Understanding Inflation: Meaning, Types, and Effects
Overview
In this video, the speaker delves into the concept of inflation, explaining its meaning, definition, and various types. Inflation is characterized as a persistent rise in prices over time, distinguishing it from temporary price fluctuations. The discussion includes two primary types of inflation: demand-pull inflation, which occurs when demand for goods exceeds supply, and cost-push inflation, which arises from increased production costs.
Key Points
- Definition of Inflation: Inflation refers to a sustained increase in the general price level of goods and services in an economy over a period of time.
- Types of Inflation:
- Demand-Pull Inflation: This type occurs when the demand for goods and services exceeds their supply, often driven by factors such as population growth and increased income.
- Cost-Push Inflation: This arises when the costs of production increase, leading producers to raise prices. Factors include rising raw material costs and increased wages.
- Effects of Inflation:
- Economic Development: Rapid inflation can hinder economic growth by reducing savings and investment. For a deeper understanding of how inflation interacts with economic policies, see our summary on Understanding Monetary Policy: Objectives and Instruments Explained.
- Foreign Investment: High inflation can deter foreign investors due to the declining value of money. This aspect is crucial when considering the broader implications of inflation on global markets.
- Wage-Price Spiral: As prices rise, workers demand higher wages, which can further increase prices, creating a cycle of inflation. This cycle is often discussed in relation to Understanding Scarcity and Opportunity Cost in Economics.
- Fixed Income Impact: Individuals on fixed incomes suffer as their purchasing power declines with rising prices. This highlights the importance of understanding inflation's effects on different economic groups.
- Income Inequality: Inflation can exacerbate wealth disparities, benefiting producers while harming consumers. The relationship between inflation and economic inequality is a critical area of study in economic development.
Conclusion
The video emphasizes the importance of understanding inflation's dynamics and its implications for both the economy and individual financial well-being. It sets the stage for further discussions on government measures to control inflation and its causes, which can be explored in more detail in our summary on Understanding Inflation: Key Factors and Economic Policies.
हेलो फ्रेंड्स आज मैं आपके साथ इकोनॉमिक्स का एक और टॉपिक लेके आया हूं और टॉपिक का नाम है इंफ्लेशन शुरू करने से पहले बता
दूं कि चैप्टर का नाम भी है इंफ्लेशन और इस वीडियो में मैं डिस्कस करूंगा इंफ्लेशन होता क्या है मीनिंग डेफिनेशन एंड टाइप्स
ऑफ इंफ्लेशन ठीक है किस हिसाब से पेपर में लिखना है मैंने उसी हिसाब से लिखा हुआ है और इस चैप्टर के सारे के सारे लिंक्स आपको
इस वीडियो के डिस्क्रिप्शन में मिल जाएंगे चलिए शुरू करते हैं इंफ्लेशन क्या होता है अ पर्सिस एट राइज इन प्राइस या प्राइस इज
कॉल्ड इंफ्लेशन लगातार प्राइसेस का बढ़ना इंफ्लेशन होता है यह नहीं कि आज प्राइस बढ़ गया और कल प्राइस गिर गया उसे
इंफ्लेशन नहीं कहेंगे लगातार प्राइसेस बढ़ते रहेंगे ओवर द पीरियड ऑफ टाइम उसे ही इंफ्लेशन कहा जाएगा जनरली इंफ्लेशन इज ऑफ
टू टाइप्स दैट इज डिमांड पुल इंफ्लेशन एंड कॉस्ट पुश इंफ्लेशन आमतौर पे देखा गया है कि जो इंफ्लेशन है उसके सिर्फ दो ही टाइप
हैं डिमांड पुल इंफ्लेशन और कॉस्ट पुश इंफ्लेशन डिमांड पुल इंफ्लेशन क्या होती है डिमांड के बढ़ने की वजह से प्राइसेज
बढ़ना इन डिमांड पुल इंफ्लेशन राइज इन प्राइसेस इज मेनली ड्यू टू इंक्रीजड डिमांड ऑफ गुड्स तो जब भी गुड्स की डिमांड
या सर्विसेस की डिमांड बढ़ जाती है उसकी वजह से प्राइसेस का बढ़ना तो उसे डिमांड पुल इंफ्लेशन कहा जाता है द मेन रीजंस ऑफ
इंक्रीज इन डिमांड आर रैपिड ग्रोइंग पॉपुलेशन पॉपुलेशन का लगातार बढ़ना जिसकी वजह से डिमांड बढ़ती है राइजिंग मनी इनकम
लोगों की इनकम बढ़ेगी तो भी डिमांड बढ़े बढ़ेगी राइजिंग ब्लैक मनी ब्लैक मनी बनेगा ज्यादा होगा ब्लैक मनी तो भी डिमांड बढ़
सकती है इकॉनमी में एक्सपेंशन ऑफ मनी सप्लाई नए नोट छापना या मनी सप्लाई का बढ़ना ड्यू टू एनी रीजन डेफिसिट
फाइनेंसिंग सरकार का नए नोट छापना एट्स ये कुछ रीजंस हो सकते हैं जिसकी वजह से डिमांड बढ़ती है और डिमांड के बढ़ने से
प्राइसेस बढ़ती हैं नेक्स्ट आ जाता है कॉस्ट पुश इंफ्लेशन तो कॉस्ट इन कॉस्ट पुश इंफ्लेशन राइज इन प्राइसेस इज ड्यू टू
इंक्रीज इन कॉस्ट ऑफ प्रोडक्शन तो कॉस्ट ऑफ प्रोडक्शन के बढ़ने से प्रोड्यूसर प्राइस बढ़ा लेते हैं उसे कॉस्ट पुश
इंफ्लेशन कहा जाता है राइज इन कॉस्ट ऑफ प्रोडक्शन इज मेनली ड्यू टू हाइक इन प्राइस ऑफ इनपुट्स क्या पता रॉ मटेरियल
महंगे हो गए हो इनडायरेक्ट टैक्सेस लग गए हो हाइक इन द ऑयल प्राइस क्या पता जो पेट्रोल या फ्यूल प्राइसेस है वही बढ़ गए
या टेक्नो जो पुअर टेक्नोलॉजी है उसकी वजह से कॉस्टिंग ज्यादा पढ़ रही है तो बेसिकली इंफ्लेशन है लगातार प्राइसेस का बढ़ना दो
मेन टाइप्स हो सकते हैं डिमांड पुल जो कहता है कि डिमांड के बढ़ने की वजह से प्राइस बढ़ेंगे और कॉस्ट पुश जो कहता कि
कॉस्ट के बढ़ने की वजह से प्राइसेस बढ़ेंगे अब अगर आपने पेपर में दो-तीन जो इकॉनम या स्कॉलर्स हैं उनकी डेफिनेशन ऐड
कर ली तो आपके अच्छे नंबर आएंगे ठीक है अकॉर्डिंग टू पीटरसन द वर्ड इंफ्लेशन इन द ब्रॉडेस्ट पॉसिबल सेंस रेफर्स टू एनी
इंक्रीज इन द जनरल प्राइस लेवल व्हिच इज सस्टेंड एंड नॉन सीजनल इन करैक्टर तो पीटरसन का मानना यह था कि अगर हम ब्रॉडली
अ हम इंफ्लेशन को देखें तो इंफ्लेशन का मतलब होता है जनरल प्राइस लेवल का बढ़ना तकरीबन सारी चीजों के प्राइस का बढ़ना और
यह सस्टेंड रहेगा ऐसा नहीं है कि यह एक सीजन में बढ़ गया दूसरा गिर गया ऐसा नहीं है ओवर द पीरियड ऑफ टाइम ये चलता रहेगा
मतलब बढ़ा रहेगा प्राइस शपी क्या कहते हैं अकॉर्डिंग टू शिरो इंफ्लेशन इज पर्सिन एंड एप्रिस राइज इन जनरल प्राइस लेवल तो शपी
का भी यही मानना था कि भाई जो इंफ्लेशन है वो पर्सिस एट लगातार और ए अप्रिशिएबल जो है प्राइसेस का बढ़ना उसे ही जनरल प्राइस
लेवल का बढ़ना और लगातार बढ़ना ओवर द पीरियड ऑफ टाइम बढ़ना उसे इंफ्लेशन कहा जाता है अब आ जाता है टाइप्स ऑफ इंफ्लेशन
ये आपको शॉर्ट क्वेश्चन में भी आ सकते हैं दो-दो नंबर के ठीक है देयर आर मेनी टाइप्स ऑफ इंफ्लेशन दीज कैन बी क्लासिफाइड ऑन द
बेसिस ऑफ फॉलोइंग तो फर्स्ट आ जाता है क्लासिफिकेशन ऑन द बेसिस ऑफ कंट्रोल ऑफ कंट्रोल या बेसिस ऑफ डिग्री ऑफ गवर्नमेंट
कंट्रोल कि गवर्नमेंट कितना कंट्रोल कर सकती है उस बेसिस पे टाइप्स ऑफ इंफ्लेशन क्या है सबसे पहले ओपन इंफ्लेशन ओपन
इंफ्लेशन वो इंफ्लेशन है जिसमें सरकार कोई स्टेप नहीं लेती इंफ्लेशन को कंट्रोल करने के लिए खुला छोड़ देती है तो पेपर में
कैसे लिखना है इट रेफर्स टू अ सिचुएशन इन व्हिच नो स्टेप्स आर टेकन टू कंट्रोल राइजिंग प्राइस तो गवर्नमेंट कोई स्टेप्स
नहीं लेती कि जो राइजिंग प्राइस है उसको कंट्रोल किया जा सके इट इज अ प्रोसेस इन व्हिच प्राइसेज आर अलाउड टू राइज विदाउट
एनी अटेंप्ट ऑन द पार्ट ऑफ द गवर्नमेंट टू कंट्रोल देम तो सरकार कोई काम करती नहीं कि प्राइसेस कंट्रोल रहे इन दिस सिचुएशन
प्राइसेस कंटिन्यू टू राइज अकॉर्डिंग टू डिमांड एंड सप्लाई कंडीशंस तो इसमें प्राइसेस लगातार बढ़ते रहते हैं डिमांड और
सप्लाई की वजह से किसी भी वजह से प्राइस बढ़ते रहते हैं अंडर ओपन इंफ्लेशन प्राइसेस आर डिटरमिन बाय मार्केट फोर्सेस
ऑफ डिमांड एंड सप्लाई एंड गुड्स आर डिस्ट्रीब्यूटर थ्रू प्राइस मैकेनिज्म तो वही बात हो होगी परफेक्ट कंपटीशन की बात
हो रही है या कैपिटल ज्म की बात कि ओपन इंफ्लेशन में प्राइस डिमांड एंड सप्लाई ही प्राइस को तय करते हैं और जो भी गुड्स हैं
डिस्ट्रीब्यूटर हैं ऑन द बेसिस ऑफ प्राइस मैकेनिज्म जो प्राइस दे सकता है उस वो खरीद लेगा इट मींस दोज पीपल हु हैव लार्ज
अमाउंट टू स्पेंड बाय मोर गुड्स और जिनके पास कम पैसा है उनके पास कम गुड्स आते हैं ठीक है तो ओपन इंफ्लेशन सिंपल वर्ड्स में
क्या कहते हैं सरकार कोई स्टेप नहीं लेती इंफ्लेशन को कंट्रोल करने के लिए उसके बाद सेकंड आ जाता है सप्रे इंफ्लेशन इसमें
सरकार स्टेप्स लेती है सप्रे इंफ्लेशन रेफर्स टू अ सिचुएशन इन व्हिच राइजिंग प्राइसेस आर चेक्ड बाय एडमिनिस्ट्रेटिव
मेजर्स लाइक राशनिंग लाइक प्राइस कंट्रोल्स एटस बाय द गवर्नमेंट तो सरकार स्टेप्स लेती है प्राइसेस को कंट्रोल करने
के लिए उसे सप्रे इंफ्लेशन कहा जाता है दस प्राइसेस आर चेक्ड फ्रॉम राइजिंग इन द प्रेजेंट बाय द गवर्नमेंट बट एज अ द
कंट्रोल्स आर लिफ्टेड इन फ्यूचर प्राइसेस बिगिन टू राइज रेपिडली जैसे ही सरकार यह कंट्रोल्स जो किए हुए सरकार ने प्राइस व
हटाती है फ्यूचर में फिर से प्राइस बढ़ना शुरू हो जाता है सप्रे इंफ्लेशन इज डेंजरस देन द ओपन इंफ्लेशन यह कुछ इकॉनमिका मानना
है कि जो सप्रे इंफ्लेशन है वह मोर डेंजरस है किससे ओपन इंफ्लेशन से क्यों अंडर सप्रे इंफ्लेशन प्राइस मैकेनिज्म बिकम इन
ऑपरेटिव तो प्राइस मैकेनिज्म को सरकार कंट्रोल कर लेती है और डिमांड सप्लाई का जो प्रोसेस है प्रोसीजर है वह नहीं चलता
इकोनॉमिस्ट लाइक मिल्टन फ्रीडमैन एंड हेलम आर ऑफ द ओपिनियन दैट ओपन इंफ्लेशन इज़ मोर एप्रोप्रियेट इंफ्लेशन ज्यादा बेटर रहती
है इट इज सो बिकॉज़ अंडर स्रेस इंफ्लेशन ड्यू टू राशनिंग एंड प्राइस कंट्रोल इविल्स लाइक ब्लैक मार्केटिंग करप्शन एंड
ब्राइबरी क्रॉप अप एंड रिसोर्सेस आर इन इक्विटेबल डिस्ट्रीब्यूटर उनका यह मानना था कि अगर सरकार कंट्रोल कर लेगी प्राइस
कंट्रोल करेगी थ्रू अ मतलब इंफ्लेशन को कंट्रोल करने की कोशिश करेगी सरकार एमएसपी डिक्लेयर कर देगी या प्राइस कंट्रोल लगा
देगी या राशनिंग लगा देगी उसकी वजह से ब्लैक मार्केटिंग करप्शन वगैरह ब्राइबरी वगैरह हो सकती है ठीक है तो इस इसलिए उनका
यह मानना था कि इकॉनमी को फ्री छोड़ देना चाहिए और जिस हिसाब से डिमांड सप्लाई काम करता है उस हिसाब से करना चाहिए नेक्स्ट
क्लासिफिकेशन आ जाती है क्लासिफिकेशन ऑन द बेसिस ऑफ पॉलिटिकल कंडीशन तो फर्स्ट आ जाती है वॉर टाइम इंफ्लेशन इन ऑर्डर टू
मीट वॉर एक्सपेंसेस गवर्नमेंट इंक्रीजस सप्लाई ऑफ़ मनी तो जंग का खर्चा निकालने के लिए लड़ाई का खर्चा निकालने के लिए या
कोई वॉर है उसका खर्चा निकालने के लिए सरकार क्या करती है मनी सप्लाई को बढ़ाती है लार्ज परपो ऑफ प्रोडक्टिव रिसोर्सेस आर
डायरेक्टेड टुवर्ड्स मैन्युफैक्चरिंग ऑफ वर्क गुड्स तो ज्यादातर अब सरकार को क्या चाहिए हथियार चाहिए हथियार बनाने के लिए
सारे रिसोर्सेस को इस्तेमाल करती है सरकार लेस अटेंशन इज पेड टू द प्रोडक्शन ऑफ कंज्यूमर गुड्स कंज्यूमर गुड्स की
इंडस्ट्री तो वैसे भी ठप हो जाती और उनके ऊपर रिसोर्सेस उनके पास रिसोर्सेस भी कम रह जाते हैं सो रिलेटिवली स्मॉल परपो ऑफ
प्रोडक्शन इज अवेलेबल टू द पीपल तो लोगों के पास कमी जो कंज्यूमर गुड्स हैं वो अवेलेबल होंगे एज अ रिजल्ट प्राइस बिगिन
टू शूट अप तो जब वो कम बनेंगे कंज्यूमर गुड्स तो प्राइस बढ़ने शुरू हो जाएंगे दस इंफ्लेशन दैट टेक्स प्लेस ड्यूरिंग द
कोर्स ऑफ वॉर इज कॉल्ड वॉर टाइम इंफ्लेशन तो जब भी वॉर के टाइम पे ऐसे सिचुएशन आ जाती हैं जिससे कि सरकार सारे रिसोर्सेस
वॉर टाइम गुड्स को बनाने में लग जाए और लगा दे और कंज्यूमर गुड्स की तरफ जो है कम रिसोर्सेस हो तो कंज्यूमर गुड्स की
प्रोडक्शन गिर जाएगी जिसकी वजह से जो है जंग के टाइम पे प्राइस बढ़ जाएंगे नेक्स्ट आ जाता है पोस्ट वॉर इंफ्लेशन टेंडेंसी ऑफ
इंफ्लेशन परसिस्ट इवन आफ्टर द वॉर मेनली ड्यू टू टू रीजंस कौन-कौन से वॉर के बाद भी इंफ्लेशन की टेंडेंसी रहती है फर्स्टली
गवर्नमेंट हैज टू स्पेंड लार्ज अमाउंट ऑन द रिपेयर एंड री कंस्ट्रक्शन ऑफ डैमेज प्रॉपर्टी लाइक ब्रिजे रेलवेज रेलवे लाइंस
शिप्स मशीनस एटस सरकार को काफी पैसा खर्च कर करना पड़ता है इंफ्रास्ट्रक्चर को दोबारा से बनाने में सेकंड टैक्सेस लेबड
ड्यूरिंग वॉर आर अबॉलिश्ड एंड लोंस टेकन फ्रॉम पब्लिक आर रिपेड तो जो भी टैक्स सरकार ने लगाए होते हैं वॉर टाइम पे उनको
भी हटा देती है और सरकार ने जो लोंस वगैरह पब्लिक से लिए वो वापस करती है तो मनी सप्लाई बढ़ जाएगी कंसीक्वेंटली मनी सप्लाई
विद द पब्लिक इंक्रीजस बट प्रोडक्शन ऑफ गुड्स एंड सर्विसेस डज नॉट इंक्रीज इन द सेम प्रोपोर्शन लोगों के पास पैसा तो आ
गया मगर प्रोडक्शन इतनी तेजी से नहीं बढ़ रही दस प्राइसेस कंटिन्यू टू राइज इवन आफ्टर द वॉर वॉर के बाद भी प्राइसेस
लगातार बढ़ते रहते हैं नेक्स्ट आ जाता है थर्ड पॉइंट पीस टाइम इंफ्लेशन वेरी इंपॉर्टेंट यूडीसी होता है अंडर डेवलप
कंट्रीज ठीक है अंडर डेवलप कंट्रीज नीड लार्ज रिसोर्सेस फॉर इकोनॉमिक प्लानिंग एंड डेवलपमेंट प्रोग्राम्स तो अंडर डेवलप
कंट्रीज को अपने देश को तरक्की कराने के लिए इकोनॉमिक प्लांस बनाते हैं वो तो प्लान को पूरा करने के लिए भी पैसा चाहिए
और जो भी डेवलपमेंट प्रोग्राम्स होते हैं उनके लिए भी उनको पैसा चाहिए इन ऑर्डर टू मोबिलाइज रिसोर्सेस गवर्नमेंट हैज टू
रिजॉर्ट टू डेफिसिट फाइनेंसिंग दैट इज टू मीट द डेफिसिट इन बजट गवर्नमेंट प्रिंट्स मोर करेंसी नोट्स व्हिच लीड्स टू इंक्रीज
इन मनी सप्लाई तो यह सारा खर्चा पूरा करने के लिए सरकार नए नोट छाप है और नए नोट छापने से मनी सप्लाई बढ़ जाती है इट लीड्स
टू राइज इन प्राइस व्हिच इज पॉपुलर नोन एज पीस टाइम इंफ्लेशन तो यह सरकार जब पीस टाइम पर नोट ज्यादा छापते है तरक्की करने
के लिए तो उसकी वजह से लोगों के पास पैसा ज्यादा हो जाता है और पैसा ज्यादा होने की वजह से भी महंगाई आ जाती है इसको पीस टाइम
इंफ्लेशन कहते हैं तीसरा आ जाता है क्लासिफिकेशन ऑन द बेसिस ऑफ रेट और स्पीड ऑफ इंफ्लेशन तो सबसे पहला क्रिपिंग
क्रिपिंग क्या होता है रंगना इट रेफर्स टू दैट इंफ्लेशन वेयर इन प्राइसेस राइज वेरी स्लोली प्राइस बहुत स्लो रेट प बढ़ते हैं
सच एन इंफ्ले इज नॉट डेट्रिमेंटल टू द इकॉनमी ऐसी इंफ्लेशन जो है इकॉनमी को नुकसान नहीं पहुंचाती इट इज नॉट ओनली
बेनिफिशियल टू द इकॉनमी बट इज आल्सो कंसीडर्ड एसेंशियल टू सम एक्सटेंट तो कुछ इकॉनम का तो यह भी मानना है कि बेनिफिशियल
तो है ही है नॉट ओनली बेनिफिशियल इकॉनमी के लिए बेनिफिशियल तो है बट इट इज एसेंशियल फॉर एसेंशियल टू सम एक्सटेंट
थोड़े-थोड़े प्राइसेस बढ़ने ही चाहिए ताकि प्रोड्यूसर्स को इनकरेजमेंट भी मिले सम इकोनॉमिस्ट आर ऑफ द व्यू दैट अप टू 3 पर
पर एनम राइज इन प्राइस कैन बी कॉल्ड क्रीपिंग इंफ्लेशन तो कुछ इकॉनमिका मानना यह है कि अगर अप टू 3 पर प्राइसेस बढ़े
किसी भी इकॉनमी में तो उसे क्रिपिंग इंफ्लेशन कहा जाता है दे रिगार्ड इट एप्रोप्राएटनेस डेवलपमेंट वो ये कहते हैं
कि तकरीबन 3 पर प्राइस बढ़े या उससे कम बढ़े तो ये नेशनल डेवलपमेंट के लिए भी ठीक है सम अदर
इकॉनमिको इकॉनम यह भी मानते हैं कि अगर लगातार 3-3 पर से प्राइस बढ़ते रहे तो ओवर द पीरियड ऑफ टाइम यह स्पीड बढ़ भी सक ती
है समझ गई बात नेक्स्ट आ जाता है वॉकिंग इंफ्लेशन जब इंफ्लेशन की स्पीड क्रीपिंग मतलब रेंगने से ज्यादा हो जाती है उसको
कहते हैं वॉकिंग तो इसमें क्या होता है व्हेन प्राइस राइ बिकम इंटेंस एंड क्वांटम ऑफ इंफ्लेशन गेस मोमेंटम इट इज कॉल्ड
वॉकिंग इंफ्लेशन जब प्राइस राइज इंटेंस हो जाए और जो स्पीड ऑफ प्राइस राइज है वो काफी बढ़ जाए उसे हम वर्किंग इंफ्लेशन
कहते हैं कितनी स्पीड बढ़ जाए व्हेन प्राइस राइज इ व्हेन प्राइस राइज बिटवीन 3 टू 8 पर पर एनम इट इज कॉल्ड वॉकिंग
इंफ्लेशन अगर प्राइस 3 पर से 8 पर के बीच में बढ़ गए तो उसे वॉकिंग इंफ्लेशन कहते हैं इससे ऊपर आ जाता है रनिंग और गैलोपिंग
इंफ्लेशन व्हेन देयर इज रैपिड इंक्रीज इन प्राइस इन अ वेरी शॉर्ट पीरियड इट इज कॉल्ड रनिंग इंफ्लेशन काफी कम टाइम पीरियड
में प्राइस काफी तेजी से बढ़ जाए तो उसे रनिंग इंफ्लेशन कहते हैं यह कब होता है इन दिस केस द रेट ऑफ इंफ्लेशन इज बिटवीन 8 टू
15 पर पर एनम तो तकरीबन 8 से 15 पर प्राइसेस बढ़ जाए वो भी वेरी शॉर्ट पीरियड में तो उसे रनिंग या गैलोपिंग इंफ्लेशन
कहा जाता है सच इंफ्ले सच एन इंफ्लेशन हैज एन एडवर्स इफेक्ट ऑन मिडल एंड पुअर क्लासेस तो जो मिडिल क्लास लोग हैं और जो
पूरे क्लास लोग हैं उनका सारा पैसा खर्च हो जाएगा इस सिचुएशन में इट डिस्कस सेविंग क्योंकि सेविंग तो कर ही नहीं पाएंगे लोग
खाने पीने पे खर्चा इतना हो जाए करेगा सच सिचुएशन वारंट्स स्ट्रिजेंट मेजर्स टू कर्ब इंफ्लेशन तो सरकार को आगे आके ऐसी
इंफ्लेशन को कंट्रोल करना चाहिए नेक्स्ट आ जाता है हाइपर इंफ्लेशन ये उससे भी ज्यादा तेज होगी इट टू अ सिचुएशन व्हेन द प्राइस
राइज एट एन अनएक्सपेक्टेड रेट लोगों ने एक्सपेक्ट भी नहीं किया था उतनी तेजी से प्राइस बढ़ गए एग्जांपल जैसे जो हाउसिंग
मार्केट है या फिर जो जो लैंड मार्केट है जमीनों के रेट कितनी तेजी से बढ़ रहे हैं घरों के रेट कितनी तेजी से बढ़ गई पिछले
कुछ सालों में देयर इज एन एस्केलेशन ऑफ प्राइस राइज काफी तेजी से बढ़ गए प्राइस एक्सलेट जो है एक्सलरेट कर गए एस्केलेट कर
गए एक ही बात है इट इज कॉल्ड अ हाइड्रा हेडेड मनस्टर टू इंफ्लेशन तो बेसिकली इसको हाइड्रा हेडेड मनस्टर भी कहा गया कि
प्राइस कितनी तेजी से बढ़ गए कि समझ ही नहीं आया इट पुट्स द एंटायस इकॉनमी आउट ऑफ गियर प्राइसेस मे राइज ओवर 100 टाइम्स ओवर
अ पीरियड ऑफ वन ईयर एक साल में य 100 गुना से ज्यादा प्राइस का बढ़ना दिस रिजल्ट्स इन अटर कंफ्यूजन इन द इकॉनमी इससे इकॉनमी
में और ज्यादा कंफ्यूजन क्रिएट होती है इट कंप्लीट वाइप्स अवे अवे फिक्स्ड इनकम ग्रुप्स एंड पुअर क्लासेस ऑफ द सोसाइटी तो
जो गरीब लोग हैं या मिडिल क्लास लोग हैं उनका तो बैंड बच जाता है समझ गई बात नेक्स्ट आ जाता है क्लासिफिकेशन ऑन द
बेसिस ऑफ स्कोप स्कोप के बेसिस पे तो पहला आ जाता है सेक्टरल और स्पोरेडिक इंफ्लेशन व्हेन इंफ्लेशन अफेक्ट्स ओनली अ पर्टिकुलर
पार्ट ऑफ कंट्री और कवर्स कवर्स वन और टू गुड्स लाइक पल्सेस अ पेट्रोल एटस देन इट इज कॉल्ड सेक्टरल इंफ्लेशन सेक्टरल
इंफ्लेशन वो इंफ्लेशन है जो किसी पर्टिकुलर सेक्टर में होती है जैसे खाने के सेक्टर में होगी या मैन्युफैक्चरिंग
सेक्टर में होगी या कंस्ट्रक्शन सेक्टर में होगी उसे सेक्टरल इंफ्लेशन कहा जाता है कंप्रिहेंसिव इंफ्लेशन जो सारे
सेक्टर्स में हो हर एक जगह पे आ जाए व्हेन इंफ्लेशन इज नॉट कंफाइंड टू अ स्पेसिफिक पार्ट ऑफ द कंट्री या इकॉनमी और अ फ्यू
गुड्स बट एनल्स द एंटायस देन इट इज कॉल्ड कंप्रिहेंसिव इंफ्लेशन मतलब जब सारे के सारे गुड्स में
या सारी के सारी इकॉनमी में या होल कंट्री पे इंफ्लेशन आ जाए सारे गुड्स महंगे हो जाए तो उसे कंप्रिहेंसिव इंफ्लेशन कहा
जाता है नेक्स्ट आ जाता है क्लासिफिकेशन ऑन द बेसिस या अकॉर्डिंग टू द प्रोसेस ऑफ राइज इन प्राइस तो सबसे पहला आ जाता है
वेज इंड्यूस्ड इंफ्लेशन वेरी इंपॉर्टेंट दो-दो नंबर में यह सारे आ सकते हैं पावरफुल लेबर ऑर्गेनाइजेशंस हैव स्ट्रांग
बारगेनिंग पावर विद द विद एंपलॉयर्स तो जो लेबर यूनियंस होती हैं और अगर वह पावरफुल होंगी तो व बारगेनिंग करती हैं एंप्लॉयज
के साथ जो फैक्ट्रीज के मालिक हैं उनके साथ दे सक्ड इन गेटिंग देयर वेजेस इंक्रीजड हड़ताल करते हैं या स्ट्राइक्स
करते हैं उसकी वजह से उनके प्राइस जो वेज जी बढ़ जाते हैं दिस रिजल्ट्स इन हायर कॉस्ट ऑफ प्रोडक्शन एंड इंक्रीज प्राइसेस
तो जब उनकी कॉस्ट ऑफ प्रोडक्शन ही बढ़ जाएगी तो एंटरप्रेन्योर्स प्राइसेस बढ़ा देंगे तो इसे क्या कहते हैं वेज इंड्यूस्ड
इंफ्लेशन सच अ राइज इन प्राइस इज कॉल्ड वेज इंड्यूस्ड इंफ्लेशन क्योंकि वेजेस बढ़ गई जिसकी वजह से प्रोड्यूसर्स की कॉस्ट
बढ़ गी कॉस्ट बढ़ेगी तो वोह प्राइस बढ़ा देंगे नेक्स्ट आ जाता है प्रॉफिट इंड्यूस्ड और मार्क अप
इंफ्लेशन सम बिग कंपनीज मेक कार्टेल वेरी इंपॉर्टेंट जो कुछ बड़ी-बड़ी कंपनीज है वो आपस में कार्टेल बना ले हैं
और फिक्स कर देती हैं प्राइस ऑफ़ द प्रोडक्ट्स बाय एडिंग ह्यूज मार्जिंस वह कह देते हैं इससे कम तो बेचना ही नहीं दिस
एक्ट इज कॉल्ड मार्कअप इस एक्ट को मार्कअप कहा जाता है दीज कंपनीज कीप द मार्कअप क्वाइट हाई यह जो आपस में कार्टेल बना
लेते हैं तो यह जो मार्कअप है उसको काफी हाई रख देते हैं कंसीक्वेंटली प्राइस ऑफ़ द कमोडिटीज राइज वेरी हाई एंड इंफ्लेशन
टेक्स प्लेस सच एन इंफ्लेशन इज़ कॉल्ड मार्क अप इंफ्लेशन आपने कभी भी देखा है जब आप अ प्रॉपर्टी खरीदने जाते हो तो जो
प्रॉपर्टी का जो माफिया होता है वह आपस में इतनी प्रॉपर्ट यां खरीद के बैठे होते हैं प्रॉपर्टी डीलर्स कि वह आपस में एक
टाइप का कार्टेल बना लेते हैं कि भाई इससे नीचे तो बेचना ही नहीं जिसने खरीदना है खरीद ले नहीं खरीदना ना खरीदे और अगर
मार्केट में उससे सस्ती प्रॉपर्टी आती है तो वो खुद ही खरीद लेते हैं समझ ग बात और एक हाई प्राइस सेट कर देते हैं जिसकी वजह
से इंफ्लेशन आ जाती है उसे प्रॉफिट इंड्यूस्ड इंफ्लेशन या मार्क अप इंफ्लेशन कहा जाता है नेक्स्ट आ जाता है डेफिसिट
इंड्यूस्ड इंफ्लेशन सच एन इंफ्लेशन इज द आउटकम ऑफ द डेफिसिट फाइनेंसिंग बाय द गवर्नमेंट जब भी सरकार अपना बजट बनाती है
और उस बजट में सरकार घाटा करती है तो घाटे को पूरा करने के लिए सरकार क्या करती है नए नोट छाप है नए नोट छापे गी तो उससे भी
तो आपका मतलब मनी सप्लाई बढ़ेगा और इंफ्लेशन हो जाएगी इट टेक्स प्लेस ड्यू टू इंक्रीज इन मनी सप्लाई इन द वेक ऑफ
डेफिसिट फाइनेंसिंग विदाउट एनी कॉरस्पॉडिंग इंक्रीज इन द सप्लाई ऑफ गुड्स एंड सर्विसेस तो जब सरकार ने अपना घाटा
पूरा करने के लिए नोट छापे या फिर बाहर से लोन लेके आई और उसको इकॉनमी में इफ्यूज कर दिया तो मनी सप्लाई
तो बढ़ गई ना तो मनी सप्लाई के बढ़ने से लोगों के पास पैसा ज्यादा हो गया मगर गुड्स एंड सर्विसेस की सप्लाई तो बढ़ी
नहीं डेफिसिट फाइनेंसिंग रेफर्स टू प्रिंटिंग न्यू करेंसी नोट्स टू मीट बजेट डेफिसिट इंडिया में डेफिसिट फाइनेंसिंग का
मतलब है नई करेंसी छापना मगर बाहर डेफिसिट फाइनेंसिंग का मतलब है या तो नई करेंसी छापना या लोंस लेके काम चलाना यहां पे जो
लोंस लेते हैं उसको पब्लिक डेट कहते हैं वो अलग टॉपिक आ जाता है ठीक है उसके ऊपर मैंने ऑलरेडी वीडियो बनाई हुई है इट इट
लीड्स टू इंक्रीज इन मनी सप्लाई इन द इकॉनमी व्हिच लीड्स टू इंक्रीज इन द प्राइस लेवल इन द इकॉनमी तो इससे क्या
होगा नए नोट पेंगे मनी सप्लाई बढ़ेगी और प्राइस लेवल बढ़ेंगे नेक्स्ट आ जाता है डिमांड पुल इंफ्लेशन मतलब डिमांड के बढ़ने
की वजह से प्राइस का बढ़ना इट रेफर्स टू अ सिचुएशन इन व्हिच एग्रीगेट डिमांड एट द एजिस्टिफाई एग्रीगेट सप्लाई ऑफ़ गुड्स एंड
सर्विसेस जिसमें डिमांड काफी बढ़ जाती है सप्लाई कम रह जाती है और डिमांड के बढ़ने की वजह से प्राइसेस बढ़ जाते हैं सच एन
इंफ्लेशन अराइजेज ड्यू टू एक्सेसिव डिमांड द इन केस ऑफ डिमांड पुल इंफ्लेशन इंक्रीज इन एग्रीगेट डिमांड इज मोर दन इंक्रीज इन
एग्रीगेट सप्लाई एंड दस इंबैलेंस कॉसेस राइज इन प्राइस डिमांड बढ़ती है डिमांड जो सप्लाई में बढ़ावा आया उससे भी कई गुना
ज्यादा डिमांड बढ़ जाएगी तो जो है चीजों की कमी हो जाएगी जिसकी वजह से प्राइसेस बढ़ जाएंगे नेक्स्ट आ जाता है कॉस्ट पु
पुश इंफ्लेशन कॉस्ट के बढ़ने की वजह से प्राइसेस का बढ़ना कॉस्ट पुश इंफ्लेशन इज कॉज ड्यू टू इंक्रीज इन कॉस्ट ऑफ़
प्रोडक्ट्स या कॉस्ट ऑफ प्रोडक्शन या कॉस्ट ऑफ प्रोडक्ट्स के बढ़ने की वजह से इंफ्लेशन आ जाती है इंक्रीज इन कॉस्ट मे
बी ड्यू टू ए इंक्रीज इन द कॉस्ट ऑफ रॉ मटेरियल एंड अदर इनपुट्स या रॉ मटेरियल या अदर इनपुट्स महंगे हो गए बी इंक्रीज इन द
वेजेस विदाउट इंक्रीज इन प्रोडक्टिविटी ऑफ लेबर लेबर ने प्रोडक्टिविटी तो बढ़ाई नहीं मगर वेजेस बढ़ा दी लेबर यूनियंस ने हड़ताल
वगैरह करके बढ़वार सी इंक्रीज इन टैक्सेस एंड ड्यूटीज इंपोज्ड बाय द गवर्नमेंट सरकार ने टैक्स
वगैरह लगा दिया डी इंक्रीज इन अदर इनडायरेक्ट कॉस्ट्स एट्स तो इन सब की वजह से प्रोड्यूसर्स की जो कॉस्टिंग बढ़ जाती
है और व प्राइस बढ़ा देते हैं व्हेन एवर देयर इज इंक्रीज इन द कॉस्ट ऑफ प्रोडक्शन और अदर रिलेटेड कॉस्ट द मैन्युफैक्चरर
पासेस ऑन दीज दिस इंक्रीज कॉस्ट टू कंज्यूमर्स इन द फॉर्म ऑफ इंक्रीजड प्राइसेस तो जब यह सारे उसके खर्चे बढ़
जाते हैं कॉस्टिंग बढ़ जाती है तो वह प्राइस बढ़ा के कंज्यूमर की तरफ ट्रांसफर कर देता है सच इंफ्लेशन इज़ आल्सो कॉल्ड
सप्लाई साइड इंफ्लेशन इसको सप्लाई साइड इंफ्लेशन भी कहा जाता है कॉस्ट पुश इंफ्लेशन इज़ मोर डिफिकल्ट टू बी
कंट्रोल्ड इन कंपैरिजन टू डिमांड पुल इंफ्लेशन डिमांड पुल में तो सरकार रिस्ट्रिक्टर सकती है इससे ज़्यादा डिमांड
नहीं करनी मगर कॉस्ट पुश को कंट्रोल करना का काफी मुश्किल है डिमांड पुल इंफ्लेशन कैन बी कर्टेल्ड बाय यूजिंग फिस्कल एंड
मॉनेटरी मेजर्स बट सप्लाई को कंट्रोल करना काफी डिफिकल्ट है बट इट इज वेरी डिफिकल्ट टू कंट्रोल कॉस्ट पुश इंफ्लेशन क्योंकि
कॉस्ट बढ़ेगी तो प्रोड्यूसर अपनी जेब से थोड़ी ना देगा पैसे वो कंज्यूमर से ही निकलवाए का तो यह पूरी की पूरी वीडियो में
मैंने डिस्कस किया कि इंफ्लेशन क्या होता है उसका मीनिंग इंफ्लेशन की डेफिनेशंस क्या है और इंफ्लेशन के टाइप्स क्या है
ठीक है नेक्स्ट वीडियो में मैं डिस्कस करूंगा इफेक्ट्स ऑफ इंफ्लेशन हेलो फ्रेंड्स आज मैं आपके साथ इकोनॉमिक्स
का एक और टॉपिक लेके आया हूं और टॉपिक का नाम है इफेक्ट्स ऑफ इंफ्लेशन चैप्टर का नाम है इंफ्लेशन और इस चैप्टर के सारे के
सारे लिंक्स आपको इस वीडियो के डिस्क्रिप्शन में मिल जाएंगे शुरू करने से पहले बता दूं कि पिछली वीडियो में मैंने
बताया था कि इंफ्लेशन क्या होती है उसका मीनिंग डेफिनेशन और टाइप्स ऑफ इंफ्लेशन ठीक है इस वीडियो में मैं डिस्कस करूंगा
कि इंफ्लेशन के असर क्या होते हैं इफेक्ट्स क्या होते हैं और जिस हिसाब से पेपर में लिखना है मैंने उसी हिसाब से
लिखा हुआ है तो चलिए शुरू कर फर्स्ट पॉइंट आ जाता है इफेक्ट ऑन इकोनॉमिक डेवलपमेंट अगर आपको पेपर में इफेक्ट्स ऑफ इंफ्लेशन
आते हैं तो आपने मीनिंग डेफिनेशन लिखना है फिर यह शुरू करना है समझ गई बात जो कि मैं पिछली वीडियो में ऑलरेडी अपलोड कर चुका
हूं तो फर्स्ट पॉइंट आ जाता है इफेक्ट ऑन इकोनॉमिक डेवलपमेंट रैपिड राइज इन प्राइसेस इज नॉट कंड्यूस टू इकोनॉमिक
डेवलपमेंट अगर लगातार प्राइसेस बढ़ते रहेंगे तो इकोनॉमिक डेवलपमेंट हिंडरलैंड सेविंग एंड इन्वेस्टमेंट लोग
सेविंग ही नहीं कर पाएंगे फर्द इन्वेस्टमेंट नहीं हो पाएगी क्योंकि डिमांड गिर जाएगी चीजों की तो इकोनॉमिक
डेवल ेंट को हैपर करती है इंफ्लेशन सेकंड पॉइंट आ जाता है इफेक्ट ऑन फॉरेन इन्वेस्टमेंट जिस कंट्री में काफी
इंफ्लेशन होगी वहां से कौन दूसरे कंट्री से पैसा लेके जाएगा उस कंट्री में जहां पे महंगाई चल रही है प्राइस राइज हैज एन
एडवर्स इफेक्ट ऑन द फॉरेन इन्वेस्टमेंट इन द कंट्री जो कंट्री है उसकी फॉरेन इन्वेस्टमेंट में प्राइस राइज का काफी
बुरा असर पड़ता है ठीक है फॉरेन इन्वेस्टर्स डू नॉट इन्वेस्ट इन दोस कंट्रीज वेयर द वैल्यू ऑफ मनी इज फॉलिंग
तो ऐसी कंट्रीज में जो फॉरेन इन्वेस्टर्स हैं वो अपना पैसा लगाना पसंद नहीं करते जहां पैसे की वैल्यू लगातार गिरती जा रही
है ठीक है ऐसी जगह पे कौन पैसा लगाना चाहेगा जहां पैसे की वैल्यू गिर रही है जहां लगातार महंगाई हो रही है ऑन अकाउंट
ऑफ राइज इन प्राइसेस वैल्यू ऑफ़ मनी फॉल्स एंड इन्वेस्टर्स सफर लॉसेस तो जैसे-जैसे महंगाई होगी मनी की वैल्यू लगातार गिरती
रहेगी और जो इन्वेस्टर्स हैं फॉरेन इन्वेस्टर्स हैं उनको लॉस होगा ठीक है नेक्स्ट आ जाता है वेज स्पायरल वेरी
इंपॉर्टेंट व्हेन द प्राइस राइज जब भी प्राइस बढ़ता है वर्कर्स डिमांड मोर वेजेस ध्यान से समझना इस बात को जब भी प्राइस
बढ़ता है तो वर्कर्स जो हैं वो कहते हैं कि हमारी वेजेस बढ़ाओ ठीक है एज अ रिजल्ट ऑफ इट प्राइसेस राइज स्टिल मोर जब वेजेस
बढ़ाते हैं तो होता क्या है डिमांड वेजेस के बढ़ने से डिमांड बढ़ जाती है डिमांड बढ़ती है तो प्राइस भी बढ़ जाते हैं समझ
गई बात वेजेस आर रेज्ड टू कंपनसेटर्स दस अ विशय अस वेज एंड प्राइस स्पायरल इन्फ्लिक्ट्स इन द इकॉनमी तो जब भी प्राइस
बढ़ता है तो जो लेबरर्स हैं वो कहते हैं हमारी तनखा बढ़ाओ हमारा गुजारा नहीं होता फलां फलां उनकी वेजेस बढ़ाते हैं वेजेस
बढ़ाते हैं तो वो डिमांड बढ़ा देते हैं डिमांड बढ़ाते हैं तो फिर से प्राइस बढ़ जाता है तो यह वेज प्राइस स्पायरल एक
तरीके से शुरू हो जाता है नेक्स्ट आ जाता है फोर्थ पॉइंट एडवर्स इफेक्ट ऑन द पीपल विद फिक्स्ड इनकम वो लोग जिनकी फिक्स्ड
इनकम है उनको तो बहुत बुरा असर पड़ेगा क्योंकि उनकी तनखा तो बढ़ी नहीं उल्टा प्राइस बढ़ गई प्राइस राइ हैज एन एडवर्स
इफेक्ट ऑन द पीपल विद फिक्स्ड इनकम जो फिक्स्ड इनकम के लोग हैं उनके ऊपर काफी बुरा असर पड़ता है प्राइस राइज का ऑन
अकाउंट ऑफ राइज इन प्राइस लेवल द रियल वैल्यू ऑफ देयर मॉनेटरी इनकम गोज डाउन जो उनकी मनी इनकम है उनकी वैल्यू जो उनकी
परचेसिंग पावर है वो लगातार गिर जाएगी ठीक है दे कैन बाय लेस गुड्स देन बिफोर वो पहले से कम गुड्स खरीद पाएंगे क्योंकि
महंगाई होगी देयर स्टैंडर्ड ऑफ लिविंग फॉल्स उनका जो स्टैंडर्ड ऑफ लिविंग है वो भी गिर जाएगा क्योंकि अब इनकम तो उनकी सेम
है मगर मार्केट में प्राइसेस बढ़ते जा रहे हैं तो वो गुड्स एंड सर्विसेस नहीं कंज्यूम कर पाएंगे जो पहले कर रहे थे
नेक्स्ट पॉइंट आ जाता है इंक्रीज इन कॉस्ट ऑफ प्रोजेक्ट्स सरकार ने जितने भी प्रोजेक्ट लगाए होंगे
फ्लाई ओवर डैम वगैरह वगैरह वो सब महंगे हो जाएंगे कॉस्ट ऑफ प्रोजेक्ट्स ऑफ़ बोथ द प्राइवेट एंड पब्लिक सेक्टर गोज अप ड्यू
टू राइज इन प्राइसेस तो सरकारी सेक्टर हो या प्राइवेट सेक्टर हो उन्होंने जो भी प्रोजेक्ट्स लगाए हुए हैं उनकी भी
प्राइसेस बढ़ जाएंगी एज अ रिजल्ट ऑफ इट द एक्चुअल आउटलेट ले होता है खर्चा ऑफ ईच प्रोजेक्ट एक्सीड्स द अमाउंट प्रो अमाउंट
ऑफ़ प्रपोज्ड आउटलेज उन्होंने खर्चा सोचा था कि भाई इतना होगा एक्सपेक्टेड वो उससे भी एक्सीड कर जाएगा खर्चा ज्यादा हो जाएगा
इट कॉसेस ंडर इन द कंप्लीशन ऑफ द प्रोजेक्ट्स तो जो भी प्रोजेक्ट्स लगे हुए हैं उनकी कंप्लीशन में प्रॉब्लम्स आ
जाएंगी अगर कंपनी के पास पैसे ना हुए या सरकार के पास फरदर पैसे ना हुए तो उनको फंड्स रेज करने पड़ेंगे जिससे और ज्यादा
डिले हो जाएगा नेक्स्ट आ जाता है अनइक्वल डिस्ट्रीब्यूशन ऑफ इनकम एंड वेल्थ अमीर अमीर होते रहते हैं और गरीब गरीब होते
रहते हैं अमीर कौन है जो सामान बेचने वाले हैं उनका सामान महंगा बिक रहा है और गरीब कौन है जो सामान खरीदने वाले हैं
प्रोड्यूसर्स एंड ट्रेडर्स आर द गनर्स ड्यूरिंग इंफ्लेशन जो प्रोड्यूसर्स होते और जो ट्रेडर्स होते हैं वो गनर्स होते
हैं जब भी महंगाई होती है कंसीक्वेंटली रिच बिकम रिचर एंड पुअर बिकम पूरर तो अमीर अमीर होता रहता है और गरीब गरीब होता रहता
है इट लीड्स टू द कंसंट्रेशन ऑफ वेल्थ इन द हैंड्स ऑफ फ्यू पर्स संस तो जब भी महंगाई होती है तो कुछ परसेंटेज ऑफ
पॉपुलेशन के पास सारा पैसा इकट्ठा हो जाता है और बाकी पॉपुलेशन लगातार गरीब होती रहती है इन इक्वलिटी ऑफ वेल्थ एंड इनकम
इंक्रीजस इसकी वजह से जो इनक्व कीज हैं वो लगातार बढ़ती रहती हैं नेक्स्ट आ जाता है एडवर्स बैलेंस ऑफ पेमेंट्स अगर दिमाग से
सोचो हमारे कंट्री में महंगाई हो गई तो हम बाहर से चाइना वगैरह से सस्ता इंपोर्ट कर लेंगे तो उससे हमारे बैलेंस ऑफ पेमेंट
खराब होंगे और हमारा माल महंगा है वो बाहर बिकेगा नहीं तो एक्सपोर्ट भी कम हो गए और इंपोर्ट भी बढ़ गए तो इससे तो बैलेंस ऑफ
पेमेंट खराब हो गी एक्सपोर्ट्स ऑफ द कंट्री एफ्लिक्टेड विद इंफ्लेशन बिकम मोर कॉस्टली एंड सो कैन नॉट क कैन नॉट कंपीट
विद एक्सपोर्ट्स ऑफ अदर कंट्रीज अगर हम जो भी माल एक्सपोर्ट करते हैं विद इन द कंट्री हमें वो महंगा पड़ रहा है तो बाहर
महंगा तो नहीं ना बेशक सकते क्योंकि अगर महंगा बेचेंगे तो इंटरनेशनल मार्केट में हमारा माल बिकेगा ही नहीं समझ गई बात तो
एक्सपोर्ट गिर जाएगा एक्सपोर्ट्स आर देयर फोर एडवर्सली इफेक्टेड जिसकी वजह से एक्सपोर्ट्स अफेक्टेड होते हैं सिंस
एक्सपोर्ट्स फेल टू इंक्रीज टू द डिजायर्ड एक्सटेंट बैलेंस ऑफ पेमेंट कंटिन्यूज टू बी अनफेवरेबल जब एक्सपोर्ट ही नहीं
बढ़ाएंगे तो बैलेंस ऑफ़ पेमेंट तो अनफेवरेबल होगी मोर ओवर इंपोर्ट भी बढ़ जाएंगे क्योंकि हमारे घर में वो सामान
महंगा बन रहा है उससे सस्ता हम बाहर से मंगवा रहे हैं चाइना वगैरह से तो इससे बैलेंस ऑफ पेमेंट उल्टा खराब ही होगी
नेक्स्ट आ जाता है एंड डिंग डिंग या फिर होल्डिंग कुछ भी कह सकते हो कि कुछ लोग माल होल्ड करके रख
लेते हैं और जब ऑफ सीजन आता है तो महंगे रेट प बेचते हैं ठीक है इसको कई बुक्स में होल्डिंग लिखा हुआ है कई बुक्स में
होल्डिंग भी लिखा हुआ है राइजिंग प्राइस एंकरेजेस स्पेक्युलेटिव मस विद द होप दैट दीज विल
बी सोल्ड इन फ्यूचर एट हाई प्राइसेस या हायर प्राइसेस तो वो होल्ड कर लेते हैं सामान को मार्केट से उठा लेते हैं किसी भी
रेट पे इसको होल्ड करना भी कहते हैं और होड करना भी कहते हैं दोनों ही कह सकते हैं ठीक है तो जब अ फ्यूचर में या ऑफ
सीज़न होता है तो महंगे रेट पे बेचते हैं तो इससे होल्डिंग या होल्डिंग या फिर स्पेकल की एक्टिविटीज बढ़ जाती हैं
नेक्स्ट आ जाता है करप्शन एंड मोरल डिग्रेडेशन वेरी इंपॉर्टेंट प्राइस राइज इन इंडिया हैज इनकरेज करप्शन एंड मोरल
डिग्रेडेशन इससे लोग बेईमान हो जाते हैं और करप्शन भी अ मतलब ऊपर उठ के आती है कि भाई सरकारी एंप्लॉयज कहेंगे यार अब तो
तनख्वाह में चलता नहीं अब तो महंगाई इतनी हो गई है तो कुछ ना कुछ तो गुजारा करने के लिए कुछ ना कुछ कुछ बेमा नियां तो करनी
पड़ेंगी ऑन अकाउंट ऑफ राइजिंग प्राइसेस सर्विस क्लास स्पेशली गवर्नमेंट एंप्लॉयज फाइंड इट डिफिकल्ट टू सरवाइव उनको सरवाइव
करना डिफिकल्ट हो जाता है दे ट्राई टू सप्लीमेंट देयर स्मॉल इनकम बाय एक्सेप्टिंग ब्राइब एंड अदर एंटी सोशल एंड
इम्मोरल एक्टिविटीज तो वो रिश्वत वगैरह खानी शुरू कर देंगे कि अब तनखा में तो चलता नहीं इट रिजल्ट्स इन रपें करप्शन एंड
मोरल इरोजन इससे करप्शन बढ़ जाएगी और मोरली डिग्रेड हो जाएगी इकॉनमी तो पूरी की पूरी इकॉनमी के लिए या कंट्री के लिए भी
काफी खराब सिचुएशन है आई होप यह वीडियो आपको पसंद आई होगी अगर पसंद आती है तो प्लीज लाइक शेयर एंड सब्सक्राइब नेक्स्ट
वीडियो में मैं डिस्कस करूंगा कॉसेस ऑफ इंफ्लेशन हेलो फ्रेंड्स आज मैं आपके साथ इकोनॉमिक्स का एक और टॉपिक लेके आया हूं
और टॉपिक का नाम है कॉसेस ऑफ इंफ्लेशन चैप्टर का नाम है इंफ्लेशन और इस चैप्टर के सारे के सारे लिंक्स आपको इस वीडियो के
डिस्क्रिप्शन में मिल जाएंगे शुरू करने से पहले बता दूं कि पिछली वीडियो मैंने अपलोड की थी के इंफ्लेशन का मीनिंग क्या है
डेफिनेशन क्या है टाइप्स क्या हैं फिर मैंने डिस्कस किया था कि इंफ्लेशन के जो इफेक्ट्स हैं वोह क्या होंगे और अब मैं
डिस्कस करूंगा कॉसेस ऑफ इंफ्लेशन क्या होते हैं तो चलिए शुरू करते हैं जब भी आपको कॉसेस ऑफ इंफ्लेशन का क्वेश्चन आएगा
तो आपको मीनिंग डेफिनेशन ऑफ इंफ्लेशन लिखना जरूरी है क्योंकि इंट्रोडक्शन में कुछ तो लिखोगे ना तो फर्स्ट पॉइंट आ जाता
है इंक्रीज इन मनी सप्लाई मनी सप्लाई के बढ़ने की वजह से भी महंगाई होती है कैसे देयर इज अ डायरेक्ट रिलेशनशिप बिटवीन द
मनी सप्लाई एंड द प्राइस लेवल प्राइस लेवल और मनी मनी सप्लाई में डायरेक्ट रिलेशन है इन इंडिया सप्लाई ऑफ मनी हैज इंक्रीजड मच
मोर देन द जीडीपी जीडीपी से भी कई गुना जो है मनी सप्लाई बढ़ा दी गई है बढ़ गी बढ़ गी कैसे बढ़ गी अभी बताता हूं टू मच
इंक्रीज इन सप्लाई ऑफ मनी हैज क्रिएटेडॉक्युमेंट्सफ्रैगमेंट सप्लाई बढ़ेगी तो बहुत पैसा हो जाएगा पैसा
इकॉनमी में ज्यादा होगा गुड्स एंड सर्विसेस कम बनेंगे तो अपने आप ही इंफ्लेशन होगी समझ गई बात नेक्स्ट आ जाता
है डेफिसिट फाइनेंसिंग वेरी इंपॉर्टेंट डेफिसिट फाइनेंसिंग रेफर्स टू मीटिंग द मीटिंग ऑफ डेफिसिट इन द गवर्नमेंट
एक्सपेंडिचर बाय प्रिंटिंग मोर करेंसी नोट्स अगर सरकार अपने घाटे को पूरा करने के लिए बजट के घाटे को पूरा करने के लिए
नोट छापे गी तो उससे भी मनी सप्लाई बढ़ेगी और महंगाई हो जाएगी एज अ कंसीक्वेंस या एज अ रिजल्ट सप्लाई ऑफ़ मनी इंक्रीजस जिसकी
वजह से मनी सप्लाई बढ़ती है इफ प्रोडक्शन डज नॉट इंक्रीज साइमल नियस अगर प्रोडक्शन उतनी ज्यादा ना बढ़े जितनी मनी सप्लाई बढ़
गई तो प्राइस तो बढ़ने ही बढ़ने हैं नेक्स्ट आ जाता है इंक्रीज इन पॉपुलेशन वेरी इंपॉर्टेंट इन 1951 टोटल पापुलेशन ऑफ
इंडिया वाज 34.5 करोड़ इन ईयर 2011 इट इंक्रीज टू 1 टू 1 करोड़ एंड इट कंटिन्यू टू इंक्रीज टिल डेट तो लगातार प्राइस
बढ़ते जा रहे हैं ठीक है प्राइस कह रहा हूं पापुलेशन बढ़ती जा रही है अब पापुलेशन ज्यादा हो गी तो डिमांड ज्यादा होगी और
डिमांड ज्यादा होगी तो प्राइस ज्यादा होंगे समझ गई बात ऑन अकाउंट ऑफ राइज इन पॉपुलेशन डिमांड फॉर गुड्स एंड सर्विसेस
जो भी गुड्स एंड सर्विसेस हैं वो स्टीप राइज करती है अगर पापुलेशन बढ़ेगी तो डिमांड भी बढ़ेगी इंक्रीज इन डिमांड लीड्स
टू इंक्रीज इन प्राइस जिसको डिमांड पुल इंफ्लेशन कहते हैं कि अगर डिमांड बढ़ेगी तो प्राइसेस भी बढ़ जाएंगे नेक्स्ट आ जाता
है सेट बैक टू प्रोडक्शन अगर किसी भी प्रोडक्शन प्रोसेस को या इंडस्ट्री को सेट पैक लगती है तो उससे वह प्रोडक्शन कम कर
देता है या बंद कर देता है जिसकी वजह से सप्लाई रुक जाती है फिर भी तो प्राइस बढ़ जाता है पेपर में कैसे लिखेंगे प्राइस
लेवल हैज आल्सो इंक्रीजड ऑन अकाउंट ऑफ फॉल इन प्रोडक्शन स्पेशली एग्रीकल्चरल प्रोडक्शन ऑन अ एग्रीकल्चर प्रोडक्शन
फ्रॉम टाइम टू टाइम तो लगातार जो एग्रीकल्चर प्रोडक्शन है वह सेटबैक की वजह से कम होती जा रही है जिसकी वजह से
प्रॉब्लम्स अराइज हो रही हैं इन इंडिया लार्ज पार्ट ऑफ एग्रीकल्चर इज डिपेंडेंट ऑन रेनफॉल अभी भी इरिगेशन फैसिलिटी इतनी
अच्छी नहीं है अभी भी जो एग्रीकल्चर है वो रेनफॉल पे डिपेंडेंट है सम टाइम्स देयर आर ड्रॉट्स सूखा पड़ जाता है एंड एट अदर
टाइम्स देयर आर फ्लड्स तो कभी-कभी कुछ सीजंस में सूखा होता है कुछ सीजन में फ्लड्स आ जाते हैं बोथ हैव अनफेवरेबल
इफेक्ट ऑन एग्रीकल्चर प्रोडक्शन दोनों का एग्रीकल्चर प्रोडक्शन पे बुरा असर पड़ता है सम एग्रो अ प्रोडक्ट्स आर यूज्ड एज
इनपुट्स इन द इंडस्ट्री तो एग्रो प्रोडक्ट्स जो हैं वो अ इंडस्ट्री के लिए रॉ मटेरियल भी तो प्रोवाइड करते हैं जो
एग्रो बेस्ड इंडस्ट्रीज हैं सो बिकॉज़ ऑफ लेस एग्रीकल्चरल प्रोडक्शन इंडस्ट्रीज आर आल्सो बेडली हिट अगर एग्रीकल्चर प्रोडक्शन
नहीं कम होएगी तो जो एग्रो बेस्ड इंडस्ट ीज उनको रॉ मटेरियल नहीं मिलेगा तो उन परे भी नेगेटिव असर पड़ेगा एज अ रिजल्ट या ऑल
दिस रिजल्ट्स इन लेस प्रोडक्शन विद व्हिच लीड्स टू राइज व्हिच लीड्स टू प्राइस राइज इन द इकॉनमी तो अगर ओवरऑल प्रोडक्शन कम
होएगी तो प्राइस राइज तो होना ही होना है समझ गई बात तो ये सप्लाई फैक्टर था नेक्स्ट आ जाता है इंक्रीज इन वेजेस और
सैलरीज वेरी इंपॉर्टेंट इन इंडिया एवरी प्राइस राइज इज फॉलो बाय अ वेज इंक्रीज कंपाउंडिंग द प्रॉब्लम ऑफ इंफ्लेशन इससे
इंफ्लेशन और ज्यादा बढ़ जाती है तो दिमाग से सोचो दिमाग से सोचना मैं अभी आपको बताता हूं जब भी वेजेस बढ़ती हैं वेजेस
बढ़ने से लोग क्या करते हैं डिमांड बढ़ा लेते हैं और जब डिमांड बढ़ा लेते हैं तो फिर प्राइस बढ़ जाती है तो ये तो एक विशय
सर्कल हो गया ना तो ऐसे सिचुएशंस आती रहती है इकॉनमी में एवरी वेज इंक्रीज रिजल्ट्स इन इंक्रीज इन द कॉस्ट ऑफ प्रोडक्शन ठीक
है अगर वेज बढ़ेगा डिमांड बढ़ेगी वेज बढ़ेगा तो कॉस्ट भी तो बढ़ेगी समझ गई बात कॉस्टिंग बढ़ेगी तो भी तो प्राइस बढ़ेगा
तो दोनों सिचुएशंस हम यहां पे डिस्कस कर सकते हैं इट लीड्स टू पुश इंफ्लेशन मोर ओवर इंक्रीज इन वेजेस रिजल्ट्स इन इंक्रीज
इन मनी सप्लाई विद द वर्कर्स सो वर्कर्स मेक मोर डिमांड तो वो डिमांड बढ़ा देते हैं जिसकी वजह से प्राइसेस बढ़ जाते हैं
ठीक है इट लीड्स टू डिमांड पुल डिमांड पुश इंफ्लेशन तो वेजेस के बढ़ने से कॉस्ट बढ़ जाती है कॉस्ट के बढ़ने से भी प्राइस बढ़
जाते हैं और वेजेस के बढ़ने से डिमांड बढ़ती है डिमांड बढ़ने से भी प्राइस बढ़ जाते हैं तो दोनों तरफ से डिमांड साइड से
भी और सप्लाई साइड से भी जब भी वेजेस बढ़ते हैं तो प्राइसेस बढ़ जाती हैं ठीक है नेक्स्ट आ जाता है एडम एडमिनिस्टर्ड
प्राइस वेरी इंपॉर्टेंट एडमिनिस्टर्ड प्राइस वो प्राइसेस होते हैं जो सरकार ने कंट्रोल करके रखे होते हैं इट रेफर्स टू द
प्राइस फिक्स्ड बाय द गवर्नमेंट फॉर एसेंशियल गुड्स जरूरी चीजों के प्राइस जो सरकार फिक्स करती है उसे एडमिनिस्टर्ड
प्राइस कहा जाता है प्राइस लेवल इन द कंट्री हैज आल्सो इंक्रीजड ऑन अकाउंट ऑफ द फ्रीक्वेंसी
प्राइस लाइक रेलवे फ्रेट कोल पेट्रोल डीजल नेचुरल गैस इलेक्ट्रिसिटी रेट्स एंड गुड्स प्रोड्यूस्ड बाय द पब्लिक सेक्टर
इंडस्ट्रीज तो सरकार लगातार यह जो एडमिनिस्टर्ड प्राइसेस हैं जो वेरियस एसेंशियल गुड्स हैं लाइक जो पेट्रोल डीजल
और नेचुरल गैस या इलेक्ट्रिसिटी के रेट ये लगातार बढ़ाती रहती है जिसकी वजह से प्रॉब्लम्स फेस होती हैं जिसकी वजह से जो
है और महंगाई हो जाती है क्योंकि एडमिनिस्टर्ड प्राइस बढ़ेंगे तो ओवरऑल प्राइसेस बढ़ने शुरू हो जाएंगे नेक्स्ट
पॉइंट डिस्कस करेंगे हाइक इन ग्लोबल ऑयल प्राइसेस ग्लोबल ऑयल प्राइसेस बढ़ेंगे तो ओवरऑल वर्ल्ड इकॉनमी में महंगाई हो जाएगी
ठीक है तो इसमें हम लिखेंगे प्राइस इन ऑलमोस्ट प्राइस इन ऑलमोस्ट ऑल कंट्रीज ऑफ द वर्ल्ड हैव बीन राइजिंग हर एक कंट्री
में प्राइस तो बढ़ ही रहे हैं दीज राइजिंग फॉरेन प्राइसेस हैव आल्सो इनफ्लुएंस्ड प्राइस राइज इन आवर कंट्री तो अगर वर्ल्ड
इकॉनमी में प्राइस बढ़ रहे हैं तो हमारी कंट्री में भी प्राइस बढ़ रहे हैं अब मेन रीजन क्या है सिंस 1980 क्रूड ऑयल
प्राइसेस हैव इंक्रीजड मेनी फोल्ड क्रूड ऑयल के प्राइस कई गुना बढ़ गए हैं प्राइसेस एंड प्राइसेस ऑफ ऑलमोस्ट ऑल रॉ
मैटेरियल्स इंपोर्टेड फ्रॉम अब्रॉड हैव गोन गॉन अप वेरी हाई तो अगर लगातार क्रूड ऑयल अ बढ़ता रहेगा ऑयल प्राइस बढ़ते
रहेंगे तो ऑलमोस्ट ऑल जो सेक्टर्स हैं जिसमें अ जो फ्यूल का इस्तेमाल होता है पेट्रोल डीजल का इस्तेमाल होता है या
पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल होता है सब में प्राइस राइज होगा इसकी रीजंस है गल्फ वॉर होगी लीबिया क्राइसिस ईरान
क्राइसिस अ ये सारे के सारे वजह हैं कि क्रूड ऑयल के प्राइसेस बढ़ जाते हैं तो जब भी ये अरब कंट्रीज जो हैं ये जंग में कहीं
ना कहीं इवॉल्व हो जाती हैं या कोई अनसर्टेनटीज जाती है तो क्रूड ऑयल के प्राइस शूट अप कर जाते हैं ठीक है नेक्स्ट
आ जाता है इनडायरेक्ट टैक्सेस वेरी इंपोर्टेंट प्राइसेस इन इंडिया आल्सो राइज ऑन अकाउंट ऑफ राइज इन इनडायरेक्ट टैक्सेस
लाइक जीएसटी एक्साइज ड्यूटी कस्टम ड्यूटी तो प्रोड्यूसर के ऊपर सरकार यह चीजें लगाती है प्रोड्यूसर प्राइस में ऐड करके
हमारे साथ हमारे से निकलवा लेता है तो इनडायरेक्ट टैक्सेस भी एक मेन वजह है प्राइसेस के राइज होने का नेक्स्ट आ जाता
है अनफेवरेबल टर्म्स ऑफ़ ट्रेड वेरी इंपॉर्टेंट टर्म्स ऑफ ट्रेड रेफर्स टू द नंबर ऑफ यूनिट्स इंपोर्टेड दैट कैन बी
ऑब्टेंड इन एक्सचेंज ऑफ वन यूनिट ऑफ एक्सपोर्ट एक यूनिट ऑफ एक्सपोर्ट को कर के लिए हमने कितने इंपोर्ट किए उसे टर्म्स ऑफ
ट्रेड कहते हैं टर्म्स ऑफ ट्रेड को और ज्यादा डिटेल में मैंने फुल चैप्टर में एक्सप्लेन किया हुआ है इंटरनेशनल
इकोनॉमिक्स की प्लेलिस्ट के अंदर उसमें मैंने बताया टर्म्स ऑफ़ ट्रेड क्या होते हैं टाइप्स क्या होते हैं कौन-कौन से
फैक्टर्स हैं जो टर्म्स ऑफ ट्रेड को असर डालते हैं इफ वन यूनिट ऑफ एक्सपोर्ट गेट्स लेस देन वन यूनिट ऑफ इंपोर्ट इन एक्सचेंज
इट इज अ सिचुएशन ऑफ एडवर्स टर्म्स ऑफ़ ट्रेड अगर हम एक यूनिट एक्सपोर्ट करते हैं और उसके बदले एक से कम यूनिट इंपोर्ट कर
पाते हैं तो इसका मतलब यह है कि हमारे जो बैलेंस जो टर्म्स ऑफ ट्रेड है वो एडवर्स चल रही है ठीक है फिर से मैं समझाता हूं
आपको इफ वन यूनिट ऑफ एक्सपोर्ट गेट्स लेस दन वन यूनिट ऑफ इंपोर्ट हमने एक्सपोर्ट किया एक यूनिट एग्जांपल के तौर पे ₹1 ठीक
है और उससे जो पैसे मिले हम उससे जो इंपोर्ट करा रहे हैं वो वन यूनिट से भी कम है तो मतलब हमारे बैलेंस ऑफ पेमेंट सॉरी
जो जो टर्म्स ऑफ ट्रेड है वो खराब है एज अ रिजल्ट ऑफ इट लेस क्वांटम ऑफ गुड्स विल बी अवेलेबल इन द मार्केट तो जो हम बाहर बेचते
हैं उससे जो पैसा लेके आते हैं उससे जो हम बाहर खरीदने जाते हैं उससे तो बहुत कम गुड्स आ रहे हैं हमारे को तो उससे हमारी
मार्केट में गुड्स की अवेलेबिलिटी कम है इदर द कंट्री हैज टू एक्सपोर्ट मोर यूनिट्स टू अदर कंट्रीज और इट हैज टू बी
कंटेंडेड कंटेंटेड विद लेस नंबर ऑफ इंपोर्टेड यूनिट्स फ्रॉम अदर कंट्रीज तो या तो हमें अपने एक्सपोर्ट बढ़ाने पड़ेंगे
या फिर बाहर से जो सामान आ रहा है उसे कम करना पड़ेगा इन इंडिया टर्म्स ऑफ ट्रेड हैव बीन अनफेवरेबल इंडिया में टर्म्स ऑफ
ट्रेड लगातार अनफेवरेबल चल रहे हैं कई डिकेड से ठीक है दिस हैज लेड टु इंक्रीज इन प्राइसेज तो बाहर से जब उतना सामान ही
नहीं आ पाएगा तो मार्केट में सप्लाई लिमिटेड रहेगी तो प्राइसेज राइज़ होंगे ही होंगे नेक्स्ट आ जाता है रिमूवल ऑफ़
प्राइसेज एंड डिस्ट्रीब्यूशन कंट्रोल वेरी इंपॉर्टेंट इन द इनिशियल फेज़ ऑफ़ इकोनॉमिक प्लानिंग द सिस्टम ऑफ़ प्राइस
कंट्रोल एंड डिस्ट्रीब्यूशन वाज इंट्रोड्यूस्ड ऑन अ वाइड स्केल जब शुरुआत में हमारे देश आज़ाद हुआ हमारा कंट्री
आज़ाद हुआ तो प्लानिंग जब इकोनॉमिक प्लानिंग के शुरुआती दौर में प्राइस कंट्रोल रखे गए कि इससे ज़्यादा प्राइस
नहीं होगा डिस्ट्रीब्यूशन कंट्रोल्स रखे गए ठीक है इन द लेटर प्लांस मेनी ऑफ दीज कंट्रोल्स वर ग्रैजुअली डिस कंटिन्यूड तो
1991 के बाद जब न्यू इकोनॉमिक पॉलिसी आई तो ये जो प्राइस कंट्रोल्स थे और डिस्ट्रीब्यूशन कंट्रोल्स थे इनको हटा
दिया गया नाउ प्राइस ऑफ दीज गुड्स आर फिक्स्ड बाय द मार्केट फोर्सेस दैट इज़ डिमांड एंड सप्लाई अब प्राइसेज कौन सेट
करता है डिमांड एंड सप्लाई इट हैज लेड टू राइज इन द प्राइस ऑफ सम एसेंशियल प्रोडक्ट्स तो एसेंशियल गुड्स जो हैं उनके
प्राइसेज लगातार बढ़ते जा रहे हैं क्योंकि सरकार ने अब कंट्रोल्स हटा लिए और सबको डिमांड सप्लाई पे छोड़ दिया है नेक्स्ट है
एक्सपेक्टेशन ऑफ फ्यूचर राइज इन प्राइस वेरी इंपोर्टेंट मेनी फैक्टर्स इनसाइड एंड आउटसाइड ऑफ द कंट्री गिव्स राइज टू द
एक्सपेक्टेशन ऑफ फ्यूचर इंक्रीज इन प्राइस दैट इज़ फेयर ऑफ बैड मॉनसून फेयर ऑफ फॉल इन द इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन डाउट्स अबाउट
द नॉन अवेलेबिलिटी ऑफ़ एसेंशियल इंपोर्ट्स फियर ऑफ वॉर रैपिड इंक्रीज इन प्राइसेस इन अदर कंट्रीज ऑफ़ द वर्ल्ड एटस तो कुछ ऐसे
इवेंट्स होते हैं जिनकी वजह से जो प्रोड्यूसर्स हैं या जो सप्लायर्स हैं वह अपने दिमाग में फ्यूचर के लिए कुछ
एक्सपेक्टशंस रख लेते हैं जै जैसे कि फियर ऑफ बैड मानसून अगर हमें लगेगा कि मानसून अच्छा नहीं आएगा तो हम होड कर लेंगे सामान
को जिसकी वजह से मार्केट में सप्लाई कम हो सकती है प्राइसेस बढ़ सकते हैं फियर ऑफ फॉल इन द इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन क्या पता
हम बीइंग प्रोड्यूसर या फिर सेलर एक्सपेक्ट कर रहे हैं कि अगले साल या अगले सीजन में प्रोडक्शन कम होएगी या फिर नॉन
अवेलेबिलिटी ऑफ इंपोर्ट्स बाहर से इंपोर्ट नहीं आएंगे या फेयर ऑफ वॉर हो जाएगी या फिर रैपिड इंक्रीज इन द प्राइसेस इन अदर
कंट्रीज अदर कंट्रीज में प्राइसेस काफी बढ़ जाएंगे ये सारी एप्प्रिहेंशंस को देखें दीज अप्र हेंस लेड टू होल्डिंग एंड
द राइजिंग ट्रेंड ऑफ राइजिंग ट्रेंड ऑफ प्राइस इज फर्द स्ट्रेंड थंड एंड प्राइस कंटिन्यू टू राइज तो ये सारी जो सिचुएशंस
है ये ये डिमांड करती हैं कि जो सेलर्स हैं और प्रोड्यूसर वो ज्यादा से ज्यादा होल्ड करें होल्ड करेंगे तो मार्केट में
सप्लाई और कम हो जाती है जिसकी वजह से प्राइसेस और ज्यादा बढ़ जाते हैं नेक्स्ट है राइजिंग इनकम एंड ग्रोथ ऑफ मिडिल क्लास
मिडिल क्लास की जैसे जैसे इनकम लगातार बढ़ती जा रही है वैसे-वैसे उनकी डिमांड बढ़ती जा रही है डिमांड बढ़ेगी तो प्राइस
अपने आप ही बढ़ेगा इन रिसेंट इयर्स इंडियाज ग्रोथ रेट ऑफ नेशनल इनकम एंड पर कैपिटा इनकम हैज बीन फिनोम रिसेंट डिकेड्स
से देखा जाए तो इंडिया की जो ग्रोथ रेट है पर कैपिटा इनकम और नेशनल इनकम में वो काफी अच्छी रही है राइजिंग इनकम एंड ग्रोइंग
मिडिल क्लास हैज लेड टू सिग्निफिकेंट इंक्रीज इन डिमांड ऑफ प्राइमरी प्रोडक्ट्स लाइक डेरी प्रोडक्ट्स फ्रूट्स वेजिटेबल्स
पल्सेस एडिबल ऑयल्स अ इंडस्ट्रियल प्रोडक्ट्स एटस तो जैसे-जैसे मिडिल क्लास की इनकम बढ़ेगी वो खाने पीने पे ज्यादा
खर्च करेंगे और टेक्नोलॉजी पे और गैजेट्स पे ज्यादा पैसे खर्च करेंगे पता ही है आपको उनकी डिमांड बढ़ेगी लद द सप्लाई ऑफ
इंडस्ट्रियल प्रोडक्ट्स हैज इंक्रीजड बट देयर हैज नॉट बीन प्रोपोर्शनेट इंक्रीज इन द सप्लाई ऑफ प्राइमरी प्रोडक्ट्स व्हिच
लेड टू व्हिच हैज लेड टू सिग्निफिकेंट राइज इन द प्राइस ऑफ फूड प्रोडक्ट्स तो जैसे-जैसे मिडिल क्लास बढ़ रही है उनकी
डिमांड्स भी बढ़ रही हैं डिमांड बढ़ रही है मगर एग्रीकल्चर गुड्स की प्रोडक्शन इतनी तेजी से तो बढ़ नहीं पा रही तो
एग्रीकल्चर गुड्स ही महंगे हो जाएंगे तो सारी की सारी जो इकॉनमी है उसमें महगाई चली जाएगी नेक्स्ट इंक्रीज इन
एक्सपेंडिचर वेरी इंपॉर्टेंट गवर्नमेंट इज़ पेंडिंग ह्यूज अमाउंट ऑन नॉन डेवलपमेंट एक्सपेंडिचर्स लाइक अ ग्रांट्स
सब्सिडीज डिफेंस एक्सपेंडिचर इलेक्शन एक्सपेंसेस एट्स तो सरकार इतना फालतू खर्चा कर रही है इन चीजों के ऊपर ऑल दीज
नॉन प्रोडक्टिव एक्सपेंसेस पुट अ लार्ज मनी इन द हैंड्स ऑफ जनरल पब्लिक व्हिच इन टर्न लीड्स टू इंक्रीज इन डिमांड व्हिच
लीड्स टू डिमांड पुश इंफ्लेशन तो जब सरकार इतना ज्यादा फालतू का खर्चा करेगी लोगों के पास पैसा ज्यादा आएगा मनी सप्लाई
बढ़ेगी लोग डिमांड करेंगे तो प्राइसेस भी ऑटोमेटिक बढ़ेंगे नेक्स्ट आ जाता है ब्रांड्स लेड इंफ्लेशन लार्ज कंपनीज
प्रमोट ब्रांड्स ऑफ देर प्रोडक्ट्स बड़ी-बड़ी कंपनियां अपने प्रोडक्ट्स को प्रमोट करती हैं दे स्पेंड हैवली ऑन
ब्रांड प्रमोशन ब्रांड प्रमोशन के ऊपर भी वो अच्छा खासा पैसा खर्च करती हैं ठीक है इन टर्न दीज कंपनीज चार्ज वेरी हाई प्राइस
या ह्यूज प्राइस फॉर देयर प्रीमियम ब्रांड्स इट लीड्स टू इंक्रीज इन प्राइस तो जब ब्रांडेड सामान इतना महंगा हो जाता
है तो उसकी वजह से भी मार्केट में प्राइस राइज हो जाता है नेक्स्ट है ब्लैक मनी वेरी इंपॉर्टेंट अनअकाउंटेड मनी प्लेज
प्लेज अ सिग्निफिकेंट रोल इन एग्रीवेट द लेवल ऑफ इंफ्लेशन जिसके पास दो नंबर का पैसा होता है या ब्लैक मनी होता है काला
पैसा होता है वह खर्चा करता है कैश में दबा दब ठीक है तो वो कैश में खर्चे का तो डिमांड बढ़ेगी डिमांड बढ़ेगी तो इंफ्लेशन
होगी वी हैव अ पैरेलल इकॉनमी इन आवर कंट्री ऑन अकाउंट ऑफ दिस ब्लैक मनी ये ब्लैक मनी की वजह से हमारी इकॉनमी में या
हर इकॉनमी में वर्ल्ड इकॉनमी में एक पैरेलल इकॉनमी चल रही होती है जो सिर्फ कैश का लेनदेन करती है सो फार गवर्नमेंट
हैज नॉट बीन एबल टू टैकल द प्रॉब्लम ऑफ ब्लैक मनी और पैरेलल इकॉनमी तो गवर्नमेंट इसको टैकल नहीं कर पाई कंट्रोल नहीं कर
पाई हमारे कंट्री के नहीं हर पूरे वर्ल्ड का यही हाल है कि पूरे वर्ल्ड में जितनी भी गवर्नमेंट्स हैं वह ब्लैक मनी को
कंट्रोल करना चाहती है मगर ब्लैक मनी को कंट्रोल नहीं कर पाती ठीक है किसी भी रीज़न की वजह से पॉलिटिकल मोटिव नॉन
पॉलिटिकल मोटिव कुछ भी हो सकते हैं ठीक है दोज हु पोजेस ब्लैक मनी स्पेंड इट ऑन लग्जरियस एंड या लग्जरी लग्जरीज के ऊपर
खर्च करते हैं या लग्जरियस आइटम्स खरीदते हैं एंड कंस्पिक अस कंसंट का खर्चा करते हैं ठीक है जो जरूरी नहीं है इट बिकम एन
इंपॉर्टेंट फैक्टर ऑफ प्राइस राइज तो इसकी वजह से भी काफी प्राइस राइज होता है क्योंकि वो कैश में डील करते हैं और मनी
सप्लाई काफी बढ़ जाती है जब वह खर्चा करते हैं इकॉनमी में जिसकी वजह से अ जो है मनी सप्लाई के बढ़ने से डिमांड बढ़ जाती है और
फिर प्राइस बढ़ जाते हैं तो मनी ब्लैक मनी का होना भी काफी इंपॉर्टेंट फैक्टर है महंगाई के लिए ठीक है तो यह सारे के सारे
पॉइंट्स थे जिसमें मैंने बताया कि अ इंफ्लेशन के कॉसेस क्या हैं ठीक है नेक्स्ट वीडियो में मैं डिस्कस करूंगा
गवर्नमेंट मेजर्स टू कंट्रोल इंफ्लेशन सरकार ने क्या-क्या किया इंफ्लेशन को कंट्रोल करने के लिए ठीक
है हेलो फ्रेंड्स आज मैं आपके साथ इकोनॉमिक्स का एक और टॉपिक लेके आया हूं और टॉपिक का नाम है गवर्नमेंट मेजर्स टू
कंट्रोल इंफ्लेशन इसे पिछली वीडियोस में मैंने डिस्कस किया था इंफ्लेशन का मीनिंग क्या है डेफिनेशन क्या है टाइप्स क्या हैं
उसके बाद कॉसेस क्या हैं और इफेक्ट्स क्या हैं यह वीडियो मैं ऑलरेडी अपलोड कर चुका हूं और इस वीडियो में मैं डिस्कस करूंगा
कि गवर्नमेंट ने क्या-क्या किया इंफ्लेशन को कंट्रोल करने के लिए लॉन्ग क्वेश्चन के हिसाब से है जिस हिसाब से पेपर में लिखना
है मैंने उसी हिसाब से अटेंप्ट किया हुआ है चलिए शुरू करते हैं प्राइसेस इन इंडिया हैव बीन राइजिंग ऑलमोस्ट कंसिस्टेंटली
लगातार प्राइसेस बढ़ते जा रहे हैं द मेजर्स टेकन बाय द गवर्नमेंट फ्रॉम टाइम टू टाइम टू स्टेबलाइज द प्राइसेस आर
लिस्टेड बिलो तो सरकार ने टाइम टू टाइम प्राइसेस को कंट्रोल करने के लिए कौन से मेजर्स लिए वो नीचे लिखे हुए हैं पॉइंट
वाइज तो सबसे पहला आ जाता है मॉनेटरी मेजर्स वेरी इंपॉर्टेंट इन ऑर्डर टू अचीव द ऑब्जेक्टिव ऑफ प्राइस स्टेबिल आरबीआई
मतलब रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया हैज रेगुलेटेड द सप्लाई ऑफ़ मनी तो आरबीआई ने या सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया ने क्या किया जो आरबीआई है
उसने मनी सप्लाई को रेगुलेट करने के लिए कई स्टेप्स उठाए आरबीआई हैज यूज्ड वेरियस इंस्ट्रूमेंट्स टू कंट्रोल प्राइस लेवल इन
द इकॉनमी कौन-कौन से लाइक बैंक रेट को कंट्रोल किया सीआरआर को कंट्रोल किया एसएलआर को कंट्रोल किया रेपो रेट रिवर्स
रेपो रेट ये सारी चीजों से प्राइसेस को कंट्रोल करने की कोशिश की अब यह सारी चीजें क्या होती हैं मैंने ऑलरेडी मॉनेटरी
पॉलिसी का एक फुल चैप्टर अपलोड किया हुआ है अगर आपको वो चाहिए होगा तो आप मुझे कमेंट कर देना मैं आपके साथ लिंक शेयर कर
दूंगा मोर क्रेडिट इज गिवन फॉर प्रोडक्टिव पर्पसस ज्यादा लोन सिर्फ प्रोडक्टिव पर्पस के लिए दिया जाएगा सेवरल रिस्ट्रिक्शंस
हैव बीन इंपोज्ड ऑन क्रेडिट फॉर अनपटडाउनेबल शादी के लिए लोन वगैरह ले लेना या कोई और
काम के लिए लोन लेना जिसे मनी सप्लाई बढ़ेगी और प्राइस राइज होता है सिर्फ प्रोडक्टिव पर्पसस के लिए ही लोन को
रिस्ट्रिक्टर देती है आरबीआई नेक्स्ट आ जाता है फिस्कल मेजर्स वेरी इंपॉर्टेंट गवर्नमेंट हैज अडॉप्टेड सेवरल
फिस्कल मेजर्स टू चेक इंफ्लेशन क्या किया सरकार ने दीज आर ए रिडक्शन इन अननेसेसरी एक्सपेंडिचर सरकार ने फालतू का खर्चा कम
किया अब किया नहीं किया यह आप खुद ही सोचो ठीक है बी एडिशनल टैक्सेस टू लोअर द परचेसिंग पावर ऑफ द पीपल सरकार ने फालतू
टैक्स लगाए ताकि लोगों की परचेसिंग पावर कम हो जाए लोग डिमांड कम करेंगे तो मार्केट में पैसा कम आएगा नेक्स्ट ऊपर से
डिमांड पुल इंफ्लेशन भी खत्म हो जाएगी सी पॉइंट आ जाता है डिसीजन टू रिड्यूस द क्वांटम ऑफ डेफिसिट फाइनेंसिंग सरकार ने
डेफिसिट फाइनेंसिंग को कम करने की कोशिश की कि सरकार अपने घाटे को कम करे नेक्स्ट एजमन फ्रॉम द टैक्स एंड ग्रांट्स ऑफ
सब्सिडीज टू एंकरेज प्रोडक्शन सरकार ने जो जो एंप्शन दी हुई थी के ग्रांट्स एंड सब्सिडीज वगैरह दी थी उसको भी कम कर दिया
चेकिंग ऑफ अननेसेसरी कंसंट एंड अनप्रिटेंशस सरकार जो अननेसेसरी कंसंट है उसके ऊपर टैक्स लगाती है
प्रोडक्टिव एक्सपेंडिचर है लग्जरियस है उनके ऊपर भी जो सरकार टैक्स वगैरह लगाती है नेक्स्ट इसमें आ जाता है लंचिंग ऑफ
वेरियस स्कीम्स टू प्रमोट सेविंग सेविंग्स को इनकरेज करने के लिए सरकार लगातार स्कीम्स लेके आती है बंड्स लेके आती है
ताकि लोग उसमें पैसे जमा कराए लोगों के पास पैसे कम रह जाए बट दीज गवर्नमेंट मेजर्स डिड नॉट मीट विद मच सक्सेस सरकार
ने यह काम किए मगर इतना ज्यादा कोई फायदा नहीं हुआ वन एवर गवर्नमेंट अटेम्प्टेड टू स्केल डाउन पब्लिक
इन्वेस्टमेंट डिप्रेशन एंड अनइंप्लॉयमेंट सिचुएशन एरोज ऑन द इन द ऑर्गेनाइज सेक्टर ऑफ द इकॉनमी अगर सरकार टैक्स वगैरह लगाएगी
यह सब डिस्क करने की कोशिश करेगी सब्सिडी नहीं देगी तो इकॉनमी में इन्वेस्टमेंट नहीं होगी इन्वेस्टमेंट नहीं होगी तो
डिप्रेशन आ जाएगा इकॉनमी में या अनइंप्लॉयमेंट फैल जाएगा ऑन द कांट्रेरी व्हेन एवर मोर मैंने यह क्या लिखा है मैं
ये हटा देता हूं व्हेन एवर मोर टैक्सेस वर लेवर्ड अ प्राइस राइस प्राइस रोज तो मतलब यही है कि सरकार ज्यादा टैक्स वगैरह लगाती
है प्राइस बढ़ जाते हैं और सरकार यह सारे काम नहीं करती
मतलब मनी सप्लाई को कंट्रोल करने की कोशिश करती है तो इकॉनमी में इन्वेस्टमेंट जो है वह गिर जाती है ठीक है इन्वेस्टमेंट गिर
जाएगी तो अनइंप्लॉयमेंट पॉवर्टी एंड डिप्रेशन वगैरह आ जाएगा ठीक है थर्ड पॉइंट आ जाता है इंक्रीज इन एग्रीकल्चरल एंड
इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन यह जो है यह यह मेरे को इसको हटाना पड़ेगा यह पता नहीं कैसे लग गया ठीक है तो इसको मैं फिर से
जूम सेट कर देता हूं इंक्रीज इन एग्री कल्चरल एंड इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन तो सरकार कोशिश करती है कि एग्रीकल्चर
प्रोडक्शन और इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन बढ़े जिससे सप्लाई की शॉर्टेज ना हो और इकॉनमी में प्राइस ना पड़े ड्यूरिंग द पीरियड ऑफ़
प्लानिंग गवर्नमेंट टूक सेवरल मेजर्स टू इंक्रीज इंडस्ट्रियल एंड एग्रीकल्चर प्रोडक्शन प्लानिंग के टाइम पे सरकार ने
एग्रीकल्चर एंड इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन को बढ़ाने के लिए काफी कुछ किया इन ऑर्डर टू इंक्रीज एग्रीकल्चर प्रोडक्शन इरिगेशन
फैसिलिटी को एक्सपेंड किया ठीक है यूज़ ऑफ केमिकल फर्टिलाइजर्स एंड हाई हिल्डिंग वैरायटी सीड्स लेके आए सिंपल वर्ड्स में
ग्रीन रेवोल्यूशन ठीक है एग्रीकल्चर प्रोडक्टिविटी को लगातार बढ़ाया ऑल दीज मेजर्स अकाउंट फॉर इंक्रीज इन द फूड
ग्रेंस प्रोडक्शन टू 2975 लख टंस इन 2019 2020 एज अगेंस्ट 550 लाख टंस इन
1951 तो सिंपल वर्ड्स में यह डाटा बताता है कि सरकार ने प्लानिंग के थ्रू लगातार एग्रीकल्चर प्रोडक्शन एंड प्रोडक्टिविटी
को बढ़ाने की कोशिश की इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट हैज बीन इनडीड नोटिसेबल इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट भी काफी हुई है
कैसे मेनी न्यू बेसिक इंडस्ट्रीज लाइक आयरन एंड स्टील सीमेंट हैवी इलेक्ट्रिकल गुड्स हैवी मशीन टूल्स एटस हैव बीन
एस्टेब्लिश तो कई इंडस्ट्रीज भी सरकार ने एस्टेब्लिश की प्रोडक्शन ऑफ बोथ द कंज्यूमर एंड द कैपिटल गुड्स इंडस्ट्री
हैज बीन इंक्रीज सब्सटेंशियली तो जो कंज्यूमर गुड्स एंड कैपिटल गुड्स इंडस्ट्रीज हैं उनको भी लगातार जो ऐसी
इंडस्ट्रीज को बनाया गया जिसमें कैपिटल गुड्स भी ज्यादा बने और कंज्यूमर गुड्स भी ज्यादा बने उनको इनकरेज किया गया
गवर्नमेंट हैज टेकन सेवरल मेजर्स टू प्रमोट द डेवलप ऑफ स्मॉल स्केल एंड कॉटेज इंडस्ट्रीज सरकार ने स्मॉल स्केल एंड
कॉटेज इंडस्ट्रीज को भी डेवलप करने के लिए टाइम टू टाइम सब्सिडीज दी इन स्पाइट ऑफ ऑल दीज मेजर्स द प्रोडक्शन ऑफ एग्रीकल्चरल
एंड इंडस्ट्रियल गुड्स इज लेस देन द डिमांड जितनी डिमांड है उससे कम ही बन पा रहे हैं सरकार ने काफी जोर तो लगा लिया है
मगर उतना ज्यादा फायदा नहीं हो पा रहा जितना होना चाहिए नेक्स्ट आ जाता है रिस्ट्रिक्शंस ऑन एक्सपोर्ट ऑफ एसेंशियल
कंज्यूमर गुड्स या कंजमपट्टी कंज्यूमर गुड्स की हमारे कंट्री में कमी हो जाती है तो सरकार उनके एक्सपोर्ट पे
बैन लगा देती है या रिस्ट्रिक्टर देती है गवर्नमेंट हैज इंपोज्ड एक्सपोर्ट ड्यूटीज ऑन सेवरल एसेंशियल कंज्यूमर गुड्स या
कंसंट गुड्स एंड एक्सपोर्ट ऑफ सर्टेन गुड्स सर्टेन अदर गुड्स हैज बीन बैंड तो कुछ सिचुएशन में इसको बैन भी कर दिया गया
एक्सपोर्ट को क्योंकि घर में तो है नहीं बाहर क्या बेचना एट टाइम्स गवर्नमेंट हैज बैंड एक्सपोर्ट ऑफ नॉन बासमती राइस व्हीट
एडिबल ऑयल्स पल्सेस सीमेंट स्टील एट्स इन चीजों पे क कभी ना कभी बैन लगाया हुआ है सरकार ने ठीक है दीज स्टेप्स वर टेकन टू
इंक्रीज द सप्लाई ऑफ दीज गुड्स इन द डोमेस्टिक इकॉनमी सो दैट द डोमेस्टिक प्राइसेस डू नॉट इंक्रीज मच तो सरकार यह
सारा काम क्यों करती है ताकि बाहर ना बेचे विद इन द कंट्री रहे समान सप्लाई बढ़े और सबको यह चीजें अवेलेबल रहे कि ताकि
शॉर्टेज के टाइम पे तो इनका प्राइस बढ़ जाता है नेक्स्ट आ जाता है इंपोर्ट ऑफ एसेंशियल कंज्यूमर गुड्स या फिर एसेंशियल
कंसंट गुड्स जब भी हमारे कंट्री में किसी भी चीज जो कंज्यूमर गुड्स हैं उनकी कमी हो जाती है तो बाहर से इंपोर्ट करा देते हैं
ताकि सप्लाई मेंटेन रह सके और प्राइसेज इतने ज्यादा शूट अप ना हो जाए ठीक है गवर्नमेंट हैज इनकरेज्ड अ सॉरी गवर्नमेंट
हैज अरेंज्ड फॉर द इंपोर्ट ऑफ एसेंशियल गुड्स टू मीट द डोमेस्टिक शॉर्टेज अगर डोमेस्टिक इकॉनमी में किसी भी कंज्यूमर
गुड की शॉर्टेज हो रही है तो सरकार अरेंज करवाती कि लोग इंपोर्ट कर सके वो इट विल लीड टू इंक्रीज इन द सप्लाई ऑफ गुड्स इन द
डोमेस्टिक इकॉनमी इससे डोमेस्टिक इकॉनमी में जो स जो पर्टिकुलर गुड है उसकी सप्लाई बढ़ जाएगी इन टर्न इट विल रिजल्ट इन
डिक्रीज इन द प्राइस उससे प्राइस उल्टा गिर जाएंगे एग्जांपल क्या है एडिबल ऑइल्स शुगर व्ट एंड पल्सेस आर बीइंग इंपोर्टेड
इन लार्ज क्वांटिटीज इंपोर्ट ड्यूटी ऑन एसेंशियल गुड्स हैज बीन रिमूव्ड या रिड्यूस्ड कम कर देंगे या टोटली खत्म कर
देंगे एट टाइम्स गवर्नमेंट हैज मेड द इंपोर्ट ऑफ वीट पल्सेस एडिबल ऑयल शुगर अनियंस एंड मेज ड्यूटी फ्री ऐसा भी
कभी-कभी हुआ है कि यह सारी चीजें सरकार ने ड्यूटी फ्री कर दी जब हमारे कंट्री में इन चीजों की प्रोडक्शन काफी कम रही तो ताकि
मार्केट में प्राइस बढ़े ना नेक्स्ट आ जाता है प्रमोटिंग कोऑपरेटिव कंज्यूमर स्टोर्स ऐसे स्टोर्स को प्रमोट करना
कोऑपरेटिव स्टोर्स को ताकि सस्ते में सामान मिल सके कंज्यूमर्स को ठीक है तो गवर्नमेंट हैज प्रमोटेड सेटिंग अप ऑफ
कोऑपरेटिव कंज्यूमर स्टोर्स इसमें क्या होगा दीज स्टोर्स सप्लाई एसेंशियल गुड्स एट लो प्राइसेस वो सस्ते में माल बेचते
हैं दीज स्टोर्स आल्सो रेगुलेट द सप्लाई ऑफ एसेंशियल गुड्स व्हिच आर इन शॉर्ट सप्लाई जो भी जो गुड्स है शॉर्ट सप्लाई
में सरकार यह जो अपने राशन के डिपो बनाए हुए हैं सरकार ने उनके थ्रू यह जो शॉर्टेज होती है जिन जिन चीजों की उन की सप्लाई
करते हैं ताकि मार्केट में शॉर्टेज ना पड़े रेगुलर सप्लाई ऑफ़ दीज गुड्स हेल्प टू चेक देयर प्राइस राइज तो अगर रेगुलर
सप्लाई रखेंगे तो जो प्राइस राइज है वो चेक हो सकता है ठीक है लगातार प्राइस नहीं पढ़ेंगे नेक्स्ट पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन
सिस्टम पीडीएस वेरी इंपॉर्टेंट ये अलग से भी क्वेश्चन आ सकता है दो नंबर में गवर्नमेंट हैज ट्राइड टू मेक पीडीएस मोर
एक्सटेंसिव एंड एफिशिएंट सरकार ने पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम को ज्यादा एक्सटेंसिव पूरे कंट्री में फैलाया और
एफिशिएंट बनाया एज मेनी एज 545 5000 फेयर प्राइस शॉप सरकार ने खोली जिनको राशन शॉप्स भी कहा जाता है ठीक है ताकि वो
डिस्ट्रीब्यूटर एसेंशियल कमोडिटीज को ताकि प्राइस राइस ना हो और गरीबों को और मिडिल क्लास को सस्ते में सामान मिल जाए
अरेंजमेंट्स हैव आल्सो बीन मेड टू डिस्ट्रीब्यूटर घी कैरोसिन ऑयल वीट राइस पल्सेस शुगर एटस थ्रू दीज शॉप्स तो इन
शॉप्स के थ्रू सरकार ने वेजिटेबल घी जो होता है अ डालडा वगैरह ठीक है या केरोसीन ऑयल और जो व्हीट राइस है प वगैरह शुगर
वगैरह इसको भी डिस्ट्रीब्यूटर है सरकार इन शॉप्स के थ्रू नाउ गवर्नमेंट इज क कंप्यूटराइज वेरियस ऑपरेशंस ऑफ़ द पब्लिक
डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम सरकार पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम के जितने भी ऑपरेशंस है उनको कंप्यूटराइज कर रही है
आधार कार्ड वगैरह के साथ जोड़ रही है इट विल हेल्प टू इंप्रूव एफिशिएंसी इन द वर्किंग ऑफ फेयर प्राइस शॉप्स तो जो फेयर
प्राइस शॉप्स हैं उनकी एफिशिएंसी अ जो काम करने की एफिशिएंसी है इससे बढ़ेगी मतलब करप्शन के चांसेस कम हो जाएंगे नेक्स्ट आ
जाता है चेक ऑन होल्डिंग वेरी इंपॉर्टेंट इन ऑर्डर टू डिस्क होल्डिंग एंड ब्लैक मार्केटिंग गवर्नमेंट हैज फिक्स्ड द
मैक्सिमम लिमिट ऑफ स्टॉक ऑफ सेवरल कमोडिटीज अंडर एसेंशियल कमोडिटीज एक्ट तो एसेंशियल कमोडिटीज एक्ट के अंडर सरकार कह
देती है कि इन इन चीजों को इससे ज्यादा क्वांटिटी में स्टॉक नहीं किया जा सकता दिस एक्ट इनेबल्ड द गवनमेंट टू टेक
स्ट्रिक्ट मेजर्स अगेंस्ट होल्डर्स तो होल्डर्स के खिलाफ अगर सरकार की बात ना मानी तो स्ट्रिक्ट एक्शन होंगे और उनके
खिलाफ सख्त से सख्त कारवाई हो सकती है ताकि मार्केट में उन चीजों की कमी ना हो नेक्स्ट आ जाता है बफर स्टॉक वेरी
इंपोर्टेंट गवर्नमेंट बिल्ड्स बफर स्टॉक ऑफ एसेंशियल गुड्स लाइक फूड ग्रेन सरकार अपने पास एक स्टॉक करके रख लेती है फूड
ग्रेंस का ताकि कोई इमरजेंसी हो तो सरकार माल मार्केट में अ बेच सके या फेंक सके ताकि सप्लाई मेंटेन रहे व्हेन द क्रॉप्स
आर गुड गवर्नमेंट बाय फूड ग्रेंस एट अ फिक्स्ड प्रोक्योरमेंट प्राइस एंड स्टॉक इट सरकार किसानों से एमएसपी पे सामान ले
लेती है मिनिमम स्पोर्ट प्राइस पे और उसको स्टॉक कर लेती है व्हेन प्राइस ऑफ फूड ग्रेन शो अ राइजिंग टेंडेंसी गवर्नमेंट
सेल्स बफर स्टॉक एट अ गिवन इशू प्राइस तो सरकार देखती है कि अगर मार्केट में प्राइस बढ़ रहा है या टेंडेंसी है कि मार्केट में
प्राइस बढ़ेगा तो वही जो स्टॉक करके रखा हुआ है माल वह मार्केट में बेच देती है जो भी प्राइस पे खरीदा था उसी प्राइस पे दिस
प्रीवेंट्स द प्राइस फ्रॉम राइजिंग स्पेशली ड्यूरिंग द पीरियड ऑफ शॉर्टेज ऑफ फूड तो जब भी फूड की शॉर्टेज होती है उस
टाइम पे प्राइस ना बढ़े तो सरकार ने जो स्टॉक करके रखा हुआ माल वह लगातार मार्केट में डालती रहती है ताकि मार्केट में
प्राइस राइज ना हो जाए नेक्स्ट है इंस्टीट्यूशनल मेजर्स वेरी इंपॉर्टेंट विद व्यू टू स्टेबलाइजिंग प्राइसेस ऑफ फूड
ग्रेंस कॉटन जूट एटस गवर्नमेंट हैज सेट अप मेनी इंस्टीट्यूशंस लाइक फूड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया कॉटन कॉरपोरेशन जूट कॉर्पोरेशन एटस
सरकार ने प्राइसेस अननेसेसरीली बढ़ ना जाएं इसलिए कई इंस्टिट्यूशन बनाए हुए हैं जिसमें एफसीआई फूड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया आ
जाता है कॉटन कॉरपोरेशन जूट कॉरपोरेशन एटस ये इंस्टीट्यूशंस आ जाते हैं दीज इंस्टीट्यूशंस मेंटेन प्रॉपर इक्विलियम
बिटवीन डिमांड एंड सप्लाई ऑफ फूड ग्रेस एंड रॉ मैटेरियल्स टू सीक टू अचीव द ऑब्जेक्टिव ऑफ़ प्राइस स्टेबिलिटी इन
ऑर्गेनाइजेशन या इंस्टीट्यूशंस का मेन मकसद ही यही है कि डिमांड एंड सप्लाई को कंट्रोल करके मार्केट में प्राइस को
कंट्रोल किया जा सके नेक्स्ट आ जाता है पॉपुलेशन पॉलिसी यह तो सबसे इंपॉर्टेंट है ऑल अटेम्प्ट्स एट चेकिंग द राइज इन
प्राइसेस विल कम टू हल्ट इफ नो अ कंक्रीट स्टेप आर टेकन टू चेक द ग्रोथ रेट ऑफ पॉपुलेशन अगर पॉपुलेशन को ही कंट्रोल नहीं
किया तो जितने मर्जी स्टेप ले लो डिमांड तो बढ़नी ही बढ़नी है गवर्नमेंट इज सीज्ड विद द प्रॉब्लम गवर्नमेंट इज सीज्ड विद द
प्रॉब्लम सरकार यह प्रॉ से सीज हो जाएगी खत्म हो जाएगी कहानी इतनी पॉपुलेशन है उसके लिए इतनी ज्यादा डिमांड बढ़ जाएगी कि
प्राइसेस बहुत ज्यादा बढ़ जाएंगे टॉप प्रायरिटीज बीइंग अकॉर्डेड टू वेरियस स्कीम्स ऑफ द फैमिली वेलफेयर तो सरकार को
फैमिली वेलफेयर स्कीम्स लेके आनी चाहिए या कोई ऐसी स्कीम्स लेके आनी चाहिए जिससे कि पॉपुलेशन की जो ग्रोथ रेट है वो कंट्रोल
हो जाए ठीक है तो यह सारे फैक्टर्स थे जिनकी मदद से हम प्राइस राइज को कंट्रोल कर सकते हैं ठीक है आई होप ये वीडियो आपको
पसंद आई होगी अगर पसंद आती है तो प्लीज लाइक शेयर एंड सब्सक्राइब नेक्स्ट टॉपिक मैं डिस्कस करूंगा आपके साथ सजेशंस टू चेक
इंफ्लेशन कि क्या-क्या करना चाहिए सरकार को इंफ्लेशन को कंट्रोल करने के लिए हेलो फ्रेंड्स आज मैं आपके साथ
इकोनॉमिक्स का एक और टॉपिक लेके आया हूं और टॉपिक का नाम है सजेशंस टू चेक इंफ्लेशन इंफ्लेशन को चेक करने के लिए
क्या सजेशंस है तो चलिए शुरू करते हैं विदाउट वेस्टिंग एनी टाइम शुरू करने से पहले बता दूं कि चैप्टर का नाम है
इंफ्लेशन और इस चैप्टर के सारे लिंक्स आपको इस वीडियो के डिस्क्रिप्शन में मिल जाएंगे तो चलिए शुरू करते हैं प्राइस राइज
हैज एडवर्स इफेक्ट ऑन वर्कर्स एंप्लॉयज लैंडलेस लेबरर्स एग्रीकल्चरल लेबरर्स एटस आपको तो पता है प्राइस राइज से बहुत बुरा
असर पड़ता है जो मिडिल क्लास है और लोअर मिडिल क्लास है टू चेक राइज एंड प्राइस फॉलोइंग मेजर्स आर सजेस्टेड तो प्राइस को
कंट्रोल करने के लिए फॉलोइंग मेजर्स को सजेस्ट किया गया है सबसे पहला चेक ऑन मनी सप्लाई भाई मनी सप्लाई को कंट्रोल करो
अन्य वा नोट ना छापोल गई बात और सरकार को ऐसी आरबीआई को रिस्ट्रिक्शंस लगानी चाहिए कि बहुत ज्यादा क्रेडिट की सप्लाई ना हो
जाए मनी सप्लाई एंड प्राइस लेवल आर डायरेक्टली रिलेटेड जो मनी सप्लाई बढ़ेगा उतना प्राइस लेवल बढ़ जाएगा चाहे सेम
प्रोपोर्शन से ना भी बढ़े ठीक है टू चेक राइज इन प्राइस इट इज एसेंशियल दैट द सप्लाई ऑफ़ मनी इज अलाउड टू एक्सपेंड इज
नॉट अलाउड टू एक्सपेंड तो अगर प्राइसेस को कंट्रोल करना है तो मनी सप्लाई मनी सप्लाई को भी कंट्रोल करना पड़ेगा सप्लाई ऑफ़ मनी
शुड बी रिस्ट्रिक्टेड क्रेडिट पॉलिसी ऑफ़ द बैंक्स शुड बी टाइटन यह नहीं कि हर दो हर किसी पर्पस के लिए लोन दे जा रहे हैं
लोन दे जा रहे हैं जिसकी वजह से मनी सप्लाई बढ़ेगी मनी सप्लाई बढ़ेगी लोगों के पास पैसा ज्यादा होगा डिमांड करेंगे
प्राइस बढ़ जाएंगे तो पहला पॉइंट आ जाता है चेक ऑन मनी सप्लाई नेक्स्ट लेस डेफिसिट फाइनेंसिंग सरकार कम घाटा करे घाटा करती
है उसको पूरा करने के लिए नोट छाप देती है द अमाउंट ऑफ डेफिसिट फाइनेंसिंग शुड बी रिड्यूस्ड टू द बेयर मिनिमम मिनिमम से
मिनिमम डेफिसिट करे सरकार बाय लविंग टैक्सेस ऑन एग्रीकल्चर सेक्टर रिड्यूस अ अन एसेंशियल या नॉन एसेंशियल
एक्सपेंडिचर विथ ड्राइंग ऑफ सब्सिडीज एटस द गवर्नमेंट कैन ब्रिंग डाउन द क्वांटम ऑफ डेफिसिट फाइनेंसिंग तो सरकार अपना खर्चा
कम करे ना खर्चा कम करेगी तो क्या होगा खर्चा कम करने से डेफिसिट फाइनेंसिंग कंट्रोल में आएगी और सरकार को डेफिसिट
फाइनेंसिंग को पूरा करने के लिए नए नोट नहीं छापने पड़ेंगे नेक्स्ट है इंक्रीज इन एग्रीकल्चर प्रोडक्शन प्रोडक्शन बढ़ेगी
सप्लाई बढ़ेगी सप्लाई बढ़ेगी तो प्राइसेस कंट्रोल आ जाएंगे टू चेक राइज इन प्राइसेस इट इज नेसेसरी टू प्रमोट ग्रोथ ऑफ
एग्रीकल्चर प्रोडक्शन एग्रीकल्चर प्रोडक्शन को बढ़ाना चाहिए लद विद द प्रोडक्शन ऑफ फूड ग्रेंस विद द प्रोडक्शन
ऑफ फूड ग्रेंस स्पेशल एंड शुड बी मेड टू प्रोड्यूस मोर ऑयल सीड्स पल्सेस शुगर केन जूट एटस तो जो नॉन फूड
आइटम्स है उनकी भी प्रोडक्शन बढ़ानी चाहिए जिससे जो रॉ मटेरियल है जो एग्रो बेस्ड इंडस्ट्रीज हैं उनको सस्ता मिल जाएगा
एफर्ट शुड बी मेड टू इंक्रीज एग्रीकल्चर प्रोडक्टिविटी बाय यूजिंग इंप्रूव्ड सीड्स अ गुड क्वालिटी फर्टिलाइजर्स बाय प्रोवाइड
बेटर इरिगेशन फैसिलिटी एटस तो सरकार को जो ग्रीन रेवोल्यूशन में जो सरकार ने स्टेप्स लिए थे जैसे हाई डिंग वैरायटी सीड्स देना
क्वालिटी ऑफ फर्टिलाइजर बढ़ाना ना या इरिगेशन फैसिलिटी वगैरह अच्छे तरीके से देना उससे भी एग्रीकल्चर प्रोडक्शन बढ़ेगी
बाय इंप्रूविंग एग्रीकल्चर प्रोडक्टिविटी डिमांड एंड सप्लाई गैप्स इन फूड आइटम्स कैन बी रिड्यूस्ड तो जो फूड आइटम्स में
डिमांड और सप्लाई में गैप चल रहा है वह कम हो जाएगा इट विल हेल्प टू चेक इंफ्लेशन इन फ़ूड आइटम्स तो फ़ूड आइटम्स में इंफ्लेशन
को कंट्रोल किया जा सकता है एग्रीकल्चर की प्रोडक्शन को बढ़ा के नेक्स्ट आ जाता है इंक्रीज इन द इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन
इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन को भी बढ़ाओ इट इज़ वेरी इंपॉर्टेंट टू इंक्रीज इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन एट लो कॉस्ट कॉस्टिंग कम होनी
चाहिए इन द शॉर्ट रन अ प्रॉपर प्रोडक्शन पॉलिसी शुड बी अडॉप्टेड फॉर फर्द यूटिलाइजेशन ऑफ प्रोडक्शन कैपेसिटी इन
इंडस्ट्रियल यूनिट्स तो इंडस्ट्रियल यूनिट्स अपने फुल प्रोडक्शन कैपेसिटी पे काम करें इस हिसाब से सरकार को कोई पॉलिसी
लानी चाहिए विद द व्यू टू इंक्रीजिंग इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन सम लॉन्ग रन मेजर्स शुड आल्सो बी एंप्लॉयड दैट इज कौन-कौन से
सेटिंग अप न्यू इंडस्ट्रियल यूनिट्स फॉर द प्रोडक्शन ऑफ मास कंसंट गुड्स जो मास कंज्यूमर गुड्स हैं जो सब कंज्यूम करते
हैं उनके उनकी प्रोडक्शन बढ़ाओ बी ग्रेटर लायंस शुड बी प्लेस्क ऑफ़ डोमेस्टिक रिसोर्सेस रदर दन इंपोर्ट्स बजाय इसके कि
बाहर से चीज़ें मंगवा हो विद इन द कंट्री वह चीज़ें बनाने की कोशिश करनी चाहिए और सी आ जाता है इसमें स्मॉल स्केल एंड कॉटेज
इंडस्ट्रीज शुड बी डेवलप अ डेवलप्ड एक्स एक्सपीडिश्यसली सिंपल वर्ड्स में जो सरकार है उसको स्मॉल स्केल एंड कॉटेज इंडस्ट्रीज
को इनकरेज करना चाहिए सब्सिडी वगैरह देनी चाहिए यूज़ ऑफ़ मॉडर्न टेक्नोलॉजी करो ताकि कॉस्टिंग कम हो जाए और एफिशिएंसी बढ़
जाए ताकि इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन बढ़े नेक्स्ट आ जाता है नेशनल वेज पॉलिसी वेरी इंपॉर्टेंट वेजेस बढ़ा देते हैं हर तीसरे
दिन वेजेस बढ़ाएंगे डिमांड बढ़ जाएगी प्राइस बढ़ जाएंगे तो वेजेस बढ़ाने से कॉस्टिंग भी बढ़ जाती है फिर भी प्राइस
बढ़ जाते हैं कॉपरेशन ऑफ द लेबरर्स मस्ट बी सॉट इन अ मस्ट बी सॉट टू इंक्रीज द प्रोडक्शन एंड चेक राइज इन प्राइसेस इन द
कंट्री तो जो वर्कर्स हैं लेबरर्स हैं उनका भी साथ हमें बहुत जरूरी चाहिए ताकि हम प्रोडक्शन को इंक्रीज कर सकें और जो
प्राइस राइज है उसको चेक कर सकें स्ट्राइक्स एंड लॉकआउटस शुड बी बैंड इनको बैन कर दे देना चाहिए क्योंकि काम नहीं
होगा सप्लाई कम हो जाएगी अ नेशनल लेबर पॉलिसी शुड बी एनफोर्सड इन द कंट्री एंड वेजेस शुड बी लिंक्ड विद द प्रोडक्टिविटी
दैट इज मोर वेजेस शुड बी गिवन फॉर मोर प्रोडक्टिव प्रोडक्टिविटी एंड लेस वेजेस शुड बी गिवन फॉर लेस प्रोडक्टिविटी जो
बंदा ज्यादा काम करता है उसको ज्यादा तनखा दो जो बंदा कम काम करता है उसे कम तनखा दो वेजेस को प्रोडक्टिविटी के साथ लिंक कर
देना चाहिए ठीक है तो नेशनल वेज पॉलिसी लेके आओ जिससे हर तीसरे दिन तनखा है ना बढ़ानी पड़े जिसकी वजह से जो है वेज
इंड्यूस्ड इंफ्लेशन भी होती है नेक्स्ट आ जाता है एप्रोप्रियेट अ उनकी तनख्वा है उन परे टैक्स लगा दो
इट्स एडवांटेज विल बी दैट प्रोपेंसिटी टू कंज्यूम ऑफ द रिच फार्मर्स विल गो डाउन जो रिच फार्मर्स लविश लाइफ जी रहे हैं उनकी
जो अ जो कंजमपट्टी चर टू मिनिमम जो सरकारी खर्चा है फालतू का
खर्चा जो सरकार कर रही है अननेसेसरी उसको कम करना चाहिए गवर्नमेंट शुड आल्सो मेक एफर्ट्स टू कट डाउन इट्स नॉन डेवलपमेंट
एक्सपेंडिचर्स सो सरकार के जो नॉन डेवलपमेंट एक्सपेंडिचर्स हैं उनको को भी कम कर देना चाहिए गवर्नमेंट शुड एंकरेज
सेविंग एंड इन्वेस्टमेंट बाय मेकिंग यूज़ ऑफ इट्स फिस्कल वेपंस तो सरकार अपने वेपंस के थ्रू जो इंस्ट्रूमेंट्स ऑफ फिस्कल
पॉलिसी है उसके थ्रू इन्वेस्टमेंट एंड सेविंग को इनकरेज करें दिस इंक्रीजड इन्वेस्टमेंट विल लीड टू इंक्रीज इन
प्रोडक्शन इन द इकॉनमी एंड हेंस इट विल हेल्प टू चेक राइजिंग प्राइसेस या इंक्रीजिंग प्राइस सरकार इन्वेस्टमेंट को
इनकरेज करने के लिए बंड्स वगैरह लेके आए या कोई ऐसी स्कीम लेके आए सब्सिडी दे जिससे कि कोई पर्टिकुलर एरियाज में
इन्वेस्टमेंट्स वगैरह बढ़े इसकी वजह से क्या होगा प्रोडक्शन बढ़ेगी और प्रोडक्शन बढ़ेगी तो जो प्राइस राइज है वो कंट्रोल
में आ जाएगा नेक्स्ट डिस्ट्रीब्यूशन थ्रू फेयर प्राइस शॉप्स टू चेक राइज इन प्राइस एसेंशियल गुड्स शुड बी डिस्ट्रीब्यूटर
अमंग द पुअर एट लो प्राइस थ्रू फेयर प्राइस शॉप्स जिसको राशन शॉप्स भी कहा जाता है ऐसी दुकानों के थ्रू सरकार को
अपना जो नेसेसिटीज हैं जो नेसेसरी गुड्स हैं उनको गरीबों को सस्ते रेटों प देना चाहिए सच शॉप्स शुड बी ओपन इन लार्ज
नंबर्स एट विलेज एंड ंड लेवल एंड इन बैकवर्ड रीजंस जो सिटीज वगैरह है जो बैक जो सिटीज का बैकवर्ड एरिया है जहां पर
गरीब लोग रहते हैं डाउन डन लोग रहते हैं वहां पर यह दुकानें खोलनी चाहिए सरकार को और विलेजेस एंड टाउंस में खोलनी चाहिए
ताकि सरकार सस्ते में सामान दे सके एट प्रेजेंट देयर आर अबाउट 54500 फेयर प्राइस शॉप्स इन द कंट्री ठीक
है मगर पुअर बहुत ज्यादा है तो और खोलनी चाहिए सरकार को चेकिंग ब्लैक मनी वेरी इंपॉर्टेंट होल्डर्स ऑफ ब्लैक मनी आर
लार्जली रिस्पांसिबल फॉर प्राइस हाइक प्राइस राइज की एक मेन वजह यह भी है ब्लैक मनी इज एक्टिवली स्पेंट ऑन कंसंट व्हिच
रिजल्ट्स इन द इंक्रीज डिमांड अब जिसके पास ब्लैक मनी होगा कैश होगा वो और कैश में होगा वो तो
सरकार ने डिमॉनेटाइजेशन भी की थी मगर उससे भी कोई इतना ज्यादा फर्क नहीं पड़ पाया सीरियस मेजर्स शुड बी अडॉप्टेड टू चेक
करप्शन व्हिच इज एन इंपॉर्टेंट कॉज ऑफ ब्लैक मनी तो करप्शन को कंट्रोल करना जरूरी है क्योंकि करप्शन होती है तभी तो
ब्लैक मनी होता है स्ट्रिक्ट एक्शंस या स्ट्रिक्ट एक्शन शुड बी टेकन अगेंस्ट द पर्सन पोजेस ब्लैक मनी जिनके पास ब्लैक
मनी होता है उनको कई गुना फाइन लगाया जाए ताकि लोगों में डर बैठे और ब्लैक मनी व ना रखें नेक्स्ट कंज्यूमर्स ऑर्गेनाइजेशंस
कंज्यूमर्स कैन आल्सो ऑर्गेनाइज देम सेल्व टू प्रोटेस्ट अगेंस्ट द राइजिंग प्राइस तो जब भी प्राइस राइज होगा कंज्यूमर को आपस
में ऑर्गेनाइज होना चाहिए और प्रोटेस्ट्स करने चाहिए इफ कंज्यूमर्स कट डाउन देयर डिमांड सब्स क्वेंट टू प्राइस राइज एंड
लॉज देयर प्रोटेस्ट विद द प्रोड्यूसर्स एंड ट्रेडर्स द प्राइसेस विल नॉट राइज सो इजली अगर कंज्यूमर्स आपस में यूनाइट हो
जाएं और जो भी प्राइस राइज हो रहा है उस चीज को खरीदना बंद कर दें या कम कर दें तो दुकानदारों का सामान तो बिकेगा ही नहीं और
जब नहीं बिकेगा तो उनको प्राइस राइज करना ही प्राइस फॉल करना ही पड़ेगा प्राइस को रिड्यूस करना ही पड़ेगा तो टू अचीव दिस
ऑब्जेक्टिव ऑल इंडिया कंज्यूमर सोसाइटी कंज्यूमर्स गाइडेंस सोसाइटी एटस हैव बीन एस्टेब्लिश तो इसके लिए यह सोसाइटीज वगैरह
बनाई हुई है मोर कंज्यूमर फोरम्स शुड बी सेट अप इन वेरियस पार्ट्स ऑफ द कंट्री ताकि वो प्राइस राइज को चेक कर सके अपनी
डेमोंस्ट्रेट दे सके या हड़ताल वगैरह कर सके कि भाई प्राइसेस बहुत बढ़ गया हैं नेक्स्ट है चेक ऑन होल्डिंग गवर्नमेंट शुड
कंडक्ट मोर रेड्स टू कर्ब होल्डिंग स्पेक्युलेटिंग सरकार इनको कंट्रोल करेगी तो मार्केट में समान ज्यादा होगा सप्लाई
ज्यादा होगी सप्लाई ज्यादा होगी तो प्राइस कंट्रोल में रहेंगे स्ट्रिक्ट पेनल्टी शुड बी इंपोज्ड ऑन होल्डर्स जो होल्डर्स हैं
और स्पेक्युलेटिंग लगानी चाहिए नेक्स्ट आ जाता है कंट्रोल ओवर पॉपुलेशन
ग्रोथ रेट ऑफ पॉपुलेशन इन इंडिया शुड बी ब्रॉट डाउन पॉपुलेशन का जो ग्रोथ रेट है उसको कम करना जरूरी है विद फॉल इन ग्रोथ
रेट ऑफ पॉपुलेशन डिमांड विल आल्सो फॉल डिमांड भी गिर जाएगी फॉल इन डिमांड विल अरेस्ट प्राइस राइ तो इससे प्राइस राइज का
जो स्पीड है वो कम हो जाएगी या क्या पता खत्म ही हो जाए इन दिस रिस्पेक्ट गवर्नमेंट शुड मेक एक्सटेंसिव पब्लिसिटी
ऑफ फैमिली प्लानिंग प्रोग्राम्स ताकि लोग जो है पॉपुलेशन को कंट्रोल करें नेक्स्ट आ जाता है इंपोर्ट ऑफ एसेंशियल गुड्स जब भी
हमारे कंट्री में चीजों की कमी है तो बाहर से इंपोर्ट करा दो ताकि सप्लाई मेंटेन रहे फॉरेन एक्सचेंज रिजर्व्स शुड बी यूज्ड टू
इंपोर्ट एसेंशियल गुड्स तो जो भी फॉरेन एक्सचेंज रिजर्व्स हैं हमारे उनको इस्तेमाल करके जो एसेंशियल गुड्स हैं उनको
इंपोर्ट करना चाहिए इट विल रिजल्ट इन इंक्रीज इन द सप्लाई ऑफ दीज गुड्स सच इंपोर्ट्स विल गो अ लॉन्ग वे इन चेकिंग द
राइज इन प्राइस तो जब भी हम एसेंशियल गुड्स बाहर से मंगवा लेंगे सस्ते रेटों पे तो मार्केट में सप्लाई की कमी नहीं होगी
और प्राइस राइज कंट्रोल में आ जाएगा नेक्स्ट आ जाता है रिस्ट्रिक्शंस ऑन द एक्सपोर्ट ऑफ एसेंशियल कंज्यूमर गुड्स या
कंसंट गुड्स जो हमारे घर में है नहीं आप बाहर जाके बेच रहे हो तो ऐसे गुड्स की जो एक्सपोर्ट है उसको रिस्ट्रिक्टर एक्सपोर्ट
ऑफ मास कंसंट गुड्स लाइक अनियंस वेजिटेबल सिमेंट शुगर एटस शुड बी बैंड इनको टोटली बैन ही कर देना चाहिए इट विल रिजल्ट इन
इंक्रीजड सप्लाई ऑफ़ एसेंशियल गुड्स इन डोमेस्टिक इकॉनमी एंड सो डोमेस्टिक प्राइसेज विल नॉट राइज़ मच तो मार्केट में
जब यह चीज़ों की अवेलेबिलिटी रहेगी एक्सपोर्ट कम या ना होंगे तो मार्केट में अवेलेबिलिटी रहेगी सप्लाई बढ़ी रहेगी तो
फिर प्राइसेस राइज कंट्रोल में आ जाएगा प्राइस राइज़ कंट्रोल में आ जाएगा नेक्स्ट आ जाता है कंट्रोल ओवर इंक्रीज इन
एडमिनिस्टर्ड प्राइस सरकार ने जो एसेंशियल चीजों के जो प्राइस कंट्रोल रखे हुए हैं उनको भी कंट्रोल में रखे यह ना हो पेट्रोल
और सलेंडर के रेट लगातार बढ़ाती र इलेक्ट्रिसिटी के तो प्राइस राइज तो होगा ही होगा गवर्नमेंट शुड रिड्यूस
एडमिनिस्टर्ड प्राइसेस जो भी सरकार ने एडमिनिस्टर्ड प्राइस हैं सेट किए हुए उनको और रिड्यूस करना चाहिए लो एडमिनिस्टर्ड
प्राइस विल हेल्प टू चेक द एक्सेसिव इंक्रीज इन प्राइस टू अदर कमोडिटीज अगर सरकार ये जरूरी एसेंशियल कमोडिटीज जो हैं
बिजली पेट्रोल डीजल इन चीजों के सिलेंडर इन चीजों के प्राइस को कंट्रोल कर लेगी तो बाकी चीजों
के प्राइस को भी कंट्रोल करने में आसानी होगी तो कंक्लूजन शॉर्ट प्रॉब्लम ऑफ राइज एंड प्राइस हैज पुट द इकोनॉमिस्ट ऑल ओवर द
वर्ल्ड इन अ ग्रेट फिक्स काफी प्रॉब्लम में ला दिया है कैसे इट इज नॉट ओनली एन इकोनॉमिक प्रॉब्लम बट पॉलिटिकल सोशल एंड
इंटरनेशनल प्रॉब्लम आल्सो एंड सो इट हैज गॉट टू बी टैकल्ड सीरियसली तो यह सिर्फ एक इकोनॉमिक प्रॉब्लम नहीं है ये एक सोशल
प्रॉब्लम पॉलिटिकल प्रॉब्लम ओवर ओवर द पीरियड ऑफ टाइम कुछ ज्यादा ही कंट्रीज में फैल जाए तो इंटरनेशनल प्रॉब्लम भी हो हो
सकती है तो इसको कंट्रोल करना बहुत जरूरी है इफ द राइज इन प्राइस इज नॉट चेक्ड इट माइट एंडेंजर द वेरी एजिस्ट हैंस ऑफ कैपिट
ज्म नॉट ओनली इन इंडिया बट थ्रू आउट द वर्ल्ड अगर प्राइस राइज को कंट्रोल नहीं किया गया इंफ्लेशन को कंट्रोल नहीं किया
गया तो कैपिट ज्म के ऊपर काफी क्वेश्चन मार्क आ जाएगा और लोग कैपिटल ज्म के रेजीम से तंग पड़ के
उसको चेंज भी कर सकते हैं आई होप ये वीडियो आपको पसंद आई होगी अगर पसंद आती है तो प्लीज लाइक शेयर एंड सब्सक्राइब टेक
केयर बायबाय कर
Heads up!
This summary and transcript were automatically generated using AI with the Free YouTube Transcript Summary Tool by LunaNotes.
Generate a summary for freeRelated Summaries

Understanding Inflation: Key Factors and Economic Policies
Explore inflation, its causes, impacts, and the monetary policies shaping economic stability.

Chapter 7.1: Understanding Money in Microeconomics
In this video, we delve into Chapter 7.1 of introductory microeconomics, focusing on the asset market, money, and price. We explore the importance of money as a medium of exchange, unit of account, and store of value, along with its functions and historical context.

Understanding the Quantity Theory of Money: Fisher's Approach Explained
In this video, Vidhi Gavra breaks down the Quantity Theory of Money, focusing on Fisher's equation, its assumptions, and criticisms. The theory illustrates the relationship between money supply, price levels, and the value of money, providing a concise overview of its implications in economics.

Understanding Monetary Policy: Objectives and Instruments Explained
In this video, Minisetti provides a comprehensive overview of monetary policy, detailing its meaning, objectives, and instruments. Key objectives include price stability, economic growth, unemployment reduction, and addressing economic inequalities, while instruments are categorized into quantitative and qualitative types.

Understanding Financial Instruments: A Comprehensive Overview
This video provides an in-depth discussion on financial instruments, their definitions, and their roles in various transactions. It covers key concepts such as negotiation, transfer, and the implications of different types of instruments in financial dealings.
Most Viewed Summaries

Mastering Inpainting with Stable Diffusion: Fix Mistakes and Enhance Your Images
Learn to fix mistakes and enhance images with Stable Diffusion's inpainting features effectively.

A Comprehensive Guide to Using Stable Diffusion Forge UI
Explore the Stable Diffusion Forge UI, customizable settings, models, and more to enhance your image generation experience.

How to Use ChatGPT to Summarize YouTube Videos Efficiently
Learn how to summarize YouTube videos with ChatGPT in just a few simple steps.

Ultimate Guide to Installing Forge UI and Flowing with Flux Models
Learn how to install Forge UI and explore various Flux models efficiently in this detailed guide.

How to Install and Configure Forge: A New Stable Diffusion Web UI
Learn to install and configure the new Forge web UI for Stable Diffusion, with tips on models and settings.