होती है
तो लोग कहते हैं यार लोन ले लो ले लो ले लो सही मिल रहा है लोन और यहां पर लोगों के पास पैसा आता है और मनी सप्लाई बढ़
जाती है। देखो जी मनी सप्लाई का सीधा-सीधा लेना लोन से है। हम यही पढ़ते हैं पूरे चैप्टर में। अगर ज्यादा लोन पब्लिक को
मिलेगा अवेलेबल होगा तो देश में मनी सप्लाई बढ़ेगी। अगर लोन कम अवेलेबल होगा अट्रैक्टिव नहीं होगा तो मनी सप्लाई कम हो
जाएगी। ये कांसेप्ट आपको अपने दिमाग में रखना है। अच्छा जी मार्जिन रिक्वायरमेंट करा दिया। अब एक और कराता हूं भाई। पहले
तो एक वर्ड सुनना। एक होता है गवर्नमेंट बॉन्ड। बहुत बच्चों को डाउट है यह गवर्नमेंट
बॉन्ड होता क्या है? देखो जी सरकार को जब भी पैसा उधार चाहिए होता है तो सरकार के पास बहुत सारे ऑप्शन
होते हैं। वह आरबीआई से उधार मांग लेता है। वर्ल्ड बैंक से उधार मांग लेगा और फॉरेन कंट्री से उधार मांग लेगा। एक तरीका
और होता है सरकार को उधार मांगने का। सरकार देश के अंदर लोगों से उधार मांगती है। कैसे? सरकार एक कागज छापती है। उस
कागज को बोलते हैं गवर्नमेंट बॉन्ड। सरकार वह लोगों को दे देती है और बोलती है देखो भाई इस कागज पर लिखा है कि हमने आपसे पैसा
उधार लिया है। तो हम आपका पैसा बाद में दे देंगे। आप हमें पैसा दे दो। तो बहुत सारे लोग
गवर्नमेंट बोध खरीदते हैं और सरकार को उधार देते हैं। सरकार ब्याज भी देती है। सेफ रहता है। सरकार कौन सा
डूबेगी इसलिए लोग दे देते हैं। ऐसी बहुत सारी कंपनी भी करती है। कंपनी भी करती है उधार मांगने के लिए। लेकिन सरकार जनरली
करती है। अगर आपको गवर्नमेंट का बॉन्ड खरीदना हो तो कहां से खरीदोगे? एक ब्रोकर से। ब्रोकर कौन बनेगा यहां पर? आरबीआई।
आरबीआई के पास पूरी-पूरी पावर है कि वो सरकारी बॉन्ड गवर्नमेंट बॉन्ड को गवर्नमेंट सिक्योरिटीज बोला गया है। यहां
पर एक ही बात है। सिक्योरिटी का मतलब बोंड डिबेंचर शेयर सब होता है। तो यहां पर गवर्नमेंट सिक्योरिटी मतलब गवर्नमेंट
बोर्ड। आरबीआई के पास दोस्त मेरे पूरा-पूरा अधिकार है कि वह देश की जनरल पब्लिक या कंपनी किसी को भी या बैंक
गवर्नमेंट की सिक्योरिटीज बेच सकता है। अब बंदा बोलेगा ऐसे तो सर आरबीआई पब्लिक से सीधा डील कर रहा है। आरबीआई डील नहीं
कर रहा। गवर्नमेंट डील कर रही है। गवर्नमेंट को पैसा चाहिए। आरबीआई तो गवर्नमेंट का एक एजेंट बन रहा है यहां पर।
ठीक है? हम आरबीआई सेल कर सकता है गवर्नमेंट की सिक्योरिटीज पब्लिक को सीधा। तो पब्लिक यहां पर आरबीआई को पैसा देगी।
तो पब्लिक के पास से मनी सप्लाई कम हो जाएगी मेरे दोस्त। राइट? हो जाएगी। और जो यह कांड किया है ना
आरबीआई ने जो यह काम किया है इस काम को बोलते हैं ओपन मार्केट ऑपरेशन। आरबीआई के पास अधिकार है कि वो गवर्नमेंट
सिक्योरिटीज को मार्केट में ओपनली खरीद भी ले और बेच भी दे। बेचेगा तो लोगों से पैसा ले लेगा। लोगों के पास पैसा कम हो गया तो
मनी सप्लाई कम हो गई। लेकिन अगर आरबीआई ने पब्लिक को बोला अट्रैक्ट किया पब्लिक को। अरे अरे वापस दे दे भाई बाय किया तो
आरबीआई लोगों को पेमेंट कर देगा तो मनी सप्लाई बढ़ जाती है। राइट? तो कहते हैं भाई ओपन मार्केट ऑपरेशन का मतलब आरबीआई के
द्वारा गवर्नमेंट सिक्योरिटीज को बेचना और खरीदना होता है फॉर द पर्पस ऑफ कंट्रोलिंग मनी सप्लाई। आरबीआई जबजब मनी सप्लाई को
इंक्रीज डिक्रीज करना चाहे तब आरबीआई ओपन मार्केट ऑपरेशन को यूज कर सकता है। लेकिन इससे उन्हीं लोगों की मनी सप्लाई कम
ज्यादा होती है जो इंटरेस्टेड हो गवर्नमेंट बॉन्ड के ट्रांजैक्शन में। हमारी नहीं होती हम नहीं खरीदते भाई। ठीक
है? ओके। तो डेफिनेशन बनती है भाई। ओपन मार्केट ऑपरेशन रेफर्स टू द बाइंग एंड सेलिंग ऑफ गवर्नमेंट सिक्योरिटीज। खरीदना
और बेचना इन द ओपन मार्केट टू कंट्रोल मनी सप्लाई। ठीक है? इट इज डन बाय
सेंट्रल बैंक यानी आरबीआई ऑफ द कंट्री। बस भाई पेपर के अंदर
क्वेश्चन पूछा जा सकता है। राजेश पूछेगा जब आरबीआई गवर्नमेंट सिक्योरिटी को सेल करता है तो मनी सप्लाई बढ़ती है या कम
होती है? आप सोचना सेल कर रहा है तो लोगों से पैसा ले लेगा। मनी सप्लाई कम हो जाएगी। जब बाय करता है तो क्या पड़ेगा मनी सप्लाई
पे फर्क? ये पड़ेगा। मनी सप्लाई बढ़ जाएगी। तो बस यह याद होना चाहिए आपको। मैंने आपको बहुत सारे कांसेप्ट कराए हैं।
राइट? सीधा-सीधा आपको यह बताना चाहता हूं। मेरा नेक्स्ट टारगेट है मॉनिटरी पॉलिसी। मॉनिटरी पॉलिसी ये क्या होती है भाई?
हमारे देश में दो तरीके की पॉलिसी बनाई जाती है। एक पॉलिसी सेंट्रल गवर्नमेंट बनाती है। उसे बोलते हैं बजटरी पॉलिसी या
फिस्कल पॉलिसी। इसको हम गवर्नमेंट बजट वाले चैप्टर में पढ़ते हैं। एक पॉलिसी आरबीआई बनाता है। इस पॉलिसी को बोलते हैं
मॉनिटरी पॉलिसी। मॉनिटरी पॉलिसी का मतलब होता है मनी सप्लाई को छेड़ना। मनी सप्लाई को इंक्रीज और डिक्रीज करने की जो पॉलिसी
होती है, इसको बोलते हैं मॉनिटरी पॉलिसी। देश के अंदर यह ठेका आरबीआई ने ले रखा है। अगर आपसे कोई पूछे मॉनिटरी पॉलिसी क्या
होती है? आप बताना। मॉनिटरी पॉलिसी का मतलब सेंट्रल बैंक की वो पॉलिसी जिसमें मनी सप्लाई को इंक्रीस या डिक्रीज किया
जाता है। तो इट रेफर्स टू द पॉलिसी मेड बाय द सेंट्रल बैंक
रिलेटेड टू चेंज इन मनी सप्लाई। आरबीआई इसको बनाता है मनी सप्लाई को चेंज करने से रिलेटेड। कभी मनी सप्लाई को इंक्रीस कर
देता है, कभी मनी सप्लाई को डिक्रीज कर देता है। और कैसे करता है वो सुन लो जरा। मॉनिटरी पॉलिसी के इंस्ट्रूमेंट होते हैं।
इंस्ट्रूमेंट ये जो इंस्ट्रूमेंट होते हैं, इसको डिटेल में पढ़ाया जाता है। डिटरमिनेशन ऑफ इनकम एंड एंप्लॉयमेंट वाले
चैप्टर में। मैं वहीं पढ़ाता हूं। लेकिन यहां पर आपको एक ओवरव्यू दे देता हूं। मनी सप्लाई को चेंज करने के हमारे पास कुछ
होते हैं क्वांटिटेटिव इंस्ट्रूमेंट। कुछ होते हैं क्वालिटेटिव इंस्ट्रूमेंट। ठीक है? क्वांटिटेटिव इंस्ट्रूमेंट के
एग्जांपल है सीआरआर एसएलआर एलआरआर
रेपो रेट बैंक रेट रिवर्स रेपो रेट
और ओपन मार्केट ऑपरेशन समझ रहे हो? क्वालिटेटिव इंस्ट्रूमेंट के एग्जांपल है
मार्जिन रिक्वायरमेंट, मोरल सोएशन, सेलेक्टिव क्रेडिट कंट्रोल भी कराते हैं
कहीं। कहीं पर क्रेडिट राशिंग भी कराते हैं। आपको इतना ही ध्यान रखना है। इससे रिलेटेड है। राइट? हम तो, यह होते क्या
है? पहले यह समझाऊं आपको दोस्तों। देखो जी। क्वांटिटेटिव
मॉनिटरी पॉलिसी के इंस्ट्रूमेंट वो इंस्ट्रूमेंट होते हैं जो पूरे देश की मनी सप्लाई को बदल दे।
यानी इनको इंक्रीज डिक्रीज करने से पूरे देश की मनी सप्लाई बदल जाती है। और क्वालिटेटिव मॉनिटरी पॉलिसी के
इंस्ट्रूमेंट वो इंस्ट्रूमेंट होते हैं जो किसी एक स्पेसिफिक सेक्टर की मनी सप्लाई को बदले।
स्पेसिफिक सेक्टर की मनी सप्लाई को बदले। फॉर एग्जांपल आरबीआई को एग्रीकल्चर वालों को लोन ज्यादा देना है तो आरबीआई
एग्रीकल्चर वालों के लिए मार्जिन रिक्वायरमेंट गिरा देगा। कहेगा तुम अपनी प्रॉपर्टी मेरे को दो। मैं मार्जिन कम
रखूंगा। तुम लोन ले लो। राइट? तो सिर्फ एग्रीकल्चर वालों के लिए कर सकता है। ये पूरे देश का ही होता है। अब समझाता हूं।
आप बोलोगे सर मार्जिन रिक्वायरमेंट आपने समझा दिया। इससे मनी सप्लाई कैसे इंक्रीज डिक्रीज कर होती है? हम पढ़ चुके हैं।
मोरल सिचुएशन क्या होता है? दोस्तों सुएशन का मतलब होता है फोर्स करना, धमकाना। हां। मोरल का मतलब एक नैतिक ग्राउंड पर प्यार
प्रेम से धमकाना। तो आरबीआई ऐसे लिखते हैं इसको। ऐसे लिखते हैं। इट इज फोर्सफुल
या प्रेशरफुल अपील ऑफ आरबीआई
टू कमर्शियल बैंक्स रिलेटेड टू चेंज इन
मनी सप्लाई ध्यान से समझना। आरबीआई फोन करके या लेटर लिख के या पर्सनली बैंक में जाके बैंक को बोल सकता है भाई तू किसी भी
एक सेक्टर को लोन देना बंद कर दे या किसी भी एक सेक्टर को लोन देना शुरू कर दे। आरबीआई किसी भी एक सेक्टर की मनी सप्लाई
को इंक्रीज डिक्रीज करवा सकता है बैंक से। बैंक की बात माननी पड़ेगी आरबीआई। आरबीआई को बोलना पड़ता है बैंक को। तो हर एक बैंक
मानता है आरबीआई की बात को। ठीक है? ओके रिपोर्ट है। हम अब ये आ जाते हैं भाई। मैंने आपको पढ़ाया है भाई। ध्यान रखना।
किसी भी चीज को बढ़ा दो। किसी भी चीज को बढ़ा दो। किसी भी चीज के बढ़ाने से मनी सप्लाई कम हो जाती है। ऐसा
क्यों? लॉजिक क्या? भाई ये तीन चीजों का लॉजिक तो बता चुका हूं पीछे। रेपो रेट, बैंक रेट और रिवर्स रेपो रेट का सुनो।
रेपो रेट और बैंक रेट वो इंटरेस्ट होता है जो आरबीआई चार्ज करता है कमर्शियल बैंक से अगर कमर्शियल बैंक लोन ले तो अगर आरबीआई
कमर्शियल बैंक से ज्यादा इंटरेस्ट चार्ज करेगा तो कमर्शियल बैंक भी पब्लिक से ज्यादा इंटरेस्ट चार्ज करेगा तो जब
कमर्शियल बैंक पब्लिक से ज्यादा इंटरेस्ट चार्ज करेगा तो पब्लिक लोन कम लेगी तो ये वो इंटरेस्ट ही है जो ज्यादा चार्ज हो रहे
हैं। पब्लिक भी लोन कम लेगी मनी सप्लाई कम हो जाएगी। अब रिवर्स रेपो रेट पे आओ। रिवर्स रेपो रेट वो इंटरेस्ट रेट है जो
आरबीआई देता है कमर्शियल बैंक को। अगर आरबीआई कमर्शियल बैंक के डिपॉजिट पर ज्यादा इंटरेस्ट दे रहा है तो कमर्शियल
बैंक सेफ फील करेगा। आरबीआई के पास पैसा दे देगा। पब्लिक को लोन पे कम देगा। मनी सप्लाई कम हो जाएगी। एक बार दोबारा सुन
लेना इस बात को रिपीट करके मेरी बात को। राइट? इसका उल्टा भी पॉसिबल है। तो इसलिए आपको ट्रिक आनी चाहिए। भाई किसी भी चीज को
इंक्रीस कर दो। किसी भी चीज को इंक्रीस कर दो। मनी सप्लाई डिक्रीज हो जाती है। लेकिन किसी भी चीज को डिक्रीज कर दो तो मनी
सप्लाई इंक्रीस हो जाती है। मनी सप्लाई का मतलब एमएस। किसी भी चीज को डिक्रीज कर दो तो मनी सप्लाई इंक्रीज हो जाती है। ये एक
तरीके से ट्रिक बता रहा हूं ताकि आपको कांसेप्ट ध्यान रहे। राइट? अब आते हैं ओपन मार्केट ऑपरेशन पे। भाई साहब जब जब-जब आप
पब्लिक को बेचोगे गवर्नमेंट सिक्योरिटीज़, सेल करोगे, तो पब्लिक से पैसा ले लोगे। पब्लिक के पास मनी सप्लाई कम हो जाएगी।
लेकिन जब जब-जब आप पब्लिक से बाय करोगे गवर्नमेंट सिक्योरिटीज़ तो पब्लिक को पैसा दे दोगे। आप मतलब आरबीआई तो पब्लिक के पास
पैसा बढ़ जाएगा। मनी सप्लाई बढ़ जाएगी। तो मैंने दोनों तरफ एक ट्रिक लिखी है। इससे पहले बच्चा समझता था क्वांटिटेटिव का मतलब
तो वो चीज होती है जिसको नंबर्स में एक्सप्रेस करते हैं। अरे भाई यहां पर कांसेप्ट अलग है। क्वांटिटेटिव
इंस्ट्रूमेंट वो होते हैं जो पूरे देश की मनी सप्लाई को बदलते हैं। ये सीआरआर, एसएलआर, एलआरआर, रेपो रेट ये पूरे देश के
बैंक के लिए सेम रहते हैं। तो पूरे देश की मनी सप्लाई बदलती है। लेकिन ये अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग कर सकता है आरबीआई।
डिसाइड सब कुछ आरबीआई करता है। मार्जिन रिक्वायरमेंट भी आरबीआई डिसाइड करता है। ओके रिपोर्ट तरीके से आपको यह पता होना
चाहिए मॉनिटरी पॉलिसी क्या होती है? मॉनिटरी पॉलिसी के इंस्ट्रूमेंट में कैसे-कैसे क्लासिफिकेशन होती है। और अगर
आपसे पूछे कि कब मनी सप्लाई बढ़ेगी? कब मनी सप्लाई घटेगी? तो आपको आंख बंद करके ऐसा पता होना चाहिए। अरे कोई भी कांसेप्ट
हो उसको बढ़ा दो तो मनी सप्लाई गिर जाएगी। कोई भी कांसेप्ट हो। उसको गिरा दो तो मनी सप्लाई बढ़ जाएगी। उल्टा चल रहा है भाई।
एक तरीके से याद करना आपको आ गया। बढ़िया तरीके से ये चीजें क्रैक हुई हैं। अब दोस्तों वक्त आ गया है कि आपको एक जबरदस्त
तरीके का कांसेप्ट कराऊं। यह बैंक से रिलेटेड है। और दिस कांसेप्ट इज कॉल्ड द प्रोसेस ऑफ क्रेडिट क्रिएशन। बैंक का मनी
क्रिएशन का प्रोसेस पढ़ा रहा हूं। आपको बहुत ही ज्यादा मजा आने वाला है। यह सबसे ज्यादा इंपॉर्टेंट क्वेश्चन होता है इस
चैप्टर का। और यह आखिरी कांसेप्ट है। इसके साथ आपका मनी एंड बैंकिंग चैप्टर भी कवर अप हो जाएगा विद डिटेल। है ना? कुछ और
बचेगा तो याद आएगा तो बीच में भी चीजें करा दूंगा। प्रोसेस ऑफ क्रेडिट क्रिएशन पे आते हैं दोस्त। एक गुड़ पानी खींच दूं। लो
जी हां पूरी-पूरी बातें कर रहा हूं तुम्हारे साथ। लगातार बोले जा रहा हूं ना। देखो दोस्तों अगर आपको लिटरली मजा आ रहा
है। आपको लग रहा है कि हां भाई एक वीडियो कहीं ना कहीं फ्रूटफुल है। आपको और भी वीडियोस चाहिए। कमेंट सेक्शन में जो तुम
एक्सप्रेस करोगे उससे ही मुझे पता लगेगा कि तुम्हें क्या चाहिए, क्या नहीं चाहिए। ऐसी बातें। ठीक है ना? चलो जी बैंक के पास
आते हैं। देखो जी कमर्शियल बैंक की कहानी सुना रहा हूं आपको। यह सबसे मेजर बात है। यह चार से छह नंबर का क्वेश्चन पेपर में
आता है। अच्छा जी। क्या है जी? बोलते हैं भाई कमर्शियल बैंक काम क्या करता है? कमर्शियल
बैंक के पास जितने भी पैसे होते हैं उन पैसों में से वह अपनी एलआरआर हटा के बाकी सारा पैसा लोन पे देता है। मान लो जी
कमर्शियल बैंक के पास 100 करोड़ का डिपॉजिट है। राइट? और कमर्शियल बैंक की एलआरआर एलआरआर का मतलब सीआरआर प्लस एसएलआर
हां यह 20% है यानी 20 करोड़ है तो बैंक 100 में से 20 हटाकर बाकी सारा पैसा 80 लोन पे दे देता है राइट और यह लोन के पैसे
से होता क्या है यह बात समझनी है आपको भाई एक बार दिया गया लोन देश में बहुत सारे लोन को क्रिएट करता है दिस इज कॉल्ड लोन
क्रिएशन लोन लोन क्रिएशन मतलब क्रेडिट क्रिएशन। ये सब कैसे पॉसिबल हो पता है? देखते हैं। भाई बैंक ने किसी को लोन पे 80
दिया तो यह बंदा पैसा खर्च करेगा। भाई लोन क्यों लेते हैं लोग? कोई कार खरीदने के लिए, कोई बाइक खरीदने के लिए, कोई घर
बनवाने के लिए तो पैसा खर्च ही करेगा ना। तो, हम यह मान के चलते हैं कि यह बंदा अपना सारा पैसा खर्च करेगा।
सारा पैसा किसी ना किसी पर्पस के लिए लिया होगा। ऐसा थोड़ी होता है कि आप बैंक से 80 करोड़ का लोन ले रहे हो मकान बनवाने के
लिए। और 70 करोड़ का मकान बनवा दिया। 10 करोड़ जेब में। इट इज नॉट पॉसिबल। बैंक हर चीज पर नजर रखता है। 80 करोड़ आपको देगा।
80 के 80 खर्च होंगे। और जो भी रिसीवर होगा इस अमाउंट का जिससे भी आप काम करवा रहे हो इसके आप बैंक में ही पैसे डालोगे।
तो बैंक का पैसा बैंक में ही घूमता रहता है। ये हम मान के चल रहे हैं। असलियत में तो कैश के ट्रांजैक्शन भी होते हैं। लेकिन
कैश के ट्रांजैक्शन मान के चलेंगे तो कांसेप्ट मुश्किल हो जाएगा। यह क्रेडिट क्रिएशन का कांसेप्ट आपको पढ़ा रहा हूं।
इस कांसेप्ट के अंदर बैंक कैसे एक डिपॉजिट से बहुत सारे डिपॉजिट कर क्रिएट करता है। कैसे एक लोन से बहुत सारे लोन क्रिएट करता
है वो हम समझेंगे एक टेबल बना के। बहुत सारी किताबों के अंदर टेबल नहीं बनाई हुई। लेकिन जब तक आप टेबल नहीं बनाओगे ना तब तक
ये कॉन्सेप्ट क्लियर ही नहीं होगा। यहां पर कैलकुलेशन भी है, थ्योरी भी है और मजा भी है एक नॉलेज का। ठीक है? देखते हैं
मेरे दोस्त। मैं क्या समझाने वाला हूं आपको। मैं समझाने वाला हूं एक जबरदस्त आपको पूरा-पूरा प्रॉपर फर्रा भी दूंगा।
फर्रे का मतलब यह होता है पेपर में क्वेश्चन आएगा तो आप आंसर कैसे लिखोगे वो पूरा फर्रा दे दूंगा। लो जी क्रेडिट
क्रिएशन समझा रहा हूं मेरे दोस्त मान लो एक बैंक की बात कर रहे हैं। बैंक के अंदर किसी बंदे ने ₹1000 जमा
कराए। दिस इज कॉल्ड इनिशियल डिपॉजिट। इनिशियल को हम प्राइमरी भी बोलते हैं। प्राइमरी डिपॉजिट बोलो, इनिशियल डिपॉजिट
बोलो। एक कहानी समझो। एक बंदे ने बैंक के अंदर ₹1000 जमा कराए। बैंक करेगा क्या इस पैसे का? जब भी बैंक के पास कोई डिपॉजिट
आता है, बैंक कहता है भाई इसको लोन पे दे दो। बस एलआरआर कट कर लो। एलआरआर पूरे इंडिया के लिए एक ही होती है। मान लो 20%
है। समझ रहे हो ना? एलआरआर का मतलब सीआरआर भी इसमें ही आ गया। एसएलआर भी इसमें आ गया। सीआरआर और एसएलआर का पैसा बैंक उधार
नहीं दे सकता। सीआरआर आरबीआई को देगा। एसएलआर अपने पास रखेगा। बाकी पैसा उधार पे देगा। तो दोनों के टोटल को एलआरआर बोल रहा
हूं मैं। अब मेरे को पता है काफी सारी किताबों के अंदर कुछ कुछ सिंबल यूज़ किए हुए हैं। लेकिन धीरे-धीरे आते हैं अपने
कांसेप्ट पे फिर क्लियर करूंगा। राइट? मान लो 1000 में से 20% एलआरआर काट दिया। 20% हो गया 200। बचे कितने? 1000 में से 200
माइनस करो 800 बचे। ये लोन पे दे देगा। अच्छा जी। तो किसी के भी डिपॉजिट से एक लोन क्रिएट हो गया। ठीक है। अब भाई मान लो
यह लोन आपने लिया है। आपने 800 करोड़ का मकान बनवा लिया। मुझसे बनवा लिया मकान। मेरे को दे दिए पैसे। मैं क्या करूंगा इस
पैसे को? कुछ भी करूं। लेकिन हमारे कांसेप्ट में यह मानना पड़ेगा कि यह पैसा मेरे अकाउंट में आया है। तो यह पैसा मेरे
अकाउंट में डिपॉजिट हो गया। क्या हो गया? डिपॉजिट। अब हो सकता है यह वाला बैंक अलग हो। यह वाला बैंक अलग हो। तुम्हारा बैंक
मेरा बैंक अलग-अलग हो सकते हैं। लेकिन इंडिया के ओवरऑल किसी ना किसी बैंक के अंदर पैसा गया है। तो इंडिया के कमर्शियल
बैंक्स की बात हो रही है सभी की। एक बैंक के अंदर डिपॉजिट बहुत सारे बैंकों के अंदर ऐसी सिचुएशन पैदा कर देता है जैसे मैं
सिखा रहा हूं। एक बैंक में डिपॉजिट हुआ। उसने लोन दिया। उसने पैसा खर्चा। मेरे पास पैसा आया। मेरे बैंक में डिपॉजिट हो गया।
अब यह बैंक का डिपॉजिट हो गया मेरे। मेरा बैंक क्या करेगा? अरे ₹800 आए हैं। मेरा बैंक अलग है। ₹800 आए हैं। एलआरआर काट।
एलआरआर 800 का 20% निकाल लेना। 160 होता है। बचेंगे 640। मेरा बैंक इस पैसे को लोन पर दे देगा।
जिसको भी लोन पर देगा वह खर्चेगा इस पैसे को और जो रिसीवर होगा उसके अकाउंट में पैसा जाएगा। तो दोस्तों यह प्रोसेस चलता
रहता है। आप देख रहे हो धीरे-धीरे ये अमाउंट कम होता जा रहा है। ये तब तक चलता रहेगा जब तक ये 0 पॉइंट समथिंग ना हो जाए।
एग्जैक्टली ज़ीरो तो नहीं हो सकता। जिसको मैथ्स पता है वो समझता होगा। 0 पॉइंट समथिंग हो सकता है। 0 पॉइंट समथिंग को
बोलते हैं वर्चुअली ज़ीरो। एग्जैक्टली ज़ीरो नहीं वर्चुअली ज़ीरो हो सकता है। राइट? ये प्रोसेस चलता रहेगा। और ऐसे ही लोन पे लोन
क्रिएट होते रहेंगे। यह पैसा फिर से लोन पे आएगा, कटेगा 640 का, 20% 108, फिर 512। इतनी ज्यादा टेबल भरने से कोई फायदा नहीं।
यह प्रोसेस चलता रहता है। दिस प्रोसेस इज कॉल्ड क्रेडिट क्रिएशन। भाई कैसे? यह लोन बहुत सारे क्रिएट हो रहे हैं। एक अकेले
डिपॉजिट से बहुत सारे डिपॉजिट का क्रिएट होना डिपॉजिट क्रिएशन कहलाता है। इस डिपॉजिट क्रिएशन को तुम क्रेडिट क्रिएशन
भी बोल सकते हो। क्योंकि इसी टेबल में लोन की क्रिएशन भी समझा रखी है। तो डिपॉजिट क्रिएशन बोलो, क्रेडिट क्रिएशन बोलो या
तुम बोल दो इसको मनी क्रिएशन। मनी क्रिएट हो रही है भाई। प्रिंट नहीं हो रही, क्रिएट हो रही है। राइट? हां। ठीक है जी।
तो भाई लास्ट में कितना हो जाएगा टोटल? लास्ट में कितना हो जाएगा टोटल? इस टोटल को करने के लिए एक कांसेप्ट बनाया है। उसे
बोलते हैं मनी मल्टीप्लायर। मनी मल्टीप्लायर का कांसेप्ट बताएगा कितना होगा टोटल यहां पे?
हां यही तो मेन चीज है भाई। कितना होगा टोटल यहां पर कौन बताएगा? मनी मल्टीप्लायर। तो मनी मल्टीप्लायर एक्चुअली
एलआरआर को यूज़ करके बताया है। धीरे-धीरे ये पोर्शन कटता जा रहा है ना। तो मनी मल्टीप्लायर का कांसेप्ट आपको पढ़ाता हूं
मेरे दोस्त। ये लो जी। मनी मल्टीप्लायर को आप डिपॉजिट मल्टीप्लायर बोलो। कि कितने डिपॉजिट क्रिएट हो गए हैं भाई
टोटल मिला के या क्रेडिट मल्टीप्लायर बोलो। एक ही बात है। इसका फार्मूला होता है भाई। 1 lr बस खत्म कहानी। हां, यह क्या
बताता है? इट शोज़ हाउ मेनी टाइम्स
डिपॉजिट्स या मनी आर क्रिएटेड। थ्रू अ सिंगल डिपॉजिट। एक सिंगल डिपॉजिट
आया। सिंगल डिपॉजिट प्राइमरी डिपॉजिट। बैंक के अंदर पहला पहला डिपॉजिट आया। इस अकेले डिपॉजिट का कितना बड़ा इंपैक्ट
पड़ा। इससे चेन बनती गई। किसी दूसरे बैंक में 800 आ गए। किसी एक और बैंक में 640 आ गए। फिर 512 फिर 400 9.6 पता नहीं कितनी
वैल्यू्यूज आएंगी। मुझे तो रट्टा लगा पड़ा है। राइट? हां। आपको इतनी बनानी है टेबल। राइट? हम्। तो भाई अब मनी मल्टीप्लायर
निकाल लो यहां पर। निकालो जी निकालो। मनी मल्टीप्लायर इतना ही समझना है। ज्यादा मैथ नहीं लगानी।
1 / LR LR कितनी है? 20% कितनी है? जी 20% तो 20% का मतलब होता है 0.2 कैसे? जिसकी मैप
स्ट्रांग है वो जानता है। 20% का मतलब 20 / 100 होता है। परसेंट को हटाने के लिए अपॉन 100 लगा देते हैं। 0.2 इसको कैलकुलेट
करोगे तो पांच आएगा। फाइव टाइम्स मतलब टाइम्स में आंसर आता है। ये बताता है कि इनिशियल डिपॉजिट का कितना गुना पैसा
बढ़ जाएगा? इनिशियल डिपॉजिट कितना था? 1000। तो 1000 का पांच गुना कर दो। 5000 आ जाएगा टोटल। हां। और जिसकी मैथ तेज है,
जिसके पास प्योर हार्ड लेवल की मैथ्स होती है, वो बच्चा जानता है इन सब वैल्यूज़ को प्लस करो। 1000 +
800 + 640 प्लस ये एक तरीके से ज्योमेट्रिक प्रोग्रेशन बन रहा है। जिसकी मैथ्स रॉन्ग को टोटल करके देख लेना। 5000
आएगा। इको में आसान बना देते हैं। मनी मल्टीप्लायर के फ़ूले से। अगर किसी को ऐसा लगता है कि भाई मेरे को तो सीधा इसकी
वैल्यू निकालनी थी तो इस वैल्यू को बोलते हैं टोटल डिपॉजिट की क्रिएशन। तो आप इसको ऐसे निकाल सकते थे
टोटल डिपॉजिट क्रिएशन। कैसे निकाला आपने? पहले निकाला मनी
मल्टीप्लायर 1 / lr इसको मल्टीप्लाई किया बाद में इनिशियल डिपॉजिट से। तो यह फार्मूला नया क्रिएट हो गया। आपके काम ही
आएगा यह। तो 1 lr मतलब 0.2 20% को 0.2 लिखना है। इनिशियल डिपॉजिट 1000 5000 आंसर आ जाएगा।
इतनी मैथ तुम्हें लगानी पड़ेगी। राइट? आ गया जी आ गया। फिर क्या करें? आगे के और भी टोटल्स हैं। जैसे डिपॉजिट का 20%
एलआरआर होता था ना तो टोटल डिपॉजिट का 20% निकालो। तो यहां का टोटल आ जाएगा। 5000 का 20% होता है 1000। बच्चा कोई ये ना पूछे
आया कैसे? 5000 का 20% निकाल लेना 1000। अब 5000 में से 1000 माइनस कर दो। जो पैसा गया वह लोन तो यह 4000 यह तीनों टोटल करके
दिखाने पड़ेंगे तुम्हें तब तुम्हें पूरे नंबर मिलेंगे। पेपर में क्वेश्चन आता है। एक्सप्लेन द प्रोसेस ऑफ मनी क्रिएशन।
एक्सप्लेन द प्रोसेस ऑफ क्रेडिट क्रिएशन। तो आपको सबसे पहले मीनिंग लिखना है कि भैया क्रेडिट क्रिएशन का मतलब होता है एक
डिपॉजिट से बहुत सारे डिपॉजिट क्रिएट करना या फिर एक लोन से बहुत सारे लोन क्रिएट करना। कुछ भी लिख देना। क्योंकि सेम टेबल
है। इसको हम तभी समझ सकते हैं जब हम एक ऐसी सिचुएशन अस्यूम करें जहां पर हमारे पास एक इनिशियल डिपॉजिट हो। इसको प्राइमरी
डिपॉजिट भी बोलते हैं और एलआरआर का अमाउंट हो। अपनी मर्जी से अस्यूम कर लेंगे। फिर बनाना ये टेबल। इस टेबल में ऐसे एरो भी
होनी चाहिए। और अगर इस टेबल को तुमने एक्सप्लेन नहीं किया तो टीचर तुम्हारी टेबल काट देगा। तो एक्सप्लेन करना है और
यह कैलकुलेशन भी दिखानी है। भाई यह 5000 कैसे आया? अच्छा फर्रा कहां है इसका? फर्रा है भाई के पास। यह रहा जी। ये रहा
ये रहा जी फर्रा यहां पर क्रेडिट क्रिएशन की डेफिनेशन लिखी है। यहां बताया हुआ है कि दो चीजों का होना जरूरी है। इनिशियल
डिपॉजिट और एलआरआर और हम यहां अस्यूम कर लेते हैं भाई एलआरआर 20% है और इनिशियल डिपॉजिट 1000 है तो वही वाली टेबल बना दी।
आपको जब आंसर लिखना है तो सेम टेबल में ऐसे एरो बनानी बहुत जरूरी है जो मैंने अब बनाई है। फिर ये टेबल की एक्सप्लेनेशन
यहां पर क्या हुआ? एक बंदे ने ₹1000 जमा कराए। बैंक ने 200 काट लिए 20% मान के एलआरआर ठीक है फिर ये ₹800 लोन पे चला गया
फिर लिख दिया ऐसा होता रहता है खत्म ठीक है और लास्ट में हम टोटल करके देखेंगे टोटल डिपॉजिट क्रिएशन इस वाले फॉर्मूले से
आ जाएगी इसको ऐसे करके 5000 कैलकुलेट कर लिया उसके बाद 4000 1000 अपनी मर्जी से लिख देना इसको लिखने की जरूरत भी नहीं है
चार से छह नंबर का फर्रा है प्लीज नोट इट डाउन मतलब ले लेना तुम्हारे लिए ये है यार ये राइट लेकिन मैं चाहूंगा मेरे दोस्त अभी
तुम एक क्वेश्चन सॉल्व करो मान लो पेपर में क्वेश्चन आ गया। एलआरआर 20% है। व्हाट इज मनी मल्टीप्लायर? टोटल क्रेडिट क्रिएशन
नहीं पूछा। सिर्फ मनी मल्टीप्लायर पूछा है। मैं हट रहा हूं एक बारी। कैलकुलेट करो। कमेंट में बताओ इसका आंसर क्या है?
कमेंट क्या करोगे? 1 एलआरआर होता है मनी मल्टीप्लायर 1 20% 20% को 0.2 बोलते हैं फाइव आ जाएगा आंसर
खत्म कहानी कैसे आएगा फाइव भाई जिसकी मैथ नकली है ना ज़ीरो उड़ाओ तो ज़ीरो लग जाएगी फिर 2 * 1 = 2 2 * 5 = 10 ऐसे करके आ
जाएगा आते हैं भाई आते हैं पेपर के अंदर ऐसे बहुत सारे क्वेश्चन आते हैं। राइट? अब भाई
मेरे को प्लीज इस क्वेश्चन का आंसर तुम बताओ। व्हाट आर द टोटल डिपॉजिट क्रिएटेड इफ
एलआरआर इज़ 25% एंड इनिशियल डिपॉजिट आर 1 लाख। टोटल डिपॉजिट क्रिएशन कितनी होगी भाई? कैसे निकालेंगे? 1 / एलआरआर
मल्टीप्लाई बाय इनिशियल डिपॉजिट। ये क्वेश्चन एक नंबर का भी आ जाएगा एमसीक्यू। सीयूईटी के लिए भी इंपॉर्टेंट है और बहुत
इंपॉर्टेंट है। इसको मैं सॉल्व नहीं करूंगा। आप सॉल्व करो। मुझे कमेंट में इसका आंसर बताओ। ये तुम्हारे लिए मैंडेटरी
है। यहां तक तुम पहुंचे हो तो मैं भी पहुंचा हूं तुम्हारे साथ-साथ। दोनों ने एक दूसरे का साथ दिया है। राइट? बताओ जरा
इसका आंसर क्या होगा दोस्त? बताओ। फिर मैं आपको कराने वाला हूं मेरे दोस्त। डिफरेंस बिटवीन कमर्शियल बैंक एंड सेंट्रल बैंक।
यह भी एग्जाम में आया हुआ है। पांच डिफरेंस लेकर आया हूं। कोई भी तीन से चार डिफरेंस कर लेना। आपका काम बन जाएगा। ठीक
है? शुरू करते हैं। कमर्शियल बैंक एक कंपनी की तरह होता है। इसका मेन मोटिव होता है प्रॉफिट कमाना। लेकिन सेंट्रल
बैंक मेरे दोस्त रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया देश का रिस्पांसिबल बैंक होता है। यह देश को स्टेबल करना चाहता है। देश के अप्स एंड
डाउन्स को स्टेबल करना चाहता है। इकोनमी के अंदर स्टेबिलिटी वेलफेयर लाना चाहता है। तो यह प्रॉफिट कमाने के लिए नहीं
होता। बैंक में हम अपना अकाउंट खुलवा सकते हैं। बैंक पब्लिक के लिए ओके होता है। लेकिन आरबीआई में जाके हम डायरेक्ट डीलिंग
नहीं कर सकते। से आरबीआई हमारा अकाउंट नहीं खोलेगा। ध्यान रखना आरबीआई पूरे देश का एक होता है। कमर्शियल बैंक बहुत सारे
होते हैं। तो ऐसे कर करके हमारे पास डिफरेंसेस आएंगे कि कमर्शियल बैंक तो भाई पूरे बैंकिंग सिस्टम का एक छोटा सा पार्ट
है। और आरबीआई अपने आप में ही एक बड़ी पापा वाली बॉडी है। एपेक्स बॉडी है। तो ऐसे करते हैं। ये जो बेसिस लिखे हैं इको
में बेसिस लिखना मैंडेटरी नहीं है। जब भी तुम डिफरेंस लिखते हो ना बिनेस स्टडीज में बेसिकली हम डिफरेंस लिखेंगे तो बेसिस भी
लिखेंगे। क्यों? एनसीईआरटी में बेसिस लिखे हुए हैं और जो तुम्हारे पेपर की मार्किंग स्कीम है वो एनसीईआरटी से बनती है। तो
इसलिए बेसिस लिखना जरूरी है। इकोनॉमिक्स में नहीं लिखे हुए बेसिस नॉट मैंडेटरी। लेकिन लिख दोगे तो अच्छा है। नहीं लिखोगे
तो कोई बात नहीं। तो इधर लिखा है कमर्शियल बैंक। इधर लिखा है सेंट्रल बैंक। भाई ऑब्जेक्टिव की बात कर रहे हैं आप।
कमर्शियल बैंक का ऑब्जेक्टिव है प्रॉफिट कमाना। इसका ऑब्जेक्टिव है स्टेबिलिटी इन द इकॉनमी। कमर्शियल बैंक का स्टेटस देख
लो। इट इज़ जस्ट अ पार्ट ऑफ बैंकिंग सिस्टम। सेंट्रल बैंक देख लो। तो इट इज़ एपेक्स बॉडी। यह कंट्रोल करता है पूरे
बैंकिंग सिस्टम को। इट कंट्रोल्स द एंटायर बैंकिंग सिस्टम। नंबर ये सिर्फ एक सेंट्रल बैंक सिर्फ वन इन नंबर होता है। ये मेनी
हो सकते हैं। बहुत सारे हो सकते हैं। रिलेशन विद पीपल यानी पब्लिक। तो यहां पर डायरेक्ट रिलेशन होता है। अकाउंट खुलवाओ,
लोन ले लो। लेकिन सेंट्रल बैंक की बात करूं तो कोई भी डायरेक्ट रिलेशन नहीं होगा।
यहां पर सेंट्रल बैंक सीधा पब्लिक से डील नहीं करता। ओपन मार्केट ऑपरेशन में भी गवर्नमेंट डील कर रही है। सेंट्रल बैंक तो
बीच में आया है। अब सरकार के साथ रिलेशन आप देखोगे तो कमर्शियल बैंक मे बी इन प्राइवेट सेक्टर और इन पब्लिक सेक्टर मतलब
सरकार के साथ का रिलेशन की बात कर रहे हैं कि कमर्शियल बैंक सरकारी होगा या प्राइवेट तो कमर्शियल बैंक सरकारी भी हो सकता है।
पब्लिक सेक्टर बैंक उसको स्टेट बैंक ऑफ इंडिया पीएनबी यह सरकारी बैंक है। प्राइवेट सेक्टर बैंक भी हो सकते हैं।
HDFC, ICICI लेकिन यह एक गवर्नमेंट एजेंसी है। सेंट्रल बैंक एक गवर्नमेंट एजेंसी है। आपको एक बात बताता हूं। आरबीआई दोस्तों
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया का कानून आया 1934 में आरबीआई एक्ट पहले कानून आता है चीज बाद में बनती है। तो आरबीआई सेटअप हुआ
इस्टैब्लिश हुआ बाद में 1 अप्रैल 1935 में। राइट? अब मैं बताता हूं भाई कुछ
इंपॉर्टेंट इंपोर्टेंट चीजें। इस चैप्टर में तुमने बहुत कुछ कर लिया लेकिन सबसे ज्यादा इंपॉर्टेंट बताऊंगा तो फंक्शनंस
हैं मनी का कोई भी फंक्शन तीन नंबर में ये ट्रेंड चल रहा है और सेंट्रल बैंक का कोई भी फंक्शन
तीन नंबर में आपसे भाई पूछ लेगा यहां पर प्रोसेस ऑफ मनी क्रिएशन चार से छह नंबर में अच्छा जी मनी सप्लाई
क्या होती है यानी m1 सिर्फ सिर्फ M1 के बारे में और इसके कॉम्पोनेंट्स क्या होते हैं? आपसे पूछ लेगा। आपसे पूछ लेगा भाई
सीआरआर के बढ़ने से मनी सप्लाई पे क्या फर्क पड़ता है? तो कुछ भी बढ़ जाए मनी सप्लाई गिरती है। वो छोटी-छोटी ट्रिक्स तो
आपको यहां पर आनी चाहिए। लेकिन एक अंदर की बात बता रहा हूं दोस्तों आपको। देखो जो कमर्शियल बैंक्स होते हैं ना
इसके बारे में इसके बारे में एक मेन बात है चेक फैसिलिटी कमर्शियल बैंक ही प्रोवाइड करते हैं और
कोई भी दूसरा फाइनेंसियल इंस्टट्यूट प्रोवाइड नहीं करता कमर्शियल बैंक ही प्रोवाइड करते
हैं। राइट? और क्रेडिट क्रिएशन या मनी क्रिएशन कमर्शियल बैंक करते हैं। आपसे कोई पूछे कि बहुत सारे फाइनेंसियल
इंस्टट्यूट होते हैं। इंश्योरेंस कंपनी भी फाइनेंसियल इंस्टट्यूट है। स्टॉक मार्केट भी फाइनेंसियल इंस्टट्यूट है। कमर्शियल
बैंक इनसे डिफरेंट कैसे है? भाई इंश्योरेंस कंपनी में तुम पैसा जमा करा सकते हो। इंश्योरेंस कंपनी तुम्हें लोन भी
दे सकती है। ये तो कमर्शियल बैंक भी करता है। तो ये डिफरेंट कैसे है? डिफरेंट इसलिए है एंड में बताना था। चेक फैसिलिटी किसी
के पास नहीं होती। बैंक के पास होती है। क्रेडिट क्रिएशन बैंक करता है। कोई और नहीं कर सकता। ध्यान रखना। समझ रहे हो? तो
कमर्शियल बैंक ऐसे दूसरे बैंकों से डिफरेंट है। हां, मनी की प्रिंटिंग मनी क्रिएशन डिफरेंट है। मनी की प्रिंटिंग और
मनी क्रिएशन दोनों का मतलब डिफरेंट है। मनी क्रिएशन कमर्शियल बैंक करता है। मनी प्रिंट आरबीआई करता है। प्लीज आप इस बात
को ध्यान रखना। छोटे-छोटे वर्ड्स हैं। आपके बहुत बहुत काम में आने वाले हैं। आपको ये लेक्चर कैसा लगा? ऑलमोस्ट मैंने
सारे ही टॉपिक्स यहां पर कवर अप कर दिए हैं। मॉनिटरी पॉलिसी भी कवर हो गया। जो बच्चा सोच रहा है कि इसके बढ़ने से उसके
कम होने से क्या फर्क पड़ेगा क्या नहीं पड़ेगा अगर डिटरमिनेशन ऑफ इनकम एंड एंप्लॉयमेंट का चैप्टर आएगा तो वहां पर
डिटेल में हम पढ़ते हैं कि कैसे रेपो रेट बढ़ती है तो उससे मनी सप्लाई कम होती है वो चीज वहां पर आएगी बस मैंने यहां पर
आपको ट्रिक ट्रिक बता दी है आपका प्रॉब्लम सॉल्व हो जाएगी। अच्छा एक बात और बता देता हूं भाई छोटी सी बात
इनफ्लेशन का मतलब क्या होता है महंगाई पूरा पक्का कर रहा हूं आपको मैं। इनफ्लेशन
का मतलब होता है महंगाई। महंगाई क्यों आई? इसका रीजन क्या है भाई? इसका रीजन यह है कि सामान की डिमांड बहुत
बढ़ गई। जब सामान की डिमांड बहुत बढ़ती है, वह अवेलेबल नहीं होता, तो महंगाई आ जाती है। तो, यहां पर आरबीआई क्या महंगाई
को कंट्रोल कर सकता है? आरबीआई क्या महंगाई को कंट्रोल कर सकता है? ठीक कर सकता है? हम बोलेंगे कर सकता है। आरबीआई
मनी सप्लाई को कम करवा देगा। जब लोगों के पास पैसा नहीं होगा तो वह अपने आप डिमांड कम कर देंगे।
यस कंट्रोल भी कर देगा, करेक्ट भी कर देगा। कैसे भाई? आरबीआई मनी सप्लाई को कम कैसे करेगा? कुछ भी बढ़ा दो। सीआरआर बढ़ा
दो, एसएलआर बढ़ा दो, एलआरआर बढ़ा दो, रेपो रेट बढ़ा दो, बैंक रेट बढ़ा दो, रिवर्स रेपो रेट बढ़ा दो। किसी को भी बढ़ा दो।
ओपन मार्केट ऑपरेशन में सेलिंग स्टार्ट कर दो। सेल करोगे तो पब्लिक से पैसा ले लोगे। मनी सप्लाई कम हो
जाएगी। पब्लिक के पास कम पैसा होगा। वो डिमांड कम कर देंगे। डिमांड कम करेंगे सामान कम बिकेगा दुकानदार का तो अपने आप
ही वो रेट कम करेगा तो महंगाई कंट्रोल में हो जाएगी। इसके अपोजिट डिफ्लेशन होता है तो डिफ्लेशन भी कंट्रोल हो जाती है। पेपर
में आता है क्वेश्चन। बताओ इनफ्लेशन के केस में ओपन मार्केट ऑपरेशन में क्या करना पड़ेगा? सेल करना पड़ेगा। क्योंकि सेल
करने से मनी सप्लाई कम होगी। मामला ठीक हो जाएगा। ये चीजें बड़ी इंपॉर्टेंट है। आपको आनी चाहिए। पेपर में क्रेडिट क्रिएशन का
क्वेश्चन आ सकता है। अपनी मर्जी से आपको अपनी मर्जी से डाटा दे सकता है। भाई ये जो क्रेडिट क्रिएशन किया है ना मेरे साथ अभी
घूम-घूम के यहां पे क्वेश्चन दे सकता है आपको कि आपके पास इनिशियल डिपॉजिट गिवन है 1000
एलआरआर गिवन है 10% अब क्रेडिट क्रिएशन के टेबल बनाओ तो आप एक तरफ क्या लिखते हो? डिपॉजिट 1000
फिर लिखते हो लोन फिर लिखते हो एलआरआर आपके पास मेरे दोस्त 1000 का डिपॉजिट आया बैंक को मान लो आप तो 10% काट लो इसमें से
1000 का 10% कितना हो गया? 100 बाकी 900 लोन पे किसी को लोन मिला होगा किसी का डिपॉजिट तो 900 का 10% 90 बाकी 810 लोन पे
इतना करके छोड़ देना इसका टोटल कर देना टोटल क्रेडिट क्रिएशन कैसे आएगी 1 / एलआरआर यानी 1 / 10% को 0 1
पहला पहला डिपॉजिट000 तो यह आ गया 1000 यह मेरा टोटल डिपॉजिट क्रिएशन है 10,000 का 10% 1000
और 10,000 में से 1000 गए तो 9,000 दिस विल बी अ विल बी द टेबल फॉर द क्रेडिट क्रिएशन। बाकी परफॉर्म्मा वही होगा जो
मैंने बता दिया। अपनी तरफ से वैल्यू देके तुम्हें उल्लू बना सकता है। कोई भी वैल्यू हो सकती है। अच्छा जी। अब सुनो भाई मनी
मल्टीप्लायर का फार्मूला। भाई काफी सारी किताब है जहां पर मनी मल्टीप्लायर का फार्मूला ये दिया हुआ है। 1 / cr मैंने
कराया आपको 1 / lr आप इसको मारो काटा। इसको करो। ये रियलिस्टिक है। ये ठीक है। ये लिख दोगे। चाहे तुम्हारी किताब में ये
लिखा हो। एनसीईआरटी में टीआरजे में ये लिखा हो। लेकिन तुम टीचर को ये लिख के दोगे तुम्हारा टीचर तुम्हें गलत नहीं कर
सकता। बिकॉज़ दिस इज द राइट। ओके रिपोर्ट है। वो हो गई है उनसे। कुछ और अजम्शनंस कुछ और मिस्टेक्स हैं। लेकिन आप इसको
लिखोगे तो थोड़ी सी क्लेरिटी मैं भी दे रहा हूं आपको। आप लिख कर आओ। बोर्ड के अंदर यही वाला फार्मूला मनी मल्टीप्लायर का
एक्सेप्ट होता है। एक सही टीचर का फर्ज है। आपको समझाना कि क्या सही है, क्या गलत है। मैंने आपको पूरा पूरा मनी एंड बैंकिंग
कवर अप करा दिया। दोस्त तुम बोलोगे सर यार पेड बैच में फर्क क्या होता है? सर आप तो परिश्रम बैच में पढ़ाते हो। लेकिन ये तो
फ्री में आपने सारा पढ़ा दिया। दोस्तों फ्री में मैंने आपको सब करा दिया। क्वेश्चन करा दिया, कंटेंट करा दिया। कैसे
क्वेश्चन आंसर आते हैं? हर एक डिटेल दे दी। लेकिन पेड बैच में हैंड होल्डिंग होती है एक बच्चे की। हैंड होल्डिंग का मतलब
जानते हो? एक टाइम टेबल बनता है ऑनलाइन उसके साथ-साथ चलते हैं। धीरे-धीरे क्लासेस होती हैं। सब कुछ होले-होले होता है।
डीपीपी प्रोवाइड की जाती हैं। यानी हर क्लास के बाद एक टेस्ट टाइप प्रोवाइड किया जाता है। विदा
सर वीकली टेस्ट होते हैं। बच्चे की परफॉर्मेंस को मेजर करने के लिए। उसके पास डाउट सॉल्विंग प्लेटफार्म होता है। उसके
पास बहुत सारी फीचर होती है। बुक्स वगैरह एंड ऑल सब कुछ होता है। तो वो अपनी जगह है लेकिन ये वाला मस्त अपनी जगह है। अब बच्चा
पूछेगा सर जो भी आपने कराया है इसके नोट्स कहां मिलेंगे? इसके नोट्स मिलेंगे आपको दोस्त। आप जाओ कहां जाओ? PW की मोबाइल ऐप
पे। वहां पर आपको विश्वास बैच मिलेगा। विश्वास कॉमर्स बैच। ध्यान रखना। ये लो जी।
क्या बोल रहा हूं कातिया? आजा आजा आजा आजा आजा ये रहा जी विश्वास कॉमर्स फ्री बैच मिलेगा क्लास 12th वन शॉट का जाओ वहां पे
और वहां से जाके इन वाले नोट्स को डाउनलोड कर लो फ्री बैच है आपसे फोन नंबर मांगेगा आप फोन नंबर वहां डाल देना फ्री में
एनरोलमेंट हो जाएगी आपका काम हो जाएगा और मैं खुश हो जाऊंगा भाई मैं खुश हो जाऊंगा ऐसा कोई टॉपिक नहीं बचा जो मैंने आपको ना
करवाया हो फिर भी मैं एक बार लाइव बैच के अंदर पढ़ा रहा था एक बच्चे ने मेरे से पूछ लिया सर हेलीकॉप्टर मनी क्या होता है
अब ऐसे तो कोई भी क्वेश्चन पूछता रहेगा। हेलीकॉप्टर मनी कोई भी टाइप ऑफ मनी नहीं है। हेलीकॉप्टर मनी वो सिचुएशन है जब
आरबीआई को लगता है कि मुझे खुद पैसे इंजेक्ट करने की जरूरत है। आरबीआई जब इकॉनमी के अंदर एडिशनल मनी सप्लाई को
इंक्रीस करता है अपने एफर्ट से तो उस मनी को बोलते हैं हेलीकॉप्टर मनी। कभी-कभी कर देता है आरबीआई को लगता है सब कुछ खराब चल
रहा है। सरकार को अपनी तरफ से पैसा दे देता है। हेलीकॉप्टर मनी हो गई। ठीक है? उन चीजों पे चलो बाद में जाएंगे। ठीक है
जी। मैंने पता नहीं क्या-क्या करा दिया आपको। आपके सिलेबस से रिलेटेड हर एक चीज यहां पर कवर अप हो चुकी है। कुछ भी आपका
बचा नहीं हुआ है। मैं कह रहा हूं इससे बेस्ट वन शॉट मैंने अभी तक नहीं बनाया। इतना कंटेंट नहीं कराया कभी मनी एंड
बैंकिंग में। मेरे को खुद नहीं पता चल रहा कि भाई इतना बेस्ट काम हो गया है। ठीक है दोस्त आज की क्लास में इतना ही। जो प्यार
करते हो वह दिखा दो जरा एक बारी। यह बॉन्ड है अपना बना रहे। आगे कौन सा चैप्टर तुम्हें चाहिए कमेंट सेक्शन में बता दो।
थैंक यू सो मच गाइस। जय हिंद जय भारत। नमस्कार। धन्यवाद।
मनी और बैंकिंग का विकास बार्टर सिस्टम से शुरू हुआ, जिसमें सामान के बदले सामान का लेनदेन होता था। इसके बाद, गोल्ड, सिल्वर, मेटल कॉइन, करेंसी नोट्स, और अंत में डिजिटल मनी जैसे यूपीआई और Paytm का आगमन हुआ, जिसने लेनदेन को सरल और प्रभावी बनाया।
मनी के मुख्य कार्यों में मीडियम ऑफ एक्सचेंज, मेजर ऑफ वैल्यू, स्टोर ऑफ वैल्यू, और स्टैंडर्ड ऑफ डेफर्ड पेमेंट शामिल हैं। ये कार्य मनी को लेनदेन में सहायक बनाते हैं और इसकी वैल्यू को सुरक्षित रखते हैं।
क्रेडिट क्रिएशन वह प्रक्रिया है जिसमें कमर्शियल बैंक अपनी जमा राशि का एक हिस्सा आरबीआई और अपने पास रखकर बाकी राशि को लोन के रूप में प्रदान करते हैं। यह लोन जब खर्च किया जाता है, तो वह पैसा फिर से बैंक में जमा होता है, जिससे मनी मल्टीप्लायर के माध्यम से और अधिक मनी का निर्माण होता है।
सेंट्रल बैंक, जैसे रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया, देश की आर्थिक स्थिरता बनाए रखने के लिए कार्य करता है, जबकि कमर्शियल बैंक प्रॉफिट कमाने के उद्देश्य से काम करते हैं। सेंट्रल बैंक एक होता है, जबकि कमर्शियल बैंकों की संख्या कई होती है।
मनी सप्लाई के मेजर्स में M1, M2, M3, और M4 शामिल हैं। M1 में करेंसी इन सर्कुलेशन, डिमांड डिपॉजिट, और आरबीआई के पास अन्य डिपॉजिट शामिल होते हैं, जो किसी देश में उपलब्ध कुल मनी की मात्रा को दर्शाते हैं।
मॉनिटरी पॉलिसी सेंट्रल बैंक द्वारा मनी सप्लाई को नियंत्रित करने की नीति है। इसमें क्वांटिटेटिव और क्वालिटेटिव इंस्ट्रूमेंट्स का उपयोग किया जाता है, जैसे CRR, SLR, और Repo Rate, ताकि अर्थव्यवस्था में मनी सप्लाई को बढ़ाया या घटाया जा सके।
फियाट मनी वह होती है जिसे सरकार द्वारा जारी किया जाता है और इसका कोई आंतरिक मूल्य नहीं होता, जबकि कमोडिटी मनी में आंतरिक मूल्य होता है, जैसे गोल्ड और सिल्वर। फियाट मनी का मूल्य सरकार के समर्थन पर निर्भर करता है।
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