Key Topics Covered
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Introduction to Biology for IIT
- Importance of focusing on both factual and conceptual topics.
- Overview of the upcoming IIT exam and the need for effective revision.
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Factual Topics
- Classification of Living World: Key characteristics and examples of plant and animal kingdoms.
- Microbes in Human Welfare: Importance of microbes in health and industry.
- Morphology and Anatomy of Plants and Animals: Key definitions and examples.
- Plant Growth and Development: Focus on phytohormones and their functions.
- Human Physiology: Important concepts and factual information.
- Cell Biology: Structure and function of cell organelles, cell division processes (mitosis and meiosis). For a deeper understanding, refer to our Comprehensive Guide to Cell Biology: Free Revision Batch Lecture Summary.
- Biomolecules: Structure and function of carbohydrates, proteins, and nucleic acids.
- Photosynthesis and Respiration: Processes and significance in plants.
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Conceptual Topics
- Genetics: Mendel's laws, inheritance patterns, and genetic disorders.
- Evolution: Darwin's theory of natural selection, adaptive radiation, and evidence of evolution.
- Ecology: Ecosystem dynamics, food chains, and ecological pyramids.
- Biotechnology: Techniques like recombinant DNA technology, PCR, and applications in medicine and agriculture. For a comprehensive overview, check out our Comprehensive Overview of Biotechnology and Its Applications.
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Exam Preparation Tips
- Importance of revising key topics multiple times.
- Focus on understanding concepts rather than rote memorization.
- Practice with previous years' question papers and sample questions. For targeted preparation, consider our Exam Prediction Video Summary: Key Topics and Questions.
FAQs
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What are the most important topics for IIT biology?
- Focus on cell biology, genetics, evolution, and biotechnology as they have high probability of appearing in exams.
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How can I effectively revise for the IIT biology exam?
- Use a combination of reading, summarizing, and practicing questions to reinforce your understanding.
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What is the significance of understanding concepts in biology?
- Concepts help in applying knowledge to solve problems, which is crucial for exam success.
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How can I manage my time while preparing for the IIT exam?
- Create a study schedule that allocates time for each subject and stick to it.
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What resources can I use for biology preparation?
- Use textbooks, online lectures, and previous year question papers for comprehensive preparation.
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Are there any specific strategies for answering biology exam questions?
- Read questions carefully, identify keywords, and structure your answers clearly.
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How important is practice in biology preparation?
- Regular practice helps in retaining information and improving problem-solving skills.
हेलो बच्चों, कैसे हो आप लोग? मैं उम्मीद करता हूं कि आप लोग बहुत ही बढ़ियागे और अपनी पढ़ाई में पूरी तरह से लगे हुए
होंगे। पूरी तरह से मगन होंगे। क्योंकि आईआईटी का एग्जाम बहुत करीब आ गया है। लगभग 10 दिन ही बचे हैं आईआईटी के एग्जाम
में। इसीलिए हम आप लोगों के लिए लेके आए हैं आज की क्लास में वन शॉट्स फॉर बायोलॉजी स्पेसिफिकली टारगेटिंग आईआईटी
एग्जाम। तो आज के इस सेशन में हम लोग पढ़ेंगे बायोलॉजी के कुछ बहुत इंपॉर्टेंट बहुत ही इंट्रीगेट टॉपिक्स को जिनसे
आईआईटी में एग्जाम क्वेश्चन पूछे जाने की प्रोबेबिलिटी काफी ज्यादा है। देखो अगर मैं तुम्हें बायोलॉजी को स्प्लिट करके
दिखाऊं तो हमें पता है बायोलॉजी इज़ अ सब्जेक्ट जिसमें दोनों चीजें मिक्स्ड हैं। फैक्ट्स भी कांसेप्ट्स भी हैं और फैक्ट्स
भी हैं। फैक्ट्स याद करना एक कोई बहुत वह चीज नहीं होती है कि आपको याद ही नहीं होंगे फैक्ट्स। फैक्ट्स में आपको बस
मल्टीपल राउंड ऑफ रिवीजन चाहिए होता है। इसलिए कुछ ऐसे टॉपिक्स मैंने यहां पे लिस्ट आउट कर दिए हैं जो बहुत ही फ़क्चुअल
हैं जो आप इन 10 दिन में अगर बार-बार बार-बार रिपीटेडली उनको रिवाइज करोगे तो तुमको याद हो जाएंगे। लेकिन जो मेन
डिफरेंस क्रिएट कर सकते हैं एग्जाम में टॉपिक्स वो होते हैं कॉनंसेप्चुअल टॉपिक्स। जो कई बच्चे कुछ टॉपिक्स छोड़ भी
देते हैं। जैसे पीसीएम स्टूडेंट्स बहुत सारे टॉपिक छोड़ देते हैं, छोड़ के चले जाते हैं और वहां से आसान क्वेश्चन आ जाते
हैं। पर क्योंकि उन्होंने पढ़ा नहीं होता है तो वो नहीं सॉल्व कर पाते हैं। तो हम मेनली इन टॉपिक्स पे आज के सेशन में फोकस
करेंगे क्योंकि फ़क्चुअल टॉपिक्स तो आप बुक से भी समराइज कर सकते हैं। बुक को भी खोल के अगर एग्जांपल्स याद कर लेंगे या
इंपॉर्टेंट डेफिनेशनंस याद कर लेंगे तो हो जाएगी। ठीक? आओ देखते हैं हम लोग क्या-क्या चैप्टर्स हैं फक्चुअल और
क्या-क्या है कंसेप्चुअल टॉपिक्स और फिर हम आगे उसको पढ़ना शुरू करेंगे। ठीक? आ जाओ फैक्चुअल टॉपिक्स की बात करें तो पहली
यूनिट जो है 11th की जिसको क्लासिफिकेशन की यूनिट बोलते हैं जिसमें तुम्हारा लिविंग वर्ल्ड, बायोलॉजिकल क्लासिफिकेशन,
प्लांट किंगडम, एनिमल किंगडम आता है वो उस चैप्टर में या उन चार चैप्टर्स में जितने भी इंपॉर्टेंट कैरेक्टरिस्टिक्स और जितने
भी इंपॉर्टेंट एग्जांपल्स दिए हुए हैं वो सारे तुम लोगों को याद होने चाहिए। दूसरा जो चैप्टर आता है वो आता है माइक्रोब्स इन
ह्यूमन वेलफेयर्स। इसमें पांच छह इंपॉर्टेंट फैक्ट्स हैं जो तुम्हें याद करने हैं। जैसे कि मैं बोल दूं कि
माइक्रोब्स हमारी किस तरह से हेल्प कर सकते हैं। है ना? गोबर गैस में माइक्रोब्स की हेल्प लगती है या फिर जो तुम्हारे कई
सारे मेडिकल यूजज़ हैं माइक्रोब्स के वो सब एग्जाम में पूछे जाते हैं। पूछे भी गए हैं। जैसे ट्राइकोडर्मा वगैरह पूछा गया
है। ठीक है? मोनास्कस परप्यूरियस वगैरह पूछा गया है जो ब्लड कोलेस्ट्रॉल लोवरिंग एजेंट होता है। ओके? मॉर्फोलॉजी एंड
एनाटॉमी ऑफ़ प्लांट्स एंड एनिमल्स। एनिमल्स में फ्रॉग है। उसके सारे इंपॉर्टेंट चीज याद रखने हैं। और प्लांट्स एंड और
प्लांट्स में मॉर्फोलॉजी एंड एनाटॉमी भी काफी फ़क्चुअल है। जैसे मॉर्फोलॉजी में तो तुमको बस मेन एक डेफिनेशन और उस डेफिनेशन
के अंडर कितने सारे सबटाइप्स हैं और उनके एग्जांपल्स याद करने हैं। ठीक? जैसे अगर मैं फॉर एग्जांपल एक बता दूं जैसे
एस्टिवेशन आता है जिसमें हम बोलते हैं कि पेटल्स और सेपल्स एक फ्लावर में किस तरह से अरेंज होते हैं। चार टाइप के हैं वो
वाल्वेट, ट्विस्टेड, इम्ब्रिकेट और वैक्सिलरी। बस इनको याद करना है और इनके एग्जांपल याद करने हैं। इस तरह से सारी
चीजें तुम्हें इन चैप्टर्स में रिवाइज करते जानी है इन 10 दिन में। आ जाओ। प्लांट ग्रोथ एंड डेवलपमेंट। प्लांट
फिजियोलॉजी का यह जो चैप्टर है प्लांट ग्रोथ एंड डेवलपमेंट इसमें फाइटो हॉर्मोनस का टॉपिक बहुत इंपॉर्टेंट है। उसमें फाइट
हॉर्मोस के फंक्शनंस ठीक है और बाकी और चीजें भी क्या इनहबिटरी है? क्या कौन प्रमोट करता है ग्रोथ को? ये सारी चीजें
देखनी है। ओके? नाउ नेक्स्ट इज़ ह्यूमन फिजियोलॉजी। जिसमें छह चैप्टर्स आते हैं और वहां पे मुझे पता है बहुत सारी चीजें
समझने वाली भी हैं लेकिन उसमें बहुत सारी चीजें याद रखने वाली भी है। इसलिए मैंने इसको फ़क्चुअल टॉपिक्स में इंक्लूड कर दिया
है क्योंकि ये सिंपल भी है। अगर एक बार तुम इसको स्टडी करोगे तुमको समझ आ जाएंगी चीजें। मैं इस सेशन में मेनली फोकस करूंगा
जो चीजें एग्जाम पॉइंट ऑफ व्यू से एग्जाम में जिसके आने की प्रोबेबिलिटी ज्यादा है और
जिसको समझने से तुम्हारे नंबर ज्यादा प्रोबेबिलिटी है कि वो ज्यादा बढ़ जाए एनहांस हो जाए काफी हद तक। ठीक है? आ जाओ
देखते हैं। फ़क्चुअल टॉपिक्स पे आ जाए जो मोस्टेंट है विद रिस्पेक्ट टू योर एग्जाम। सेल बायोलॉजी के दो चैप्टर्स जिसमें से
सेकंड चैप्टर जो कि सेल डिवीजन वाला है बहुत इंपॉर्टेंट है। बायो मॉलिक्यूल्स चैप्टर बहुत इंपॉर्टेंट है। फोटोसिंथेसिस
रेस्पिरेशन की जो प्रोसेससेस हैं बहुत इंपॉर्टेंट है। जेनेटिक्स बहुत इंपॉर्टेंट टॉपिक्स हैं। ठीक? मॉलिक्यूलर बेसिस ऑफ
इनहेरिटेंस, एववोल्यूशन, बायोटेक्नोलॉजी और इकोलॉजी ये जो आठ यूनिट्स हैं या आठ चैप्टर्स हैं
इनको ही हमें आज के सेशन में देखना है। इससे पहले भी हम लोगों ने वीडियो बनाई थी जिसमें हम लोगों ने मोस्टेंट टॉपिक्स इन
बायोलॉजी फॉर आईआईटी एग्जाम या फिर नेवर टू मिस टॉपिक्स फॉर पीसीएम स्टूडेंट्स इन आईआईटी एग्जाम वो बनाई उसमें भी हमने
इन्हीं टॉपिक्स को ही बोला था कि यही इंपॉर्टेंट है। अब जिन बच्चों ने कर लिया होगा उनके लिए बहुत अच्छी बात है।
जिन्होंने नहीं किया होगा वो आज कर लें। ठीक है? तो शुरू करते हैं हम एक-एक करके। पहली जो चीज हमें स्टडी करनी है वो है सेल
बायोलॉजी। आ जाओ। पहली जो चीज है जो हमें स्टडी करनी है वो है सेल बायोलॉजी। और सेल बायोलॉजी में जो इंपॉर्टेंट चीज है जहां
से क्वेश्चन पूछा जाता है। पहली चीज तो है कि सेल ऑर्गनल और उसके फंक्शनंस और दूसरी चीज है सेल डिवीजन। ठीक है? जैसे अगर मैं
बोलूं हमारे पास जो सेल ऑर्गेनल्स हैं हमारे पास जो सेल ऑर्गेनल्स हैं वो कौन-कौन से होते हैं भाई? देखें सेल
ऑर्गेनल्स हमारे पास क्या होता है भाई? न्यूक्लियस होता है हमारे पास। ठीक है? न्यूक्लियस के अंदर एक स्ट्रक्चर होता है
जिसको हम न्यूक्लियोलस कहते हैं जिसको हम न्यूक्लियोलस कहते हैं और इसमें आरआरएनए की सिंथेसिस होती है। ठीक है? न्यूक्लियस
मेन कोऑर्डिनेटिंग सेंटर होता है। मेन कोऑर्डिनेटिंग सेंटर होता है सेल का। ठीक है? मेन कोऑर्डिनेटिंग सेंटर होता है
सेल का। ठीक है? न्यूक्लियस में ही डीएनए भी स्टर्ड होता है। यह डीएनए के बारे में इंपॉर्टेंट चीज है। ठीक? अगली चीज जो है
वो क्या है वो जैसे माइटोकांड्रिया मैं बोलूं अगर मैं माइटोकांड्रिया की बात करता हूं तो माइटोकांड्रिया में ही रेस्पिरेशन
होती है। ठीक? और माइटोकांड्रिया को इसीलिए पावर हाउस ऑफ द सेल भी बोलते हैं। ठीक है? थर्ड हो गया तुम्हारा
क्लोरोप्लास्ट। क्लोरोप्लास्ट सिर्फ और सिर्फ प्लांट्स में पाए जाते हैं। और इसमें क्या होती है? इसमें होती है फोटो
सिंथेसिस। इसमें क्या होती है? फोटो सिंथेसिस। अगर मैं चौथा बोलूं
राइबोजोम तो राइबोजोम जो होते हैं वहां पर प्रोटीन सिंथेसिस हो रही होती है। वहां पे प्रोटीन सिंथेसिस हो रही होती है। ठीक है?
अगर मैं बात करता हूं यहां पे गॉल्जी अपेरेटस की या गॉल्जी बॉडी की तो यह पैकिंग या
पैकेजिंग पैकेजिंग सिकक्रशन सॉर्टिंग इन सभी रोल्स के लिए स्पेशलाइज
होते हैं। ठीक है? अगर मैं बात करूं एंडोप्लाज्मिक रेटिकुलम की ईआर जिसको कहते हैं तो ये दो पार्ट में डिवाइडेड होता है।
एसईआर स्मूथ एंडोप्लाज्मिक रेटिकुलम और आरईआर रफ एंडोप्लाज्मिक रेटिकुलम। आरईआर प्रोटीन सिंथेसिस में इन्वॉल्व होता है।
क्योंकि आरईआर के ऊपर राइबोजोम लगे हुए होते हैं और राइबोजोम प्रोटीन सिंथेसिस कर रहे हैं। इनके ऊपर भी अगर लगे हुए हैं
राइबोसोम तो ये भी प्रोटीन सिंथेसिस कर रहे होंगे। स्मूथ एंडोप्लाज्मिक रेटिकुलम लिपिड मेटाबॉलिज्म में इनवॉल्व होता है।
किसमें? लिपिड मेटाबॉलिज्म में इनवॉल्वड होता है। क्लियर?
ठीक। अब आ जाओ आगे। सेंट्रियोल्स एंड सेंट्रोजोम। सेंट्रियोल एंड सेंट्रोजोम जो होते हैं वो किस चीज
में हेल्प करते हैं? वो हेल्प करते हैं तुम्हारी अ स्पिंडल फाइबर फॉर्मेशन में यानी कि सेल डिवीजन में। सेल डिवीजन में
हेल्प करते हैं। दूसरा यह हेल्प करते हैं माइक्रोट्रोटब्यूल के फॉर्मेशन में। माइक्रोट्रोटब्यूल के फॉर्मेशन में। ठीक
है? जो कि सिलिया फ्लैजिला टाइप के स्ट्रक्चर में बनता है। ठीक? क्लियर हो गई इतनी बातें? तो ये हमारे मेन सेल
ऑर्गेनल्स हैं। ओके? यहां पे एक और सेल ऑर्गेनल या दो और सेल ऑर्गनल बचे हुए हैं। एक को हम कहते हैं वैक्यूल। वैक्यूल पता
है क्या करता है? वैक्यूल स्टोरेज करता है। इसीलिए इसको स्टोर हाउस ऑफ सेल कहते हैं। और लाइसोजोम क्या करता है? लाइसोजोम
डाइजेशन करता है फॉरेन सब्सटेंसेस का या फिर जो सेल डेबिस होता है। ठीक है? यह डाइजेशन में इनवॉल्व होता है। सेल की
डेबिस। की डाइजेशन या फिर सेल डेबिस की डाइजेशन या फिर हम बोल सकते हैं
कि यह आल्सो इनवॉल्वड होता है सेल की खुद की डाइजेशन में पूरी तरह से सेल को ये मार देता है कई-कई बार इसीलिए इसको सुसाइडल
बैग भी बोलते हैं। ओके? और फॉरेन ऑर्गेनिज्म्स को भी यही खाता है। ठीक है? तो ये चीजें हैं। ठीक? ये सब फंक्शनंस है।
अब यहां पे एक और चीज बहुत इंपॉर्टेंट होती है कि भाई जो हमारे सेल ऑर्गेनल्स हैं उसमें से कुछ डबल मेंब्रेन सिस्टम है,
कुछ सिंगल मेंब्रेन सिस्टम है और कुछ नॉन मेंब्रेन सिस्टम है। ठीक है? तो सिंगल मेंब्रेन सिस्टम की मैं बात करूं अगर
सिंगल मेंब्रेन सिस्टम की अगर मैं बात करूं तो तुम्हारा गॉल्जी बॉडी सिंगल मेंब्रेन सिस्टम है। लाइसोजोम सिंगल
मेंब्रेन सिस्टम है। एंडोप्लाज्मिक रेटिकुलम सिंगल मेंब्रेन सिस्टम है। वैक्यूल सिंगल मेंब्रेन सिस्टम है। ठीक
है? अगर मैं बोलूं डबल मेंब्रेन सिस्टम तो माइटोकांड्रिया डबल मेंब्रेन है। क्लोरोप्लास्ट डबल मेंब्रेन है।
न्यूक्लियस भी डबल मेंब्रेन है। इसके अलावा जो बच्चे राइबोजोम इसमें कोई मेंब्रेन नहीं है। सेंट्रियोल सेंट्रोजोम
में भी कोई मेंब्रेन नहीं पाई जाती है। इतना ही तुम्हारे अ सेल बायोलॉजी में इंपॉर्टेंट
है। और भी फंक्शनंस हैं इसके। लेकिन मेनम इनके यही फंक्शनंस होते हैं। ठीक है? ग्लाइकोप्रोटीन, ग्लाइकोलिपिड फॉर्मेशन यह
किस में इंपॉर्टेंट होता है? गॉल्जी बॉडी में होता है यह। ठीक? चले आगे आ जाओ। इसके बाद टॉपिक आता है जिसको कहते
हैं सेल डिवीजन। क्या टॉपिक आता है? सेल डिवीजन। सेल डिवीजन में जो है हमें पता है कि सेल जो डिवाइड होता है ना उस वो एक
साइकिल चलती है उनकी। सबसे पहली जो फज़ होती है वो होती है G1 फज़, फिर एस फज़, फिर G2 फज़, फिर एम फज़।
यह जो फज़ है G1 SS G2 इनको कहते हैं हम इंटरफेस। इनको हम कहते हैं इंटर फेज क्योंकि इसमें कोई भी डिवीजन नहीं हो रही
होती है। नो डिवीजन इसमें कोई डिवीजन नहीं होती है। लेकिन सेल जो है वो मेटाबॉलिकली एक्टिव होता है।
मेटाबॉलिकली एक्टिव होता है। पर डिवीजन नहीं हो रही होती है। ठीक है? पर क्या नहीं होती है? डिवीजन नहीं हो रही होती
है। लेकिन यह डिवीजन की तैयारी कर रहे होते हैं। जैसे हम बोलते हैं रशिया यूक्रेन वॉर चल रही है तो उसमें वॉर से
पहले वॉर तो नहीं हो रही होती है लेकिन वॉर की तैयारी चल रही होती है। ऐसे ही डिवीजन की तैयारी चल रही है यहां पे। ओके?
तो ये है इनमें जो एस फज़ है ये बहुत इंपॉर्टेंट है क्योंकि इसमें रेप्लिकेशन ऑफ़ डीएनए
होता है। क्या होता है? रेप्लिकेशन ऑफ डीएनए होता है। तो क्रोमोजोम का नंबर एस फज़ के बाद भी सेम
रहता है। लेकिन डीएनए का कंटेंट डबल हो जाता है। एस फज़ G2 फज़ और एम फज़ बिफोर मेटाफेज़ उसमें जो डीएनए का कंटेंट है वो
डबल हो जाता है। ठीक है? जैसे अगर 46x डीएनए था G1 में तो यहां पे 92x 92x 92x डीएनए हो जाता है। ठीक है? एक यहां पर और
फेज आती है जिसको हम कहते हैं जी0 फको हम कहते हैं जी0 फ जिसको हम कहते हैं जी0 फ इस जी0 फज़ में इस जी0रो फज़ में सेल को पता
ही नहीं होता है कि उसको डिवाइड करना भी है या नहीं करना है तो वो कंफ्यूज होता है इसीलिए इस स्टेज को हम कशंट सेंटर स्टेज
बोलते हैं या कुशंट स्टेज बोलते हैं नॉट कुशंट सेंटर कुशेंट स्टेज बोलते हैं क्योंकि इसमें सेल खुद ही कंफ्यूज होता है
कि वेदर इट हैज़ टू डिवाइड और नॉट नॉट ठीक चले आगे आ जाओ ये तो इंटरफेस थी यहां पे डिवीजन नहीं हो रही थी लेकिन ये फज़ जो है
इसको हम कहते हैं डिवीजन फज़ क्योंकि इसमें डिवीजन हो रही होती है एक्चुअली में ठीक और डिवीजन जो है ये दो प्रकार की होती है
एक को हम कहते हैं माइटोसिस और एक को हम कहते हैं मियोसिस एक को हम कहते हैं मियोसिस
ठीक माइटोसिस जो है वो हमारे सोमेटिक सेल्स में होती है और मियोसिस हमारे जर्म सेल्स में होती
है और जर्म सेल्स में जब मियोसिस होती है तो उससे बनते हैं गेमिट्स। और हमें पता है जो जर्म सेल्स
होते हैं वो डिप्लॉयड होते हैं। लेकिन उनसे जो गेमिट्स बनते हैं वो हैप्लॉयड होते हैं। ठीक? यहां पे माइटोसिस में
सोमेटिक सेल्स जो होते हैं वो डिप्लॉयड होते हैं। लेकिन इससे जो न्यू सेल्स बनते हैं वो भी डिप्लॉयड होते हैं। तो यहां पे
क्रोमोजोम नंबर पहले भी और बाद वाले सेल में भी इक्वल इक्वल है। यानी कि ये इक्वेशनल डिवीजन कहलाएगी। यानी कि ये
इक्वेशनल डिवीजन कहलाएगी। ठीक? और यहां पे आधा हो गया है। यानी कि
यह रिडक्शनल डिवीजन कहलाएगी। यानी कि यह रिडक्शनल डिवीजन कहलाएगी। यानी कि ये रिडक्शनल
डिवीजन कहलाएगी। ये रिडक्शन वो रिडक्शनल डिवीजन कहलाती है। ये इक्वेशनल डिवीजन कहलाती है। क्यों? क्योंकि इसमें पहले और
बाद के सेल्स जो बनते हैं उनमें क्रोमोजोम नंबर सेम होता है। और इसमें पहले वाला क्रोमोजोम नंबर डबल है और यहां पे आधा हो
गया है। ठीक? चले आगे। आ जाओ एक-एक करके देखते हैं। माइटोसिस जो है अगर मैं माइटोसिस की बात करता हूं तो माइटोसिस की
चार फेस होती हैं। प्रोफेज, मेटाफेज,
एनाफेज, और टिलोफेज। हम पता है क्या? हम जभी भी सेल डिवीजन की बात करते हैं ना तो हम मेनली
किस चीज पे वर्क कर रहे होते हैं? हम मेनली क्रोमोजोम और डीएनए को बढ़िया तरह से सेपरेट करना चाह रहे होते हैं। हमारा
और कोई खास मोटिव होता नहीं है वहां पे। क्लियर? तो क्रोमोजोम का डिवीजन हमें कराना है। जैसे ह्यूमन में 46 क्रोमोजोम
है और हमें पता है कि एक सेल से हमको दो सेल बनाने हैं। तो इसमें अगर 46 क्रोमोजोम थे तो इसमें भी हमें 46 क्रोमोजोम देने
हैं। इसमें भी 46 क्रोमोजोम देने हैं। ये हमारा मेन गोल है माइटोसिस में। ठीक है? इनकी जो इंपॉर्टेंट कैरेक्टरिस्टिक्स है
वो मैं तुम लोगों को बता देता हूं। वही इंपॉर्टेंट भी है। पता है क्या? प्रोफेज में क्या होता है? प्रोफेज में कंडेंसेशन
ऑफ क्रोम क्रोमैटिन होते हैं। ठीक है? कंडेंसेशन ऑफ क्रोमेटिन। क्रोमेटिन कंडेंसेशन करके क्या बनाएगी? क्रोमोजोम
बनाएगी। मेटाफेज में जो क्रोमोजोम बनते हैं वो इक्विटोरियल प्लेट पे अलाइन करते हैं।
इक्विटोरियल प्लेट या इक्वेटोरियल प्लेन में अलाइन करते हैं। और यहां पे एक ही इक्वेटोरियल प्लेन बनती है। एक
इक्विटोरियल प्लेन बनती है। ठीक? एनाफेज़ में क्या होता है? एनाफेज में जो है तुम्हारा क्रोमोजोम टूटता है इनू
क्रोमेटिड्स। क्रोमोजोम्स ब्रेक
इंटू क्रोमेटिड्स। क्रोमोजोम्स ब्रेक करता है इंटू क्रोमेटिड्स। तो एक क्रोमोजोम स्प्लिट हो जाता है दो क्रोमेटिड्स में।
तो अगर तुम एनाफेज़ में देखोगे तो यहां पे तुम्हें 92 क्रोमेटिड्स दिखेंगे ह्यूमंस में। क्योंकि हम में 46 क्रोमोजोम है और
हर एक क्रोमोजोम में दो क्रोमेटिड्स हैं। जब ये स्प्लिट हो जाते हैं तो 46 क्रोमोजोम 92 क्रोमेटिड्स में टूट जाते
हैं। 92 में से 46 क्रोमेटिड्स एक पोल पे जाते हैं और 46 क्रोमोजोम दूसरी पोल पे जाते हैं। इस तरह से एक पोल या दूसरा पोल
ऐसे एक पोल पे आधे क्रोमेटिड्स जा रहे हैं। दूसरे पोल्स पे आधे क्रोमेटिड्स जा रहे हैं। और ये जाते किसकी मदद से हैं? यह
स्पिंडल फाइबर्स होते हैं। स्पिंडल फाइबर्स होते हैं। और यह स्पिंडल फाइबर्स बनाता कौन है? यह सेंट्रियोल या
सेंट्रोजोम अभी बताया था थोड़ी देर पहले। ठीक है? क्लियर? ये सेंट्रियोलल्स या सेंट्रोसोम स्पिंडल फाइबर्स बनाते हैं। जो
क्रोमेटिड से अटैच होते हैं और क्रोमेटिड्स को ऑोजिट पोल पे खींच लेते हैं। ठीक? क्लियर इतनी बातें? इतनी बातें
सबको क्लियर होनी चाहिए। टिलोफेज में ये ऑोजिट पोल्स पे आ जाते हैं और एक ही सेल के अंदर दो न्यूक्लियस बन जाते हैं। ठीक
है? तो न्यूक्लियर मेंब्रेन फॉर्म हो जाती है। यहां पे क्या फॉर्म हो जाती है? न्यूक्लियर मेंब्रेन फॉर्म हो जाती है।
अगेन। ठीक? अब होता क्या है कि न्यूक्लियर मेंब्रेन तो फॉर्म हो गई है। लेकिन एक सेल
में दो न्यूक्लियस है। तो हमें क्या करना है? हमें इस दो न्यूक्लियस वाली एक सेल को दो न्यूक्लियस वाली दो सेल बनानी है। यानी
कि हमको इसको साइटोप्लाज्म को भी ब्रेक करना पड़ता है। हमको इसके साइटोप्लाज्म को भी स्प्लिट करना पड़ता है। और
साइटोप्लाज्म की स्प्लिटिंग को हम साइटोकाइनेसिस कहते हैं। साइटोप्लाज्म की स्प्लिटिंग को हम
साइटो काइनेसिस कहते हैं। और यह एनिमल्स और प्लांट्स में अलग-अलग तरह के होते हैं। एनिमल्स
और प्लांट्स में यह अलग-अलग तरह के होते हैं। क्यों अलग-अलग तरह के होते हैं? क्योंकि
प्लांट्स में सेल वॉल होती है और एनिमल्स में सेल वॉल नहीं होती है। एनिमल्स में सेल वॉल नहीं होती है। ठीक? अब जैसे ये है
तो एनिमल का सेल ये है। इसमें दो न्यूक्लियस हैं ऐसे। इसके साइड में फरो बनते हैं और वो फिर फरो सेंटर की तरफ जाते
हैं। ठीक है? इनको हम कहते हैं सेल फरो। इनको हम कहते हैं सेल फरो। इसीलिए हम इसको कहते हैं सेल फरो
और यह फरो जो है यह सेंटर में जाते हैं और एक सेल को दो सेल में डिवाइड कर देते हैं। प्लांट्स जो हैं उनमें पता है क्या होता
है? ये हुआ यह हुआ यह हुआ और इनके साइड इनके बीच में सेंटर में एक प्लेट बनती है जिसको हम कहते हैं सेल प्लेट जिसको हम
कहते हैं सेल प्लेट। यह सेल प्लेट गॉल्जी बॉडी के मॉडिफिकेशन से बनती है। और यह सेल प्लेट फिर
एंड्स में मूव करती है। तो यहां पर साइड से सेंटर पर मूवमेंट होती थी। यहां पर सेंटर से साइड में मूवमेंट हो रही है।
क्लियर? अब क्या होगा? सेंटर से साइड में मूवमेंट पे ये फिर एंड पे मीट करेंगे और ये एक से दो सेल बन जाएंगे। ये जो सेल
प्लेट है, इट इज़ रिच इन कैल्शियम एंड मैग्नीशियम पेक्टेट। इट इज़ रिच इन कैल्शियम एंड
मैग्नीशियम पेक्टेट। इट इज़ रिच इन कैल्शियम एंड मैग्नीशियम पेक्टेट। ये कैल्शियम और मैग्नीशियम पेक्टेट में काफी
रिच होते हैं। क्लियर? तो इसको हम कहते हैं सेल फरो मेथड और इसको हम कहते हैं सेल प्लेट मेथड ऑफ साइटोप्लाज्मिक
डिवीजन या साइटोकाइनेसिस। ठीक? दिस इज़ माइटोसिस। अब हम चलते हैं आगे। आ जाओ देखते हैं मियोसिस को।
अगर मैं मियोसिस की बात करूं तो मियोसिस एक बार नहीं होता है। माइटोसिस जैसे एक ही राउंड ऑफ डिवीजन है।
मियोसिस ऐसा नहीं है। मियोसिस में दो राउंड ऑफ डिवीजन होती है। मियोसिस में दो राउंड्स ऑफ डिवीजन होती है। एक को हम कहते
हैं मियोसिस वन। एक को हम कहते हैं मियोसिस वन और दूसरे को हम कहते हैं मियोसिस
टू। दूसरे को हम कहते हैं मियोसिस टू। ठीक? जैसे माइटोसिस में हम देख रहे थे कि एक सेल दो सेल में डिवाइड करता है। ठीक?
मियोसिस में ऐसा नहीं होता है। मियोसिस में एक सेल पहले दो सेल में डिवाइड करता है। फिर दूसरे दोनों सेल्स जो है वो और
दो-दो सेल्स में डिवाइड करते हैं। तो यहां पे एक से दो सेल्स बनते हैं माइटोसिस में। लेकिन मियोसिस में एक से चार सेल्स बनते
हैं। ठीक? क्लियर? लेकिन फेजेस सेम टाइप की ही होती हैं। उनके सेम नाम भी होते हैं। थोड़ा अलग चीजें हैं लेकिन नाम सेम
होती हैं। तो मियोसिस वन और मियोसिस टू होती है। जिसमें से मियोसिस वन को हम पहले देखते हैं। फिर मियोसिस टू देखेंगे। आ जाओ
मियोसिस वन। अगर मैं मियोसिस वन की बात करता हूं। तो मियोसिस वन अगेन चार फसेस में डिवाइडेड है। प्रोफेज वन, प्रोफेज वन,
मेटाफेज वन, मेटाफेज वन, एनाफेज़ वन और
टिलोफेज़ वन। अब इसमें पता है क्या होगा? एक से दो सेल बनेंगे। मतलब यहां पर एक सेल है और यहां तक आते-आते दो सेल बन जाएंगे।
ठीक है? लेकिन इसमें कुछ चीजें डिफरेंट है और वही डिफरेंसेस एग्जाम में पूछे जाते हैं और उसी पे हमको फोकस भी करना है। जैसे
कि जो प्रोफेज वन है मियोसिस की बहुत ही अलग है माइटोसिस की प्रोफेज वन से या माइटोसिस की प्रोफेस से। इसको पांच फेसेस
में डिवाइड किया गया है। लेप्टोटीन, जाइगोटीन ठीक है। पैकीन
डिप्लोटीन और डायाकाइनेसिस और डाया काइनेसिस। ठीक है? अब यही कुछ फेसेस
हैं जो कि यह एनश्योर करती है कि हमारे जो गेमेट्स हैं वो डायवर्स टाइप के बने। ठीक
है? गेमिट्स में वेरिएशंस प्रोवाइड करने के लिए ये पांचों फज़ रिस्पांसिबल होती है। जिसमें से लेप्टोटीन तो उतनी इंपॉर्टेंट
नहीं है। लेकिन ज़ाइगोटीन इंपॉर्टेंट है। क्यों? क्योंकि इसमें एक प्रोसेस होती है जिसको हम कहते हैं सिनेप्सिस। जिसको हम
कहते हैं सिनेप्सिस और सिनेप्सिस के लिए इंपॉर्टेंट होता है सिनेप्टोनेमल कॉम्प्लेक्स। क्या?
सिनेप्टोनिमल कॉम्प्लेक्स। ठीक है? सिनेप्टोनिमल कॉम्प्लेक्स। तो यहां पे होमोलोगस क्रोमोजोम्स कंबाइन करते हैं।
होमोलोगस क्रोमोजोम्स अलाइन करते हैं। होमोलोगस क्रोमोजोम्स अलाइन करते हैं। मतलब दो
होमोलोगस क्रोमोजोम्स सामने-सामने आते हैं। नाउ, व्हाट आर होमोलोगस क्रोमोसोम्स? मैं बताता हूं। जैसे तुम्हें आधे
क्रोमोजोम्स तुम्हारी मदर से मिले हैं और आधे फादर से मिले हैं। लेकिन सिमिलर टाइप के क्रोमोसोम्स ही मिले हैं। 23 पेयर वहां
से, 23 पेयर वहां से। उसमें से जो हर एक पेयर है ना जैसे फर्स्ट पेयर, सेकंड पेयर, थर्ड पेयर वो सिमिलर टाइप के होते हैं।
मॉर्फोलॉजिकली भी और जेनेटिकली भी। ट्रेट्स या एलील्स अलग-अलग हो सकते हैं। पर जींस सिमिलर टाइप की कंट्रोल करते हैं
वो। ऐसे क्रोमोजोम्स जो देखने में और जो जींस के मामले में सिमिलर होते हैं उनको हम कहते हैं होमोलोगस क्रोमोजोम्स। और वो
होमोलोगस क्रोमोजोम्स अपने काउंटर पार्ट के सामने-सामने अलाइन करते हैं। किस स्टेज पे? जाइगोटीन स्टेज
पे। पैकेटिन वो स्टेज है जिसमें क्रॉसिंग ओवर होता है। और क्रॉसिंग ओवर पता
है? क्या होता है? क्रॉसिंग वॉर में जो क्रोमोजोम्स होते हैं होमोलोगस क्रोमोजोम्स उनके बीच म्यूचुअल एक्सचेंज
ऑफ जेनेटिक मटेरियल होता है। ठीक है? तो एक क्रोमोजोम का थोड़ा सा क्रोमेटिड टूट के दूसरे में चला जाता है और दूसरे का
थोड़ा सा क्रोमेटिड टूट के पहले में आ जाता है। ठीक है? डिप्लोटीन वो स्टेज है जहां पे तुमको कियाज़्मेटा विज़िबल होता है।
और डायाकाइनेसिस में टर्मिनलाइजेशन ऑफ कियाज़्मेटा होता है। ठीक है?
टर्मिनलाइजेशन ऑफ कयास्मेटा होता है। इतनी ही चीजें इसमें इंपॉर्टेंट है। किसमें? प्रोफेज
में। अब मेटाफेज में क्या होता है? मेटाफेज वन, मेटाफेज
वन, एनाफेज वन। और टिलो फेज वन। इसमें पता है क्या होता है?
अब तुम लोग सोचोगे कि अब तो सब सिमिलर होगा। माइटोसिस की तरह ही होगा। लेकिन नहीं अभी भी चीजें डिफरेंट होती हैं। पता
है क्या होता है? मेटाफेज में जो तुम्हारे क्रोमोजोम्स हैं होमोलोगस क्रोमोजोम्स वो एक दूसरे के सामने-सामने आ जाते हैं। यहां
पे दो मेटाफेजिक प्लेट्स बनती है। जबकि माइटोसिस में एक ही मेटाफेजिक प्लेट बन रही यहां पे टू मेटाफेजिक यहां पे टू
मेटाफेजिक प्लेट्स बनती है। यहां पे दो मेटाफेजिक प्लेट्स बनती है। यहां पे दो मेटाफेजिक प्लेट्स बनती हैं। एनाफेज वन पे
होमोलोगस क्रोमोजोम्स ऑोजिट पोल पे जाते हैं। ठीक है?
ऐसे और ऐसे। तो यहां पर होमोलोगस क्रोमोजोम्स ऑोजिट पोल्स पर जाते हैं।
होमोलोगस क्रोमोजोम्स मूव्स एट ऑोजिट पोल। मूव्स
एट ऑपोजिट पोल्स। ठीक है? वो ऑोजिट पोल्स पे मूव कर रहे होते हैं। और टिलो फेज हमको
पता है कि यहां पे एक सेल से दो न्यूक्लियस बन चुके होते हैं। अब यहां पर
साइटोकाइनेसिस होती है जिससे दो सेल्स बनते हैं। अब ये दोनों सेल्स में जैसे अगर मैं ह्यूमन की बात
करूं तो हमें 46 क्रोमोजोम होते हैं। लेकिन मियोसिस वन के बाद इन सेल्स में 23 क्रोमोजोम्स प्रेजेंट हैं। कितने? 23 और
23। अब इसके बाद यह मियोसिस टू में एंटर करते हैं। यह मियोसिस टू में एंटर करते हैं। अब तुम्हारा
क्वेश्चन यह होगा कि जब क्रोमोजोम नंबर आधे हो गए हैं तो हमको मियोसिस टू की क्या जरूरत है? है ना? बिल्कुल सही क्वेश्चन
है। यही पूछना भी चाहिए लेकिन ये कोई पूछता नहीं है ना कोई बताता है। पता है क्या होता है? ये जो 23 क्रोमोजोम्स हैं
इसमें जो डीएनए का अमाउंट है ना वो डबल डबल है। क्योंकि एस फज़ तो इसमें हुआ था। ठीक है? मियोसिस वन के पहले एस फज़ तो यहां
पे हुई थी ना। एस फज़ में जो डीएनए है वो डबल हुआ था। लेकिन यहां पर डबल जो डीएनए हुआ था एक-एक क्रोमोजोम में वो सेपरेट तो
हुआ नहीं है। क्यों? क्योंकि यहां पे क्रोमेटिड्स नहीं सेपरेट हुआ। यहां पे क्रोमोजोम सेपरेट हुए हैं। तो हर एक
क्रोमोजोम में डबल द ग डबल द डीएनए प्रेजेंट है। उसी को आधा करने के लिए मियोसिस टू होती है। ठीक है? तो यहां पे
डीएनए जो है उसका कंटेंट हाफ करने के लिए मियोसिस टू होती है। एंड इट इज सिमिलर टू एंड इट इज सिमिलर
टू माइटोसिस। ये माइटोसिस से सिमिलर होते हैं। ये माइटोसिस से सिमिलर होते हैं। ये माइटोसिस से सिमिलर होते हैं। क्लियर?
इतनी बात सबको क्लियर होनी चाहिए। यही इस चैप्टर का सार है। ठीक? क्लियर? अब इसमें इंपॉर्टेंट क्या है? इसमें इंपॉर्टेंट है
एनाफेज वन, मेटाफेज वन और सबसेेंट है प्रोफेज वन जिसके पांच फेजेस हैं। ओके? अब हम चलते हैं अपने नेक्स्ट टॉपिक
पे। दैट इज बायोमॉलिक्यूल। दैट इज बायोमॉलिक्यूल। अगर मैं बायोमॉलिक्यूल की बात करूं ना, तो बायोमॉलिक्यूल में कुछ
इंपॉर्टेंट टॉपिक्स हमें पहले लिख लेने चाहिए। पहला है कि जितने भी मोनोमर्स और पॉलीमर्स हैं, जितने भी मोनोमर्स और उनके
पॉलीमर्स हैं, उनके बारे में हमें बेसिक जानकारी तो होनी चाहिए। ठीक? दूसरी बात है कि एंजाइम
काइनेटिक्स। बहुत इंपॉर्टेंट चीज है एंजाइम काइनेटिक्स। वो हमको पता होनी चाहिए। और तीसरी बात है हमको न्यूक्लिक
एसिड का स्ट्रक्चर पता होना चाहिए। ठीक? तो यही तीन मेन टॉपिक्स हैं जो हमको पढ़ने हैं। इसमें भी फैक्ट्स भरे हुए हैं।
चैप्टर में जितनी भी टेबल्स हैं, जितनी भी टेबल्स हैं, ठीक है? जितने भी डायग्राम्स हैं, वो सब
इस चैप्टर की इंपॉर्टेंट है। खासकर सेकेंडरी मेटाबोलाइट की टेबल बहुत इंपॉर्टेंट है। ठीक है? अबंडेंस ऑफ
एलिमेंट्स एंड मॉलिक्यूल्स इन द लिविंग सिस्टम एंड ऑन अर्थ क्रस्ट। वो भी बहुत इंपॉर्टेंट है। यह सारी टेबल्स इंपॉर्टेंट
है। बट हमको क्योंकि यहां पर जल्दी-जल्दी सब कुछ कवर करना है। इसलिए हम मेन चीजों पर ही फोकस करेंगे। वो है ये चीजें। जैसे
अगर मैं बोलूं मोनोमर्स और पॉलीमर्स की बात। ठीक है? अगर मैं मोनोमर्स की बात
करूं और मैं पॉलीमर्स की बात करूं तो हमें पता है कि हमारे पास मोनोमर होता है कौन? हमारे पास मोनोमर होता है
शुगर का मोनोसैकराइड। मोनोसैक्राइड। उसका पॉलीमर कौन होता है
पता है? उसका पॉलीमर होता है पॉलीसैकराइड। पॉली सैकराइड। ठीक है? जैसे अगर मैं बोलूं
ग्लूकोस एक मोनोमर है। फ्रुक्टोज़ एक मोनोमर है। ठीक है? लेकिन
ग्लूकोस का पॉलीमर अलग-अलग टाइप के होते हैं। ठीक है? जैसे अगर मैं बोलूं ग्लूकोस का एक पॉलीमर होता है
स्टार्च जो कि स्टार्च टेस्ट में ब्लू कलर देता है। दूसरा पॉलीमर होता है ग्लूकोस का ग्लाइकोजेन जो कि स्टार्च टेस्ट में रेड
कलर देता है। तीसरा होता है सेलुलोज़ जो स्टार्च टेस्ट में कोई कलर नहीं देता है।
ठीक है? फ्रुक्टोज़ का पॉलीमर होता है इनुलिन। ठीक है? समझे? यह चीजें हैं। अच्छा यहां
पर डाइसैकराइड्स भी आते हैं। जैसे कि ग्लूकोज और गैलेक्टोज़ को जोड़ के लैक्टोज़ बनता है। जिसको मिल्क शुगर कहते हैं। ठीक?
ग्लूकोज़ प्लस फ्रुक्टोज़ को जोड़ के सुक्रोज़ बनता है। ठीक है?
ग्लूकोज प्लस ग्लूकोज को जोड़ के दो चीजें बन सकती है। माल्टोज भी बन सकता है और ट्रीहलोस भी बन सकता है और ट्रीहलोस भी बन
सकता है। ठीक है? अब इसमें से ज्यादातर शुगर्स रिड्यूसिंग नेचर की होती है। लेकिन दो
शुर्स हैं इसमें से या दो डसैकराइड्स हैं जो नॉन रिड्यूसिंग शुगर है। पहली है सुक्रोज़ और दूसरी है ट्रीहलोस। सुक्रोज़ और
ट्रहलोस ये दोनों नॉन रिड्यूसिंग शुगर हैं। इतनी बात याद रखना इंपॉर्टेंट है। ठीक है? ये दोनों नॉन रिड्यूसिंग शुगर्स
होती है। ये दोनों नॉन रिड्यूसिंग शुगर्स होती है। क्लियर? क्लियर है भाई इतनी चीजें? अब आ जाओ आगे चलते हैं। ठीक देखते
हैं आगे। अच्छा एक और चीज है। पॉलीमर ऑफ एन एसिटिल ग्लूकोसामीन। एन एसिटिल ग्लूकोसामीन का पॉलीमर भी होता
है एक। उसको हम कहते हैं काइटिन। उसको हम कहते हैं उसको हम कहते हैं काइटिन। उसको हम कहते हैं काइटिन। ठीक है?
उसको हम कहते हैं काइटिन। क्लियर? जो कि सेल वॉल ऑफ फंजाई में प्रेजेंट होता है। सेल वॉल ऑफ फंजाई में प्रेजेंट होता है।
और यही काइटिन आर्थ्रोपोड्स के एग्जोस्केलेटन में प्रेजेंट होता है। आर्थ्रोपोड्स के एक्सोस्केलेटन्स में
प्रेजेंट होता है। क्लियर? आ जाओ चलते हैं आगे। अब एक इंपॉर्टेंट मोनोसैकराइड है जिसको हम कहते हैं अमीनो
एसिड। जिसका पॉलीमर होता है प्रोटीन या पॉलीिपेप्टाइड चेन। प्रोटीन या पॉलीिपेप्टाइड
चेन। ठीक है? अमीनो एसिड जो है वह किस चीज से बना होता है? NH2,
COOH, H और R ग्रुप। ठीक है? अमीनो प्लस एसिड। इसमें अमाइन ग्रुप है और कार्बोक्सिलिक एसिड है और एक आर ग्रुप है।
तो हमारे पास जो अमीनो एसिड है ना उसमें ये आर ग्रुप 20 टाइप के होते हैं। इसीलिए नेचर में हमारे पास इसीलिए नेचर में हमारे
पास 20 अमीनो एसिड होते हैं। 20 अमीनो एसिड्स होते हैं। हमारे पास नेचर में 20 अमीनो एसिड्स होते हैं। ठीक है?
जिसमें से तीन के नाम तुम लोगों को याद रखने हैं। एक है ग्लाइसीन, एक है एलानिन।
एक है एलानिन और एक है सेरीन। ग्लाइसीन, एलानिन और सेरीन।
ग्लाइसीन में जो R ग्रुप है ना ये H है। एलानिन में जो R ग्रुप है वो CH3 होता है। और सेरीन में जो R ग्रुप होता है वो
CH2 OH होता है। ठीक है? समझे? अब तुम देख लो सारी की सारी अमीनो एसिड कायरल कार्बन की होती है। ठीक है? या फिर वो ऑप्टिकली
एक्टिव होती हैं। लेकिन जो ग्लाइसिन है वो ऑप्टिकली इनक्टिव होता है क्योंकि ये कायरल नहीं है। क्योंकि इसमें R ग्रुप H
है और यहां पे एक H और भी प्रेजेंट है तो दो H हो जाते हैं। अब जब दो H हो जाते हैं तो हमें पता है कि क्या होने लग जाती है?
कायरलिटी नहीं रह जाती। क्योंकि कायरलिटी के लिए हमारे पास जो कार्बन है वो एसिमिट्रिक होना चाहिए। यानी कि उसमें दो
सिमिलर ग्रुप्स नहीं होने चाहिए कभी भी। अब ऐसे ही बहुत सारे अमीनो एसिड जुड़ते हैं जिससे प्रोटीन बनती है और प्रोटीन का
जो स्ट्रक्चर होता है ना वो प्राइमरी सेकेंडरी
टर्शरी और क्वार्टनरी स्ट्रक्चर में क्लासिफाइड होता है। प्राइमरी स्ट्रक्चर एक स्ट्रेट चेन होती है। सेकेंडरी में
थोड़ा घुमावदार चीजें होती है। हेलिकल या प्लीटेड स्ट्रक्चर होते हैं। टर्शरी में 3D फोल्डिंग होती है। इस तरह की और
क्वार्टनरी में एक से ज्यादा चेन दो तीन चार चे्स कंबाइन होती हैं जिससे कि क्वार्टनरी स्ट्रक्चर बनता है। प्राइमरी
स्ट्रक्चर इंपॉर्टेंट होता है रिसर्च के लिए क्योंकि ये पोजीशनल इंफॉर्मेशन हमको देता है अमीनो एसिड की। पोजीशनल
इंफॉर्मेशन देता है अमीनो एसिड्स की। ठीक है? यह स्ट्रक्चर स्ट्रक्चरल रोल प्ले करता है। सेकेंडरी स्ट्रक्चर जो है
प्रोटीन का वो स्ट्रक्चरल रोल मेनली प्ले करता है। यह होता है अल्फा हेलिक्स और ये होता है बीटा प्लेटेड शीट।
ठीक? ये अल्फा हेलिक्स होता है और वो बीटा प्लेटेड शीट होती है। ठीक? और ये स्टेबलाइज होते हैं हाइड्रोजन बॉन्ड से।
ये स्टेबलाइज होते हैं हाइड्रोजन बॉन्ड के थ्रू। यह जो 3D स्ट्रक्चर है टर्शरी स्ट्रक्चर
का ये जनरली फंक्शनल एस्पेक्ट्स के लिए इंपॉर्टेंट होता है। तो जितनी भी एंजाइम है ना वो या तो अपने सेकेंडरी या ज्यादातर
टर्शरी स्ट्रक्चरल फॉर्म में होती हैं। ठीक है? तो ये एंजाइमिक रोल प्ले करता है। ठीक? और क्वार्टनरी स्ट्रक्चर जो है वो दो
से ज्यादा प्रोटीन से जुड़ा होता है। मोर देन टू प्रोटीन या मोर देन वन प्रोटीन। एक प्रोटीन से ज्यादा प्रोटीनंस कंबाइन
होती हैं। जिससे क्वार्टनरी स्ट्रक्चर बनता है किसी भी अ प्रोटीन का। ओके? अच्छा इस सेकेंडरी स्ट्रक्चर को
स्टेबलाइज कर रहा था हाइड्रोजन बॉन्ड। इस टर्शरी स्ट्रक्चर को पता है कौन स्टेबलाइज करेगा? मल्टीपल टाइप ऑफ नॉन कोवलेंट
इंटरेक्शन। जैसे कि हाइड्रोजन बॉन्ड तो है। डाइससल्फाइड बॉन्ड्स कोवलेंट बॉन्ड आ जाता है वहां पे। और उसके साथ-साथ यहां पर
आयनिक इंटरेक्शन, डपोल डपोल इंटरेक्शन, डपोल इंड्यूस्ड डपोल इंटरेक्शन, हाइड्रोफोबिक इंटरेक्शन ये सारे
इंटरेक्शंस अ इस स्ट्रक्चर को स्टेबलाइज करने में जुटे हुए होते हैं हमेशा ही। क्योंकि ये स्ट्रक्चर इस फॉर्म में तभी
रहेगा जब इसको पकड़ के रखा जाएगा। ओके? अगर मैं बात करूं इनके अ एग्जांपल्स की तो लेट्स सी द एग्जांपल। क्वार्टनरी
स्ट्रक्चर का एग्जांपल होता है हीमोग्लोबिन। क्योंकि हीमोग्लोबिन है वो चार चेन का बना होता है। चार प्रोटीन चेन
का बना हुआ होता है। ठीक है? दो अल्फा, दो बीटा। यह जो है टर्शरी स्ट्रक्चर यह मायोग्लोबिन इसका एग्जांपल हो सकता
है। सेकेंडरी स्ट्रक्चर में अल्फा हेलिक्स का एग्जांपल मैं तुमको दे सकता हूं। हमारे जो सर पे बाल है उसमें जो किराटिन प्रोटीन
प्रेजेंट है वो। और बीटा प्लेटेड शीट जो है वह फाइब्रोइन ऑफ सिल्क में प्रेजेंट होती है।
फाइब्रोइन ऑफ सिल्क में प्रेजेंट होती है। और अगर तुम किसी भी प्रोटीन को चाहे वो टर्शरी, सेक टर्शरी, क्वार्टनरी,
टर्शरी या सेकेंडरी हो अगर तुम उसको हीट कर दोगे तो वो सब अपने प्राइमरी स्ट्रक्चरल फॉर्म में आ जाती हैं। तो
हमेशा ही हीटिंग से जो प्रोटंस है वो अपने सारे इंटरेक्शन तोड़ के प्राइमरी स्ट्रक्चरल फॉर्म में आने लग जाती हैं।
ठीक? यह तो बात हुई प्रोटीन और अमीनो एसिड की जो काफी इंपॉर्टेंट है। अब यहां पे एक और टॉपिक आता है कि अमीनो एसिड जो होता है
ना अमीनो एसिड जो होता है वो आयनाइज़बल होता है। क्यों? क्योंकि जो अमीनो एसिड होता
है वो कुछ इस टाइप का दिखता है। HR NH2 और
COOH इसमें ये भी एसिडिक ग्रुप है। ये बेसिक ग्रुप है। एसिड बेस जो होते हैं वो आयोनाइज़बल ग्रुप होते हैं। एसिड को अगर
बेसिक कंडीशन दोगे तो वो आयोनाइज हो जाएगा। बेस को अगर एसिडिक कंडीशन दोगे तो वो आयोनाइज हो जाएगा। बेस की टेंडेंसी
होती है H+ एक्सेप्ट करना। एसिड की टेंडेंसी होती है H+ डोनेट करना। ठीक है? तो कम पीए पे ये
पॉजिटिवली चार्ज होता है और इस पे कोई चार्ज नहीं होता है। लो पीए लो पीए पे हमारे अमीनो एसिड पे नेट
पॉजिटिव चार्ज रहता है क्योंकि ये पॉजिटिवली चार्ज हो जाता है और ये कोई चार्ज नहीं पोज़ करता है। लेकिन हाई पीए पे
हाई पीए पे जो तुम्हारा अमीनो एसिड है उस पे उस
पे नेगेटिव चार्ज रहता है। लेकिन एक ऑप्टिमम पीए आता है जब इस पे पॉजिटिव और नेगेटिव चार्ज इक्वल होता है। पॉजिटिव और
नेगेटिव चार्ज इक्वल होता है। जिसको हम ज्विटर आयन बोलते हैं। जिसको हम ज्विटर आयनिक स्टेज बोलते हैं। जिसको हम ज्विटर
आयनिक स्टेज बोलते हैं। तो इस पर जो नेट चार्ज होता है वो जीरो होता है। नेट चार्ज नेट चार्ज जो है वो जीरो होता है
जटर आयनिक स्टेज पर। और ऐसे पीए को हम पीआई बोलते हैं जिस पे जटर आयनिक स्टेज आती है। पीआई मतलब आइसोइलेक्ट्रॉनिक पॉइंट
या आइसो इलेक्ट्रॉनिक पीए। क्लियर? ये चीज होती है। अब आ जाओ आगे चलते हैं। अब इस चैप्टर में एक और इंपॉर्टेंट
चीज आ जाती है। वो है क्या? वह है एंजाइम की एक्टिविटी। क्या? एंजाइम की एक्टिविटी। एंजाइम एक्टिविटी की अगर
मैं बात तुम लोगों को दिखाता हूं तो एंजाइम जो है हमें पता है कि वो सब्सस्ट्रेट से
रिएक्ट करती है और वो एंजाइम सब्सस्ट्रेट कॉम्प्लेक्स बनाती है। फिर वो एंजाइम प्रोडक्ट कॉम्प्लेक्स बनाती है और फिर वो
टूट जाती है एंजाइम और प्रोडक्ट में। ठीक? इस रिएक्शन में एंजाइम जो है इस रिएक्शन में एंजाइम जो है वह
डिग्रेड नहीं होती है। नॉट डिग्रेडेड। ठीक है? इस रिएक्शन में एंजाइम डिग्रेड नहीं होती है। वो जैसी थी वैसी ही
है। इक्विलिब्रियम कांस्टेंट चेंज नहीं होता है। नो चेंज इन इक्विलिब्रियम कांस्टेंट।
के इक्विलिब्रियम में कोई चेंज नहीं होता है। लेकिन इसमें रेट में चेंज आता है। रेट इनक्रीस करती है मोस्ट ऑफ द केसेस में।
ठीक है? क्लियर? तो ये होता है एंजाइम एक्टिविटी की चीज। एंजाइम काइनेटिक्स जो है उसका एक बहुत ही फेमस ग्राफ है। जो कि
आता है पोटेंशियल एनर्जी विद टाइम का ग्राफ। पोटेंशियल एनर्जी विद टाइम का ग्राफ जो कि कुछ ऐसा
दिखता है। यहां पर सबस्ट्रेट होता है और यहां पे प्रोडक्ट होता है। सब्सस्ट्रेट को प्रोडक्ट बनाने के लिए जो हमको पोटेंशियल
एनर्जी चाहिए वो डिफरेंस तो इतना ही है। वो डिफरेंस तो इतना ही है। लेकिन पहले इस
सब्सस्ट्रेट को एनर्जी गेन करनी पड़ती है। फिर वह लूज़ करता है एनर्जी। तब वह प्रोडक्ट में बदलता है। ऐसा नहीं होता कि
यह सीधा यहां से यहां चला गया। ठीक? दिखने में तो जा भी सकता है लेकिन ऐसा होता नहीं है क्योंकि हमेशा ही जब सबस्टेट होता है
जो जब उसको प्रोडक्ट बनाना होता है ना तो उसको हमको चार्ज करना पड़ता है और चार्जिंग के लिए हमको उसको एनर्जी देनी
पड़ती है पोटेंशियल एनर्जी उसकी बढ़ानी पड़ती है इसीलिए उसको एक हायर पोटेंशियल एनर्जी स्टेज पे ले जाना पड़ता है और इस
एनर्जी जो कि गेन होती है सबस्टेट में उस एनर्जी को हम कहते हैं एक्टिवेशन एनर्जी उस एनर्जी को हम क्या कहते हैं
एक्टिवेशन एनर्जी उस एनर्जी को हम कहते हैं एक्टिवेशन एनर्जी। और यहां पे जो स्टेज आती है सबस्टेट की उसको हम कहते हैं
ट्रांज़िशन उसको हम कहते हैं ट्रांज़िशन स्टेट या ट्रांजिशन स्टेज। ठीक है? उसको हम कहते हैं ट्रांजिशन स्टेज।
क्लियर? ये है। समझ गए तुम लोग? अगर प्रोडक्ट का एनर्जी ऊपर होता है। मतलब मान लो प्रोडक्ट का एनर्जी लेवल यहां
पे होता तो ये एक एंडोथर्मिक रिएक्शन होती। और अगर वो नीचे होता है जैसे वो यहां पर है तो यह एक एग्जोथर्मिक रिएक्शन
है क्योंकि इसमें नेट इतनी एनर्जी एक्स्ट्रा निकल रही है। क्लियर? आ जाओ आगे देखते हैं। अब हमें पता है कि जो एंजाइम
है उसके इनबिटर्स भी बहुत सारे होते हैं। एंजाइम के इनबिटर्स भी बहुत सारे होते हैं। इनहबिटर्स भी बहुत सारे होते हैं।
लेकिन उसमें से आईआईएटी पर्सपेक्टिव से स्पेसिफिकली सिर्फ और सिर्फ तुम्हें कॉम्पिटिटिव इनबिटर्स देखने हैं। और
कॉम्पिटिटिव इनहबिटर्स के एग्जांपल्स मैं तुम लोगों को बता देता हूं। जैसे सक्सिनिक डिहाइड्रोजेनेज सक्सिनिक डिहाइड्रोजेनेस
का इनबिटर होता है। हाइड्रो जेनेज़ का इनबिटर होता है कौन? सक्सिनिक डिहाइड्रोजेनेस का इनबिटर होता है
मेलोनेट एंड ऑक्सेलो एसीटेट। सक्सिनिक डिहाइड्रोजेनेस यह एंजाइम रेस्पिरेशन में इन्वॉल्व होती है जो कि
सक्सिनेट को फ्यूमरेट में कन्वर्ट करती है। लेकिन सक्सिनेट जो है उसके सिमिलर स्ट्रक्चर के ये दो मॉलिक्यूल्स होते हैं
जो इस एंजाइम की एक्टिविटी को कम करते हैं कॉम्पिटिटिव इनहिबिशन के द्वारा। समझे? क्लियर?
ओके। इसमें अल्कोहल डिहाइड्रोजेनेस का भी केस आता है। अल्कोहल
डिहाइड्रोजेनेस का भी केस आता है। अल्कोहल डिहाइड्रोजेनेस जो होता है अल्कोहल डिहाइड्रोजेनेस जो होता है ना ये एक्चुअली
में इथेनॉल बना रहा होता है। लेकिन ज्यादा कंसंट्रेशन ऑफ इथेनॉल बनाने पे ये मेथेनॉल भी बना देता है। तो मिथेनॉल
जो है वो इस अल्कोहल डिहाइड्रोजेनेस की इनहिबिशन करता है कॉम्पिटिटिवली तो इथेनॉल का प्रोडक्शन रुक जाता है। कई बार न्यूज़
आती है कि कुछ लोगों की डेथ हो जाती है कच्ची शराब पीने से। वो मेथेनॉल वॉइजनिंग का केस होता है। ठीक है? सल्फा
ड्रग्स सल्फा ड्रग्स एंड मेनी मोर एग्जांपल्स आर देयर बट आई विल नॉट गो इनू द डिटेल्स क्योंकि
ये फिर आउट ऑफ सिलेबस चला जाएगा। ठीक? अब तुम लोग सोचोगे कि भैया आपने तो एग्जांपल दे के छोड़ दिया। इसका मतलब तो बताओ। ठीक
है? बताता हूं। देखो एंजाइम जो होती है ना उसका एक स्पेसिफिक शेप होता है। ये मान लो एक एंजाइम है ई। और इस एंजाइम में एक
साइट होती है जिसको हम कहते हैं एक्टिव साइट जिसको हम कहते हैं एक्टिव साइट।
और यह जो एक्टिव साइट होती है ना इस एक्टिव साइट पे सब्सस्ट्रेट आके बाइंड करता
है। सब्सस्ट्रेट आके बाइंड करता है जिसको मैं s से डिनोट करता हूं। तो हर एक एंजाइम में एक स्पेसिफिक टाइप का कट होता है
जिसको हम एक्टिव साइड बोलते हैं। उस पे स्पेसिफिक टाइप का सब्सस्ट्रेट आके बाइंड करता है।
ठीक है? क्लियर? तो एंजाइम्स आर हाईली स्पेसिफिक क्योंकि उस पर स्पेसिफिक टाइप का या स्पेसिफिक स्ट्रक्चर का सब्सस्ट्रेट
ही आके बाइंड करता है। क्लियर? अब देखो मेरी बात। बात यह है कि अगर इसी सेम स्ट्रक्चर का
कोई और मॉलिक्यूल हो जो ये ना हो कोई और मॉलिक्यूल हो वो यहां पे आ के बाइंड कर जाए तो तो फिर ये
सबसेट बाइंड नहीं कर पाएगा क्योंकि ये बाइंड कर चुका है। इसी वजह इसी चीज को ही हम कॉम्पेटिव इनबिशन बोलते हैं कि कोई
दूसरा मॉलिक्यूल जिसका स्ट्रक्चर बहुत सिमिलर है तुम्हारे सब्सस्ट्रेट से वो आके बाइंड कर जाए इस साइड पर।
और वह उसके बाइंडिंग के कारण प्रोडक्ट तो नहीं बनेगा लेकिन यह सबस्ट्रेट भी यहां से बाइंड नहीं कर पाएगा। तो ऐसे केस में रेट
ऑफ रिएक्शन कम हो जाएगी। क्लियर? तो ये है कि इसमें जो इनबिटर होता है ना वो सेम शेप का होता
है एज ऑफ सब्सस्ट्रेट। जैसा सब्सस्ट्रेट का शेप होता है वैसे ही इसका भी शेप होता है। ठीक है? और इसकी बाइंडिंग जो है वह
सब्सस्ट्रेट की बाइंडिंग को इनबिट कर देती है। तो यहां पर चलता है क्या? कंपटीशन। काहे का कंपटीशन है यह? यह कंपटीशन है टू
बाइंड टू दिस एक्टिव साइट। एक्टिव साइट जो है वह कॉमन रिसोर्स है। उस पे बाइंड करने का यह
एक कंपटीशन चल रहा है। ठीक है? इसके अलावा नॉन कॉम्पिटिटिव इनबिशन और अनक्पॉमटिव इनबिशन भी होते हैं। लेकिन वो तुम्हारी
बुक या तुम्हारे सिलेबस में नहीं है। इसलिए हम वो नहीं पढ़ाएंगे। ओके? क्योंकि हम आईआईटी के लिए प्रिपेयर कर रहे हैं।
अभी नेस्ट के लिए नहीं प्रिपेयर कर रहे हैं। आ जाओ आगे चलते हैं। अब एंजाइम जो होती है
ना उसको एक्चुअल में हम पता है क्या कहते हैं? एंजाइम जो है जब वो पूरी तरह से एक्टिव होती
है उसको हम कहते हैं होलो एंजाइम। उसको हम कहते हैं
होलो एंजाइम। और यह जो होलो एंजाइम होती है ना इसको तुम तोड़ सकते हो दो पार्ट में। एक
को तोड़ोगे तो मेन पार्ट बनेगा जिसको हम एपो एंजाइम कहते हैं। क्या कहते हैं? एपो एंजाइम जो कि मेन प्रोटीन पार्ट होता है।
मेन प्रोटीन पार्ट होता है। मेन प्रोटीन पार्ट होता है। और एक जो आता है उसको हम कहते हैं कोफैक्टर। एक जो आता है उसको हम
कहते हैं को फैक्टर। एक को हम कहते हैं कोफैक्टर। यह कोफैक्टर जो है यह एंजाइम्स या जो इस
मेन पार्ट से बाइंड तो करता है लेकिन हमेशा के लिए बाइंड नहीं करता है। सिर्फ इसको एक्टिवेट करने के लिए बाइंड करता है।
इस एपो एंजाइम को होलो एंजाइम में चेंज करता है क्योंकि होलो एंजाइम एक्टिव होती है और एक्टिवेट होने के लिए इसको क्या
चाहिए? को फैक्टर। अब ये कोफैक्टर जो है यह ऑर्गेनिक भी हो सकता है और यह इनऑर्गेनिक भी हो सकता है।
इनऑर्गेनिक की अगर मैं बात करूं तो इनऑर्गेनिक है मेटल आयन। जैसे बहुत सारे मेटल आयंस होते हैं ना वो एंजाइम्स को
एक्टिवेट करते हैं। बहुत सारे मेटल आयंस एंजाइम को एक्टिवेट करते हैं। लेकिन बहुत सारे ऐसे भी होते हैं एंजाइम्स
जो मेटल आयंस से एक्टिवेट नहीं होते। किसी और चीज से एक्टिवेट होते हैं। वो किसी ऑर्गेनिक मॉलिक्यूल से एक्टिवेट होते हैं।
जैसे कि यहां पे दो कैटेगरी आती है। अगर कोई ऑर्गेनिक मॉलिक्यूल या ऑर्गेनिक सब्सटेंस
एपो एंजाइम से टाइटली बाउंड होता है तो उसको हम प्रोस्थेटिक ग्रुप बोलते हैं। तो इसको हम तो उसको
हम प्रोस्थेटिक ग्रुप बोलते हैं। तो उसको हम प्रोस्थेटिक ग्रुप बोलते हैं। ठीक है? तो उसको हम प्रोस्थेटिक ग्रुप
बोलते हैं। और कोई अगर लूजली बाउंड होता है। कोई अगर लूजली बाउंड होता है उसको हम कोएंजाइम बोलते हैं। उसको हम कोएंजाइम
बोलते हैं। जैसे प्रोस्थेटिक ग्रुप का एग्जांपल है हेम। हेम एक ऐसा मॉलिक्यूल है जो कि
ऑर्गेनिक है और वह प्रोस्थेटिक ग्रुप है व्हिच इज़ इनवॉल्वड इन द एक्टिवेशन ऑफ एंजाइम्स लाइक
परऑक्सिडेज एंड कैटलेजेस। ठीक है? व्हिच इज़ इनवॉल्वड इन द ब्रेकडाउन ऑफ हाइड्रोजन परऑक्साइड। H2O2 का
ब्रेकडाउन करता है इंटू इंटू H2O एंड O2। ठीक है? क्लियर? कोएंजाइम जो है कोएंजाइम जो है वह विटामिंस में पाया जाता है। जैसे
कि एफएमए जैसे कि एफ ए डी ये सारी चीजें क्लियर या
एनएडी ये सारी चीजें मेटल आयंस में एग्जांपल जैसे मैं दे दूं तुम्हें जिंक डाइवोसिव का। जिंक जो है वह
कार्बोक्सीीपेप्टिडेज़ एंजाइम में प्रेजेंट होता है। और कार्बोक्सीपेप्टिडेज़ तभी एक्टिवेट ही होती है जब उसको जिंक मिलता
है। अल्कोहल डिहाइड्रोजेनेस या कार्बोनिक एनहाइड्रोजेनेस कार्बोनिक
कार्बोनिक एनहाइड्रेज़ या अल्कोहल डिहाइड्रोजेनेस या अल्कोहल
डिहाइड्रोजेनेस ये सब होती हैं। ठीक? इन सबको एक्टिवेट कौन करता है? जिंक। तो इस तरह से एंजाइम की एक्टिविटी भी गवर्न होती
है बाय व्हाट बाय दी को फैक्टर्स। अब देखो एंजाइम जो होती है ना वो कई सारे प्रकार की होती है। इसको याद करने का तरीका होता
है क्लासिफिकेशन ऑफ एंजाइम्स। क्लासिफिकेशन ऑफ एंजाइम। जिसको याद करने का तरीका होता है
ओ टी एच एल आई एल ओ टी एच एल आई एल ओ फॉर ऑक्सीडो
रिडक्टेजेस ऑक्सीडो रिडक्टेजेस टी फॉर
ट्रांसफरेजेस एच फॉर हाइड्रोलेजेस एल फॉर
लाजिस आई फॉर आइसोमरेजिस एंड एंड एल फॉर लाइगेजेस एंड एल फॉर एंड एल फॉर
लाइगेजेस एंड एल फॉर लाइगेजेस। अब क्या है ये एंजाइम्स? ये कुछ ग्रुप्स ऑफ एंजाइम है जो स्पेसिफिक काम परफॉर्म करती हैं। जैसे
कि ऑक्सीडो रिडक्टेजेस ऑक्सीडेशन या रिडक्शन में इन्वॉल्व होती है। जैसे H प्लस यानी कि प्रोटॉन्स या इलेक्ट्रॉन्स
के ट्रांसफर में इनवॉल्व होती हैं। ठीक है? जैसे हाइड्रोजनेस। ठीक है? जैसे साइटोक्रोम
मॉलिक्यूल्स। ट्रांसफरेजेस जो होती है यह किसी फंक्शनल ग्रुप के ट्रांसफर में इन्वॉल्व होती है। हाइड्रोलेजिस ये
ब्रेकेज में इनवॉल्व होती है। जितनी भी डाइजेस्टिव एंजाइम्स हैं वो सब हाइड्रोलेजिस ग्रुप में आती हैं। ठीक है?
लाइएस जो है वो वो भी तोड़ती है चीजों को या मॉलिक्यूल्स को लेकिन उनको पानी की रिक्वायरमेंट नहीं होती है चीजों को ब्रेक
करने के लिए। लेकिन इनको पानी की रिक्वायरमेंट होती है। ठीक? आइसोमेरजेसिस नाम से पता चल रहा है।
आइसोमराइजेशन रिएक्शन में इन्वॉल्व होती है और लाइगेज दो मॉलिक्यूल्स को जॉइ कर रही होती है। दो मॉलिक्यूल्स को ये जॉइ
करती हैं। क्लियर? इतनी चीजें तुम्हें एंजाइम्स में याद रखनी है। अब इस चैप्टर में एक और टॉपिक आता है जिसको हम कहते हैं
न्यूक्लिक एसिड का स्ट्रक्चर जो मॉलिक्यूलर बेसिस ऑफ इनहेरिटेंस में भी आता है। लेकिन मैं यहीं पे समझा दे रहा
हूं। ठीक है? देखो भाई न्यूक्लियो एसिड जो है वो न्यूक्लोटाइट का पॉलीमर होता है। न्यूक्लियो टाइट का पॉलीमर होता है
न्यूक्लिक एसिड। न्यूक्लोटाइट का न्यूक्लोटाइट का पॉलीमर होता है न्यूक्लिक एसिड।
न्यूक्लोटाइट का पॉलीमर होता है न्यूक्लिक एसिड्स। और यह न्यूक्लिक एसिड
दो प्रकार के होते हैं। डीएनए और आरएनए डीएनए और आरएनए। ठीक? पहले हम बात
करते हैं न्यूक्लोटाइट की। न्यूक्लोटाइट तीन चीज को जोड़ के बनता है। हमारे पास एक होता है नाइट्रोजनस
बेस। एक होती है पेंटोज़ शुगर। एक होती है पेंटोज़ शुगर। और एक होती है हमारे पास फास्फेट ग्रुप। ठीक है?
फास्फेट ग्रुप। इन तीनों को जब जोड़ दिया जाता है एट स्पेसिफिक पोजीशंस तो क्या बन जाता है? एक न्यूक्लियोटाइड।
ठीक? फास्फेट ग्रुप तुम्हें पता है PO43 नेगेटिव होता है। पेंटोस शुगर दो प्रकार की होती है। एक होती है राइबोज
शुगर और एक होती है डीऑक्सीराइबोज शुगर। ठीक है? एक होती है डीऑक्सी राइबोज शुगर्स। अब यह पांच मेंबर
की रिंग है या पांच कार्बन की रिंग है। हम बोल सकते हैं। यह कुछ ऐसी दिखती है। वन प्राइम, टू प्राइम, थ्री प्राइम,
फोर प्राइम और यहां पे CH2OH ग्रुप होता है। ये फाइव प्राइम कार्बन है। मेन दिक्कत पता है क्या होती है? मेन दिक्कत ये होती
है कि जो सेकंड पोजीशन है टू प्राइम पोजीशन है इन पे जनरली OH ग्रुप लगा हुआ होता है। अगर वो OH ग्रुप
है अगर वो OH ग्रुप है तो वो राइबोज शुगर है। अगर टू प्राइम पोजीशन पे H ग्रुप जुड़ जाए तो वो डीऑक्सीराइबोज़ शुगर होता है। तो
वो डीऑक्सीराइबोज़ शुगर होता है। ठीक? समझ गए सब लोग इतनी बातें। इतनी बातें सबको समझनी है। नाइट्रोजनस बेस जो है यह होते
हैं पांच प्रकार के। ठीक है? आ जाओ देखते हैं। जो नाइट्रोजनस बेससेस होते हैं वो दो प्रकार के हैं।
प्यूरिन प्यूरिन और पिरिमडीन। प्यूरिन दो प्रकार के होते हैं।
एडनीन और ग्वानिन पिरिमडीन तीन प्रकार के होते हैं।
थाइमिन, यूरासिल और और क्या? और साइटोसिन। इनके स्ट्रक्चर
तुम लोगों को याद रखने हैं। मैं यहां पे बनाऊंगा नहीं। बहुत टाइम लग जाएगा बट इनके स्ट्रक्चर तुम लोगों को याद रखने। है। ठीक
है? समझे इतनी बातें? इतनी बातें सबको समझनी है नाइट्रोजनस बेस में। क्लियर? समझे? आ जाओ। चलते हैं। आइए।
जब नाइट्रोजनस बेस पेंटोस शुगर से जुड़ता है। जब जब नाइट्रोजनस
बेस शुगर से जुड़ता है तो वो एक स्ट्रक्चर बनाता है जिसको हम कहते हैं न्यूक्लियोसाइड।
ठीक? जब इस न्यूक्लियोसाइड में तुम फास्फेट ग्रुप जोड़ देते
हो तो वह स्ट्रक्चर बनाता है जिसको कहते हैं न्यूक्लियो टाइट और न्यूक्लोटाइट ही हमने यहां पे
पढ़ा है। ठीक है? जैसे अगर मैं एक सिंपल सा स्ट्रक्चर बना के दिखाऊं। ये है तुम्हारा पेंटोज़ शुगर।
यहां पर है तुम्हारा CH2 OH और इसी OH को हटा के मैंने फास्फेट जोड़ दिया है और यहां पहली पोजीशन पे जो
कार्बन था उस पे मैंने जोड़ दिया है क्या? उस पे मैंने जोड़ दिया है नाइट्रोजनस बेस। एन बेस लेट्स लेट्स से
यहां पे ही N बेस जुड़ गया है। यहां पे जुड़ गया है N बेस। यह एक टिपिकल स्ट्रक्चर
है किसी भी न्यूक्लियोटाइट का कि शुगर नाइट्रोजन बेस और फास्फेट यहां पे जुड़ा हुआ है। क्लियर समझ गए सब लोग इतनी बातें?
इतनी बातें सबको समझनी है। ठीक? अब ये जो है अगर इस पे टू प्राइम पोजीशन पे अगर इसके टू प्राइम पोजीशन पे OH लगा
है इस न्यूक्लोटाइट के तो वो राइबो न्यूक्लोटाइट हो जाएगा। तो वो क्या हो जाएगा? तो वो हो जाएगा
राइबोनक्लोटाइट। राइबोनक्लोटाइट और इसी का पॉलीमर क्या कहलाएगा? आरएनए कहलाएगा।
लेकिन अगर यहां टू प्राइम पोजीशन पे H लगा हुआ है तो यह पता है क्या बन जाएगा? तो यह बन जाएगा डीऑक्सीराइबो न्यूक्लोटाइट। तो
यह बन जाएगा डीऑक्सीराइबो न्यूक्लियोटाइट। और यह पॉलीमराइज होके डीएनए बनाएगा। यह
क्या बनाएगा? यह पॉलीमराइज होके डीएनए बनाएगा। ठीक है? आरएनए के बारे में हम आगे पढ़ेंगे मॉलिक्यूलर बेसिस ऑफ इनहेरिटेंस
चैप्टर में। लेकिन डीएनए के बारे में हम थोड़ी सी जानकारी ले लेते हैं कि डीएनए क्या है? और इसका जो पहला स्ट्रक्चर है वो
किस तरह का डिस्कवर हुआ था। ठीक है? डीएनए जो है जिसको मैंने डीऑक्साइबो न्यूक्लोटाइड बोला है उसका जो स्ट्रक्चर
है वो पहली बार क्रिक एंड वाटसन ने प्रपोज किया था और यह एक सेकेंडरी स्ट्रक्चर
था इन्होंने कहा कि डीएनए जो है इन्होंने जो स्ट्रक्चर ऑफ़ डीएनए प्रपोज किया था वो था बी डीएनए वो क्या था वो था बी डीएनए वो
था बी डीएनए का स्ट्रक्चर और यह जो बी डीएनए होता है यह होता है डबल हेलिकल यह क्या होता है डबल
हेलिकल यह होता है एंटी पैरेलल यह होता है एंटी
पैरेलल मतलब कि एक स्टैंड अगर इस डायरेक्शन में जा रहा है तो दूसरा स्टैंड इस डायरेक्शन में जाता है। ठीक? तीसरी बात
यह है कि इसकी जो बैकबोन है वो पता है किसकी बनी हुई होती है? वो बनी हुई होती है
शुगर फास्फेट की। शुगर फास्फेट शुगर फास्फेट की अगर मैं एक टिपिकल डीएनए मॉलिक्यूल सिंपल वे में बना के दिखाऊं तो
वह ऐसा दिखता है। ऐसा और सेम आगे का स्टैंड भी ऐसा ही दिखता
है। इस तरह का। ठीक? ये ये 3 प्राइम टू 5 प्राइम होता है और ये 5 प्राइम टू 3 प्राइम होता है।
क्लियर? इस तरह की चीजें होती हैं। ये दो स्टैंड्स हैं जो कि एंटी पैरेलल है। लेकिन ये यहां पर पता है क्या? ये यहां पर जुड़े
होते हैं नाइट्रोजनस बेससेस के द्वारा। ये जुड़ते हैं यहां पे नाइट्रोजनस बेससेस के द्वारा।
ठीक है? और नाइट्रोजनस बेससेस में होती है हाइड्रोजन बॉन्डिंग जिनके थ्रू ये जुड़े हुए होते हैं। जिनके थ्रू ये जुड़े हुए
होते हैं। अगर बॉन्डिंग की बात आ ही गई है तो मैं तुमको यह बता दूं कि शुगर और फास्फेट ये जो है ये पता है कौन से बॉन्ड
से जुड़े हुए होते हैं? ये जुड़े हुए होते हैं फास्फो डाई ईस्टर बॉन्ड से।
फास्फोडाइस्टर बॉन्ड से। ये फास्फोडाइस्टर बॉन्ड से जुड़े हुए होते हैं। ठीक है? अच्छा यहां पे भी तुम देख लो ये जो शुगर
है ये इस नाइट्रोजनस बेस से जुड़ी हुई होती है ग्लाइकोसिडिक बॉन्ड के थ्रू ग्लाइकोसिडिक बॉन्ड के थ्रू ठीक है
और ये जो फास्फेट है ये इससे जुड़ा हुआ होता है फास्फोस्टर बॉन्ड के थ्रू फास्फो एस्टर बॉन्ड के थ्रू
ठीक है क्लियर समझे अब मैंने यहां पे तुम लोगों को यह बताया कि ये जो हाइड्रोजन बॉन्ड होता है ये नाइट्रोजनस बेसिस के बीच
होता है जो दो स्टैंड्स में प्रेजेंट होते तो यहां पे पता है क्या होता है? यहां पे हमेशा ही एडनीन जो है वो थाइमिन के साथ
हाइड्रोजन बॉन्ड बनाता है। वो भी दो। यहां पे बनते हैं दो H बॉन्ड्स। ठीक? और ग्वानिन जो है वो साइटोसिन के साथ
तीन हाइड्रोजन बॉन्ड्स बनाता है। तीन हाइड्रोजन बॉन्ड्स बनाता है। तीन हाइड्रोजन बॉन्ड्स बनाता है। समझे?
क्लियर? अब ये जो बी डीएनए है इस ये तो जनरल कररेक्टरिस्टिक्स हो गए। ये बी डीएनए के नहीं है। ये जनरल डीएनए के हैं। तो ये
बी डीएनए में तो प्रेजेंट होंगे ही। लेकिन इसके अलावा बी डीएनए के कुछ स्पेसिफिक कररेक्टरिस्टिक्स होते हैं। वह
देखते हैं। जैसे अगर मैं एक टिपिकल बी डीएनए का स्ट्रक्चर बनाने की कोशिश करूं तो ऐसा
दिखेगा। डीएनए सारे ऐसे ही दिखते हैं। जो एक 360° टर्न होता है ना एक 360° टर्न जो होता है उसको हम कहते हैं एक
पिच। उसको हम कहते हैं एक पिच। उसको हम कहते हैं एक पिच। और ये एक पिच जो है ये
34 34 एंग्स्ट्रो का होता है। ठीक है? और एक पिच जो है ना एक पिच जो है एक पिच जो है उसमें 10 बेस पेयर्स आते हैं। उसमें
10 उसमें 10 बेस पेयर्स आते हैं। तो अगर मैं पूछूं कि
डिस्टेंस कि डिस्टेंस बिटवीन टू बेस पेयर कितना होगा? दो बेस पेयर के बीच का डिस्टेंस कितना होगा? तो तुम्हें पता है
10 के बीच का होगा 34 तो एक के बीच का दो के बीच का कितना होगा? 34 /10 यानी कि 3.4 आर्मस्ट्रांग।
ठीक है? अगर इसमें 10 बेस पेयर आते हैं। अगर इसमें 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 बेस पेयर्स आ रहे हैं। और ये मुझे पता है कि
360° टर्न भी करेगा। तो दो बेस पेयर के बीच कितना टर्न होगा? दो बेस पेयर के बीच कितना टर्न होगा? वह होगा 36°.
ठीक है? टर्न बिटवीन टू बेस पेयर विल बी 360 / 10 दैट इज़ 36°।
ये 36° का टर्न यहां पे होगा। 36° का टर्न यहां पे होगा। क्लियर? इतनी चीजें हम लोगों को जाननी है। एक और चीज जाननी है कि
इसका जो डायमीटर है ये जो टर्न है हमें पता है ये हेलिक्स है। हेलिक्स मतलब क्या? वो टर्न हो रहा है। उसको ऊपर से देखोगे तो
ये कैसा दिखेगा? सर्कुलर दिखेगा। सर्कल का एक डायमीटर होता है। तो बी डीएनए का भी एक डायमीटर होता है। वो होता है 20
आर्मस्ट्रांग का। 20 आर्मस्ट्रंग का डायमीटर यहां पे होता है। 20 आर्मस्ट्रंग का यहां पे डायमीटर होता है। ठीक? क्लियर?
तो ये कुछ चीजें थी बायोम मॉलिक्यूल चैप्टर की जो मुझे तुम लोगों को बतानी थी। अब हम चलते हैं अपने अगले चैप्टर में। दैट
इज फोटोसिंथेसिस। दैट इज फोटोसिंथेसिस। अगर मैं फोटोसिंथेसिस की बात करता हूं तो तुम्हें पता है
फोटोसिंथेसिस में CO2 को H2O के साथ जोड़ के क्या बनाया जाता है? C6H12 O6 प्लस ऑक्सीजन भी इवॉल्व होती है।
प्लस वाटर भी यहां से निकलता है। ठीक है? इसकी डिस्कवरी वगैरह तो तुम लोग वो फैक्ट है तो तुम लोग याद कर सकते हो इस चैप्टर
में देख के। मैं मेन फोकस करूंगा कि ये प्रोसेस होती कैसे है। है ना? ये दोनों कंबाइन कैसे हो के ये रिएक्शन कर लेते
हैं। है ना? देखो ये जो CO2 है इसकी मदद से ये बनता है।
ठीक? और ये जो ऑक्सीजन इवॉल्व हो रहा है वो पता है कहां से आता है? वो इससे आता है। इसके जो ऑक्सीजंस है ना वही यहां पे
इवॉल्व हो रहे होते हैं। क्लियर? ये जो प्रोसेस है H2O को तोड़ के ऑक्सीजन बनाने का इसको हम कहते हैं लाइट
रिएक्शन। मतलब यह एक रिएक्शन में होता है जिसको हम कहते हैं लाइट रिएक्शन। ठीक? CO2 से
C6H2O6 बनने की प्रोसेस जो है वो होती है एक रिएक्शन में जिसको हम कहते हैं डार्क रिएक्शन। उसको हम कहते हैं
डार्क रिएक्शन। उसको हम कहते हैं डार्क रिएक्शन। ठीक? क्लियर? उसको हम कहते हैं डार्क रिएक्शन। और यही दो रिएक्शन जो है
उससे पूरा का पूरा फोटोसिंथेसिस हो जाता है। क्या? डार्क रिएक्शन और लाइट रिएक्शन। ठीक? अब तुम लोग कहोगे कि लाइट और डार्क
से क्या मतलब है? लाइट रिएक्शन इसको इसलिए बोलते हैं क्योंकि यह लाइट की प्रेजेंस में होती है। क्योंकि हमें पता है सनलाइट
चाहिए होती है फोटोसिंथेसिस कराने के लिए। और यह डार्क में नहीं हो रहा होता है। यह डार्क
में भी होता है और लाइट की प्रेजेंस में भी होता है। लेकिन इसको लाइट बोल दिया इसलिए इसको डार्क बोलना पड़ जाता है। ठीक
है? देखो, कोई भी प्रोसेस कराने के लिए सबसे पहले हमको एनर्जी चाहिए होती है। ठीक है?
तो हमारा मेन मुद्दा क्या है? हमारा मेन मुद्दा है यह बनाना। इसको बनाने के लिए भी एनर्जी चाहिए। वो एनर्जी कहां से मिलती
है? सनलाइट से। लेकिन वो सनलाइट की एनर्जी सीधा ही थोड़ी प्लांट ले लेगा। उसको वो अपनी केमिकल एनर्जी में कन्वर्ट करता है।
तो सनलाइट को पहले केमिकल एनर्जी में कन्वर्ट किया जाता है ताकि यह बन सके। तो सनलाइट की एनर्जी को कन्वर्ट करते हैं इनू
एटीपी एंड एनएडीपीए। सनलाइट की एनर्जी को कन्वर्ट किया जाता है इनू केमिकल एनर्जी ऑफ एटीपी एंड
एनएडीपीए इन लाइट रिएक्शन। फिर ये एटीपी और एनएडीपीए जो प्रोड्यूस होता है ना उसको यूज़ किया जाता है डार्क रिएक्शन में टू
प्रोड्यूस ग्लूकोस। टू प्रोड्यूस टू प्रोड्यूस ग्लूकोस। टू प्रोड्यूस ग्लूकोस।
और यही दो रिएक्शन हमको इस चैप्टर में पढ़नी होती है। यही इंपॉर्टेंट ही है इस चैप्टर में। ठीक? आ जाओ देखते हैं। अब
क्वेश्चन पूछने को वो कहीं से भी पूछ सकता है। लेकिन इंपॉर्टेंट यही चीज है। मैं तुम
लोगों को बता देता हूं। क्वेश्चन पूछने को वो डिस्कवरी से भी पूछ सकता है। वो एक्शन स्पेक्ट्रम अब्सॉर्प्शन स्पेक्ट्रम से भी
पूछ सकता है। वो लाइट रिएक्शन डार्क रिएक्शन से भी पूछ सकता है। वो C3 C4 साइकिल से भी पूछ सकता है। वो फैक्टर्स
अफेक्टिंग फोटोसिंथेसिस से भी पूछ सकता है। लेकिन जो इस चैप्टर का मेन सार है जो इस चैप्टर में हमको स्टडी करना होता
है वो यही चीजें हैं। लाइट और डार्क रिएक्शन। क्योंकि फोटोसिंथेसिस इन्हीं रिएक्शन से होती है।
देखो हमें पता है फोटोसिंथेसिस कहां होती है? प्लांट्स के ग्रीन पार्ट
में। यानी कि मेनली लीफ में। लीफ के सेल्स में। लीफ के सेल्स को हम मेसोफिल सेल्स बोलते हैं। मेसोफिल सेल बोलते हैं।
मेसोफिल सेल के अंदर यह मेसोफिल सेल के क्लोरोप्लास्ट में होती है। और क्लोरोप्लास्ट कुछ-कुछ ऐसा दिखता
है। ऐसा दिखता है क्लोरोप्लास्ट। ठीक है? समझ गए? क्लोरोप्लास्ट की जो मेंब्रेन है उसमें कुछ बहुत सारी प्रोटंस प्रेजेंट
होती हैं। उन प्रोटंस को हम कहते हैं फोटोसिस्टम्स। उन प्रोटंस को हम क्या कहते हैं? उनको हम कहते हैं उनको हम कहते हैं
उनको हम कहते हैं फोटो। सिस्टम्स उनको हम कहते हैं
फोटो सिस्टम्स। ठीक है? उनको हम कहते हैं फोटो सिस्टम्स। अब ये फोटोसिस्टम जो है यही लाइट अब्सॉर्ब करते हैं। इसी
फोटोसिस्टम के अंदर बहुत सारे पिगमेंट्स होते हैं और प्रोटंस होते हैं जिनको हम लाइट हार्वेस्टिंग प्रोटंस एंड लाइट
हार्वेस्टिंग पिगमेंट्स भी बोलते हैं और कंबाइन होके उसको हम लाइट हार्वेस्टिंग कॉम्प्लेक्स भी बोलते हैं। जिसमें लाइट
हार्वेस्टिंग पिगमेंट्स भी होते हैं और लाइट हार्वेस्टिंग प्रोटीनंस भी होती है। ठीक है? और ये जो पिगमेंट मॉलिक्यूल्स
होते हैं इसमें हमारे पास मेन जो पिगमेंट होता है वो होता है क्लोरोफिल ए जिसको हम रिएक्शन सेंटर भी
बोलते हैं जिसको हम रिएक्शन सेंटर भी बोलते हैं जिसको हम रिएक्शन सेंटर भी बोलते हैं। ठीक क्लियर
समझ आ गया? ये क्या है? यह क्लोरोप्लास्ट के अंदर एक स्ट्रक्चर होता है जिसको हम कहते
हैं थायलाकोइड। यह उसकी मेंब्रेन है। ठीक? क्लोरोप्लास्ट के अंदर एक स्ट्रक्चर होता
है जिसको हम कहते हैं थाकोइड। ये उसकी मेंब्रेन है। ठीक? जैसे अगर मैं बोलूं यह क्लोरोप्लास्ट है। इसके अंदर बहुत सारे इस
टाइप के स्ट्रक्चर प्रेजेंट होते हैं। जिनको हम कहते हैं ग्रेना। और इस ग्रेना में एक जो स्ट्रक्चर है उसको हम कहते हैं
थायलाकॉइड। और इस थैलाकॉइड को ज़ूम इन करें तो इसमें डबल मेंब्रेन है और इस मेंब्रेन के अंदर फोटोसिस्टम प्रेजेंट होता है।
देखो कितना ज्यादा हम गहराई में जा चुके हैं। हमने शुरू किया था प्लांट से। हम पहुंचे लीफ पे। फिर हम पहुंचे मीज़ोफिल
सेल्स पे। फिर हम पहुंचे क्लोरोप्लास्ट पे। क्लोरोप्लास्ट के अंदर हमने देखा ग्रेना है। ये हीप। इस हिप के अंदर हमने
देखा कि एक थायलाकॉइड है। इस थायलाकोइड को हमने ज़ूम इन किया। उसके अंदर दो मेंब्रेन है। उन मेंब्रेन के बीच में एक स्ट्रक्चर
जिसको हमने बोला फोटोसिस्टम। उसके अंदर बहुत सारे मॉलिक्यूल्स हैं। जैसे लाइट हार्वेस्टिंग पिगमेंट्स और लाइट
हार्वेस्टिंग प्रोटंस। इन लाइट हार्वेस्टिंग पिगमेंट में क्लोरोफिल बी, जैंथोफिल, कैरोटिनोइड्स ये सारे प्रेजेंट
है। लेकिन उसमें मेन जो पिगमेंट है वो है क्लोरोफिल ए जिसको हम रिएक्शन सेंटर कहते हैं। ठीक?
अच्छा यह जो फोटो सिस्टम है इनमें से कुछ फोटो सिस्टम 700 नैन मीटर की लाइट को अबजॉर्ब करते
हैं और कुछ फोटो सिस्टम 680 नैनोमीटर की लाइट को अब्जॉर्ब करते हैं। जो 700 नैनोमीटर की लाइट को
अब्जॉर्ब करते हैं उनको हम कहते हैं फोटोसिस्टम 700 P700 जो 680 को अब्जॉर्ब करते हैं उसको हम कहते हैं फोटोसिस्टम 680
यानी कि P680 इसको हम कहते हैं PS1 फोटोसिस्टम वन इसको हम कहते हैं फोटोसिस्टम
टू PS टू ठीक और इन्हीं दोनों के कॉम्बिनेशन से ही क्या चलती है हमारी इन्हीं दोनों की कॉम्बिनेशन से ही चलती है
हमारी जो पूरी पूरी लाइट रिएक्शन है वो इन्हीं दोनों के कॉम्बिनेशन से चलती है। आ जाओ देखते हैं
क्या होता है। होता यह है कि अगर मैं तुम्हारे थायलाकोइड के जो स्ट्रक्चर है उसको ज़ूम इन करूं। मान लो इसको ज़ूम इन
करूं तो ये मेंब्रेन ऐसी दिखेंगी। एक मेंब्रेन तो ये मेंब्रेन ऐसी दिखेंगी। एक मेंब्रेन यहां पे
और दूसरी मेंब्रेन यहां पे। ठीक? इनमें ये फोटोसिस्टम्स होते
हैं। ये फोटोिस्टम्स होते हैं यहां पे। ठीक? मान लो कि ये है फोटोसिस्टम टू। ये है पीS
टू और मान लो ये है पीS1 फोटोसिस्टम वन। ठीक है? पीS2 और पीS1। यहां पे होता है क्लोरोफिल ए। यहां पे
होता है क्या? क्लोरोफिल ए। यहां पे भी क्या होता है? क्लोरोफिल ए। ठीक है? जब सनलाइट पड़ती है
680 नैन मीटर की तो यहां के क्लोरोफिल ए जो है वो उसके इलेक्ट्रॉन्स एक्साइट हो जाते हैं। और
यहां पे भी जब सनलाइट पड़ती है 700 नैनोमीटर की तो यहां के भी इलेक्ट्रॉन्स एक्साइट हो जाते हैं। ठीक है? यहां के
इलेक्ट्रॉन एक्साइट जब होते हैं ना तो उसको पकड़ लेता है कौन? इलेक्ट्रॉन एक्सेप्टर। और उस इलेक्ट्रॉन एक्सेप्टर को
हम कहते हैं फियोफाइटिन। क्या कहते हैं? फियो फाइटिन। फियोफाइटिन के इलेक्ट्रॉन्स को पढ़ता है
प्लास्टोकनोन। कौन पढ़ता है? प्लास्टो क्वीनोन जो कि क्वीनोन में कन्वर्ट भी हो
सकता है जो कि क्वीनोन में कन्वर्ट भी हो सकता है। उसके इलेक्ट्रॉन्स को पकड़ा जाता है
साइटोक्रोम B6F कॉम्प्लेक्स के द्वारा। उसके इलेक्ट्रॉन्स को पकड़ा जाता है प्लास्टोसाइनिन के द्वारा।
और इनके इलेक्ट्रॉन्स को दे दिया जाता है इस क्लोरोफिल A को। लेकिन इस क्लोरोफिल A को क्यों दिया जा रहा है? क्योंकि इसका
इलेक्ट्रॉन एक्साइट हो चुका है और यह पॉजिटिवली चार्ज हो चुका है। भाई जब किसी का इलेक्ट्रॉन एक्साइट होगा तो उस पे
इलेक्ट्रॉन डेफिशिएंट सेंटर आएगा। तो जब वो इलेक्ट्रॉन डेफिशिएंट हो जाएगा तो उस पे पॉजिटिव चार्ज आ जाएगा। उसके पॉजिटिव
चार्ज को सेटिस्फाई करने के लिए या फिर उसके पॉजिटिव चार्ज को न्यूट्रलाइज करने के लिए यहां के इलेक्ट्रॉन्स दे दिए गए।
लेकिन जो इसका इलेक्ट्रॉन एक्साइट हुआ था उसको भी किसी इलेक्ट्रॉन कैरियर ने पकड़ लिया है। वो कौन है? वो है भाई
फराडॉक्सिन। वो है फराडॉक्सिन। और फराडॉक्सिन ने पता है क्या किया? इस इलेक्ट्रॉन को फराडॉक्सिन डोनेट
करता है किसको? NDP+ इलेक्ट्रॉन + H+ व्हिच गिव्स NADH
ठीक है? तो इसका जो इलेक्ट्रॉन है उसको यूज़ कर लिया गया है टू प्रोड्यूस NADPH विद द हेल्प ऑफ एन एंजाइम जिसका नाम
होता है FNR FNR इज़ व्हाट फेरडॉक्सिन एनएडीपी
रिडक्टेज़ फेडॉक्सिन एनएडीपी रिडक्टेज फेरडॉक्सिन एनएडीपी
रिडक्टेज फेडक्सिन एनएडीपी रिडक्टेज ठीक है? फेरडॉक्सिन एनएडीपी रिडक्टेस के
द्वारा यह होता है। तो मैंने तुम लोग को अभी थोड़ी देर पहले यही बताया था कि इस रिएक्शन में एटीपी और nएपीए बनता है। क्या
बनता है? एटीपी और nएp पीए बनता है। ठीक है? तो nएपीए तो हमने बना दिया यहां पे। nएडीपीए तो हमने बना दिया यहां पे। ठीक
है? अब हमें और एक चीज बनानी है जो थी एटीp जो थी एटीp। लेकिन उससे पहले मैं तुम लोगों को ये बोल
दूं या ये पूछ लूं कि क्लोरोफिल ए यहां के क्लोरोफिल ए का इलेक्ट्रॉन जब एक्साइट होता है तो उसको सेटिस्फाई करने के लिए
इलेक्ट्रॉन दे दिया जाता है। लेकिन इसका जब इलेक्ट्रॉन एक्साइट होता है तो उसके इलेक्ट्रॉन को सेटिस्फाई उसके क्लोरोफिल ए
के पॉजिटिव चार्ज को सेटिस्फाई करने के लिए इलेक्ट्रॉन कहां से मिलेंगे? वो पता है कहां से मिलते हैं? वो यहां पर वाटर
स्प्लिटिंग हो रही होती है। H2O की स्प्लिटिंग होती है टू प्रोड्यूस
2H+ 2 इलेक्ट्रॉन्स + 1/2 ऑफ़ O2 ये जो इलेक्ट्रॉन्स निकलते हैं ये इसके इलेक्ट्रॉन डेफिशिएंट सेंटर्स को
स्टेबलाइज कर देते हैं। ठीक है? अब तुम लोग देखो कि यहां पे ऑक्सीजन निकल रहा है और ये वही ऑक्सीजन है जो तुमको मैंने यहां
पे दिखाया था। समझे? ऐसे ऑक्सीजन निकलता है फोटोसिंथेसिस में जिसको तुम लोग ब्रीथ करते हो। ओके? क्लियर?
और लेकिन यह रिएक्शन भी एंजाइमेटिक रिएक्शन होता है और इसको कराने के लिए वाटर स्प्लिटिंग
कॉम्प्लेक्स रिस्पांसिबल होता है। इसको कराने के लिए वाटर स्प्लिटिंग वाटर स्प्लिटिंग
कॉम्प्लेक्स रिक्वायर्ड होता है। जिसकी एक्टिवेशन जो है वो मैंगनीज डाई पॉजिटिव आयंस के द्वारा होती है। वो मैंगनीज डाई
पॉजिटिव आयंस के द्वारा होती है। क्लियर? यह तुम्हें कैसा दिख रहा है? ये तुम्हें ऐसा ऐसा ऐसा दिख रहा है। जिगजैग
दिख रहा है। इसीलिए इसको हम Z स्कीम कहते हैं। इसीलिए इसको हम Z स्कीम कहते हैं। इसीलिए हम इसको जेड
स्कीम कहते हैं। इसीलिए इसको हम जेड स्कीम कहते हैं। या फिर इसको हम नॉन साइक्लिक फोटोफॉस्फोराइलेशन कहते हैं। क्या कहते
हैं? नॉन साइक्लिक फोटो
फास्फोराइलेशन कहते हैं। अब अगर कुछ नॉन साइक्लिक है तो क्या कुछ साइक्लिक भी हो सकता है? बिल्कुल हो सकता
है। अगर तुम्हारे पास ये PS2 अवेलेबल नहीं है किसी भी कारण से तो सिर्फ PS1 यहां पे होता है। और जब PS1 सिर्फ और सिर्फ
अवेलेबल होता है ना तो वो साइक्लिक फोटोफॉस्फोरेशन में जाता है। वो कैसे दिखती है? देखते हैं। हम देखते हैं अब
साइक्लिक फोटो फास्फोराइलेशन। साइक्लिक
फोटोफॉस्फोराइलेशन साइक्लिक फोटोफॉस्फोराइलेशन उसमें पता है क्या होता है? उसमें होता यह है कि यह हमारी
थायलाकोइड की मेंब्रेन है। यह हमारी थायलाकॉइड की मेंब्रेन है। इसमें होता है हमारा इसमें होता है हमारा
पीs1 यानी कि फोटोसिस्टम वन। ठीक है? फोटोसिस्टम वन है यहां पे हमारे पास। और यहां पे हमारे पास
है क्लोरोफिल ए मॉलिक्यूल। यहां पे 700 नैनोमीटर की लाइट पड़ती है। और यहां से इलेक्ट्रॉन एक्साइटेशन होता है। ठीक है?
लेकिन यह इलेक्ट्रॉन जो है इससे NADPH नहीं बनता है। यह इलेक्ट्रॉन
साइटोक्रोम B6F कॉम्प्लेक्स के पास जाता है और प्लास्टोसाइनो प्लास्टोसाइनिन से होते हुए प्लास्टोसाइनिन से होते हुए ये
इस क्लोरोफिल के पास अगेन आ जाता है। तो ये इसी तरह से साइक्लिक मैनर में मूव करता रहता है। जिससे कि NADP तो नहीं बनता है
लेकिन एटीपी बनता है। देखो एटीपी इसमें भी बनेगा और एटीपी इसमें भी बनेगा। वो मैं बताऊंगा कैसे बनेगा। ठीक है? अब क्वेश्चन
ये आता है कि ये साइक्लिक क्यों ही हो रहा है जब नॉन साइक्लिक हो रहा होता है। साइक्लिक इसलिए होता है क्योंकि नॉन
साइक्लिक के होने की कंडीशंस नहीं होती है। जैसे कि अगर तुम्हारे पास ऑक्सीजन इवॉल्विंग कॉम्प्लेक्स नहीं है
यहां पे। तुम्हारे पास PS2 नहीं है या फिर तुम्हारे पास अगर PS2 है भी तो लाइट नहीं है।
नो 680 नैनोमीटर लाइट अवेलेबल। 680 नैनोमीटर की लाइट नहीं है। फिर या फिर तुम्हारे पास फराडॉक्सिन
एनएडीपी रिडक्टेज नहीं है। एफएआर नहीं है भाई तुम्हारे पास। ठीक है? तो और भी बहुत सारी कंडीशन होती है जिसकी
वजह से साइक्लिक फोटोफॉस्फोराइलेशन को होना ही पड़ता है। समझे? क्लियर? चलें आगे। अब मैं तुमको इसके और इसके बीच का
डिफरेंस बता देता हूं। ठीक है? वैसे तो डिफरेंस क्लियर ही हो गया है यहां पे। बट स्टिल लेट्स सी द डिफरेंस।
नॉन साइक्लिक फोटोफॉस्फाइलेशन और साइक्लिक फोटोफॉस्फाइलेशन इनके बीच क्या डिफरेंस है
देखते हैं। नॉन साइक्लिक जो है ना वो पता है कहां पे होता है? वो होता है
मेनली ग्रेना लैमिला में। और साइक्लिक जो होता है वह ग्रेना एंड
स्ट्रोमा लैमिला में होता है। ये दोनों में ही होता है। ग्रेना एंड स्ट्रोमा लैम्ला दोनों में ही ये चीज होती है। ठीक
है? नेक्स्ट यहां पे पीS2 एंड पीS1 दोनों इनवॉल्व है। ठीक है?
लेकिन यहां पे ओनली पीs1 इनवॉल्व है। ठीक? यहां
पर एटीपी और एनएडीपीए दोनों ही बनते हैं। लेकिन यहां
पे सिर्फ और सिर्फ एटीपी बनती है। यहां पे ऑक्सीजन इवॉल्विंग कॉम्प्लेक्स प्रेजेंट है। ऑक्सीजन
इवॉल्विंग कॉम्प्लेक्स प्रेजेंट है। यहां पे वो चीज एब्सेंट है। ठीक
है? यहां पे लाइट जो है वह 680 नैन मीटर की तो है लेकिन 700 नैन मीटर की भी है। यहां पे लाइट सिर्फ और सिर्फ 700 नैन मीटर
की प्रेजेंट होती है। क्लियर? इतनी बात सबको क्लियर होनी चाहिए। ठीक? चल आ जाओ आगे।
अब होता क्या है? होता यह है कि भाई यह जो सिस्टम है पूरा तुम्हारा ये वाला या फिर ये वाला ये
एक्चुअली में कैसा दिखता है? ये पता है कैसा दिखता है? ये दिखता है ऐसा। यह थायलाकोइड की मेंब्रेन है। यह
थायलाकॉइड का ल्यूमेन होता है। और यहां पे सारे फोटोसिस्टम काम कर रहे होते हैं। यहां पे
ऑक्सीजन इवॉल्विंग कॉम्प्लेक्स यानी कि H2O को तोड़ा जाता है इंटू 2H+ 2 इलेक्ट्रॉन्स +
1/2 O2। ठीक है? और यहां पे ये सारी चीजें चल रही होती है। जब यहां पे ये सारी चीजें चल रही होती है ना तो अंदर H+ बढ़ रहा होता
है क्योंकि ये वाटर टूट रहा है तो 2H+ प्रोड्यूस हो रहा है। इलेक्ट्रॉन तो यहां पे चले जा रहे हैं लेकिन ये H+ अंदर ही रह
जा रहा है। ठीक है? दूसरी बात यह है कि जब भी इलेक्ट्रॉन मूव करता है ना तो बहुत सारे
प्रोटॉन्स अंदर की तरफ आ रहे होते हैं। बहुत सारे प्रोटॉन्स को अंदर पंप किया जा रहा होता है। जस्ट ड्यू टू मूवमेंट ऑफ दी
इलेक्ट्रॉन्स अक्रॉस डिफरेंट इलेक्ट्रॉन कैरियर्स। समझे? तो ल्यूमेन में H+ बढ़ रहा होता है।
यानी कि ल्यूमेन का पीएच घट रहा होता है। ल्यूमेन एसिडिक होता जा रहा है। ल्यूमेन एसिडिक होता जा रहा है। ठीक? अब ल्यूमेन
एसिडिक होता जा रहा है। अब फिर क्या होता है? अब होता यह है कि जब यहां पे बहुत सारा H प्लस हो जाता है ना तो हमें पता है
कि यहां ज्यादा है, यहां कम है। तो यहां पे एक कंसंट्रेशन ग्रेडियंट क्रिएट होता है। जभी भी कंसंट्रेशन ग्रेडियंट क्रिएट
होता है तो वो कंसंट्रेशन ग्रेडियंट हमेशा ब्रेक होने की फिराक में होता है। और यह भी ब्रेक होने की फिराक में ही था। और
इसको ब्रेक होने में मदद करता है एक कॉम्प्लेक्स जिसको हम कहते हैं f0 f1 कॉम्प्लेक्स। जिसमें ये जो f0 होता
है ये एक प्रोटॉन चैनल होता है और F1 जो होता है वो एटीपी सिंथेस होता है। वो एटीपी सिंथेस
होता है। तो ये H प्लस इसके थ्रू मूव करते हैं क्योंकि ये चैनल है। जब ये एटीपी सिंथेस से मूव करते हैं तो ये एक्टिवेट हो
जाती है एटीपी सिंथेस। यह एटीपी सिंथेस जनरली इनक्टिव रहती है। लेकिन जैसे ही H प्लस इससे मूव करते हैं तो यह एक्टिवेट हो
जाती है और यह सिस्टम में प्रेजेंट एडीपी और फास्फेट को जोड़-जड़ के एटीपी बनाने लग
जाती है। क्लियर? इतनी बातें सबको यहां पे क्लियर होनी चाहिए। तो इस तरह से साइक्लिक और नॉन साइक्लिक फोटोफॉस्फोराइजेशन दोनों
में ही एटीपी का प्रोडक्शन होता है। जबकि नॉन साइक्लिक में एनएडीपीए का प्रोडक्शन भी होता है। ठीक? तो इस तरह से
मैंने एटीपी और एनएडीपीए का प्रोडक्शन करा चुका है। ठीक?
अब क्या होगा? अब ये जो एनर्जी मॉलिक्यूल्स हैं, हाई एनर्जी मॉलिक्यूल्स हैं, ये थाकोइड को छोड़ के स्ट्रोमा ऑफ
क्लोरोप्लास्ट में जाएंगे। अब इसको भेजा जाएगा स्ट्रोमा ऑफ क्लोरोप्लास्ट में। स्ट्रोमा
ऑफ क्लोरोप्लास्ट में। अब इसको स्ट्रोमा ऑफ़ क्लोरोप्लास्ट में भेजा जाएगा। अब इसको स्ट्रोमा ऑफ़ क्लोरोप्लास्ट में भेजा
जाएगा। ठीक है? स्ट्रोमा ऑफ़ क्लोरोप्लास्ट में अब इसको भेजा जाएगा। अब क्या होगा? फिर पता है क्या
होगा? स्ट्रोमा में एक साइकिल चलती है जिसको हम कहते हैं C3 साइकिल। जिसको हम केल्विन साइकिल भी बोलते
हैं। और इसी साइकिल के थ्रू क्या प्रोड्यूस होता है? ग्लूकोज प्रोड्यूस होता है और यह साइकिल शुरू होती है
आरयूबीपी यानी कि रिबुज बिस फास्फेट से और जो CO2 है उसको ऐड किया जाता है यहां पे और यहां पे दो मॉलिक्यूल्स
ऑफ फास्फोग्लिसरिक एसिड बनाए जाते हैं। और फास्फोग्लिसरिक एसिड जो होती है वो तीन कार्बन मॉलिक्यूल होता है। इसीलिए ये C3
साइकिल कहलाती है। ठीक? इस स्टेप को हम कार्बोिलेशन कहते हैं। उसके बाद नेक्स्ट स्टेप में इसकी रिडक्शन होती है और ये
ट्रायोस फास्फेट यानी कि फास्फोग्लिसरल्डिहाइड में कन्वर्ट होता है। और उसके बाद ये मॉलिक्यूल वापस से
रीजनरेट हो जाता है। इसको हम रीजनरेशन कहते हैं। ठीक है? क्लियर? तो यहां पे तीन स्टेप थे। पहला स्टेप था कार्बोगिलेशन।
दूसरा स्टेप था रिडक्शन और तीसरा स्टेप था रीजनरेशन।
ठीक? इस स्टेप में रिडक्शन स्टेप में एक साइकिल में दो एटीपी प्लस 2 NADPए लगते हैं।
जबकि रीजनरेशन स्टेप में सिर्फ और सिर्फ एक एटीपी लगता है। यानी कि एक साइकिल में एक साइकिल में तीन
एटीपी और दो एनएडीपीए लगते हैं। लेकिन हमें पता है कि एक साइकिल में एक CO2 फिक्स होता है। एक CO2 तो आएगा एक साइकिल
में। देखो ये पांच था। ये एक था। छह कार्बन हुए। छह में से एक यहां निकल जाता है और पांच वापस से रीजनरेट हो जाते हैं।
तो एक कार्बन यहां पे एक साइकिल में फिक्स होता है। एक कार्बन फिक्स होता है। लेकिन ग्लूकोस कितना होता है? ग्लूकोस होता है
C6H12O6 यानी कि छह कार्बन का मॉलिक्यूल होता है ग्लूकोस। तो अगर मुझे C6H12O6 बनाना है तो
मुझे इसकी छह साइकिल रन करनी पड़ेगी। इंटू सिक्स करना पड़ेगा। तभी तो एक ग्लूकोस प्रोड्यूस होगा। तो यही किया भी जाता है
कि छह बार यह साइकिल कंटिन्यू होती है जिससे एक ग्लूकोज इक्विवेलेंट बनता है। ठीक है? तो मैं तुम्हें बताता हूं कि एक
साइकिल से एक साइकिल से एक साइकिल से क्या बनता है? एक साइकिल से एक ग्लूकोस एक कार्बन
डाइऑक्साइड फिक्स होता है। उसमें तीन एटीपी और दो NADPH यूज़ होते हैं। लेकिन ये छह साइकिल जो होती हैं उसमें कितना यूज़
होगा? 6 * 3 = 18 एTP यूज़ होगा और 12 [संगीत]
NADPए जो है वह यूज़ हो जाएंगे और उससे बनेगा एक ग्लूकोज। मॉलिक्यूल उससे बनेगा एक ग्लूकोस
मॉलिक्यूल। समझे सब लोग? इतनी बातें सबको समझनी है इसमें। लेकिन यहां पे एक चीज होती है, एक एंजाइम होती है जो इस
कार्बोिलेशन रिएक्शन में इनवॉल्वड होती है। वो कौन सी एंजाइम होती है? देखते हैं। आरयूबीपी जिसमें CO2 लगता है और उससे दो
मॉलिक्यूल ऑफ थ्री कार्बन कंपाउंड यानी कि फास्फोग्लिसरिक एसिड बनते हैं। यानी कि फास्फोग्लिसरिक एसिड बनते हैं।
इसमें जो एंजाइम लगती है उसको हम कहते हैं रुबिस्को जो कि मोस्ट अबंडेंट एंजाइम होती है इस पूरे बायोस्फीयर की। रूबिस्को इज द
मोस्ट अबंडेंट एंजाइम ऑफ दिस होल बायोस्फीयर। यह जो एंजाइम है यह CO2 को इससे जोड़ के
कार्बोिलेट करती है। लेकिन यह एंजाइम CO2 से तो बाइंड करती है। यह ऑक्सीजन से भी बाइंड करती है। तो आरयूबीपी की जो है
आरयूबीपी का डुअल नेचर होता है। आरयूबीपी का डुअल नेचर होता है। ये CO2 से भी बाइंड
करती है और ये ऑक्सीजन से भी बाइंड करती है। जब यह CO2 से बाइंड करती है तो यहां पे
ग्लूकोस का प्रोडक्शन होता है क्योंकि यहां पे दो-तीन कार्बन के मॉलिक्यूल बनते हैं। लेकिन जब यह ऑक्सीजन से कंबाइन करती
है जब ये ऑक्सीजन से कंबाइन करती है तो यह फोटो रेस्पिरेशन में चली जाती है। तो यहां पे ग्लूकोस का प्रोडक्शन नहीं
होता है। यहां पे होती है फोटो रेस्पिरेशन जो कि एक वेस्टफुल प्रोसेस होती है। जो कि एक वेस्टफुल
प्रोसेस होती है जो कि एक वेस्टफुल प्रोसेस होती है क्योंकि इससे कोई भी ग्लूकोज नहीं प्रोड्यूस होता है। इसमें
सिर्फ एटीपी एंड एडीपीए का खर्चा ही होता है और कुछ इससे फायदा नहीं होता है। ठीक है? समझ
गए? इसीलिए C3 साइकिल थोड़ी कम एफिशिएंट साइकिल होती है। फोटो रेस्पिरेशन ना हो इसके लिए बहुत सारे पौधों ने अपने आप को
इवॉल्व किया है और उन्होंने एक नई साइकिल बनाई है जिसको उन्होंने बोला है C4 साइकिल।
और इस साइकिल को हम हैच एंड स्लैक पाथवे भी बोलते हैं। क्या कहते हैं? हैच एंड स्लैक पाथवे भी बोलते हैं। ठीक है? इस हैच
एंड स्लैक पाथवे में सिर्फ स्ट्रोमा ऑफ क्लोरोप्लास्ट जो
है मीसोफिल सेल का वो नहीं यूज़ होता है। यहां पे दो सेल्स इनवॉल्वड होते हैं। यहां पे इनवॉल्व होते हैं दो सेल्स। एक मिसोफिल
सेल तो इनवॉल्वड होता ही है। इसके साथ-साथ यहां पे बंडल शीत सेल भी इनवॉल्व्ड होते हैं। बंडल
शीत सेल्स भी इनवॉल्वड होते हैं। और इनमें एक स्पेसिफिक टाइप की एनाटॉमी पाई जाती है जिसको हम क्रेंस एनाटॉमी बोलते हैं।
जिसमें इन सेल्स का जो अरेंजमेंट है वह सिमिलर मैनर में रिपीटेडली अह अरेंज होता है। जैसे कि
रोजेट ऑफ द रोज प्लांट। ठीक है? रोजेट अरेंजमेंट ऑफ द सेल्स ऑफ रोज प्लांट। ठीक? अब यहां पे देख लो यहां पे क्या होता
है? C4 साइकिल में C4 साइकिल में जो तुम्हारा ये है क्या कह रहे हैं? दो सेल्स
हैं। वो इनवॉल्वड हैं। है कि नहीं है? दो सेल्स इन्वॉल्वड हैं यहां पे। दो सेल्स इनवॉल्वड हैं यहां पे।
एक को हम बोल देते हैं मिससोफिल सेल और एक को हम कह देते हैं बंडल शीत सेल। जो CO2 है एटमॉस्फेयर की वह यहां से आती
है और वह HCO3 नेगेटिव में कन्वर्ट होती है और वो फास्फोरनॉल पाइरुवेट से कंबाइन करती है इन द प्रेजेंस ऑफ़ एंजाइम
पेप्टकेज़ टू गिव ऑक्सेलो एसिटिक एसिड। ये ऑक्सेलो एसिटिक एसिड बंडल शीद सेल में जाता है और यहां पे होती है
डीकार्बोिलेशन। यहां पे होती है डीकार्बोक्सिलेशन। और इस डीकार्बोिलेशन स्टेप से CO2 निकल जाता है। कौन निकल जाता
है? CO2। तो इस तरह से बहुत सारी साइकिल चलती है और यहां पे CO2 का अमाउंट बहुत ज्यादा हाई हो जाता है। और जो C3 साइकिल
है वो इसके अंदर चल रही होती है। हमें पता है C3 साइकिल से क्या बनता है? ग्लूकोस। ग्लूकोस में रुबिस्को रिक्वायर्ड है हमको।
रुबिस्को की दो एक्टिविटी होती है। कौन-कौन सी? CO2 और O2 से। अगर CO2 ज्यादा है तो रुबिस्को किससे बाइंड करेगी? CO2
से। और क्या बनेगा? ग्लूकोस बनेगा। क्योंकि फोटो रेस्पिरेशन तो यहां पर होगी नहीं। ठीक? तो अब डीकार्बोक्सिलेशन जब हो
जाती है तो CO2 यहां पे ज्यादा हो जाते हैं और यहां पे बहुत सारे ग्लूकोस मॉलिक्यूल बनने लग जाते हैं। पर
डीकार्बोक्सिलेशन के बाद ये चार कार्बन का मॉलिक्यूल था। और ये एक ऑक्सीजन निकाल चुका है। तो ये ठीक थ्री कार्बन का
मॉलिक्यूल बचता है यहां पे जिसको मैं पाइरुवेट कहता हूं। और यह पाइरुवेट जो है यह वापस से ट्रांसफर
होता है यहां पे और इस इसको एटीपी का यूज किया जाता है यहां पे टू
अगेन मेक इट और कन्वर्ट इट इनू फास्फोनॉल पर पाइरेबेट जो कि अगेन इस रिएक्शन में यूज़ होता है। ठीक है? क्लियर? तो इस तरह
से इन लोगों ने स्ट्रेटजी अपनाई है कि ठीक है भाई मान लिया कि रूबिस्को ऑक्सीजन और CO2 दोनों से कंबाइन कर सकता है। लेकिन
अगर CO2 ज्यादा होगा तो वो उसी से कंबाइन करेगा ना। तो CO2 को यहां पे बढ़ा दिया जाता है। जिसकी वजह से ये हमेशा ही CO2 से
ही बाइंड करता है। क्योंकि ऑक्सीजन से उसका एक्सपोज़र होता ही नहीं है। क्लियर? चले आगे आ जाओ। अब हम कंपेयर कर लेते हैं
C4 और C3 साइकिल को। C3 यानी कि केल्विन साइकिल। और C4 साइकिल है। इसमें C3 साइकिल को C3 साइकिल
इसलिए बोलते हैं क्योंकि इसमें फर्स्ट प्रोडक्ट थ्री कार्बन का होता है। फास्फोग्लिसरिक एसिड होता है। इसमें पहला
प्रोडक्ट ऑक्सलो एसिटिक एसिड होता है। फोर कार्बन प्रोडक्ट होता है ये। ठीक? सेकंड आ जाओ। इसमें एक सेल इनवॉल्वड है। मीसोफिल
सेल यहां पे इनवॉल्वड होता है। और इस यहां पे दो सेल इनवॉल्व होते हैं। मीसोफिल सेल तो इनवॉल्वड होता ही है।
उसके साथ-साथ बंडल शीत सेल यहां पे इनवॉल्वड होते हैं। यहां पे एक साइकिल जो है उसमें तीन एटीपी यूज़ होते हैं और दो
एनएडीपीएच यूज़ होते हैं। जबकि यहां पे एक साइकिल में पांच एटीपी
और दो NADPए यूज़ होते हैं। दो NADPए यूज़ होते हैं। यहां पे जो रूबिस्को है यहां पे रूबिस्को
जो है वो मिसोफिल सेल के अंदर पाई जाती है। लेकिन यहां पे जो रुबिस्को
है वो बंडल शीत सेल के अंदर पाई जाती है। ठीक है? तो दिस इज योर C4 साइकिल जो कि ज्यादा एफिशिएंट होती है इन टर्म्स ऑफ
फोटोसिंथेटिक प्रोडक्ट एंड इन टर्म्स ऑफ बेटर यूसेज ऑफ CO2 ओके बेटर यूज़ ऑफ़ CO2 टू प्रोड्यूस ग्लूकोस। ओके? इसके अलावा इस
चैप्टर में फैक्टर्स अफेक्टिंग फोटोसिंथ फैक्टर्स अफेक्टिंग रेट ऑफ फोटोसिंथेसिस है जो कि आप लोग आराम से पढ़ सकते हो
क्योंकि उसमें एज सच बहुत ज्यादा समझने वाली चीजें नहीं है इसलिए हम अब अगले चैप्टर पे मूव करेंगे दैट इज रेस्पिरेशन
इन प्लांट्स ओके चलते हैं अब रेस्पिरेशन की बात देखें तो रेस्पिरेशन में हमारे को पता है कि क्या करना होता है भाई
रेस्पिरेशन क्या है जो हमने अभी चैप्टर पढ़ा फोटोसिंथेस उसका उल्टा है रेस्पिरेशन। उसका क्या है? उल्टा है
रेस्पिरेशन। क्या होता है उसमें? जैसे हमने ग्लूकोस बनाया फोटोसिंथेसिस में तो हम ग्लूकोस तोड़ते हैं।
C6H12 O6 का ब्रेकडाउन होता है इन द प्रेजेंस ऑफ़ ऑक्सीजन टू गिव CO2 एंड H2O। लेकिन हमारा मेन मोटिव इसको तोड़ना नहीं
है। हमारा मेन मोटिव है इससे एनर्जी एक्सट्रैक्ट करना। इससे एनर्जी एक्सट्रैक्ट करना। तो इससे एनर्जी
एक्सट्रैक्ट की जाती है। किसके द्वारा? इसको ब्रेक करके। ठीक? अब इसमें पता है क्या है? इसमें तीन
प्रोसेससेस होती है। एक को हम कहते हैं ग्लाइकोलिसिस। ठीक है? एक उसके बाद होती है क्रैब
साइकिल। उसके बाद क्या होती है? क्रैब साइकिल। और उसके बाद क्या होती है? उसके बाद होती है इलेक्ट्रॉन ट्रांसपोर्ट चेन
जिसको ईटीसी या ईटीएस बोलते हैं। जिसके थ्रू एनएडीए और एटीपी की एनर्जी को फिक्स किया
जाता है। एनएडीए और एटीपी की एनर्जी को NADH और नॉट एटीपी। NADH जो है और FADH2 जो
है उससे एटीपी बनाया जाता है उसको यूज़ करके। ठीक? अब देखते हैं एक-एक करके सारी चीजों को। जैसे पहला होता है
ग्लाइकोलिसिस। ग्लाइकोलिसिस एक 10 स्टेप रिएक्शन है और ये साइटोप्लाज्म में होता है। ठीक है? साइटोप्लाज्म ऑफ़ एनी सेल्स
में ग्लाइकोलिसिस हो सकती है। तो इसमें क्या होता है? इसमें ग्लूकोस से ग्लूकोस को तोड़ा जाता है इनू ग्लूकोस सिक्स
फास्फेट में। ठीक है? इन द प्रेजेंस ऑफ़ एंजाइम हेक्सोकाइनेस। इन द प्रेजेंस ऑफ़ एंजाइम
हेक्सोकाइनेस। ठीक है? उसके बाद क्या होता है? उसके बाद होता यह है उसके बाद होता यह है कि इस
ग्लूकोस सिक्स फॉस्फेट्स को फ्रुक्टोज़ सिक्स फॉस्फेट में तोड़ा जाता है। मतलब चेंज किया जाता
है। बेसिकली आइसोमराइज़ किया जाता है। फिर इसको हम फ्रुक्टोज़ वन सिक्स बिस फास्फेट में आइसोमेराइज़ करते हैं। फ्रुक्टोज़
16 बिस फास्फेट में आइसोमराइज़ करते हैं। ठीक है? फ्रुक्टोज़ 16 बिस फास्फेट के बाद यह
फ्रुक्टोज़ 16 बिस फास्फेट टूटता है टू गिव टू गिव टू मॉलिक्यूल्स व्हिच आर डिफरेंट। एक को हम कहते हैं ग्लिसरल्डिहाइड थ्री
फास्फेट। एक को हम कहते हैं ग्लिसरेल्डिहाइड थ्री
फास्फेट। और एक को हम कहते हैं डाईहाइड्रोक्सी एसीटोन फास्फेट। एक को हम कहते हैं
डाई हाइड्रोक्सी एसीटोन। फास्फेट जो कि आपस में इंटरकन्वर्टेबल
होती हैं। यह इसमें कन्वर्ट हो सकती है और यह इसमें कन्वर्ट हो सकती है। लेकिन पता है क्या? डाईहाइड्रोक्सी एस्ट्रोनॉन
फास्फेट इसमें ज्यादा होती है और ये इसमें कम कन्वर्ट होती है। ये इसमें कम कन्वर्ट होती है। ठीक है? तो ग्लिसल्डिहाइड थ्री
फास्फेट मेन चीज है। अब ये सिक्स कार्बन का मॉलिक्यूल था। यहां तक सब सिक्स कार्बन के है। लेकिन ये थ्री कार्बन का है। तो एक
सिक्स कार्बन से दो थ्री कार्बन बनते हैं। तो अब से जितने भी प्रोडक्ट बनेंगे ना वो इंटू टू में बनेंगे। ओके क्लियर अब जैसे
ग्लिसर्ल्डिहाइड थ्री फास्फेट है उससे पता है क्या बनता है उससे बनता है 1 3 उससे बनता है 1 3 बिस फास्फोग्लिसरेट वन थ्री
बिस फास्फो ग्लिसरेट बनता है ठीक है उससे बनता है थ्री फास्फोग्लिसरेट उससे बनता है थ्री
फास्फोग्लिसरेट उससे बनता है टू फास्फोग्लिसरेट क्या बनता है टू फास्फोग्लिसरेट
ठीक है? उससे बनता है फास्फोनॉल पाइरुवेट। क्या बनता है? फास्फोइनोल
पाइरुवेट और सबसे एंड में बनता है पाइरुविक एसिड। सबसे एंड में बनता है पाइरुविक एसिड। अब ये जो पूरी रिएक्शन है,
ये साइटोप्लाज्म ऑफ़ सेल में होती है। इसमें तुम्हें ये प्रोसेस तो याद रखनी है, लेकिन इससे ज्यादा इंपॉर्टेंट पता है क्या
है? इससे ज्यादा इंपॉर्टेंट ये है कि तुम्हें ये याद रखना है कि इससे क्या-क्या प्रोडक्ट बनते हैं? इससे क्या-क्या
प्रोडक्ट बनते हैं? इससे पता है क्या प्रोडक्ट बनते हैं? इससे प्रोडक्ट बनते हैं। चार एटीपी बनते हैं और दो NADH2 बनते
हैं। ठीक है? चार एटीपी बनते हैं लेकिन दो जो है वो यूज़ भी हो जाते हैं। तो यहां पे जो नेट प्रोडक्शन है, नेट प्रोडक्शन जो
होता है, यहां पे जो नेट प्रोडक्शन होता है, वह होता है वह पता है क्या होता है? वह होता है दो एटीपी का। वह होता है दो
एटीपी का और दो NADH2 का वो दो ATP और दो NADH2 का होता है। ठीक है? क्लियर? यह हो
गया ग्लाइकोलिसिस। ग्लाइकोलिसिस के बाद हमारे पास एक ग्लूकोस से दो पाइरुविक एसिड बनते हैं। दो पाइरुविक एसिड बनते हैं। अब
अगर इन पाइरुविक एसिड को ऑक्सीजन मिल जाती है तो ये आगे की प्रोसेस में जाते हैं। यानी कि एरोबिक रेस्पिरेशन में चले जाते
हैं। ठीक है? अगर इनको ऑक्सीजन नहीं मिल पाती है, अगर ऑक्सीजन एब्सेंट है तो पता है क्या होता है? तब ये जाते हैं एन
एरोबिक रेस्पिरेशन में। तब ये जाते हैं एन एरोबिक रेस्पिरेशन में जिसको हम फर्मेंटेशन भी
कहते हैं जिसको हम फर्मेंटेशन भी कहते हैं। और ये फर्मेंटेशन दो प्रकार की होती है। भाई
फर्मेंटेशन दो प्रकार की होती है। पता है कौन-कौन से प्रकार की होती है फर्मेंटेशन? फर्मेंटेशन दो प्रकार की होती है। एक होती
है लैक्टेट एक होती है लैक्टिक एसिड फर्मेंटेशन या लैक्टेट फर्मेंटेशन और एक होती है अल्कोहलिक
फर्मेंटेशन या इथेनॉलिक फर्मेंटेशन। लैक्टेट फर्मेंटेशन में क्या होता है? लैक्टेट फर्मेंटेशन में क्या होता है कि
जो हमारा लैक्टेट है जो हमारा पाइरुवेट है उसको लैक्टेट में चेंज किया जाता है। पाइरुवेट को लैक्टेट में चेंज किया जाता
है। इन द प्रेजेंस ऑफ़ एंजाइम लैक्टेट डिहाइड्रोजेनेस इन द प्रेजेंस ऑफ़ एंजाइम लैक्टेट
[संगीत] डिहाइड्रोजेनेस। इन द प्रज़ेंस ऑफ़ एंजाइम लैक्टेट डिहाइड्रोजेनेस।
ठीक? और यही हमारी मसल्स में भी एक्यूमुलेट होता है जिससे कि पेन होता है हमको जिससे कि क्या होता है हमको मसल पेन
या बॉडी पेन फील होता है। अल्कोहलिक फर्मेंटेशन में पता है क्या होता है? ये पाइरुवेट जो है इसको सबसे पहले चेंज किया
जाता है इनू एसटाइड। एसटाइड और यहां पे CO2 का रिलीज होता है। फिर इस एसिटाल्डिहाइड को इथेनॉल में चेंज
किया जाता है। यूजिंग एन एंजाइम यूजिंग एन एंजाइम नोन एज इथेनॉल डिहाइड्रोजेनेज़ या अल्कोहॉलिक डिहाइड्रोजेनेस। अल्कोहॉल
डिहाइड्रोजेनेज़। और इसको एक्टिवेट करने के लिए हमें जिंक डाई पॉजिटिव आयन चाहिए होते हैं। अब यह जो रिएक्शन है इन दोनों ही
रिएक्शंस में NADH2 जो NADH2 हमने यहां पे प्रोड्यूस किया था ना वो यूज़ हो जाता है। NADH2 जो हमने प्रोड्यूस किए
थे वो यूज़ हो जाते हैं। यानी कि फर्मेंटेशन में हमारे को ये दो चीज तो मिलती है। मतलब इथेनॉल और
लैक्टिक एसिड या लैक्टेट। लेकिन उसमें हमारा जो हमने पाइरुवेट बनाया था ग्लाइकोलिसिस करके उसके जो प्रोडक्ट थे
उसमें से दो NADH2 यूज़ हो जाते हैं जो कि एक खराब बात है। तो नेट प्रोडक्शन इन केस ऑफ़ फर्मेंटेशन इज़ ओनली 2 एTP। ठीक? अब अगर
उसको ऑक्सीजन मिल जाता है तो वो एरोबिक रेस्पिरेशन में जाता है। अगर उसको ऑक्सीजन मिल जाता है तो वो एरोबिक रेस्पिरेशन में
जाता है। तो जो पाइरुवेट है उसको ट्रांसफर किया जाता है इन माइटोकांड्रिया। पाइरुवेट जो है
उसको माइटोकांड्रिया में ट्रांसफर किया जाता है। पवेट जो है वह माइटोकांड्रिया में ट्रांसफर होता है। और इसकी होती है
ऑक्सीडेटिव डीकार्बोिलेशन। इसकी क्या होती है? इसकी होती है इसकी होती है ऑक्सीडेटिव डीकार्बोिलेशन। ऑक्सीडेटिव
डीकार्बोिलेशन। इसकी होती है ऑक्सीडेटिव डी कार्बोक्सिलेशन। इसमें पता है क्या होता है? इसमें ये जो पाइरुवेट है इसमें
ये जो है पाइरुवेट इसमें जो पाइरुवेट है ये जो पाइरुवेट है इसको कन्वर्ट किया जाता है इनू एसिटिल
कोए एसिटिल को एएंजाइम ए ये थ्री कार्बन का मॉलिक्यूल है। ये दो कार्बन का है। यानी
कि एक CO2 यहां पे निकल जाएगी। और यहां पे जो एंजाइम यूज़ होती है वो पता है क्या होती है? वो होती है पाइरुवेट
डिहाइड्रोजेनेस। वह होती है पाइरुवेट डी हाइड्रोजेनेस। वह होती है पाइरुवेट डिहाइड्रोजेनेस। और इस एंजाइम को एक्टिवेट
करने के लिए मैग्नीशियम डाइप पॉजिटिव आयंस हमको चाहिए होते हैं। यहां पे कोए-एंजाइम ए का भी यूज़ हो जाता है। यहां पे कोएंजाइम
ए का भी यूज़ हो जाता है। ठीक है? अब यहां पे पता है क्या निकलता है? यहां पे एक NADH2 मॉलिक्यूल निकलता है। एक पाइरुवेट
से। लेकिन हमें पता है एक ग्लूकोस से दो पाइरुवेट बनते हैं। तो यहां पे टोटल इसको हमें इंटू टू करना पड़ेगा। इस पूरी
रिएक्शन को इस पूरी रिएक्शन को हमें इंटू टू करना पड़ेगा। तो यहां पे टोटल नेट प्रोडक्शन
कितना होता है? 2 NADH2 का होता है। क्लियर? सिंपल सी बात है ये। अब क्या होगा? अब यह एसिटिल कोय कहां जाएगा? यह
एसिल कोय जाएगा सिट्रिक एसिड साइकिल में। यह सिट्रिक एसिड साइकिल जिसको हम ट्राई कार्बोजिलिक
एसिड साइकिल बोलते हैं। जिसको हम ट्राई कार्बोिलिक एसिड साइकिल कहते हैं। उसमें जाता है। ठीक
है? ठीक? इसी को हम क्रेब साइकिल भी कहते हैं। इसी को हम क्रेब साइकिल भी कहते हैं। अब यह
एसिटिल कोय यह जो एसटिल कोय था यह इस रिएक्शन में जाता है। ये एसिटिल कोय इस रिएक्शन में जाता है। यहां पे ये ऑक्सलो
एसिटिक एसिड के साथ रिएक्ट करता है टू फॉर्म सिट्रिक एसिड। टू फॉर्म टू फॉर्म सिट्रिक एसिड। ये यहां पे सिट्रिक एसिड
फॉर्म करता है जो कि एक सिक्स कार्बन का मॉलिक्यूल होता है। फिर ये यहां पे फर्दर स्टेप्स में जाता है तो ये अल्फा
कीटोग्लटेटरिक एसिड फॉर्म करता है। अल्फा कीटो ग्लूटेरिक एसिड फॉर्म करता है। फिर ये यहां पे सक्सिनिक एसिड फॉर्म करता
है। फिर ये यहां पे फ्यूममेरिक एसिड फॉर्म करता है। और उसके बाद यह यहां पे मैलेट फॉर्म
करता है या मैलिक एसिड और यहां पे यह वापस से ऑक्सलो एसिटिक एसिड में रीजनरेट हो जाता है। देखो यह छह कार्बन का था। यह
पांच कार्बन का होता है। यानी कि यहां से एक CO2 निकल गया। ये पांच कार्बन का है। ये चार कार्बन का होता है। यानी कि एक CO2
यहां से भी निकल गया। ठीक है? ये होती है सिट्रिक एसिड साइकिल जिसमें इस एसिटिल कोए में जो दो कार्बन है उसको CO2 की फॉर्म
में निकाल दिया जाता है। अब यह रिएक्शन क्यों हो रही है? क्योंकि इससे बहुत सारा एटीपी बहुत सारा एटीपी तो नहीं।
पर NADH और FADH2 यूज़ FADH2 बनता है। एक यहां पर बहुत इंपॉर्टेंट चीज है कि जितनी भी एंजाइम्स तुम्हारी सिट्रिक एसिड साइकिल
यानी कि क्रब साइकिल की होती है वो सारी की सारी माइटोकांड्रियल मैट्रिक्स में प्रेजेंट होती है। वो सारी की सारी
माइट्रोकांड्रियल मैट्रिक्स में प्रेजेंट होती है। एक्सेप्ट वन जो कि यहां पे यूज़ होती है। इसका नाम होता है सक्सिनिक
डिहाइड्रोजेनेस। इसका नाम होता है सक्सिनिक डिहाइड्रोजेनेस। ये सक्सिनिक
डिहाइड्रोजेनेस पता है कहां प्रेजेंट होती है? यह इनर मेंब्रेन ऑफ माइटोकांड्रिया में प्रेजेंट होती है। यह प्रेजेंट होती
है इनर मेंब्रेन
ऑफ माइटोकांड्रिया। ये माइटोकांड्रिया के इनर मेंब्रेन में प्रेजेंट होती हैं। बाकी सब कहां प्रेजेंट है? मैट्रिक्स में। बस
ये अकेली कहां प्रेजेंट है? इनर मेंब्रेन ऑफ माइटोकांड्रिया। इसीलिए इसके दो फंक्शन होते हैं। ये सिट्रिक एसिड साइकिल यानी कि
कैब साइकिल में तो यूज़ होती ही है। उसके साथ-साथ ये इलेक्ट्रॉन ट्रांसपोर्ट चेन में भी यूज़ होती है। समझे? आ जाओ चलते हैं
आगे। अब इस इस पूरी साइकिल में हमारा एक एसिटिल कोय यूज़ हुआ है जो कि एक पाइरेट से बना था। लेकिन एक ग्लूकोस से दो पाइरु बना
थे। यानी कि दो एसिटिल कोय यूज़ होना चाहिए। तो यहां पे पता है क्या होता है? एक एसिटिल कोए को यूज़ करके एक एसिटिल कोए
को यूज़ करके हम लोग क्या करते हैं? एक एसिटिल कोए को यूज़ करके हमारे तीन NADH2 बनते हैं। एक FADH2 बनता
है और एक एटीपी बनता है। एक्चुअली में बनता जीटीपी है बट दैट GTP इज़ इक्विवेलेंट टू वन ATP। ठीक? क्लियर? इसको हमें टू से
इंटू करना पड़ता है क्योंकि एक एसिल कोय नहीं दो एसिटिल कोय बनते हैं एक ग्लूकोस से। क्लियर? अब हम देखते हैं चार्ट पूरा
बना के कि कहां पे कितना क्या निकलता है। ओके? अगर मैं बोलूं कि चार्ट में सबसे पहला होगा
ग्लाइकोलिसिस। फिर होगा ऑक्सीडेटिव डीकार्बोिलेशन। [संगीत]
ठीक है? उसके बाद क्या होगा? उसके बाद होगा क्रैब साइकिल। जो क्रैब साइकिल है
ठीक है जो कैब साइकिल है उसके बाद एक और स्टेप होता है बट मेनली सारी चीजें यहां पे बन चुकी होती है कितना एटीपी बना कितना
NADH2 बना कितना FADH2 बना या FADH बना ठीक है या FDH2 ठीक है ग्लाइकोलिसिस जो है उसमें
दो एटीपी बनते हैं ऑक्सीडेटिव डीकार्बोक्सिलेशन में कुछ नहीं बनता है क्रैब साइकिल में अगेन दो एटीपी बनते हैं
ये मैं बात कर कर रहा हूं विद रिस्पेक्ट टू व्हाट? विद रिस्पेक्ट टू वन ग्लूकोज़। एक ग्लूकोज़ की रिस्पेक्ट में बात कर रहा
हूं। एक पाइरुवेट नहीं एक ग्लूकोस की बात कर रहा हूं। ठीक है? ठीक? क्लियर? NADH2 देख लो। ग्लाइकोलिसिस
में दो NADH2 बनते हैं। ऑक्सीडेटिव डीकार्बोक्सिलेशन में दो NADH2 बनते हैं। और क्लब्स क्रैब साइकिल में यहां पे तीन
बन रहे थे। लेकिन तीन को दो से इंटू करना पड़ता है। तो यहां पे छह NADH2 बन जाते हैं। FADH2 यहां ग्लाइकोलिसिस में नहीं
बनता है। ऑक्सीडेटिव डीकारोक्सिलेशन में भी नहीं बनता है। लेकिन क्रप साइकिल में एक FADH2 बनता है। जिसको इंटू टू करोगे तो
दो FADH2 हो जाएंगे। ठीक है? क्लियर? यानी कि टोटल यहां पर चार एटीपी बन रहे हैं। यहां पर टोटल 10 NADH2 बन रहे हैं। और
यहां पर टोटल दो FADH2 बन रहे हैं। अब अगर मैं तुम लोगों को एक चीज बताऊं कि एक NADH जो है वो तीन एटीपी के इक्वल होता है। और
एक FADH जो है FADH2 या NADH जो भी तुमको बोलना है। ठीक है? वो दो एटीपी के इक्वल होता है। ठीक है?
तो यहां 10 एलएडीए हो रहा है तो 10 * 3 करोगे तो 38 ATP हो जाएगा। ठीक है? और यहां FDH2 में कितने हो रहे हैं? दो हो
रहे हैं। तो 2 * 2 करोगे तो चार हो जाएगा। चार हो जाएगा। तो टोटल कितने हो गए? 30 34 38 एक ग्लूकोज के कंप्लीट ब्रेकडाउन
से 38 एटीपी बनती हैं। क्या बनती है? 38 एटीपी बनती है। 38 एटीपी यहां पे बनती है। 38 एटीपी यहां पे बनती है।
क्लियर? इतनी बात सबको क्लियर होनी चाहिए। ओके। ठीक। अब आ जाओ आगे चलते हैं। तुम्हें पता है कि एटीपी तो चलो बन गया। इस एटीपी
की बनने की प्रोसेस डायरेक्टली एटीपी बनती है ना तो उसको हम कहते हैं सब्सस्ट्रेट लेवल फास्फोराइलेशन। उसको हम क्या कहते
हैं? सब्सस्ट्रेट लेवल फास्फोराइलेशन। ठीक
है? और यहां पे यह जो दो बनते हैं, इसको हम कहते हैं ऑक्सीडेटिव फास्फोराइलेशन। इसको हम कहते हैं ऑक्सीडेटिव
फास्फोराइलेशन इसको हम कहते हैं ऑक्सीडेटिव फास्फोराइलेशन मतलब क्या इसमें डायरेक्टली बन रही है तो सब्सस्ट्रेट लेवल
फास्फोराइलेशन लेकिन इसमें एनएडीए और एफ एडीए की जो एनर्जी है क्या अंदर जो स्टर्ड एनर्जी है उससे एटीपी हम बनाते हैं। तो
डायरेक्टली एटीपी नहीं बन रही है। एनएडीए और एफएडीए बन रहा है। लेकिन उसको यूज़ करके फिर हम एटीपी बना रहे हैं। उसको यूज़ करके
जो एटीपी बनाने की प्रोसेस है उसको हम क्या कहते हैं? ऑक्सीडेटिव फास्फाइलेशन जो कि इलेक्ट्रॉन ट्रांसपोर्ट सिस्टम में
होती है जो कि किसमें होती है? इलेक्ट्रॉन ट्रांसपोर्ट सिस्टम इलेक्ट्रॉन ट्रांसपोर्ट सिस्टम में देखी जाती है।
यानी कि इलेक्ट्रॉन ट्रांसपोर्ट सिस्टम यानी कि ईटीएस में देखी जाती है। और ये ईटीएस होती कहां है? ये होती है इनर
मेंब्रेन ऑफ माइटोकांड्रिया में। ये होती है इनर मेंब्रेन ऑफ माइटोकांड्रिया में। यहां पे
कई सारे कॉम्प्लेक्सेस होते हैं जिस जिनके थ्रू NADH और FADH के इलेक्ट्रॉन्स मूव करते हैं और वहां से
प्रोटॉन ग्रेडियंट क्रिएट होता है और उस प्रोटॉन ग्रेडियंट के ब्रेक होने से एटीपी बनते हैं। तो हमें पता है कि ये जो NADH
है और ये जो FADH है अगर तुम इसको ब्रेक करोगे ना तो क्या बनेगा? NAD+ + H+ और यहां इनको बैलेंस करने के
लिए दो इलेक्ट्रॉन चाहिए। इसमें भी सेम चीज़ होगी। NAD+ + H+ + दो इलेक्ट्रॉन यहां पे निकलते
हैं। ये इलेक्ट्रॉन्स डिफरेंट इलेक्ट्रॉन कैरियर्स के थ्रू ट्रैवल करते हैं। जिसके थ्रू जो इंटर मेंब्रेन स्पेस है वहां पे
एक प्रोटॉन ग्रेडियंट क्रिएट होता है। और उस प्रोटॉन ग्रेडियंट के ब्रेक होने के कारण क्या हमको मिलता है? हमको मिल जाता
है ठीक ऐसे यहां पर पांच कॉम्प्लेक्सेस होते हैं। एक कॉम्प्लेक्स, दूसरा कॉम्प्लेक्स,
ये ऐसा होता है। दूसरा कॉम्प्लेक्स, तीसरा कॉम्प्लेक्स, चौथा कॉम्प्लेक्स और ये होता है पांचवा कॉम्प्लेक्स।
यहां पे NADH टूटता है। यहां पे NADH टूटता है। इंटू इंटू
NAD+ + H+ + 2 इलेक्ट्रॉन। और इसके दो इलेक्ट्रॉन यहां पे ट्रेवल करते हैं। ये कॉम्प्लेक्स नंबर वन है। ये कॉम्प्लेक्स
नंबर टू है। ये कॉम्प्लेक्स नंबर थ्री है। ये कॉम्प्लेक्स नंबर फोर है। और ये कॉम्प्लेक्स नंबर फाइव है। ये दो
इलेक्ट्रॉन यहां यहां और यहां जाते हैं। और ये दो से भी ये इधर थ्री में जाता है। फिर ये फोर में जाता है। कौन? इनके
इलेक्ट्रॉन्स। और दो से कौन जाएगा? दो से पता है कौन जाएगा? FDH टूटेगा। और इससे FAD+ + H+ दो इलेक्ट्रॉन्स आगे ट्रैवल
करेंगे। ये दो इलेक्ट्रॉन्स ही यहां से ट्रैवल करते हैं। लेकिन यहां जाने के बाद वो कहां चले जाएंगे? यहां पता है कौन होता
है? यहां होता है ऑक्सीजन। और ये ऑक्सीजन जो है ये ऑक्सीजन जो है ये इनके इलेक्ट्रॉन को एक्सेप्ट करता है। 1/2
O2 जो है वो इस दो H+ को और दो इलेक्ट्रॉन्स के थ्रू इसको एक्सेप्ट करके H2O बना देता है। क्या बना देता है? H2O
बना देता है और इसके इलेक्ट्रॉन्स यहां पे एक्सेप्ट हो जाते हैं। तो फाइनल इलेक्ट्रॉन एक्सेप्टर क्वेश्चन आता है
फाइनल इलेक्ट्रॉन एक्सेप्टर इन केस ऑफ़ रेस्पिरेशन कौन होता है? आंसर होगा ऑक्सीजन। और फाइनल प्रोडक्ट क्या बनेगा?
वाटर। ठीक है? जब ये इलेक्ट्रॉन कैरियर ऐसे-से ट्रेवल कर रहे होते हैं ना तो यहां से बहुत सारे प्रोटॉन्स जो हैं बहुत सारे
प्रोटॉन्स जो हैं वो यहां पे ट्रैवल कर रहे होते हैं। बहुत सारे प्रोटॉन्स जो हैं H+ जो है वो यहां इंटरमेंब्रेन स्पेस में
आ रहे होते हैं। 2H+ 2H+ 2H+ 2H+ 2H+ ऐसे इंटर मेंब्रेन स्पेस पे आ रहे होते हैं। ये इंटर मेंब्रेन स्पेस है।
इंटर मेंब्रेन स्पेस ये इनर माइटोकांड्रियल मेंब्रेन है और ये है माइटोकांड्रियल मैट्रिक्स। यह है
माइटोकांड्रियल मैट्रिक्स। ठीक है? यह है माइटोकांड्रियल मैट्रिक्स। ठीक है? नाउ ये हो गया। अब ये जब प्रोटॉन
ग्रेडियंट बनता है ना तो वो प्रोटॉन ग्रेडियंट को पता है ये तोड़ता है। और यहां पे ये f0 f1 जैसा अभी थोड़ी देर पहले
मैंने बताया फोटोसिंथेसिस में वो f0 f1 कॉम्प्लेक्स होता है। और उसी के टूटने से यहां पे एटीपी बन जाती है
एडीपी और फास्फेट की मदद से। ठीक है? क्लियर? तो इस तरह से यहां पर भी खेल खेला जा रहा होता है। तो H+ जो ग्रेडियंट है जो
NADH और FADH के कारण क्रिएट हुआ था उसकी मदद से एटीपी बन रहा होता है। एटीपी बन रहा होता है। क्लियर? अब सुनो मेरी बात।
ये पांच कॉम्प्लेक्सेस के नाम बहुत इंपॉर्टेंट है। याद कर लेना। जैसे अगर मैं बताऊं पहला कॉम्प्लेक्स कॉम्प्लेक्स नंबर
वन। कॉम्प्लेक्स नंबर वन जो होता है वो होता है NADH डिहाइड्रोजेनेस। NADH डिहाइड्रोजेनेस जो NADH को तोड़ता है। ठीक
है? कॉम्प्लेक्स नंबर टू जो होता है उसको हम कहते हैं उसको हम कहते हैं FADH
डिहाइड्रोजेनेस या फिर इसी को हम सक्सीनिक डिहाइड्रोजेनेस भी कहते हैं। इसी को हम
सक्सिनिक सक्सिनिक डिहाइड्रोजेनेस भी कहते हैं। सक्सिनिक डिहाइड्रोजेनेस भी कहते हैं। कॉम्प्लेक्स
नंबर थ्री जो होता है ना वो होता है साइटोक्रोम रिडक्टिस। वो होता है साइटोक्रोम BC1 यानी कि साइटोक्रोम
रिडक्टेज भी कहते हैं उसको हम। कॉम्प्लेक्स नंबर फोर जो होता है उसको हम कहते हैं
साइटोक्रोम Aa3 कॉम्प्लेक्स जिसको हम साइटोक्रोम ऑक्सीडेज भी कहते हैं। और कॉम्प्लेक्स नंबर फाइव जो होता है उसको हम
कहते हैं F0F1 कॉम्प्लेक्स। f0 f1 कॉम्प्लेक्स कहते हैं। f0
f1 कॉम्प्लेक्स कहते हैं। f0 f1 कॉम्प्लेक्स कहते हैं। ये पांच कॉम्प्लेक्सेस हैं। इनको तुम्हें याद रखना
है। अब इस चैप्टर में एक चैप्टर बच एक टॉपिक बचता है जिसको कहते हैं हम रेस्पिरेटरी कोशंट जिसको हम क्या कहते
हैं? जिसको हम कहते हैं रेस्पिरेटरी कोशंट। यह जो रेस्पिरेटरी कोशंट होता है, यह जो रेस्पिरेटरी कोशंट होता है, यह
बेसिकली पता है क्या होता है? यह होता यह है कि अगर तुम किसी भी मॉलिक्यूल को कंप्लीटली ब्रेकडाउन करते हो तो उसमें
कितना CO2 रिलीज़ होता है अपॉन उसमें कितना टोटल ऑक्सीजन यूज़ होता है उसको हम कहते हैं रेस्पिरेटरी कोशंट उसको हम कहते हैं
रेस्पिरेटरी कोशेंट तो ग्लूकोज़ के केस में रेस्पिरेटरी कोशेंट पता है क्या होता है वन प्रोटीन एंड अमीनो
एसिड के केस में रेस्पिरेटरी कोशंट होता है 99 और जो तुम्हारा फैट्स होता है उसके केस
में जो तुम्हारा रेस्पिरेटरी कोशंट होता है वो होता है पॉइंट से वो होता है पॉइंट से वो होता है पॉइंट से ठीक है इसके
अलावा इस चैप्टर में एक और टॉपिक बचा हुआ है कि भाई शुगर या ग्लूकोस के अलावा और कौन-कौन जो है हमारे रेस्पिरेटरी चेन में
आ सकता है तो हमें पता है शुगर के अलावा और भी चीजें आ सकती हैं। जैसे कि तुम्हारे अमीनो एसिड भी रेस्पिरेशन में इनवॉल्व हो
सकते हैं। वो डायरेक्टली पाइरुवेट से पाइरुवेट वाले स्टेप से इस चेन को जॉइन कर सकते हैं। इसके अलावा जो
है तुम्हारा फैटी एसिड्स जो हैं वो भी चेन को जॉइन कर सकते हैं। एट द लेवल ऑफ एसिटिल कोए।
एसिटिल कोए के लेवल पर ज्वाइन कर सकते हैं। या फिर मैं बोलूं कि तुम्हारा जो है ग्लिसरॉल भी जॉइ कर सकता है रेस्पिरेटरी
चेन को वो जॉइ कर सकते हैं इसको ग्लिसरल्डिहाइड थ्री फास्फेट या डाईहाइड्रोक्सी एसीटोन फास्फेट डाई
हाइड्रोक्सी एसीटोन फास्फेट वाले स्टेप में डाहाइड्रोक्सी एसीटोन फास्फेट वाले स्टेप
में इसको जॉइन कर सकते हैं। ठीक है? क्लियर? डाईहाइड्रोक्सी एस्ट्रोनॉन फास्फेट वाले स्टेप में इसको यह जॉइ कर
सकते हैं। बस इतना ही यह चैप्टर है। और जो हमारी रेस्पिरेटरी प्रोसेस होती है, उसको हम एफीबोलिक पाथवे कहते हैं। क्या कहते
हैं? एफीबोलिक पाथवे कहते हैं। ये भी पॉइंट नोट करने वाला है यहां पे। ठीक है? तो इस तरह से हमने 11th क्लास के जो है
इंपॉर्टेंट टॉपिक्स देख लिए हैं। और यस, ये इंपॉर्टेंट टॉपिक्स हैं। लेकिन ऐसा नहीं है कि क्वेश्चन यहीं से आएगा या यहीं
से आएगा। आना ही है इस जगह से। ऐसा नहीं है। यहां से क्वेश्चन आएंगे। बट ऐसा नहीं है क्योंकि हमने पेपर नहीं देखा है। हम
पेपर लीक नहीं कराते हैं और हम यह भी नहीं बोलते कि क्वेश्चन यहीं से आएंगे। है ना? या ये देख लिया तो सब हो गया। ये नहीं
देखा तो कुछ नहीं हुआ। है ना? ऐसा नहीं है। हमें पता है कि जो भी सिलेबस है वो पूरा का पूरा ही इंपॉर्टेंट है। ठीक है?
ऐसा नहीं है कि बस इतना ही पढ़ के चले जाओगे और हो जाएगा। ऐसा नहीं है। बट हां ज्यादा इंपॉर्टेंट टॉपिक्स यह हैं। यहां
पर क्वेश्चन पूछे जाने की प्रोबेबिलिटी ज्यादा है। अब वो किसी भी तरह से क्वेश्चन पूछ सकता है। ओके? तो ये है इसका फंडा। अब
आ जाओ हम चलते हैं आगे। हमारी नेक्स्ट यूनिट जो हमको पढ़नी है दैट इज जेनेटिक्स। जेनेटिक्स बहुत इंपॉर्टेंट चैप्टर है।
जेनेटिक्स बहुत इंपॉर्टेंट चैप्टर है। यहां से क्वेश्चन पूछे जाते हैं हर साल। ठीक? जेनेटिक्स में कुछ चीजें मैं तुम लोग
को बता दूं। जैसे कि मेंडल के लॉज़ लॉ ऑफ डोमिनेंस लॉ ऑफ डोमिनेंस बहुत इंपॉर्टेंट है। लॉ ऑफ सेग्रगेशन बहुत इंपॉर्टेंट
है। लॉ ऑफ इंडिपेंडेंट असोर्टमेंट बहुत इंपॉर्टेंट है। ठीक है? क्या है इनमें?
भाई लॉ ऑफ़ डोमिनेंस बोलता है कि अगर दो पैरेंट्स के बीच मीटिंग होती है तो उनका जो बच्चा होता है उनमें से उन उस बच्चे
में जो कररेक्टरिस्टिक है वो किसी एक पैरेंट की तरह आता है। कोई एक पर्टिकुलर कररेक्टर जैसे कि अगर मैंने मीटिंग कराई
है एक टॉल पी प्लांट की एक शॉर्ट पी प्लांट के साथ तो उसमें F1 जनरेशन में टॉल ही कैरेक्टर आता है। मतलब कि टॉल डोमिनेंट
है और शॉर्ट वाला जो कैरेक्टरिस्टिक है वो रेसेसिव है। सेग्रगेशन कहता है कि हमेशा ही जो ट्रेट्स हैं वह सेग्रगेट करते हैं
और फिर वो गेमेट फॉर्मेशन के टाइम पर वो सेग्रगेट करते हैं और जब वो बच्चा बनता है तो उस टाइम पे वो वापस से यूनाइट हो जाते
हैं। ऐसा जरूरी नहीं है कि हर ट्रेट हमें हर जनरेशन में दिखे लेकिन वो ट्रेट के जो कैरेक्टर वो ट्रेट के रिस्पेक्टिव एललील्स
हैं वो हमेशा ही प्रेजेंट होते हैं। भले ही वो ट्रेट ना दिख रहा हो। इंडिपेंडेंट असोर्टमेंट यह इंडिपेंडेंट असोर्टमेंट यह
कहता है कि अगर हम एक से ज्यादा कैरेक्टर्स को एक साथ स्टडी कर रहे हैं तो जो हम एक से ज्यादा कररेक्टरिस्टिक्स को
अलग-अलग स्टडी कर रहे हैं ना वो अलग-अलग वे में ही इन्हहेरिट होंगे। ऐसा नहीं है कि इस कैरेक्टरिस्टिक की इन्हहेरिटेंस
दूसरे कैरेक्टरिस्टिक की इन्हहेरिटेंस से रिलेटेड है। ऐसा नहीं है। वो डिपेंडेंट नहीं होती है। वो इंडिपेंडेंट होती है।
ठीक है? और यह चीजें तुम लोग गेमिट फॉर्मेशन या फिर सेल बायोलॉजी या फिर मियोसिस के टाइम पर भी देख सकते हो।
क्योंकि मियोसिस के टाइम पर जब गेमिट बनता है तो एनाफेज वन पे क्रोमोजोम सेग्रगेट करते हैं। ठीक है? और मेटाफेज वन के टाइम
पे जितने भी क्रोमोजोम है वो एक रैंडम मैनर में अलाइन करते हैं। तो इसी को इंडिपेंडेंट असोर्टमेंट कहते हैं। क्लियर
क्लियर? अगर मैं यहां पे पी प्लांट का एग्जांपल लूं जो मेंटल जो मेंडल ने लिया था टॉल
और ड्वार्फ उन्होंने लिया था। ठीक? और जब F1 में इनकी जनरेशन आई थी तो यहां पर T गया था। यहां पे T गया था और ये T कंबाइन
हुआ था। ठीक है? तो इससे सिर्फ और सिर्फ टॉल इंडिविजुअल्स आए थे F1 जनरेशन में। यानी कि टॉल वाला डोमिनेट कर रहा था।
लेकिन अब जब नेक्स्ट जनरेशन होती है तो T t ये चार टाइप की पॉसिबिलिटीज़ ऑफ जीनोटाइप आ जाती हैं। जिनमें से ये ये और ये टॉल हो
जाते हैं। यानी कि तीन हो जाते हैं टॉल। और एक जो है T वो हो जाता है ड्वार्फ। स्मॉल T कैसा हो जाता है? वो हो जाता है
ड्वार्फ। अब देखो तुम लोग। ये तो फिनोटाइप हो गया। ये तो हो गया फिनोटाइप। ठीक है? ऐसे ही एक आता है जीनोटाइप। ऐसे
ही क्या आता है? एक आता है जीनोटाइप। जो जीनोटाइप होता है ना भाई वो हमारा क्या जेनेटिक कंपोज़शन है? उसको दर्शाता है।
T और T तीन ही यहां पे कररेक्टरिस्टिक्स हैं। T कितने हैं? एक। T कितने हैं? दो। और T कितना है? एक। तो जीनोटिपिक रेशियो 1
2 1 रहता है। फिनोटिपिक रेशियो हमेशा ही 3 1 रहता है। ठीक है? क्वेश्चन ये आता है कि लॉ ऑफ़ डोमिनेंस का कुछ डिसएडवांट कुछ
लिमिटेशन भी है। आंसर है यस। लॉ ऑफ डोमिनेंस हमेशा ही हर एक कैरेक्टर के लिए नहीं अप्लाई होता है। इसकी लिमिटेशंस भी
हैं। जैसे इनकंप्लीट डोमिनेंस और कोड डोमिनेंस और
को डोमिनेंस। ठीक है? इसका एग्जांपल आ जाएगा स्नैपन और कोडमिनेंस का एग्जांपल आ जाएगा एबीओ ब्लड ग्रुपिंग। ठीक? सेग्रगेशन
वाला जो फिनोमिना है उसका कोई भी एक्सेप्शन जनरली नहीं देखा जाता है। अगर इस इस रूल को वायलेट किया जाता है तो इससे
कोई ना कोई जेनेटिक डिसऑर्डर या जेनेटिक कंडीशन हो जाती है उस कैरेक्टरिस्टिक के रिस्पेक्ट में। इंडिपेंडेंट असोर्टमेंट का
भी एक लिमिटेशन है जिसको हम कहते हैं लिंकेज। ठीक है? ठीक है? जिसको हम कहते हैं
लिंकेज। अगर मैं इंडिपेंडेंट असोर्टमेंट में चलूं तो मैं तुम लोगों को ये बता दूं कि इंडिपेंडेंट असोर्टमेंट हमेशा ही एक से
ज्यादा कररेक्टरिस्टिक को स्टडी करने पे होता है। ठीक है? इंडिपेंडेंट असोर्टमेंट
इंडिपेंडेंट असोर्टमेंट हमेशा ही एक से ज्यादा कैरेक्टरिस्टिक को स्टडी करने पे देखा जा सकता है। जैसे अगर मैं
डाईहाइब्रिड क्रॉस बनाता हूं। जैसे अगर मैं डाईहाइब्रिड क्रॉस बनाता हूं तो उसमें मैं
मान लो T को T के साथ मेट करता हूं तो इसमें जो
तुम्हारा F1 हाइब्रिड बनता है वो पता है क्या बनता है? T पी पी ठीक है जो कि टॉल भी होता है। अगर मैंने ये कैरेक्टरिस्टिक
टॉल और फ्लावर कलर में पर्पल चूज़ की है और मैंने यहां पे अगर ड्वार्फ और वाइट फ्लावर चूज़ किया है। दो
कररेक्टर स्टडी किए हैं। तो यहां पे सारे के सारे डोमिनेंट रेट्स आ जाते हैं। F1 में टॉल भी आता है और पर्पल भी आता है। ये
दोनों ही डोमिनेंट हैं। लेकिन जब नेक्स्ट जनरेशन में तुम लोग इसकी सेल्फिंग कराओगे जब तुम इसकी सेल्फिंग कराओगे तो नेक्स्ट
जनरेशन में जो इसकी फिनोटिपिक रेशो आएगी जो इसकी फिनोटिपिक रेशो आएगी वो पता है क्या आती है वो आती
है वो आती है 9 वो आती है वो आती है 93 1 ठीक है और जो जीनोटिपिक रेशो आती है वो पता है क्या आती है जीनोटिपिक रेशो आती
है वो आती है 1 2 1 2 4 2 1 2 1 ये इसकी जीनोटिपिक रेशो आ जाती है। ठीक है? क्लियर? ये बात इंपॉर्टेंट है जानने वाली।
जिसमें से ज्यादा इंपॉर्टेंट है ये फिनोटाइप तुमको याद रखना है। ये नाइन जो है ये पता है क्या? है? ये दोनों ही
डोमिनेंट ट्रेड्स को डिनोट करता है। ये थ्री है। यह एक डोमिनेंट एक रेसेसिव को डिनोट करता है। यह दूसरा थ्री है वो एक
रेसेसिव एक डोमिनेंट को डिनोट करता है। और जो वन है वो दोनों ही रेसेसिव को डिनोट कर रहा है। समझे? क्लियर? इतनी
बातें इंपॉर्टेंट है यहां जानने वाली। पर लॉ ऑफ इंडिपेंडेंट असोर्टमेंट यहां फॉलो हो रहा है। ऐसा हम मानते हैं क्योंकि
इसमें 9 3 1 रेशो आ रही है। ठीक? लेकिन कभी-कभी कुछ कैरेक्टरिस्टिक को जब तुम चूज़ करते हो ना तो वो ये रेशो नहीं देते हैं।
वो डेविएट कर जाता है इस रेशो से। डेविएटेड फ्रॉम दिस रेशो। इस रेशो से ये डेविएट हो
जाते हैं। और वो केस होता है लिंकेज का। अब लिंकेज क्या होता है? लिंकेज पता है क्या होता है? लिंकेज होता है वो केस
जिसमें हम बोलते हैं कि यार जब हम एक कैरेक्टरिस्टिक को स्टडी कर रहे हैं ना तो उसके दो एललील्स होते हैं। और वो दोनों ही
एललील्स एक यहां पे और एक यहां पे होता है। जब हम दो कैरेक्टरिस्टिक्स स्टडी करते हैं ना तो हम बोलते हैं कि वो दो होमोलोगस
क्रोमोजोम पे होगा। जैसे T यहां पे होगा लेकिन अगर हम P देख रहे हैं ना तो वो दूसरे क्रोमोजोम पे होगा। ऐसा हम अस्यूम
करते हैं हमेशा ही। तो P यहां P यहां होगा। ठीक है? ऐसा हम अस्यूम करते हैं कि दो कैरेक्टरिस्टिक लिए हैं तो उसके जो
एललील्स हैं वो दो अलग-अलग होमोलोगस पेयर ऑफ़ क्रोमोजोम पे प्रेजेंट होंगे। लेकिन ऐसा जरूरी नहीं है। हो सकता है कि ये
दोनों ही जो कैरेक्टर्स हैं, इसके जो एललील्स हैं, इसके जो एललील्स हैं, वो एक ही होमोलोगस क्रोमोजोम पे
प्रेजेंट हो। जैसे मान लो T यहां है और P यहां है। यहां इसका लोकस है। यहां इसका लोकस है। तो ये तो एक ही होमोलोगस
क्रोमोसोम पे भी तो दोनों ही कैरेक्टर्स के जींस या कैरेक्टरिस्टिक के एललील्स प्रेजेंट हो सकते हैं। बिल्कुल हो सकते
हैं। अगर ऐसी कंडीशन आती है ना तो इसको हम लिंकेज कहते हैं। तो इसको हम लिंकेज कहते हैं। और ये कंडीशन में
इंडिपेंडेंट असोर्टमेंट फॉलो होता है। अब लिंकेज के केस में पता है क्या? जो हमारी रेशो है ना वो एबनॉर्मल सी आती है। कभी वह
93 1 भी आ सकती है। कभी वो 9 3 1 भी आ सकती है। कभी वो 7 5
2 1 7 8 एंड 10 11 12 13 14 15 16 ऐसी भी आ सकती है या कुछ भी आ सकती है। लेकिन हमें पता है यहां पर दो चीजें देखने को
मिलेंगी। एक होते हैं पैरेंटल्स। एक होते हैं पैरेंटल्स और एक होते हैं रिक्बिनेंट्स।
एक होते हैं रिक्बिनेंट्स। एक होते हैं पैरेंटल्स और एक होते हैं रिक्बिनेंट्स। अगर लिंकेज
ज्यादा हद तक है तो पैरेंटल्स मोर होंगे। बहुत ज्यादा होंगे देन रिक्बिनेंट्स। रिक्बिनेंट्स बहुत कम होंगे। ठीक है?
क्लियर? बट ये डिपेंड करता है। पता है क्या? किस चीज पे डिपेंड करता है कि अगर तुम्हारे होमोलोगस क्रोमोजोम पे जो दो
कररेक्टर्स की जीन है वो बहुत पासपास है। T यहां है। P यहां है। इफ दे आर क्लोज इनफ। अगर वो क्लोज है बहुत पास है तो क्या
होगा? अगर वो बहुत पास है तो उसमें लिंकेज का अमाउंट हाई होगा। और अगर वो बहुत दूर है
मान लो अगर वो बहुत दूर है मान लो एक यहां है और एक यहां है एक T यहां है एकिटल P यहां है अगर ये बहुत दूर है तो इसमें
लिंकेज का जो अमाउंट है या लिंकेज की वजह से जो पैरेंटल्स आते हैं वो लो आएंगे बहुत कम आएंगे तो ये डिस्टेंस पे डिपेंड करता
है अगर वो दूर है तो रिक्बिनेशन के चांसेस ज्यादा होंगे और अगर वो पासपास है तो रिक्बिनेशन के चांसेस कम होंगे ठीक है तो
क्लोजर द डिस्टेंस लेसर आर द रिक्बिनेंट्स फदर इज द डिस्टेंस मोर द
चांसेस ऑफ रिक्बिनेंट्स गेटिंग मोर एंड मोर रिक्बिनेंट्स करेक्ट ये चीजें यहां पे पाई जाती है लिंकेज में अब इस चैप्टर में
आगे अगर तुम चलो तो तुम्हारे पास एक टॉपिक आता है सेक्स डिटरमिनेशन का जो कि काफी सिंपल है यहां पे मेल और फीमेल
हेटेरोगमेट्री आता है मेल हेटेरोगमेट्री और फीमेल मेल हेटेरोगमेट्री का केस आता है।
ठीक है? मेल और फीमेल हेटेरगमेट्री का केस आता है। मेल हेटेरोगमेट्री में जो सेक्स क्रोमोजोम है वो मेल में अलग-अलग टाइप के
होंगे। जैसे मेल्स में xy होता है ह्यूमंस में। फीमेल्स में x एक्स होता है। है ना? x एक्स xy वाला केस आता है। या फिर x 0 x
वाला केस आता है। ठीक है? ये x0 x वाला केस इंसेक्ट्स में देखा जाता है और x एक्स xy वाला केस ह्यूमंस में देखा जाता है।
फीमेल हेट्रोगमेट्री में क्या होता है कि फीमेल में अलग क्रोमोसोम होता है। z zw वाला केस होता है। zw फीमेल में होता
है और z जो है वो मेल्स में पाया जाता है। ठीक है? और जो मेल्स में पाया जा रहा है Z और ZW जो फीमेल में पाया जा रहा है यह
जनरली किसी बर्ड में देखा जाता है। जैसे कि तुम मान लो हेन चिकन्स हेंस इन में देखा जाता है। क्लियर एक सेक्स
डिटरर्मिनेशन का केस बहुत ही इंपॉर्टेंट है। दैट इज़ सेक्स डिटरमिनेशन इन दैट इज़ सेक्स डिटरर्मिनेशन इन हनी बी। उनमें
हैप्लो डिप्लॉयड टाइप का सेक्स डिटरमिनेशन देखा जाता है। क्या होता है इसमें? इसमें हेपोडिप्लॉयड सेक्स डिटरर्मिनेशन में होता
ये है कि जो फीमेल है वो यहां पे डिप्लॉयड होती [संगीत]
हैं और जो मेल होते हैं वो यहां पे हैप्लॉयड होते हैं। तो जो फीमेल है यानी कि वर्कर बीज़ या
फिर क्वीन बी है उसमें 32 क्रोमोजोम्स होते हैं जो कि 2n कंटेंट है। जबकि मेल्स जो हैं जिनको हम ड्रोंस भी बोलते हैं।
जिनको हम ड्रोंस भी बोलते हैं। उसमें हैप्लॉयड यानी कि 16 क्रोमोजोम्स पाए जाते हैं। ठीक है? तो ड्रोंस आर हैप्लॉयड।
ड्रोंस आर हैप्लॉयड। जबकि जो फीमेल्स हैं ये ये होती है डिप्लॉयड। इसमें दो प्रकार की फीमेल
आती हैं। एक आती है वर्कर और एक आती है क्या? क्वीन बी। एक आती है वर्कर बी, एक आती है क्वीन बी। ठीक है? वर्कर भी
स्टेराइल होती है। क्वीन भी फर्टाइल होती है और जो तुम्हारा क्वीन भी फर्टाइल होती है। और ड्रोंस जो होते हैं वो
भी फर्टाइल होते हैं। ड्रोंस भी फर्टाइल होते हैं। ड्रोंस भी फर्टाइल होते हैं। ठीक? तो ये चीज होती है। यानी कि ड्रोंस
कैसे बनेंगे? ड्रोनस बनेंगे विदाउट फर्टिलाइजेशन। ड्रोंस बनते हैं पार्थिनोजेनेसिस से।
ड्रोंस बनते हैं पार्थिनोजेनेसिस से। जबकि यह जो है यह बनती है फर्टिलाइजेशन से। यह बनती है फर्टिलाइजेशन से।
ड्रोन पार्थेनोजेनेसिस से बनता है। लेकिन किसकी पार्थेनोजेनेसिस से? एग की पार्थेनोजेसिस से बनते हैं। यानी कि
ड्रोंस के पास हमेशा मदर होती हैं। क्योंकि एग तो मदर के पास है। ड्रोंस के पास हमेशा मदर होती हैं। जबकि ड्रोनस के
पास कोई फादर नहीं होता है। ड्रोंस के पास ग्रैंड मदर हो सकती है। ड्रोंस के पास ग्रैंडफादर हो सकते हैं। ग्रैंड सन हो
सकते हैं। लेकिन ड्रोंस के पास सन और फादर नहीं हो सकते हैं। ठीक है? क्योंकि अगर सन और फादर आ गए क्योंकि अगर फादर आ गया तो
यानी कि फर्टिलाइजेशन हुई है। और अगर फर्टिलाइजेशन हो गई तो वो फीमेल बन जाएगा। ठीक है? ये है सीन इसका।
आगे आ जाओ चलते हैं। अच्छा इसमें यहां पे एक बहुत इंपॉर्टेंट टॉपिक आता है जिसको कहते हैं पेडिग्री एनालिसिस जिसको हम कहते
हैं पेडिग्री एनालिसिस। पेडिग्री एनालिसिस में पता है क्या आता है? हम बेसिकली किसी के फैमिली में कोई ट्रेट जो है उसके
इन्हहेरिटेंस को स्टडी कर रहे होते हैं। किसी कैरेक्टरिस्टिक के इन्हहेरिटेंस को स्टडी कर रहे होते हैं। जैसे कि कोई
बीमारी जैसे हेमोफीलिया। हमें पता है कि हेमोफीलिया जो है वो एक ऐसा डिसऑर्डर है जो एक्स लिंक रिसेसिव डिसऑर्डर होता है और
इस डिसऑर्डर में की जो इन्हहेरिटेंस है वह एक्स क्रोमोजोम के द्वारा देखी जाती है और यह फैमिली में पर्सिस्ट करता है क्योंकि
यह एक्स क्रोमोजोम जो है यह पेरेंट्स से अपने बच्चों में और बच्चों से उनके बच्चों में उनके बच्चों से उनके बच्चों में
ट्रांसफर होता है। तो अगर हमें यह पता करना है कि वेदर हमारा बच्चा जो है या किसी का भी बच्चा उस
फैमिली का जो बच्चा है जो नया पैदा होने वाला है उसमें ये डिसऑर्डर होने के कितने परसेंट चांस है तो हम पेडिग्री एनालिसिस
करा के वो चीज कंफर्म कर सकते हैं। इस पेडिग्री एनालिसिस को स्टडी करना बस आना चाहिए। बाकी इसमें कोई बहुत बड़ी रॉकेट
साइंस नहीं है। इसमें स्क्वायर जो है वह मेल डिनोट करता है। सर्कल जो है वह फीमेल डिनोट करती है। और अगर मेल और फीमेल के
बीच शादी हुई है या मीटिंग हुई है तो वो इस तरह से डिनोट की जाती है। इनके जो बच्चे हैं वो इसके नीचे आ जाएंगे।
ठीक है? यह किड्स हैं या ये इनके चिल्ड्रंस हैं। इनके चिल्ड्रंस को यहां पे ऐसे नीचे डिनोट किया जाता है। ठीक है? तो
ये सारी चीजें होती हैं। क्लियर? अगर मेल अफेक्टेड है किसी डिसऑर्डर से तो मेल्स को पूरी तरह से यहां पे अ शेडेड कर दिया जाता
है। मेल्स को पूरी तरह से यहां पे शेड कर दिया जाता है। ठीक? इस तरह से इस तरह से और अगर फीमेल अफेक्टेड है और
अगर फीमेल अफेक्टेड है अगर फीमेल अफेक्टेड है तो उसको इस तरह से शेड कर दिया जाता है। सर्कल को शेड कर दिया जाता
है। सर्कल को शेड कर दिया जाता है। क्लियर ये ठीक तो ये है अफेक्टेड मेल एंड
फीमेल एंड फीमेल। ठीक? समझ गए? इस तरह से इसको डिनोट किया जाता है। इसको हम स्टडी भी कर
सकते हैं ईजीली। अ अगर हम को ये पता है कि किस तरह से ये डिनोट होते हैं। जैसे
अगर मैं एक सिंपल सा पेडिग्री चार्ट बनाने की कोशिश करूं तो वो कैसा दिखेगा। आ जाओ देखते हैं। तो पता है कैसा दिखेगा?
लेट्स सी। मुझे भी नहीं पता मैं कैसा पेडिग्री चार्ट बनाने जा रहा हूं। लेकिन लेट्स सी। अगर मान लो मैंने ऐसे बनाया। यह
एक मेल है और एक फीमेल है। और यह इसके दो बच्चे होते हैं। यह मेल और एक फीमेल पैदा होती हैं। ठीक है? इसकी शादी हो जाती है
फीमेल से। इसकी शादी हो जाती है एक मेल से। ठीक है? इनके फिर बच्चे होते हैं। मान लो इसके दो लड़के हुए और मान लो इसके दो
लड़कियां हो गई। ठीक? इस तरह की अगर चीज होती है मान लो और इसमें मान लो कि मेल अफेक्टेड था। ठीक है? मेल अफेक्टेड था।
फीमेल ठीक थी। मेल अफेक्टेड था तो उससे ये डिसऑर्डर इन्हहेरिट होता है इस फीमेल में। और फीमेल से फिर वह डिसऑर्डर मान लो इसका
एक लड़का होता है। इसके लड़के में जाता है। ठीक है? तो ये किस टाइप का इन्हहेरिटेंस है? इट्स अ टिपिकल केस ऑफ
एक्स लिंग्ड इनहेरिटेंस। क्योंकि एक्स लिंग्ड इनहेरिटेंस में मेल से फीमेल फीमेल से मेस मेल क्रिस क्रॉस इनहेरिटेंस देखा
जाता है। देखो मेल अफेक्टेड है यानी कि एक्स व यह एक्स क्रोमोजोम पे कोई डिसऑर्डर था। मान लो हेमोफिलिया था तो एक्स
अफेक्टेड था। अब ये x अफेक्टेड इसको यहां पे दिया गया। ये कैरियर थी। ठीक? तो ये और ये दोनों कंबाइन करते हैं तो ये x x में आ
जाती हैं। ये अफेक्टेड हो जाती है। जब इसकी शादी हुई तो इसने अपना x अपने लड़के को दिया और इसने अपना y अपने लड़के को
दिया। तो लड़का भी अफेक्टेड हो गया। तो इट्स अ सिंपल केस ऑफ़ एक्स लिंक रेसेसिव इनहेरिटेंस। एक्स
लिंक्ड रिसेसिव इनहेरिटेंस। एक्स लिंक रेसेसिव इनहेरिटेंस एक्सिंग रेसेसिव इनहेरिटेंस का
केस यहां पे देखा जाता है। ठीक है? यह पेडिग्री एनालिसिस था। अब आगे हम चलते हैं और देखते हैं डिसऑर्डर्स। अगर मैं
डिसऑर्डर्स की बात करता हूं। अगर मैं डिसऑर्डर्स की बात करता हूं। अगर मैं अगर मैं
डिसऑर्डर्स की बात करता हूं तो दो टाइप के डिसऑर्डर होते हैं। एक होते हैं क्रोमोजोमल डिसऑर्डर्स। एक होते हैं
क्रोमोजोमल डिसऑर्डर और एक होते हैं मेंडेलियन डिसऑर्डर जो म्यूटेशन के कारण होते हैं वो होते हैं मेंडेलियन डिसऑर्डर
एम से मेंडेलियन एम से म्यूटेशन ठीक है और जो क्रोमोजोम के नंबर में चेंज होने के
कारण होते हैं डिसऑर्डर्स उसको कहते हैं क्रोमोजोमल डिसऑर्डर उसको कहते हैं क्रोमोजोमल डिसऑर्डर्स। क्रोमोजोमल
डिसऑर्डर में तीन डिसऑर्डर तुमको पढ़ने हैं। पहला आ जाता है डाउन सिंड्रोम। दूसरा आ जाता है क्लाइनेफेल्टर
सिंड्रोम। क्लाइफ्टर सिंड्रोम और तीसरा आ जाता है जिसको हम कहते हैं टर्नर
सिंड्रोम। यह पता है किसकी वजह से होते हैं? डाउन सिंड्रोम होता है ट्राइसोमी ऑफ ट्राइसोमी ऑफ़ 21 क्रोमोजोम के कारण। ठीक?
क्लाइनफेक्टर होता है ट्राइसोमी ऑफ़ एक्स क्रोमोजोम के कारण। और टर्नरल सिंड्रोम पता है क्यों होता है? टर्नर
सिंड्रोम होता है मोनोसोमी ऑफ़ एक्स क्रोमोजोम के कारण। मोनोसोमी ऑफ
x क्रोमोजोम के कारण। ठीक है? यह ट्राइजोम या मोनोसोमी का मतलब होता है कि एक क्रोमोजोम ज्यादा या एक क्रोमोजोम कम
रिस्पेक्टिवली हो जाएगा। ट्राइजोमी मतलब कि एक क्रोमोजोम ज्यादा। यहां पर 21 क्रोमोजोम जो है वह दो होते हैं। होमोलोगस
पेयर दो क्रोमोजोम होते हैं। लेकिन एक अगर और ज्यादा आता है तो तीन 21 क्रोमोजोम्स हो जाए तो वो ट्राइजोमी है। और अगर
मोनोजोमी की बात करें तो अगर यहां पे बोल रहे हैं मोनोजोमी ऑफ़ एक्स क्रोमोसोम। तो हमें पता है फीमेल में x एक्स क्रोमसोम
होता है। लेकिन अगर x एक ही एक्स क्रोमोसोम जाए तो वो मोनोजोमी कहलाता है। ठीक है? क्लियर? तो इसको कहते हैं
मोनोजोमी ऑफ़ x क्रोमोजोम। और यहां पे कहते हैं मोनोजोमी ऑफ़ 21 क्रोमोजोम। यहां पे बोलते हैं हम यहां पे बोलते हैं ट्राइजोमी
ऑफ़ 21 क्रोमोम और यहां पे बोलते हैं ट्राइजोमी ऑफ़ X क्रोमोजोम। ठीक है? क्लियर समझे? ये होता क्यों है? ये पता है क्यों
होता है? ये होता है नॉन डिजंक्शन। ये होता है नॉन डिसजंक्शन ड्यूरिंग एनाफेज स्टेज में।
यह होता है नॉन डिजंक्शन ऑफ क्रोमोजोम्स ड्यूरिंग एनाफेज वन
ड्यूरिंग एनाफेज वन। ठीक? अब आ जाओ मेंडेलियन डिसऑर्डर पे। अगर मैं मेंडेलियन डिसऑर्डर
की बात करता हूं। अगर मैं मेंडेलियन डिसऑर्डर की बात करता हूं तो जो मेंडेलियन डिसऑर्डर है वो तीन प्रकार के हमको स्टडी
करने हैं। मेंडेलियन डिसऑर्डर में पहला डिसऑर्डर है जिसको हम कहते हैं [संगीत]
हेमोफीलिया। दूसरा डिसऑर्डर है जिसको हम कहते हैं सिकल सेल्ड एनीमिया। सिकल सेल्ड एनीमिया। और जो तीसरा
डिसऑर्डर है उसको हम कहते हैं उसको हम कहते हैं फिनाइल कीटोन्यूरिया। इसको हम कहते हैं
फिनाइल कीटोन्यूरिया। उसको हम कहते हैं फिनाइल कीटोन्यूरिया। ठीक है? हेमोफीलिया क्या होता है? हेमोफीलिया होता है एक्स
लिंक रिसेसिव। हेमोफीलिया होता है एक्स लिंक रिसेसिव डिसऑर्डर। सिकल साइड एनीमिया होता है ऑटोजोमल रिसेसिव डिसऑर्डर। सिकल
सेनीमिया होता है ऑटोजोमल। ऑटोजोमल रिसेसिव डिसऑर्डर। और फिनाइल
किटनोरिया भी ऑटोजोमल रिसेसिव डिसऑर्डर होता है। यही मेन पॉइंट है इसका। बाकी इसमें होता क्या
है वो तो तुम लोग पढ़ ही लोगे क्योंकि यहां पे ब्लड क्लॉट नहीं होता है। यहां पे एनीमिया हो जाता है क्योंकि जो हमारा सेल
होता है रेड ब्लड सेल उसका शेप चेंज हो जाता है। उसका शेप बाय कॉनकेव डिस्क से चेंज हो के सिकल सेल्ड में हो जाता है।
ड्यू टू पॉइंट म्यूटेशन। यहां पे पॉइंट म्यूटेशन होती है। जिसकी वजह से क्या होता है? जो तुम्हारा ग्लोबिन चेन है उसका
सिक्स्थ पोजीशन पे ग्लूटमिक एसिड आता है लेकिन उसकी जगह वैलीन रिप्लेसमेंट हो जाता है और एक ही ये
वैलीन रिप्लेसमेंट की वजह से जो तुम्हारा ग्लोबिन चेन है वो इतना फोल्ड उसका डिफरेंट हो जाता है कि वो सिकल सेल देखने
लग जाता है। फिनाइल किटनरिया ऑटोजोमल रिसेसिव डिसऑर्डर है और इसमें यह एक मेटाबॉलिक डिसऑर्डर है जिसमें फिनाइल
एलनिन को टायरोसिन में चेंज होना होता है बट एक जीन में म्यूटेशन होने के कारण फिनाइल
एलेनिन हाइड्रोक्सिलेज एंजाइम बेहतर तरह से नहीं प्रोड्यूस हो पाती है। जिसकी वजह से जो तुम्हारा फिनाइल एलानिन है वो
फिनाइल पाइरुविक एसिड में कन्वर्ट हो जाता है। और वो फिनाइल पाइरुविक एसिड जो है वो तुम्हारे इंपॉर्टेंट ऑर्गन्स में डिपॉजिट
होने लग जाता है। और वो जो इंपॉर्टेंट ऑर्गन्स हैं वो तुम्हारा ब्रेन, हार्ट, किडनी यह सारे हो सकते हैं। ठीक है? तो इस
तरह से हम जेनेटिक्स को भी कवर कर रहे हैं। और अब हम चलते हैं अपने नेक्स्ट टॉपिक पे। दैट इज मॉलिक्यूलर बेसिस ऑफ
इनहेरिटेंस इट इज आल्सो वेरीेंट चैप्टर बट बट यहां पे मैं अभी इसको बहुत डीप में नहीं
पढ़ा पाऊंगा बट हां मैं तुम्हें इसका आईडिया दे दूंगा कि ये चैप्टर है क्या? मॉलिक्यूलर बेसिस ऑफ इनहेडेंट क्योंकि ये
काफी बड़ा चैप्टर है ना। इसको अगर मुझे ज्यादा डिटेल में पढ़ाना है तो मुझे बहुत बड़ी क्लास चाहिए होगी। लेकिन यस दिस इज़ अ
वन शॉर्ट वीडियो। दैट्स व्हाई लेट मी जस्ट ट्राई टू रिवाइज दिस होल टॉपिक फॉर यू। ठीक? अगर मैं मॉलिक्यूलर बेसिस ऑफ
इनहेरिटेंस की बात करूं तो मुझे पता है कि जो भी मैंने जेनेटिक्स में पढ़ा उसमें मैंने एललील या जीनोटाइप फिनोटाइप की
टर्म्स में पढ़ा। लेकिन एक्चुअली में कैरेक्टरिस्टिक्स कैसे एक्सप्रेस होते हैं मॉलिक्यूलर लेवल पे वो इस चैप्टर में
पढ़ाया जाता है। देखो हमें पता है कि एक ह्यूमन होता है। कोई बंदा है उसके हर एक सेल के अंदर एक न्यूक्लियस होता है और उस
न्यूक्लियस के अंदर क्रोमोजोम होते हैं। और उस क्रोमोजोम के अंदर वो क्रोमोजोम किस चीज का बना होता है? वो क्रोमोजोम बना
होता है प्रोटीन। वो क्रोमोजोम बना होता है प्रोटीन प्लस डीएनए का। यह जो डीएनए होता है ना यह कुछ इस तरह का दिखता है और
इस डीएनए में नॉन कोडिंग सीक्वेंसेस भी होते हैं। नॉन कोडिंग सीक्वेंसेस भी होते हैं
और कोडिंग सीक्वेंसेस भी होते हैं। जो नॉन कोडिंग सीक्वेंसेस है वो किसी प्रोटीन को नहीं बनाते हैं। लेकिन कोडिंग सीक्वेंसेस
पता है क्या बनाते हैं? यह एमआरएनए बनाते हैं और ये जो एमआरएनए है ये आगे चल के प्रोटंस बनाती है। ये एमआरएनए आगे चल के
प्रोटंस बनाती हैं। क्लियर? और यही प्रोटीनंस हमारी बॉडी में डिफरेंट एंजाइम्स की तरह एक्ट करते हैं। और यही
एंजाइम्स हमारी बॉडी में ऐसे रिएक्शन को कंट्रोल करती हैं जो हमारी बॉडी में डिफरेंट ट्रेट्स को जन्म देते हैं। तो यही
ट्रेड्स जो है ये इन्हहेरिट भी होते हैं। और यह ट्रेड आए कहां से? इस एंजाइम्स हैं जो कि एक प्रोटीन है जो कि एमआरएनए से आई
और वो कहां से आई? डीएनए से आई। और ये डीएनए क्रोमोजोम पे प्रेजेंट है। और क्रोमोजोम हमको कहां से मिले? हमारे
पेरेंट्स से मिले। मदर या फादर में से किसी एक से। क्लियर? ये सबको समझने वाली बात है। अब मैं अगर तुम लोगों को बताऊं इस
चैप्टर में शुरुआत वाला जो पार्ट है जो कि है स्ट्रक्चर ऑफ़ डीएनए वो हम पढ़ चुके हैं बायोमॉलिक्यूल में अभी थोड़ी देर पहले।
अगर मैं तुम लोगों को यह बताऊं कि इस चैप्टर में जो है डिस्कवरी वाला एक पार्ट आता है जिसमें ट्रांसफॉर्मेशन
एक्सपेरिमेंट ऑफ ग्रिफेथ आता है। उसके बाद केमिकल कैरेक्टराइजेशन ऑफ ट्रांसफॉर्मेंट एक्सपेरिमेंट जो कि एवरी मैक्लड और मैकाटी
ने किया था वो आता है। उसके बाद ट्रांसडक्शन एक्सपेरिमेंट जो कि मार्थ जो कि अपने हर्ष एंड चेस ने किया था वो भी
आता है। और उसके बाद एक रेप्लिकेशन का एक्सपेरिमेंट है जो मसल्स एंड स्टाल ने किया था वो आता है। यह सारे एक्सपेरिमेंट
तुम लोगों को अच्छे से समझ लेने हैं। हम यहां पे कवर नहीं करेंगे। बट यस मैं तुम लोगों को इस वन शॉट के माध्यम से ये बताना
चाहता हूं कि वो भी टॉपिक इंपॉर्टेंट है। बट क्योंकि ये चैप्टर बहुत बड़ा है। इसलिए हम इसके बेसिक प्रिंसिपल को ही कवर कर
पाएंगे यहां पे। ओके? तो रेप्लिकेशन हमें पता है क्या होता है? रेप्लिकेशन में पता है क्या होता है?
रेप्लिकेशन में होता यह है कि जो हमारा डीएनए है वह एक डीएनए से दो डीएनए बनते हैं। मतलब डबल
होता है। डबलिंग होती है डीएनए की। किसकी? डबलिंग होती है डीएनए की। डीएनए की क्या होती है? डबलिंग। डबलिंग ऑफ डीएनए। डबलिंग
ऑफ डीएनए यहां पे होती है। डबलिंग ऑफ डीएनए यहां पे होती है। अब अच्छा अगर मैं तुम लोगों को यह सोचूं या यह बताने की
कोशिश करूं कि कैसे ये डबलिंग होती है? तो हमें पता है कि हमारा जो डीएनए होता है वो ऐसे डबल स्टैंडेड होता है। वो ऐसे ये डबल
स्टैंडर्ड होता है। ठीक है? अब ये डबल स्टैंडेड डीएनए को जब
रेप्लिकेट करना होता है तो इसका एक-एक स्टैंड इस तरह से खुलता है। ठीक है? तो यह डबल स्टैंडेड डीएनए सिंगल स्टैंडेड डीएनए
में कन्वर्ट होता है एट द साइट ऑफ रेप्लिकेशन। ठीक है? और इसको खोलता कौन है? इसको खोलती है एक एंजाइम जिसको हम
कहते हैं हेलिकज़ जिसको हम कहते हैं हेलिकज़। हेलिकज़ एंजाइम इसको खोल देती है। अब इस हेलिकज़ एंजाइम
यहां पे इसको खोल देती है। तो यहां पे होता क्या है? यहां पे फिर यहां पे प्राइमर्स ऐड होते हैं। इस तरह से। ठीक
है? प्राइमर ऐड कौन कराता है? प्राइमर ऐड कराता है प्राइमज़। कौन? प्राइमज़। उसके बाद यहां पे आती है एक एंजाइम जिसको हम कहते
हैं डीएनए पॉलीमरेज जिसको हम कहते हैं डीएनए पॉलीमरेज और ये डीएनए पॉलीमरेज यहां और यहां लगती है और ये इस पूरी चेन को
पॉलीमराइज कर देती है। ये इस पूरी चेन को पॉलीमराइज कर देती है। जिससे ये एक डीएनए दो डबल स्टैंडेड डीएनए में कन्वर्ट हो
जाता है। ठीक है? जिसमें से एक स्टैंड पूरा कंटीन्यूअस बनता है जो डीएनए की तरफ जा रहा होता है। लेकिन जो डीएनए से अवे
स्टैंड जा रहा है वो डिस्कंटीन्यूअस बनता है। वो डिस्कंटीन्यूअस बनता है। इस स्ट्रैंड को हम कहते हैं लैगिंग
स्ट्रैंड। इसको हम कहते हैं लैगिंग स्ट्रैंड। और इसको हम कहते हैं लीडिंग स्टैंड। इसको हम कहते हैं
लीडिंग स्ट्रैंड। इसको हम कहते हैं लीडिंग स्ट्रैंड। यह होता है लैगिंग स्टैंड। इस लैगिंग स्टैंड के ऊपर यह फ्रेगमेंट्स ऑफ
डीएनए होते हैं। और इन्हीं फ्रेगमेंट्स को हम ओकाजाकी फ्रेगमेंट्स कहते हैं। इन्हीं फ्रेगमेंट्स को हम
ओकाजाकी फ्रेगमेंट्स कहते हैं। इन्हीं फ्रेगमेंट्स को हम ओकाजाकी फ्रेगमेंट्स कहते हैं। और ये जो फ्रेगमेंट्स हैं इनको
जोड़ा जाता है बाय एन एंजाइम नोन एज लाइगेज़ या डीएनए लाइगेज़। लाइगेज या डीएनए लाइगेज जो है यह इन स्ट्रैंड्स को
जोड़ देते हैं। ठीक है? इस तरह से रेप्लिकेशन होती है। क्लियर? यानी कि डीएनए एक डीएनए से दो डीएनए में कन्वर्ट
होता है। जैसा हमने सेल डिवीजन में देखा था ना कि एस फ ऑफ माइटोसिस या मियोसिस में क्या होती है? रेप्लिकेशन होती है। ओके?
अब हमें पता है कि रेप्लिकेशन ऑफ डीएनए तो होती ही है। लेकिन डीएनए से डीएनए का जब एक्सप्रेशन होना होता है ना यानी कि डीएनए
को किसी कररेक्टर्स को एक्सप्रेस करना होता है तो डीएनए को एक्सप्रेस करना पड़ता है और उसको एमआरएनए में कन्वर्ट होना
पड़ता है। फिर उस एमआरएनए से प्रोटीन बनती है। ठीक है? ठीक क्लियर? ये चीजें हो रही होती है यहां पे। अब अगर मैं तुम लोगों को
यह बताऊं कि इस डीएनए से आरएनए की बनने की जो प्रोसेस है उसको हम पता है क्या कहते हैं? उसको हम कहते हैं
[संगीत] ट्रांसक्रिप्शन और एमआरएनए से प्रोटीन बनने की प्रोसेस को
हम कहते हैं ट्रांसलेशन। एमआरएनए से प्रोटीन बनने की प्रोसेस को हम कहते हैं ट्रांसलेशन। एमआरएनए से प्रोटीन बनने की
प्रोसेस को हम कहते हैं ट्रांसलेशन। ठीक है? ट्रांसक्रिप्शन जो होती है वह सिर्फ एक ही
सेगमेंट ऑफ डीएनए की होती है। मतलब एक ही सेगमेंट नहीं ट्रांसक्रिप्शन होती है उस सेगमेंट की जो कोडिंग सेगमेंट होता है। और
कोडिंग सेगमेंट जो होता है उसको हम सिस्ट्रोन कहते हैं। सिस्ट्रोन इज़ अ सेगमेंट ऑफ़ डीएनए व्हिच इज़ व्हिच कोड्स
फॉर एनी पॉलीपेप्टाइड। ठीक है? इस सिस्ट्रोन में कोडिंग और नॉन कोडिंग डीएनए दोनों होते हैं। कोडिंग और नॉन कोडिंग
डीएनए दोनों ही होते हैं। जो कोडिंग स्टैंड होता है उसको हम कहते हैं एग्जॉन। और जो नॉन कोडिंग होता है उसको हम
कहते हैं इंट्रॉन। जो नॉन कोडिंग होता है उसको हम कहते हैं इंट्रॉन। एग्जॉन कोडिंग है।
इंट्रॉन नॉन कोडिंग होता है। अब यह जो डीएनए है जो कोडिंग है जिसकी हमें ट्रांस जिससे हमें एमआरएनए बनाना है वो कुछ ऐसा
दिखता है। उसके तीन पार्ट्स होते हैं। पहला जो पार्ट होता है उसको हम कहते हैं प्रमोटर। दूसरा जो लास्ट वाला पार्ट जो
होता है उसको हम कहते हैं टर्मिटर। उसको हम कहते हैं टर्मिनेटर। और जो बीच वाला पार्ट होता है उसको हम कहते
हैं स्ट्रक्चरल जीन। उसको हम कहते हैं उसको हम कहते हैं स्ट्रक्चरल जीन। उसको हम कहते हैं
स्ट्रक्चरल जीन। उसको हम कहते हैं स्ट्रक्चरल जीन। ठीक है? प्रमोटर वो रीजन होता है जहां से ट्रांसक्रिप्शन शुरू होती
है। क्योंकि यहीं पे आरएनए पॉलीमरेज बाइंड करती है। यहीं पे आरएनए पॉलीमरेज बाइंड करती है। ठीक है? आरएनए
पॉलीमरेज एक फैक्टर यानी कि सिग्मा फैक्टर को लेके आती है और वो यहां बाइंड करती है। फिर सिग्मा फैक्टर हट जाता है और यहां से
इसमें जो भी इंफॉर्मेशन है इस डीएनए में उसको उसको स्टडी किया जाता है या उसको पढ़ा
जाता है और उसके कॉम्प्लीमेंट्री आरएनए की सिंथेसिस होती है और एंड में जो तुम्हारा डीएनए पॉलीमरेज है उस पे एक फैक्टर बाइंड
करता है जिसको हम रो फैक्टर बोलते हैं। और इस रो फैक्टर के बाइंड होने के कारण आरएनए पॉलीमरेज इस पूरे सेगमेंट से डिटच हो जाती
है। ठीक है? अब अगर मैं एक बात बताऊं कि यहां पे भी दो स्टैंड हैं। एक थ्री प्राइम टू फाइव प्राइम और एक फाइव प्राइम टू थ्री
प्राइम। ठीक है? अगर हम एक स्टैंड को देखें थ्री प्राइम टू फाइव प्राइम जिसके कॉम्प्लीमेंट्री आरएनए बनता है जिसको रीड
किया जाता है तो इस स्टैंड को हम टेंप्लेट स्टैंड कहते हैं। इस स्टैंड को हम टेंपलेट स्टैंड कहते हैं। और यह स्टैंड
जिसको स्टडी नहीं किया जाता है उसको हम कोडिंग स्टैंड बोलते हैं। ठीक है? जो कोडिंग स्टैंड है उसका एज सच कोई रोल तो
नहीं है लेकिन कोडिंग स्टैंड जो है उसके सीक्वेंसेस और जो तुम्हारा एमआरएनए सिंथेसाइज हुआ है उसके सीक्वेंसेस बिल्कुल
सेम होते हैं। एक्सेप्ट कि जो थाइमिन है उसकी जगह पे आरएनए में यूरासिल आ जाता है। क्योंकि आरएनए में हमेशा थाइमिन रिप्लेस्ड
बाय यूरासिल होता है। ठीक है? क्लियर? इतनी बातें सबको समझनी है यहां पे। अब आगे चलते हैं और कुछ और चीजें देखते हैं। जैसे
कि जैसे कि जो प्रोकैरियोट्स होते हैं जो प्रोकैरियोट्स होते हैं
जो जो प्रोकैरियोट्स होते हैं या फिर अगर मैं बोलूं हां जो प्रोकैरियोट्स होते हैं
उसमें ये जो प्रोसेस है उससे मैच्योर एमआरएनए बन जाता है। लेकिन जो यूकैरियोट्स है
ना उसमें ट्रांसक्रिप्शन के तुरंत बाद ही मैच्योर एमआरएनए नहीं बनता है। वहां बनता है हेटेरजीनस न्यूक्लियर आरएनए। वहां
बनता है हेटेरोजीनस हेटेरोजीनस न्यूक्लियर आरएनए जिसको
हम एचएआरएनए कहते हैं जिसको हम जिसको हम एचएआरएनए भी कहते हैं और इस एचएआरएनए को एमआरएनए में पूरी तरह से मैच्योर कराने के
लिए हमें चाहिए होती है एक प्रोसेस जिसको हम कहते हैं पोस्ट [संगीत]
ट्रांसक्रिप्शनल पोस्ट ट्रांसक्रिप्शनल मॉडिफिकेशन पोस्ट ट्रांसक्रिप्शनल मॉडिफिकेशन इसको हम कहते हैं। पोस्ट
ट्रांसक्रिप्शनल मॉडिफिकेशन हम इसको कहते हैं। समझे? अब अगर मैं ये कहता हूं कि ठीक है
पोस्ट ट्रांसक्रिप्शन मॉडिफिकेशन करके मैं एच एंड आरएनए को एमआरएनए में कन्वर्ट कर दूंगा। तो कैसे? यहां पर तीन प्रोसेस होती
है। पोस्ट ट्रांसक्रिप्शनल मॉडिफिकेशन में तीन प्रोसेससेस होती है। एक पहली वाली को हम
कहते हैं कैपिंग। दूसरी वाली को हम कहते हैं टेलिंग और तीसरी वाली को हम कहते हैं
[संगीत] स्लाइसिंग। होता क्या है? कैपिंग जो प्रोसेस है उसमें हम अपने HN आरएनए जो है
उसके फाइव प्राइम एंड पे HN आरएनए डबल स्टैंडर्ड नहीं होगा। HN आरएनए ये है। ये है फाइव प्राइम एंड ये है
थ्री प्राइम एंड हम इसके फाइव प्राइम एंड पे सेवन मिथाइल ग्वानोसिन ट्राई फास्फेट ऐड करते हैं। क्या से
मिथाइल ग्वानोसिन ट्राई फास्फेट इसको ऐड करते हैं फाइव प्लामेंट पे।
टेलिंग में हम पॉली ए टेल ऐड करते हैं। पॉली ए टेल मतलब कि पॉली एडेडनिन कंटेनिंग न्यूक्लोटाइट की चेन ऐड करते हैं। 200 से
300 न्यूक्लोटाइट 200 से 300 न्यूक्लोटाइट हम लोग इसके थ्री प्राइम एंड पे ऐड कर देते हैं। स्प्लाइसिंग में क्या
होता है? है। मैंने तुम लोग को बताया था अभी थोड़ी देर पहले कि हमारा जो कि हमारा जो यूकैरियोटिक डीएनए है उसमें कोडिंग और
नॉन कोडिंग रीजन दोनों होते हैं। इस पूरे सिस्ट्रोन की होती है ट्रांसक्रिप्शन जिसमें कोडिंग रीजन तो आता ही है नॉन
कोडिंग भी आता है। लेकिन हमें इस नॉन कोडिंग की जरूरत नहीं है क्योंकि ये नॉन कोडिंग है। कोडिंग की जरूरत है हमको। नॉन
नॉन कोडिंग जो आरएनए या नॉन कोडिंग जो पार्ट है उसको हटाने के लिए हमको स्प्लाइसिंग की जरूरत पड़ती है। ठीक है?
रिमूवल ऑफ नॉन कोडिंग डीएनए या रिमूवल ऑफ इंट्रों्स। रिमूवल ऑफ इंट्रॉन करने के लिए हमको क्या करना पड़ता
है? स्प्लाइसिंग करनी पड़ती है और इसके अंदर जो कॉम्प्लेक्स नीडेड है उसको हम स्पाइसोजोम्स कहते हैं। उसको हम
स्पाइसोजोम्स कहते हैं। उसको हम स्पाइसोजोम कहते हैं। उसको हम स्पाइसोजोम कहते हैं। इस तरह से
तुम्हारा जो आरएनए है वो मैच्योर हो जाता है। जितनी भी इंफॉर्मेशन है जो हम इस सिस्ट्रोन के बारे में स्टडी करते हैं वो
कोडिंग स्टैंड की रिस्पेक्ट में स्टडी करते हैं। हम यह नहीं बोलेंगे कि जो है आरएनए पॉलीमरेज टेंपलेट के थ्री प्राइम
एंड पे अटैच होता है। हम ये नहीं बोलेंगे। हम बोलेंगे कि जो आरएनए पॉलीमरेज है वो प्रमोटर में फाइव प्राइम एंड ऑफ कोडिंग
स्टैंड में अटैच होता है। हम इस तरह से इसको स्टडी करते हैं। हर चीज हम कोडिंग स्टैंड के रिस्पेक्ट में स्टडी करते हैं।
ओके? अब आ जाओ। अब यह जो तुम्हारा इन प्रोसेससेस के बाद मैच्योर एमआरएनए बनेगा। मैच्योर
एमआरएनए बनेगा। इससे हमें क्या बनाना है? इससे हमें बनाना है प्रोटीन। और प्रोटीन बनाने के लिए हमको एक प्रोसेस करानी
पड़ेगी जिसका नाम होता है ट्रांसलेशन। ट्रांसलेशन से हम क्या बनाते हैं? प्रोटीन बनाते हैं। ठीक है?
क्लियर? कैसे कराएंगे? उसको देखने से पहले हमको यह समझना पड़ेगा कि जो हमारा आरएनए है ना वह भी तीन प्रकार का है। हमारा जो
आरएनए है वह तीन प्रकार का है। एक होता है एमआरएनए, एक होता है आरआरएनए और एक होता है टीआरएनए।
एमआरएनए में सारी इंफॉर्मेशन स्टर्ड होती है। जितनी भी जेनेटिक इंफॉर्मेशन होती है, वह सारी इसमें स्टर्ड होती है। आरआरएनए
ट्रांसलेशन के टाइम पर कैटेलेटिक रोल प्ले करता है। और टीआरएनए पता है क्या करता है? इसमें यह कैपेबिलिटी होती है कि यह
कोडों्स को रीड करता है और उस कोडॉन के स्पेसिफिक अमीनो एसिड को यह ऐड करता है ट्रांसलेशनल मशीनरी में। ठीक है? क्लियर?
इतनी बातें सबको क्लियर होनी चाहिए। ठीक? चले आगे आ जाओ चलते हैं आगे अब देखते हैं
ट्रांसलेशन ट्रांसलेशन होता है जिसमें हमारा एमआरएनए ऐसे होता है फाइव प्राइम एंड ये थ्री प्राइम एंड यहां पे
तुम्हारा जो है राइबोजोमल आरएनए आके बाइंड करेगा यहां पे कुछ कोडों्स लगे होंगे जो कि ट्रिपलेट होते हैं। कोडों्स आर
ट्रिपलेट इन नेचर। कोडों्स जो होते हैं, ट्रिपलेट कोडॉन जो होते हैं, वह यहां पे होते हैं। और इन कोडों्स के स्पेसिफिक जो
है टीआरएनए यहां पे आके बाइंड करता है और ये यहां पे स्पेसिफिक अमीनो एसिड को लेके आता है।
जैसे अमीनो एसिड वन को लेके आया। ठीक है? उसके बाद यह मशीनरी इसके आगे ऐसे मूव करती है। नया टीआरएनए आता है और वो यहां के
कोडॉन के स्पेसिफिक अमीनो एसिड को लेके आता है। तो वो अमीनो एसिड टू को यहां पे ऐड करता है। तो जो हमारा चेन है अमीनो
एसिड का वो हो जाता है यहां पे अमीनो एसिड वन और यहां पे अमीनो एसिड टू। इस तरह से और ऐसे ही यह मशीनरी पूरी आगेआगे मूव करती
रहती है और एंड में यह मशीनरी टूट जाती है जब इसे यहां पे जो कोडॉन है वो ऐसा मिलता है जिसको हम स्टॉप कोडॉन कहते हैं। के
क्या कहते हैं? स्टॉप कोडॉन कहते हैं। स्टॉप कोडॉन हमारे जो लिविंग सिस्टम है उसमें तीन प्रकार के होते हैं।
यूएए, यूजीए और यूएजी और UAG ठीक है। स्टॉप कोडॉन के साथ-साथ हमें यहां
पर रिलीज फैक्टर भी चाहिए होते हैं। और यह रिलीज फैक्टर यहां पे इस सिस्टम से बाइंड करते हैं जिससे ये सिस्टम डिसइीग्रेट कर
जाता है और हमारे जो प्रोटीन है वो पूरी की पूरी रिलीज हो जाती है इन द ट्रांसलेशन। ये ट्रांसलेशन हमारे सेल में
न्यूक्लियस के अंदर नहीं होता है। यह हमारे सेल में साइटोप्लाज्म में होता है। जबकि बाकी दोनों प्रोसेससेस जिसको मैंने
रेप्लिकेशन और ट्रांसक्रिप्शन कहा था वो सब हमारे न्यूक्लियस में होती हैं। ठीक है? यूकैरियोट्स की मैं बात कर रहा हूं।
प्रोकैरियोट्स में तो खैर न्यूक्लियस ही नहीं होता है। ओके? अब बात यह आती है कि यार यह जो प्रोसेस हमने किया ये ये जो
प्रोसेस हमने करवाने की कोशिश की इस प्रोसेस में हमको फायदा यह मिला कि ठीक है प्रोटीन
प्रोड्यूस हो गया। लेकिन क्या यह प्रोटीन हमारी बॉडी में हमेशा ही प्रोड्यूस होते रहना चाहिए या क्या यह हमारी बॉडी में
हमेशा ही प्रोड्यूस होता है? नहीं ऐसा नहीं होता है। हमारी बॉडी में यह प्रोटीन हमेशा ही प्रोड्यूस नहीं होता है। क्योंकि
हमारी बॉडी में इस प्रोटीन का जो नीड है वो हमेशा नहीं है। अगर हमेशा होता तो यह हमेशा प्रोड्यूस भी होता रहता। ठीक है? तो
इसीलिए हमारी बॉडी में चीजें रेगुलेटेड होती हैं। चीजें रेगुलेटेड होती हैं। और यहीं से हमारा एक टॉपिक आ जाता है जिसको
हम कहते हैं रेगुलेशन ऑफ जीन एक्सप्रेशन। क्या कहते हैं? रेगुलेशन ऑफ जीन एक्सप्रेशन।
इसमें हम एक सिंपल सिस्टम को स्टडी करते हैं जिसको हम कहते हैं लैक ओपेरोन जिसको हम कहते
हैं लैक ओपेरोन और ये जो लैक ओपेरोन होता है ये एक्चुअली में एक कैटाबॉलिक सिस्टम है ये एक्चुअली में एक कैटाबॉलिक सिस्टम
है जिसमें हम जिसमें हम जिसमें हम लैक्टोज़ को ब्रेक करते हैं जिसमें हम लैक्टोज़ को ब्रेक करते हैं ग्लूकोज़ और गैलेक्टोज़ में।
लैक्टोज़ को ब्रेक करते हैं हम ग्लूकोज़ और गैलेक्टोज़ में। पर कब? जब ग्लूकोज़ नहीं प्रेजेंट होता है। हमको इस लैक्टोज़ को यूज़
करने की क्या पड़ी है? हमको तो ग्लूकोस चाहिए होता है। हमारा तो प्राइमरी सोर्स ऑफ न्यूट्रिशन, प्राइमरी सोर्स ऑफ एनर्जी
ग्लूकोस होता है। तो ये सिस्टम या ये जो जीन है लैक कोपरॉन जिसको मैं बोल रहा हूं ये तभी एक्टिव होती है जब लैक्टोज़ ज्यादा
हो और ग्लूकोज़ सिस्टम में कम हो। क्योंकि अगर ग्लूकोज़ ज्यादा होगा तो हमको लैक्टोज़ की कोई जरूरत नहीं पड़ती है। तो नॉर्मल
कंडीशन में यह जो सिस्टम है यह नहीं एक्टिव होता है। नॉर्मली यह सिस्टम स्विच्ड ऑफ रहता
है। नॉर्मली यह सिस्टम स्विच्ड ऑफ रहता है। लेकिन जब लेकिन जब लेकिन जब लेकिन जब लैक्टोज़
कम जब लैक्टोज़ कम और जब लैक्टोज़ ज्यादा और ग्लूकोज़ कम होता है तभी ये सिस्टम एक्टिव होता है।
अब ये जो सिस्टम है इसमें पता है क्या होता है? इसमें यह सिस्टम है।
इसमें कुछ जींस होती हैं। जैसे लैग z लैग व लैग ए जीन। ये स्ट्रक्चरल जीन है। ए जीन जो है वो एक
एंजाइम प्रोड्यूस करती है जिसको हम कहते हैं ट्रांस एसिटिलस। व एक प्रोड्यूस करती है जिसको हम
कहते हैं परमिस और z प्रोड्यूस करती है जिसको हम कहते हैं बीटा।
गैलेक्टोसाइडस जिसको हम कहते हैं बीटा गैलेक्टोसाइडस। यहां पर इसका ऑपरेटर होता है। यहां पर इसका प्रमोटर होता है। यहां
पे एक जीन होती है जिसको हम इनबिटर जीन कहते हैं। यहां पे उसका ऑपरेटर होता है और यहां पे उसका प्रमोटर होता है। ठीक है?
हालांकि हमको यहां पे ऑपरेटर लिखने की जरूरत नहीं है। सीधा प्रमोटर लिख दो। प्रमोटर ऑफ इनबिटर। यह इनबिटर जीन हमेशा
ही प्रोड्यूस होती रहती है। यानी कि यह इनबिटर प्रोटीन हमेशा प्रोड्यूस होता रहता है। और यह इनबिटर जो है यह हमेशा ही इसके
ऑपरेटर पे बाइंड करता रहता है। जिससे कि इन जींस का जो है अ ट्रांसक्रिप्शन और ट्रांसलेशन नहीं हो
पाता है कभी भी। ठीक है? बट यह जीन जब ग्लूकोज कम और लैक्टोज ज्यादा हो
जाता है तब यह जो है यह इससे बाइंड नहीं कर पाती ऑपरेटर से। क्यों? क्योंकि इस इनबिटर से लैक्टोज़ बाइंड कर जाता है। और
जैसे ही लैक्टोज़ इससे बाइंड करता है, इसकी एफिनिटी टु बाइंड विद दिस साइड कम हो जाती है। तो, यह इससे बाइंड करना कम हो जाती
है। जिसकी वजह से मेरा आरएनए पॉलीमरेज़ यहां पे बाइंड करता है और इन सभी जींस का एमआरएनए बनवा देता है ट्रांसक्रिप्शन से
जिनकी ट्रांसलेशन होती है। तो, यह तीन जींस प्रोड्यूस होती हैं। जिसमें से यह जो जीन है बीटा ग्लैक्टोसाइडेज की जीन यह
तुम्हारे ग्लूकोज ये तुम्हारे लैक्टोज़ को यह तुम्हारे लैक्टोज़ को ग्लूकोज़ और गैलक्टोज़
में तोड़ देती है। ग्लूकोज़ और ग्लैक्टोज़ में तोड़ देती है। इस तरह से ये जीन काम करता है।
फिर जब तुम्हारा लैक्टोज़ कम होने लग जाता है तब अगेन ये जो चीज है यह वापस से स्विच्ड ऑफ हो जाती है। क्लियर? इस तरह से
ये यहां पर काम करती है। कौन? लैक ऑपरेन का सिस्टम। दिस सिस्टम वाज़ गिवन बाय टू साइंटिस्ट जिनका नाम था जेकब एंड मोनोड।
जिनका नाम था जेकब एंड मोनोड। ठीक है? क्लियर? अब आ जाओ चलते हैं। आगे हम देखते हैं इस चैप्टर की कुछ और चीजें।
इस चैप्टर में एक टॉपिक आता है ह्यूमन जीनोम प्रोजेक्ट। जिससे आज तक क्वेश्चन तो नहीं आया है बट तुम लोग उसको पढ़ लेना। वह
बहुत आराम से समझ आ जाएगा। एज सच उसमें बहुत ज्यादा कुछ समझने वाली चीज नहीं है। जो चीज समझने वाली है वो है जो मैं अब
पढ़ाने जा रहा हूं। क्या है वो चीज? वह चीज यह है कि हमारा जो डीएनए है, हमारा जो डीएनए
है, हमारा जो डीएनए है, उसका 99% से भी ज्यादा पार्ट जो है, वो नॉन कोडिंग है। वो नॉन कोडिंग है। सिर्फ 1% के करीब
जो डीएनए है वो कोडिंग होता है जिससे प्रोटीन बनती है। ठीक है? यह नॉन कोडिंग डीएनए में ना बहुत सारा ऐसा डीएनए होता है
जो पॉलीमॉर्फिक होता है। जो कैसा होता है जो पॉलीमॉर्फिक होता है। पॉलीमॉर्फिक मतलब कि एक ही सीक्वेंस एक ही जीन का सीक्वेंस
बार-बार बार-बार रिपीट हो रहा है। जैसे एटीजीसी एटीजीसी अगर हजार बार रिपीट हो जाए तो वो पॉलीमॉर्फिक हो गया कि एटीजीसी
एटीजीसी एटीजीसी एटीजीसी एटीजीसी एटीजीसी बार-बार रिपीट हो रहा है। दैट इज पॉलीमॉर्फिक डीएनए। ठीक? और पॉलीमॉर्फिक
डीएनए जो होता है वह कई सारे तरीके का होता है। एक होता है सिंगल न्यूक्लोटाइट पॉलीमोर्फिज्म SNP
जिसमें एक पोजीशन पे चेंज आता है सिर्फ एक होते हैं जिनको हम कहते हैं सेटेलाइट्स। सेटेलाइट डीएनए। यह हमारे क्रोमोजोम पर एक
पर्टिकुलर पोजीशन में पाए जाते हैं। और सेटेलाइट डीएनए दो प्रकार के होते हैं। एक होते हैं मिनी
सैटेलाइट और एक होते हैं माइक्रो सैटेलाइट। एक होती है माइक्रो सैटेलाइट। जिसमें से मिनी
सेटेलाइट को हम डीएनए फिंगरप्रिंटिंग में यूज करते हैं। डीएनए
फिंगर प्रिंटिंग में यूज़ करते हैं। इसमें एक सीक्वेंस बहुत इंपॉर्टेंट होता है जिसको हम वीए एन टीआर कहते हैं। वो वीए एन
टीआर का फुल फॉर्म होता है वेरिएबल नंबर ऑफ टेंडम रिपीट्स। क्या? वेरिएबल नंबर ऑफ टेंडम रिपीट्स। इस वेरिएबल नंबर ऑफ टेंडम
रिपीट की खास बात यह है कि यह हर एक इंडिविजुअल में एक यूनिक तरह का होता है। वीए एनटीआर
हर इंडिविजुअल में अलग-अलग होता है और यूनिक होता है। इसीलिए इसको हम एज अ बारकोड यूज़ करते हैं
टू गेट इंफॉर्मेशनेशन अबाउट स्पेसिफिक पर्सन। ठीक है? अब जैसे मैं एक एग्जांपल से बता दूं डीएनए फिंगरप्रिंटिंग में हम
करते क्या है? जैसे एक क्राइम हो गया किसी जगह पे। उस क्राइम की अगर तुम्हें इन्वेस्टिगेशन करनी है कि खूनी कौन है? तो
तुम वहां क्राइम वाली साइट से ब्लड निकालोगे और उस और उसको फ्रेगमेंट करके उसके सेटेलाइट डीएनए या वीएनटीआर
रीजन को निकाल के उसकी बैंड्स यहां पे इस तरह के आ जाएंगे डीएनए फिंगरप्रिंट की शीट पे
नाइट्रो सेलुलोस जेल पे। अब तुमने जिन लोगों पर जो जिन पर तुम्हें शक है ए बी सी डी पे उनके भी सेम डीएनए फिंगरप्रिंटिंग
करोगे। ठीक है? उनके भी कुछ बेंडिंग पैटर्स आएंगे ऐसेसे। ठीक है? इस तरह के कुछ बेंडिंग पैटर्स आ जाएंगे उनके भी। ठीक
है? अब होता क्या है कि अगर यह अलाइन नहीं कर रहे हैं ना तो फिर वो सेम बंदा नहीं है। वो खूनी
नहीं है। लेकिन जिसका भी डीएनए अलाइन करेगा इस क्राइम सीन वाली साइड से वही खूनी होगा। वही कौन होगा? वही होता है वही
होता है खूनी। तो यहां पे जो सी है वही क्रिमिनल है क्योंकि उसका जो बेंडिंग
पैटर्न है वीएनटीआर का वह यहां पर इसके साथ कंसाइड कर रहा है। तो इस तरह से यह चेक होता है। सेम मैटरनिटी
पैटर्निटी टेस्टिंग में भी यही करते हैं कि मदर और फादर दोनों के बैंड्स को निकालते हैं और उन दोनों के ही बैंड्स को
कंपेयर करते हैं बच्चे के साथ। तो a + b यानी कि मदर प्लस फादर का मिला के सारे बैंड जो है वो बच्चे के सारे बैंड से
कंसाइड करने चाहिए। तो वो उसके असली मदर या फादर होते हैं। नहीं तो नहीं होते हैं। ठीक है? तो इस तरह
से इन चीजों को अप्लाई किया जाता है टू गेट इंफॉर्मेशन अबाउट द पर्टिकुलर पर्सन। ठीक? या किसी
क्राइम सीन या मैटरनिटी मैटरनिटी टेस्टिंग या किसी फज़िल की स्टडी। ठीक? तो इस तरह से हम यह चैप्टर खत्म कर ले रहे हैं। बहुत ही
कंसाइज मैनर में कराने की कोशिश की है मैंने। लेकिन फिर भी कुछ चीजें ऑफ कोर्स छूट जाएंगी क्योंकि ये एक वन शॉट सेशन है।
बट यस मोस्ट ऑफ द चीजें हमने यहां पे कवर की है या टच की है जिनसे क्वेश्चन आने की प्रोबेबिलिटी काफी ज्यादा है। ठीक है? चलो
अब हम इसके बाद कवर करेंगे या फिर पढ़ेंगे अपना नया चैप्टर जिसको हम कहते हैं एववोल्यूशन। और उस एवोल्यूशन में हम लोग
हडी बीनबर्ग प्रिंसिपल और डार्विनस थ्योरी ऑफ नेचुरल सिलेक्शन को ज्यादा एफसाइज करेंगे। ठीक है? आ जाओ देखते हैं। देखो
एवोल्यूशन जो है उसमें है तो टॉपिक बहुत सारे इंपॉर्टेंट लेकिन मैं तुमको दो ही तीन टॉपिक पढ़ाऊंगा। पहला टॉपिक है डार्विन
की थ्योरी ऑफ़ नेचुरल सिलेक्शन। पहला टॉपिक क्या है? डार्विनस थ्योरी ऑफ़ नेचुरल सिलेक्शन। ठीक है? इसमें डार्विन ने पता
है क्या कहा था? इसमें चार्ल्स डार्विन जो थे, उन्होंने यह कहा था कि भाई ओएस वीएस एन
नाम की एक चीज होती है कि जब ओवर पॉपुलेशन होती है तो उससे बनता है स्ट्रगल फॉर
एग्जिस्टेंस। क्योंकि ओवरपॉपुलेशन में रिसोर्सेज कम होने लग जाते हैं। और जब रिसोर्सेज कम होते हैं तो एग्जिस्टेंस के
लिए चलती है स्ट्रगल। क्यों? क्योंकि वहां पे आ जाता है कंपटीशन। क्योंकि जब सेम रिसोर्सेज के लिए लड़ाई होती है तो उसको
हम कंपटीशन कहते हैं। इसी कंपटीशन में हमारे को मिलते हैं डिफरेंट टाइप ऑफ वेरिएशंस।
वेरिएशंस क्योंकि इन वेरिएशंस के बीच ही कंपटीशन होगा। और इनमें से जो बेस्ट है वो सिलेक्ट होगा जिसको हम कहते हैं सर्वाइवल
ऑफ द फिटेस्ट। सर्वाइवल ऑफ द फिटेस्ट। इसमें से जो फिट फिटेस्ट है ना उसको हम रिप्रोडक्टिव फिटनेस से आकते हैं।
रिप्रोडक्टिव फिटनेस से आकते हैं कि वो रिप्रोडक्टिवली कितना फिट है। अगर उसमें कोई एक स्ट्रांग कररेक्टरिस्टिक है और वो
नहीं सिलेक्ट हो पा रही है या फिर वो सिलेक्ट हो पा रही है और वो उसको नेक्स्ट जनरेशन तक पास ऑन ही नहीं कर पा रहा है
क्योंकि वो रिप्रोड्यूस नहीं कर सकता है तो फिर क्या ही फायदा उस कैरेक्टरिस्टिक का। है ना? यह है कि सर्वाइवल ऑफ़ द
फिटेस्ट फिटनेस जो है वो रिप्रोडक्टिव फिटनेस को डिनोट करता है और नेचुरल सिलेक्शन तो यहां पे हो ही रहा है। ठीक
है? ये चीज डार्विन ने कही थी। अब इस चैप्टर में ये तो है चीजें बट इसके अलावा और भी चीजें हैं। जैसे इसके एग्जांपल्स
बहुत इंपॉर्टेंट है। जैसे अगर मैं बोलूं एडप्टिव रेडिएशन बहुत इंपॉर्टेंट है। एडप्टिव रेडिएशन मतलब समझ रहे हो तुम
एडप्टिव रेडिएशन मतलब कि एक कॉमन एनसेेस्टर एक कॉमन एनसेेस्टर से शुरू होना और डिफरेंट इकोलॉजिकल निशेस में रहने
के कारण डिफरेंट डिफरेंट वेरिएंट्स में कन्वर्ट हो जाना या रेडिएट हो जाने को
एडप्टिव रेडिएशन कहते हैं। और इसका जो बेस्ट एग्जांपल है वो दो है तुम्हारी बुक में। एक है मार्सुपियल रेडिएशन।
मार्सोपियल रेडिएशन और दूसरा है दूसरा है भाई क्या? दूसरा है भाई हमारा
डार्विन फिंचेस। डार्विन की फिंचेस जो गलाफागो गोज़ आइलैंड पे उनको मिली थी। डार्विन फिंचेस हो जाती हैं। क्लियर? ये
चीजें हैंड अप्टिव रेडिएशन के एग्जांपल्स। ठीक? ऐसे ही एक और एग्जांपल एक और टाइप का टॉपिक आता है जिसको हम कहते हैं होमोलोगस
एंड एनालोगस स्ट्रक्चर्स। ठीक है? तो एक जो स्ट्रक्चर होता है ये एक्चुअली में एनाटॉमिकल कंपैरिजंस
है जिसमें एक टर्म आता है होमोलॉजी और एक टर्म आता है एनालॉजी। होमोलॉजी पता है क्या कहता है?
होमोलॉजी कहता है कि अगर किसी में सिमिलर स्ट्रक्चर्स हो। सिमिलर स्ट्रक्चर्स हो
लेकिन डिफरेंट फंक्शनंस हो तो वो होमोलोगस ऑर्गन्स कहलाता है। जैसे कि वर्टीब्रेट्स के फोर लिम्स या
मैमल्स के फोर लिम्स। ठीक है? अ ऐसे ही बहुत सारे फीचर्स होते हैं। ठीक? और जो होमोलॉजी है वह कॉमन एनसेेस्ट्री को
पॉइंट करता है क्योंकि सिमिलर स्ट्रक्चर उन्हीं के होते हैं उन्हीं के होते हैं जिनका कॉमन एनसेेस्टर होता है। ये कॉमन
एनसेेस्ट्री को पॉइंट करता है। इसी का उल्टा होता है एनालॉजी जिसमें हम कहते हैं कि भाई डिफरेंट स्ट्रक्चर्स हैं।
डिफरेंट स्ट्रक्चर्स हैं। लेकिन डिफरेंट स्ट्रक्चर्स के होते हुए भी उनके उस स्ट्रक्चर के सिमिलर फंक्शनंस
हैं। जैसे अगर मैं बोलूं कि बैट के पंख और चिड़िया के पंख दोनों उड़ने में मदद करते
हैं। लेकिन दोनों के एनाटॉमिकल स्ट्रक्चर्स अलग-अलग होते हैं। ठीक है? और ये डिफरेंट एनसेेस्ट्री को पॉइंट करते
हैं। ये डिफरेंट एनसेेस्ट्री को पॉइंट करते हैं। ये डिफरेंट एनसेेस्ट्री को पॉइंट करते
हैं। डिफरेंट एनसेेस्ट्री को ये पॉइंट करते हैं। ठीक है? ये दो चीजें मैंने तुम लोगों को बता दी है। पहली है डार्विनस
थ्योरी ऑफ़ नेचुरल सिलेक्शन और दूसरा है होमोलॉजी और एनालॉजी या होमोलोगस और एनालोगस स्ट्रक्चर्स। होमोलोगस स्ट्रक्चर
जो है वो डायवर्जेंट एवोल्यूशन को पॉइंट करते हैं। डायवर्जेंट एवोल्यूशन को पॉइंट करते
हैं। और जो एनालोगस स्ट्रक्चर हैं वो कन्वर्जेंट एवोल्यूशन को पॉइंट करते हैं। वो कन्वर्जेंट एववोल्यूशन को पॉइंट
करते हैं हमेशा ही। अच्छा क्वेश्चन ये आ सकता है कि रेडिएशन इनमें से किसका एग्जांपल है? अप्टिव रेडिएशन होमोलॉजी का
एग्जांपल होता है। अप्टिव [संगीत] रेडिएशन होमोलॉजी का एग्जांपल
होता है। क्लियर? अब इसमें एक टॉपिक आता है एवोल्यूशन में जिसको हम कहते हैं हडी विनबर्ग इक्विलिब्रियम।
हडी विनबर्ग इक्विलिब्रियम। क्या कहता है यह? हडी विनबर्ग इक्विलिब्रियम। यह पता है
क्या कहता है? यह कहता है कि अगर एक पॉपुलेशन में जीन पूल कांस्टेंट है। अगर एक पॉपुलेशन
में जीन पूल कांस्टेंट है तो ही हडी विनबर्ग इक्वेशन या हडी
विनबर्ग प्रिंसिपल फॉलो होगी। ठीक है? और जीन पूल कांस्टेंट पता है कब होगी? जब उस पॉपुलेशन में कोई
भी माइग्रेशन नहीं होगी। कोई भी नेचुरल सिलेक्शन नहीं [संगीत]
होगी। कोई भी नेचुरल सिलेक्शन नहीं होगी। कोई भी जेनेटिक ड्रिफ्ट नहीं [संगीत]
होगी। कोई भी यहां पे हमारे पास रिक्बिनेशन नहीं होगी। [संगीत]
ठीक है? और कोई भी नेचुर अच्छा नेचुरल सिलेक्शन हम बोल चुके हैं माइग्रेशन नेचुरल सिलेक्शन
म्यूटेशन कोई भी म्यूटेशन नहीं होगी अगर ये पांचों चीजें एक पापुलेशन में नहीं हो रही है तो वहां का जो जीन पुल है वो हमेशा
सेम रहेगा और जब जीन पुल सेम रहता है तब जो हमारा जीन की जो जीनोटिपिक फ्रीक्वेंसी है और जो एलिलिक फ्रीक्वेंसी है वो सेम
रहती है। मान लो तुमने एक पॉपुलेशन जो कि हडी बीनबर्ग इक्विलिब्रियम में है जिसमें यह सारी चीजें नहीं है। ठीक है? तो वह हडी
बीनबर्ग इक्विलिब्रियम में है। उसमें तुमने जीन पूल स्टडी करना चाहा। तो तुमने बोला कि मैं एक कैरेक्टर उठाता हूं जिसको
मैं कहता हूं ह्यूमन हाइट। नॉट ह्यूमन हाइट। एक पी प्लांट की पॉपुलेशन जैसे मेंडल ने उठाई थी। उसकी हाइट का मैं कर
स्टडी करना चाहता हूं। तो तुमने बोला कि इसमें टॉल होता है और इसमें ड्वार्फ होता है। ठीक है? टॉल को तुम डिनोट करते हो
किससे? टॉल का जो एललील होता है वो T होता है। ड्वार्फ का जो एललील होता है वो स्मॉल टी
होता है। अगर इस पॉपुलेशन में T की एललीलिक फ्रीक्वेंसी T की एललीलिक फ्रीक्वेंसी P है और T की एललीलिक
फ्रीक्वेंसी Q है तो इसका जो P + Q होगा वो हमेशा वन होगा। अगर यह हडी बीनबर्ग इक्विलिब्रियम में है। लेकिन तुम एललीलिक
फ्रीक्वेंसी मान लो तुमको पता है तो इस एललीलिक फ्रीक्वेंसी से तो ना तुम जीरो डिपिक फ्रीक्वेंसी पता कर सकते हो। तुम यह
पता कर सकते हो कि कितने लोगों में T है। कितने लोगों में T है और कितने लोगों में T है। पता है कैसे? इस p का स्क्वायर कर
दो। एक T का P होती है फ्रीक्वेंसी। तो दो का कितना हो जाएगा? p * p व्हिच इज़ p² t का क्या हो जाएगा? Q * Q तो ये हो
जाएगा Q²। ठीक है? Q * Q कितना हो जाएगा? q² और t इसका जो है वह सीन थोड़ा चेंज होता है। इसको हम कहते हैं 2pq से। अगर
तुम्हें p और q पता है तो ये 2pq होता है। कौन? हेटेरजाइगस जीीनोटाइप की फ्रीक्वेंसी। और इनका सम जो होगा यानी कि
p² + 2pq + q² वो वन होता है और p + q भी = 1 होता है। क्लियर? ये है हडी विनबर्ग इक्विलिब्रियम। ठीक? अब हम चलते हैं अपने
नेक्स्ट टॉपिक पे जिसका नाम है भाई बायोटेक्नोलॉजी जिसका नाम है बायो टेक्नोलॉजी जिसका नाम
है बायोटेक्नोलॉजी बायोटेक्नोलॉजी में बेसिकली तुम लोगों को पता है क्या करना है
बायोटेक्नोलॉजी में तुमको बेसिकली रिक्बिनेंट डीएनए टेक्नोलॉजी पढ़ना होता है। क्या पढ़ना होता है भाई? रिक्बिनेंट
[संगीत] डीएनए टेक्नोलॉजी आर डीटी जिसको तुम कहते हो इस
रिकमेंट डीएनए टेक्नोलॉजी के थ्रू तुम करना क्या चाहते हो तुम पता है क्या करना चाहते हो किसी एक
जीन जिसमें तुम्हें इंटरेस्ट है हमें पता है जीन के एक्सप्रेशन से क्या बनता है प्रोटीन बनता है तुम्हें अगर एक प्रोटीन
चाहिए तो तुमको पता है कि प्रोटीन बनती है डीएनए के एक्सप्रेशन से तुम उस डीएनए को एक्सप्रेस करा सकते हो किसी की बॉडी के
अंदर नहीं किसी दूसरे ऑर्गेनिज्म के अंदर या लैबोरेटरी कंडीशन में जिससे तुम लैब में वो प्रोटीन बना सकते हो जिससे तुम्हें
फायदा होगा। ठीक है? कैसे करा सकते हो ये चीज? रिकमेंट डीएनए टेक्नोलॉजी से। मान लो तुम्हारे पास अपना एक डीएनए
है। उसमें तुमको यहां वाली जीन चाहिए। तो तुम यहां पे पता है क्या ट्रीट करोगे? तुम रेस्ट्रिक्शन एंडोनक्लियस एक एंजाइम होती
है जिसको मॉलिक्यूलर सीजर भी बोलते हैं। उसको यहां पे डालोगे और वो यहां पे स्पेसिफिक कट करेगी। जैसे इको R1 जो
है वो एक साइड पे कट करती है जिसको हम जीए एए टीटी सी कहते हैं। ठीक है? रिस्ट्रिक्शन एंडोनक्स डालोगे वो यहां पे
कट करेगी। तुम यहां पे कट करके इसको निकाल लोगे। उसके बाद तुम पता है क्या करोगे? तुम करोगे क्या? तुम करोगे जेल
इलेक्ट्रोफोरेसिस। क्यों करोगे तुम जेल इलेक्ट्रोफोरेसिस? क्योंकि जेल इलेक्ट्रोफोरेसिस
से तुमको यह पता चलेगा कि तुम्हारा जो डीएनए है वो कौन सा है। तुमने यहां पे कट किया तो ये फ्रेगमेंट आया लेकिन उसके
साथ-साथ ये और ये फ्रेगमेंट भी आया और ये कहां पे आएगा? ये एक टेस्ट ट्यूब में आएगा। इसमें इसमें और इसमें ये तीनों एक
ही टेस्ट ट्यूब में है। तो तुम जेल इलेक्ट्रोफोरेसिस के थ्रू इन सभी को सेपरेट कर सकते हो। और इसमें से जो
तुम्हारा डीएनए है उसको तुम एक्सट्रैक्ट कर सकते हो। तो जेल में जब चीजें दिखती है तो पता है कैसी दिखती हैं? वो ऐसे डीएनए
के बैंड्स दिखते हैं। जब तुम इस पे यूवी लाइट इलुमिनेट करते हो। ठीक है? यूवी लाइट इलुमिनेट करने पे ही ये बैंड्स डीएनए के
क्यों दिखते हैं? क्योंकि इस इस जेल में अगर उस जेल में हम पता है क्या डालते हैं? हम डालते हैं एक केमिकल जिसको हम कहते हैं
इथिडियम ब्रोमाइड। ये इथीडियम ब्रोमाइड जो है ये चमकता है जब यूवी लाइट हम डालते हैं और ये
क्या कलर देता है? यह देता है ब्राइट ऑरेंज कलर। यह देता है ब्राइट
ऑरेंज कलर। यह देता है ब्राइट ऑरेंज कलर। ब्राइट ऑरेंज कलर का ये चमकता है। तो मान लो तुम्हारा डीएनए जो है उसका साइज इतना
है। तो ये अपने वेट के हिसाब से इतना ही मूव कर पाएगा और तुम इसको कट करके निकाल लोगे। और फिर यहां पे तुम एक प्यूरिकेशन
स्टेप करोगे जिसको कहते हैं एल्यूशन। उस एल्यूशन के थ्रू तुम अपना जो डीएनए बैंड है उसको निकाल के सेपरेट कर लोगे। क्लियर?
इतनी बात तुम लोगों को अभी समझनी है। तो तुमने अपना जीन ऑफ इंटरेस्ट रेस्ट्रिक्शन एंडोनक्लियस फॉलोडलोड बाय जेल
इलेक्ट्रोफोरेसिस से निकाल लिया है। अब आगे क्या करोगे तुम? आगे पता है क्या करोगे? तुम्हें पता है कि ये जो जीन है ये
जो जीन है जो तुमने निकाली है ये जीन एक्सप्रेस करेगी किसी होस्ट के अंदर। तो तुम्हें एक वेक्टर चाहिए होगा जो इस जीन
को लेकर किसी होस्ट यानी कि किसी बैक्टीरिया के अंदर जा सके और वो वेक्टर जनरली पता है कौन होता है? वो वेक्टर होता
है प्लाज्मिड वेक्टर। वो वेक्टर होता है प्लाज्मिड वेक्टर। वो वेक्टर होता है प्लाज्मिड वेक्टर। वो होता है प्लाज्मिड
वेक्टर। तो तुम क्या करते हो? तो प्लाज्मिड हमें पता है ऐसा एक स्ट्रक्चर होता है गोल-गोल डीएनए जिसको हम कहते हैं
सर्कुलर एक्स्ट्रा क्रोमोजोमल ऑटोनॉमसली रेप्लिकेटिंग ऑटोनॉमसली एक्सप्रेसिंग डीएनए जो बैक्टीरिया में पाया जाता है वो
लोगे उसको भी तुम क्या करोगे रेस्ट्रिक्शन एंडोनक्लियस से कट करोगे किससे कट करोगे उसको भी तुम रेस्ट्रिक्शन एंडोनक्लियस से
कट करोगे सेम रेस्ट्रिक्शन एंडोनक्लियस से कट करोगे जिससे तुमने अपने जीन ऑफ इंटरेस्ट या डीएनए को कट किया था जो तुमको
यहां पे डालना है इसको कट किया तो तो ये ऐसे खुल जाएगा। ये कैसे? ऐसे खुल जाएगा। अब ये खुलने के बाद पता है क्या? तुम यहां
पे अपना जीन ऑफ इंटरेस्ट लाओगे। ये अपना जीन ऑफ इंटरेस्ट को मैं जी ओआई लिख रहा हूं। और उसको फिर यहां पे जोड़
दोगे। मैंने अभी थोड़ी देर पहले मॉलिक्यूलर बायोलॉजी में ये बताया था कि भाई ये जो जोड़ने वाली एंजाइम होती है,
इसका नाम होता है डीएनए लाइगेज़। इसका नाम होता है डीएनए लाइगेज़। इस डीएनए लाइगेज़ से तुम इसको
जोड़ दोगे। ठीक? अब तुमने जब जोड़ दिया तो तुम्हारे पास क्या आएगा? तुम्हारे पास एक रिक्बिनेंट प्लाज्मिड आएगा। क्या आएगा?
रिक्बिनेंट प्लाज्मिड। ऐसा जिसमें तुम्हारा जीन ऑफ इंटरेस्ट भी लगा हुआ है। अब तुम इस प्लाज्मिड को एक
बैक्टीरिया के अंदर डालोगे जिसको तुम कहते हो ट्रांसफॉर्मेशन। क्या कहते हो तुम इसको? ट्रांसफॉर्मेशन। इसको तुम कहते हो
ट्रांसफॉर्मेशन। ठीक है? तो ये प्लाज्मिड तुमने यहां पर ट्रांसफॉर्मेशन के थ्रू इसके अंदर डाल दिया। और इसके इस
ट्रांसफॉर्मेशन के या फिर इसको डालने के किसी होस्ट में डालने के कई सारे तरीके होते हैं। कई सारे तरीके होते हैं। पहला
तरीका जो होता है वो होता है हीट शॉक ट्रीटमेंट। हीट शॉक ट्रीटमेंट जिसमें तुम इसको ठंडे और गर्म टेंपरेचर पे रखते हो
पांचप 10-10 मिनट बाद। लेकिन उससे पहले तुम इसको डाईवरेंट कैटायन से ट्रीट करते हो। जैसे कि मैग्नीशियम और कैल्शियम आयंस।
मैग्नीशियम या कैल्शियम आयंस से इसको ट्रीट करते हो पहले ताकि इसकी जो प्लाज्मा मेंब्रेन है उस पे पॉजिटिव आयंस आ जाए।
जिसकी वजह से ये नेगेटिवली डीएनए को नेप्टली चार्ज डीएनए को अपने पास अट्रैक्ट कर पाए। ठीक है? ओके? ठीक है? तो ये चीज
होती है। तो तुम हीट शॉक ट्रीटमेंट से इस प्लाज्मिड को जिसमें तुम्हारा जीन ऑफ इंटरेस्ट है उसको यहां पे डाल सकते हो।
ठीक है? इसके अलावा और भी टेक्निक्स होती हैं होस्ट के अंदर चीजों को डालने की। जैसे कि मैं नाम लिख देता हूं। जैसे हम
जीन गंस यूज़ करते हैं जिसको बायोलिस्टिक भी कहते हैं। जिसको हम बायोलिस्टिक भी कहते हैं। ठीक? एक तरीका होता है जिसको हम
कहते हैं जिसको हम कहते हैं भाई माइक्रो इंजेक्शन। ठीक है? एक होता है
एग्रोबैक्टीरियम ट्यूमीफेशियंस मेडिएटेड एग्रोबैक्टीरियम ट्यूमीफेशियंस मेडिएटेड ट्रांसफॉर्मेशन और
एक होता है कि तुम भाई रेट्रो वायरस का यूज कर सकते हो। रेट्रो वायरस का ट्रीट कर सकते हो। ठीक है? रेट्रोवायरस का ट्रीट कर
सकते हो। अह क्या? रेट्रोवायरस को ट्रीट रेट्रोवायरस में अपना जीन ऑफ इंटरेस्ट डाल
के उसको होस्ट के अंदर डाल सकते हो। ठीक है? इस तरह से तुम लोग कई सारी टेक्निक्स यूज़ करके अपने जीन ऑफ इंटरेस्ट को होस्ट
के अंदर इंसर्ट कर सकते हो। अगर मैं स्पेसिफिकली बताऊं तो एग्रोबैक्टीमियम ट्यूमीफेशियंस जो है वो यूज़ होता है
प्लांट में। क्योंकि एग्रोबैक्टियम ड्यूफेशियस प्लांट में इनफेक्शन इनफेक्शन कॉज करता है और ये एक डिजीज कॉज करता है
प्लांट में जिसको हम कहते हैं क्राउन गॉल ट्यूमर। माइक्रो इंजेक्शन मेनली यूज़ होता है
अपना एनिमल्स के लिए और जीन गन बाय मेनली यूज़ होता है प्लांट्स के लिए। ठीक है? रेट्रोवायरस तुम किसी में भी डाल सकते हो।
मेनली एनिमल्स के लिए भी ये यूज़ होता है और यह तो किसी के लिए भी हम यूज़ कर सकते हैं। मेनली हम बैक्टीरियल सेल के लिए इसको
यूज़ करते हैं। इकोलाई में ट्रांसफॉर्मेशन के लिए इसको यूज़ करते हैं। ठीक है? चल आगे। आ जाओ आगे चलते हैं। जब तुमने इसको
इसके अंदर डाल दिया है। तो अब क्या होगा? अब तुम्हारा जीन ऑफ इंटरेस्ट अब तुम्हारा जो जीन ऑफ इंटरेस्ट है अब तुम्हारा जो जीन
ऑफ इंटरेस्ट है वो एक होस्ट के अंदर है और हमें पता है होस्ट एक लिविंग एंटिटी है लिविंग एंटिटी के अंदर डीएनए एक्सप्रेस
होता ही है जब डीएनए एक्सप्रेस होगा तो ये प्लाज्मिड भी एक्सप्रेस होगा तो इससे क्या बनेगी प्रोटीनंस बनेगी जब
बहुत सारी प्रोटीन बनेंगी तो तुम्हारा जीन ऑफ इंटरेस्ट भी तो इसमें है तो तुम्हारा जो प्रोटीन है जिस जिस डीएनए को तुमने
डाला है वो वाली प्रोटीन भी बनेगी। जब वो प्रोटीन बनेगी तो तुम उस प्रोटीन को निकाल लोगे और उस प्रोटीन को निकालने से तुमको
क्या मिल जाएगा? तुम्हारा प्रोटीन ऑफ इंटरेस्ट जिसको तुम यूज़ कर सकते हो या मार्केट भी कर सकते हो। लेकिन यह प्रोटीन
पहले इंप्योर मैनर में प्रोड्यूस होता है। इसको प्यूरिफाई करने के लिए इसकी हमें डाउनस्ट्रीम प्रोसेसिंग करनी पड़ती है।
क्या करनी पड़ती है? डाउनस्ट्रीम प्रोसेसिंग करनी पड़ती है। डाउनस्ट्रीम प्रोसेसिंग करनी पड़ती है
इसकी। ठीक है? अब लेबोरेटरी कंडीशन में तो ये बहुत छोटे टेस्ट ट्यूब्स में भी हो सकता है।
लेकिन हमें पता है प्रोटीन अगर किसी इंडस्ट्रियल यूज़ के लिए हमको चाहिए तो उसको हमें बड़े चेंबर्स में करना पड़ता
है। और वो बड़े चेंबर्स को हम क्या कहते हैं? उन बड़े चेंबर्स को हम कहते हैं बायो रिएक्टर्स।
उन बड़े चेंबर्स को हम बायो रिएक्टर्स भी कहते हैं। उन बड़े चेंबर्स को हम बायोर रिएक्टर्स भी कहते हैं। समझे तुम लोग?
इतनी बात सबको समझनी है। ओके? क्लियर? अब इस चैप्टर में एक और टॉपिक आता है जिसको हम कहते हैं सेलेक्टेबल मार्कर। क्या कहते
हैं? सिलेक्टेबल मार्कर। क्या होता है सिलेक्टेबल मार्कर?
सिलेक्टेबल मार्कर बेसिकली पता है क्या होता कि जैसे अगर तुमने किसी डीएनए को कट किया और उसमें अपना जीन ऑफ इंटरेस्ट
इंसर्ट किया। डीएनए लाइगेज़ भी डाल दी। तो तुमको लगा कि हमारा जो ये है प्लाज्मिड है इसमें हमारा जीन ऑफ इंटरेस्ट चला गया है।
लेकिन ऐसा जरूरी थोड़ी है कि तुम सारी एंजाइम डाल दो तो वो चला ही जाए। हो सकता है रेस्ट्रिक्शन एंडोनक्लियस ने इसको कट
ही ना किया हो। हो सकता है डीएनए लाइगेज़ ने इसको जोड़ा ही ना हो। तो देयर आर टू पॉसिबिलिटीज़। हमेशा ही यहां पे दो
पॉसिबिलिटी होती है कि तुम्हारा प्लाज़्मिड जो है उसमें तुम्हारा जीन ऑफ इंटरेस्ट चला गया हो। उस टाइम पे हम उसको
ट्रांसफॉर्मेंट कहते हैं। और अगर वो नहीं गया है तो उसको हम नॉन ट्रांसफॉर्मेंट बोलते हैं। ठीक है?
हमको किसकी जरूरत है? हमको सिर्फ उसी की जरूरत है। जिसमें हमारा जीन ऑफ़ इंटरेस्ट गया हो। तो हमको ट्रांसफॉर्मेंट चाहिए। ये
नॉन ट्रांसफॉर्मेंट हमको हटाना है। उसी को सेलेक्ट करने के लिए ट्रांसफॉर्मेंट को सेलेक्ट और इसको डिसलेक्ट करने के लिए हम
सिलेक्टेबल मार्कर का यूज़ करते हैं। और तुम्हारे सिलेबस में दो टाइप के सिलेक्टेबल मार्कर्स हैं। पहला सिलेक्टेबल
मार्कर है जिसको तुम कहते हो जिसको तुम कहते हो एंटीबायोटिक
रेजिस्टेंस। एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस वाला। और दूसरा सेलेक्टेबल मार्कर होता है जिसको तुम कहते हो
ऑन द बेसिस ऑफ क्रोमोजेनिक सबस्ट्रेट। [संगीत] ठीक
है? ठीक? इसमें तुम ब्लू वाइट सिलेक्शन करते हो। और इसमें तुम ग्रोथ और नॉट एबल टू
ग्रो वाला चीज यूज़ करते हो। तो पहले देखते हैं एक-एक करके देखते हैं दोनों को। एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस वाला जो चीज है,
एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस वाली जो चीज है जो सिलेक्टेबल मार्कर्स हैं, वो पता है कैसे यूज़ होते हैं? मान लो तुम्हारा एक
प्लाज्मिड है जिसमें तुम्हारा जीन ऑफ इंटरेस्ट गया है और एक ऐसा है जिसमें नहीं गया है। तुमने दोनों को ही इ कोलाई
बैक्टीरिया में डाला। ठीक है? तो ये वाला भी तुम्हारा है और ये वाला भी है। इसमें गया है। इसमें नहीं गया है। लेकिन हम जो
अपना जीन ऑफ इंटरेस्ट डालते हैं ना वो किसी एंटीबायोटिक वाली जीन के अंदर डालते हैं। मान लो यहां पे एमिसिलिन रेजिस्टेंस
जीन थी। मान लो यहां पे तुम्हारे प्लाज्मिड में इस जगह पे एमिसिलिन रेजिस्टेंस जीन थी। तो ये प्लाज्मिड जिस
भी बैक्टीरिया में होता था वो एमिसिलिन एंटीबायोटिक वाले मीडियम में भी ग्रो कर जाता था। बिकॉज़ इट वाज़ रेजिस्टेंट टू
एमिसिलिन एंटीबायोटिक। तुमने अपना जीन ऑफ़ इंटरेस्ट इसी में डाल दिया है। तो अब यह रेजिस्टेंट नहीं रहेगा क्योंकि तुमने
एमिसिलिन रेजिस्टेंस वाले जीन के बीच में अपना प्लाज्मिड डाल दिया। अपना जीन ऑफ इंटरेस्ट डाल दिया है। ठीक है? अगर वो चला
गया है तो वो एमिसिलिन कंटेनिंग मीडियम पे ग्रो नहीं करेगा। और अगर वो नहीं गया है तो वो एमिसिलिन कंटेनिंग मीडियम पे ग्रो
करेगा। अगर वो ग्रो कर रहा है तो क्या उसमें हमारी जीन गई है? नहीं गई है तो यह नॉन ट्रांसफॉर्मेंट हो जाएगा।
तो यह नॉन ट्रांसफॉर्मेंट हो जाएगा। ठीक है? और अगर यह चला गया है तो यह नहीं ग्रो करेगा। नॉट
ग्रो ये नॉट ग्रो ग्रो नहीं करेगा। यानी कि ये क्या हो जाएगा? यह हो जाएगा ट्रांसफॉर्मेंट। तो जो भी जिस भी
एंटीबायोटिक की रेजिस्टेंस तुम्हारे डीएनए में थी तुम्हारे प्लाज्मिड में थी जिस भी एंटीबायोटिक के प्रति रेजिस्टेंट
रेजिस्टेंस तुम्हारे प्लाज्मिड में थी उस प्लाज्मिड में अगर उस प्लाज्मिड में तुमने अपना जीन ऑफ इंटरेस्ट डाला है और उसको
डालने के बाद वो ग्रो नहीं कर रहा है तो वो ट्रांसफॉर्मेंट हो जाएगा और अगर वो नहीं ग्रो कर अगर वो ग्रो कर रहा है तो वो
नॉन ट्रांसफॉर्मेंट हो जाएगा। समझे भाई इतनी बात को? इतनी बात को समझना है। अब दूसरा जो तरीका होता है उसको हम कहते हैं
ब्लू वाइट सिलेक्शन। उसको हम कहते हैं ब्लू वाइट सिलेक्शन। ब्लू वाइट सिलेक्शन में
पता है क्या होता है? ब्लू वाइट सिलेक्शन में ये होता है कि तुम्हें पता है कि एक जीन एक प्लाज्मिड होता है जिसको हम कहते
हैं पीयूसी एट प्लाज्मिड। इस प्लाज्मिड के अंदर एक जीन होती है। उस जीन को हम कहते हैं उस जीन को हम कहते हैं लैग्जड जीन। और
तुम्हें मैंने अभी-अभी थोड़ी देर पहले लैक ओपनर में बताया था कि लैग्ज़ेट जीन बीटा गैलेक्टोसाइडेज़ को कोड करती है। और ये
बीटा गैलेक्टोसाइडेज़ लैक्टोज़ को तोड़ता है इंटू ग्लूकोज़ एंड गैलक्टोज़। ठीक है? लेकिन ये लैक्टोज़ के अलावा एक और सब्सटेंस को
तोड़ता है। उस सब्सटेंस का नाम होता है एक्सगॉल। उस सब्सटेंस का नाम होता है एक्सगॉल। ये जब एग्जॉल को तोड़ता है ना तो
एग्जॉल एक ऐसा पिगमेंट प्रोड्यूस करता है जो ब्लू कलर का होता है जो ब्लू कलर का होता है। अगर तुम्हारा
प्लाज़्मिड जो है उसमें यह लैग्ज़ेट जीन है और तुमने उस लैगज़्ज़ेट जीन वाले प्लाज़्मिड को किसी बैक्टीरिया में डाला और उस
बैक्टीरिया को ग्रो किया एक्सगॉल वाले मीडियम पे तो वो वो जो कॉलोनी है बैक्टीरिया की वो ब्लू कलर की हो जाएगी
क्योंकि वो वो बीटा ग्लैक्टोसाइटिस प्रोड्यूस करेगी और वो बीटा गलेक्टोसाइटिस एग्जगोल को तोड़ के ब्लू कलर दे देगा।
लेकिन अगर तुमने अपना जीन ऑफ इंटरेस्ट इस लेगज़ेड वाले जीन के बीच में इंसर्ट कर दिया है तो यह
लेग बीटा ग्लैक्टोसाइडेज़ नहीं प्रोड्यूस कर पाएगा क्योंकि यह लेगज़्ज़ेड तो अब इनक्टिव हो गया है। है ना? जब ये इसको
नहीं तोड़ जब ये लेगज़ेड इस बीटा ग्लैक्टोसाइडेज़ नहीं प्रोड्यूस कर पाएगा तो यह लेग्सल टूटेगा नहीं और यह ब्लू
कॉलोनी होगी नहीं। यह कॉलोनी पता है कैसी होगी? यह होगी वाइट कॉलोनी। तो अगर कॉलोनी वाइट है तो यानी कि तुम्हारा
ट्रांसफॉर्मेंट हुआ है जिस भी बैक्टीरिया की कॉलोनी में वाइट कलर होगा वो ट्रांसफॉर्मेंट होगी और
जिसमें भी ब्लू कलर होगा वो नॉन ट्रांसफॉर्मेंट कॉलोनी होगी। वो नॉन ट्रांसफॉर्मेंट कॉलोनी कहलाती है। वो नॉन
ट्रांसफॉर्मेंट कॉलोनी कहलाती है। समझे? इतनी बात सबको समझनी है। ठीक? तो इन दोनों ही एग्जांपल में मैंने यह
देखा कि जब भी मैंने अपना जीन ऑफ इंटरेस्ट किसी एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस जीन में डाला या इस लैग्ज़ेड वाली जीन में डाला तो यहां
पे वो जो जींस थी जो उस प्लाज्मि में पहले से प्रेजेंट थी वो इनक्टिव हो गई है। इसीलिए इसी इसीलिए इसको हम इंसशनल
इनक्टिवेशन कहते हैं। इसको हम इंसशनल इंसशनल इनएक्टिवेशन कहते हैं। इंसशनल
इनक्टिवेशन कहते हैं। इसको हम इंसशनल इनएक्टिवेशन कहते हैं। ठीक है? यह था तुम्हारा सिलेक्टेबल मार्कर। अब इसके
अलावा इस चैप्टर में एक लास्ट टॉपिक मुझे तुम लोगों को बताना है जिसको हम कहते हैं पीसीआर जिसको हम कहते हैं पीसीआर। पीसीआर
का फुल फॉर्म होता है पॉलीमरेज चेन रिएक्शन। क्या होता है इसमें? पॉलीमरेज चेन रिएक्शन पता है क्या होता है? कि
तुम तुम्हारे पास अगर बहुत कम डीएनए हैं और तुम्हें उससे उसी डीएनए के बहुत ज्यादा कॉपीज बनानी है तो तुम पीसीआर कर सकते हो।
बेसिकली इट्स अ टाइप ऑफ डीएनए रेप्लिकेशन प्रोसेस। यहां पर डीएनए रेप्लिकेशन ही हो रही होती है। लेकिन सिंथेटिक मीडियम
पे इस प्रोसेस को डेवलप किया था एक साइंटिस्ट ने जिनका नाम था कैरीलिस। उन्होंने क्या किया? उन्होंने बोला कि अगर
तुम्हारे पास एक डीएनए है और तुम उसको वो डबल स्टैंडर्ड डीएनए है। ठीक है? और तुम उसको हाई टेंपरेचर से
ट्रीट करो अप्रोक्सिममेटली 94 डिग्री सेल्सियस तो ये डबल स्टैंडेड डीएनए के बीच के हाइड्रोजन बॉन्ड्स टूट जाएंगे और ये
सिंगल सिंगल स्टैंडेड डीएनए में कन्वर्ट हो जाएगा। ये सिंगल सिंगल स्टैंडेड डीएनए में कन्वर्ट हो जाएगा। ठीक है? डबल से
सिंगल स्टैंडेड डीएनए होना एट वेरी हाई टेंपरेचर इस प्रोसेस को हम इस प्रोसेस को हम डिनेचुरेशन कहते हैं। इसको हम इसको हम
डिनेचुरेशन कहते हैं। ठीक है? उसके बाद हमें पता है रेप्लिकेशन के लिए हमको क्या चाहिए? हमको यहां पर प्राइमर ऐड
कराना होगा। प्राइमर ऐड कराते हैं हम इसका टेंपरेचर कम करके। अब इसका टेंपरेचर हम 50 टू 60° सेल्सियस कर देते हैं। 50 टू 60°
सेल्सियस इसका टेंपरेचर कर देते हैं। यानी कि कम कर देते हैं टेंपरेचर। और फिर हम इसमें प्राइमर ऐड करते हैं।
डीएनए पॉलीमरेज़ ऐड करते हैं। अभी तो खैर डीएनए पॉलीमरेज़ का काम नहीं है। वैसे तो हम कर ही देते हैं। इनिशियली डिनेचुरेशन
से पहले ही डीएनए पॉलीमरेज़ को ऐड कर देते हैं। लेकिन इस डीएनए पॉलीमरेज़ का काम नेक्स्ट स्टेप पे आएगा। अभी इसमें हमने
प्राइमर ऐड किया है। मैग्नीशियम डाई पॉजिटिव आयन ऐड किए हैं। बफर्स ऐड किए हैं। और इसमें हमने डीएनटीपीस ऐड किए हैं।
डीऑक्सीराइबो न्यूक्लोटाइड डीऑक्सीराइबो न्यूक्लियोसाइड ट्राई फास्फेट्स ऐड किए हैं। और इसकी मदद से जो हमारे सिंगल
स्टैंडर्ड डीएनए है उनमें क्या जुड़ गया है? उनमें जुड़ गए हैं प्राइमर्स। उनमें क्या जुड़ गए हैं? प्राइमर्स। और इस स्टेप
को हम अनिलिंग कहते हैं। इस स्टेप को हम अनिलिंग कहते हैं। इस स्टेप को हम अनिलिंग स्टेप कहते हैं। तो पहला स्टेप डिनेचुरेशन
था। दूसरा हो जाएगा अनिलिंग। अनिलिंग के बाद हम क्या करते हैं? अनिलिंग के बाद हम करते हैं एक्सटेंशन या पॉलीमराइजेशन।
एक्सटेंशन या पॉलीमराइजेशन। इस स्टेप में हम बस इसके आगे चीजें ऐड कराते रहते हैं। ये एक्सटेंशन स्टेप होता है। इसमें हमें
डीएनए पॉलीमरेज का काम लगता है। लेकिन इस स्टेप को हम 72 डिग्री सेल्सियस टेंपरेचर पे कराते हैं। क्योंकि हम इसको 72 डिग्री
सेल्सियस टेंपरेचर पे करा रहे हैं। तो तुम्हारे मन में क्वेश्चन उठेगा कि 72 डिग्री सेल्सियस पे तो हमारी बॉडी की सारी
एंजाइम्स डिनेचर हो जाती हैं। तो डीएनए पॉलीमरेज कैसे काम करेगी? इसीलिए हम अपनी बॉडी की डीएनए पॉलीमरेज नहीं डालते हैं।
हम किसी दूसरे की बॉडी की डीएनए पॉलीमरेज डालते हैं। और वो बंदा है एक बैक्टीरिया जिस बैक्टीरिया का नाम है थर्मस
एक्वेटिकस। थर्मस एक्वेटिकस और जो थर्मस एक्वेटिकस है इसकी इसकी जो डीएनए पॉलीमरेज है उसको हम
टैग पॉलीमरेज कहते हैं। यह टैग पॉलीमरेज हीट रेजिस्टेंट होती है और इस टैग पॉलीमरेज की मदद से
हम अपने प्राइमर्स के आगे नया-नया स्टैंड बना लेते हैं। तो हमने शुरू किया था एक डीएनए से खत्म किया है दो डीएनए पे। आफ्टर
वन साइकिल ऑफ डिनेचुरेशन अनलिंग एंड एक्सटेंशन। ऐसे ही अगर हम साइकिल रिपीट करते जाएं तो हमारा क्या हो जाएगा? हमारे
पास मल्टीपल या मेनी कॉपीज़ ऑफ़ डीएनए बन जाएंगी। ठीक है? इससे रिलेटेड एक क्वेश्चन आया था पिछले साल आईआईटी में। जहां पे बस
तुम्हें एक फार्मूला अप्लाई करना था। वो फार्मूला था n = n0 * 2 पावर n। n जो है वो फाइनल नंबर है। फाइनल डीएनए है। फाइनल
नंबर ऑफ डीएनए है। n नॉट जो है वो इनिशियल नंबर ऑफ डीएनए है। इनिशियल नंबर ऑफ़ डीएनए है। टू तो खैर
टू ही होता है। n होता है नंबर ऑफ जनरेशंस। कितनी जनरेशन कि कितनी साइकिल्स डीएनए रन कर चुका है? कितनी साइकिल्स तक
डीएनए रन कर चुका है? कितनी साइकिल्स तक डीएनए रन कर चुका है? यह चीज होती है क्या? इस फार्मूले में। ठीक? तो, इसके
साथ-साथ जो बायोटेक्नोलॉजी है, जो प्रिंसिपल्स ऑफ बायोटेक्नोलॉजी चैप्टर है, उसका हमने मेन कंटेंट कवर कर लिया है।
एप्लीकेशनेशंस ऑफ बायोटेक्नोलॉजी तुम लोग कर लोगे अगर तुम्हें इसका आईडिया है। ठीक है? इसके लिए ही हम अब आगे चलते हैं और
नेक्स्ट यूनिट पे मूव करते हैं जिसका नाम है इकोलॉजी। इकोलॉजी में मैं हमारे पास तीन चैप्टर्स हैं। लेकिन मैं तीनों
चैप्टर्स को सेपरेटली नहीं पढ़ाऊंगा। उनमें से जितने भी इंपॉर्टेंट टॉपिक्स हैं वो मैं तुम लोगों को बता देता हूं। पहला
इंपॉर्टेंट पॉइंट है वहां पे कि हम एक पॉपुलेशन में ग्रोथ हो रही है या डिग्रोथ हो रही है उसको कैसे पता करें? उसको पता
करने का एक तरीका होता है। एक सिंपल सा फार्मूला होता है। nt = n0 + b + i - d + e ठीक
है? n नॉट इनिशियल नंबर ऑफ इंडिविजुअल्स इन अ पॉपुलेशन होता है। b यानी बर्थ, आई यानी इमीग्रेशन। बर्थ और इमीग्रेशन से
पपुलेशन का साइज बढ़ेगा। डेथ और इमीग्रेशन से पॉपुलेशन का साइज घटेगा। तो ये फार्मूला सिंपली अप्लाई करके हमें ये पता
कर चल सकता है कि एक पापुलेशन जो है वो घट रही है या बढ़ रही है। ठीक? दूसरा होता है एक जो है पपुलेशन ग्रोथ कर्व। दूसरा होता
है पपुलेशन ग्रोथ कर्व। पापुलेशन ग्रोथ कर्व दो टाइप
के होते हैं। पहला होता है एक्सप्पोनेंशियल और दूसरा होता है एक्सप्पोनेंशियल को ज्योमेट्रिक भी बोलते
हैं और दूसरा होता है लॉजिस्टिक। ठीक है? एक्सप्पोनेंशियल एंड लॉजिस्टिक। एक्सप्पोनेंशियल ग्रोथ कर्व और लॉजिस्टिक
ग्रोथ कर्व कुछ-कुछ ऐसा दिखता है। कैसा दिखता है? नंबर विद टाइम के साथ-साथ का ये कर्व होता है। नंबर विद टाइम के साथ-साथ
ये इसका कर्व होता है। ठीक है? इस कर्व में हम पता है क्या देखते हैं? कि किस तरह की ग्रोथ हो रही है। एक्सप्पोनेंशियल
ग्रोथ कर्व में ग्रोथ ऐसी होती है जे शेप्ड ग्रोथ। लेकिन लॉजिस्टिक ग्रोथ कर्व में एस शेप्ड कर्व आता है। ठीक
है? यहां पे कुछ चीजें देखने वाली हैं जो तुम्हें समझनी है। वो पता है क्या चीजें हैं? पहली चीज तो ये है कि
एक्सप्पोनेंशियल ग्रोथ कर्व में तुम हमेशा ही ये अस्यूम करके चलते हो कि तुम्हारे जो नेचर है उसमें रिसोर्सेज अनलिमिटेड हैं।
ठीक है? लेट्स कंपेयर एक्सप्पोनेंशियल ग्रोथ
कर्व विद लॉजिस्टिक ग्रोथ कर्व। ठीक है? एक्सप्पोनेंशियल ग्रोथ कर्व में तुम यह मान के चलते हो कि रिसोर्स जो है
नेचर में अनलिमिटेड है। रिसोर्स अनलिमिटेड है। इसमें तुम मानते हो कि रिसोर्स लिमिटेड है। यही इसका मेन
पॉइंट है। लॉजिस्टिक ग्रोथ कर्व में एक कैरिंग कैपेसिटी आती है। मतलब कि मैक्सिमम नंबर ऑफ
इंडिविजुअल दैट अ पपुलेशन कैन बियर। वो कैरिंग कैपेसिटी का कांसेप्ट लॉजिस्टिक ग्रोथ कर्व में आता है। लेकिन इसमें ऐसा
कोई भी कांसेप्ट नहीं आता है। अगर मैं एक्सपोनेंशियल ग्रोथ कर्व की इक्वेशन लिखूं तो उसमें रेट ऑफ ग्रोथ ऑफ पपुलेशन
यानी कि dn / dt = rn होता है। n तुम्हें पता है नंबर ऑफ इंडिविजुअल एट पर्टिकुलर टाइम t r जो होता है वो होता है
इंट्रिंसिक रेट ऑफ नेचुरल इंक्रीस। ये बर्थ रेट माइनस डेथ रेट होता है। यानी कि बर्थ माइनस डेथ अपॉन टाइम के इक्वल होता
है। ठीक है? ऐसे ही लॉजिस्टिक ग्रोथ कर्व का भी एक फार्मूला होता है जिसको तुम dn / dt = rn k - n / k से डिनोट करते हो। r और
n का मतलब तो मैंने बता दिया था। k का मतलब होता है कैरिंग कैपेसिटी। ठीक है? क्लियर इतनी
बातें? क्लियर? ये है। अच्छा एक्स्पोनेंशियल ग्रोथ कर्व को तुम ऐसे भी लिख सकते हो। n = n0 e पावर rt ये एक और
ज्यादा अ मैथमेटिकल टर्म हो जाएगा फॉर योर एक्सप्पोनेंशियल ग्रोथ कर्व। ठीक है? ऐसे ही एक कांसेप्ट आता है पिरामिड्स का। एक
कांसेप्ट आता है पिरामिड्स का। पिरामिड्स का कांसेप्ट आता है कि एक पिरामिड एक जो एज पिरामिड है वो कैसा दिख
सकता है? एज पिरामिड एक्सपेंडिंग हो सकता है। एज पिरामिड जो है वो स्टेबलाइजिंग हो सकता है या स्टेबल हो सकता है और एज
पिरामिड जो है वो डिक्लाइनिंग भी हो सकता है। सिंपल सी चीज है कि अगर तुम्हारा जो प्री
रिप्रोडक्टिव रिप्रोडक्टिव और पोस्ट रिप्रोडक्टिव अह जो ग्रुप्स ऑफ इंडिविजुअल्स हैं वो इस तरह से पहले सबसे
ज्यादा दूसरे वाले उससे कम तीसरे वाले सबसे कम है। तो वो इस तरह का एक्सपेंडिंग ग्रोथ कर दिखता है जिसमें प्री
रिप्रोडक्टिव वाले सबसे ज्यादा होते हैं। ठीक है? स्टेबल में प्री रिप्रोडक्टिव और रिप्रोडक्टिव वाले सेम होते हैं और पोस्ट
रिप्रोडक्टिव वाले कम होते हैं। यह सबसे बढ़िया कर्व होता है। डिक्लाइनिंग में प्री रिप्रोडक्टिव कम होते हैं।
रिप्रोडक्टिव ज्यादा होते हैं। पोस्ट रिप्रोडक्टिव ज्यादा या कम कुछ भी हो सकते हैं। ठीक है? इस तरह का चीज होती है।
इसमें सबसे बढ़िया कर्व जो है वो यह होता है। बेस्ट कर्व स्टेबल कर्व कहलाता है। ठीक है?
क्लियर? क्लियर ठीक है। हां। तो अ हमने ये देखा कि
पिरामिड जो है उसमें से बेस्ट पिरामिड होता है स्टेबल पिरामिड। ओके? अब चलो आगे इस चैप्टर में एक बहुत इंपॉर्टेंट टॉपिक
आता है जिसको हम कहते हैं बायोटिक बायोटिक इंटरेक्शन। क्या कहते हैं? बायोटिक। बायोटिक इंटरेक्शन क्या मतलब है इसका?
बायोटिक बायोटिक इंटरेक्शन का मतलब होता है कि भाई अगर अगर एक पॉपुलेशन है तो उसमें दो लोग होंगे। लेकिन अगर एक
कम्युनिटी है तो उसमें मल्टीपल लोग होंगे। है ना? जभी भी हम बात करते हैं एक कम्युनिटी की
तो उसमें मल्टीपल स्पीशीज एक्सिस्ट करती हैं और वो मल्टीपल स्पीशीज के मेंबर्स जो हैं वो आपस में किस तरह से इंटैक्ट करते
हैं वो हमें इसमें पढ़ना है। मल्टीपल स्पीशीज ही क्यों? एक पॉपुलेशन में जो डिफरेंट इंडिविजुअल्स हैं एक ही स्पीशीज
के वो किस तरह से इंटैक्ट करते हैं ये भी हम इसमें देख सकते हैं। ठीक है? ये एक्चुअली में कई सारे प्रकार का होता है।
पहला होता है म्यूचुअलिज्म। पहला होता है म्यूचुअलिज्म। दूसरा होता है कमेंशलिज्म।
ठीक है? तीसरा होता है पैरासिटिज्म। चौथा होता है प्रिडेशन। ठीक
है? पांचवा होता है कंपटीशन। और छठा होता है अमेंसलिज्म। छठा होता
है अमेंसलिज्म। ठीक है? यह छह टाइप के इंटरेक्शन हमें पढ़ने हैं। हालांकि इंटरेक्शन और भी टाइप
के होते हैं। बट मेनली यह छह टाइप के ही हमें पढ़ने हैं। ठीक? अगर दो इंटरेक्टिंग स्पीशीज एक दूसरे को फायदा पहुंचा रही है
और वो ऑब्लिगेट है। वो एक दूसरे के बिना जी नहीं सकती हैं। ऐसे इंटरेक्शन को हम म्यूचुअलिज्म कहते हैं। ठीक? अगर एक
स्पीशीज दूसरे को फायदा पहुंचा रही है लेकिन दूसरे का इससे कोई फायदा नुकसान नहीं है तो वो प्लस जीरो टाइप का
इंटरेक्शन होगा। यानी कि कमेंसलिज्म। अगर एक को फायदा हो रहा है और दूसरे को नुकसान हो रहा है लेकिन दूसरा जिसको नुकसान हो
रहा है उसकी इंस्टेंट डेथ नहीं हो रही है तो वो पैरासडिज्म कहलाएगा। अगर एक को फायदा हो रहा है और दूसरे को नुकसान हो
रहा है लेकिन दूसरे की इंस्टेंट डेथ हो जा रही है तो वो प्रिडेशन कहलाएगा। कंपटीशन में दोनों ही कंपटिंग लोगों को नुकसान
पहुंचता है। जबकि अमेंसलिज्म में एक को नुकसान पहुंचता है लेकिन दूसरे को फायदा नुकसान कुछ भी नहीं पहुंचता है। ये छह
टाइप के इंटरेक्शंस हमारे बायोटिक बायोटिक इंटरेक्शन में आते हैं। इसके एग्जांपल्स से क्वेश्चन पूछे जाते हैं। जो कि काफी
इंपॉर्टेंट होते हैं। तो मैं आप लोगों से ये अर्ज करूंगा कि भाई ये इसका मीनिंग याद तो यहीं से समझ तुम लोगों को आ गया होगा।
लेकिन इसके एग्जांपल्स एक बार अपनी बुक जिसको भी तुम लोग रेफर करते हो उससे देख लेना क्योंकि वो एग्जाम पॉइंट ऑफ व्यू से
काफी इंपॉर्टेंट होते हैं। अगर वहां पे पूछा जाएगा तो मेनली एग्जांपल्स से ही चीजें पूछी जाती हैं। ठीक है? क्लियर? अब
आ जाओ नेक्स्ट चलते हैं। इसमें एक चैप्टर आता है जिसको कहते हैं हम इकोसिस्टम। उस इकोसिस्टम में कुछ
चीजें बहुत इंपॉर्टेंट होती हैं। पहली चीज होती है पहली चीज पता है क्या होती है? पहली चीज होती है हमारी
प्रोडक्टिविटी। हमें पता है प्लांट जो है ना वो हमारे इकोसिस्टम के सबसे प्राइमरी प्रोड्यूसर्स होते हैं। वही सनलाइट की
एनर्जी को फिक्स करते हैं हमारे एटमॉस्फियर में और फूड बनाते हैं। ठीक है? तो प्रोडक्टिविटी हमारी जो प्लांट्स
प्रोड्यूस करते हैं शुरुआत में उसको हम प्राइमरी प्रोडक्टिविटी कहते हैं। ठीक है? प्राइमरी प्रोडक्टिविटी कहते हैं
जिसको हम PP से डिनोट करते हैं। यह प्राइमरी प्रोडक्टिविटी जो है ना यह दो प्रकार की हो सकती है। ग्रॉस प्राइमरी
प्रोडक्टिविटी और [संगीत] और नेट प्राइमरी प्रोडक्टिविटी और
नेट प्राइमरी प्रोडक्टिविटी। ग्रॉस प्राइमरी प्रोडक्टिविटी और नेट प्राइमरी प्रोडक्टिविटी यहां पे होती है। ठीक है?
अगर मैं ग्रॉस प्राइमरी प्रोडक्टिविटी की बात करूं तो यह वो है जो सारी की सारी एनर्जी या
बायोमास प्लांट ने बनाया है यूजिंग सनलाइट। ठीक है? इट इज द टोटल चीज जो टोटल बनाई गई है। नेट प्राइमरी प्रोडक्टिविटी
ये है कि इस टोटल में से कुछ यूज़ हो जाती है प्लांट के अंदर। किसी भी कारण से यूज़ हो सकती है। जैसे कि प्लांट को एनर्जी
चाहिए। वो उसको बायोमास को तोड़ लेता है। ठीक है? तो ये जो अवेलेबल होती है
अवेलेबल फॉर कंजमशन अवेलेबल फॉर कंजमशन
टू हर्बीवोर्स। ठीक है? जो एक्चुअल में बायोमास रुका हुआ होता है उसको कहते हैं नेट प्राइमरी प्रोडक्टिविटी। जो टोटल
प्रोड्यूस हुआ था उसको हम कहते हैं ग्रॉस प्राइमरी प्रोडक्टिविटी। समझ गए सब लोग? यह चीज़ इसमें आती है। अच्छा, इसके बाद आता
है एक टॉपिक जिसको कहते हैं फ़ूड चेन। फ़ूड चेन में हमारे पास दो टाइप के फ़ूड चेन आ जाते हैं। एक आता है ग्रेजिंग
फ़ूड चेन और एक आता है डेट्राइटस फूड चेन। एक आता है डेट्राइटस फूड चेन। ठीक है? ग्रेजिंग फूड चेन जो है
वो प्लांट से शुरू होती है। यानी कि प्रोड्यूसर से शुरू होती है। लेकिन जो डेट्राइटस फूड चेन आती है वो हमेशा
डीकंपोजर से शुरू होती है। ठीक है? और हमें पता है दोनों ही चेन्स में दोनों ही चेन्स में सबसे दोनों ही नहीं मेनली
ग्रेजिंग फूड चेन में सबसे शुरुआत में आते हैं प्राइमरी प्रोड्यूसर्स। कौन आते हैं? प्राइमरी प्रोड्यूसर्स। उनको खाने वाले
कहलाए जाते हैं प्राइमरी कंज्यूमर। उनको खाने वाले कहलाए जाते हैं सेकेंडरी कंज्यूमर। उनको खाने वाले कहलाए जाते हैं
टर्शरी कंज्यूमर। इसके आगे जो ये साइकिल है या ये जो चेन है ये नहीं बढ़ पाती है जनरली। क्यों? क्योंकि हमारे इकोसिस्टम
में इतनी एनर्जी ही नहीं है कि वो और ज्यादा ट्रॉफिक लेवल्स को सपोर्ट कर सके। ठीक है? प्राइमरी प्रोड्यूसर्स एक्चुअली
में ऑटोट्रॉप्स होते हैं। प्राइमरी कंज्यूमर हर्बीवोर्स होते हैं। सेकेंडरी कंज्यूमर कार्निवोर्स होते हैं। और टर्शरी
कंज्यूमर जो होते हैं वो टॉप कार्निवोर्स होते हैं। ठीक है? डींपोजर्स जो है वो एक्चुअली में शुरू होते मतलब डेटाइटस फूड
चेन जो है वो एक्चुअली में डीकंपोजर से शुरू होती है। उसके बाद वहां पे जो न्यूट्रिएंट्स निकलते हैं वह प्लांट्स और
एनिमल्स दोनों में ही कंज्यूम किए जा सकते हैं। ठीक है? ओशियंस में जो है वह ज्यादा एनर्जी
ट्रांसफर ग्रेजिंग फूड चेन से होती है। ठीक है? जबकि अगर मैं बोलूं डेट्राइटस फूड चेन के द्वारा एनर्जी ट्रांसफर जो है वो
मेनली कहां होती है? वो मेनली टेरेस्ट्रियल एनवायरमेंट में होती है। मेनली टेरेस्ट्रियल एनवायरमेंट में ये चीज
हो रही होती है। समझ गए? क्लियर? ये है सिस्टम। अब हमें पता है कि हमारा जो नेचर है उसमें फूड चेन नहीं फूड वेब एक्सिस्ट
करता है। क्योंकि कॉम्प्लेक्स जितना ज्यादा कॉम्प्लेक्स जो प्रिडेशन और गेटिंग प्रिडेटेड वाली जो
चेन्स है वो जितनी कॉम्प्लेक्स होंगी उतना ही स्टेबल इकोसिस्टम माना जाता है। ठीक है? आ जाओ आगे चलते हैं। डेट्राइटस फूड
चेन्स में जो डेट्रिटिफिकेशन की प्रोसेस है या डीकंपोज़शन की प्रोसेस है वह पांच स्टेप में एक्सिस्ट करती है। पहला स्टेप
होता है उसका फ्रेगमेंटेशन। दूसरा स्टेप होता है कैटाबॉलिज्म।
तीसरा स्टेप होता है लीचिंग। या फिर तुम दूसरे को लीचिंग कह सकते हो। मैंने पिछली बार जब ये चीज पढ़ाई
थी तो बच्चे बोलने लगे थे या आपने उल्टा लिखा हुआ है। लेकिन इसमें उल्टा सीधा कुछ भी एक्सिस्ट नहीं करता है। फ्रेगमेंटेशन,
लीचिंग, कैटाबॉलिज्म। ठीक है? यहां तक चीजें ऐसी रहती हैं। उसके बाद दो और स्टेप्स आते हैं। एक को हम कहते
हैं मिनरलाइजेशन। और एक को हम कहते हैं
ह्यूमीिकेशन। एक को हम कहते हैं ह्यूमीफिकेशन। ह्यूमिफिकेशन के थ्रू ह्यूमस प्रोड्यूस होता है और मिनरलाइजेशन
के थ्रू मिनरल्स प्रोड्यूस होते हैं। मिनरल्स जो होते हैं वो इनऑर्गेनिक सब्सटेंस होते
हैं और ह्यूमस जो होता है वो ऑर्गेनिक सब्सटेंस होता है। तो जो बचा हुआ ऑर्गेनिक सब्सटेंस है वो ह्यूमस बना लेता है और जो
बचा हुआ इनऑर्गेनिक सब्सटेंस है वो मिनरल्स बना लेता है। ठीक है? क्लियर? अब इस चैप्टर में एक बहुत इंपॉर्टेंट टॉपिक
आता है जिसका नाम होता है इकोलॉजिकल पिरामिड्स। क्या? इकोलॉजिकल पिरामिड्स। काफी बार इससे
क्वेश्चन पूछे जाते हैं लेकिन गारंटी कोई नहीं कर सकता है। ठीक है? पहला जो इकोलॉजिकल पिरामिड है वो होता
है इकोलॉजिकल पिरामिड ऑफ नंबर्स। ठीक है? दूसरा जो होता है वो होता है पिरामिड ऑफ़ बायोमास। और तीसरा जो होता है उसको कहते
हैं पिरामिड ऑफ़ एनर्जी। पिरामिड ऑफ़ एनर्जी। अगर मैं तुम लोगों को ये बताऊं कि इनका मतलब क्या है? तो अगर तुम
डिफरेंट-डिफरेंट ट्रॉफिक लेवल्स में नंबर ऑफ इंडिविजुअल्स को कंपेयर कर रहे हो तो वो नंबर का पिरामिड हो जाएगा। अगर तुम
उनमें वेट वाइज़ एक ट्रॉफिक लेवल का इतना वेट है, दूसरे ट्रॉफिक लेवल का इतना वेट है, तीसरे ट्रॉफिक लेवल का इतना वेट है,
कंपेयर कर रहे हो तो वो बायोमास का पिरामिड हो जाएगा। अगर तुम एनर्जी वाइज कंपेयर कर रहे हो कि पहले ट्रॉफिक लेवल पर
इतनी एनर्जी टोटल है। दूसरे ट्रॉफिक लेवल पर इतनी एनर्जी टोटल है। तो उस तरह से कंपैरिजन करने पे वो पिरामिड ऑफ एनर्जी बन
जाएगा। पहले दो जो है पिरामिड्स नंबर्स के पिरामिड और बायोमास के पिरामिड ये स्ट्रेट भी हो सकते हैं और ये इनवर्टेड भी हो सकते
हैं। लेकिन एनर्जी का पिरामिड हमेशा ही स्ट्रेट होता है। एनर्जी का पिरामिड हमेशा ही स्ट्रेट होता है। क्यों? क्योंकि
तुम्हें पता ही होगा कि एक लॉ होता है जिसको हम कहते हैं 10% लॉ। 10% लॉ ये कहता है कि जो निचली ट्रॉफिक लेवल है उसमें
जितनी एनर्जी है उसका 10% ही नेक्स्ट ट्रॉफिक लेवल पे जा पाता है। तो जब 10% ही नेक्स्ट ट्रॉफिक लेवल पे जा रहा है तो
यानी कि पहला वाला सबसे ज्यादा होगा। दूसरा वाला उससे कम, तीसरा वाला उससे कम, चौथा वाला सबसे कम। तो, यह एक पिरामिड आता
है जो हमेशा स्ट्रेट या अपराइट रहता है एनर्जी में। लेकिन नंबर्स और बायोमास के पिरामिड उल्टा भी हो सकते हैं। इनवर्टेड
वाले ही इंपॉर्टेंट होते हैं। ठीक है? इनवर्टेड यहां पे भी हो सकता है, इनवर्टेड यहां पे भी हो सकता
है। अगर मैं नंबर्स की बात करूं तो ट्री इकोसिस्टम जो होता है वो इनवर्टेड पिरामिड देता है। और बायोमास में जो इनवर्टेड
पिरामिड देता है वो पता है कौन होता है? वो होता है तुम्हारा पोंड इकोसिस्टम। जहां पे जुप्लंटन और फाइटोप्लंटन जो होते हैं
उसमें फाइटोप्लंटिन कम होते हैं जो कि प्रोड्यूसर्स थे और जुप्लंटन काफी ज्यादा होते हैं बायोमास में या वेट में बट फिर
भी वो एग्जिस्ट करते हैं। ठीक है? तो ये इनवर्टेड हो गए। पोंड इकोसिस्टम इनवर्टेड बायोमास और ट्री इकोसिस्टम इनवर्टेड
नंबर्स। क्लियर? ये चीज है। अब आ जाओ हमारा नेक्स्ट चैप्टर। और नेक्स्ट चैप्टर जो है उसमें जो पहला टॉपिक आता है वो आता
है जेनेटिक डायवर्सिटी, स्पीशीज डायवर्सिटी और इकोलॉजिकल डायवर्सिटी। तो जो बायोडायवर्सिटी है जो बायोडायवर्सिटी
है वो तीन प्रकार की होती है जेनेटिक स्पीशीज
एंड इकोलॉजिकल अगर तुम एक इंडिया को पाकिस्तान से कंपेयर कर रहे
हो कि वहां पे कितने पेड़ वहां पे कितने पर्वत वहां पे कितने चट्टानें वहां पे कितने मैनग्रोव्स वहां पे कितने डेजर्ट
वहां पे कितने ओशियन ियंस और वहां पे कितने ट्रॉपिकल रेनफॉरेस्ट हैं और हमारे कितने हैं? तो यह इकोलॉजिकल डायवर्सिटी
तुम कंपेयर कर रहे हो। अगर तुम वहां के डिफरेंट टाइप्स ऑफ स्पीशीज को कंपेयर कर रहे हो हमारे यहां के स्पीशीज से तो वो
स्पीशीज डायवर्सिटी कहलाएगी। जैसे वेस्टर्न घाट और ईस्टर्न घाट में वेस्टर्न घाट्स में ज्यादा स्पीशीज डायवर्स है एज़
कंपेयर टू ईस्टर्न घाट। जेनेटिक डायवर्सिटी में तुम कंपेयर करते हो कि एक स्पीशीज के अंदर कितनी डायवर्सिटी हैं? एक
स्पीशीज के अंदर कितने डिफरेंट वेरिएंट्स हैं या कितनी सबस्पीशीज हैं वो जेनेटिक डायवर्सिटी में आता है। जैसे रोवोफिया का
एग्जांपल बहुत कॉमन है। इस पे क्वेश्चन पूछा भी गया था आईटी में एक बार। ठीक है? रोवोफिया वोमिटोरिया जो होता है वो एक ही
पेड़ है, एक ही प्लांट है। लेकिन उसके अलग-अलग वैरायटीज होती हैं जो कि कैंसरस कैंसर ड्रग प्रोड्यूस करता है। उसके
ट्रीटमेंट में इसका यूज़ होता है। रिसर्पिन इससे प्रोड्यूस होता है केमिकल। ओके? आ जाओ नेक्स्ट।
अगर मैं यह कहता हूं कि हम जो है डायवर्सिटी को कैसे स्टडी करें तो यहां पर दो तरीके होते हैं। एक
होता है स्पीशीज एरिया रिलेशनशिप। ठीक? और एक होता है लैटीट्यूडनल ग्रेडियंट। एक होता है
लैटीट्यूडिनल ग्रेडियंट। तुम्हें यह पता है कि हमारी जो अर्थ है, उसका सेंटर जो होता है, वह
इक्वेटर होता है। ठीक है? उस इक्वेटर पे आने वाली जितनी भी कंट्रीज है उसमें सबसे ज्यादा बायोडायवर्सिटी होती है। और
जैसे-जैसे तुम पोल्स की तरफ मूव करते हो तो बायोडायवर्सिटी कम होती जाती है। ये एक ग्रेजुअल डिक्रीज होता है। तो जब तुम
लैटीट्यूडनल ग्रेडियंट्स चेक करते हो कि कितने लैटीट्यूड में कितना बायोडायवर्सिटी कम हो रही है तो वो
लैटीट्यूडनल ग्रेडियंट होता है। ठीक है? और ये एक ग्रेजुअल डिक्रीज होता है फ्रॉम इक्वेटर टू पोल्स। ठीक? स्पीशीज एरिया
रिलेशनशिप में तुम कैसे बायोडायवर्सिटी को स्टडी करते हो? लेट्स सी। स्पीशीज़ एरिया रिलेशनशिप में पता है कैसे स्टडीज होता
है? स्पीशीज़ एरिया रिलेशनशिप में तुम एक ग्राफ प्लॉट करते
हो। तुम एक ग्राफ प्लॉट करते हो कि कितनी स्पीशीज़ बढ़ रही है। जब तुम्हारा एरिया कवर्ड बढ़ रहा है। ठीक है? और ये कुछ ऐसा
ग्राफ आता है। ठीक है? शुरुआत में जब तुम एरिया बढ़ाते आते हो तो तुम्हारी स्पीशीज़ का नंबर भी बढ़ता जाता है। लेकिन उसके बाद
एक टाइम में वो कांस्टेंट हो जाता है। ठीक है? इसको हम एक फार्मूला से डिनोट करते हैं। S = CA टू दी पावर Z. S होता है
स्पीशीज़ रिचनेस। C इज़ सम कांस्टेंट। A इज़ एरिया। Z इज़ रिग्रेशन कोफिशिएंट। Z इज़ रिग्रेशन कोफिशिएंट। और Z को भी स्टडी
करके तुम लोग स्पीशीज रिचनेस ऑफ एनी प्लेस को स्टडी कर सकते हो। ठीक है? अच्छा अब यहां पे एक और चीज आ जाती है जो तुम्हें
स्टडी करनी है वो क्या है? वो है कि भाई बायोडायवर्सिटी लॉस के पीछे रीज़ंस कौन-कौन से होते
हैं? बायोडायवर्सिटी के लॉस के पीछे रीज़ पता है कौन-कौन से होते हैं? चार होते हैं मेनली जिसको हम एिल क्वार्टेड भी बोलते
हैं। पहला रीजन जो होता है उसको हम बोलते हैं हैबिटेट लॉस एंड फ्रेगमेंटेशन। हैबिटेट लॉस
एंड फ्रेगमेंटेशन। हैबिटेट लॉस एंड फ्रेगमेंटेशन। ठीक है? दूसरा होता है जिसको हम कहते हैं
ओवर एक्सप्लइटेशन। ठीक है? तीसरा होता है जिसको हम कहते हैं एलियन स्पीशीज इन्वज़। एलियन स्पीशीज
इन्वेशन और चौथा होता है जिसको हम कहते हैं को एक्सटिंशन। ये चार रीजन है। रीजन है किसी भी बायोडायवर्सिटी के लॉस के। ठीक
है? या तो हम जहां पे वो रह रहे हैं उसको काट पीट दें। ठीक है? या तो हम किसी एक एनिमल को इतना प्रिडेट करें, इतना ज्यादा
उसको किल करें अपने फायदे के लिए कि वो खत्म ही हो जाए, एक्सटिंक्ट हो जाए। या तो किसी बाहर की स्पीशीज को इंट्रोड्यूस किया
जाए जो वहां की इंडीजीनियस स्पीशीज को बहुत ज्यादा ओवर एक्सप्लइट कर दें जिसकी वजह से वो खत्म हो जाए। या तो ऐसी स्पीशीज
जो आपस में डिपेंडेंट है उसमें से एक को खत्म कर लो तो दूसरी वाली अपने आप खत्म हो जाएगी। ठीक है? ये है बायोडायवर्सिटी लॉस
के चार मेन कारण। ठीक है? लेकिन बायोडायवर्सिटी लॉस है तो हम कंजर्वेशन भी कर सकते हैं। और कंजर्वेशन जो है उसके भी
दो मेन तरीके होते हैं। एक होता है इंसिट्यूट कंजर्वेशन। और एक होता है एक्स2 कंजर्वेशन। एक होता
है एक्स सी2 कंजर्वेशन। इन2 में क्या होता है कि जहां पे वो चीज खराब हो रही है वहीं पे जाके उसको ठीक करो। जैसे जंगल में
पोचिंग की वजह से शेरों की पापुलेशन कम हो रही है तो जंगल में जाके पोचर्स को मारो या या फिर पोचर्स को अरेस्ट करो। तो अपने
आप लायंस की पापुलेशन बढ़ जाएगी। या फिर उस एरिया को नेशनल पार्क, बायो बायोस्फीयर
रिजर्व या बायोडायवर्सिटी हॉटस्पॉट ये सारी चीजें डिक्लेअर कर दो। उस उस एरिया का उस जंगल की देखरेख शुरू कर दो अपने आप।
वहां की जो फ्लोरा एंड फौना है वो वापस से रीजनरेट हो जाएगी। ठीक है? इसको कहते हैं इंसिट कंजर्वेशन। एक्सिटू में क्या आता
है? एक्स2 में आता है कि भाई अगर शेर जो है वह जंगल से कम हो रहे हैं तो कुछ शेरों को उठा के चिड़ियाघर में ले आओ और वहां पे
उसकी देखरेख करो ताकि वहां पे वो जिंदा रह सके। तो अगर उस एरिया से उठा के तुम किसी नेचुरल एरिया में ना रख के किसी अपनी बनाई
हुई एरिया में किसी को डेवलप करा रहे हो तो वो एक्स2 कंजर्वेशन हो गया। जैसे कि अगर कोई पेड़ कम हो रहा है तो उसकी सीड को
कंजर्व कर लेना कि अगर यह पेड़ खत्म हो जाता है ना तो मैं इसकी मेरे पास इसकी सीड है। इसको मैं उगाकर वो पेड़ वापस से बना
लूंगा। है ना? किसी जानवर के स्पर्म्स कंजर्व कर लेना ताकि अगर वो जानवर खत्म हो जाए तो हम इसके ये जो रिजर्व स्पर्म्स हैं
इससे फर्टिलाइजेशन करा के इनको और पैदा करा करा सके। ठीक है? इस तरह से क्रायो प्रिजर्वेशन इसमें आ जाती हैं। ठीक है? तो
यह सारे कंजर्वेशन के मेथड्स होते हैं। और यही सारी चीजें मुझे तुम लोग को बतानी थी। मेनली हमने वो चीजें कवर की है जो
इंपॉर्टेंट है। ठीक है? जो तुम नहीं छोड़ सकते हो वो हमने यहां पे कवर की है। लेकिन ऐसा नहीं है कि जो हमने नहीं कवर की है वो
इंपॉर्टेंट नहीं है। हर एक फैक्ट हर एक कांसेप्ट इंपॉर्टेंट होता है। हर एक डायग्राम इंपॉर्टेंट होता है। क्योंकि
सिलेबस में अगर कोई चीज है तो वो कहीं से भी क्वेश्चन पूछ सकते हैं। तो तुमको यह नहीं देखना है या सोचना है कि भाई इतना ही
वन शॉट में भैया ने पढ़ा दिया तो इतना ही करना है और जो नहीं पढ़ाया वो नहीं इंपॉर्टेंट है। नहीं ऐसा नहीं है। जितना
नहीं पढ़ा है वो भी इंपॉर्टेंट है। लेकिन जितना पढ़ा दिया है वो तो तुमको कवर करना ही है। अगर इतना कर लिया तो कम से कम कुछ
नंबर अच्छे तुम्हारे बन जाएंगे। ठीक है? तो इसके साथ-साथ मैं ये वन शॉट यहां पे खत्म करता हूं और इसको देखने से मुझे लगता
है कि तुम लोगों को फायदा पहुंचेगा। लेकिन वही बात होती है कि फायदा तभी पहुंचेगा तो जब तुम इसको अच्छे से देखोगे। इससे
रिलेटेड क्वेश्चन सॉल्व करोगे। 50ेंट क्वेश्चन जो हमने अपलोड किए हैं YouTube पे वो भी और
देखोगे और उस और उससे उससे अपनी सेल्फ एनालिसिस करके एक रिजल्ट पे आओगे। ओके? अदरवाइज फिर दिक्कत है। ओके? तो विद दिस
आई एम एंडिंग अप दिस सेशन। होप यू हैव एंजॉयड दिस सेशन। बेस्ट ऑफ लक। बाय-ब। [संगीत]
Heads up!
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