Understanding Capital Accounts in Partnership Accounting
Introduction
- Welcome back to the channel for Day 4 of the 100 Days Commerce Master Class for Class 12.
- Today's focus is on Accountancy, specifically on Capital Accounts and fundamental concepts.
Key Concepts Covered
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Separate Legal Entity Concept
- Partners and the firm are treated as separate entities in accounting.
- Legally, in case of legal consequences, partners and the firm are considered one. For a deeper understanding of the legal framework, refer to Understanding the Indian Partnership Act 1932: Key Provisions and Tax Implications.
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Capital Accounts
- Capital accounts track the investments made by partners in the firm.
- Partners expect interest on capital and may also receive salaries or bonuses for additional work. To learn more about how these accounts function, check out Understanding Partnership Accounts: A Comprehensive Guide for Class 12 Students.
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Profit and Loss Accounts
- Expenses related to running the business are recorded in the Profit and Loss (P&L) account.
- Payments to partners are recorded in the Profit and Loss Appropriation account. For insights on how profits are distributed, see Understanding Partnership Accounting and Deductions.
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Charges vs. Appropriations
- Charges are expenses paid to outsiders, while appropriations are distributions of profit to partners.
- Understanding the difference is crucial for accurate accounting.
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Capital Account Structure
- Capital accounts increase with capital introduced and profits earned, and decrease with withdrawals.
- The nature of capital accounts is that they increase on the credit side and decrease on the debit side.
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Fixed vs. Fluctuating Capital Accounts
- Fixed capital accounts keep capital and profits separate, while fluctuating accounts combine both.
- This distinction helps in better tracking of financial performance. For a broader perspective on partnership fundamentals, refer to 12th Class Accounting: Introduction to Partnership Fundamentals.
Conclusion
- The session wraps up with a reminder to revise the concepts covered in the previous lectures.
- Viewers are encouraged to like the video and engage with the content for better understanding and motivation.
व्हाट्स अप एवरीवन। वेलकम बैक टू द चैनल। दिस इज़ डे फोर ऑफ़ आवर 100 डेज़ कॉमर्स मास्टर क्लास फॉर क्लास 12थ। और आज बच्चों
हम लोग फिर से पढ़ेंगे अकाउंटेंसी। और फंडामेंटल का ये रहने वाला है कॉन्सेप्ट वीडियो नंबर टू। पहले वाले वीडियो में
मैंने आप लोगों को पीएंडएल एप्रोप्रिएशन के बारे में चीजें बताई थी। पार्टनरशिप के कुछ बेसिक्स बताए थे। आज हम थोड़ा सा
कैपिटल अकाउंट पर डिस्कशन करेंगे और नेक्स्ट वीडियो ऑनवर्ड्स हमारे क्वेश्चंस स्टार्ट हो जाएंगे। तो आइए जल्दी से शुरू
कर लेते हैं और कवर करते हैं आज कुछ और नए कांसेप्ट्स। लेट्स बिगेन। [संगीत]
[संगीत] आइए बेटा जी स्टार्ट करते हैं कुछ नए कांसेप्ट्स के साथ। ठीक है? आज की क्लास
होने वाली है हमारा कांसेप्ट लेक्चर नंबर टू। है ना? कांसेप्ट लेक्चर नंबर वन में मैंने आपको कुछ कांसेप्ट्स
कराए थे। आज लेक्चर नंबर टू में हम कुछ और नए कांसेप्ट्स जो हैं वो कवर करने जा रहे हैं। ठीक है? अब आओ मेरे साथ-साथ जरा कुछ
चीजें समझने की कोशिश करो क्योंकि अगर ये नहीं समझा ना तो फिर क्वेश्चन बनाने बहुत मुश्किल हो जाएंगे। तो क्वेश्चंस बनाने
हैं तो पहले ये समझो अच्छे तरीके से। देखो बच्चों सबसे पहला जो आपके लिए सीखना जरूरी है वो है सेपरेट
लीगल एंटिटी कांसेप्ट। बच्चों जब हम अकाउंटिंग करते हैं ना जब हम
बुक्स ऑफ अकाउंट्स बना रहे होते हैं तो हम पार्टनर्स को अलग एंटिटी मानते हैं और फर्म को यानी कि जो उनका बिजनेस है उसको
अलग एंटिटी मानते हैं। जो बुक्स बन रही होती है वो यहां बन रही होती हैं। यानी कि जो भी आप प्रॉफिट एंड लॉस अकाउंट बना रहे
हो, प्रॉफिट एंड लॉस एप्रोप्रिएशन अकाउंट बना रहे हो वो सब फर्म के पॉइंट ऑफ व्यू से बन रही है। ठीक है? अब कुछ बच्चे इसमें
कंफ्यूज होते हैं क्या सर फर्म सेपरेट लीगल एंटिटी लीगली भी है कोर्ट भी मानता है नहीं बच्चों जब कोई भी लीगल
कॉन्सक्वेंस होगा कोई भी केस होगा तो फिर फर्म और पार्टनर एक ही है। फिर पार्टनर बच नहीं सकते ये बोल के कि भैया हम तो सेपरेट
लीगल एंटिटी है तो फर्म ने करा फर्म को पकड़ो। ऐसा नहीं है। जब कुछ भी लीगल कॉन्सिक्वेंस होगा तो देयर इज़ नो सेपरेट
लीगल एंटिटी। बट जब बुक्स ऑफ अकाउंट्स बनानी है, जब खाते बनाने हैं, तब तो हमें यह देखना है ना कि फर्म कैसा परफॉर्म कर
रही है। तो वहां पे सेपरेट लीगल एंटिटी कांसेप्ट चलता है। राइट? तो अल्टीमेटली फर्म को दो लोगों को पेमेंट्स करने हैं।
कैसे दो लोगों को पेमेंट्स करने हैं? आओ मैं आपको थोड़ा सा ये भी समझाता हूं। सबसे पहले बच्चों ये पार्टनर्स मालिक लोग हैं।
पार्टनर्स मालिक लोग हैं। इन्होंने पैसा लगाया उसको बोलते हैं कैपिटल लगाना। है ना? तो अब कुछ चीजें तो मालिक लोग
एक्सपेक्ट करेंगे फर्म से कि फर्म आप हमको प्लीज इंटरेस्ट ऑन कैपिटल दो। जो पैसा लगाया आप उस पे हमें इंटरेस्ट दो। उसी
तरीके से अगर मालिक लोग खुद थोड़ा सा एक्स्ट्रा काम कर रहे हैं कि सपोज ये चिंटू और ये चिंटी है। ये चिंटी एक्स्ट्रा
काम करती है तो चिंटी एक्स्ट्रा सैलरी भी तो मांग सकती है। बोलेगी फालतू काम मैं करती हूं तो बराबर-बराबर प्रॉफिट क्यों
बटे? मुझे कुछ एक्स्ट्रा भी तो मिलना चाहिए। मेरे एक्स्ट्रा नंबर ऑफ आवर्स जो मैं डाल रही हूं उसके लिए। तो इसको
एक्स्ट्रा कुछ सैलरी दो, बोनस दो, कमीशन दो। है ना? तो फर्म के लिए थोड़े-थोड़े इनकी तरफ कुछ खर्चे होते हैं। राइट? बट
फर्म जब बिजनेस करेगी, जब फर्म धंधा करेगी, तो कुछ ना कुछ सेलिंग एक्सपेंसेस आएंगे। कुछ ना कुछ एडमिनिस्ट्रेशन
एक्सपेंसेस आएंगे, बैड डे्स होंगे, ऑडिट फीस आएगी, एडवर्टाइजमेंट एक्सपेंसेस आएंगे।
ईटीसी आपने बहुत सारे खर्चे पढ़े थे कि भैया यह आपका कैरज है, यह कार्टेज है, यह वेजेस है, ये सैलरीज है। अब किसकी बात हो
रही है? बाहर वालों की। पार्टनर्स की बात नहीं हो रही। ये जो सैलरी थी बच्चों, ये पार्टनर की सैलरी थी। है ना? लेकिन यहां
पे मैं जो बात कर रहा हूं ये सारे के सारे हमारे आउटसाइडर्स हैं जिनसे हमने सर्विसेज ली है। जिनको फर्म को पेमेंट करना है अगर
बिजनेस चलाना है तो। तो फर्म के लिए तो दो चीजें हैं। फर्म को मालिक लोगों को भी पैसा देना है। फर्म को बिजनेस चलाने के
लिए बाहर वालों को भी पैसा देना है। जो भी पैसा बच्चों बाहर वालों को देना होता है। ये सारा का सारा प्रॉफिट एंड लॉस अकाउंट
में लिखा जाता है। ये सब कहां लिखा जाता है? है प्रॉफिट एंड लॉस अकाउंट में क्लास 11th में भी सीखा था। अब दोबारा सीख लो।
पीएंडएल अकाउंट में लिखा जाता है। और यह जो पार्टनर्स को जो पैसा देना है ये सारा का सारा बच्चों प्रॉफिट एंड लॉस
एप्रोप्रिएशन अकाउंट में लिखा जाएगा। ये सारा का सारा कहां लिखा जाएगा? प्रॉफिट एंड लॉस एप्रोप्रिएशन अकाउंट में। तो पहले
तो यही क्लियर करो अपने माइंड में कि बाहर वालों को जो पैसा देना है, जो फर्म को खर्चे करने हैं, बिनेस चलाने के लिए जो
खर्चे करने हैं, वह सब प्रॉफिट एंड लॉस अकाउंट का पार्ट है। जब प्रॉफिट एंड लॉस में खर्चे लिख दिए, माल बेच लिया, इनकम्स
लिख लिए, फिर प्रॉफिट हुआ। फिर प्रॉफिट में से जब मालिक लोगों में पैसा बटेगा, वो पीएंडएल एप्रोप्रिएशन में बटेगा। दोनों का
बफरर्केशन समझ में आया? ये चीज क्लेरिफाई करो पहले अपने माइंड में कि पीएंडएल में क्या? पीएंडएल एप्रोप्रिएशन में क्या?
समझे? अब देखो। इसका स्क्रीनशॉट ले लो बच्चों। यह काफी इंपॉर्टेंट चीजें हैं। डन है? अब देखो बच्चों, कांसेप्ट को ध्यान से
पकड़ना। ठीक है? देखो, प्रॉफिट एंड लॉस अकाउंट हमारा इस तरीके से बनता था। भाई, सबसे पहले जीपी आ जाएगा यहां पे। जो
भी ट्रेडिंग से ग्रॉस प्रॉफिट बनाया होगा पहले वो आ जाएगा। ठीक है? इसको हम जीपी बोल देते हैं। जीपी आ गया था। फिर उसके
बाद हम कुछ इनडायरेक्ट इनकम्स लिखते थे यहां पे। सर इनडायरेक्ट इनकम्स का क्या मतलब होता है? इनडायरेक्ट इनकम्स का मतलब
बच्चों कोई इंटरेस्ट मिला, कोई रेंट मिला, कोई बैड डे रिकवर हो गया, कोई डिस्काउंट मिला। तो फर्म को मल्टीपल इनकम्स होती है
ना। है ना? तो ये जो अलग-अलग इनकम्स हो रही हैं, ये हम यहां लिख देते थे। फिर यहां पे सारे इनडायरेक्ट एक्सपेंसेस लिखते
थे। सर, इनडायरेक्ट एक्सपेंसेस कौन-कौन से हैं? बच्चों, कोई भी आउटसाइडर के लिए जो भी फर्म ने काम करा, फर्म मल्टीपल सैलरीज
देती है एंप्लाइजज़ को। अपने चार्टर्ड अकाउंटेंट को ऑडिट फीस देगी। एडवर्टाइजमेंट के खर्चे होंगे। ये
सारे मैंने खर्चे लिखे थे ना बैड डे्स होंगे। कोई डिस्काउंट दिया है आपने। कोई लोन लिया है। कोई लोन लिया है तो उस पे
इंटरेस्ट भी तो पे करना पड़ेगा। तो इंटरेस्ट ऑन लोन। कोई लोन लिया तो उस पे इंटरेस्ट देना
पड़ेगा। मेरे मैनेजर ने कुछ अच्छा काम करा तो उस मैनेजर की कमीशन बन गई। मैनेजर का कमीशन हो गया बच्चों। है ना? कोई रेंट हो
गया बेटा, कोई रेंट हो गया। तो ये मल्टीपल खर्चे हैं जो फर्म को करने पड़ते हैं। ठीक है ना? अब फर्म जब ये खर्चे कर देगी तो
फर्म इसका टोटल लगाएगी। इसका टोटल लगाएगी। इसमें से ये खर्चे माइनस करेगी। तो जो वैल्यू बचेगी उसको हम क्या बोलते हैं? नेट
प्रॉफिट। क्या ये नेट प्रॉफिट होता था? अब ऐसा हो सकता है कि खर्चे ज्यादा हो तो इधर नेट लॉस भी आ सकता है। लेकिन अभी आप ये
सारे खर्चे देखो एंप्लई की सैलरी ध्यान से समझना। ये आउटसाइडर हैं। एंप्लई की सैलरी, ऑडिट फीस, एडवरटाइजमेंट का खर्चा, लोन
लिया तो उस पे ब्याज, मैनेजर की कमीशन, रेंट। अब बच्चों देखो ये सब इन खर्चों से तुम भाग नहीं सकते। तुम ये नहीं बोल सकते
कि ये खर्चे तो तभी करूंगा अगर मेरी जेब में पैसा होगा। भाई तुमको बिनेस चलाने के लिए खर्चे करने पड़ेंगे। तुमको पता बाद
में चलेगा कि तुम प्रॉफिट में गए या लॉस में गए। तो ये तो करने ही करने हैं। तो ये जो इस तरीके के खर्चे होते हैं ना बच्चों
ये जो इस तरीके के खर्चे होते हैं इनको हम बोलते हैं चार्ज
अगेंस्ट प्रॉफिट्स। चार्ज अगेंस्ट प्रॉफिट्स का मतलब सबसे पहले ये पीएंडएल में लिखे जाते हैं। ठीक
है? सबसे पहले ये पीएंडएल में लिखे जाते हैं। दूसरा इनको फर्क नहीं पड़ता कि प्रॉफिट होगा या लॉस होगा। प्रॉफिट तो बाद
में निकल के आएगा। सीधी-सीधी सी बात है या नहीं है? ये आपको पे करने ही पड़ते हैं। आप इनसे भाग नहीं सकते बच्चों। राइट? अब
इसके बाद ये जो प्रॉफिट आया ये जो प्रॉफिट आया अब ये प्रॉफिट किस में बंटता है? मालिक लोगों में बंटता है। पार्टनर्स में
बटता है। तो पार्टनर्स में डिस्ट्रीब्यूट करने के लिए बच्चों एक पीएंडएल एप्रोप्रिएशन
अकाउंट। क्या बनेगा? पीएंडएल एप्रोप्रिएशन अकाउंट। ठीक है? एप्रोप्रिएशन के लिए आप सबसे पहले यहां पे
नेट प्रॉफिट लेके आओगे। ये मैंने आपको कल भी बताया था। नेट प्रॉफिट आ गया। अब पार्टनर से फर्म को कुछ मिलेगा क्या? कोई
ऐसी इनकम है जो फर्म को लेनी है? यस। अगर पार्टनर्स ने ड्रॉइंग्स करी तो उस पे इंटरेस्ट मांगती है फर्म। है ना? तो यहां
पे हम लिखते हैं बाय इंटरेस्ट ऑन ड्रॉइंग्स। ये बच्चों फर्म को मिलता है क्योंकि पार्टनर्स ने ड्रॉइंग्स करी है तो
उस पे इंटरेस्ट मिलेगा। यहां पे फर्म पार्टनर को पैसा दे रही है। इंटरेस्ट ऑन कैपिटल। तुमने कैपिटल लगाया।
ये लो पकड़ो। तो फर्म के लिए खर्चा है। पार्टनर के लिए इनकम है। पार्टनर को मिल रहा है ये। है ना? उसके बाद पार्टनर
की पार्टनर की कोई सैलरी, कोई बोनस, कोई कमीशन वो आ जाएगा। फिर अगर कोई रिजर्व बनाना हो, ध्यान रखना रिजर्व बच्चों फर्म
अपने लिए बनाती है। ये पार्टनर को नहीं देती। लेकिन प्रॉफिट से तो निकालना ही है ना एक बार पैसा। इसीलिए इस साइड लिख रहे
हैं। ये ध्यान रखना ये स्पेशल आइटम है। ये पार्टनर को नहीं मिलता। रिजर्व फर्म ने अपने लिए बनाया है। ऑलराइट। ये अभी
पार्टनर को नहीं दे रहे। ठीक है? ये अपने पास सेव करके रख रहे हैं। और लास्ट में डिविज़िबल प्रॉफिट आ जाता है। उसको हम
बोलते हैं प्रॉफिट ट्रांसफरर्ड टू पार्टनर्स कैपिटल अकाउंट। ये प्रॉफिट बच्चों पार्टनर कैपिटल
अकाउंट में जाएगा। इसको हम डिविजिबल प्रॉफिट बोलते हैं। और ये हमारा प्रॉफिट एंड लॉस एप्रोप्रिएशन का पूरा फॉर्मेट
तैयार हो जाता है। अब ये जितनी भी आइटम्स आई ना ये वाली ये वाली आइटम्स ये सारी की सारी बच्चों
डिस्ट्रीब्यूशन ऑफ प्रॉफिट्स है। ये प्रॉफिट ही तो बंट रहा है मालिक लोगों में। बस नाम अलग-अलग है। तो इनको चार्ज
नहीं बोलते। इनको क्या बोलते हैं? एप्रोप्रिएशन आउट ऑफ प्रॉफिट्स। [संगीत]
तो अभी आपको चार्ज और एप्रोप्रिएशन में फर्क समझ में आया होगा। चार्ज वो खर्चे हैं बच्चों जो फर्म आउटसाइडर्स को पे करती
है। प्रॉफिट एंड लॉस में लिखती है और उन खर्चे करने के बाद में प्रॉफिट या लॉस निकल के आएगा। लेकिन ये एप्रोप्रिएशन वाले
सारी चीजें डिपेंड ही इस प्रॉफिट पे करती हैं। भाई प्रॉफिट होगा तभी तो मालिक लोगों को इतनी चीजें मिलेंगी। अगर लॉस होगा तो
सिंपली लॉस डिस्ट्रीब्यूट हो जाएगा। ये सब मिलेगा ही नहीं बच्चों। तो इट इज वेरीेंट टू अंडरस्टैंड कि चार्ज क्या है और
एप्रोप्रिएशन क्या है? बहुत सिंपल क्लेरिफाइड कांसेप्ट समझ में आता है? बढ़िया तरीके से क्लियर हो गया। अब बच्चों
एक बात समझो फर्म और पार्टनर का क्या रिश्ता होता है? मैंने यहां पे फर्म और पार्टनर बनाया था ना। देखो ये बनाया था
ना। फर्म का बच्चों कोई भी एक्सपेंस होता है टुवर्ड्स पार्टनर। टुवर्ड्स पार्टनर अगर फर्म कोई भी खर्चा
कर रही है पार्टनर के लिए तो क्या वह पार्टनर की इनकम है? हां या ना? भाई फर्म की जेब से पैसा गया तो पार्टनर की जेब में
पैसा आया। और अगर फर्म की कोई भी इनकम है फ्रॉम पार्टनर जो पार्टनर से फर्म ले रही है तो वो पार्टनर के लिए क्या है?
एक्सपेंस है। भाई गिव एंड टेक है ना बच्चों? वैसा ही है। जैसे आप अपने पापा से पैसे लो। पापा की जेब से पैसा गया।
तुम्हारी जेब में पॉकेट मनी आ गई। अब पापा ने तुमको बोला यार एक फटाफट से ₹50 दियो यहां पे पेमेंट करियो। मैं वॉलेट लाना भूल
गया। तो तुम्हारी जेब से पैसा गया पापा की जेब में आ गया। है ना? तो रिवर्स चलता है। एक की जेब से गया दूसरे की जेब में आया।
दूसरे की जेब से गया पहले की जेब में आया। तो एक के लिए डेबिट तो दूसरे के लिए क्रेडिट। एक के लिए क्रेडिट तो दूसरे के
लिए डेबिट होना चाहिए या नहीं होना चाहिए? डबल एंट्री सिस्टम पढ़ते हैं। एक के लिए डेबिट दूसरे के लिए क्रेडिट। एक के लिए
क्रेडिट दूसरे के लिए डेबिट। तो फर्म ने अपने लिए तो एप्रोप्रिएशन अकाउंट बना लिया। यह बन गया एप्रोप्रिएशन अकाउंट फर्म
के लिए। पार्टनर का अगर हिसाब देखना हो कि पार्टनर को कितना पैसा मिला, कितना पार्टनर से लिया उसके लिए भी तो कोई
अकाउंट होना चाहिए। उसको बोलते हैं कैपिटल अकाउंट। आओ बच्चों उसको क्या बोलेंगे?
कैपिटल अकाउंट। तो कैपिटल अकाउंट क्या है? कैपिटल अकाउंट एक वो अकाउंट है जिसके अंदर फर्म पार्टनर का हिसाब करेगी। ठीक है? अब
कैपिटल अकाउंट का बच्चों एक नेचर होता है। नेचर क्या होता है सर कैपिटल अकाउंट का? जैसे हमारे दो पार्टनर्स हैं। एक चिंटू है
एक चिंटी है। ऊपर आप लिखोगे पर्टिकुलर्स। चिंटू और चिंटी। यहां लिखोगे
पर्टिकुलर्स। ये है चिंटू। यह है चिंटी। यह है
पर्टिकुलर्स। यह है चिंटू। यह है चिंटी। तो पर्टिकुलर चिंटू और चिंटी मैंने यहां
पे लिखा। अब पार्टनर्स कैपिटल अकाउंट में पार्टनर्स के लिए सबसे पहले ये बात ध्यान रखना बच्चों कैपिटल जो है वो क्रेडिट में
बढ़ता है और डेबिट में कम होता है। क्रेडिट में बढ़ेगा, डेबिट में कम होगा। ये कैपिटल का नेचर है। ये कैपिटल का नेचर
है बच्चों। मैंने आप लोगों को क्लास 11th में कुछ रूल्स बताए थे क्लियर करके। याद है? अगर नहीं याद है कोई बात
नहीं। पहली बार मेरे से पढ़ रहे हो पढ़ लो। अकाउंट्स पांच चीजों पे टिका हुआ है। कैपिटल, लायबिलिटी, एक्सपेंसेस, एसेट्स,
रेवेन्यू। पांच चीजें हैं। कैपिटल, लायबिलिटी, एक्सपेंसेस, एसेट्स, रेवेन्यू। ये जो दो हैं एक्सपेंस और एसेट। ये बच्चों
डेबिट साइड में इनक्रीस होते हैं। क्रेडिट साइड में डिक्रीज होते हैं। इनका नेचर है ये। जैसे हर अकाउंट का अपना एक नेचर होता
है ना, इनका नेचर ऐसा है। ये जो तीनों हैं कैपिटल, लायबिलिटी और रेवेन्यू। डेबिट में कम होंगे, क्रेडिट में बढ़ेंगे
बच्चों। डेबिट में कम होंगे और क्रेडिट में बढ़ जाएंगे। इस बात का ध्यान रहे। ओके? तो कैपिटल देखो। कैपिटल क्रेडिट में
बढ़ेगा, डेबिट में कम होगा या नहीं होगा? तो बहुत सिंपल है। सबसे पहले जो कैपिटल आप लगा रहे हो फर्म
में उसका बैलेंस यहां पे लिखते हैं। ये ओपनिंग कैपिटल है। जितना आपको क्वेश्चन में दिया होगा कि इतना-इना कैपिटल
पार्टनर्स ने लगाया है। ये क्या है? दिस इज़ ओपनिंग कैपिटल। ठीक है? अब पार्टनर ने साल के बीच में कोई कैपिटल इंट्रोड्यूस और
कर दिया। फ्रेश कैपिटल इंट्रोड्यूस्ड। फ्रेश कैपिटल इंट्रोड्यूस करा तो कैपिटल बढ़ेगा। बढ़ेगा तो किधर बढ़ेगा? क्रेडिट में
बढ़ेगा सर। तो यहां पे लिखोगे बाय बैंक। ये है बच्चों कैपिटल इंट्रोड्यूस्ड। ये क्या है? दिस इज़
कैपिटल इंट्रोड्यूस्ड। ये कैपिटल इंट्रोड्यूस्ड है। ठीक हो गया बच्चों? अगर कैपिटल निकाल लिया घर ले गए कैपिटल से
पैसा निकाल के फिर भाई जो बिजनेस में पैसा लगाया है वो कैपिटल इंट्रोड्यूस्ड है उसी कैपिटल में से निकाल के ले गए तो उसको मैं
क्या बोलूं क्या बोलूं क्या बोलूं लिखना जरा कमेंट में क्या बोलूं अगर इस कैपिटल से पैसा निकाला तो पॉज करके कमेंट सेक्शन
में लिखना टाइम स्टैंप लगा के सर इसको ये बोलो क्या बोलूं क्या मैं उसको ड्रॉइंग्स बोल दूं पैसा निकाल के ले गए कैपिटल में
से उसको क्या मैं ड्रॉइंग्स बोल दूं अगर आपको लग रहा है कि ड्रॉइंग्स बोल दूं तो वो गलत है बच्चा गलत है बेटा वो बाबू तो
ड्रॉइंग्स जो होती है ना वो कैपिटल से विथड्रॉ नहीं होती। ड्रॉइंग्स हम प्रॉफिट्स में से करते हैं। जो मैंने पैसा
कमाया, प्रॉफिट बनाया, प्रॉफिट में से पैसा निकालूंगा उसको मैं ड्रॉइंग्स बोलता हूं। अगर मेरे को प्रॉफिट हुआ ही नहीं।
साल में लॉस हो रहा है मुझे। सोचो। साल में मुझे लॉस हो रहा है। प्रॉफिट हुआ ही नहीं। और मुझे घर का खर्चा तो करना है। घर
पे राशन तो लेके जाना है। बच्चों की फीस तो भरनी है। इलेक्ट्रिसिटी बिल तो भरना है। कोई लोन लिया हुआ है। ब्याज तो देना
है। तो घर तो पैसा लेके जाऊंगा। प्रॉफिट तो हुआ नहीं। तो फिर क्या करूं? फिर जो पैसा लगाया हुआ है ना ऑलरेडी कैपिटल उसी
को विड्रॉ करता है बेचारा बिजनेसमैन। उसको बोलते हैं कैपिटल विड्रॉन। वो इधर लिखेंगे। इससे कैपिटल कम होता है बच्चों।
इससे कैपिटल कम होता है। देखो इधर कम होता है ना इसको बोलते हैं कैपिटल विथड्रॉन। तो ये बच्चों मैंने जितनी भी चीजें लिखी
ना अभी तक ये कैपिटल में हो रहा है। ये तुमने कैपिटल लगाया हुआ है। ओपनिंग बैलेंस है। ये कैपिटल इंट्रोड्यूस्ड है। आपने और
इंट्रोड्यूस करा। ये कैपिटल आपने और निकाल लिया। है ना? अब आती है बच्चों प्रॉफिट वाली चीजें। जब प्रॉफिट हुआ तो पार्टनर को
मिली। अब प्रॉफिट हुआ तो पार्टनर पैसा घर लेके जाएगा तो उसका कैपिटल ही तो बढ़ता है। क्लास 11th में हमने पढ़ा था ना नेट
प्रॉफिट को किस में जोड़ते हो? वो कैपिटल में जोड़ देते हो कि ठीक है भाई ये तू घर ले जा अपने हां या ना जोड़ते हो या नहीं
जोड़ते हो तो जो प्रॉफिट वाली आइटम्स हैं उससे भी अभी फिलहाल कैपिटल बढ़ेगा इधर लिखी जाएंगी किस नाम से सर सबसे पहले तो
इंटरेस्ट ऑन कैपिटल मिलेगा पार्टनर को पार्टनर को पैसा मिलेगा तो इधर ही आना चाहिए है ना उसके बाद सर पार्टनर को कोई
सैलरी मिल सकती है कोई बोनस मिल सकता है कोई कमीशन मिल सकता है तो सैलरी बोनस कमीशन लिख दिया उसके बाद सर सर पार्टनर को
वही डिविज़िबल प्रॉफिट भी मिल सकता है। उसको हम क्या लिखते हैं? पीएंडएल एप्रोप्रिएशन से यह प्रॉफिट आ गया। ठीक
है? एक चीज़ हमने और लिखी थी वहां पे रिजर्व्स। और मैंने आपको बताया था रिज़र्व पार्टनर के लिए नहीं है। पार्टनर थोड़ी घर
लेके जाएगा। रिज़र्व तो फर्म ने बनाया अपने लिए। तो वो रिज़र्व यहां पे नहीं आया। एक चीज़ और तुमको क्लेरिफाई हुई होगी। मैंने
तुमको अभी बताया था कि फर्म के लिए कोई भी चीज़ डेबिट है, तो पार्टनर के लिए क्रेडिट होगी। यह भी डबल एंट्री सिस्टम वाली चीज़
हो गई। है ना? देखो आईओसी फर्म ने खर्चा करा डेबिट। यह खर्चा करा डेबिट। यह प्रॉफिट फर्म ने देना है। डेबिट पार्टनर
को मिल रहा है तो पार्टनर के पास क्रेडिट हुआ। रिजर्व फर्म ने अपने लिए बनाया है तो रिजर्व कैपिटल अकाउंट में नहीं जाता
बच्चों। तो इसीलिए यहां पे ये तीन ही चीजें आती हैं मेनली। ठीक हो गया? अब इस प्रॉफिट में से अगर
पैसा निकाला तो उसको क्या बोलूंगा? ड्रॉइंग्स। तो यहां पे लिखूंगा ड्रॉइंग्स। ठीक हो गया बच्चा? परफेक्ट हो गया। और
फर्म को जो मिलेगा वो है इंटरेस्ट ऑन ड्रॉइंग्स। आप फुल फॉर्म्स यूज़ करना। इसको बोलूंगा इंटरेस्ट ऑन ड्रॉइंग्स। बस फिर
क्या करना है? ये सब जोड़ो भाई इतना तो पैसा लगाया हुआ था। ये प्रॉफिट मिल गया। ये सब ऐड कर दो। ये सब ऐड कर दो। इसमें से
ये पैसा निकल गया। तो जो बचेगा उसको क्या बोलूंगा? बैलेंस कैरिड डाउन। ये आ गया बैलेंस कैरिड डाउन। ऐसे ही
चिंटी का ये सब जोड़ो भाई ये कैपिटल वाला पैसा ये प्रॉफिट मिल गया ये पैसा निकाल के घर ले गए ये माइनस कर दो ये बैलेंस आ गया
ये हमारा क्लोजिंग बैलेंस होता है बच्चों अभी तुम क्वेश्चंस करोगे ना तुमको मजा आ जाएगा कि सर मजा आ
गया जी इसको हम क्लोजिंग बैलेंस बोलते हैं। यानी कि कैपिटल अकाउंट में भी दो चीजें हैं मेन जो एक्सिस्ट करती हैं। एक
तो डायरेक्टली कैपिटल जो मैंने येलो कलर वाले पेन से लिखा है। और एक प्रॉफिट वाली
आइटम्स ये है प्रॉफिट वाली आइटम्स जो वाइट कलर के पेन से लिखा है। ठीक है या नहीं है बच्चों? अब जब बच्चों ये जॉइंटली एक साथ
चल रहे होते हैं ना कि एक ही अकाउंट में कैपिटल वाली आइटम्स भी हैं और प्रॉफिट वाली आइटम्स भी हैं। इसको बोलते हैं
कैपिटल्स आर फ्लक्चुएटिंग। फ्लक्चुएटिंग का मतलब होता है कि कैपिटल की वैल्यू कम ज्यादा हो सकती है प्रॉफिट
से। कैपिटल की वैल्यू क्या हो सकती है? कम ज्यादा हो सकती है प्रॉफिट से। इसको बोलते हैं कैपिटल्स आर फ्लक्चुएटिंग। बट कभी-कभी
पता है क्या होता है बच्चों? कुछ पार्टनर्स का माइंडसेट ऐसा होता है जो बोलते हैं कि हम कैपिटल को अलग से लिखना
चाहते हैं। हम चाहते हैं ये कैपिटल अलग से लिखा जाए। और प्रॉफिट अलग से लिखा जाए। ये प्रॉफिट मेरे कैपिटल में मिक्स ना हो। मैं
कैपिटल को कैपिटल की तरीके से देखना चाहता हूं। प्रॉफिट को अलग घर में रखना चाहता हूं। तो उसको हम क्या बोलते हैं? उसको
बोलते हैं जब कैपिटल फिक्स्ड कर दिए गए। व्हेन कैपिटल्स आर फिक्स्ड। तो रिश्ता वही है बस सोच नहीं है। रिश्ता तो वही है। है
तो वही चीज। बस उसको अलग-अलग कर दो। जॉइंट फैमिली से अलग-अलग घर बना दो कि कैपिटल अलग हो गया जी। प्रॉफिट अलग हो गया जी। तो
अब इस केस में बच्चों हम बोलते हैं व्हेन कैपिटल्स आर फिक्स्ड। इस केस में हम क्या बोलते
हैं? अगर कैपिटल्स क्या हैं? फिक्स्ड है। अगर फिक्स्ड है ना बच्चों तो दो घर बनेंगे। कैपिटल के लिए अलग, प्रॉफिट्स के
लिए अलग। तो जो कैपिटल के लिए बनेगा उसको बोलते हैं कैपिटल अकाउंट। अब पर्टिकुलर चिंटू चिंटी तो लिख लोगे आप लोग। और जो
प्रॉफिट्स के लिए बनेगा उसको बोलते हैं करंट अकाउंट। ये किसके लिए बनता है? प्रॉफिट्स के लिए। इसको बोलते हैं करंट
अकाउंट। बस समझ में आ रहा है? वही चीज है बस दो अलग-अलग बंटवारा हो गया फिलहाल। ठीक है? यहां पे कैपिटल लिख दो। बाय बैलेंस
ब्रॉट डाउन। ये तुम्हारा ओपनिंग कैपिटल आ गया। फिर कैपिटल इंट्रोड्यूस्ड बाय बैंक। ये कैपिटल ही इंट्रोड्यूस्ड है। ठीक है?
बस और कुछ नहीं आएगा इसमें। कैपिटल से पैसा निकाला तो टू बैंक कैपिटल विथड्रॉन। ये बच्चों कैपिटल विड्रॉन
है और बैलेंस निकाल दो बस बात खत्म देखो क्या कैपिटल अलग कर दिया बिल्कुल बिल्कुल अलग कर दिया बोलो कैपिटल का बैलेंस निकाल
दो बस सर फिर प्रॉफिट वाली चीजें सारी कहां जाएंगी वो सब यहां आएंगी बच्चों वो इधर आ जाएंगे तो अगर लास्ट ईयर भी ऐसे
करंट अकाउंट बनाया होगा तो उसका भी कुछ ना कुछ बैलेंस होगा पिछले साल वाला पहले वो लिखो बाय बैलेंस ब्रॉट डाउन अगर अगर करंट
का बैलेंस गिवन हुआ तो इफ गिवन अगर गिवन नहीं होगा तो बैलेंस लिखने की कोई जरूरत नहीं है। करंट का बैलेंस होगा तो लिखेंगे
नहीं तो नहीं लिखेंगे। ठीक है? फिर क्या-क्या मिलेगा? आईओसी मिलेगा। और क्या-क्या मिलेगा? सैलरी बोनस कमीशन
मिलेगा। और क्या-क्या मिलेगा? प्रॉफिट मिलेगा। पीएंडएल एप्रोप्रिएशन। तो देखो ये सारी प्रॉफिट वाली आइटम्स हैं। इसका घर
अलग कर दिया। कर दिया ना? है वही चीज। बस घर अलग कर दिया। प्रॉफिट में से क्या निकाल के ले गए?
ड्रॉइंग्स फर्क समझ में आ रहा है बच्चों? जो पैसा प्रॉफिट से निकलता है उसको ड्रॉइंग्स बोलते हैं। ठीक है? यहां पे
इंटरेस्ट ऑन ड्रॉइंग्स और यहां पे टू बैलेंस कैरिड डाउन।
ये हमारा क्लोजिंग बैलेंस है। दिस इज़ क्लोजिंग बैलेंस। सिंपल बात तो वही है। बस घर
अलग-अलग कर दिए। समझ में आया या नहीं आया? बोलो। कैपिटल का कांसेप्ट क्लियर हुआ? किस तरीके से कैपिटल अकाउंट बनता है? और
कैपिटल अकाउंट अगर कैपिटल फिक्स्ड कर दिए जाएं तो दो पार्ट्स में डिवाइड हो जाता है। कैपिटल अलग, करंट अलग। बस कैपिटल में
सिर्फ कैपिटल, करंट में सिर्फ प्रॉफिट। इसका भी स्क्रीनशॉट लो बच्चों। डन। यह हमारा एक ही मेन कैपिटल अकाउंट हो
गया। ये भी समझ गए। चार्ज भी समझ गए, एप्रोप्रिएशन भी समझ गए। अब हम क्या करेंगे? अगली क्लास में स्टार्ट करेंगे
डायरेक्ट क्वेश्चंस के साथ। सीधा-सीधा क्वेश्चंस बनाना शुरू करेंगे। आपका एक छोटा सा होमवर्क है। अब इस वीक का काम
खत्म है अकाउंट्स का। अब अगले वीक में हम मंडे को पढ़ेंगे अकाउंट्स। एक छोटा सा होमवर्क आपका ये है कि बच्चों आपको वीडियो
लेक्चर नंबर वन और लेक्चर नंबर टू इनका अच्छे से रिवीजन लेना है ताकि जब हम मंडे को क्वेश्चंस करें तो तुमको एकदम क्लेरिटी
हो। है ना? अच्छा वीडियो बनेगा। काफी सारे कांसेप्ट्स काफी सारे क्वेश्चंस करेंगे और मस्ट तुम्हारा रिवीजन हो जाएगा। मस्त
तुम्हारी प्रैक्टिस हो जाएगी। ठीक है? मुझे उम्मीद है आपको कॉन्सेप्ट्स क्लियर हुए होंगे। कोई दिक्कत आए तो कमेंट सेक्शन
में बताना। अच्छी लगे वीडियो तो लाइक जरूर करना यार। वीडियो लाइक कर दिया करो। नालायकों देख लेते हो। लाइक नहीं करते।
गलत बात है। वीडियो लाइक कर दिया करो। थोड़ा मुझे भी मोटिवेशन मिलेगा कि हां भाई 12वीं की मेरी नई कॉमर्स नालायकों की जो
गैंग है वो तैयार हो गई है। लाइक करने के लिए पता चलता है ना यार कि हां बच्चों मेरे साथ हैं बच्चे। राइट? तो लाइक जरूर
करा करो और आगे बढ़ेंगे और चीजें कराऊंगा तुम्हें मस्तमस्त और टेंशन फ्री रहो। अकाउंट्स पे तुम्हें इतना स्ट्रांग होल्ड
करा दूंगा। उसके बाद तुम्हें कहीं भी कुछ भी पढ़ना हो, कोई भी कॉम्पिटिटिव एग्जाम देना हो तुमको दिक्कत नहीं आएगी। ठीक है?
आज के लिए इतना ही। थैंक यू सो मच। कीप ग्रोइंग, कीप ग्लोइंग एंड कीप स्माइलिंग। [संगीत]
In partnership accounting, the separate legal entity concept means that partners and the firm are treated as distinct entities for accounting purposes. However, legally, they are considered one in terms of liabilities and obligations. This distinction is important for understanding how financial transactions are recorded and the legal implications for partners.
Capital accounts in a partnership track the investments made by each partner. They reflect the amount of capital introduced, profits earned, and withdrawals made by partners. Additionally, partners may expect interest on their capital and can receive salaries or bonuses for their contributions to the firm.
Charges refer to expenses incurred by the business that are paid to outsiders, while appropriations are the distributions of profits to partners. Understanding this difference is crucial for accurate financial reporting and ensuring that expenses and profit distributions are correctly categorized.
Fixed capital accounts maintain a clear separation between the capital contributed by partners and the profits earned, while fluctuating capital accounts combine both capital and profits into a single account. This distinction helps in tracking the financial performance of the partnership more effectively.
Profits in a partnership are recorded in the Profit and Loss Appropriation account, which details how profits are allocated among partners. This includes payments such as salaries, bonuses, and interest on capital, ensuring that all partners receive their fair share based on the partnership agreement.
Understanding capital accounts is essential for accurately tracking each partner's investment, profit share, and withdrawals. It helps in maintaining transparency in financial reporting and ensures that partners are compensated fairly for their contributions to the partnership.
To enhance your understanding, it's recommended to revise the concepts discussed in previous lectures and engage with the content by liking the video and participating in discussions. Additionally, exploring linked resources can provide deeper insights into partnership accounting.
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