Overview of Partnership Accounts
- Introduction to Partnership: Partnership involves two or more individuals collaborating to run a business with the intention of making a profit. Unlike sole proprietorships, partnerships allow for shared responsibilities, risks, and profits.
Syllabus Breakdown
- Partnership Firms: 36 Marks
- Company Accounts: 24 Marks
- Analysis of Company Balance Sheets: 20 Marks
- Total: 80 Marks
Key Concepts in Partnership Accounts
- Definition of Partnership: A partnership is a relationship between persons who have agreed to share profits of a business carried on by all or any of them acting for all.
- Characteristics of Partnership:
- Minimum of two partners and a maximum of 50.
- Profit motive is essential.
- Partners can manage the business collectively or individually.
- Rights of Partners:
- Right to share profits.
- Right to participate in decision-making.
- Right to inspect books of accounts.
- Right to admit new partners with unanimous consent.
Importance of Partnership Deed
- A partnership deed outlines the terms of the partnership, including profit-sharing ratios, rights, and responsibilities of partners. If no deed exists, the Indian Partnership Act governs the partnership.
Financial Aspects of Partnership
- Profit Distribution: Profits are shared based on the partnership deed. If no agreement exists, profits are shared equally.
- Interest on Capital and Drawings: Partners may receive interest on their capital, and interest may be charged on drawings, depending on the partnership deed.
- Preparation of Accounts: Key accounts include the Profit and Loss Appropriation Account and Capital Accounts, which detail how profits are distributed among partners. For a deeper understanding of these accounts, refer to Understanding Partnership Accounting and Deductions.
Conclusion
- Understanding the fundamentals of partnership accounts is crucial for students as it lays the groundwork for more complex accounting topics. The next class will focus on calculating interest on capital and drawings, further enhancing students' grasp of partnership accounting. Students may also find it beneficial to review the 12th Class Accounting: Introduction to Partnership Fundamentals for additional insights.
व्हाट्स अप एवरीवन वेलकम बैक टू द चैनल। दिस इज डे टू ऑफ़ आवर 100 डेज़ कॉमर्स मास्टर क्लास फॉर क्लास ट्वेल्थ। और
बच्चों आज हम स्टार्ट करने जा रहे हैं अकाउंट्स। डे वन पे हमने इकोनॉमिक्स स्टार्ट किया था तो कंफ्यूज मत होना कि डे
वन की अकाउंट्स कहां है। अकाउंट्स डे टू पे शुरू होने जा रही है। तो आइए जल्दी से शुरू करते हैं और आज हम स्टार्ट करेंगे
बेसिक फंडामेंटल्स के साथ। थोड़ा सा सिलेबस को समझने की कोशिश करेंगे और कुछ कांसेप्ट्स को स्टार्ट करेंगे। तो चलिए
जल्दी से शुरू करते हैं और हमारा अकाउंट्स का सफर होता है शुरू। लेट्स [संगीत]
[संगीत] बिगेन। स्टार्ट करेंगे बच्चों। तो हम लोग हमारे सबसे पहले जो 2026 बोर्ड्स में
अकाउंट्स का सिलेबस है आपको शॉर्ट में ओवरव्यू मैं आपको दे रहा हूं। ठीक है? देखो सबसे पहले ये समझो बच्चों कि हमारी
जो अकाउंटेंसी है वो तीन बुक्स में डिवाइडेड है बेटा। ठीक है? सबसे पहले जो आप अकाउंटिंग सीखोगे वो पार्टनरशिप फर्म्स
का सीखोगे। तो पार्टनरशिप फर्म्स कितने मार्क्स का हम पढ़ने वाले हैं? 36 मार्क्स। ठीक है? देन वी हैव कंपनी
अकाउंट्स। कंपनी अकाउंट्स में आप सीखने वाले हो मेनली कि कंपनीज़ अपनी बुक्स कैसे बनाती हैं। ये है बच्चों 24 मार्क्स। और
लास्ट में हम सीखेंगे कि कंपनी की बैलेंस शीट को, प्रॉफिट एंड लॉस को हम एनालाइज कैसे करते हैं? एनालिसिस। ये है बच्चों 20
मार्क्स। तो दिस इज़ हाउ आपका 80 मार्क का पोर्शन पूरा डिवाइडेड है क्लास 12th में। ठीक है? हम लोग आज शुरुआत करेंगे
पार्टनरशिप अकाउंट्स के साथ कि पार्टनरशिप क्या है? कैसे होता है? पूरा 36 मार्क्स का है। तो आज तो थोड़ा सा इसका थ्योरिटिकल
पोर्शन थोड़ा सा बेसिक्स रहने वाले हैं। एंड देन नेक्स्ट क्लास ऑनवर्ड हम लोग क्वेश्चंस डायरेक्टली शुरू कर पाएंगे। ठीक
है? चलो जल्दी से शुरू करते हैं हम लोग पार्टनरशिप के साथ। बच्चों चैप्टर नंबर वन है
फंडामेंटल्स। फंडामेंटल्स का मतलब ये चैप्टर बेस बनने वाला है आपके आने वाले सारे चैप्टर्स के लिए। तो आप जितने भी
चैप्टर्स फर्दर पढ़ने वाले हो सबका बेस ये फंडामेंटल्स ही है। ठीक है? अब देखो शुरुआत करते हैं बच्चों कि पार्टनरशिप
एक्चुअल में होता क्या है? बेटा आप लोगों ने बहुत सारे फॉर्म्स ऑफ बिनेस पढ़े हैं। जैसे कि सोल प्रोपराइटरशिप, जैसे कि
कंपनी, जैसे कि एचयूएफ, जैसे कि कोऑपरेटिव सोसाइटी और एक उनमें था पार्टनरशिप। पार्टनरशिप क्या होता है? जिसमें दो या दो
से ज्यादा लोग मिलके आएंगे, बिजनेस करेंगे। इंटेंशन मोटिव उनका भी प्रॉफिट मेकिंग ही होगा। प्रोडक्शन एंड
प्रोक्योरमेंट ऑफ गुड्स एंड सर्विज ही होने वाला है। बस फर्क क्या होता है? सोल प्रोपराइटर बच्चों जो आप 11th में पढ़ के
आए हो वो अकेला होता था। अकेला बिजनेस करता था, अकेला प्रॉफिट बनाता था, अकेला डिसीजन लेता था। सारी स्किल्स उसकी,
मैनेजमेंट उसका, कैपिटल उसका, रिस्क उसका सब कुछ एक अकेले के ऊपर होता था। पार्टनरशिप के यह एडवांटेज है कि इसके
अंदर सब कुछ शेयर हो जाएगा। रिस्क बट जाएंगे, प्रॉफिट बट जाएंगे। लॉस होगा तो वो भी बट जाएगा। कहीं ना कहीं डिसीजन
मेकिंग जो डिसाइड करने के लिए ब्रेन है वहां पे एक का होता था यहां पे मल्टीपल ब्रेन होंगे तो बेटर डिसीजन हो सकता है।
ज्यादा कैपिटल होगी, ज्यादा कैपेबिलिटीज़ होंगी। अब जैसे सोल प्रोपराइटर होता है बच्चों अगर वो माल खरीदने जाए तो दुकान
उसकी बंद रहेगी। कोई पीछे से बैठेगा नहीं। पार्टनरशिप में कितना फायदा है कि अगर एक गया भी हुआ है माल खरीदने के लिए तो बाकी
दूसरे पार्टनर्स बैठ के बिजनेस कर रहे हैं। तो बिजनेस में नुकसान तो हो ही नहीं रहा। तो पार्टनरशिप बहुत सारी लिमिटेशंस
जो सोल प्रोपराइटरशिप में होती है उसको खत्म करता है। देखो क्या होता है। पार्टनरशिप इज़ द रिलेशन बिटवीन पर्संस
जिन्होंने एग्री करा कि हम प्रॉफिट्स कैरी करेंगे। चाहे सब मिलके चलाएं चाहे एक भी चला सकता है अगर बाकी सारे किसी और काम
में बिजी हैं। ठीक हो गया बेटा? इसके बाद बेटा पार्टनरशिप के कुछ कैरेक्टरिस्टिक्स हैं। जैसे दो या दो से ज्यादा लोग मिलके
आएंगे। एक एग्रीमेंट होता है पार्टनर्स के बीच में जिसको हम पार्टनरशिप डीड भी बोलते हैं। बिजनेस होना बहुतेंट है और प्रॉफिट
मोटिव होना बहुत इंपॉर्टेंट है। ठीक है? जैसे सपोज़ चिंटू चिंटी बंटी ने मिलके संपत्ति खरीद ली तो क्या वो पार्टनरशिप हो
गई? नहीं। वहां पे बिजनेस मोटिव नहीं है। वो तो उन्होंने संपत्ति खरीद ली। वो को ओनरशिप कहलाता है। ठीक हो गया बच्चों? और
प्रॉफिट मोटिव भी होना चाहिए। उसके साथ-साथ बिजनेस चाहे सारे मिलके चलाएं, चाहे एक चलाए, बाकी सब पे भी एक्ट करेगा।
इसका मतलब चिंटू, चिंटी, बंटी में अगर बंटी और चिंटी छुट्टी पे है। चिंटू अकेला धंधा कर रहा है तो जो भी प्रॉफिट बनाएगा
वो भी तीनों में बंटेगा। लॉस हुआ तो वो भी तीनों में बेटेगा। ऐसा नहीं है कि सिर्फ चिंटू दुकान पे आया तो सिर्फ उसका होगा।
ऐसा नहीं है। सब में डिस्ट्रीब्यूट होगा ही होगा। तो चाहे बिज़नेस सारे चलाएं, चाहे बिज़नेस एक चलाए, एक्ट सभी के लिए करेगा।
ठीक है बच्चों? रिलेशनशिप ऑफ प्रिंसिपल एज वेल एज एजेंट। हर पार्टनर एक दूसरे का प्रिंसिपल भी है यानी कि सुपीरियर भी है।
वो जो कहेगा दूसरों को मानना पड़ेगा और एक दूसरे का एजेंट भी है। यानी सबोर्डिनेट भी है। जो उसका दूसरा पार्टनर कह रहा है वो
उसको भी मानना पड़ेगा। तो एक एजेंट प्रिंसिपल रिलेशनशिप देखने को मिलती है। इसके बाद बच्चों प्रॉफिट शेयरिंग होता है
और नो सेपरेट एग्ज़िस्टेंस। यानी अगर हम लीगल टर्म्स में जाएं कोई भी विवाद होगा तो कोर्ट जो है वो पार्टनरशिप और पार्टनर
को अलग-अलग नहीं मानेगा। एक ही मानेगा। बट जब हम अकाउंटिंग करते हैं बच्चों तो अकाउंटिंग के लिए तो दोनों अलग-अलग ही
हैं। पार्टनर्स अलग है और फर्म अलग है। ये अकाउंटिंग में तो दोनों अलग-अलग होते हैं। बट इन एक्चुअल दोनों अलग-अलग नहीं है। ठीक
है? ये कुछ बेसिक फीचर्स होते हैं। इसके बाद एक पार्टनर के क्या-क्या राइट्स होते हैं? भाई सीधी-सीधी सी बात है। ऑफ कोर्स
प्रॉफिट शेयर करना उसका राइट है। बिजनेस के डिसीजन मेकिंग में पार्टिसिपेट करना उसका राइट है। कंसल्टेशन होना उसका राइट
है कि उस हर डिसीजन पे उसको कंसल्ट किया जाए। उसके साथ शेयर किया जाए। उसको बताया जाए। बुक्स का इंस्पेक्शन करना उसका राइट
है कि वो जब चाहे पार्टनरशिप में जो बुक्स बनी है उनको इंस्पेक्ट कर सकता है। उसका अधिकार है कि वो एडमिशन ना होने दे। सपोज
चिंटू, चिंटी, बंटी तीन पार्टनर्स हैं और एक डंकी आना चाहता है। अब दो तो एग्री कर रहे हैं। चिंटू अकेला कह रहा है नहीं नहीं
आई डोंट लाइक डंकी। आई ओनली लाइक मंकी। वो ऐसा बोल रहा है मुझे पसंद नहीं है। तो अब देखो चाहे मेजॉरिटी एग्री कर रही है तब भी
एडमिशन नहीं होगा। अगर वो चाहे तो डिसअ कर सकता है। कोई भी नया पार्टनर पार्टनरशिप में तभी आएगा जब बाकी सारे पार्टनर्स सारे
100% पार्टनर्स एग्री करें। एक ने भी मना कर दिया। ध्यान रखना एडमिशन नहीं हो सकता बच्चों। ठीक है? पार्टनर का राइट है कि वो
जॉइंट ओनर बनेगा प्रॉपर्टी में। पार्टनर का राइट है कि वो जब चाहे रिटायर हो सकता है। ये हम अभी आगे पढ़ेंगे। ठीक हो गया
बच्चों? राइट्स ऑफ पार्टनर्स समझ में आया? सही है क्या? अब थ्योरी में मेन चीजें तो यही होती हैं। अब थोड़ा-थोड़ा प्रैक्टिकल
पोर्शन समझने की कोशिश करते हैं। वैसे तो थ्योरी में और चीजें भी होती हैं कि एलएलपी क्या है? पार्टनरशिप एलएलपी में
क्या फर्क होता है? वो हम चैप्टर खत्म होने के बाद लास्ट में एक थ्योरी की डिटेल्ड क्लास रख लेंगे। ठीक है? अब
थोड़ा-थोड़ा समझना स्टार्ट करो बच्चों। जैसे हम बात कर रहे हैं पार्टनरशिप की। तो पार्टनरशिप को कौन रेगुलेट करता
है? क्या कोई एक्ट है इसके लिए जिसके अंदर सारी चीजें इसके बारे में लिखी हैं। तो बिल्कुल बच्चों इसको हम बोलते हैं
इंडियन पार्टनरशिप एक्ट। जब कब तभी तुम लोग लॉ पढ़ोगे ना जब तुम
ग्रेजुएशन में आ जाओगे, बीकॉम, बीबीए में आ जाओगे या सीए, सीएस, सीएम में करोगे तो वहां पे तुमको एक सब्जेक्ट पढ़ाया जाएगा
लॉ। वहां पे तुमको मैं ही ये पढ़ाता दिखूंगा। वन ऑफ़ माय फेवरेट सब्जेक्ट इज़ लॉ। मैंने अपना ग्रेजुएशन में काफी अच्छे
से लॉ पे मास्टरी करी। मैंने सीए में लॉ पढ़ा। मैंने एलएलबी करी कंप्लीट लॉ। उसमें तो लॉ ही लॉ है। है ना? तो मैं फर्दर हायर
क्लासेस को अकाउंट्स के साथ-साथ लॉ भी पढ़ाता हूं। तो पार्टनरशिप के लिए बच्चों जो एक्ट चलता है उसको हम क्या बोलते हैं?
इंडियन पार्टनरशिप एक्ट। यानी पार्टनरशिप के बारे में आपको कुछ भी जानना है, कहीं भी कंफ्यूजन है तो आपको ये एक्ट खोल के
देखना है कि हमारे देश में जो एक्ट है वो क्या बोलता है। यानी अगर कहीं पे भी कुछ डिस्प्यूट होगा। सपोज
चिंटू चिंटी और बंटी की पार्टनरशिप है और ये लोग किसी बात पे एग्री नहीं कर पा रहे। लड़ाई
झगड़ा हो रहा है, विवाद हो रहा है तो फिर क्या चीज देखी जाएगी? फिर देखा जाएगा इंडियन पार्टनरशिप एक्ट कि एक्ट क्या
बोलता है? तो जो भी होगा अल्टीमेटली वो एक्ट के अनुसार होगा। ठीक है? बट क्या सर ये तीनों मिलके कुछ ऐसा भी डिसाइड कर सकते
हैं जो इस एक्ट में ना हो। सपोज ये एक्ट तो ये बोलता है कि अगर कुछ भी नहीं लिखा तो प्रॉफिट्स एंड लॉसेस को कैसे बांटो?
इक्वली बांटो। प्रॉफिट्स और लॉसेस को कैसे बांटो? इक्वली बांटो। लेकिन इन तीनों में सबसे
ज्यादा पैसा लगाया है चिंटू ने। उससे कम पैसा लगाया है चिंटी ने। उससे कम पैसा लगाया है बंटी ने। तो इन्होंने बोला हम
प्रॉफिट्स एंड लॉसेस को इक्वली नहीं बांटेंगे। जब सबसे ज्यादा पैसा चिंटू ने लगाया तो सबसे ज्यादा प्रॉफिट भी इसका
होना चाहिए। तो इन्होंने डिसाइड करा कि हम तो प्रॉफिट इस रेश्यो में बांटेंगे। यानी कि अगर ₹60 का प्रॉफिट होता है तो 30
चिंटू का 20 चिंटी का ₹10 बंटी के है ना? तो अब बच्चों ये तो एक्ट के अगेंस्ट हो गया। क्या ये एक्ट के अगेंस्ट जा सकते
हैं? 100% जा सकते हैं। अगर इन्होंने आपस में एक पार्टनरशिप एग्रीमेंट बनाया है। इसका मतलब
बच्चों ये लोग म्यूचुअली डिसाइड करके कुछ भी टर्म्स एंड कंडीशंस पे एग्री कर सकते हैं। आपस में ये
कुछ भी टर्म्स एंड कंडीशंस पे एग्री कर सकते हैं। वो इनकी इच्छा है। क्योंकि बिनेस इनका है। कैसे चलाना है वो इनकी
इच्छा है। कितना-कितना प्रॉफिट बांटना है वो इनकी इच्छा है। उसमें एक्ट क्या करेगा? एक्ट की जरूरत कब पड़ती है? एक्ट की जरूरत
बच्चों तब पड़ती है अगर इन्होंने आपस में डिसाइड नहीं करा। है ना? सपोज इन्होंने आपस में डिसाइड ही नहीं करा कि प्रॉफिट
कैसे बटेगा तो फिर तो हमेशा इक्वल बटेगा क्योंकि एक्ट तो यही बोलता है कि बराबर बटना चाहिए। लेकिन अगर ये चाहें तो अपना
एग्रीमेंट करके किसी भी रेश्यो में प्रॉफिट डिस्ट्रीब्यूशन कर सकते हैं। इस एग्रीमेंट को क्या बोलते
हैं? पार्टनरशिप डीड। इस एग्रीमेंट को क्या बोलते हैं बेटा? पार्टनरशिप डीड। ठीक हो गया? अब
सबसे पहला सवाल ये उठता है कि सर कि पार्टनरशिप डीड बनानी कंपलसरी है क्या? बेटा कंपलसरी तो नहीं है लेकिन बना लेनी
चाहिए। क्योंकि अगर नहीं बनाओगे तो फिर एक्ट के अनुसार चीजें होंगी। सीधी-सीधी सी बात है या नहीं है? तो सबसे पहला सवाल आता
है कि अगर हमने पार्टनरशिप डीड नहीं बनाई तो क्या होगा? यानी कि
रूल्स इन दी एब्सेंस ऑफ पार्टनरशिप डीड। पार्टनरशिप डीड अगर नहीं है तो क्या रूल्स चलेंगे? ठीक है?
सबसे पहला नंबर वन नो इंटरेस्ट ऑन कैपिटल। पूरा ही लिख देता हूं। नो
इंटरेस्ट ऑन कैपिटल विल बी
प्रोवाइडेड। किसी भी पार्टनर को बच्चा कोई भी इंटरेस्ट ऑन कैपिटल नहीं मिलेगा। जैसे नॉर्मली ओनर लोग ये बोलते हैं ना कि हम
बिजनेस में पैसा लगा रहे हैं। तो हमको उस पे इंटरेस्ट मिलना चाहिए। उसको हम क्या बोलते हैं? इंटरेस्ट ऑन कैपिटल। भाई मैं
ओनर हूं। मेरा कोई बिजनेस है। मैंने उसमें पैसा लगाया है ना। अगर मैं उसमें पैसा नहीं लगाऊंगा तो उस पैसे को बैंक में
रखूंगा। तो बैंक भी तो मुझे उस पर इंटरेस्ट देगा ना बच्चों। भाई पैसा हम नॉर्मली बैंक में रखते हैं तो बैंक हमें
इंटरेस्ट देता है। लेकिन हमने बैंक में ना रख के डिसाइड करा कि बिनेस में रखेंगे। बिजनेस में लगाएंगे तो बिजनेस को भी तो
इंटरेस्ट देना चाहिए। तो एक मालिक इंसान एक ओनर पार्टनरशिप फर्म में पार्टनर ओनर होता है। तो पार्टनर हमेशा एक्सपेक्ट करता
है कि मैंने जो कैपिटल लगाया है मुझे उसपे इंटरेस्ट मिलना चाहिए। तो तब मिलेगा अगर आप एग्रीमेंट में लिखोगे। एग्रीमेंट में
नहीं लिखोगे तो सबसे पहले कोई भी इंटरेस्ट नहीं दिया जाएगा। नंबर दो इसी तरीके
से कोई भी इंटरेस्ट ऑन ड्रॉइंग्स आपसे चार्ज नहीं किया जाएगा। नो इंटरेस्ट ऑन ड्रॉइंग्स विल बी
चार्ज्ड। भाई तुम पैसा लगाते हो तो तुमको इंटरेस्ट चाहिए। पैसा निकालोगे तो फर्म को भी तो इंटरेस्ट चाहिए। अगर फर्म में पैसा
लगा रहे हो, तुम ब्याज मांग रहे हो। फर्म से पैसा निकाल रहे हो तो फर्म भी तो तुम्हारे से ब्याज मांगेगी। तो वो दोनों
ही चीज़ें इंटरेस्ट ऑन ड्रॉइंग्स इंटरेस्ट ऑन कैपिटल। एक फर्म के लिए खर्चा होता है। इंटरेस्ट ऑन ड्रॉइंग फर्म पे करती है तो
फर्म के लिए एक्सपेंस होता है। एक फर्म को मिलता है। फर्म के लिए इनकम होता है। ठीक है? तो दोनों ही चीजें अगर डीड नहीं है तो
नहीं होंगी। ना इंटरेस्ट ऑन ड्रॉइंग्स ना इंटरेस्ट ऑन कैपिटल। इनको भी आप डिटेल में भी पढ़ोगे। ठीक है?
तीसरा कोई भी एक्स्ट्रा सैलरी बोनस कमीशन यह भी पार्टनर फर्म से नहीं लेगा।
अगर लेनी है तो डीड में लिखो। डीड नहीं है तो फिर नहीं मिलेगा। ठीक है? तो कोई आईओसी नहीं, कोई आईओडी नहीं, कोई सैलरी बोनस
कमीशन नहीं। उसके बाद नंबर चार बच्चों प्रॉफिट्स एंड
लॉसेस टू बी शेयरर्ड। कैसे बटेंगे? अगर डिसाइड नहीं करा तो यह तो मैंने आपको शुरू में बताया कैसे डिस्ट्रीब्यूट होंगे
बच्चों इक्वली प्रॉफिट्स एंड लॉसेस कैसे डिस्ट्रीब्यूट होंगे इक्वली डिस्ट्रीब्यूट होंगे नंबर पांच अगर फर्म ने कोई लोन लिया
हुआ है बेटा फर्म ने अगर कोई लोन लिया हुआ है तो एग्रीमेंट में लिखा जाए कि कितना परसेंट के से इंटरेस्ट मिलेगा पार्टनर को
लेकिन अगर नहीं लिखा तो फर्म कितना पे करेगी इंटरेस्ट ऑन
लोन विल बी पेड एट द रेट 6% पर एनम। 6% पर एनम के हिसाब से इंटरेस्ट ऑन लोन पे किया जाएगा।
तो बहुत ध्यान से देखेंगे। कोई इंटरेस्ट ऑन कैपिटल नहीं, कोई इंटरेस्ट ऑन ड्रॉइंग्स नहीं, कोई सैलरी बोनस कमीशन
नहीं, प्रॉफिट्स एंड लॉस इक्वली बटेंगे और इंटरेस्ट ऑन लोन किस रेट से पे किया जाएगा? 6% पर एनम के हिसाब से पे किया
जाएगा। ऑलराइट? क्या ये क्लियर है बच्चों? इज दिस क्लियर टू एवरीवन? इसको आप एक बार स्क्रीनशॉट ले लो। ठीक है? इसके बाद बाबू
हमारे पास सवाल आता है कि एक पार्टनरशिप में मिनिमम पार्टनर्स कितने हो सकते हैं और मैक्सिमम पार्टनर्स कितने हो सकते हैं?
तो कम से कम दो तो चाहिए तभी पार्टनरशिप बनेगी। ज्यादा से ज्यादा बच्चों करेंटली 50 हो सकते हैं। ठीक है? अभी के हिसाब से
एक्चुअल में मैक्सिमम नंबर ऑफ पार्टनर्स सेंट्रल गवर्नमेंट नोटिफाई करती है। तो सेंट्रल गवर्नमेंट ने कंपनी रूल्स 2014
में ध्यान रखना पार्टनरशिप एक्ट में नहीं है कि मैक्सिमम कितने होंगे। कंपनीज़ एक्ट में कंपनी रूल्स में सेंट्रल गवर्नमेंट ने
बताया कि मैक्सिमम पार्टनर्स कितने होंगे? 50 होंगे। वैसे 100 तक हो सकते हैं। लेकिन फिलहाल जो सेंट्रल गवर्नमेंट ने नोटिफाई
करे हुए हैं वो 50 करे हुए हैं। तो अभी के रूल्स के हिसाब से मिनिमम टू मैक्सिमम 50 पार्टनर्स हो सकते हैं। तो एक पार्टनरशिप
अगर आपको बनानी है तो मिनिमम दो लोग ज्यादा से ज्यादा 50 लोग। ठीक है? अब मुझे बताओ बच्चों अगर 50 लोग हो जाएंगे भाई। आप
क्लास 11th में क्या करते थे? हम क्लास 11th में पढ़ते थे सोल प्रोपराइटरशिप। अब सोल प्रोपराइटर क्या करता था? ट्रेडिंग
पीएंडएल बनाता था। ट्रेडिंग पीएंडएल अकाउंट में वो क्या करता था? इधर अपनी सारी इनकम्स लिखता था। लिखता था इधर सारी
की सारी इनकम्स। इधर अपने सारे खर्चे लिखता था कि मेरी जेब से जो जो पैसा गया ये पैसा आया, यह पैसा गया। ठीक है? उसके
बाद यहां पे उसका एक नेट प्रॉफिट आ जाता था। यह नेट प्रॉफिट आ जाता था और इसको वो घर ले जाता था। भाई लेट्स सपोज यहां पर
₹200 हैं। खर्च हुए ₹120 तो यहां पर ₹80 बचे ना नेट प्रॉफिट। यह नेट प्रॉफिट यह इंसान घर ले जाता था क्योंकि यह अकेला ही
ओनर होता था। अकेला ही मालिक होता था। सोल प्रोपराइटर होता था। लेकिन अब बताओ बच्चों क्या चीजें बदल गई? क्या अब सिचुएशनंस
चेंज हो गई? अब सोल प्रोपराइटर नहीं ला। अब तो पार्टनर्स हो गए हैं। सर अगर पार्टनर्स हो गए हैं तो फिर तो यह प्रॉफिट
बटना चाहिए। तो इस प्रॉफिट के डिस्ट्रीब्यूशन के लिए इस प्रॉफिट के डिस्ट्रीब्यूशन के लिए बच्चों हम पीएंडएल
के बाद एक अकाउंट और बनाएंगे जिसको हम बोलेंगे पीएंडएल
एप्रोप्रिएशन अकाउंट। तो हम मेनली इस चैप्टर में जो सीखने वाले हैं वो ये सीखने वाले हैं कि पीएंडएल एप्रोप्रिएशन अकाउंट
कैसे बनता है? कैसे प्रॉफिट पार्टनर्स में डिस्ट्रीब्यूट होता है? सर, इसका पर्पस सिर्फ प्रॉफिट डिस्ट्रीब्यूट करना है। यस।
सारे के सारे खर्चे जो हुए हैं आउटसाइडर्स के जो फर्म बिनेस चलाने के लिए खर्चा कर रही है। सेलिंग एक्सपेंसेस,
एडमिनिस्ट्रेशन एक्सपेंसेस, मल्टीपल डायरेक्ट एक्सपेंसेस, इनडायरेक्ट एक्सपेंसेस, बैड डे्स, लॉस व्हाटएवर जो जो
हुआ बच्चों वो सब यहां लिखा जाएगा। लिखने के बाद जो तुम्हारे पास प्रॉफिट बचा, यह जो प्रॉफिट निकल के आया बच्चों, यह
प्रॉफिट कब निकल के आया? सारे खर्चे करने के बाद। अब ये प्रॉफिट तो मालिक लोगों में बंटना है। ओनर्स में बंटना है। भाई
प्रॉफिट कोई बाहर वालों को थोड़ी ना बटता है। प्रॉफिट तो मालिक घर लेके जाते हैं। तो मालिक लोगों में प्रॉफिट बांटने के लिए
डिस्ट्रीब्यूट करने के लिए बच्चों जो अकाउंट बनता है उसको हम पीएंडएल एप्रोप्रिएशन अकाउंट बोलते हैं।
एप्रोप्रिएशन का मतलब ही डिस्ट्रीब्यूशन होता है। तो पर्पस ही क्या है? प्रॉफिट्स को कैसे डिस्ट्रीब्यूट किया जाएगा? समझ गए
बढ़िया से? ओके। सर और हम इस चैप्टर में क्या सीखेंगे? और हम सीखेंगे बच्चों कैपिटल अकाउंट कैसे बनता है? सर कैपिटल
अकाउंट का मतलब क्या है? कैपिटल अकाउंट का मतलब है कि ओनर के पास एक्चुअल कितनी वर्थ हो रही है? उसकी कैपिटल से पता चल जाती
है। है ना? भाई कितना पैसा लगाया। फिर अगर उसको प्रॉफिट वगैरह हुए तो वो कैपिटल में जोड़ देंगे। कैपिटल बढ़ जाएगा। कुछ पैसा
निकाल के घर ले गया। ड्रॉइ्स वगैरह हो गई तो कैपिटल में से माइनस कर देंगे। कैपिटल कम हो जाएगा। क्लास 11th में भी तो यही
करते थे। बैलेंस शीट में याद करो। बैलेंस शीट में क्या करते थे? जो भी नेट प्रॉफिट होता था वो कैपिटल में जुड़ता था और जो भी
नेट लॉस होता था वो कैपिटल में से माइनस हो जाता था। होता था ना ड्रॉइंग्स भी कैपिटल में से माइनस हो जाती थी। तो
पार्टनर अपनी पर्सनल खर्चों के लिए जो भी पैसा लेके जा रहा है वो माइनस कर लेते थे। जो भी पैसा उसको मिल रहा है वो प्लस कर
देते थे। यही सब हम कैपिटल में करने वाले हैं। तो कैपिटल अकाउंट सीखेंगे। पीएंडएल एप्रोप्रिएशन अकाउंट सीखेंगे। इसी तरीके
से कैपिटल का एक छोटा भाई होता है करंट अकाउंट। वो भी सीखेंगे। ये भी मैं तुमको आगे कराऊंगा। एक कैपिटल का ही छोटा भाई
होता है। उसको बोलते हैं करंट अकाउंट। तो पूरे परिवार के बारे में पढ़ने वाले हैं।
एप्रोप्रिएशन के बारे में, कैपिटल के बारे में, करंट के बारे में। ठीक हो गया बच्चों? ये हमें इस चैप्टर में सीखने हैं
मेनली। चलो सर ये तो समझे। अब एक चीज समझो जल्दी से। ये पार्टनर
है। ये फर्म है। ठीक है? इन पार्टनर ने इस फर्म में पैसा लगाया है
जिसको हम कैपिटल बोलते हैं। उसके साथ-साथ ये इस फर्म में हार्ड वर्क भी करते हैं, एफर्ट भी लगाते हैं, मेहनत भी करते हैं और
मेहनत का फल क्या है? प्रॉफिट। मेहनत का फल क्या है बच्चों? प्रॉफिट। वो प्रॉफिट बांटने के लिए जो अकाउंट बनता है, वो बनता
है पीएंडएल एप्रोप्रिएशन अकाउंट। है ना? तो, हम लोग क्या करते हैं? बेसिकली ये जो फर्म है इस प्रॉफिट को बांटने के लिए
बनाती है पीएंडएल एप्रोप्रिएशन अकाउंट। ठीक है? इसको हम ये भी बोलते हैं कि इट इज़ एन एक्सटेंशन टू पीएंडएल अकाउंट। लिख देता
हूं ये भी मैं। इट इज़ एन एक्सटेंशन टू पीएंडएल अकाउंट। पहली बात। दूसरी बात यह एक नॉमिनल अकाउंट है
बच्चों। नॉमिनल का क्या मतलब होता है? कि डेबिट ऑल एक्सपेंसेस एंड लॉसेस, क्रेडिट ऑल इनकम्स एंड गेंस। और इसका मेन पर्पस
प्रॉफिट बांटना है। ठीक है? तो देखो शुरुआत कहां से होगी इस अकाउंट की? यहां पे मेनली वही आएगा पर्टिकुलर्स अमाउंट।
पर्टिकुलर्स अमाउंट। अब देखो शुरुआत होती है बच्चों यहां पे प्रॉफिट्स के साथ।
पीएंडएल यह क्या है? यह तुम्हारा नेट प्रॉफिट है। जो तुमने कमाया है। यह नेट प्रॉफिट फर्म ने कमा लिया। ठीक है? अब हो
सकता है बच्चों कि इन पार्टनर्स ने डीड में कुछ टर्म्स एंड कंडीशंस बनाई हो। ऐसा प्रैक्टिकली 100% पॉसिबल है कि पार्टनर्स
ने डीड में कुछ टर्म्स एंड कंडीशंस बनाई हो। वो टर्म्स एंड कंडीशंस क्या हो सकती हैं? ऐसा हो सकता है बच्चों कि इन्होंने
डीड में लिखा हो कि हमने जो कैपिटल लगाया है हमको उस पे क्या चाहिए? इंटरेस्ट ऑन कैपिटल चाहिए। लिख सकते हैं या नहीं लिख
सकते हैं कि भाई जो कैपिटल लगाया उस पे इंटरेस्ट ऑन कैपिटल चाहिए। दूसरा ऐसा ये डीड में डिसाइड कर सकते हैं कि तीन
पार्टनर हैं चिंटू चिंटी बंटी और ये दो एक्स्ट्रा काम करते हैं। ये कम काम करता है। तो इन दोनों को एक्स्ट्रा काम करने के
लिए एक्स्ट्रा सैलरी भी मिलनी चाहिए। भाई अगर प्रॉफिट तीनों में बट जाएगा तो जो एक्स्ट्रा काम करने वाले हैं उनको
रिवॉर्डेड कैसे फील होगा? तो रिवॉर्ड एज अ रिवॉर्ड उनको पैसा चाहिए। तो ऐसा हो सकता है इन्होंने डिसाइड करा हो कि भैया हमें
फर्म से एक्स्ट्रा काम करने के लिए एक्स्ट्रा सैलरी भी चाहिए। ऐसा हो सकता है कोई बोनस मांगे। ऐसा हो सकता है कोई कमीशन
मांगे। तो सैलरी बोनस कमीशन भी मांग सकते हैं। है ना? और लास्ट में फर्म से ये क्या मांगते हैं? जो प्रॉफिट बच गया उसको हम
बोलते हैं प्रॉफिट्स। एक्चुअल में ये होता है डिविजिबल प्रॉफिट। सर डिविजिबल प्रॉफिट और नेट प्रॉफिट में
क्या फर्क है बच्चों? नेट प्रॉफिट बिफोर ऑल द टर्म्स होता है। डिविज़िबल प्रॉफिट ये सब टर्म्स के बाद इंटरेस्ट देने के बाद,
सैलरी देने के बाद, बोनस कमीशन देने के बाद। ठीक है ना? तो हो सकता है डीड में ऐसा डिसाइडेड हो कि भाई जब पार्टनर पैसा
लगाएगा तो उसको इंटरेस्ट भी मिलेगा। उसको सैलरी भी मिलेगी, उसको प्रॉफिट भी मिलेगा। फर्म के लिए ये सारे खर्चे हैं क्योंकि
फर्म को तो देना है। देखो एरो इधर की तरफ है ना फर्म को तो ये सब पे करना है। राइट? अब ये भी हो सकता है डिसाइड कि भाई अगर
पैसा लगाने पे तुम लोग इंटरेस्ट ले रहे हो तो अगर यहां से पैसा निकालोगे सपोज़ तुमने ड्रॉइंग्स
करा तो ड्रॉइंग्स पे बच्चों फर्म को इंटरेस्ट मिलना भी चाहिए। जिसको हम बोलेंगे इंटरेस्ट ऑन ड्रॉइंग्स।
तो इंटरेस्ट ऑन ड्रॉइंग्स बच्चों इस चैप्टर में अकेली ऐसी चीज है जो फर्म को मिलता है। क्यों मिलता है? क्योंकि
इन्होंने पैसा निकाला तो इनको ब्याज देना पड़ेगा। जब पैसा लगाया तो ब्याज मिलता है। ठीक हो गया? तो यहां पे हम क्या लिखेंगे?
यहां पे लिखेंगे बाय इंटरेस्ट ऑन ड्रॉइंग्स। मैं मान रहा हूं दो पार्टनर
हैं या तीन है x y z। तो जितना-जितना इनका इंटरेस्ट ऑन ड्रॉइंग्स है उतना-उतना यहां अमाउंट लिख के बाहर कर देना। सर इंटरेस्ट
ऑन ड्रॉइंग्स क्रेडिट में क्यों आया? क्योंकि बच्चों इंटरेस्ट ऑन ड्रॉइ्स फर्म के लिए एक इनकम है और नॉमिनल अकाउंट है तो
डेबिट में सारे खर्चे आएंगे, क्रेडिट में सारे इनकम्स आएंगे। ध्यान रखना पूरे चैप्टर में ये अकेली इनकम है जो फर्म को
होने वाली है एप्रोप्रिएशन अकाउंट में। यानी जो पार्टनर्स से लेने वाले हैं। बाकी तो फर्म को इंटरेस्ट ऑन लोन भी मिलेगा। वो
हम आगे पढ़ेंगे। लेकिन मेनली ध्यान रखना कि एप्रोप्रिएशन में बस एक ही इनकम आती है इंटरेस्ट ऑन ड्रॉइंग्स। ठीक है? अब अस्यूम
करो कि फर्म के पास ₹1 लाख ये थे। 30,000 का इंटरेस्ट आ गया। तो फर्म के पास टोटल 130 हो गए। टोटल कितने हो गए?
130। अब फर्म के पास जो 130 हुए हैं वो फर्म ने बांटने हैं। किस में बांटने हैं? मालिक लोगों में। पार्टनर्स में।
पार्टनर्स ने बोला हमने डिसाइड किया हुआ है हमें सबसे पहले तो इंटरेस्ट ऑन कैपिटल चाहिए। तो x का, y का, z का जितना-जित भी
इंटरेस्ट ऑन कैपिटल आएगा टोटल आप बाहर कर देना। ये आ गया इंटरेस्ट ऑन कैपिटल। ठीक है
बच्चों? उसके अलावा किसी पार्टनर ने हो सकता है सैलरी मांगी हो, बोनस मांगा हो, कमीशन मांगा हो। तो ध्यान से रखना सैलरी,
बोनस, कमीशन एसबीसी। उसके बाद बच्चों, हो सकता है कि पार्टनर्स ने डीड में लिखा हो कि हम
फ्यूचर के लिए कुछ ना कुछ सेविंग भी करेंगे। उसको हम बोलते हैं रिजर्व। कुछ ना कुछ पैसा जोड़ेंगे फ्यूचर
के लिए। साइड में रखेंगे। सब घर नहीं लेके जाएंगे। उसको बोलते हैं रिजर्व्स। और फिर जो बच गया वो घर ले जाएंगे। इसको बोलते
हैं डिविजिबल प्रॉफिट। उसको क्या बोलते हैं? डिविज़िबल प्रॉफिट। ये x में, y में, z में। ये
डिस्ट्रीब्यूट हो जाएगा इनकी प्रॉफिट शेयरिंग रेशो में। ये डिस्ट्रीब्यूट हो जाएगा बच्चों इनकी प्रॉफिट शेयरिंग रेशो
में। प्रॉफिट शेयरिंग रेशो आप डिसाइड कर लो। डिसाइड नहीं करी तो इक्वल इक्वल डिस्ट्रीब्यूट होगा। मैंने आपको शुरू में
बताया। सर इसमें थोड़ा एग्जांपल लेके बताओ ना। देखो, मैं मान रहा हूं कि फर्म के पास ₹1
लाख का प्रॉफिट हुआ, बच्चों। फर्म के पास ₹1 लाख का तो प्रॉफिट हुआ। ठीक है? ₹10, ₹10,000 का इंटरेस्ट ऑन
ड्रॉइंग्स आया तो कितना पैसा आ गया फर्म के पास और? ₹30,000 130 टोटल हो गया। फर्म के पास है
इतना पैसा। अब इसमें से खर्चे करेगी फर्म। सपोज़ करो कि 60000 20 20 ₹60 का तो इनका इंटरेस्ट ऑन कैपिटल है। ठीक है? किसी
पार्टनर की सैलरी है 30। ठीक हो गया बच्चों? किसी पार्टनर की सैलरी है 30 वो भी देनी है। उसके बाद 10,000
इन्होंने पैसा जोड़ने की सोची यानी रिजर्व। अब बताओ 130 में से 60 30 90 और 10 1 लाख चला गया। अब कितना बचा लास्ट
में? 30,000 बचा। तो 30,000 जो बचा बच्चों उसको हम एज डिविजिबल प्रॉफिट डिस्ट्रीब्यूट कर
देंगे। अब अगर ध्यान से देखा जाए ना बच्चों तो ये भी तो एक्चुअल में प्रॉफिट ही है। चाहे इंटरेस्ट ऑन कैपिटल हो, सैलरी
बोनस कमीशन हो। बस नाम अलग-अलग है। ठीक है? तो सर जब ये प्रॉफिट ही है तो ये रखा ही क्यों? सीधा यही कर देते। बेटा ये तो
फिक्स्ड रेश्यो में डिसाइड हो जाएगा ना। उस फिक्स्ड रेश्यो में मिलेगा। लेकिन एक्स्ट्रा काम के लिए एक्स्ट्रा पैसा तो
मिलना चाहिए। वो अलग से डिसाइड करना पड़ेगा। कैपिटल हो सकता है किसी ने कम लगाया हो, किसी ने ज्यादा लगाया हो। उस
हिसाब से इंटरेस्ट मिलना चाहिए। प्रॉफिट शेयरिंग रेशियो अलग-अलग हो सकती है। है ना? तो इसीलिए इंटरेस्ट ऑन कैपिटल अलग
डिसाइड किया जाता है। सैलरी बोनस कमीशन अलग डिसाइड किया जाता है। रिजर्व अलग डिसाइड किया जाता है। और जो बच जाता है
उसको घर ले जाते हैं। जिसको हम बोलते हैं डिविज़िबल प्रॉफिट्स। समझे क्या? जल्दी से इसका स्क्रीनशॉट ले लो बच्चों। क्विकली से
इसका स्क्रीनशॉट ले लो। ये आपका मेनली पीएंडएल एप्रोप्रिएशन अकाउंट है। ठीक है? डेबिट में हमने सारे के सारे फर्म के
खर्चे लिखे हैं और क्रेडिट में हमने सारी की सारी फर्म की इनकम्स लिखी है। ये चीज़ क्लियर है क्या बेटा? ये हमारा
एप्रोप्रिएशन अकाउंट होता है जो इस चैप्टर का बेस है। अब हमको अगली क्लास में क्या सीखना है? हमको सीखना है ये इंटरेस्ट ऑन
कैपिटल कैसे कैलकुलेट होता है? हमको सीखना है ये इंटरेस्ट ऑन ड्रॉइंग्स कैसे कैलकुलेट होता है। बाकी तो सब गिवन
होगा। तुमको ये भी गिवेन होगा। तुमको सैलरी बोनस कितना-कितना है? डायरेक्टली गिवेन होगा। रिजर्व्स डायरेक्टली गिवेन
होगा। मेन आईओसी और आईओडी पे सवाल आते हैं। तो इंटरेस्ट ऑन कैपिटल कैसे कैलकुलेट होता है? इंटरेस्ट ऑन ड्रॉइंग्स कैसे
कैलकुलेट होता है? ये हम सीखेंगे हमारी नेक्स्ट क्लास में। आज तो सिर्फ एक इंट्रोडक्शन था। और इस हफ्ते में पढ़ाई की
शुरुआत हो गई है। बढ़िया तरीके से, मस्त तरीके से आप लोग पढ़ रहे हो। एक क्लास अभी और आएगी इस वीक में। हमारे पास मोस्ट
प्रोबेबबली आज क्या डे है? आज है हमारे पास बच्चों वेडनेसडे। है ना? तो वेडनेसडे को अकाउंट्स आ गया। यस।
फ्राइडे को भी आपके पास अभी एक क्लास और आएगी। उसमें हम आईओसी आईओडी की बात करेंगे। अब आज तुमको सिंपली क्या करना है?
सिंपली अच्छे से ये क्लास देखनी है। चेक करो। जो नहीं समझ में आ रहा उसको नोट करो और कमेंट सेक्शन में आपस में भी डिस्कस
करो और लिख देना मैं कमेंट्स पढूंगा देखूंगा और अगली क्लास में वो सारे के सारे तुम्हारे कांसेप्ट्स क्लियर कर
दूंगा। ठीक है? उसके साथ-साथ बच्चों डीसी ऐप जरूर डाउनलोड कर लेना। जितने भी मैं नोट्स यूज़ करूंगा, जितने भी मैं पीपीटीस
यूज़ करूंगा, चैप्टर खत्म होते ही मैं डीसी ऐप पे ये सब अपलोड करवा दूंगा ताकि बच्चों को आसानी रहे कंटेंट निकालने में,
बच्चों को आसानी रहे एक्स्ट्रा क्वेश्चंस करने में। ठीक हो गया। थैंक यू सो मच एवरीवन फॉर जॉइनिंग इन। आज के लिए इतना
ही। आई होप आपको इंट्रोडक्शन क्लियर होगा। मुझे बताना समझ आया या नहीं आया? मजा आया या नहीं आया। बाकी चीजें अगली क्लास में
करते हैं। चीजों को कंप्लीट करेंगे। कीप ग्रोइंग, कीप ग्लोइंग एंड कीप स्माइलिंग। [संगीत]
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